22-02-2024, 06:04 PM
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रूपाली को इस बारे में बता के सारा मजा खराब नहीं करना चाहता था। मैं अपनी कमर को आगे-पीछे करते हुए रूपाली के मुखचोदन का आनंद उठा रहा था।
नीतू अभी भी हमें छुप कर देख रही थी इसलिये मैंने भी अब उसे इससे ज्यादा और कुछ दिखाने का सोचा।
मैंने रूपाली से 69 की अवस्था में आने को बोला तो रूपाली तुरंत मान गई।
फिर मैंने अपनी जीभ को रूपाली की पनियाई चूत के ऊपर रखा और लप-लप करते हुए नीतू को दिखा कर चाटने लगा।
अपनी एक उंगली को उसकी चूत में डाल कर मैं उसकी चूत की फाँकों को जीभ से चाटने लगा। कभी उसकी चूत से उंगली निकाल कर चूसने लगता।
उधर रूपाली मेरे लंड को गप्प-गप्प करते हुए चूस रही थी और कभी मेरी गोलियों पर अपनी जीभ से कलाकारी कर देती तो मैं मचल उठता।
रूपाली की अब गर्म आहें निकलने लगी थी ‘आअह्ह … हह … ययय … उम्म्म …’
थोड़ी देर तक एक दूसरे के गुप्तांगों से खेलने के बाद रूपाली ने मुंह लंड को निकाल कर कहा- जल्दी से मुझे चोदो. बहुत देर हो गई है, कभी भी दीदी कमरे में आ सकती है।
मैं रूपाली की दोनों टांगों को फैला कर उनके बीच में बैठ गया और अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा।
रूपाली अपनी वासना को और अधिक काबू में नहीं रख सकी और अपनी चूत के रसीले होंठ को खोल कर लंड डालने का आग्रह करने लगी।
मैंने भी उसकी चूत के बाहर से निशाना लगाते हुए घप्प से एक बार में उसकी चूत में पूरा लंड ठोक दिया।
रूपाली शायद इस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं थी इसलिये उसके मुंह से आह्ह्ह जैसी एक घुटी हुई चीख निकल गई जिसे नीतू ने भी शायद सुन लिया होगा।
मैंने रूपाली की टांगों को फैला कर उसकी कमर की लय और अपने लंड की ताल का मेल करते हुए उसकी रसीली चूत का चोदन करने लगा।
रूपाली भी अपनी टाँगे अपने हाथों से खोल कर बाकी सारी दुनिया से अनजान चुदाई के सागर में गोते लगा रही थी।
उसे तो यह भी नहीं पता था कि उसकी जेठानी नीतू आज फिर हमें देख रही है।
उधर मैंने आगे झुक कर रूपाली के एक मम्मे को मुंह में भर लिया और दूसरे को बेदर्दी से मसलने लगा।
शायद मैं नीतू को दिखाने के चक्कर मे रूपाली के बदन को कुछ ज्यादा ही जोर से मसल रहा था।
जब भी मैं रूपाली के बदन को कहीं भी हाथों से रगड़ता तो वहां पर लाल निशान पड़ जाता।
रूपाली मेरे इस वहशीपन के कारण से अनजान थी। रूपाली की सांसें अब उसकी काबू से बाहर हो चली थी। अब वो अपने चरम बिंदु के अंत पर आ गई थी।
उसकी वासना का अंदाजा उसकी कामुक सिसकारियों से पता चल रहा था।
रूपाली ने अपनी टांगों का घेरा मेरी कमर पर कस दिया और आह्ह … सीईई … उम्म्म … ईस्स्श्श् जैसी कामुक आवाजें करते हुए मुझसे जोर से चुदाई करने को कहने लगी।
मैं भी अपनी शरीर की सारी शक्ति को अपने लंड पर एकत्रित करके उसकी चूत का कीमा बनाने में लग गया।
मेरे धक्के इतने तेज़ थे कि रूपाली का बदन तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगा इसलिये मैंने उसके स्तनों को छोड़ उसकी दोनों बाजुओं को ताकत से पकड़ते हुए चुदाई करने लगा।
अब मेरे हर धक्के पर उसकी दोनों चूचियां जोर जोर से झटके खाने लगी।
लगभग पन्द्रह मिनट से चली रही इस चुदाई में रूपाली अचानक मुझे अपनी ओर खींचते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों से चूमने लगी और अपने नाख़ून से मेरी पीठ को खरोंचने लगी।
उसकी चूत अब पानी से पूरी चिकनी हो गई थी और हर धक्के में फच्च- फच्च की आवाज़ कर रही थी।
फिर कुछ देर बाद रूपाली ने कांपना चालू कर दिया।
मैं समझ गया कि रूपाली की चूत से पानी निकलना शुरू हो गया है.
