22-02-2024, 05:43 PM
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कितनी देर तक हम उसी तरह बांहों में सिमटे रहे. उसके बदन की गर्मी से मैं भी उत्तेजित हो गया और मेरे हाथ स्वतः ही उसकी पीठ को सहलाने लगे।
कुछ देर बाद जब मैंने उसे अपने सीने अलग किया तो उसकी आँखें नम हो गयी थी और गला रुंध आया था।
उसने अपनी रुंधी हुई आवाज़ में मुझसे कहा- मुझे फिर से अपना बना लीजिए!
आगे बढ़ कर मैंने उसकी आँखों को पौंछा और उसके सुलगते हुए होंठों पर अपने होंठ रख दिये।
मैंने रूपाली के निचले होंठ को अपने दोनों होंठों के बीच में दबा कर चूसते हुए उसकी चूचियों को हाथों से मसलने लगा।
कुछ देर तक हाथों से उसके बदन पर कलाकारियाँ करते हुए रूपाली भी गर्म होने लगी थी जिसके चलते रूपाली ने अपनी जीभ मेरे मुंह में ठूंस दी और मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ाने लगी।
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उसके निप्पल बाहर की ओर उभर आये और चूचियां भी कड़क हो गयी थी।
हमारे मुंह से लगातार उम्म्म … म्मम्म … जैसी आवाज आ रही थी. हम दोनों में से कोई भी इस चुम्बन को तोड़ना नहीं चाह रहा था खासकर रूपाली तो बिलकुल भी नहीं।
इसलिये मैंने ही आगे बढ़ने की सोची और रूपाली की मैक्सी को अपनी मुट्ठियों में भरकर ऊपर सरकाते हुए उसके बदन से अलग करने लगा।
रूपाली ने भी मेरी मदद करते हुए अपने दोनों हाथों को असमान की ओर समान्तर उठा लिया और मैंने उसकी मैक्सी को उसके हाथों से निकाल कर उससे अलग कर दिया.
न तो उसने अन्दर ब्रा पहन हुई थी और न ही पैंटी।
जिस रूपाली को मैं कमरे से खुले असमान के नीचे बुलाकर लाया था उसका शिकार करने के लिये असल में मैं खुद एक शिकार की तरह उसके सामने खड़ा था।
मेरे सामने रूपाली इस वक़्त अजंता की किसी कलाकृति की तरह नग्न अवस्था में खड़ी थी।
चाँद की रोशनी में रूपाली का नंगा, बिना बालों वाला दूधिया जिस्म ऐसे चमक रहा था जैसे उसे चांदी के पानी से नहला दिया गया हो।
किसी ने ठीक ही कहा है कि चाँद लोगों को अपनी ओर केवल सोलह कलाओं से आकर्षित कर सकता है जबकि औरतें किसी को भी अपनी ओर उससे ज्यादा कलाओं से आकर्षित कर सकती हैं.
मैं रूपाली के बड़े से क्लीवेज को चाटते हुए उसकी एक चूची को मुंह भर कर चूसने लगा और दूसरी को हाथ से सहलाना शुरू कर दिया।
उसने भी मस्ती से मेरे बालों को अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू कर दिया।
जब कभी उसकी चूचियों को मुट्ठियों में भर कर दबा देता या फिर उसके निप्पलो को ऐंठ देता तो रूपाली और ज्यादा उत्तेजित हो जाती।
कुछ देर तक उसकी चूचियों को बारी बारी पीने के बाद मैं उसके पेट को चाटते हुए नाभि पर जा पंहुचा।
जितना मैं उसकी नाभि को जीभ से छेड़ता, उतना ही उसकी सांसें नियंत्रण से बाहर हो जाती और उसके मुंह से कामुक आआह्ह निकल जाती।
कुछ देर बाद मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और उसकी मांसल जांघ को चाटने लगा।
कभी- कभी जाँघों को चाटते वक़्त दोनों जांघ के बीच से होते हुए उसकी चूत को जीभ से छूकर लौट जाता तो रूपाली वासना से कलप जाती।
कुछ देर तक वो अपनी नंगी चूत से होते खिलवाड़ को बरदाश्त करती रही लेकिन जब वो खुद पर अधिक काबू न रख सकी तो उसने मेरे सिर को बालो से पकड़ कर मेरा मुंह चूत से सटा दिया।
