10-03-2024, 12:13 PM
गरम रोजा (भाग 3)
मैं पहले ही बता चुकी हूं कि हमारे घर में एक नया नौकर आया था जिसका नाम घुसा दुराई था। वह निहायत ही बदसूरत, धूर्त और कामुक आदमी था। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि पहली नजर में मैं उसके व्यक्तित्व से घृणा करती थी लेकिन दो तीन दिनों में ही हालात ने ऐसी करवट ली कि अब मैं उससे घृणा तो दूर की बात है, मैं उस पर आसक्त हो चुकी थी। कारण तो आप लोगों को पता चल ही गया होगा।
जी हां, मैं इस श्रृंखला को अपनी शैली में लिख रही हूं । यहां मैं अपनी कहानियां और अनुभव साझा कर रही हूं और यह आगे कैसे चलता रहा इसके आधार पर इसे एक श्रृंखला के रूप में पेश कर रही हूं।
स्टोर रूम वाली घटना के बाद तीसरे ही दिन घुसा नें किस तरह मेरा बुखार उतारा वह तो आपलोग जान ही चुके हैं। उसके बाद तो उसके साथ मेरा शारीरिक संबंध होना आये दिन की बात हो गई। मैं तो एक तरह से उस गंदे आदमी के साथ गुपचुप तरीके से कामुक कृत्यों में सक्रिय सहभागिता निभाते निभाते उसकी विविध कामक्रीड़ाओं की दीवानी सी हो गई। दस पंद्रह दिनों में ही उस नादान उम्र में मुझे सेक्स का ऐसा चस्का लग गया कि मैं सेक्स की आदी हो गयी। उस कमीने की तो निकल पड़ी थी। जहां मौका मिला नहीं कि हम गुत्थमगुत्था हो कर अपने तन की भूख मिटाने में पीछे नहीं रहते थे। सबसे विचित्र बात तो यह थी कि मैं सेक्स की आदी होने के बावजूद मेरी पहली पसंद घुसा जैसा उम्रदराज आदमी ही था। लड़कों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी, जबकि लड़के मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े रहते थे। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मैं पहले भी किसी लड़के को घास नहीं डालती थी और घुसा ने मुझे अपने हवस की शिकार बनाने के बाद के बाद लगातार ऐसे ऐसे ढंग से मुझे भोगा कि मैं उसकी दीवानी सी हो गई। लड़कों में मेरी दिलचस्पी बिल्कुल खत्म हो गई थी, यह तो बाद बाद की बात है कि यदा कदा लड़कों से भी मैं अपने तन की भूख मिटाने लगी।
अब आगे की जो घटना हुई, वह इस तरह है: -
हमारे कॉलेज के वार्षिक दिवस की तैयारियां चल रही थीं और उसके लिए हर तरह से तैयारियां चल रही थीं। उस दिन के कार्यक्रम में गीत संगीत, ड्रामा तथा और भी विभिन्न प्रकार की प्रस्तुतियां होनी थीं। मैं भी ड्रामा में भाग लेने वाली थी और उसी के रिहर्सल के लिए मुझे कॉलेज जाना था। उस दिन शनिवार था और मेरी मां के ऑफिस की छुट्टी थी इसलिए वे घुसा के साथ घर की साफ सफाई करने का प्रोग्राम बना चुकी थी। यदि मुझे कॉलेज नहीं जाना होता तो मुझे भी इस सफाई के कार्य में उनका हाथ बंटाना पड़ता। उस दिन रिहर्सल के लिए मुझे कॉलेज जाने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि ड्रामा का निर्देशक , जो हमारे कॉलेज का ही एक स्पोर्ट्स टीचर था, मेरे हिस्से की भूमिका को पहले ही देख चुका था, मेरे रोल के प्रति पूरी तरह आश्वस्त था कि मैं अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभा सकती हूं, लेकिन घर के काम से बचने के लिए मैं ने कॉलेज जाना ही पसंद किया।
