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Incest मेरी बड़ी बहन की कातिल जवानी
#89
फिर दीदी. ने अपनी अड़खुली पंखुड़ी सी चूत को ऊँगलिओन से सहलाती और फिर ऊँगलिओन को होठों से चाटते हुये उसे खूब प्यार किया। दीदी ने अपनी आंखें मस्ती में बन्द कर ली. पहले छोटी फिर ऊससे बड़ी और फिर बीच वाली ऊँगली को. पूरी गहराई तक जा अनदर बाहर करते करते अचानक ऊनके मुख से सिसकियाँ निकलने लगी. वो अब दीवार के सहारे लेट सी गई और फिर अपनी पीछे से गांद को आगे की ओर हवा में ऊछालने लगीं. दीदी की हालत वासना से बुरी हो रही थी। चूत देख कर ही लग रहा था कि बस इसे एक मोटे लण्ड की आवश्यकता है. मेरी हालत बहुत ही नाजुक हो रही थी। मैं कभी भी झड़ सकता था। मैं इधर बेतहाशा अपने लॅंड को तेजी के साथ पीट रहा था,आख़िरकार बेचारा लण्ड अन्त में चूं बोल ही गया। तभी दीदी भी निस्तेज सी हो गई। उसका रस भी निकल रहा था। दोनों के गुप्तांग जोर लगा लगा कर रस निकालने में लगे थे। दीदी ने अपने शरीर को पसार दिया था। उसकी जुल्फ़ें चेहरे को छुपा चुकी थी। बस एक दीवार के इस ओर मैं और दीवार के ऊस ओर मेरी प्यारी दीदी, हम दोनों गहरी-गहरी सांसें ले रहे थे। अचानक पिच्चे कुच्छ आवाज़ हुई और मैं मानो होश में आया और ऊस्की ओर भागा... मम्मी आ चुकी थी और मैं एक शरीफ बच्चे की तरह वापस अपने कमरे में शांति से बात चुका था. मेरे दिमाग़ में एक बात घूम रही थी की अचानक ऐसा क्या हो गया था दीदी को. ऊँके गोल चूतड़, और ऊन चूतदों के बीच छीपी हुई सुंदर सा गॅंड का भूरा सा छेद, सुंदर बलखाती चुचियाँ और प्यारी सी नाभि.... कोई भी देख ले तो पागल हो जाएगा. पर मुझे इस बात की हैरानी हो रही थी की पहली बार दीदी को इतना ऊतेज़ीत जो देखा था. ये बात मुझे हर बार खाए जा रही थी. आख़िर ऊस दिन पार्टी में दीदी के साथ ऐसा क्या हुआ था. इस घटना को दो दिन बीत गये. पर मैं जागते सोते हंसते गाते बस यही सपना देखता रहता था. मेरे दिल में कितनी हलचल मची थी इसे मैं शब्दो में बयान नहीं कर सकता. पर हन दिमाग़ में जो था वो ज़रूर कह सकता हूँ. दीदी के साथ अब तक तीन लोगों ने जितना मुझे पता था मज़े लिए थे. इनमे से एक ऊस अंकल को मैं खदेर चुका था. दूसरे से इतना घबराने की ज़रूरत नहीं थी. पर मेरे और दीदी के बीच सबसे बड़ी दीवार ऊनका प्रेमी था ऊसे कैसे अपने रास्ते से हटॉन. मैं इतनी प्रतीक्षा के बाद यही चाहता था की बस अब दीदी खुद को मुझे सौंप दे. अपनी मर्ज़ी से अपने आप ही. मैने बैठे बिताए एक योजना बनाई और फिर ऊस्के मुताबिक़......................... मम्मी आ चुकी थी और मैं एक शरीफ बच्चे की तरह वापस अपने कमरे में शांति से बात चुका था. मेरे दिमाग़ में एक बात घूम रही थी की अचानक ऐसा क्या हो गया था दीदी को. ऊँके गोल चूतड़, और ऊन चूतदों के बीच छीपी हुई सुंदर सा गॅंड का भूरा सा छेद, सुंदर बलखाती चुचियाँ और प्यारी सी नाभि.... कोई भी देख ले