इसलिये मैं और तेजी से चुदाई करने लगा.
जब तक रूपाली झड़ती रही तब तक मैं उसे दोगनी रफ्तार से चोदता रहा।
रूपाली के पूर्ण रूप से झड़ जाने के बाद मैं उसकी चूत में लंड डाल हुए रुक गया।
कुछ देर बार रूपाली ने खुद को शांत किया और मुझे अपने ऊपर से अलग करने लगी- चलो हटो!
मैं- क्यों?
रूपाली- क्यों क्या! हो तो गया है और कितना करोगे?
मैं- तुम्हारा तो हो गया लेकिन मेरा नहीं हुआ अभी!
रूपाली- देखो कितनी देर हो गई है … दीदी कभी भी आ सकती है, रात में कर लेना।
मैं- अरे बस दस मिनट और रुक जाओ न!
रूपाली- अच्छा ठीक है लेकिन जल्दी करो।
मौसी के इतना कहने से मैंने खुशी से दोनों गालों को बारी-बारी से चूम लिया।
मेरी इस हरकत पर रूपाली इठला के हंस दी।
मैंने रूपाली की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और धीरे-धीरे उसकी चुदाई करने लगा।
मैं बड़े प्यार से धीरे से लंड उसकी चूत में डालता और बड़े आराम से बाहर निकालता.
कुछ देर तक रूपाली इस मंद गति की चुदाई को बर्दाश्त करती रही लेकिन फिर रूपाली ने लगभग खीजते हुए कहा- अगर आपको ऐसे ही करना है तो आप अपने हाथ से हिला के अपना काम कर लो. मैं चली … दीदी कभी भी आ सकती हैं.
मैंने रूपाली की जाँघों को अपने हाथों से दबा लिया और रूपाली को रोकते हुए कहा- अच्छा मेरी जान, करता हूं जल्दी … बस थोड़ा रुको!
फिर धीरे- धीरे मेरे धक्कों की रफ़्तार फिर से तेज़ होने लगी लगातार धक्के लगाने से उसकी चूचियां तेजी से हिलने लगी।
कुछ देर बाद मुझे लगा कि मेरे लंड से वीर्य निकलने वाला है इसलिये मैंने लंड को उसकी चूत से निकाल लिया और उसके मुंह के पास चला गया।
मैंने रूपाली से जीभ बाहर निकलने को कहा और उसके मुंह के पास घुटनों के बल बैठ कर लंड को हाथ से हिलाने लगा।
अचानक से लंड से वीर्य की एक धार निकली जो सीधे रूपाली के मुंह के अंदर चली गयी.
दूसरी धार उसके गालों को जा लगी. फिर लंड से वीर्य टपकते हुए उसकी बाहर निकली जीभ पर गिरने लगा।
मैंने एक नजर नीतू को देखा जो इस वक्त हमें ऐसे आँख फाड़ के देख रही थी जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो।
काफी देर से चल रही इस चुदाई लीला के वजह से हम दोनों बहुत थक गये थे।
रूपाली तो इतना थक गयी थी कि उसमें कपड़े पहनने की भी ताकत नहीं रह गई थी.
मैं भी रूपाली की बगल में नंगा ही लेट गया और फिर पता नहीं कब हम दोनों की आँख लग गई।
कुछ घण्टों के बाद कमरे में किसी के आने की आहट से मेरी आँख खुल गई।
मैंने देखा नीतू ने मेज पर दो प्लेट खाना रख रही थी और रूपाली अभी भी पहले की तरह नंगी अपनी एक टांग मेरी टांग के ऊपर रख के सो रही थी।
अब मैंने रूपाली को हिला के उठाया तब तक नीतू कमरे के दरवाजे तक पहुँच चुकी थी।
रूपाली ने नीतू को आवाज देकर रोका।
नीतू रुक तो गई लेकिन दीवार की तरफ मुंह कर के खड़ी थी।
रूपाली- दीदी आप भी यही खाना खा लो न!
नीतू- बेशर्मो, कपड़े तो पहन लो, कितनी देर से नंगे पड़े हो।
मैंने देखा कि हमारे कपड़े बेड पर यहाँ वहां पड़े हुए थे.
इसलिये मैंने रूपाली को अपनी गोद में बिठा लिया और अपने आप को एक चादर से ढक लिया।
अब स्थिति इस प्रकार थी नीतू हमारे सामने एक कुर्सी पर बैठी थी, रूपाली मेरी गोद में नंगी बैठी थी और मैंने हम दोनों को एक चादर से ढक रखा था।
नीतू चुपचाप सर नीचे करके खाना खा रही थी.
