14-03-2024, 01:20 PM
अब नीरज और निकिता को पटाने के लिए आगे क्या किया जाए इस सोच में मैं और राज थे तभी मेरी छोटी बहन के परिवार पर एक विपत्ति आ गयी.
मेरी छोटी बहन का नाम सारिका था. वह भी मेरी तरह बड़ी सुन्दर और जवानी से भरपूर थी. सारिका दिखने में मुझसे थोड़ी ज्यादा गोरी थी, बस कद से थोड़ी सी नाटी थी. उसकी शादी महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव के एक गरीब परिवार में रूपेश के साथ हुई थी. रूपेश देखने में गौरवर्णीय, बहुत हैंडसम और एकदम फुर्तीला था. उस की अपनी मेडिकल की दूकान थी जिससे उनका घर चलता था. एक दिन अचानक उसकी दुकान में आग लग गयी. बीमा नहीं होने के कारण बहुत भारी आर्थिक नुकसान भी हो गया और आमदनी का एकमात्र जरिया खत्म हुआ.
जैसे ही हमें पता चला, मैं फूट फूट कर रोने लगी. मुझे शांत करके राज तुरंत रूपेश के गांव पहुंचा और उससे बात की.
राज ने रूपेश से कहा, "रूपेश, मैं अँधेरी में कुछ दवाई की दूकान मालिकोंको अच्छे से जानता हूँ. मैं तुम्हारे लिए नौकरी की बात करके सारा मामला ठीक कर दूंगा. रूपेश और सारिका, तुम दोनों भी हमारे अँधेरी वाले घर पर हमारे साथ रह सकते हैं. फिर तुम्हे किसी भी प्रकार के खर्चे के बारे में सोचना नहीं पडेगा. कुछ पूँजी जमा होने के बाद हम लोग अपनी खुद की मेडिकल की दूकान खोलने के बारे में भी सोच सकते हैं."
उसकी बात सुनकर रूपेश ने राज को गले लगाया और रोने लग गया.
उसने भावुक होकर कहा, "राज भैया, मैं आप का एहसान पूरी जिंदगी नहीं भूलूंगा. समझ लो की आज से मैं आप का गुलाम हो गया."
राज ने कहा, "रूपेश, हिम्मत मत हारो और रोना बंद करो. जल्द से जल्द यहाँ का मामला निपटाकर आप दोनों मुंबई पहुँच जाओ."
जैसे ही सारिका ने यह बात सुनतेही उसके भी आँखों में आँसू छलक गए. राज ने दोनोंको बड़े प्यार से गले लगाया और हिम्मत बँधायी. बाद में राज ने मुझे बताया की इस समय तक उसके मन में अपनी सुन्दर और सुडौल साली सारिका के बारे में कोई सेक्सी विचार नहीं आये थे. वो तो बस उनकी सचमुच अपनेपन से मदद करना चाहता था.
राज अपनी बैंक में अच्छे पद पर था और उस पर काम की काफी जिम्मेदारी भी थी. इसलिए वो तुरंत अगले ही दिन मुंबई वापिस चला आया. एक हफ्ते के बाद रूपेश और सारिका अपने गावसे बस में बैठकर मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर आ गए. राज और मैं उन्हें लेने के लिए पहले से ही प्लेटफार्म पर खड़े थे. अपना सामान लेकर दोनों नीचे उतर गए.
हमें देखकर दोनोंके चेहरों पर अपार प्रसन्नता छा गयी. पहले रूपेश राज के गले लगा और सारिका मेरे. फिर राज ने आगे बढ़ कर सारिका को बाहों में भर लिया और रूपेश ने अपनी मजबूत बाहों में मुझे ले लिया. सारिका फिर से रोने लग गयी, फिर राज ने उसे कसकर बाहोंमे जकड़ा और उसके सर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए उसके आंसू पोंछ दिए.
वहाँ मैंने भी रूपेश को कहा "रूपेश, आज से हम चारों सबसे अच्छे दोस्त बनकर साथ साथ रहेंगे." उसका मुझे अपनी बाहों में लेना अच्छा लगा था.
अँधेरी जाने के लिए हम लोकल में चढ़ गए. उन दोनोंका मुंबई मायानगरी में यह पहला ही दिन था. साथ में काफी सामान भी था और वह लोग कहीं खो न जाए इसलिए राज और सारिका एक डब्बे में चढ़ गए और मैं और रूपेश दुसरे डब्बे में!