कॉलेज के लिए निकलते समय मैंने पलट कर देखा तो मैं अपनी मां को देखती रह गई। वह पूरी तरह काम करने के मूड में थी। उन्होंने काम करने के हिसाब से उसी तरह से कपड़े पहने हुए थी। मेरी मां ने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी और चूँकि वह सफ़ाई करने को तत्पर थी इसलिए आसानी से चलने फिरने के लिए उसने साड़ी को नाभि से नीचे बांध लिया था। उन्होंने पल्लू को भी लपेट कर साइड से कमर में खोंस रखा था इसलिए उनके स्तन पर ब्लाउज के अलावा और किसी तरह का अतिरिक्त पर्दा नहीं था। मेरी मां के भारी भरकम स्तन स्पष्ट रूप से अपने आकार और साईज को ब्लाऊज के अंदर से ही प्रदर्शित कर रहे थे।
मेरी मां के पास भी बड़ी अच्छी देहयष्टि थी, या यों कहूं कि वह, औरतों वाली आकर्षक और बेहद सेक्सी देह वाली धन संपदा की मालकिन थी। उसकी देह का नाप जोख 36-32-38 के करीब था शायद, जो कि उसकी उम्र के हिसाब से काफी अच्छी थी। उसकी कमर पर चर्बी थी लेकिन उससे कमर पर चर्बी के कारण वह अलग तरह से सेक्सी लगती थी। आस-पड़ोस के सभी जवान लड़के और पुरुष हमेशा चोरी छिपे उसकी देहयष्टि देख देख कर आहें भरते थे। सामने से तो नजरें चुराते थे लेकिन छुप-छुप कर उसके जिस्म के उतार चढ़ाव को देखते थे। पुरुषों के लिए अपनी आंखें सेंकने हेतु मेरी माँ एक बेहद सेक्सी और बेहद उपयुक्त महिला थीं।
मेरी मां को पता था कि हमारे कॉलेज में वार्षिक दिवस की तैयारियां चल रही थीं और उस कार्यक्रम में मेरी क्या भुमिका थी। उन्हें पता नहीं था की मेरी छुट्टी कब होगी अतः उन्होंने पूछ लिया, "रोज सुनो, तुम्हारी छुट्टी कब होगी?"
"पता नहीं मां। रिहर्सल है, कब तक चलेगा पता नहीं। शायद देर हो जाय।" मैंने कहा।
मैं पहले ही बता चुकी हूं कि हमारे घर में एक नया नौकर आया था जिसका नाम घुसा दुराई था। वह निहायत ही बदसूरत, धूर्त और कामुक आदमी था। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि पहली नजर में मैं उसके व्यक्तित्व से घृणा करती थी लेकिन दो तीन दिनों में ही हालात ने ऐसी करवट ली कि अब मैं उससे घृणा तो दूर की बात है, मैं उस पर आसक्त हो चुकी थी। कारण तो आप लोगों को पता चल ही गया होगा।
जी हां, मैं इस श्रृंखला को अपनी शैली में लिख रही हूं । यहां मैं अपनी कहानियां और अनुभव साझा कर रही हूं और यह आगे कैसे चलता रहा इसके आधार पर इसे एक श्रृंखला के रूप में पेश कर रही हूं।
स्टोर रूम वाली घटना के बाद तीसरे ही दिन घुसा नें किस तरह मेरा बुखार उतारा वह तो आपलोग जान ही चुके हैं। उसके बाद तो उसके साथ मेरा शारीरिक संबंध होना आये दिन की बात हो गई। मैं तो एक तरह से उस गंदे आदमी के साथ गुपचुप तरीके से कामुक कृत्यों में सक्रिय सहभागिता निभाते निभाते उसकी विविध कामक्रीड़ाओं की दीवानी सी हो गई। दस पंद्रह दिनों में ही उस नादान उम्र में मुझे सेक्स का ऐसा चस्का लग गया कि मैं सेक्स की आदी हो गयी। उस कमीने की तो निकल पड़ी थी। जहां मौका मिला नहीं कि हम गुत्थमगुत्था हो कर अपने तन की भूख मिटाने में पीछे नहीं रहते थे। सबसे विचित्र बात तो यह थी कि मैं सेक्स की आदी होने के बावजूद मेरी पहली पसंद घुसा जैसा उम्रदराज आदमी ही था। लड़कों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी, जबकि लड़के मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े रहते थे। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मैं पहले भी किसी लड़के को घास नहीं डालती थी और घुसा ने मुझे अपने हवस की शिकार बनाने के बाद के बाद लगातार ऐसे ऐसे ढंग से मुझे भोगा कि मैं उसकी दीवानी सी हो गई। लड़कों में मेरी दिलचस्पी बिल्कुल खत्म हो गई थी, यह तो बाद बाद की बात है कि यदा कदा लड़कों से भी मैं अपने तन की भूख मिटाने लगी।
