13-03-2024, 10:37 AM
फिर तब मैंने कहा कि ठीक है और पापा ने गाड़ी साईड में रोककर मुझे अपने आगे बैठाया और मेरी बगल में से अपने दोनों हाथ डालकर हैंडल पकड़ा और धीरे-धीरे चलाने लगे। लेकिन अब गाड़ी चलाने में किसका ध्यान था? अब मेरा ध्यान तो पापा के पजामे में लटके उनके लंड पर था। तो तभी गाड़ी जैसे ही खड्डे में गयी, तो मैंने हिलने का बहाना करके उनका लंड ठीक मेरी गांड के नीचे दबा लिया। अब पापा कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे। अब में अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी थी। अब गर्मी पाकर उनका लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा था, जिससे मुझे भी मस्ती आने लगी थी। अब पापा को भी मज़ा आ रहा था और फिर इस तरह मस्ती करते हुए में कॉलेज पहुँच गयी। फिर पापा को जाते वक़्त मैंने एक बार फिर से किस किया। अब पापा शायद मुझे लेकर कुछ परेशान हो गये थे और में मेरी तो पूछो मत, मेरी हालत तो इतना करने में ही बहुत खराब हो गयी थी और मेरी पेंटी इतनी गीली हो चुकी थी कि मुझे लग रहा था मेरी स्कर्ट खराब ना हो जाए।
फिर पूरे दिन कॉलेज में मेरे दिमाग में पापा का लंड ही घूमता रहा और अब मेरा दिल कर रहा था कि में पापा के लंड पर ही बैठी रहूँ। अब पता नहीं मुझे क्या हो गया था? ऐसा कौन सा वासना का तूफान मेरे अंदर था कि में पापा से चुदने के लिए ही सोचने लगी थी। खैर आगे बढ़ते है, फिर में चुदाई की इच्छा और गीली पेंटी लेकर घर पहुँची। अब उस वक़्त लगभग 3 बज रहे थे। अब घर में दादा, दादी के अलावा कोई नहीं था, मम्मी कहीं गयी हुई थी और पापा अपने ऑफिस में थे। ख़ैर फिर में बाथरूम में गयी और गंदे कपड़ो में से पापा की अंडरवेयर ढूंढकर अपनी चूत पर रगड़ते हुए हस्तमैथुन किया। अब मुझे बहुत मज़ा आया था और फिर में सो गयी। फिर मेरी आँख खुली तो शाम के 5 बज रहे थे। फिर मैंने नहा धोकर कपड़े पहने और मैंने कपड़े भी उस दिन कुछ सेक्सी दिखने वाले पहने थे, मैंने एक शॉर्ट स्कर्ट और फिटिंग टी-शर्ट पहनी थी। अब पापा के आने का टाईम हो गया था, लेकिन मम्मी का कोई पता नहीं था।
फिर शाम के 6 बजे पापा ने घंटी बजाई तो में दौड़ती हुई गयी और दरवाजा खोला। फिर पापा मुझे देखकर थोड़े मुस्कुराए और मुझे गले लगाकर मेरे गालों पर किस करते हुए बोले कि बेटा आज तो बहुत स्मार्ट लग रही हो। अब मुझे इतनी खुशी हुई थी कि में पापा को फंसाने में धीरे-धीरे सफल होती जा रही थी। फिर अंदर आकर पापा ने चाय का ऑर्डर कर दिया तो में किचन में जाकर चाय बनाने लगी। फिर पापा भी फ्रेश होकर किचन में आ गये और इधर उधर की बातें करने लगे थे। फिर थोड़ी देर में पापा मेरी गोरी जांघो देखकर गर्म हो गये और मेरे पीछे खड़े होकर अपना लंड मेरी गांड से सटाने की कोशिश करने लगे थे। तब में भी अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी। अब मुझे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे में जन्नत में हूँ और बस ऐसे ही खड़ी रहूँ।
