27-02-2024, 01:58 PM
अब आगे :
और मेरा देखना हुआ सामने
कामना को
सामने एक कुर्सी पे
एक लाल साड़ी में लिपटी
एक १७ वर्स की गुडिया, छुई मूई सी , एक दम गोरी सी , प्यारी मुस्कान चेहरे पे , नीचे मुंह किए बैठी थी
शायद विनिता उसके पास जा के कही : ये जीजाजी है , चलो पांव छू लो
और मैंने देखा ,
उसका प्यारा चेहरा धीरे धीरे ऊपर उठते हुए , मानो सूर्य उदय हो रहा हो
उसकी प्यारी आंखे मुझसे मिली , मानो कह रही हो : जीजाजी , अपनी बनाओगे मुझे ?
चेहरे पे हल्की मुश्कुरुहाट ला, हल्के से उठने की चेष्टा की , और कुर्सी से उठ मेरी ओर नीचे मुंह किए बढ़ी
थे तो वो ७ कदम उसके मेरी ओर आने ,
मानो एक एक कदम हमारे दोनो के मिलन का कदम था , अगले ७ जन्मों के लिए
एकदम पास आ , वो , मेरी कामना , झुकी मेरे पांव छूने
मैंने उसे झट से रोक लिया , दोनो कंधो को पकड़ : अरे अरे ठीक है , हो गया , अब बैठ जाओ
मन तो कर रहा था ,
उन कंधो को दबा , उसे गोदी में बैठा , सबके सामने ही , चूम लूं
कंधो को पकड़े पकड़े ही , हमारी आंखे मिली
मैंने दो चीज अनुभव की
पहली : शायद उसकी आंखे बहुत ही नशीली है , एक दम भीतर तक चीरने दिल को
दूसरी : वछ स्थल , यानी छाती पे गोलाइयां भी पूर्ण है , न्योता देती हुई
मैंने उसके कंधे छोड़ दिए , वो शरमाते हुए घूमी , वापस अपनी कुर्सी पे जाने
उफ्फ, फिर वो ७ कदम
मेरी नज़र अब उसके पीछे थी
मानो एक बड़ा ब्रह्मांड धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है , मस्ती में
मैं उसके इस बड़े धरातल को देख , उस मतवाली चाल को देख पूरा खो सा गया
और मेरा एक हाथ , मेरे जगनाथ पे , स्वत; ही आ गया
और मेरा देखना हुआ सामने
कामना को
सामने एक कुर्सी पे
एक लाल साड़ी में लिपटी
एक १७ वर्स की गुडिया, छुई मूई सी , एक दम गोरी सी , प्यारी मुस्कान चेहरे पे , नीचे मुंह किए बैठी थी
शायद विनिता उसके पास जा के कही : ये जीजाजी है , चलो पांव छू लो
और मैंने देखा ,
उसका प्यारा चेहरा धीरे धीरे ऊपर उठते हुए , मानो सूर्य उदय हो रहा हो
उसकी प्यारी आंखे मुझसे मिली , मानो कह रही हो : जीजाजी , अपनी बनाओगे मुझे ?
चेहरे पे हल्की मुश्कुरुहाट ला, हल्के से उठने की चेष्टा की , और कुर्सी से उठ मेरी ओर नीचे मुंह किए बढ़ी
थे तो वो ७ कदम उसके मेरी ओर आने ,
मानो एक एक कदम हमारे दोनो के मिलन का कदम था , अगले ७ जन्मों के लिए
एकदम पास आ , वो , मेरी कामना , झुकी मेरे पांव छूने
मैंने उसे झट से रोक लिया , दोनो कंधो को पकड़ : अरे अरे ठीक है , हो गया , अब बैठ जाओ
मन तो कर रहा था ,
उन कंधो को दबा , उसे गोदी में बैठा , सबके सामने ही , चूम लूं
कंधो को पकड़े पकड़े ही , हमारी आंखे मिली
मैंने दो चीज अनुभव की
पहली : शायद उसकी आंखे बहुत ही नशीली है , एक दम भीतर तक चीरने दिल को
दूसरी : वछ स्थल , यानी छाती पे गोलाइयां भी पूर्ण है , न्योता देती हुई
मैंने उसके कंधे छोड़ दिए , वो शरमाते हुए घूमी , वापस अपनी कुर्सी पे जाने
उफ्फ, फिर वो ७ कदम
मेरी नज़र अब उसके पीछे थी
मानो एक बड़ा ब्रह्मांड धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है , मस्ती में
मैं उसके इस बड़े धरातल को देख , उस मतवाली चाल को देख पूरा खो सा गया
और मेरा एक हाथ , मेरे जगनाथ पे , स्वत; ही आ गया