लोकल में हमेशा की तरह खचाखच भीड़ थी. बड़ी मुश्किल से सामान जमाकर राज और सारिका बैठ गए.
जैसे ही वो दोनों बैठे, खड़े हुए लोगों में से एक आदमी ने कहा, "भाई, भीड़ बहुत ज्यादा हैं. अपनी लुगाई को गोदी में बिठा दो ताकि मैं बची हुई जगह पर बैठ जाऊं."
मुंबई की लोकल में यह एकदम सामान्य बात थी. सारिका झटसे आकर राज की गोदी में बैठ गयी. उसने नीले रंग का कमीज और गुलाबी रंग की सलवार पहनी थी. भीड़ में आजु बाजू के लोग उसके जिस्म को धक्के न मार सके इसलिए राज ने अपने हाथोसे उसकी कमर को लपेट लिया। पहली बार वो सारिका के बदन से इतना नज़दीक था. उसकी भरी हुई गांड और मांसल जाँघे राज को उत्तेजित करने लगी.
फिर दोनों यहाँ वहां की बाते करने लगा, भीड़ ज्यादा होने के कारण सारिका राज के और पास आकर उसकी बाते सुनने और बाते करने लगी. उसके बदन की खुशबू, उसकी गर्म साँसे, उसकी गांड और मांसल जाँघे सबकुछ मिलकर राज को पागल करने लगी. राज ने बताया की उसका लंड भी तन गया था. अब इतनी भीड़ में इधर उधर हिलकर उसे एडजस्ट करना भी संभव नहीं था. शायद सारिका को भी उसकी चुभन महसूस हो रही थी मगर वह भी कुछ न बोली. लोकल रस्ते में दो बार रूक गयी और उससे राज की हालत और भी खराब हो गयी.
दुसरे डब्बे में मैं और रूपेश भी अजब हालात में थे. हम दोनों को तो बैठने की जगह मिली ही नहीं इसलिए एक कोने में मैं खड़ी रही और रूपेश अपने मजबूत शरीर से मुझे दुसरे मर्दोंके स्पर्श से रोकने के लिए बाहोंसे जकड लिया था. इस पूरे सफर में अनजाने में मुझे भी बड़ा मजा आया और मैंने भी रूपेश के खड़े लंड का मजा लिया। मैंने भी अपने कठोर वक्ष उसकी चौड़ी छाती पर दबा दिए थे. कुल मिलाकर राजकी और मेरी अंदर की वासना की आग उस लोकल में ही चालू हो गयी थी.
जैसे ही हम लोग घर पहुंचे सब लोग बारी बारी नहाये और फिर भोजन किया. थोड़ा आराम करने के बाद रूपेश की नौकरी के बारे में आगे क्या करना इसकी रूपरेखा बनायीं गयी. उन दोनोका सामान ठीक ठाक जगह लगाया और उनके सोने के लिए हॉल में बेड का इंतज़ाम किया.
मैं राजसे बहुत खुश थी की उसने मेरी बहन और बहनोई की मुश्किल घडी में उनकी सहायता का कदम उठाया था. उस रात को हमने एक दुसरे को प्यार करते समय लोकल वाली बात शेयर की. हम कभी भी कोई बात एक दुसरे से छुपाते नहीं थे.
"रानी, तुम्हे छूने के बाद तो किसी भी मर्द का लंड खड़ा होगा. बड़ी ख़ुशी की बात हैं की मुझे और रूपेश को एक दुसरे की पत्नियोंको स्पर्श करने का मौका मिल गया," राज बोल रहा था.
"हां मेरी जान, उसके सीने पर दबने के बाद मेरे निप्पल तक एकदम कठोर हो गए थे. सचमुच बड़ा मजा आया," मैं बोली.
कुछ दिनोंके बाद रूपेश को एक दवाई की दूकान में काम मिल गया. सुबह वह अपना लंच लेकर जाता और शाम को देरी से आता. जब कभी लंच तैयार न हो तो मैं ही अपनी लूना चलाकर उसे भोजन का डब्बा देकर आती थी. सारिका अब तक लूना चलाना सीखी नहीं थी. दोपहर के समय दूकान पर ज़्यादा भीड़ नहीं होती थी, इसलिए मैं वही रूककर उससे बाते करके फिर खाली डब्बा लेकर आ जाती थी. अब परिवार में दो सदस्य और होने के कारण हमारा नीरज और निकिता के साथ मिलना जुलना कम हो गया, मगर मित्रता में कोई अंतर नहीं आया था. बस मेरी और राज की प्राथमिकताएं कुछ दिनों के लिए बदल गयी थी.