मैंने चूत से बहते हुए प्रीकम को जीभ से चाट कर साफ़ किया और उन गुलाब की तरह नाजुक चूत की पंखुड़ियों को जीभ छेड़ कर चूसने लगा।
कभी चूत की लकीर को जीभ से ऊपर नीचे करते हुए चाट लेता तो कभी जीभ को नुकीला करते हुए उसकी चूत के अंदर की गुलाबी नर्म दीवारों को सहलाने लगता।
रूपाली अपने हाथों से मेरे सिर पर दबाव बनाते हुए कमर को आगे पीछे करने लगी जैसे वो मेरी जीभ को चूत के आखिरी छोर तक पहुँचना चाहती हो।
अब उसके मुंह से लगातार आअह्ह … ह्ह्ह … उफ्फ … स्स्स्स … उम्म्म ओह माँ श्श्श्श … जैसी सिसकियाँ निकलने लगी थी।
फिर मैंने अपने दायें हाथ की बड़ी उंगली को उसकी चूत में उतार दिया और उसकी चूत के दाने को दाँतों में दबा कर चुभलाने लगा।
लगातार उसके फड़कते हुए दाने को जीभ से सहलाने और उंगली से उसके जी-स्पॉट को छेड़ने से रूपाली और भी उग्र हो गई थी।
जिसके चलते उसने अपनी जांघों का घेरा मेरी गर्दन पर और कस दिया।
अगर मैं उसकी चूत को इसी तरह चाटता रहता तो शायद वो किसी भी वक़्त अपने काम शिखर को प्राप्त करके झड़ जाती।
इसलिये मैंने चूत को चाटना छोड़कर उसकी जांघों से गर्दन को आज़ाद करा लिया और उठ खड़ा हुआ।
रूपाली ने मुझसे कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गए? आपको दिखता नहीं कि मेरा होने वाला था.
मैंने अपने द्वारा की गई इस हरकत का कोई जवाब देना उचित नहीं समझा और उत्तर देता भी तो क्या!
अब मैंने अपने लोवर और टीशर्ट उतारकर उसकी मैक्सी के उपर रख दी।
मैंने रूपाली का हाथ पकड़ा और छत पर लगी रेलिंग की तरफ चलने को कहा।
इस वक़्त खुले असमान के नीचे दो नंगे जिस्म विचरण कर रहे थे; ऐसा लग रहा था जैसे दो हिरनों का जोड़ा जंगल में सम्भोग करने के लिये घूम रहा हो।
अभी तक की हो रही हर घटना के बारे में सोच कर मेरा मन कुलाँचे मार रहा था।
रेलिंग के पास पहुँच कर उसने आगे झुक कर देखा, मानो जैसे वो शत प्रतिशत आश्वस्त होना चाहती हो कि कोई हम दोनों को देख तो नहीं लेगा।
जब उसे दूर तक कोई इंसान नहीं दिखा, तब मैंने उसके दोनों हाथों से उसे रेलिंग पकड़ा दी और उसकी कमर को थोड़ा अपनी तरफ निकालकर उसे झुका दिया।
मैंने उसके दोनों नितंबों पर हाथ फेरा और उसकी पीठ से बाल हटा दिए।
फिर मैंने अपनी जीभ उसकी नंगी पीठ पर रख दी और घुमाने लगा।
सबसे पहले मैंने अपनी जीभ से उसकी गर्दन को चाटना शुरू किया और नीचे सरकने लगा। उसके कंधों को चूमने लगा.
तभी मैं अपने हाथ आगे ले जाकर अचानक से उसकी रूई के समान नर्म फाहे जैसी चूचियों को पकड़ के दबाने लगा।
थोड़ा और नीचे जीभ को सरका कर उसकी लचकती हुई कमर को जोर जोर से चाटने लगा। मेरी लार से उसकी पीठ पूरी गीली हो गई थी जो चाँद की रोशनी में शीशे की तरह चमक रही थी।
मेरी जांघें उसके चूतड़ों से सटी हुई थी और लंड भी रह-रह तुनके मार के उसकी चूत को छू रहा था।
जब भी कोई ठंडी हवा का झोंका उसकी गीली पीठ को छू जाता तो वो जोर से काँप जाती।
कुछ कम्पन तो सर्द हवा से थी और कुछ शायद खुले आसमान ने नीचे चूत से छूते लंड और आगे होने वाली जोरदार चुदाई के ख्याल से हो रही होगी।
क्योंकि हर उम्र की औरत का ख्वाब होता है कि काश कोई खुले असमान के नीचे चांदनी रात के बीच एक बार उनकी चूत को चाट के तर कर दे और चूत में लंड ठूंस के ताबड़तोड़ चुदाई कर दे.