ख़ैर अब चाय बन चुकी थी और फिर मैंने पापा से डाइनिंग रूम में जाकर बैठने को कहा और चाय वहाँ सर्व करके बाथरूम में जाकर फिर से उंगली करने लगी थी। फिर में झड़ने के बाद बाहर आई, तो तब तक मम्मी भी आ चुकी थी। मुझे मम्मी पर बहुत गुस्सा आया, क्योंकि मुझे पापा से अभी और मज़ा लेना था और मम्मी के सामने में कुछ नहीं कर सकती थी। अब पापा भी मम्मी के आने से थोड़े दुखी हो गये थे, क्योंकि ना तो वो कुछ करती थी और ना ही उन्हें कुछ करने देती थी। अब पापा मुझे देखकर बार-बार अपना लंड पजामे के ऊपर से ही सहला रहे थे और मुझे भी उन्हें सताने में बहुत मज़ा मिल रहा था।
अब उस दिन के बाद से मैं पापा से सेक्स करने का प्लान बनाने लगी थी। मैं घर मे जान के छोटे कपड़े पहना करती थी। पापा के सामने जाके झुक जाती जिससे मेरी चुचिया उनको दिख जये। तो कभी अपने रूम का गेट खोल के स्कर्ट ऊपर कर के सो जाती थी। ये सब कभी न क़भी मेरे पापा देख लेते थे। मैंने ध्यन दिया कि उनकी मेरे ऊपर नज़र रह रही है।
अब पापा भी मेरी ओर आकर्षित हो रहे थे। लेकिन कुछ होना तबतक मुमकिन नही था जबतक की मम्मी घर मे थी।
अब आगे की कहानी मैं आपको थर्ड पर्सन में बताती हूँ|
रात को खाने के बाद जयशंकर जी बैठे कुछ हिसाब लगा रहे थे और मम्मी किचन में बिज़ी थी. सुगंधा अच्छी तरह जानती थी कि उसकी माँ किचन से एक घंटे पहले बाहर नहीं आने वाली. वो सारा काम निपटा कर ही बाहर आएंगी और सीधे सोने जाएंगी.
तब सुगंधा ने सोचा कि अभी कुछ करना चाहिए. वो धीरे से जयशंकर जी के पास आकर बैठ गई. वो एक पतली सी टी-शर्ट और पजामे में थी. उसके अन्दर उसने कुछ नहीं पहना हुआ था.
जयशंकर- तुम्हें कुछ चाहिए क्या सुगंधा?
सुगंधा- क्यों.. कुछ चाहिए होगा.. तभी आपके पास आऊंगी क्या? ऐसे नहीं बैठ सकती?
जयशंकर- अरे बेटी, तू तो मेरी जान है.. तुझे बैठने से कौन रोक सकता है?
सुगंधा- पापा पहले आप मुझे गोद में बिठा कर मेरे सर की मालिश करते थे ना.. बहुत अच्छा लगता था. मगर अब तो आप इतने बिज़ी हो गए हो कि मुझ पर ध्यान ही नहीं देते. बस सारा दिन काम काम करते हो.
जयशंकर- अरे तब तू छोटी थी.. इसलिए गोद में बैठा लेता था. अब तू बड़ी हो गई है.
सुगंधा- क्या पापा मैं कहाँ बड़ी हुई हूँ. वैसी ही तो हूँ.. आप बस बहाना कर रहे हो. साफ-साफ बोल दो ना कि आप मुझे प्यार नहीं करते.
जयशंकर- अरे ऐसा कुछ नहीं है बेटी.. तुम तो मेरी जान हो. मैं तुमसे प्यार कैसे नहीं करूँगा.. ऐसा हो सकता है क्या?
सुगंधा- अच्छा ये बात है... तो चलो ये काम को करो साइड में और मुझे पहले की तरह अपनी गोद में बिठा कर मेरी मालिश करो.
जयशंकर जी रात को सिर्फ़ लुंगी पहनते थे.. अन्दर कुछ नहीं और आज तो सुगंधा ने भी कुछ नहीं पहना था. अब जयशंकर जी उसे कुछ कह पाते, तब तक वो उनकी गोद में बैठ गई. जयशंकर जी का लंड सीधा सुगंधा की मुलायम गांड के नीचे दब गया.
जयशंकर जी कुछ समझ पाते, तब तक सुगंधा ने दूसरा पासा फेंक दिया- चलो पापा, अब मेरी गर्दन के पीछे से दबाओ, सर की मसाज करो.. जैसे आप पहले करते थे.
सुगंधा की गांड का स्पर्श पाकर लंड हरकत में आ गया. उसमें धीरे-धीरे तनाव आने लगा क्योंकि लंड और गांड के बीच बस जयशंकर जी की लुंगी और सुगंधा का पतला पजामा ही था. जयशंकर जी का लंड अकड़ रहा था, जिसे सुगंधा ने भी महसूस किया मगर वो तो अनजान बन कर बस अपने पापा को सिड्यूस कर रही थी.
सुगंधा- अब करो ना पापा.. क्या सोचने लगे?
जयशंकर जी की तो हालत देखने लायक थी मगर उन्होंने कुछ ग़लत नहीं सोचा और सुगंधा की गर्दन पर धीरे-धीरे दबाने लगे.. जैसे पहले करते थे.
सुगंधा अब किसी ना किसी बहाने हिल रही थी, जिससे गांड का दबाव लंड पे पड़ता और जयशंकर जी बस हल्की आह.. करके रह जाते.
सुगंधा- उफ़ पापा मेरी पीठ पे खुजली हो रही है.. प्लीज़ खुज़ला दो ना आप.
जयशंकर जी ने टी-शर्ट के ऊपर से खुज़ाया तो सुगंधा ने कहा- ऐसे नहीं.. आप मेरी टी-शर्ट ऊपर करके खुजाओ ना.
जयशंकर जी ने टी-शर्ट थोड़ी ऊपर की तो सुगंधा आगे की ओर झुक गई- पापा थोड़ा ऊपर करो ना प्लीज़.
जयशंकर- अरे कहाँ.. तू ठीक से बता ना?
सुगंधा- जहाँ आप कर रहे हो.. उससे थोड़ा ऊपर करो. वहीं खुजली हो रही है.
जयशंकर जी का हाथ सुगंधा की नंगी पीठ पर था.. जब उन्होंने टी-शर्ट और ऊपर की तो वो समझ गए कि सुगंधा ने ब्रा नहीं पहनी है.
सुगंधा- आह.. पापा यहीं.. हाँ अच्छे से करो ना.
जयशंकर जी का हाथ वहां था, जहाँ ब्रा के स्ट्रीप होते हैं. अब एक बाप के अन्दर धीरे-धीरे शैतान जाग रहा था, वो सोच रहे थे कि सुगंधा नादान है, इसे क्या पता चलेगा.. थोड़ा मज़ा ले लेना चाहिए.
जयशंकर जी ने खुजाते हुए एक उंगली थोड़ी आगे की तरफ़ निकाली. वो शायद सुगंधा के मम्मों को टच करना चाहते थे मगर बाप और बेटी के बीच इतनी जल्दी ये सब होना बहुत मुश्किल होता है. वो थोड़ा डर भी रहे थे तो बस उन्होंने एक बार कोशिश की, उसके पापा ने थोड़ा हॉंसला करके फिर अपना हाथ आगे बढ़ाया और फिर डरते डरते धीरे से अपनी एक उंगली अपनी बेटी के मुम्मों पर फेरी. दोनो के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. जयशंकर का लंड तो इतना टाइट हो गया था की जैसे फट जाएगा. उन्होने धीरे से फिर दुबारा से अपनी उंगली अपनी बेटी के मुम्मों पर फेरी. जब उन्हे अपनी बेटी से कोई भी नाराज़गी जैसा ना लगा तो फिर धीरे से उन्होने अपनी उंगली फिर बेटी के निपल पर फेर दी.
सुगंधा की तो साँस बहुत तेज चलने लगी थी. और उसकी चूत में तो जैसे पानी का झरना ही बहने लगा था. बाप बेटी दोनो बहुत गर्म हो गये थे. सुगंधा को लग रहा था की यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो जल्दी ही अपने पापा से चुड़वाने में कामयाब हो जाएगी इसलिए वो चुपचाप बैठी अपने सखत हो चुके निप्पेल पर अपने पापा की उंगली का मज़ा लेती रही. इतने में अचानक किचन से उसकी मुम्मी के बाहर आने की आवाज़ आई तो जाई जी ने जल्दी से अपने हाथ अपनी बेटी के सख़्त मुम्मों पर से हटा लिए और फिर जल्दी से टी-शर्ट नीचे कर दी.
जयशंकर- बस हो गई ठीक.. चल अब उठ मुझे काम भी करना है.
सुगंधा- अरे अभी दो मिनट भी नहीं हुए पापा.. प्लीज़ गर्दन पे करो ना.. आप बहुत अच्छा करते हो, जिससे नींद बहुत अच्छी आती है.
सुगंधा धीरे-धीरे गांड को हिला रही थी.. जिससे लंड अब बेकाबू हो गया और ऊपर से जयशंकर जी ये जान गए कि सुगंधा ने ब्रा नहीं पहनी और गांड की रगड़ से उनको समझने में देर नहीं लगी कि पैंटी भी नहीं है. अब तो उनका लंड एकदम टाइट हो गया और उसमें दर्द भी होने लगा.
फिर पूरे दिन कॉलेज में मेरे दिमाग में पापा का लंड ही घूमता रहा और अब मेरा दिल कर रहा था कि में पापा के लंड पर ही बैठी रहूँ। अब पता नहीं मुझे क्या हो गया था? ऐसा कौन सा वासना का तूफान मेरे अंदर था कि में पापा से चुदने के लिए ही सोचने लगी थी। खैर आगे बढ़ते है, फिर में चुदाई की इच्छा और गीली पेंटी लेकर घर पहुँची। अब उस वक़्त लगभग 3 बज रहे थे। अब घर में दादा, दादी के अलावा कोई नहीं था, मम्मी कहीं गयी हुई थी और पापा अपने ऑफिस में थे। ख़ैर फिर में बाथरूम में गयी और गंदे कपड़ो में से पापा की अंडरवेयर ढूंढकर अपनी चूत पर रगड़ते हुए हस्तमैथुन किया। अब मुझे बहुत मज़ा आया था और फिर में सो गयी। फिर मेरी आँख खुली तो शाम के 5 बज रहे थे। फिर मैंने नहा धोकर कपड़े पहने और मैंने कपड़े भी उस दिन कुछ सेक्सी दिखने वाले पहने थे, मैंने एक शॉर्ट स्कर्ट और फिटिंग टी-शर्ट पहनी थी। अब पापा के आने का टाईम हो गया था, लेकिन मम्मी का कोई पता नहीं था।
फिर शाम के 6 बजे पापा ने घंटी बजाई तो में दौड़ती हुई गयी और दरवाजा खोला। फिर पापा मुझे देखकर थोड़े मुस्कुराए और मुझे गले लगाकर मेरे गालों पर किस करते हुए बोले कि बेटा आज तो बहुत स्मार्ट लग रही हो। अब मुझे इतनी खुशी हुई थी कि में पापा को फंसाने में धीरे-धीरे सफल होती जा रही थी। फिर अंदर आकर पापा ने चाय का ऑर्डर कर दिया तो में किचन में जाकर चाय बनाने लगी। फिर पापा भी फ्रेश होकर किचन में आ गये और इधर उधर की बातें करने लगे थे। फिर थोड़ी देर में पापा मेरी गोरी जांघो देखकर गर्म हो गये और मेरे पीछे खड़े होकर अपना लंड मेरी गांड से सटाने की कोशिश करने लगे थे। तब में भी अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी। अब मुझे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे में जन्नत में हूँ और बस ऐसे ही खड़ी रहूँ।
ख़ैर अब चाय बन चुकी थी और फिर मैंने पापा से डाइनिंग रूम में जाकर बैठने को कहा और चाय वहाँ सर्व करके बाथरूम में जाकर फिर से उंगली करने लगी थी। फिर में झड़ने के बाद बाहर आई, तो तब तक मम्मी भी आ चुकी थी। मुझे मम्मी पर बहुत गुस्सा आया, क्योंकि मुझे पापा से अभी और मज़ा लेना था और मम्मी के सामने में कुछ नहीं कर सकती थी। अब पापा भी मम्मी के आने से थोड़े दुखी हो गये थे, क्योंकि ना तो वो कुछ करती थी और ना ही उन्हें कुछ करने देती थी। अब पापा मुझे देखकर बार-बार अपना लंड पजामे के ऊपर से ही सहला रहे थे और मुझे भी उन्हें सताने में बहुत मज़ा मिल रहा था।
अब उस दिन के बाद से मैं पापा से सेक्स करने का प्लान बनाने लगी थी। मैं घर मे जान के छोटे कपड़े पहना करती थी। पापा के सामने जाके झुक जाती जिससे मेरी चुचिया उनको दिख जये। तो कभी अपने रूम का गेट खोल के स्कर्ट ऊपर कर के सो जाती थी। ये सब कभी न क़भी मेरे पापा देख लेते थे। मैंने ध्यन दिया कि उनकी मेरे ऊपर नज़र रह रही है।
अब पापा भी मेरी ओर आकर्षित हो रहे थे। लेकिन कुछ होना तबतक मुमकिन नही था जबतक की मम्मी घर मे थी।
अब आगे की कहानी मैं आपको थर्ड पर्सन में बताती हूँ|
रात को खाने के बाद जयशंकर जी बैठे कुछ हिसाब लगा रहे थे और मम्मी किचन में बिज़ी थी. सुगंधा अच्छी तरह जानती थी कि उसकी माँ किचन से एक घंटे पहले बाहर नहीं आने वाली. वो सारा काम निपटा कर ही बाहर आएंगी और सीधे सोने जाएंगी.