रूपेशकी दूकान काफी दूरीपर थी, देर रात तक रुकना पड़ता था और वेतन भी कुछ ख़ास नहीं था, इसलिए दोनों पति पत्नी काफी परेशान थे. वह सब देखकर मैंने फिर राज से उनकी कुछ और सहाय्यता करने के लिए कहना शुरू किया. अब शायद राज को भी मन ही मन लगा की रूपेश और सारिका परेशान रहेंगे तो उसका सारिका को चोदने का सपना शायद ही पूरा होगा।
कुछ दिन बाद राज ने उसके बैंक मैनेजर से बात की और उसे ५००० रुपये की घूस देकर अपने नामपर ४ लाख रुपयोंका लोन बहुत काम ब्याजदर पर मंजूर करा लिया. दो हफ्ते पहले से ही रूपेश घर के आसपास कोई मेडिकल दूकान बेचनेमें हैं क्या इसकी तलाश कर रहा था. लोन मिलने के तीसरे दिन ही साडेतीन लाख में एक दुकान मिल गयी और पचास हज़ार की दवाईयोंका स्टॉक ख़रीदा गया. दुकान का नाम राज ने सुनीता मेडिकल स्टोर्स रखकर मुझे और भी ज्यादा खुश कर दिया. ओपनिंग सेरेमनी सादगीसे किया और अब दूकान भी अच्छे से चलने लगी.
दोपहर के समय ज्यादा ग्राहक न होने कारण कुछ घंटोंके लिए रूपेश घर पर आता तब हम दोनों बहनोंमे से कोई भी दूकान संभाल लेती. सारिका की सुंदरता और सेक्सी ब्लाउज से मम्मोंकी झलक देखने से आया हुआ ग्राहक दो - चार चीज़े और लेके जाता था. इसके कारण सारिका ज्यादा दूकान पर रहती थी और मुझे रूपेश के साथ अच्छा समय बिताने को मिलता था. रूपेश भी मेरी की सुंदरता और सेक्स अपील से घायल हो रहा था. मौका पाकर मैं भी अपने जवानी के जलवे दिखाकर उसे एक्साइट करती रहती थी. नीरज जैसा बांका जवान हाथ न लगा तो अब मैं रूपेश पर डोरे डालने लगी।
रूपेश और सारिका अब मुझे और राज को इतनी ज्यादा इज़्ज़त और प्यार करने लगे की उनके लिए हम दोनों जैसे भगवान् का रूप हो गये. दोनों भी हमारी हर बात मान जाते थे.
राज कभी भी किसी काम से घरके बाहर निकलने की बात करता की तुरंत सारिका उसकी मोटरसाइकिल पर उसके पीछे बैठ जाती थी खरीदारी में सहायता के लिए. अब राज को भी उसके मम्मे अपनी पीठपर दबते हुए अच्छा लगता था. जानबूझकर वो खचाखच ब्रेक मारकर उसे पीछे से लिपटने पर मजबूर कर देता था. सारिका को भी अब इसमें मज़ा आने लगा था. रूपेश के सामने भी सारिका अक्सर राज को गालों पर किस कर देती थी और मैं भी रूपेश को बाहोंमे भरने का एक भी मौका गंवाती नहीं थी. सारिका को भी इसका बुरा नहीं लगता था.
आने वाले रविवार को अब हम दोनों रूपेश और सारिका को लेकर बोरीबन्दर स्टेशन के पास वाले फैशन स्ट्रीट गए और सारिका के लिए कुछ सेक्सी ड्रेस लेकर आ गए. अब मैंने सारिका को ऐसे वेस्टर्न कपडे पहनकर अपनी पति को लुभाने की अदा सिखाई. अब तो मैं और सारिका दोनों भी बहने शार्ट स्कर्ट और लूज़ टॉप घर में पहनने लग गयी. अब घर में राज और सारिका / और मेरा और रूपेश का हंसी मजाक काफी सेक्सी होने लगा.
