22-02-2024, 06:08 PM
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मैंने अब रूपाली की चूचियों को छोड़ अपने हाथ को उसकी चूत की तरफ बढ़ा दिया।
जैसे ही मैंने अपने हाथों से उसकी चूत की पुत्तियों को छुआ तो रूपाली ने मेरे पेट पर कोहनी मार कर नीतू की तरफ देखते हुए मुझे आगे बढ़ने से रोकने की विनती की.
लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था।
जितना मैं उसकी चूत के दाने से खेलता, रूपाली उतना ही खुद के काबू से बाहर होती जा रही थी।
धीरे-धीरे रूपाली गर्म होने लगी थी और इस गर्मी को मैं लगातार उसकी गर्दन पर अपनी साँसे छोड़ कर और बढ़ा रहा था।
रूपाली अब न तो खुद खा रही थी और न ही मुझे खिल रही थी।
अचानक से मैंने अपने दायें हाथ की बड़ी उंगली उसकी चूत की गहराई में उतार दी।
अचानक हुए इस हमले से रूपाली के मुंह से कामुक आह्ह्ह निकल गई जिसे नीतू ने सुन लिया।
जब नीतू और रूपाली की आँखें आपस में मिली तो रूपाली ने शर्म से आँखें नीचे कर ली और हड़बड़ी में मेरे मुंह में तीन-चार निवाले ठूंस दिए।
मैं अपनी उंगली को बड़े प्यार से रूपाली की चूत में अंदर बाहर करने लगा।
कुछ देर बाद उसकी चूत गीली होने लगी थी और मेरे उंगली करने पर पच्च- पच्च जैसी आवाज़ करने लगी थी।
नीतू भी कनखियों से हमें देख रही थी। उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया था।
जब कभी मेरी नजर उसकी नजरों से टकरा जाती तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती।
उधर रूपाली का बुरा हाल हो रहा था; उसका बदन आग की तरह तप रहा था।
नीतू ने जल्दी-जल्दी खाना खाया और कमरे से सरपट भाग गई।
नीतू के जाते ही रूपाली उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े उठाते हुए मुझे डांटने लगी।
मैंने भी खाना खाया, कपड़े पहने और घर से बाहर घूमने निकल गया।
देर शाम बाद जब मैं घर लौटा तो देखा रूपाली और नीतू दोनों मिल कर खाना बना रही हैं।
मैं रूपाली के बेडरूम में जाकर टीवी देखने लगा।
थोड़ी देर खाना बन गया, सबने साथ में खाना खाया।
वे देवरानी जेठानी फिर से काम में व्यस्त हो गई और मैं कमरे में जाकर आराम करने लगा।
कुछ देर बाद रूपाली कमरे मे आई और मेरे बगल में लेट गई।
थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई।
शायद सारे दिन की थकान उस पर हावी हो गई थी।
मैंने कमरे की लाइट बंद कर दी और उसके बगल में लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।
लेकिन नींद तो मेरी आँखों से कोसो दूर थी; मेरी आँखों में रह-रह कर नीतू का कामुक बदन घूम रहा था।
मन कर रहा था की किसी तरह नीतू का जिस्म भोगने को मिल जाये।
नीतू के बारे में सोच-सोच कर लंड ने अकड़ना शुरू कर दिया था।
मैंने बगल में लेटी रूपाली की तरफ देखा.
इस समय वो मुझे अपनी वासना शांत करने के माध्यम से ज्यादा कुछ नहीं लगी रही थी।
मैंने अपने कपड़े उतारे और रूपाली की टांगों के बीच में बैठ गया। मैंने उसकी मैक्सी को ऊपर सरकाते हुए उसकी कमर तक पंहुचा दिया।
उसने चड्डी तो पहनी ही नहीं थी तो उसकी दोनों टांगों को खोल कर चूत में गच्च से लंड उतार दिया और उसकी चूत चोदने लगा।
कुछ देर के बाद रूपाली नींद में कसमसाते हुए बोली- क्या कर रहे हो? सो जाओ न … मैं भी बहुत थक गई हूँ।
लेकिन तब तक मेरे अंदर काम की इच्छा कई गुना बढ़ गई थी इसलिये मैंने उसकी मैक्सी के अंदर हाथ डाल कर उसकी चूचियों को दबोच लिया और आँखें बंद करके उसके होंठ को चूसते हुए चूचियां दबाने लगा।
मेरे ख्यालों में इस वक़्त मैं नीतू को चोद रहा था। मेरे हर धक्के पहले से तेज़ होते जा रहे थे।
थोड़ी देर में मौसी की चूत ने चिकनाई छोड़नी शुरू कर दी।
मैं भी सरपट धक्के लगाये जा रहा था कुछ देर बाद हम दोनों साथ में झड़ने लगे।
मैंने अपने लंड को उसकी चूत से बाहर निकल कर सारा माल उसकी मैक्सी पर गिरा दिया और लंड को साफ़ कर के रूपाली के बगल में लेट गया।
कुछ देर बाद रूपाली फिर से सो गई।
लेकिन मुझे नींद आ रही थी तो मैं वैसे ही जगता रहा।
मैंने अब रूपाली की चूचियों को छोड़ अपने हाथ को उसकी चूत की तरफ बढ़ा दिया।
जैसे ही मैंने अपने हाथों से उसकी चूत की पुत्तियों को छुआ तो रूपाली ने मेरे पेट पर कोहनी मार कर नीतू की तरफ देखते हुए मुझे आगे बढ़ने से रोकने की विनती की.
लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था।
जितना मैं उसकी चूत के दाने से खेलता, रूपाली उतना ही खुद के काबू से बाहर होती जा रही थी।
धीरे-धीरे रूपाली गर्म होने लगी थी और इस गर्मी को मैं लगातार उसकी गर्दन पर अपनी साँसे छोड़ कर और बढ़ा रहा था।
रूपाली अब न तो खुद खा रही थी और न ही मुझे खिल रही थी।
अचानक से मैंने अपने दायें हाथ की बड़ी उंगली उसकी चूत की गहराई में उतार दी।
अचानक हुए इस हमले से रूपाली के मुंह से कामुक आह्ह्ह निकल गई जिसे नीतू ने सुन लिया।
जब नीतू और रूपाली की आँखें आपस में मिली तो रूपाली ने शर्म से आँखें नीचे कर ली और हड़बड़ी में मेरे मुंह में तीन-चार निवाले ठूंस दिए।
मैं अपनी उंगली को बड़े प्यार से रूपाली की चूत में अंदर बाहर करने लगा।
कुछ देर बाद उसकी चूत गीली होने लगी थी और मेरे उंगली करने पर पच्च- पच्च जैसी आवाज़ करने लगी थी।
नीतू भी कनखियों से हमें देख रही थी। उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया था।
जब कभी मेरी नजर उसकी नजरों से टकरा जाती तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती।
उधर रूपाली का बुरा हाल हो रहा था; उसका बदन आग की तरह तप रहा था।
नीतू ने जल्दी-जल्दी खाना खाया और कमरे से सरपट भाग गई।
नीतू के जाते ही रूपाली उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े उठाते हुए मुझे डांटने लगी।
मैंने भी खाना खाया, कपड़े पहने और घर से बाहर घूमने निकल गया।
देर शाम बाद जब मैं घर लौटा तो देखा रूपाली और नीतू दोनों मिल कर खाना बना रही हैं।
मैं रूपाली के बेडरूम में जाकर टीवी देखने लगा।
थोड़ी देर खाना बन गया, सबने साथ में खाना खाया।
वे देवरानी जेठानी फिर से काम में व्यस्त हो गई और मैं कमरे में जाकर आराम करने लगा।
कुछ देर बाद रूपाली कमरे मे आई और मेरे बगल में लेट गई।
थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई।
शायद सारे दिन की थकान उस पर हावी हो गई थी।
मैंने कमरे की लाइट बंद कर दी और उसके बगल में लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।
लेकिन नींद तो मेरी आँखों से कोसो दूर थी; मेरी आँखों में रह-रह कर नीतू का कामुक बदन घूम रहा था।
मन कर रहा था की किसी तरह नीतू का जिस्म भोगने को मिल जाये।
नीतू के बारे में सोच-सोच कर लंड ने अकड़ना शुरू कर दिया था।
मैंने बगल में लेटी रूपाली की तरफ देखा.
इस समय वो मुझे अपनी वासना शांत करने के माध्यम से ज्यादा कुछ नहीं लगी रही थी।
मैंने अपने कपड़े उतारे और रूपाली की टांगों के बीच में बैठ गया। मैंने उसकी मैक्सी को ऊपर सरकाते हुए उसकी कमर तक पंहुचा दिया।
उसने चड्डी तो पहनी ही नहीं थी तो उसकी दोनों टांगों को खोल कर चूत में गच्च से लंड उतार दिया और उसकी चूत चोदने लगा।
कुछ देर के बाद रूपाली नींद में कसमसाते हुए बोली- क्या कर रहे हो? सो जाओ न … मैं भी बहुत थक गई हूँ।
लेकिन तब तक मेरे अंदर काम की इच्छा कई गुना बढ़ गई थी इसलिये मैंने उसकी मैक्सी के अंदर हाथ डाल कर उसकी चूचियों को दबोच लिया और आँखें बंद करके उसके होंठ को चूसते हुए चूचियां दबाने लगा।
मेरे ख्यालों में इस वक़्त मैं नीतू को चोद रहा था। मेरे हर धक्के पहले से तेज़ होते जा रहे थे।
थोड़ी देर में मौसी की चूत ने चिकनाई छोड़नी शुरू कर दी।
मैं भी सरपट धक्के लगाये जा रहा था कुछ देर बाद हम दोनों साथ में झड़ने लगे।
मैंने अपने लंड को उसकी चूत से बाहर निकल कर सारा माल उसकी मैक्सी पर गिरा दिया और लंड को साफ़ कर के रूपाली के बगल में लेट गया।
कुछ देर बाद रूपाली फिर से सो गई।
लेकिन मुझे नींद आ रही थी तो मैं वैसे ही जगता रहा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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