फिर चाहे वो अभी-अभी जवान हुई कोई कमसिन कली या फिर अनेकों बार चार दीवारों के भीतर चुदी हुई नारी।
मेरा लंड भी अब तक इतना तन चुका था कि ऐसा लग रहा था कि अभी जड़ से टूट जाएगा।
मैंने रूपाली से लंड चूस के गीला करने को कहा तो रूपाली भी आज्ञाकारी पत्नी की तरह अपने घुटनों पर बैठ गई और मेरे लंड को अपने दोनों होंठ के बीच में दबा के चूसने लगी।
कुछ आठ दस बार बार लंड को मुंह में आगे पीछे करने के बाद मैंने लंड उसके मुंह से निकाल लिया तो रूपाली भी वापस रेलिंग पकड़ के पहले जैसे झुक गई।
मैंने अपने हाथ में थोडा सा थूक ले कर पीछे से उसकी पनियाई हुई चूत के उपर चुपड़ दिया।
फिर मैं अपने लंड पर दबाव बनाते हुए धीरे से चूत के अन्दर घुसाने लगा।
पहले किसी बड़े आंवले की तरह फूला हुआ सुपारा अंदर गया और रूपाली की चूत में लंड के लिये रास्ते को सुगम बनाने लगा।
धीरे धीरे लंड पर दबाव बनाते हुए लंड को सरकाने लगा कुछ देर बाद मेरा समूचा लंड रूपाली की चूत की गहराइयों में खो गया और मेरी कमर रूपाली की कमर से सट गई।
अब रूपाली ने अपने सिर को रेलिंग पर टिका लिया और मुझे चुदाई शुरू करने का इशारा किया।
मैंने उसकी कमर को अपने दोनों हाथों में थाम लिया और अपने लंड को आगे पीछे करते हुए उसकी चुदाई करने लगा।
जितने प्यार से मैं लंड को बाहर करता, उतने ही प्यार से वापस अंदर ठोक देता।
इस प्यार भरी चुदाई के चलते रूपाली की आँखें स्वतः ही बंद हो गयी जैसे इस चुदाई से उसकी चूत नहीं बल्कि उसके मन को तृप्ति मिल रही हो।
जब कभी घर से कुछ दूरी पर गुजरती हुई मुख्य सड़क से कोई वाहन चारों ओर फैले हुए सन्नाटे को चीरते हुए तेजी से गुजर जाता तो रूपाली अपनी आँखें खोल लेती.
और जैसे ही हमारी आँखें एक दूसरे से टकराती तो रूपाली के मुंह पर मुस्कान तैर जाती और फिर से अपनी आँखें बंद कर लेती।
कुछ देर बाद मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए तो रूपाली ने आँखें खोल के प्रश्नवाचक दृष्टि से रुकने का कारण पूछा.
तो मैंने रूपाली से कहा- देखो रूपाली, कितना अनोखा और कितना उतेजित नज़ारा है. चांदनी रात है आसमान में असंख्य तारे हैं. मेरे सामने मेरी चाँद सी सुंदर बीवी नंगी खड़ी है और उसकी चूत में घुसा हुआ मेरा लंड। हमें देख कर चाँद भी शर्मा जाता है और बार बार खुद को बादलों में छुपा लेता है।
रूपाली ने भी एक सरसरी नज़र आसमान में घुमाई और बोली- जितना आप चुदाई करने में उस्ताद हो … उतना ही बातें बनाने में! बातें बनाना तो कोई आपसे सीखे!
फिर मौसी बोली- नीचे दीदी अकेली हैं. और हमें भी ऊपर आए काफी समय हो गया है. जल्दी से करो … फिर नीचे चलते हैं. नहीं तो दीदी जाग जायेंगी।
“जो हुकुम मेरी रानी!” मैं बोला.
