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Incest मेरी बड़ी बहन की कातिल जवानी
#90
तभी मम्मी ने अपनी आदत के मुताबिक दूसरा सवाल दागा। और ये तुम दोनो के बाल और कपडे ऐसे क्यों बिखरे हुए हैं ? क्या किसी से लड़ाई करके आ रहे हो? मम्मी के अचानक ऐसे पूछने से दीदी सकपका गई। मैंने आगे बढ़के बात को संभाला ओफ्फो मम्मी आप भी न! चलो बाद में बात करते हैं। हम दोनो अपने अपने कमरे में चले गए। और उसके बाद अगले दिन तक मेरे और दीदी में कोई बात नहीं हुई। दीदी को पता लग गया था की मैं उनके बारे में सब कुछ जान चूका हूँ। हलाकि मैं दीदी को कई बार पहले भी नंगा देख चूका था पर दीदी की नजर में ये बात पहली बार आई थी। एक दिन, फिर दो दिन और फिर ऐसे ही तीसरा दिन भी निकल गया। दीदी न कंप्यूटर पे बैठती और न मुझसे ज्यादा बातएन करती। मुझे ये काफी बुरा लग रहा था। हमेशा खुश और चुलबुली सी दिखने वाली मेरी दीदी गुमसुम रहने लगी थीं। म्मुझ्से ये देखा नहीं गया . मैंने सोचा क्यों न मैं खुद आगे बढ़के बात करूँ। एक दिन मैं जल्दी घर वापस आ गया। दोपहर का समय था। मम्मी पड़ोस में गई हुईं थी। मैंने सीधा दीदी के कमरे में गया और पूछा दीदी क्या बात हो गई। दीदी चुप। मैंने फिर कहा दीदी आप भूल जाओ सब कुछ। मानो ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैंने किसी को कुछ बताया क्या दीदी ने सर हिलाया "नहीं" फिर आप क्यों ऐसा सोच रहे हो। हम्म . चलो आपको आज कहीं घुमा के लता हूँ। नहीं नहीं कहीं फिर कुछ हो गया तो। ओ कॉम ऑन दीदी। मैं हूँ नां डोंट वोर्री . नहीं रे आज नहीं फिर कभी। मैंने उनको कहा अच्छा सुनो मैं न पिकनिक के लिए निकलने वाला था। आप चलोगे मेरे साथ। मैं , तू अपने दोस्तों के साथ क्यों नहीं चला जाता। दीदी ममें आपको उदास नहीं देख सकता। मैं सिर्फ आपके साथ जाऊंगा। पर मम्मी। ये मेरा काम है आप डोंट वोर्री ठीक है कह कर दीदी ने हलकी सी स्माइल दी। वाह ये हुई न बात . मैंने बस आव देखा न ताव और एक छोटी सी किस्सी उनके चेहरे पे लगा दी अरे और फिर दीदी ने कहा और चुप हो गयीं . मैं अपने कमरे में भाग आया। आप समझ सकते हैं मैं कितना खुश था। मेरी योजना कम करने लगी थी। मैं मम्मी को रत में खाने को कहा वो थोड़ी न नुकुर के बाद मन गईं। (जगह का नाम नहीं बता सकता प्राइवेसी ) रविवार का दिन मैं जल्दी उठ गया और चलने की तयारी करने लगा . दीदी चलते समय अपना फोन रखने लगी मैं मना किया और कहा मेरा फोन हैं उसे उसे कर लेना। अपना फोन यहीं छोड़ दो। तिन घंटे की यात्रा के बाद हम अपने गंतव्य स्थल पर पहुँच गए। दीदी ने कहा वाओ पहाड़ों के बिच में फैला छोटा सा घन जंगल और दूर की और दीखता एक झरना । गर्मिओन में यहाँ भीड़ हमेशा होती है। पर अभी बरसात