14-03-2024, 12:07 PM
"आआआआ नहीं नहीं, यह गलत है।" मेरी माँ कराहते हुए बोली।
"कुछ गलत नहीं है मैडमजी। जिस बात से आपको खुशी मिलती है वह करने में कुछ गलत नहीं है।" घुसा मेरी मां को अपनी बातों के जाल में उलझा कर अपनी हरकतें जारी रखे हुए था। उसे पता था कि चिड़िया जाल में फंस चुकी है।
“देखो रोज आ जाएगी तो गजब हो जाएगा। वह कभी भी वापस आ सकती है।" मेरी मां ने कहा। इसका मतलब यह था कि मेरी मां ने स्वीकार कर लिया था कि जो कुछ हो रहा था उससे उसे मजा आ रहा है लेकिन उसे बस इस बात की चिंता थी कि कहीं मैं न पहुंच जाऊं और यह सब देख न लूं। उसे क्या पता था कि यह सब मेरी खुली आंखों के सामने हो रहा था।
"उसकी चिंता आप मत कीजिए मैडम। वह तो बोली थी ना कि उसको आने में देर होगी? वैसे भी हम यह सब उतनी देर तक थोड़ी न करने वाले हैं। बस आपको थोड़ा अच्छा महसूस करा के खत्म करेंगे।" उसने मेरी मां को आश्वस्त करते हुए कहा।
अब वह कमीना नौकर अपने हाथ माँ के पेट पर लपेट लिया और उनकी गर्दन को चूमते हुए उनका पेट मसलता रहा। उसने उसे घुमाया और उसकी कमर पकड़कर उसे अपने पास खींचते हुए उसे चूमना शुरू कर दिया।
"आआआआहहहहह उफ़ उफ़ यह यह....." उत्तेजना के मारे मेरी मां अपनी बात पूरी भी नहीं कर पा रही थी।
अब उस हरामी ने मेरी मां की उठी हुई साड़ी के अंदर नीचे से हाथ घुसा कर उनकी मांसल गांड़ पर सरकाया और उन्हें दबाने लगा। वह उसे हर जगह चूम रहा था और उसे फिर से घुमाया, और एक बार फिर उसके ब्लाउज में अपना हाथ डाल दिया। इस बार वह उसके स्तनों को बहुत जोर से दबा रहा था, साथ ही वह माँ को जोर जोर से भींच रहा था।
"ओह पागल, तुम तो पागल हो और साथ ही मुझे भी पागल किए दे रहे हो। आह" मेरी मां सिसकारियां भरने लगी थी। अब माहौल काफी गरम हो चुका था जिसकी गरमी मैं भी अनुभव करने लग गयी थी। इधर मेरी भी चूत गीली होने लगी थी।
फिर वह उसके सामने आया, अपने घुटनों पर बैठ गया, अपने हाथ उसके चारों ओर लपेटे और उसकी कमर को चूमने लगा, और अपनी जीभ से उसकी नाभि से खेलने लगा। मेरी माँ हल्के हल्के कराह रही थी। अब उसका हौसला बढ़ चुका था। उसने मेरी मां के बालों में अपनी उंगलियाँ फिराईं और अपनी आँखें बंद कर लीं।
चूंकि नौकर ने उसकी साड़ी को काफी ऊपर तक उठा दिया था, मेरी मां की मांसल, गोरी, दूधिया जाँघों का जलवा एक अनखी छटा बिखेर रहा था। बस थोड़ी सी और अगर साड़ी उठ जाती तो मां का खजाना, पैंटी में ही सही, लेकिन जरूर दिखाई दे जाता। वह उसके पैरों को चूमने लगा और उसकी जाँघों तक बढ़ रहा था। उसके हाथ उसकी साड़ी के नीचे से उसकी गांड पर थे और वह उन्हें दबाता और मसलता रहा।
जब उसका हाथ चूत तक पहुंचने वाला था, तो मेरी माँ ने उसे रोक दिया और कहा, "नहीं नहीं, अभी नहीं।"
लेकिन घुसा तो अब बहरा हो चुका था। वह उठा और उसके ब्लाउज का हुक खोल दिया। माँ के बड़े बड़े स्तन ब्लाऊज की कैद से छलक कर बाहर निकल आए। ओह माई गॉड! मेरी मां ब्रा भी नहीं पहनी थी। वह जंगली मेरी मां की बड़ी बड़ी दूधिया चूचियों को कुछ पलों तक तो आंखें फाड़कर देखता रह गया। फिर अचानक जैसे उसे होश आया और मां की चूचियों पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा। वह चूचियों को दबा दबा कर महसूस करना शुरू कर दिया। उतने से उसका मन कहां भरता। वह तो सीधे मुंह लगा कर उन्हें चूसने लगा। वह उन्हें बारी बारी से चाट रहा था और अपने गंदे हाथों से खेल रहा था। माँ और भी तेजी से कराह रही थी और उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं।