पहले तो रूपेश को मेरे बारे में सेक्सी बाते बोलने में शर्म आयी मगर राज ने और खुद मैंने ही उसे बिनधास्त रहने के लिए कहा तो वो भी खुले आम मेरे सेक्सी के अंगोंकी तारीफ़ करने लगा.
"सुनीता दीदी, आप इस मिनी स्कर्ट में बिलकुल कॉलेज क्वीन लग रही हो. ख़ास कर आपकी मुलायम जाँघे बहुत सुन्दर लग रही है."
"ओह दीदी, आपका आज का टॉप तो बड़ा ही ख़ास हैं. आप ऐसे लो नेक ड्रेस में किसी सेक्सी फिल्म की हिरोइन से भी ज्यादा हॉट लग रही हो. क्या बढ़िया चूचियां हैं आप की."
"सुनीता दीदी, आज आप इस स्कर्ट के साथ वो लाल रंग का टॉप पहनोगी तो और भी ज्यादा प्यारी लगोगी. उस टॉप का गला कुछ ज्यादा ही खुला हैं, जिससे आप का क्लीवेज देखन मुझे बड़ा अच्छा लगता हैं."
"दीदी, क्या बढ़िया मिनी स्कर्ट हैं, मुझे तो आपकी गुलाबी पैंटी भी नज़र आ रही हैं. बहुत ही परफेक्ट आकार हैं आप के नितम्बोंका!"
इतना हैंडसम जवान मेरी तारीफ करे और जब मौका मिले तब यहाँ वहाँ हाथ लगाए इससे मैं भी अपने आप को ज्यादा सेक्सी फील करने लगी थी.
छुट्टी के दिन हम चारों साथ में बैठकर ऐसे ही गपशप कर रहे थे की हमारी स्पेशल फोटोशूट वाली एक एल्बम सारिका के हाथ लगी. जैसे ही वो खोलकर देखने लगी, मैंने सारिका के हाथ से खींच कर एल्बम ले ली.
रूपेशने हँसते हुए पूछा, "अरे जरा हमें भी दिखाओ, क्या ख़ास हैं इसमें!"
बेशर्म होकर राज ने कहा, "मेरी और सुनीता की हॉट पोजेस की फोटो हैं."
अब मैं झूठ मूठ के गुस्से से राज को कोसने लगी, "तुम्हे कोई भी शर्म नहीं है कुछ भी बता देते हो."
3-/1/2
मेरी छोटी बहन का नाम सारिका था. वह भी मेरी तरह बड़ी सुन्दर और जवानी से भरपूर थी. सारिका दिखने में मुझसे थोड़ी ज्यादा गोरी थी, बस कद से थोड़ी सी नाटी थी. उसकी शादी महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव के एक गरीब परिवार में रूपेश के साथ हुई थी. रूपेश देखने में गौरवर्णीय, बहुत हैंडसम और एकदम फुर्तीला था. उस की अपनी मेडिकल की दूकान थी जिससे उनका घर चलता था. एक दिन अचानक उसकी दुकान में आग लग गयी. बीमा नहीं होने के कारण बहुत भारी आर्थिक नुकसान भी हो गया और आमदनी का एकमात्र जरिया खत्म हुआ.
जैसे ही हमें पता चला, मैं फूट फूट कर रोने लगी. मुझे शांत करके राज तुरंत रूपेश के गांव पहुंचा और उससे बात की.
राज ने रूपेश से कहा, "रूपेश, मैं अँधेरी में कुछ दवाई की दूकान मालिकोंको अच्छे से जानता हूँ. मैं तुम्हारे लिए नौकरी की बात करके सारा मामला ठीक कर दूंगा. रूपेश और सारिका, तुम दोनों भी हमारे अँधेरी वाले घर पर हमारे साथ रह सकते हैं. फिर तुम्हे किसी भी प्रकार के खर्चे के बारे में सोचना नहीं पडेगा. कुछ पूँजी जमा होने के बाद हम लोग अपनी खुद की मेडिकल की दूकान खोलने के बारे में भी सोच सकते हैं."
उसकी बात सुनकर रूपेश ने राज को गले लगाया और रोने लग गया.
उसने भावुक होकर कहा, "राज भैया, मैं आप का एहसान पूरी जिंदगी नहीं भूलूंगा. समझ लो की आज से मैं आप का गुलाम हो गया."
राज ने कहा, "रूपेश, हिम्मत मत हारो और रोना बंद करो. जल्द से जल्द यहाँ का मामला निपटाकर आप दोनों मुंबई पहुँच जाओ."