तो पागल हो जाएगा. पर मुझे इस बात की हैरानी हो रही थी की पहली बार दीदी को इतना ऊतेज़ीत जो देखा था. ये बात मुझे हर बार खाए जा रही थी. आख़िर ऊस दिन पार्टी में दीदी के साथ ऐसा क्या हुआ था. इस घटना को दो दिन बीत गये. पर मैं जागते सोते हंसते गाते बस यही सपना देखता रहता था. मेरे दिल में कितनी हलचल मची थी इसे मैं शब्दो में बयान नहीं कर सकता. पर हन दिमाग़ में जो था वो ज़रूर कह सकता हूँ. दीदी के साथ अब तक तीन लोगों ने जितना मुझे पता था मज़े लिए थे. इनमे से एक ऊस अंकल को मैं खदेर चुका था. दूसरे से इतना घबराने की ज़रूरत नहीं थी. पर मेरे और दीदी के बीच सबसे बड़ी दीवार ऊनका प्रेमी था ऊसे कैसे अपने रास्ते से हटॉन. मैं इतनी प्रतीक्षा के बाद यही चाहता था की बस अब दीदी खुद को मुझे सौंप दे. अपनी मर्ज़ी से अपने आप ही. मैने बैठे बिताए एक योजना बनाई और फिर ऊस्के मुताबिक़ मुझे दो कम करने थे पहले तो ये पता करूँ की दीदी का ये चोदु बाय्फ्रेंड है कौन और दूसरा दीदी का विश्वास जीतना ऊन्हे बताना की ऊँके लए सबसे बेहतर ऊँका ये छ्होटा प्यारा भाई ही है और दूसरा कोई नहीं? वैसे तो ऊन्को इतना सबकुच्छ देखने के बाद आसानी से ब्लॅकमेल काइया जा सकता था पर नहीं मैं चाहता था दीदी के लए मेरा वही स्थान हो जो ऊँके प्रेमी का है. मैने अपना प्लान पे तेज़ी से अमल करते हुए दीदी के कंप्यूटर को खंगालने की ठानी. पर इसके लिए दीदी का घर से बाहर होना ज़रूरी था. जो मैं चाहता नहीं था. (शायद मैं कंप्यूटर देखूं और वो अपने बाय्फ्रेंड से cचुद बैठें). और कहा भी गया है की कुच्छ पाने के लए कुच्छ खोना पड़ता है. मैने एक रिस्क लिया जब दीदी नहाने जाएँ मैं बाथरूम में देखने के ऊँके कंप्यूटर को देखूं. अगले दिन सुबह सुबह जब दीदी नहाने के लए गईं तब मैने एक कम किया, धीरे से ऊँका कंप्यूटर ओं काइया और छत पढ़ना शुरू किया. दीदी: ये क्या बदतमीज़ी थी राज2002 - क्यों तेरे मान नहीं करता किसी से चुड़ाने का . राज2002-बोल ना मुझसे क्या शर्माना प्रीति214 - नहीं यार मुझे बहूत डर लगता है इन चीज़ों से राज2002- अरे मुझसे क्या डरना प्रीति214 - डरना तुमसे नहीं राज बट ऐसे पार्टी में सबके सामने अगर कोई हमें देख लेता तो राज2002- अरे कुच्छ नहीं होता तू बेकार दर गयी. अच्छा एक बात बता तेरी चूत में कैसी फीलिंग हो रही थी प्रीति214 - पागल हो गए हो दिमाग ख़राब है क्या तुम्हारा राज२००२- अच्छा चल एक बार दिखा तो दे मम्मी आ चुकी थी और मैं एक शरीफ बच्चे की तरह वापस अपने कमरे में शांति से बात चुका था. मेरे दिमाग़ में एक बात घूम रही थी की अचानक ऐसा क्या हो गया था दीदी को. ऊँके गोल चूतड़, और ऊन चूतदों के बीच छीपी हुई सुंदर सा गॅंड का भूरा सा छेद, सुंदर बलखाती चुचियाँ और प्यारी सी नाभि.... कोई भी देख ले तो पागल हो जाएगा. पर मुझे इस बात की हैरानी हो रही थी की पहली बार दीदी को इतना ऊतेज़ीत जो देखा था. ये बात