"कुछ गलत नहीं है मैडमजी। जिस बात से आपको खुशी मिलती है वह करने में कुछ गलत नहीं है।" घुसा मेरी मां को अपनी बातों के जाल में उलझा कर अपनी हरकतें जारी रखे हुए था। उसे पता था कि चिड़िया जाल में फंस चुकी है।
“देखो रोज आ जाएगी तो गजब हो जाएगा। वह कभी भी वापस आ सकती है।" मेरी मां ने कहा। इसका मतलब यह था कि मेरी मां ने स्वीकार कर लिया था कि जो कुछ हो रहा था उससे उसे मजा आ रहा है लेकिन उसे बस इस बात की चिंता थी कि कहीं मैं न पहुंच जाऊं और यह सब देख न लूं। उसे क्या पता था कि यह सब मेरी खुली आंखों के सामने हो रहा था।
"उसकी चिंता आप मत कीजिए मैडम। वह तो बोली थी ना कि उसको आने में देर होगी? वैसे भी हम यह सब उतनी देर तक थोड़ी न करने वाले हैं। बस आपको थोड़ा अच्छा महसूस करा के खत्म करेंगे।" उसने मेरी मां को आश्वस्त करते हुए कहा।
अब वह कमीना नौकर अपने हाथ माँ के पेट पर लपेट लिया और उनकी गर्दन को चूमते हुए उनका पेट मसलता रहा। उसने उसे घुमाया और उसकी कमर पकड़कर उसे अपने पास खींचते हुए उसे चूमना शुरू कर दिया।
"आआआआहहहहह उफ़ उफ़ यह यह....." उत्तेजना के मारे मेरी मां अपनी बात पूरी भी नहीं कर पा रही थी।
अब उस हरामी ने मेरी मां की उठी हुई साड़ी के अंदर नीचे से हाथ घुसा कर उनकी मांसल गांड़ पर सरकाया और उन्हें दबाने लगा। वह उसे हर जगह चूम रहा था और उसे फिर से घुमाया, और एक बार फिर उसके ब्लाउज में अपना हाथ डाल दिया। इस बार वह उसके स्तनों को बहुत जोर से दबा रहा था, साथ ही वह माँ को जोर जोर से भींच रहा था।
"ओह पागल, तुम तो पागल हो और साथ ही मुझे भी पागल किए दे रहे हो। आह" मेरी मां सिसकारियां भरने लगी थी। अब माहौल काफी गरम हो चुका था जिसकी गरमी मैं भी अनुभव करने लग गयी थी। इधर मेरी भी चूत गीली होने लगी थी।
फिर वह उसके सामने आया, अपने घुटनों पर बैठ गया, अपने हाथ उसके चारों ओर लपेटे और उसकी कमर को चूमने लगा, और अपनी जीभ से उसकी नाभि से खेलने लगा। मेरी माँ हल्के हल्के कराह रही थी। अब उसका हौसला बढ़ चुका था। उसने मेरी मां के बालों में अपनी उंगलियाँ फिराईं और अपनी आँखें बंद कर लीं।
चूंकि नौकर ने उसकी साड़ी को काफी ऊपर तक उठा दिया था, मेरी मां की मांसल, गोरी, दूधिया जाँघों का जलवा एक अनखी छटा बिखेर रहा था। बस थोड़ी सी और अगर साड़ी उठ जाती तो मां का खजाना, पैंटी में ही सही, लेकिन जरूर दिखाई दे जाता। वह उसके पैरों को चूमने लगा और उसकी जाँघों तक बढ़ रहा था। उसके हाथ उसकी साड़ी के नीचे से उसकी गांड पर थे और वह उन्हें दबाता और मसलता रहा।
जब उसका हाथ चूत तक पहुंचने वाला था, तो मेरी माँ ने उसे रोक दिया और कहा, "नहीं नहीं, अभी नहीं।"
लेकिन घुसा तो अब बहरा हो चुका था। वह उठा और उसके ब्लाउज का हुक खोल दिया। माँ के बड़े बड़े स्तन ब्लाऊज की कैद से छलक कर बाहर निकल आए। ओह माई गॉड! मेरी मां ब्रा भी नहीं पहनी थी। वह जंगली मेरी मां की बड़ी बड़ी दूधिया चूचियों को कुछ पलों तक तो आंखें फाड़कर देखता रह गया। फिर अचानक जैसे उसे होश आया और मां की चूचियों पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा। वह चूचियों को दबा दबा कर महसूस करना शुरू कर दिया। उतने से उसका मन कहां भरता। वह तो सीधे मुंह लगा कर उन्हें चूसने लगा। वह उन्हें बारी बारी से चाट रहा था और अपने गंदे हाथों से खेल रहा था। माँ और भी तेजी से कराह रही थी और उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं।