11-03-2024, 07:14 PM
"जब आना होगा तो फोन कर लेना, ड्राईवर गाड़ी लेकर पहुंच जाएगा।" मां ने फिर कहा।
"तुम चिंता मत करो मां। मैं खुद ही ऑटो करके आ जाऊंगी। देर होगी तो मैं बता दूंगी।" मैं बोली।
"ठीक है " कहकर मां झाड़ू लेकर काम में लग गयी।
मेरे देखते ही देखते मेरी मां ने झुक कर झाड़ू लगाना आरंभ कर दिया था। उसका यह रूप देखकर मैं कुछ पलों तक बुत बनी उसे देखती रह गई । झुक कर झाड़ू लगाते समय उनके स्तनों के बीच की पूरी दरार स्पष्ट रूप से नुमायां हो रही थीं। काफी हद तक स्तन भी दृष्टिगोचर हो रहे थे। उस समय वह नौकर एक ऊंची स्टूल पर खड़ा होकर छत की सफाई करने की तैयारी कर रहा था। जब इतनी दूर से मुझे मां के अंग इतने स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहे थे तो घुसा तो मुश्किल से मां से तीन चार फुट की दूरी पर था। क्या उस कमीने ने यह सब नहीं देखा होगा? अवश्य देखा होगा और मां की सेक्सी देह ने जरूर उसे आकर्षित किया होगा। उस जैसा कमीने आदमी का मन भी अवश्य डोल गया होगा, आखिर औरतों का रसिया जो ठहरा। उसने ध्यान नहीं दिया कि मैं उनकी तरफ देख रही हूं। वह स्टूल पर चढ़ने के बदले अपने स्थान पर ही मानो जम गया था। उसकी नजरें ब्लाऊज से छलक कर बाहर निकल आने को बेताब, मेरी मां के बड़े बड़े स्तनों पर गड़ी हुई थीं और वह अपने होंठ चाट रहा था। साला हराम का जना कुत्ता कहीं का। इन बातों से अनजान मेरी मां झाड़ू लगाना आरंभ कर चुकी थी।
मुझे साफ साफ पता चल रहा था कि मेरे घर से बाहर निकलते ही यहां कुछ न कुछ तो होने वाला है। यह कमीना किसी न किसी तरह मेरी मां को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश अवश्य करेगा, लेकिन कैसे? यह सवाल मेरे दिमाग में घूमने लगा। साथ ही साथ यह सवाल भी था कि उसके कुत्सित कृत्य को कैसे अंजाम देगा और उसके इस प्रयास के प्रति मेरी मां की प्रतिक्रिया क्या होगी? अब मुझे कॉलेज जाने से ज्यादा यहां होने वाले तमाशे को देखने की बलवती इच्छा होने लगी लेकिन मेरी उपस्थिति में यह होना असंभव था। मैं सोचने लगी कि इनके सामने यहां से बाहर निकलने का दिखावा कर के किसी तरह फिर से चुपके से घर में दाखिल हो कर गुप्त रूप से छिप जाऊं तो मजा आ जाए।
सहसा मेरे दिमाग में एक योजना आ गई। मैं जानती थी कि इस वक्त घर के पीछे का दरवाजा खुला हुआ है। मैं उनकी नजरों के सामने, आगे के दरवाजे से बाहर निकल गई और पीछे के दरवाजे से चुपके से फिर अंदर आ कर दबे पांव बगल वाले अतिथि कक्ष में जा घुसी। अतिथि कक्ष का दरवाजा पीछे से आने वाले गलियारे की ओर था जिसके कारण मुझे ड्राइंग हॉल को पार करने की आवश्यकता नहीं थी और मुझे चुपके से वहां घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मुझे पता था कि अतिथि कक्ष दो दिन पहले ही साफ किया जा चुका था, इसलिए वहां छुपना ज्यादा सुरक्षित था, जहां उनके आने की संभावना नहीं थी। अतिथि कक्ष और ड्राइंग हॉल के बीच एक बड़ी सी शीशे की खिड़की थी और अतिथि कक्ष की तरफ अंदर से पर्दा लगा हुआ था, जिसे हल्का सा सरका कर मैं ड्राईंग हॉल का नजारा अच्छी तरह से देख सकती थी।