मुझे हर बार खाए जा रही थी. आख़िर ऊस दिन पार्टी में दीदी के साथ ऐसा क्या हुआ था. इस घटना को दो दिन बीत गये. पर मैं जागते सोते हंसते गाते बस यही सपना देखता रहता था. मेरे दिल में कितनी हलचल मची थी इसे मैं शब्दो में बयान नहीं कर सकता. पर हन दिमाग़ में जो था वो ज़रूर कह सकता हूँ. दीदी के साथ अब तक तीन लोगों ने जितना मुझे पता था मज़े लिए थे. इनमे से एक ऊस अंकल को मैं खदेर चुका था. दूसरे से इतना घबराने की ज़रूरत नहीं थी. पर मेरे और दीदी के बीच सबसे बड़ी दीवार ऊनका प्रेमी था ऊसे कैसे अपने रास्ते से हटॉन. मैं इतनी प्रतीक्षा के बाद यही चाहता था की बस अब दीदी खुद को मुझे सौंप दे. अपनी मर्ज़ी से अपने आप ही. मैने बैठे बिताए एक योजना बनाई और फिर ऊस्के मुताबिक़ मुझे दो कम करने थे पहले तो ये पता करूँ की दीदी का ये चोदु बाय्फ्रेंड है कौन और दूसरा दीदी का विश्वास जीतना ऊन्हे बताना की ऊँके लए सबसे बेहतर ऊँका ये छ्होटा प्यारा भाई ही है और दूसरा कोई नहीं? वैसे तो ऊन्को इतना सबकुच्छ देखने के बाद आसानी से ब्लॅकमेल काइया जा सकता था पर नहीं मैं चाहता था दीदी के लए मेरा वही स्थान हो जो ऊँके प्रेमी का है. मैने अपना प्लान पे तेज़ी से अमल करते हुए दीदी के कंप्यूटर को खंगालने की ठानी. पर इसके लिए दीदी का घर से बाहर होना ज़रूरी था. जो मैं चाहता नहीं था. (शायद मैं कंप्यूटर देखूं और वो अपने बाय्फ्रेंड से cचुद बैठें). और कहा भी गया है की कुच्छ पाने के लए कुच्छ खोना पड़ता है. मैने एक रिस्क लिया जब दीदी नहाने जाएँ मैं बाथरूम में देखने के ऊँके कंप्यूटर को देखूं. अगले दिन सुबह सुबह जब दीदी नहाने के लए गईं तब मैने एक कम किया, धीरे से ऊँका कंप्यूटर ओं काइया और छत पढ़ना शुरू किया. दीदी: ये क्या बदतमीज़ी थी राज2002 - क्यों तेरे मान नहीं करता किसी से चुड़ाने का . राज2002-बोल ना मुझसे क्या शर्माना प्रीति214 - नहीं यार मुझे बहूत डर लगता है इन चीज़ों से राज2002- अरे मुझसे क्या डरना प्रीति214 - डरना तुमसे नहीं राज बट ऐसे पार्टी में सबके सामने अगर कोई हमें देख लेता तो राज2002- अरे कुच्छ नहीं होता तू बेकार दर गयी. अच्छा एक बात बता तेरी चूत में कैसी फीलिंग हो रही थी प्रीति214 - पागल हो गए हो दिमाग ख़राब है क्या तुम्हारा राज२००२- अच्छा चल एक बार दिखा तो दे दीदी ने ऊस्के बाद लोग ऑफ कर दिया था. खैर मुझे बस ये पता करना था की ये है कौन मैने ऊस्की ईमेल आइडी चेक की पर पता नहीं चल पाया. मैंने दीदी का मोबाइल चेक कीया। मुझे शायद कोई नंबर मिल जाए। पास अफ़सोस ऐसा कुछ हाथ नहीं आया। अब एक ही रास्ता बचता था और वो था दीदी की जासूसी करने का। शायद कुछ पता चल जाए। मैंने छुप के पता करने की सोची की दीदी कहाँ जा रहीं है क्या करती है वगैरा वगैरा। दीदी अचानक से मेरे कमरे में आई और उन्होने कहा सोनू मेरा एक काम करेगा मैंने पूछा क्या मुझे अभी बाज़ार से कुछ कपडे लेन हैं और