जैसे ही सारिका ने यह बात सुनतेही उसके भी आँखों में आँसू छलक गए. राज ने दोनोंको बड़े प्यार से गले लगाया और हिम्मत बँधायी. बाद में राज ने मुझे बताया की इस समय तक उसके मन में अपनी सुन्दर और सुडौल साली सारिका के बारे में कोई सेक्सी विचार नहीं आये थे. वो तो बस उनकी सचमुच अपनेपन से मदद करना चाहता था.
राज अपनी बैंक में अच्छे पद पर था और उस पर काम की काफी जिम्मेदारी भी थी. इसलिए वो तुरंत अगले ही दिन मुंबई वापिस चला आया. एक हफ्ते के बाद रूपेश और सारिका अपने गावसे बस में बैठकर मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर आ गए. राज और मैं उन्हें लेने के लिए पहले से ही प्लेटफार्म पर खड़े थे. अपना सामान लेकर दोनों नीचे उतर गए.
हमें देखकर दोनोंके चेहरों पर अपार प्रसन्नता छा गयी. पहले रूपेश राज के गले लगा और सारिका मेरे. फिर राज ने आगे बढ़ कर सारिका को बाहों में भर लिया और रूपेश ने अपनी मजबूत बाहों में मुझे ले लिया. सारिका फिर से रोने लग गयी, फिर राज ने उसे कसकर बाहोंमे जकड़ा और उसके सर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए उसके आंसू पोंछ दिए.
वहाँ मैंने भी रूपेश को कहा "रूपेश, आज से हम चारों सबसे अच्छे दोस्त बनकर साथ साथ रहेंगे." उसका मुझे अपनी बाहों में लेना अच्छा लगा था.
अँधेरी जाने के लिए हम लोकल में चढ़ गए. उन दोनोंका मुंबई मायानगरी में यह पहला ही दिन था. साथ में काफी सामान भी था और वह लोग कहीं खो न जाए इसलिए राज और सारिका एक डब्बे में चढ़ गए और मैं और रूपेश दुसरे डब्बे में!
लोकल में हमेशा की तरह खचाखच भीड़ थी. बड़ी मुश्किल से सामान जमाकर राज और सारिका बैठ गए.
जैसे ही वो दोनों बैठे, खड़े हुए लोगों में से एक आदमी ने कहा, "भाई, भीड़ बहुत ज्यादा हैं. अपनी लुगाई को गोदी में बिठा दो ताकि मैं बची हुई जगह पर बैठ जाऊं."
मुंबई की लोकल में यह एकदम सामान्य बात थी. सारिका झटसे आकर राज की गोदी में बैठ गयी. उसने नीले रंग का कमीज और गुलाबी रंग की सलवार पहनी थी. भीड़ में आजु बाजू के लोग उसके जिस्म को धक्के न मार सके इसलिए राज ने अपने हाथोसे उसकी कमर को लपेट लिया। पहली बार वो सारिका के बदन से इतना नज़दीक था. उसकी भरी हुई गांड और मांसल जाँघे राज को उत्तेजित करने लगी.
फिर दोनों यहाँ वहां की बाते करने लगा, भीड़ ज्यादा होने के कारण सारिका राज के और पास आकर उसकी बाते सुनने और बाते करने लगी. उसके बदन की खुशबू, उसकी गर्म साँसे, उसकी गांड और मांसल जाँघे सबकुछ मिलकर राज को पागल करने लगी. राज ने बताया की उसका लंड भी तन गया था. अब इतनी भीड़ में इधर उधर हिलकर उसे एडजस्ट करना भी संभव नहीं था. शायद सारिका को भी उसकी चुभन महसूस हो रही थी मगर वह भी कुछ न बोली. लोकल रस्ते में दो बार रूक गयी और उससे राज की हालत और भी खराब हो गयी.
दुसरे डब्बे में मैं और रूपेश भी अजब हालात में थे. हम दोनों को तो बैठने की जगह मिली ही नहीं इसलिए एक कोने में मैं खड़ी रही और रूपेश अपने मजबूत शरीर से मुझे दुसरे मर्दोंके स्पर्श से रोकने के लिए बाहोंसे जकड लिया था. इस पूरे सफर में अनजाने में मुझे भी बड़ा मजा आया और मैंने भी रूपेश के खड़े लंड का मजा लिया। मैंने भी अपने कठोर वक्ष उसकी चौड़ी छाती पर दबा दिए थे. कुल मिलाकर राजकी और मेरी अंदर की वासना की आग उस लोकल में ही चालू हो गयी थी.