तब सुगंधा ने सोचा कि अभी कुछ करना चाहिए. वो धीरे से जयशंकर जी के पास आकर बैठ गई. वो एक पतली सी टी-शर्ट और पजामे में थी. उसके अन्दर उसने कुछ नहीं पहना हुआ था.
जयशंकर- तुम्हें कुछ चाहिए क्या सुगंधा?
सुगंधा- क्यों.. कुछ चाहिए होगा.. तभी आपके पास आऊंगी क्या? ऐसे नहीं बैठ सकती?
जयशंकर- अरे बेटी, तू तो मेरी जान है.. तुझे बैठने से कौन रोक सकता है?
सुगंधा- पापा पहले आप मुझे गोद में बिठा कर मेरे सर की मालिश करते थे ना.. बहुत अच्छा लगता था. मगर अब तो आप इतने बिज़ी हो गए हो कि मुझ पर ध्यान ही नहीं देते. बस सारा दिन काम काम करते हो.
जयशंकर- अरे तब तू छोटी थी.. इसलिए गोद में बैठा लेता था. अब तू बड़ी हो गई है.
सुगंधा- क्या पापा मैं कहाँ बड़ी हुई हूँ. वैसी ही तो हूँ.. आप बस बहाना कर रहे हो. साफ-साफ बोल दो ना कि आप मुझे प्यार नहीं करते.
जयशंकर- अरे ऐसा कुछ नहीं है बेटी.. तुम तो मेरी जान हो. मैं तुमसे प्यार कैसे नहीं करूँगा.. ऐसा हो सकता है क्या?
सुगंधा- अच्छा ये बात है... तो चलो ये काम को करो साइड में और मुझे पहले की तरह अपनी गोद में बिठा कर मेरी मालिश करो.
जयशंकर जी रात को सिर्फ़ लुंगी पहनते थे.. अन्दर कुछ नहीं और आज तो सुगंधा ने भी कुछ नहीं पहना था. अब जयशंकर जी उसे कुछ कह पाते, तब तक वो उनकी गोद में बैठ गई. जयशंकर जी का लंड सीधा सुगंधा की मुलायम गांड के नीचे दब गया.
जयशंकर जी कुछ समझ पाते, तब तक सुगंधा ने दूसरा पासा फेंक दिया- चलो पापा, अब मेरी गर्दन के पीछे से दबाओ, सर की मसाज करो.. जैसे आप पहले करते थे.
सुगंधा की गांड का स्पर्श पाकर लंड हरकत में आ गया. उसमें धीरे-धीरे तनाव आने लगा क्योंकि लंड और गांड के बीच बस जयशंकर जी की लुंगी और सुगंधा का पतला पजामा ही था. जयशंकर जी का लंड अकड़ रहा था, जिसे सुगंधा ने भी महसूस किया मगर वो तो अनजान बन कर बस अपने पापा को सिड्यूस कर रही थी.
सुगंधा- अब करो ना पापा.. क्या सोचने लगे?
जयशंकर जी की तो हालत देखने लायक थी मगर उन्होंने कुछ ग़लत नहीं सोचा और सुगंधा की गर्दन पर धीरे-धीरे दबाने लगे.. जैसे पहले करते थे.
