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Adultery चित्रा और मैं (जिस्मो की आग)
#5
इत्तेफ़ाक़ से अगले शनिवार को ही मम्मी-पापा को सुबह 6 बजे एक सत्संग में जाना था, और चित्रा और मैं भी उस दिन जल्दी उठ गए थे। पापा-मम्मी के चले जाने के बाद मैंने चित्रा कहा कि पहले वह नहा ले क्योंकि नल में 7 बजे तक अच्छा पानी आएगा, और उसे पानी आते-आते नलके की धार में ही नहाने में अच्छा लगता था।

मैं कमरे में डाइनिंग टेबल पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। जैसे ही चित्रा ने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया, मैंने सोचा उसको कपड़े उतारते और नंगा होकर नहाते हुए झाँक कर देखता हूँ, जैसे मम्मी को देखा करता था। मैं दबे पाँव उठ कर बाथरूम की प्राइवेट बालकनी में खुलने वाले दरवाज़े पर जाकर उसमें एक छेद में से सांस रोक कर अंदर झाँकने लगा। अंदर जो हो रहा था वह देख कर मेरी धड़कन तेज़, चेहरा लाल, और लौड़ा टन्न हो गया।

चित्रा अपना ब्लाउज और स्कर्ट उतार चुकी थी, और पीछे हाथ करके ब्रा का हुक खोल रही थी। मैंने भी झट अपने पजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे किया, और एक हाथ में लौड़ा और दूसरे में बॉल्स थाम लिए। डर कोई था ही नहीं, क्योंकि मम्मी-पापा जा चुके थे।

चित्रा ने ब्रा उतार कर अपने मम्मों को फ्री किया, और दोनों हाथ में एक-एक मम्मा पकड़ा और उनको ऊपर नीचे किया जैसे उनका वज़न तौल रही हो। चूचियों को ऊपर उठा कर ध्यान से देखा, और लम्बी जीभ निकाल कर दोनों पर जीभ फेरी। चूचियां तन गयीं तो उन्हें थोड़ा मसला। फिर कच्छी उतार कर खूंटी पर टाँग दी।

खूँटी उसी दरवाज़े पर थी जिससे मैं अंदर झाँक रहा था, तो चित्रा की झांटें मुझे बहुत पास से दिख गयीं। चूत की फांकें थोड़ी फूली हुई थीं और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। बाथरूम की तेज़ रोशनी में 18 साल की एक-दम नंगी सांवली चित्रा को मैं चार फुट की दूरी से आराम से देख रहा था, बिना पकड़े जाने के डर के।

चित्रा की चूत का एरिया काली मुलायम झांटों से ढका था। थोड़ा झुक कर चित्रा ने अपनी चूत को देखा, और तीन-चार बार झांटों को धीरे-धीरे सहला कर एक पाँव उठा कर उल्टी रखी बाल्टी पर टिका दिया। ऐसा करने से उसकी झांटें नीचे की तरफ से अलग हुई तो चूत की फांकें भी अलग हुई और चूत के अंदर का पिंक हिस्सा थोड़ा नज़र आने लगा। इधर मेरे हाथ में लौड़ा झटके मार रहा था और उधर बाथरूम के अंदर चित्रा अपनी चूत रगड़ रही थी एक हाथ से, और दूसरे हाथ से कभी एक चूची तो कभी दूसरी चूची मसली जा रही थी।

थोड़ी देर तक यह करने के बाद चित्रा ने चूची से हाथ हटा कर नल को बस इतना खोला कि उसमे से एक पतली-सी धार लगातार गिरती रहे। पटले को पानी की गिरती धार के नीचे खिसकाया और उस पर बैठ कर जांघें चौड़ी करके चूत को गिरते पानी के नीचे कर लिया। अब चूत पर लगातार नल से पानी की धार गिर रही थी, और चित्रा ने अपने दोनों हाथ पीछे ज़मीन पर टिका रखे थे। कभी-कभी अपने चूतड़ थोड़ा उठा कर पानी की धार को चूत के अलग-अलग हिस्सों पर गिराती तो उसका पेट अंदर जाता और लम्बी सांस उसे आ जाती। मैं दरवाज़े की दरार पर आँख लगा कर लौड़े को थामे मस्त खड़ा नंगी चित्रा और उसकी चूत पर पानी गिराने कि हरकत देखे जा रहा था।

थोड़ी देर बाद चित्रा ने दोनों हाथों से नल की टोंटी के पीछे के पाइप को पकड़ लिया। उसने अपना सर अपने एक कंधे पर टिका रखा था, और रह-रह कर उसका बदन कंपकंपाता और गहरी सांस आ जाती थी उसको। फिर एक हाथ नल से हटा कर एक-एक करके दोनों मम्मे सहलाये और फिर एक चूची को मसलते-मसलते गांड धीरे-धीरे आग-पीछे करके पानी की धार को चूत पर ऊपर से नीचे तक कई बार गिराया।

मेरी धड़कनें बेहद तेज़ होने के बावजूद, मुझे तो पता था कि घर में दूसरा कोई नहीं था। तो मैं आराम से देख सकता था, और जब तक पूरा मज़ा नहीं ले लेती तब तक चित्रा बाहर आने वाली नहीं है। मैंने भी चित्रा को देखते-देखते दोनों हाथ से लौड़े और बॉल्स को खूब खुल कर आराम से सहलाया।

एक बार सोचा कि धीरे से बाथरूम के दरवाज़े पर दस्तक दूँ, या उसे पुकारूँ, परन्तु ऐसा नहीं किया, यह सोच कर कि वह हड़बड़ा जाएगी और यह नज़ारा बंद हो जाएगा। और फिर कहीं मेरी शिकायत ही ना कर दे। थोड़ी दूर से ही सही, और उसके अपने हाथों से ही, पर पहली बार किसी एक दम नंगी लड़की को चूत में मज़े लेते हुए देख ही लिया मैंने आखिरकार।

एक और चीज़ देख कर और भी मस्त हो गया था, चित्रा की काफी घनी झांटें थीं, और बाकी बदन एक-दम चिकना। मम्मे ऐसे कि हाथ भर जाय और चूची चूसने लायक तनी हुई। वैसे ही झांकते हुए मुझे दो बार रूमाल में मुठ मारनी पड़ी, जब तक चित्रा ने एक ज़ोरदार थिरकन और लम्बी सांस के बाद अपनी जांघें कई बार खोली, और बंद कीं, आगे झुक कर चूत और गांड को साबुन से धोया, नल बंद किया, उठ कर चूत को तौलिया से पोंछा, और बाकी नहाना किये बिना ही सफ़ेद पैंटी और ब्रा पहन कर बाहर आने के लिए तैयार होने लगी। मैं भी दो बार तो लौड़े को झाड़ चुका था। पजामा ऊपर करके फिर मैं डाइनिंग टेबल पर आ कर अखबार पढ़ने लगा, जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

चित्रा ने नाहा कर आने पर मुझसे जल्दी नहाने को कहा और बोली कि फिर एक साथ नाश्ता करेंगे। मैंने कहा,”पहले नाश्ता ही कर लेते हैं क्योंकि मैं तो बाल्टी में भरे पानी से भी नहा लूँगा।” तो नाश्ता लाने के लिए जाते-जाते बोली,‌”नल की धार और ताज़े पानी में नहाने का तो मुकाबला ही नहीं, लेकिन तुम्हारी जैसी मर्ज़ी।”

१.५
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: चित्रा और मैं (जिस्मो की आग) - by neerathemall - 15-03-2024, 06:27 PM



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