कितनी देर तक हम उसी तरह बांहों में सिमटे रहे. उसके बदन की गर्मी से मैं भी उत्तेजित हो गया और मेरे हाथ स्वतः ही उसकी पीठ को सहलाने लगे।
कुछ देर बाद जब मैंने उसे अपने सीने अलग किया तो उसकी आँखें नम हो गयी थी और गला रुंध आया था।
उसने अपनी रुंधी हुई आवाज़ में मुझसे कहा- मुझे फिर से अपना बना लीजिए!
आगे बढ़ कर मैंने उसकी आँखों को पौंछा और उसके सुलगते हुए होंठों पर अपने होंठ रख दिये।
मैंने रूपाली के निचले होंठ को अपने दोनों होंठों के बीच में दबा कर चूसते हुए उसकी चूचियों को हाथों से मसलने लगा।
कुछ देर तक हाथों से उसके बदन पर कलाकारियाँ करते हुए रूपाली भी गर्म होने लगी थी जिसके चलते रूपाली ने अपनी जीभ मेरे मुंह में ठूंस दी और मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ाने लगी।
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उसके निप्पल बाहर की ओर उभर आये और चूचियां भी कड़क हो गयी थी।
हमारे मुंह से लगातार उम्म्म … म्मम्म … जैसी आवाज आ रही थी. हम दोनों में से कोई भी इस चुम्बन को तोड़ना नहीं चाह रहा था खासकर रूपाली तो बिलकुल भी नहीं।
इसलिये मैंने ही आगे बढ़ने की सोची और रूपाली की मैक्सी को अपनी मुट्ठियों में भरकर ऊपर सरकाते हुए उसके बदन से अलग करने लगा।
रूपाली ने भी मेरी मदद करते हुए अपने दोनों हाथों को असमान की ओर समान्तर उठा लिया और मैंने उसकी मैक्सी को उसके हाथों से निकाल कर उससे अलग कर दिया.
न तो उसने अन्दर ब्रा पहन हुई थी और न ही पैंटी।
जिस रूपाली को मैं कमरे से खुले असमान के नीचे बुलाकर लाया था उसका शिकार करने के लिये असल में मैं खुद एक शिकार की तरह उसके सामने खड़ा था।
मेरे सामने रूपाली इस वक़्त अजंता की किसी कलाकृति की तरह नग्न अवस्था में खड़ी थी।
चाँद की रोशनी में रूपाली का नंगा, बिना बालों वाला दूधिया जिस्म ऐसे चमक रहा था जैसे उसे चांदी के पानी से नहला दिया गया हो।
किसी ने ठीक ही कहा है कि चाँद लोगों को अपनी ओर केवल सोलह कलाओं से आकर्षित कर सकता है जबकि औरतें किसी को भी अपनी ओर उससे ज्यादा कलाओं से आकर्षित कर सकती हैं.
मैं रूपाली के बड़े से क्लीवेज को चाटते हुए उसकी एक चूची को मुंह भर कर चूसने लगा और दूसरी को हाथ से सहलाना शुरू कर दिया।
उसने भी मस्ती से मेरे बालों को अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू कर दिया।
जब कभी उसकी चूचियों को मुट्ठियों में भर कर दबा देता या फिर उसके निप्पलो को ऐंठ देता तो रूपाली और ज्यादा उत्तेजित हो जाती।
कुछ देर तक उसकी चूचियों को बारी बारी पीने के बाद मैं उसके पेट को चाटते हुए नाभि पर जा पंहुचा।
जितना मैं उसकी नाभि को जीभ से छेड़ता, उतना ही उसकी सांसें नियंत्रण से बाहर हो जाती और उसके मुंह से कामुक आआह्ह निकल जाती।
कुछ देर बाद मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और उसकी मांसल जांघ को चाटने लगा।
कभी- कभी जाँघों को चाटते वक़्त दोनों जांघ के बीच से होते हुए उसकी चूत को जीभ से छूकर लौट जाता तो रूपाली वासना से कलप जाती।
कुछ देर तक वो अपनी नंगी चूत से होते खिलवाड़ को बरदाश्त करती रही लेकिन जब वो खुद पर अधिक काबू न रख सकी तो उसने मेरे सिर को बालो से पकड़ कर मेरा मुंह चूत से सटा दिया।