सुगंधा अब किसी ना किसी बहाने हिल रही थी, जिससे गांड का दबाव लंड पे पड़ता और जयशंकर जी बस हल्की आह.. करके रह जाते.
सुगंधा- उफ़ पापा मेरी पीठ पे खुजली हो रही है.. प्लीज़ खुज़ला दो ना आप.
जयशंकर जी ने टी-शर्ट के ऊपर से खुज़ाया तो सुगंधा ने कहा- ऐसे नहीं.. आप मेरी टी-शर्ट ऊपर करके खुजाओ ना.
जयशंकर जी ने टी-शर्ट थोड़ी ऊपर की तो सुगंधा आगे की ओर झुक गई- पापा थोड़ा ऊपर करो ना प्लीज़.
जयशंकर- अरे कहाँ.. तू ठीक से बता ना?
सुगंधा- जहाँ आप कर रहे हो.. उससे थोड़ा ऊपर करो. वहीं खुजली हो रही है.
जयशंकर जी का हाथ सुगंधा की नंगी पीठ पर था.. जब उन्होंने टी-शर्ट और ऊपर की तो वो समझ गए कि सुगंधा ने ब्रा नहीं पहनी है.
सुगंधा- आह.. पापा यहीं.. हाँ अच्छे से करो ना.
जयशंकर जी का हाथ वहां था, जहाँ ब्रा के स्ट्रीप होते हैं. अब एक बाप के अन्दर धीरे-धीरे शैतान जाग रहा था, वो सोच रहे थे कि सुगंधा नादान है, इसे क्या पता चलेगा.. थोड़ा मज़ा ले लेना चाहिए.
जयशंकर जी ने खुजाते हुए एक उंगली थोड़ी आगे की तरफ़ निकाली. वो शायद सुगंधा के मम्मों को टच करना चाहते थे मगर बाप और बेटी के बीच इतनी जल्दी ये सब होना बहुत मुश्किल होता है. वो थोड़ा डर भी रहे थे तो बस उन्होंने एक बार कोशिश की, उसके पापा ने थोड़ा हॉंसला करके फिर अपना हाथ आगे बढ़ाया और फिर डरते डरते धीरे से अपनी एक उंगली अपनी बेटी के मुम्मों पर फेरी. दोनो के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. जयशंकर का लंड तो इतना टाइट हो गया था की जैसे फट जाएगा. उन्होने धीरे से फिर दुबारा से अपनी उंगली अपनी बेटी के मुम्मों पर फेरी. जब उन्हे अपनी बेटी से कोई भी नाराज़गी जैसा ना लगा तो फिर धीरे से उन्होने अपनी उंगली फिर बेटी के निपल पर फेर दी.
सुगंधा की तो साँस बहुत तेज चलने लगी थी. और उसकी चूत में तो जैसे पानी का झरना ही बहने लगा था. बाप बेटी दोनो बहुत गर्म हो गये थे. सुगंधा को लग रहा था की यदि ऐसा ही चलता रहा तो वो जल्दी ही अपने पापा से चुड़वाने में कामयाब हो जाएगी इसलिए वो चुपचाप बैठी अपने सखत हो चुके निप्पेल पर अपने पापा की उंगली का मज़ा लेती रही. इतने में अचानक किचन से उसकी मुम्मी के बाहर आने की आवाज़ आई तो जाई जी ने जल्दी से अपने हाथ अपनी बेटी के सख़्त मुम्मों पर से हटा लिए और फिर जल्दी से टी-शर्ट नीचे कर दी.
जयशंकर- बस हो गई ठीक.. चल अब उठ मुझे काम भी करना है.
सुगंधा- अरे अभी दो मिनट भी नहीं हुए पापा.. प्लीज़ गर्दन पे करो ना.. आप बहुत अच्छा करते हो, जिससे नींद बहुत अच्छी आती है.
सुगंधा धीरे-धीरे गांड को हिला रही थी.. जिससे लंड अब बेकाबू हो गया और ऊपर से जयशंकर जी ये जान गए कि सुगंधा ने ब्रा नहीं पहनी और गांड की रगड़ से उनको समझने में देर नहीं लगी कि पैंटी भी नहीं है. अब तो उनका लंड एकदम टाइट हो गया और उसमें दर्द भी होने लगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.