मम्मी मेरे साथ जाना नहीं चाहती। मैं फटा फट तैयार हो गया। हम दोद्नो जल्दी ही तैयार होक बाज़ार के लिए निकल पड़े। मैं जन बुझ कर उनके पीछे पीछे चल रहा था। मेरी प्यारी दीदी बहुत ही मादक अंदाज में अपने चुतडों को हिलाते हुए चल रही थी। वो अपनी गांड को बहुत ही मस्त अदा के साथ हिलाते हुए चल रही थी। उसके दोनो गोल-मटोल चुतड, जिनको कि मैं बहुत बार देखा चुका था, उसकी घुटनो तक की स्कर्ट में हिंचकोले लेते हुए मचल रहे थे। मेरी बहन के चलने का यहां अंदाज मेरे लिये लंड खडा कर देने वाला था। उसके गांड नचा कर चलने के कारण उसके दोनो मस्त चुतड, इस तरह हिलते हुए घूम रहे थे कि, वो किसी मरे हुए आदमी के लंड को भी खडा कर सकते थे। मेरी बहन अपने मदमस्त चुतडों और गांड की खूबसुरती से अच्छी तरह से वाकिफ थी, और वो अक्सर इसक बॉयफ्रेंड को उत्तेजित करने के लिये करती थी। जैसा की आप जानते हैं की उनकी गांड काफि खूबसुरत और जानमारु थी। हम .......मॉल में आ गए थे। दीदी ने शौपिंग करना शुरू किया और आदत के मुताबिक कभी इस दूकान तो कभी उस शॉप पे घूम रहीं थी। काफी देर हो गई मैंने दीदी को कहा अब चलो भी पर दीदी बार बार अपनी मोबाइल की देख रहीं थी। मैं समझ गया दीदी अपनी आदत के मुताबिक अपने बॉयफ्रेंड से चाट में लगी है। उन्होने अचानक कहा सोनू तू रूक मैं आधे घंटे में आती हूँ। मैंने पूछा तुम कहाँ जा रही हो तो उन्होने कहा की मुझे कुछ कपडे लेने हैं। मैंने गुस्से में पूछा अब कौन से कपडे बचे हैं, और मैं क्यों नहीं जा सकता। दीदी ने धीरे से शर्मा के मेरे कान में कहा वो अन्दर के कपडे हैं उल्लू। मैं थक के वहीँ बैठ गया। मौल में इतनी साडी लडकिया आई हुईं थी। सब के सब एक से एक आधुनिक कपड़ो में। कुछ तो इतनी ज्यादा चिपके हुए कपडे पहने हुए थी की शारीर की साडी सुन्दर्ताओं का पता चल रहा था, पर उनमे से कोई भी दीदी के जैसी नहीं थी। यही सोचते सोचते शायद 10 मिनट बीते होंगे की मुझे लगा की मुझे दीदी को देखना चाहिए। मैं उठा और उधर जाने लगा जिधर दीदी गयीं हुई थी। और अचानक मेरी आँखे खुली की खुली रह गयी। दीदी मुझे एक शॉप में बिठा के अपने बॉयफ्रेंड से मिलने आई थी। और ये और कोई नहीं मेरा दोस्त रजनीश था जो दीदी से मजे करता था। दोनो मॉल की भीड़ में बेशर्मो की तरह गले में हाथ डाले . रजनीश का एक हाथ कंधे से होते हुए दीदी की चुचिओं को रगड़ रहा था और दूसरा उनके मोटे प्यारे से पिछवाड़े को। दोनो मॉल के अंडरग्राउंड वाले पार्किंग की तरफ जा रहे थे। ये पार्किंग उन लोगों के लिए थी जो मंथली बेसिस पर अपनी gadi पार्क करते थे, chhuti का दिन होने से वहां किसी के आने का चांस काफी कम था। शायद रजनीश ने भी वहीँ अपनी गाड़ी पार्क की होगी। मैं छुपके उनको देख रहा था। मैं सावधानी से उनकी और बढ़ रहा था। दोनों एक कार के अन्दर चले गए। मुझे साफ़ साफ़ कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पर फिर भी मैं