मैंने चूत से बहते हुए प्रीकम को जीभ से चाट कर साफ़ किया और उन गुलाब की तरह नाजुक चूत की पंखुड़ियों को जीभ छेड़ कर चूसने लगा।
कभी चूत की लकीर को जीभ से ऊपर नीचे करते हुए चाट लेता तो कभी जीभ को नुकीला करते हुए उसकी चूत के अंदर की गुलाबी नर्म दीवारों को सहलाने लगता।
रूपाली अपने हाथों से मेरे सिर पर दबाव बनाते हुए कमर को आगे पीछे करने लगी जैसे वो मेरी जीभ को चूत के आखिरी छोर तक पहुँचना चाहती हो।
अब उसके मुंह से लगातार आअह्ह … ह्ह्ह … उफ्फ … स्स्स्स … उम्म्म ओह माँ श्श्श्श … जैसी सिसकियाँ निकलने लगी थी।
फिर मैंने अपने दायें हाथ की बड़ी उंगली को उसकी चूत में उतार दिया और उसकी चूत के दाने को दाँतों में दबा कर चुभलाने लगा।
लगातार उसके फड़कते हुए दाने को जीभ से सहलाने और उंगली से उसके जी-स्पॉट को छेड़ने से रूपाली और भी उग्र हो गई थी।
जिसके चलते उसने अपनी जांघों का घेरा मेरी गर्दन पर और कस दिया।
अगर मैं उसकी चूत को इसी तरह चाटता रहता तो शायद वो किसी भी वक़्त अपने काम शिखर को प्राप्त करके झड़ जाती।
इसलिये मैंने चूत को चाटना छोड़कर उसकी जांघों से गर्दन को आज़ाद करा लिया और उठ खड़ा हुआ।
रूपाली ने मुझसे कहा- क्या हुआ? रुक क्यों गए? आपको दिखता नहीं कि मेरा होने वाला था.
मैंने अपने द्वारा की गई इस हरकत का कोई जवाब देना उचित नहीं समझा और उत्तर देता भी तो क्या!
अब मैंने अपने लोवर और टीशर्ट उतारकर उसकी मैक्सी के उपर रख दी।
मैंने रूपाली का हाथ पकड़ा और छत पर लगी रेलिंग की तरफ चलने को कहा।
इस वक़्त खुले असमान के नीचे दो नंगे जिस्म विचरण कर रहे थे; ऐसा लग रहा था जैसे दो हिरनों का जोड़ा जंगल में सम्भोग करने के लिये घूम रहा हो।
अभी तक की हो रही हर घटना के बारे में सोच कर मेरा मन कुलाँचे मार रहा था।
रेलिंग के पास पहुँच कर उसने आगे झुक कर देखा, मानो जैसे वो शत प्रतिशत आश्वस्त होना चाहती हो कि कोई हम दोनों को देख तो नहीं लेगा।
जब उसे दूर तक कोई इंसान नहीं दिखा, तब मैंने उसके दोनों हाथों से उसे रेलिंग पकड़ा दी और उसकी कमर को थोड़ा अपनी तरफ निकालकर उसे झुका दिया।
मैंने उसके दोनों नितंबों पर हाथ फेरा और उसकी पीठ से बाल हटा दिए।
फिर मैंने अपनी जीभ उसकी नंगी पीठ पर रख दी और घुमाने लगा।
सबसे पहले मैंने अपनी जीभ से उसकी गर्दन को चाटना शुरू किया और नीचे सरकने लगा। उसके कंधों को चूमने लगा.
तभी मैं अपने हाथ आगे ले जाकर अचानक से उसकी रूई के समान नर्म फाहे जैसी चूचियों को पकड़ के दबाने लगा।
थोड़ा और नीचे जीभ को सरका कर उसकी लचकती हुई कमर को जोर जोर से चाटने लगा। मेरी लार से उसकी पीठ पूरी गीली हो गई थी जो चाँद की रोशनी में शीशे की तरह चमक रही थी।
मेरी जांघें उसके चूतड़ों से सटी हुई थी और लंड भी रह-रह तुनके मार के उसकी चूत को छू रहा था।
जब भी कोई ठंडी हवा का झोंका उसकी गीली पीठ को छू जाता तो वो जोर से काँप जाती।
कुछ कम्पन तो सर्द हवा से थी और कुछ शायद खुले आसमान ने नीचे चूत से छूते लंड और आगे होने वाली जोरदार चुदाई के ख्याल से हो रही होगी।
क्योंकि हर उम्र की औरत का ख्वाब होता है कि काश कोई खुले असमान के नीचे चांदनी रात के बीच एक बार उनकी चूत को चाट के तर कर दे और चूत में लंड ठूंस के ताबड़तोड़ चुदाई कर दे.