"तुम चिंता मत करो मां। मैं खुद ही ऑटो करके आ जाऊंगी। देर होगी तो मैं बता दूंगी।" मैं बोली।
"ठीक है " कहकर मां झाड़ू लेकर काम में लग गयी।
मेरे देखते ही देखते मेरी मां ने झुक कर झाड़ू लगाना आरंभ कर दिया था। उसका यह रूप देखकर मैं कुछ पलों तक बुत बनी उसे देखती रह गई । झुक कर झाड़ू लगाते समय उनके स्तनों के बीच की पूरी दरार स्पष्ट रूप से नुमायां हो रही थीं। काफी हद तक स्तन भी दृष्टिगोचर हो रहे थे। उस समय वह नौकर एक ऊंची स्टूल पर खड़ा होकर छत की सफाई करने की तैयारी कर रहा था। जब इतनी दूर से मुझे मां के अंग इतने स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहे थे तो घुसा तो मुश्किल से मां से तीन चार फुट की दूरी पर था। क्या उस कमीने ने यह सब नहीं देखा होगा? अवश्य देखा होगा और मां की सेक्सी देह ने जरूर उसे आकर्षित किया होगा। उस जैसा कमीने आदमी का मन भी अवश्य डोल गया होगा, आखिर औरतों का रसिया जो ठहरा। उसने ध्यान नहीं दिया कि मैं उनकी तरफ देख रही हूं। वह स्टूल पर चढ़ने के बदले अपने स्थान पर ही मानो जम गया था। उसकी नजरें ब्लाऊज से छलक कर बाहर निकल आने को बेताब, मेरी मां के बड़े बड़े स्तनों पर गड़ी हुई थीं और वह अपने होंठ चाट रहा था। साला हराम का जना कुत्ता कहीं का। इन बातों से अनजान मेरी मां झाड़ू लगाना आरंभ कर चुकी थी।
मुझे साफ साफ पता चल रहा था कि मेरे घर से बाहर निकलते ही यहां कुछ न कुछ तो होने वाला है। यह कमीना किसी न किसी तरह मेरी मां को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश अवश्य करेगा, लेकिन कैसे? यह सवाल मेरे दिमाग में घूमने लगा। साथ ही साथ यह सवाल भी था कि उसके कुत्सित कृत्य को कैसे अंजाम देगा और उसके इस प्रयास के प्रति मेरी मां की प्रतिक्रिया क्या होगी? अब मुझे कॉलेज जाने से ज्यादा यहां होने वाले तमाशे को देखने की बलवती इच्छा होने लगी लेकिन मेरी उपस्थिति में यह होना असंभव था। मैं सोचने लगी कि इनके सामने यहां से बाहर निकलने का दिखावा कर के किसी तरह फिर से चुपके से घर में दाखिल हो कर गुप्त रूप से छिप जाऊं तो मजा आ जाए।
सहसा मेरे दिमाग में एक योजना आ गई। मैं जानती थी कि इस वक्त घर के पीछे का दरवाजा खुला हुआ है। मैं उनकी नजरों के सामने, आगे के दरवाजे से बाहर निकल गई और पीछे के दरवाजे से चुपके से फिर अंदर आ कर दबे पांव बगल वाले अतिथि कक्ष में जा घुसी। अतिथि कक्ष का दरवाजा पीछे से आने वाले गलियारे की ओर था जिसके कारण मुझे ड्राइंग हॉल को पार करने की आवश्यकता नहीं थी और मुझे चुपके से वहां घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मुझे पता था कि अतिथि कक्ष दो दिन पहले ही साफ किया जा चुका था, इसलिए वहां छुपना ज्यादा सुरक्षित था, जहां उनके आने की संभावना नहीं थी। अतिथि कक्ष और ड्राइंग हॉल के बीच एक बड़ी सी शीशे की खिड़की थी और अतिथि कक्ष की तरफ अंदर से पर्दा लगा हुआ था, जिसे हल्का सा सरका कर मैं ड्राईंग हॉल का नजारा अच्छी तरह से देख सकती थी।