का समय था और इस कारन एक्का दुक्का लोग टहल रहे थे। सामने इतना खूबसूरत दृश्य और मुस्कुराती हुईं दीदी। सफ़ेद सी पारंपरिक सलवार कमीज में उनकी सुन्दरता देखते बनती थी। कितनी मसॊमिअत थी उनके चेहरे पे। कोई सोच नहीं सकता था इस चेहरे के पीछे छुपी हुई उनकी कर्गुजरिओन को और मेरे दिमाग में चल रहे शैतान को शायद कामशास्त्र ठीक ही मानता है कि शरीर और मन दो अलग-अलग सत्ता नहीं हैं बल्कि एक ही सत्ता के दो रूप हैं। तब क्या संभोग और प्रेम भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं? धर्मशास्त्र और मनोविज्ञान कहता है कि काम एक ऊर्जा है। इस ऊर्जा का प्रारंभिक रूप गहरे में कामेच्छा ही रहता है। इस ऊर्जा को आप जैसा रुख देना चाहें दे सकते हैं। यह आपके ज्ञान पर निर्भर करता है। परिपक्व लोग इस ऊर्जा को प्रेम या सृजन में बदल देते हैं। अचानक दीदी बोली सोनू चल उधर जंगल की और चलते हैं। मैंने कहा नहीं दीदी उधर काफी घना इलाका है। कोई जानवर हुआ तो तू है न सबसे बड़ा जानवर मेरा प्यारा शेरू भाई तू बचाएगा मुझे ईनसे मैं दीदी की बात मन के चलने लगा। आगे आगे। हम झरने से अभी थोड़ी दूर थे। हम थोड़ी दूर पे बैठ गए। मैंने एक बात नोट की। दीदी ने अपने दोद्नो चुतादो को हाथों से पकड़ा और फिर गांड को थोडा फ़ैलाने की कोशिश करते हुए बैठ गईं। मैंने ध्यान दिया अक्सर आज कल दीदी ऐसे ही बैठती थीं। घर में भी। पर क्यों। मुझे पहले भी ऐसा लगा था पर ध्यान नहीं दिया था। वो ऐसे क्यों बैठती थी। मुझे समझ नहीं आया। हम इधर उधर की बाते करते रहे। दिन के तिन बज गए। मैंने दीदी को कहा दीदी आपकी पिक ली जाए यहाँ। वो तुरत मन गईं। मैंने मोबाइल का कैमरा ओन किया और उनके कई सरे पिच खिचे। (आई डोंट क्नोव हाउ तो पोस्ट हियर प्ल्ज़ हेल्प सो मैं यहाँ पोस्ट कर सकूँ ) फिर मैं कैमरे का औओ माटिक मोड ओन किया और एक फोता साथ में ली। ऐसा करते वक़्त दाहिने हाथ से मैंने कैमरे को पकड़ रखा था और दूसरा हाथ दीदी के चुत्डो पर पहुँच गया। दीदी कुछ नहीं बोलीं। पिच खीचने के बाद हम आगे बढ़ने लगे पर मेरा बयां हाथ वहीँ था। अचानक दीदी ने कहा सोनू मुझे न बाथरूम जाना है। यहाँ कहाँ बाथरूम मिलेगा कोई जगह देख लो। उन्होंने शर्मा के इधर उधर देखा और एक पदों के झुरमुट की और बढ़ गईं। थोड़ी देर बाद मैं भी नजर बचा के उधर जाने लगा। मैंने थोड़ी दूर से देखा। दीदी तो वहां कुछ और कर रहीं थी। पीछे पलट के अपने गांड देखने की कोशिश कर रहीं थी। और नहीं दिखने के कारन एक ऊंगली से छू के उसका जाएजा ले रहीं थी। मैंने ध्यान से अपने फेवरेट दीदी के चुतरो को देखने लगा। मैंने देखा दीदी के बैन वाले चुतरोन पे दो फफोले पद गए थे। शायद उस दिन की धक्का मुक्की में पर गएँ हो। और तभी मुझे समझ में आया की दीदी बैठते वक़्त अपने चुत्रों को खास अंदाज में क्यों फैलाती थीं। मेरे शैतानी दिमाग ने तेजी से कम करना शुरू किया। मैं आगे बढ़ा और ठीक दीदी के पीछे जाके खड़ा हो गया। आने की आहात से दीदी पलटी और मुझे देख कर एक दम से घबरा गईं। आँखे तरेरते हुए बोलीं तू यहाँ क्या कर रहा है। मैं तैयार था। आपकी मदद करने आया हूँ। तू बभी जा यहाँ से मुझे कुछ नहीं सुनना और उन्होने अपने कपडे पहने शुरू कर दीये। मेरे अन्दर का शैतान अब जग चूका था मैंने दीदी का हाथ पकड़ा और कहा क्या आपने पहली बार किसी को दिखाया है या फिर मैंने पहली बार देखा है आपका ये। दीदी का गुस्सा घबराहट में बदल गया। मैंने दीदी को उसी हालत में अपने गले लगा लिया और बोला दीदी दरो नहीं, पर अगर आपने इसे किसी डॉक्टर को नहीं दिखाया तो सारे शरीर में फ़ुंसियाँ हो जाएँगी। मैंने अपना एक हाथ उनकी गांड पे रखा हुआ था। अचानक मेमैने एक खुरदुराहट महसूस की और देखा तो एक फुंसी हो रही थी जो अब सूख रही थी। मैंने उस पर उँगली रखते हुए कहा- ओह ! यह तो बहुत बड़ी हो रही है !अगर आज इसकअ इलाज नहीं हुआ तो २-३ दिन बाद तो तुम बैठ भी नहीं पाती ! दीदी अगर मम्मी को पता चला तो तुम जानती हो वो समझ जाएंगी ये क्यों हुआ और फिर आप कुछ नहीं कर पाओगे। आप देख नहीं प् रहे की आपके पीछे कितना बड़ा घाव हो सकता है। आप चाहो तो मैं आपकी मदद कर सकता हूँ देखने में . मैंने दीदी को कहा आप मेरा विश्वास करो मैं सिर्फ आपकी मदद कर रहा हूँ और कुछ नहीं। दीदी : मैं कुछ समझी नहीं आप उल्टा खड़े हो जाओ । पीछे घूम जाओ और पैंटी लूज़ करो .. दीदी ने अब विरोध करना छोर दिया। मैंने उनको सामने झुकाया और पैंटी खिंची और उनकी गान्ड एक्सपोज़ कर दी। और मैंने उनके हाथो को पकड़ा और उनके हाथो से ही उनकी चुतद को फैला दिया। दीदी का चुतद मुझे साफ साफ़ नजर आ रहा था। ऊपर नीला आसमा . निचे पेड़ो की हरियाली दूर गिरता झरना और सामने अपनी गोरी सी गांड दिखाती मेरी दीदी। काश वक़्त यहीं थम जाए। दर्शन कहता है कि कोई आत्मा इस संसार में इसलिए आई है कि उसे स्वयं को दिखाना है और कुछ देखना है। पाँचों इंद्रियाँ इसलिए हैं कि इससे आनंद की अनुभूति की जाए। प्रत्येक आत्मा को आनंद की तलाश है। आनंद चाहे प्रेम में मिले या संभोग में। आनंद के लिए ही सभी जी रहे हैं। सभी लोग सुख से बढ़कर कुछ ऐसा सुख चाहते हैं जो शाश्वत हो। क्षणिक आनंद में रमने वाले लोग भी अनजाने में शाश्वत की तलाश में ही तो जुटे हुए हैं अचानक दीदी ने कहा हो गया। मैं मनो नींद से जागा और फिर मैंने अपना मोबाइल का कैमरा ओन किया और एक एक करके तिन चार फोटो ले ली। और फिर दीदी को उनकी गांड की पिक दिखाने लगा दीदी ने शर्म के मारे नजरें नीची कर ली और और आँखे बंद