फिर चाहे वो अभी-अभी जवान हुई कोई कमसिन कली या फिर अनेकों बार चार दीवारों के भीतर चुदी हुई नारी।
मेरा लंड भी अब तक इतना तन चुका था कि ऐसा लग रहा था कि अभी जड़ से टूट जाएगा।
मैंने रूपाली से लंड चूस के गीला करने को कहा तो रूपाली भी आज्ञाकारी पत्नी की तरह अपने घुटनों पर बैठ गई और मेरे लंड को अपने दोनों होंठ के बीच में दबा के चूसने लगी।
कुछ आठ दस बार बार लंड को मुंह में आगे पीछे करने के बाद मैंने लंड उसके मुंह से निकाल लिया तो रूपाली भी वापस रेलिंग पकड़ के पहले जैसे झुक गई।
मैंने अपने हाथ में थोडा सा थूक ले कर पीछे से उसकी पनियाई हुई चूत के उपर चुपड़ दिया।
फिर मैं अपने लंड पर दबाव बनाते हुए धीरे से चूत के अन्दर घुसाने लगा।
पहले किसी बड़े आंवले की तरह फूला हुआ सुपारा अंदर गया और रूपाली की चूत में लंड के लिये रास्ते को सुगम बनाने लगा।
धीरे धीरे लंड पर दबाव बनाते हुए लंड को सरकाने लगा कुछ देर बाद मेरा समूचा लंड रूपाली की चूत की गहराइयों में खो गया और मेरी कमर रूपाली की कमर से सट गई।
अब रूपाली ने अपने सिर को रेलिंग पर टिका लिया और मुझे चुदाई शुरू करने का इशारा किया।
मैंने उसकी कमर को अपने दोनों हाथों में थाम लिया और अपने लंड को आगे पीछे करते हुए उसकी चुदाई करने लगा।
जितने प्यार से मैं लंड को बाहर करता, उतने ही प्यार से वापस अंदर ठोक देता।
इस प्यार भरी चुदाई के चलते रूपाली की आँखें स्वतः ही बंद हो गयी जैसे इस चुदाई से उसकी चूत नहीं बल्कि उसके मन को तृप्ति मिल रही हो।
जब कभी घर से कुछ दूरी पर गुजरती हुई मुख्य सड़क से कोई वाहन चारों ओर फैले हुए सन्नाटे को चीरते हुए तेजी से गुजर जाता तो रूपाली अपनी आँखें खोल लेती.
और जैसे ही हमारी आँखें एक दूसरे से टकराती तो रूपाली के मुंह पर मुस्कान तैर जाती और फिर से अपनी आँखें बंद कर लेती।
कुछ देर बाद मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए तो रूपाली ने आँखें खोल के प्रश्नवाचक दृष्टि से रुकने का कारण पूछा.
तो मैंने रूपाली से कहा- देखो रूपाली, कितना अनोखा और कितना उतेजित नज़ारा है. चांदनी रात है आसमान में असंख्य तारे हैं. मेरे सामने मेरी चाँद सी सुंदर बीवी नंगी खड़ी है और उसकी चूत में घुसा हुआ मेरा लंड। हमें देख कर चाँद भी शर्मा जाता है और बार बार खुद को बादलों में छुपा लेता है।
रूपाली ने भी एक सरसरी नज़र आसमान में घुमाई और बोली- जितना आप चुदाई करने में उस्ताद हो … उतना ही बातें बनाने में! बातें बनाना तो कोई आपसे सीखे!
फिर मौसी बोली- नीचे दीदी अकेली हैं. और हमें भी ऊपर आए काफी समय हो गया है. जल्दी से करो … फिर नीचे चलते हैं. नहीं तो दीदी जाग जायेंगी।
“जो हुकुम मेरी रानी!” मैं बोला.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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