अब आगे की जो घटना हुई, वह इस तरह है: -
हमारे कॉलेज के वार्षिक दिवस की तैयारियां चल रही थीं और उसके लिए हर तरह से तैयारियां चल रही थीं। उस दिन के कार्यक्रम में गीत संगीत, ड्रामा तथा और भी विभिन्न प्रकार की प्रस्तुतियां होनी थीं। मैं भी ड्रामा में भाग लेने वाली थी और उसी के रिहर्सल के लिए मुझे कॉलेज जाना था। उस दिन शनिवार था और मेरी मां के ऑफिस की छुट्टी थी इसलिए वे घुसा के साथ घर की साफ सफाई करने का प्रोग्राम बना चुकी थी। यदि मुझे कॉलेज नहीं जाना होता तो मुझे भी इस सफाई के कार्य में उनका हाथ बंटाना पड़ता। उस दिन रिहर्सल के लिए मुझे कॉलेज जाने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि ड्रामा का निर्देशक , जो हमारे कॉलेज का ही एक स्पोर्ट्स टीचर था, मेरे हिस्से की भूमिका को पहले ही देख चुका था, मेरे रोल के प्रति पूरी तरह आश्वस्त था कि मैं अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभा सकती हूं, लेकिन घर के काम से बचने के लिए मैं ने कॉलेज जाना ही पसंद किया।
कॉलेज के लिए निकलते समय मैंने पलट कर देखा तो मैं अपनी मां को देखती रह गई। वह पूरी तरह काम करने के मूड में थी। उन्होंने काम करने के हिसाब से उसी तरह से कपड़े पहने हुए थी। मेरी मां ने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी और चूँकि वह सफ़ाई करने को तत्पर थी इसलिए आसानी से चलने फिरने के लिए उसने साड़ी को नाभि से नीचे बांध लिया था। उन्होंने पल्लू को भी लपेट कर साइड से कमर में खोंस रखा था इसलिए उनके स्तन पर ब्लाउज के अलावा और किसी तरह का अतिरिक्त पर्दा नहीं था। मेरी मां के भारी भरकम स्तन स्पष्ट रूप से अपने आकार और साईज को ब्लाऊज के अंदर से ही प्रदर्शित कर रहे थे।
मेरी मां के पास भी बड़ी अच्छी देहयष्टि थी, या यों कहूं कि वह, औरतों वाली आकर्षक और बेहद सेक्सी देह वाली धन संपदा की मालकिन थी। उसकी देह का नाप जोख 36-32-38 के करीब था शायद, जो कि उसकी उम्र के हिसाब से काफी अच्छी थी। उसकी कमर पर चर्बी थी लेकिन उससे कमर पर चर्बी के कारण वह अलग तरह से सेक्सी लगती थी। आस-पड़ोस के सभी जवान लड़के और पुरुष हमेशा चोरी छिपे उसकी देहयष्टि देख देख कर आहें भरते थे। सामने से तो नजरें चुराते थे लेकिन छुप-छुप कर उसके जिस्म के उतार चढ़ाव को देखते थे। पुरुषों के लिए अपनी आंखें सेंकने हेतु मेरी माँ एक बेहद सेक्सी और बेहद उपयुक्त महिला थीं।
मेरी मां को पता था कि हमारे कॉलेज में वार्षिक दिवस की तैयारियां चल रही थीं और उस कार्यक्रम में मेरी क्या भुमिका थी। उन्हें पता नहीं था की मेरी छुट्टी कब होगी अतः उन्होंने पूछ लिया, "रोज सुनो, तुम्हारी छुट्टी कब होगी?"
"पता नहीं मां। रिहर्सल है, कब तक चलेगा पता नहीं। शायद देर हो जाय।" मैंने कहा।