कर ली थी। मैंने उनको मोबाइल पकड़ा दिया और फिर थोड़ी दूर जेक खड़ा हो गया। दीदी ने मुझे न पाके इधर उधर देखा और फिर मोबाइल देखने लगी, मैं दूर खड़ा बस ये देख रहा था। धीरे धोरे दीदी की में शर्म कम और चिंता की नजरे बढ़ रही थी। फिर वो पलटी और मैं भोला भला बनते हुए ये देख कर इधर उधर देखने लगा। दीदी ने धीरे धीरे मेरी ओर आगें थी। उन्होने धीरे से मेरी और मोबाइल बढाया। हम दोनों चुप चाप आगे बढ़ चले। पञ्च मिनट तक किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। अचानक हमें दूर एक सैलानी जोड़ा किलोल करते नजर आया। शायद कोई विदेशी था। दोनों झरने से निकलती पहाड़ी नदी में किलोल कर रहा था। मैं और दीदी कौतुहल वश उसकी और देखने लगे। वो नहाते नहाते कामुक क्रियाएँ कर रहे थे। मैंने इधर उधर आगे बढ़ के प्राकृतिक दृश्यों के फोटो लेना शुरू किया। 15-20 मिनट बाद मैंने देखा तो दीदी अभी भी उन विदेशिओन के तरफ देख रहीं थी। मैंने उनको आवाज दी: दीदी दीदी आओ आपकी कुछ पिक लूँ। दीदी ने बड़ी अदा से अपनी भौंहे सिकोड़ी : क्यों मैं: अरे ऐसा क्यों, नहीं खिंचवानी तो बोल दो। दीदी: अच्छा, जी। मैं: चलो मेरी तो खिंच दो। दीदी: उम् ठीक हैं। मैंने मोबाइल का फ़्लैश ओन करके दीदी को दे दिया और उन्होने मेरी कुछ फोटो ले लीं। फिर मैंने दीदी को साथ आने को कहा और फिर खुद से एक हाथ आगे बढ़ाके फोटो लेनी शुरू की। पहले साथ साथ खड़े होके। फिर हाथ पकड़ के . फिर एक हाथ से उनके कंधे पकड़ के। फिर अपने कंधे पर उनका सर झुका के। मैंने दीदी को कहा "चलो उधर नदी की तरफ चलें।" दीदी "उधर नहीं मैं थक चुकी हूँ अब" मैं" अरे आप घुमने आए हो या थकने, चलो चलो" दीदी" नहीं अभी रुकते हैं फिर थोड़ी देर मे" मैं: ठीक है कह के पास में बैठ गया दीदी भी पास आके बैठ गईं। मैंने अपना सर उनकी गोद में टिका दिया और गया। दीदी ने प्यार से को शुरू किया। मैंने दीदी को कहा " दीदी आप हो दीदी "अच्छा जी" मैंने लेते लेते ही अपना फोन निकल और एक फोटो दीदी की गोद में ले ली, और उठ के बैठ गया। मैंने जबरदस्ती दीदी को अपनी गोद में सुला लिया और फिर से फोटो ले ली। फिर हम दोद्नो धीरे धीरे नदी की और बढ़ चले। वहां पहुँच लके मैंने दीदी को कहा दीदी झरने के सामने एक फोटो लूँ क्या आपकी। उन्होने अपनी अदा से बस हौले से मुस्कुरा दिया। हमारे पास में ही वो विदेशी सैलानी जोड़ा मौजूद था पानी में किलोल करता हुआ। मैंने फोटो लेने के बाद उनको फोन पकडाया और नदी में घुस गया नहाने के लिए। दीदी को बुलाया और उन्होने मना कर दिया। मुझे यद् आ गया बचपन में जब दीदी ऐसी करती थीं तो मैं उनपे पानी फेंक देता था। पर यहाँ कोई बाल्टी तो थी नहीं। मैं बाहर निकला दीदी को पकड़ा और पानी में घसीट लिया। दीदी