जैसे ही हम लोग घर पहुंचे सब लोग बारी बारी नहाये और फिर भोजन किया. थोड़ा आराम करने के बाद रूपेश की नौकरी के बारे में आगे क्या करना इसकी रूपरेखा बनायीं गयी. उन दोनोका सामान ठीक ठाक जगह लगाया और उनके सोने के लिए हॉल में बेड का इंतज़ाम किया.
मैं राजसे बहुत खुश थी की उसने मेरी बहन और बहनोई की मुश्किल घडी में उनकी सहायता का कदम उठाया था. उस रात को हमने एक दुसरे को प्यार करते समय लोकल वाली बात शेयर की. हम कभी भी कोई बात एक दुसरे से छुपाते नहीं थे.
"रानी, तुम्हे छूने के बाद तो किसी भी मर्द का लंड खड़ा होगा. बड़ी ख़ुशी की बात हैं की मुझे और रूपेश को एक दुसरे की पत्नियोंको स्पर्श करने का मौका मिल गया," राज बोल रहा था.
"हां मेरी जान, उसके सीने पर दबने के बाद मेरे निप्पल तक एकदम कठोर हो गए थे. सचमुच बड़ा मजा आया," मैं बोली.
कुछ दिनोंके बाद रूपेश को एक दवाई की दूकान में काम मिल गया. सुबह वह अपना लंच लेकर जाता और शाम को देरी से आता. जब कभी लंच तैयार न हो तो मैं ही अपनी लूना चलाकर उसे भोजन का डब्बा देकर आती थी. सारिका अब तक लूना चलाना सीखी नहीं थी. दोपहर के समय दूकान पर ज़्यादा भीड़ नहीं होती थी, इसलिए मैं वही रूककर उससे बाते करके फिर खाली डब्बा लेकर आ जाती थी. अब परिवार में दो सदस्य और होने के कारण हमारा नीरज और निकिता के साथ मिलना जुलना कम हो गया, मगर मित्रता में कोई अंतर नहीं आया था. बस मेरी और राज की प्राथमिकताएं कुछ दिनों के लिए बदल गयी थी.
रूपेशकी दूकान काफी दूरीपर थी, देर रात तक रुकना पड़ता था और वेतन भी कुछ ख़ास नहीं था, इसलिए दोनों पति पत्नी काफी परेशान थे. वह सब देखकर मैंने फिर राज से उनकी कुछ और सहाय्यता करने के लिए कहना शुरू किया. अब शायद राज को भी मन ही मन लगा की रूपेश और सारिका परेशान रहेंगे तो उसका सारिका को चोदने का सपना शायद ही पूरा होगा।
कुछ दिन बाद राज ने उसके बैंक मैनेजर से बात की और उसे ५००० रुपये की घूस देकर अपने नामपर ४ लाख रुपयोंका लोन बहुत काम ब्याजदर पर मंजूर करा लिया. दो हफ्ते पहले से ही रूपेश घर के आसपास कोई मेडिकल दूकान बेचनेमें हैं क्या इसकी तलाश कर रहा था. लोन मिलने के तीसरे दिन ही साडेतीन लाख में एक दुकान मिल गयी और पचास हज़ार की दवाईयोंका स्टॉक ख़रीदा गया. दुकान का नाम राज ने सुनीता मेडिकल स्टोर्स रखकर मुझे और भी ज्यादा खुश कर दिया. ओपनिंग सेरेमनी सादगीसे किया और अब दूकान भी अच्छे से चलने लगी.
दोपहर के समय ज्यादा ग्राहक न होने कारण कुछ घंटोंके लिए रूपेश घर पर आता तब हम दोनों बहनोंमे से कोई भी दूकान संभाल लेती. सारिका की सुंदरता और सेक्सी ब्लाउज से मम्मोंकी झलक देखने से आया हुआ ग्राहक दो - चार चीज़े और लेके जाता था. इसके कारण सारिका ज्यादा दूकान पर रहती थी और मुझे रूपेश के साथ अच्छा समय बिताने को मिलता था. रूपेश भी मेरी की सुंदरता और सेक्स अपील से घायल हो रहा था. मौका पाकर मैं भी अपने जवानी के जलवे दिखाकर उसे एक्साइट करती रहती थी. नीरज जैसा बांका जवान हाथ न लगा तो अब मैं रूपेश पर डोरे डालने लगी।
रूपेश और सारिका अब मुझे और राज को इतनी ज्यादा इज़्ज़त और प्यार करने लगे की उनके लिए हम दोनों जैसे भगवान् का रूप हो गये. दोनों भी हमारी हर बात मान जाते थे.
