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Adultery चित्रा और मैं (जिस्मो की आग)
#3
मम्मी सिर्फ ब्लाउज और ढीले पेटीकोट में ही सोती थी, और जब पापा टूर पर जाते तो मैं देर तक पढ़ाई के बहाने जगा रहता क्योंकि मम्मी गहरी नींद मैं टांगें मोड़ कर सोती थी, और अक्सर टांगें चौड़ी होने से उनकी झांटें साफ़ दिखती थीं।


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ऐसे में मैं कच्छे का नाडा खोल कर आराम से दो या कभी तीन बार झांटें देखते हुए मुठ मार के सोता, तो मुझे खूब गहरी नींद आती थी। एक-आध बार तो मैंने उनको नींद में अपनी चूत खुजाते हुआ भी देखा था! मेरे तो तब रोंगटे खड़े हो जाते थे, लौड़े के साथ-साथ।

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खैर, अब अपनी उस असली वारदात पर आता हूँ जिसकी वजह से मेरे सारे सेक्सी सपने पूरे हुए और जिसकी वजह से मैं यह सब बता रहा हूँ। एक दिन पापा ने घर आके बताया कि मेरी कजिन चित्रा को हमारे पास आ कर रहना होगा, क्योंकि उन्हें बारहवीं कक्षा का बोर्ड एग्जाम उसी शहर से देना था।

चित्रा तीन बहनों में दूसरी थी और काफी सांवली चपटे से चेहरे वाली स्कर्ट-ब्लाउज में रहने वाली लड़की थी, जो 18 साल कि हो चुकी थी। और बस किसी तरह से पास होने भर के नंबर लाने की फिराक में थी। मैं यह सुन कर मन ही मन काफी खुश हुआ, कि चलो एक लड़की जिसका मन पढ़ाई में कम लगता था, और मुझसे कुछ महीने ही बड़ी थी, हमारे साथ रहेगी कुछ समय तक।

और असल में ज़्यादा खुशी इसलिए हुई कि चित्रा का अगर पढ़ाई में कम मन लगता था, तो ज़रूर कुछ दूसरी खुराफात करती और सोचती तो होगी ही। और अगर पट गयी तो दोनों खूब मज़े करेंगे एक दूसरे के साथ।[Image: 38413617_001_1109.jpg]

चित्रा के आने के बाद हम लोगों के रूटीन में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया था, सिवाय इसके की मुझे नहा कर थोड़ा और जल्दी निकल आना पड़ता था। क्यूंकि मैं कॉलेज जाता था, और चित्रा की तो प्रेप-लीव चल रही थी। पर उसे नल में से पानी जाने से पहले ही बाथरूम जाना होता था।

मैंने पूछा क्यों, तो बोली कि बाल्टी में भरे हुए पानी से नहाने में वो मज़ा नहीं है जो कि नल से गिरते पानी की धार से नहाने में आता है। बात आयी-गयी हो गई। फिर मैनें एक-दो दिन बाद नोटिस किया, कि चित्रा की सभी स्कर्ट में दो पॉकेट ज़रूर थी, और हर समय उसका एक या दूसरा हाथ जेब में ही होता है।

ख़ैर, यह भी आई-गयी सी बात होने से पहले मैंने एक और काफी इंटरेस्टिंग चीज़ नोटिस की। रात को हम चारों एक लाइन से एक ही जगह कवर्ड और ढके हुए वरांडे में सोते थे, पहले पापा, फिर मम्मी, चित्रा, और मैं। कई रात देखा कि चाहे कितनी भी गर्मी हो, चित्रा को एक चादर तो ओढ़नी ही होती थी, और अक्सर (लगभग रोज़) उसका एक हाथ अधखुली सी टांगों के बीच होता था!

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सोचा, यह भी शायद मेरी तरह अपनी चूत में मुठ मारती होगी, लेकिन मेरी परेशानी यह थी कि लड़की आखिर करती क्या है अपनी चूत में मज़े लेने के लिए। जैसे मैं लौड़े का सुपाड़ा जल्दी-जल्दी खोलता-बंद करता हूँ?

धीरे-धीरे चूत पर से चित्रा की चादर भी ऊपर नीचे होती दिखती थी, और वह मेरी तरफ थोड़ा मुड़ के यह काम करती थी, जिससे दूसरी तरफ लेटी मेरी मम्मी को उसकी ये हरकत ना दिखाई दे। मतलब साफ़ था, चित्रा भी दिन में कम से कम एक बार तो अपनी चूत अच्छी तरह रगड़ती ही थी, और सोने से पहले तो शायद रोज़।[Image: 68546823_024_fae8.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: चित्रा और मैं (जिस्मो की आग) - by neerathemall - 13-03-2024, 10:41 AM



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