इस हमले के लिए तैयार नहीं थी। वो पूरी भीग गईं। पहले उन्होने बनावती गुस्से से आँखे तरेरी और फिर नहाने में मशगुल हो गईं। हम बस एक दुसरे की ओर पानी फेंकते हुए आगे बढ़ने लगे। दीदी चलो एक खेल करते हैं पानी के अन्दर कौन ज्यादा देर रुकता है। दीदी रेडी हो गईं। हम दोनों ने नाक बंद किया और फिर पानी के अन्दर चले गए। कभी दीदी जीतती कभी मैं। ऐसा कितनी देर तक चलता रहा। अभी कुछ देर बीते थे की दीदी पानी से बाहर आइ और लम्बी लम्बी साँसे लेने लगी। मेरा ध्यान उनकी छातीओं पे गया जिसको उनकी प्यारी गांड के चक्कर में मैं इगनोर कर रहा था। दीदी ने सहारे के लिए अपना हाथ बढाया और मैंने आगे बढ़ के उनको पानी में से गोद में उठा लियाअपना हाथ उनके पिछवाड़े पे लगा के । हम पानी से बहार आए। मैने अपने कपडे उतारे शुरू किए की तभी अचानक दीदी की आवाज आई "सोनू कपडे तो गाड़ी में हैं, , पर गाड़ी तो दूर है और इतने ठनडे पानी में मेरी तो हालत खरंबी हो जाएगी सोनू। मैं पलटा पर दीदी की ओर, उनका भीगा बदन कहर ढा रहा था। तभी मेरा ध्यान उस विदेशी जोड़े की और जिसे हम शुरू से देखे जा रहे थे। लगभग नंग धरंग। दोनों ने एक छोटी सी चड्डी पहनी थी। दीद आप ऐसा करो उस पहरी के पीछे जएके कपडे उतर दो मैं गाड़ी से लेके आता हूँ। पर पर वर कुछ नहीं main गया और आया। मैंने उन dono की ओर इशारा किया और कहा men please care my sis मैं भागते हुए गाड़ी की तरफ बाधा, मुझे पता था आते जाते 20 मिनट लगने है और तभी मेरे दिमाग में एक शरारती आईडिया आया, . गाड़ी पहुँच के मैंने कपडे लिए और वापस आया। दीदी ठण्ड से काँप रहीं थी। मैंने पूछा आपने अभी तक कपडे क्यों पहन रखे हैं। अरे तूने सिर्फ ये अन्दर वालें कपडे लिए हैं। बाकि मैंने कहा बाकि आप ले नहीं। ऐसा कैसे हो सकता है। अब आप जाओ नहीं तो ठण्ड लग जाएगी। दी जल्दी से एक टीलेनुमा जगह की ओत में गईं। इस बिच में वो सैलानी मेरे पास और अपने साथ लाइ हुई चाय ऑफर की। तभी दीदी आ गईं टू पिस कपड़ों में अपना हाथ छुपाते हुए। विदेशी लड़की ने दीदी को चाय ऑफर की और मुझे भी। लेडी ने दी को एक बड़ा सा गाउन दिया जिससे दीदी थोड़ी कम्फर्ट फील करें। मेल ने मुझे अंग्रेजी में कहा जिसका मतलब कुछ कुछ ऐसा था की आप मेरा ब्लू टूथ इनेबल्ड कैमरा उसे करो फोटो के लिए। मैं चाय की चुस्कियों के साथ मुस्कुराता हुआ दीदी के बदन को निहारता रहा। काफी देर तक बाते होतीं रहीं और फिर फीमेल ने दीदी को एक साथ में फोटो के लिए कहा। दीदी मेरी उम्मीद के उल्टा तैयार हो गयीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: मेरी बड़ी बहन की कातिल जवानी - by neerathemall - 08-03-2024, 03:35 PM



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