राज कभी भी किसी काम से घरके बाहर निकलने की बात करता की तुरंत सारिका उसकी मोटरसाइकिल पर उसके पीछे बैठ जाती थी खरीदारी में सहायता के लिए. अब राज को भी उसके मम्मे अपनी पीठपर दबते हुए अच्छा लगता था. जानबूझकर वो खचाखच ब्रेक मारकर उसे पीछे से लिपटने पर मजबूर कर देता था. सारिका को भी अब इसमें मज़ा आने लगा था. रूपेश के सामने भी सारिका अक्सर राज को गालों पर किस कर देती थी और मैं भी रूपेश को बाहोंमे भरने का एक भी मौका गंवाती नहीं थी. सारिका को भी इसका बुरा नहीं लगता था.
आने वाले रविवार को अब हम दोनों रूपेश और सारिका को लेकर बोरीबन्दर स्टेशन के पास वाले फैशन स्ट्रीट गए और सारिका के लिए कुछ सेक्सी ड्रेस लेकर आ गए. अब मैंने सारिका को ऐसे वेस्टर्न कपडे पहनकर अपनी पति को लुभाने की अदा सिखाई. अब तो मैं और सारिका दोनों भी बहने शार्ट स्कर्ट और लूज़ टॉप घर में पहनने लग गयी. अब घर में राज और सारिका / और मेरा और रूपेश का हंसी मजाक काफी सेक्सी होने लगा.
पहले तो रूपेश को मेरे बारे में सेक्सी बाते बोलने में शर्म आयी मगर राज ने और खुद मैंने ही उसे बिनधास्त रहने के लिए कहा तो वो भी खुले आम मेरे सेक्सी के अंगोंकी तारीफ़ करने लगा.
"सुनीता दीदी, आप इस मिनी स्कर्ट में बिलकुल कॉलेज क्वीन लग रही हो. ख़ास कर आपकी मुलायम जाँघे बहुत सुन्दर लग रही है."
"ओह दीदी, आपका आज का टॉप तो बड़ा ही ख़ास हैं. आप ऐसे लो नेक ड्रेस में किसी सेक्सी फिल्म की हिरोइन से भी ज्यादा हॉट लग रही हो. क्या बढ़िया चूचियां हैं आप की."
"सुनीता दीदी, आज आप इस स्कर्ट के साथ वो लाल रंग का टॉप पहनोगी तो और भी ज्यादा प्यारी लगोगी. उस टॉप का गला कुछ ज्यादा ही खुला हैं, जिससे आप का क्लीवेज देखन मुझे बड़ा अच्छा लगता हैं."
"दीदी, क्या बढ़िया मिनी स्कर्ट हैं, मुझे तो आपकी गुलाबी पैंटी भी नज़र आ रही हैं. बहुत ही परफेक्ट आकार हैं आप के नितम्बोंका!"
इतना हैंडसम जवान मेरी तारीफ करे और जब मौका मिले तब यहाँ वहाँ हाथ लगाए इससे मैं भी अपने आप को ज्यादा सेक्सी फील करने लगी थी.
छुट्टी के दिन हम चारों साथ में बैठकर ऐसे ही गपशप कर रहे थे की हमारी स्पेशल फोटोशूट वाली एक एल्बम सारिका के हाथ लगी. जैसे ही वो खोलकर देखने लगी, मैंने सारिका के हाथ से खींच कर एल्बम ले ली.
रूपेशने हँसते हुए पूछा, "अरे जरा हमें भी दिखाओ, क्या ख़ास हैं इसमें!"
बेशर्म होकर राज ने कहा, "मेरी और सुनीता की हॉट पोजेस की फोटो हैं."
अब मैं झूठ मूठ के गुस्से से राज को कोसने लगी, "तुम्हे कोई भी शर्म नहीं है कुछ भी बता देते हो."
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.