उधर रूपाली भी अपनी प्लेट से कभी मुझे खिलाती या फिर खुद खा लेती।
हम तीनों में से कोई भी बात नहीं कर रहा था।
रूपाली को इस बारे में बता के सारा मजा खराब नहीं करना चाहता था। मैं अपनी कमर को आगे-पीछे करते हुए रूपाली के मुखचोदन का आनंद उठा रहा था।
नीतू अभी भी हमें छुप कर देख रही थी इसलिये मैंने भी अब उसे इससे ज्यादा और कुछ दिखाने का सोचा।
मैंने रूपाली से 69 की अवस्था में आने को बोला तो रूपाली तुरंत मान गई।
फिर मैंने अपनी जीभ को रूपाली की पनियाई चूत के ऊपर रखा और लप-लप करते हुए नीतू को दिखा कर चाटने लगा।
अपनी एक उंगली को उसकी चूत में डाल कर मैं उसकी चूत की फाँकों को जीभ से चाटने लगा। कभी उसकी चूत से उंगली निकाल कर चूसने लगता।
उधर रूपाली मेरे लंड को गप्प-गप्प करते हुए चूस रही थी और कभी मेरी गोलियों पर अपनी जीभ से कलाकारी कर देती तो मैं मचल उठता।
रूपाली की अब गर्म आहें निकलने लगी थी ‘आअह्ह … हह … ययय … उम्म्म …’
थोड़ी देर तक एक दूसरे के गुप्तांगों से खेलने के बाद रूपाली ने मुंह लंड को निकाल कर कहा- जल्दी से मुझे चोदो. बहुत देर हो गई है, कभी भी दीदी कमरे में आ सकती है।
मैं रूपाली की दोनों टांगों को फैला कर उनके बीच में बैठ गया और अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा।
रूपाली अपनी वासना को और अधिक काबू में नहीं रख सकी और अपनी चूत के रसीले होंठ को खोल कर लंड डालने का आग्रह करने लगी।
मैंने भी उसकी चूत के बाहर से निशाना लगाते हुए घप्प से एक बार में उसकी चूत में पूरा लंड ठोक दिया।
रूपाली शायद इस तरह के हमले के लिए तैयार नहीं थी इसलिये उसके मुंह से आह्ह्ह जैसी एक घुटी हुई चीख निकल गई जिसे नीतू ने भी शायद सुन लिया होगा।
मैंने रूपाली की टांगों को फैला कर उसकी कमर की लय और अपने लंड की ताल का मेल करते हुए उसकी रसीली चूत का चोदन करने लगा।
रूपाली भी अपनी टाँगे अपने हाथों से खोल कर बाकी सारी दुनिया से अनजान चुदाई के सागर में गोते लगा रही थी।
उसे तो यह भी नहीं पता था कि उसकी जेठानी नीतू आज फिर हमें देख रही है।
उधर मैंने आगे झुक कर रूपाली के एक मम्मे को मुंह में भर लिया और दूसरे को बेदर्दी से मसलने लगा।
शायद मैं नीतू को दिखाने के चक्कर मे रूपाली के बदन को कुछ ज्यादा ही जोर से मसल रहा था।
जब भी मैं रूपाली के बदन को कहीं भी हाथों से रगड़ता तो वहां पर लाल निशान पड़ जाता।
रूपाली मेरे इस वहशीपन के कारण से अनजान थी। रूपाली की सांसें अब उसकी काबू से बाहर हो चली थी। अब वो अपने चरम बिंदु के अंत पर आ गई थी।
उसकी वासना का अंदाजा उसकी कामुक सिसकारियों से पता चल रहा था।
रूपाली ने अपनी टांगों का घेरा मेरी कमर पर कस दिया और आह्ह … सीईई … उम्म्म … ईस्स्श्श् जैसी कामुक आवाजें करते हुए मुझसे जोर से चुदाई करने को कहने लगी।
मैं भी अपनी शरीर की सारी शक्ति को अपने लंड पर एकत्रित करके उसकी चूत का कीमा बनाने में लग गया।
मेरे धक्के इतने तेज़ थे कि रूपाली का बदन तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगा इसलिये मैंने उसके स्तनों को छोड़ उसकी दोनों बाजुओं को ताकत से पकड़ते हुए चुदाई करने लगा।
अब मेरे हर धक्के पर उसकी दोनों चूचियां जोर जोर से झटके खाने लगी।
लगभग पन्द्रह मिनट से चली रही इस चुदाई में रूपाली अचानक मुझे अपनी ओर खींचते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों से चूमने लगी और अपने नाख़ून से मेरी पीठ को खरोंचने लगी।
उसकी चूत अब पानी से पूरी चिकनी हो गई थी और हर धक्के में फच्च- फच्च की आवाज़ कर रही थी।
फिर कुछ देर बाद रूपाली ने कांपना चालू कर दिया।
मैं समझ गया कि रूपाली की चूत से पानी निकलना शुरू हो गया है.