मुश्किल से देख प् रहा था। रजनीश ने दीदी की पन्त के ऊपर से ही उसकी चूत और गांड को कस कर चुमा, उसके मांसल चुतडों को अपने दांतो से काटा और उसके बुर से निकलने वाली मादक गंध को एक लम्बी सांस लेकर अपने फेफडों में भर लिया। और पुछा तूने कच्छी भी नहीं पहनी फिर चूची दबाने लगा और थोड़ी देर बाद और उसका नाड़ा खोल दिया। मैं देख नहीं प् रहा था पर शायद वो चूत पर हाथ फेरने लगा। और एक उंगली उसकी चूत में डाल दी। दीदी चिंहुक गई। दीदी ने भी उसके काछे में हाथ दाल दिया और रजनीश का लंड निकाल कर जो उस समय पूरे उत्थान पर था, उसे पकड़ कर हिलाने लगी। रजनीश ने एक उंगली उसकी चूत में डाल दी, फिर दो उंगलियाँ अन्दर डाल दी। कोई देख न ले इसलिए अचानक से वो पीठ के बल कार में लेट गया और दीदी को झुका लिया। फिर अचानक ही दीदी की मांसल, कंदील जांघो को अपने हाथो से कस कर पकडते हुए, उसकी पेन्टी के उपर से ही उसकी चूत चाटने लगा। दीदी का टाइट trouser गीला हो रहा था। फिर वो थोडा हिल और सिट पे लेट गया। उसने अपने पेन्ट और अंडरवियर को खोल कर अपने लैंड को आजादी दे दी। उसको ऐसा करने से दीदी की उत्तेजना बढ गई थी। वो अपनी गांड को नचाते हुए, अपनी चूत और चुतडों को चेहरे पर रगडवा रही थी। फिर उसने धीरे से मेरी बहन की पन्त में हाथ दल के उसके खूबसुरत चुतडों को सहलाने लगा। मैं सोच सकता था की दीदी के मैदे जैसे, गोरे चुतडों की बिच की खाई में भुरे रंग की गांड, जो की एकदम किसी फूल की कली की तरह लगती थी और उसी गांड के निचे गुलाबी पंखुडियों वाली उसकी चिकनी चूत के होंठ फडफडा रहे होंगे को छू कर कैसा लग रहा होगा । रजनीश ने अपने हाथो को धीरे से उसके चुतडों और गांड की दरार में फिराया, फिर धीरे से हाथो को सरका कर उसकी बिना झांठो वाली चूत के छेद को अपनी उन्गलियों से कुरेदते हुए, सहलाने लगा। उनको ऐसा करे देख कर मैं थोडा और आगे बाधा और एक वैन के पीछे जा खड़ा हुआ जहाँ से सबकुछ दिख रहा था। रजनीश की उन्गलियों पर दीदी की चूत से निकला रस लग गया था। और वो उसे अपनी नाक के पास ले जा कर सुंघा, और फिर जीभ निकल कर चाट लिया। मेरी प्यारी बहन के मुंह लगातार सिसकारीयां निकल रही थी। फिर अचनाक से रजनीश ने लैंड बहार निकल लिया और दीदी को चूसने के लिए बोल। दीदी न नुकुर करने लगी। उसने जबरदस्ती दीदी को निचे धकेलना चाहा और दीदी के मुह से घुटी घुटी सी एक चीख निकल गई। उन dono ने घबरा के इधर उधर देखा और किसी को न पाकर निश्चिन्त हो गए। पर मैं नहीं। क्योंकि मैं जो देख रहा था वो दोनों नहीं देख प् रहे थे। पार्किंग के दो गार्ड उन दोनों को देख कर मजे ले रहे थे। अचानक दोनों आगे बढ़ने लगे। इन सबसे अंजान रजनीश अभी भी दीदी को अपना लैंड चाटने के लिए मजबूर कर रहा था। तभी पीछे से एक ने आकर रजनीश की बांह पकड़ ली और दुसरे ने दीदी को घसीट कर पार्किंग के कोने में ले जाना चाह। दोनों की हालत देखने लायक थी। उनके रंग में