इसलिये मैं और तेजी से चुदाई करने लगा.
जब तक रूपाली झड़ती रही तब तक मैं उसे दोगनी रफ्तार से चोदता रहा।
रूपाली के पूर्ण रूप से झड़ जाने के बाद मैं उसकी चूत में लंड डाल हुए रुक गया।
कुछ देर बार रूपाली ने खुद को शांत किया और मुझे अपने ऊपर से अलग करने लगी- चलो हटो!
मैं- क्यों?
रूपाली- क्यों क्या! हो तो गया है और कितना करोगे?
मैं- तुम्हारा तो हो गया लेकिन मेरा नहीं हुआ अभी!
रूपाली- देखो कितनी देर हो गई है … दीदी कभी भी आ सकती है, रात में कर लेना।
मैं- अरे बस दस मिनट और रुक जाओ न!
रूपाली- अच्छा ठीक है लेकिन जल्दी करो।
मौसी के इतना कहने से मैंने खुशी से दोनों गालों को बारी-बारी से चूम लिया।
मेरी इस हरकत पर रूपाली इठला के हंस दी।
मैंने रूपाली की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और धीरे-धीरे उसकी चुदाई करने लगा।
मैं बड़े प्यार से धीरे से लंड उसकी चूत में डालता और बड़े आराम से बाहर निकालता.
कुछ देर तक रूपाली इस मंद गति की चुदाई को बर्दाश्त करती रही लेकिन फिर रूपाली ने लगभग खीजते हुए कहा- अगर आपको ऐसे ही करना है तो आप अपने हाथ से हिला के अपना काम कर लो. मैं चली … दीदी कभी भी आ सकती हैं.
मैंने रूपाली की जाँघों को अपने हाथों से दबा लिया और रूपाली को रोकते हुए कहा- अच्छा मेरी जान, करता हूं जल्दी … बस थोड़ा रुको!
फिर धीरे- धीरे मेरे धक्कों की रफ़्तार फिर से तेज़ होने लगी लगातार धक्के लगाने से उसकी चूचियां तेजी से हिलने लगी।
कुछ देर बाद मुझे लगा कि मेरे लंड से वीर्य निकलने वाला है इसलिये मैंने लंड को उसकी चूत से निकाल लिया और उसके मुंह के पास चला गया।
मैंने रूपाली से जीभ बाहर निकलने को कहा और उसके मुंह के पास घुटनों के बल बैठ कर लंड को हाथ से हिलाने लगा।
अचानक से लंड से वीर्य की एक धार निकली जो सीधे रूपाली के मुंह के अंदर चली गयी.
दूसरी धार उसके गालों को जा लगी. फिर लंड से वीर्य टपकते हुए उसकी बाहर निकली जीभ पर गिरने लगा।
मैंने एक नजर नीतू को देखा जो इस वक्त हमें ऐसे आँख फाड़ के देख रही थी जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो।
काफी देर से चल रही इस चुदाई लीला के वजह से हम दोनों बहुत थक गये थे।
रूपाली तो इतना थक गयी थी कि उसमें कपड़े पहनने की भी ताकत नहीं रह गई थी.
मैं भी रूपाली की बगल में नंगा ही लेट गया और फिर पता नहीं कब हम दोनों की आँख लग गई।
कुछ घण्टों के बाद कमरे में किसी के आने की आहट से मेरी आँख खुल गई।
मैंने देखा नीतू ने मेज पर दो प्लेट खाना रख रही थी और रूपाली अभी भी पहले की तरह नंगी अपनी एक टांग मेरी टांग के ऊपर रख के सो रही थी।
अब मैंने रूपाली को हिला के उठाया तब तक नीतू कमरे के दरवाजे तक पहुँच चुकी थी।
रूपाली ने नीतू को आवाज देकर रोका।
नीतू रुक तो गई लेकिन दीवार की तरफ मुंह कर के खड़ी थी।
रूपाली- दीदी आप भी यही खाना खा लो न!
नीतू- बेशर्मो, कपड़े तो पहन लो, कितनी देर से नंगे पड़े हो।
मैंने देखा कि हमारे कपड़े बेड पर यहाँ वहां पड़े हुए थे.
इसलिये मैंने रूपाली को अपनी गोद में बिठा लिया और अपने आप को एक चादर से ढक लिया।
अब स्थिति इस प्रकार थी नीतू हमारे सामने एक कुर्सी पर बैठी थी, रूपाली मेरी गोद में नंगी बैठी थी और मैंने हम दोनों को एक चादर से ढक रखा था।
नीतू चुपचाप सर नीचे करके खाना खा रही थी.
उधर रूपाली भी अपनी प्लेट से कभी मुझे खिलाती या फिर खुद खा लेती।
हम तीनों में से कोई भी बात नहीं कर रहा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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