भंग तो pada ही था शायद आगे इससे भी ज्यादा बूरा होने वाला था। एक मुस्टंडे ने जोर से एक पंच रजनीश के मुंह पे मारा। मुह से हल्का सा खून निकलने लगा और वो थोड़ी दूर जाके गीरा। उसने आव देखा न तव और भागना शुरू कर दिया। उसकी जेब से दो पेंटी गिरी। didi को bachane के बदले rajneesh भाग खड़ा हुआ। दीदी रो रहीं थी और कुछ भी नहीं कर रहीं थी। क्योंकि ऐसी हालत में उनकी pol खुल जाती एंड उनका मुंह जोर से बंद कर था उन दोद्नो ने। मैं अब तक छुपा हुआ ये सब देख रहा था। पर अब और नहीं। मैंने नजरे दौड़ाई और मएरे हाथ कुछ लगा। मैं आगे बढ़ा और उस गार्ड के को जिसने दीदी को पकड़ा हुआ था पीछे से सर पे दे मारा। वो वहीँ गिर गया शायद बेहोश हो कर दूसरा इस हालत में हक्का बक्का रह गया। उसने आव देखा न तव और अचानक हुए इस हमले से वो दर के भाग ने लगा। मैंने उसे भी पीछे से उसी रौड से वर किया और वो भी वहीँ गीर पड़ा। मैं उसे तब तक मारता रहा जब तक वो बेहोश न हो गया हो। फिर दीदी की और बढा और मेरी नजर रजनीश के जेब से गिरे हुए ब्रा और पांति पे पड़ी। मैंने उन्हें उठआते हुए दीदी को कहा 'ये रही आपकी शौपिंग।" अब चलें।" वो बूत बने हुए चलने लगि। मैंने पलट के देखा तो मुझे उनकी हालत का ध्यान आया। और अपने हाथों से उनके कपडे ठीक किए। धक्का मुक्की में उनके कपडे थोड़े फट गए थे और पेंट का नाडा भी खुला पड़ा थाजिसे वो हाथों से पकडे थी । मैंने आज ख़रीदे हुए कपड़ो का बैग निकाला और बिना दीदी से पूछ उनको पह्नानाने लगा। बिना पूछे उनकी फटे कपड़ों से झांकती बाई चूची हाथ से पकड़ के को ब्रा के अन्दर किया। और उनकी गांड सहलाते हुए दीदी के फटे हुए सलवार के ऊपर से एक और सलवार पहना दिया। वहाँ से निकलना जरुरी था। सबकुछ सिर्फ 45 मिनट के अन्दर हुआ था। मैं तेजी से दीदी के साथ बहार आया। दीदी के कपडे और सामान को लेके हम मॉल के बहार आ गए। मैंने दीदी से कहा काफी देर हो चुकी है हमें जल्दी घर पहुचना चाहिए। तभी अचानक से मेरी जेब में पड़ी दीदी के फोन की घंटी बजी। मम्मी का फोन था। मैंने कहा बस पहुँचने वालें हैं चिंता की कोई बात नहीं . मैं दीदी को खाना खिलाने चला गया था और इसी लिए देर हो गई। दीदी अभी भी चुप थीं और उन्होने मेरी और अहसान भरी नजरे उठा के देखा।मैंने दीदी को बाँहों में ले लिया और वैसे ही घर की और आने लगा। मैंने चलते चलते दीदी के सरे बिखरे बाल हाथों से थक कर दीइ। दीदी ने मेरे कंधे पे अपना सर टिका रखा था। घर पहुँचते पहुँचते दीदी ने सिर्फ दो शब्द कहे: सोनू मम्मी को मत बताना plz. मैंने मुस्कुरा दिया और दीदी के खूबसूरत चेहरे को अपनी छाती में छुपा लिया। हम घर pahunch गए। मम्मी ने पूछा इतनी देर कहाँ लगा दी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: मेरी बड़ी बहन की कातिल जवानी - by neerathemall - 08-03-2024, 03:34 PM



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