22-02-2024, 05:36 PM
8
मैंने एक नज़र रूपाली के चेहरे पर डाली.
बिखरे हुए बाल, सपाट माथे पर पसीने की कुछ बूँदें, शांत आँखें, कुछ जोर से चूमने से लाल हो चुके गाल और होंठ पर मंद मुस्कान।
उसके चहेरे पर सम्पूर्ण संतुष्टि के ऐसे भाव थे जो उसे अब अपने पति(मौसा जी) से कभी नहीं मिलने वाले थे।
मैंने अपने लौड़े से चूत के अंदर खटखटा कर उसकी तन्द्रा भंग की.
उसने अपनी आखें खोल के पूछा- क्या हुआ?
मैं- तुम्हारा तो हो गया … पर अब मैं क्या करूं?
रूपाली- तो मना किसने किया है … आपकी ही हूँ … चढ़ जाओ फिर से!
मैंने रूपाली की एक टांग को अपने कंधे पर रख लिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा।
हर धक्के से उसकी चूत में भरा हुआ रस बाहर छलक जाता।
रस से गीला लंड चूत में पच-पच की आवाज करते हुए सरपट भागे जा रहा था और बेड की चर्र-चर्र ध्वनि से कमरे में चुदाई का मधुर संगीत हो रहा था।
रूपाली फिर से गर्म होने लगी थी और नीचे से अपनी चूत उचका कर लंड को अंदर बाहर करने में मदद करने लगी थी।
बहुत देर से चल रही इस धकापेल चुदाई की वजह से मैं भी अब झड़ने के करीब आ गया था इसलिये मैंने भी अब जोश से धक्के लगाना शुरू कर दिए थे।
लंड की सारी नसें फूलने लगी थी, टट्टे भी रस से भर कर भारी हो गये थे।
रूपाली भी अब फिर उम्म्म अहह यस्सस आईई माँ जैसी आवाजें निकाल रही थी।
तभी उसने कहा- रुकना मत … मैं आने वाली हूँ!
और आह … आह्ह्ह करते हुए उसकी चूत ने एक और बार रस की नदी खोल दी।
उसके रस के ताप से मैं खुद को रोक न सका और जल्दी से लंड को बाहर खींचा और उसकी चूत के ऊपर सारा वीर्य उगल दिया।
सारा वीर्य निकल जाने के बाद मैं उसकी बगल में लेट गया और उसके बालों से खेलते हुए उससे बातें करने लगा।
बातों-बातों में मैंने उससे आने वाले तीन दिनों तक नंगी रहने को कहा.
शुरू में तो उसने मेरी इस इच्छा को बहुत सारे तर्क देकर टालना चाहा लेकिन अंत में उसने मेरी मांग स्वीकार कर ली।
फिर पता नहीं कब हमारी आँख लग गयी और हम सो गये।
कुछ देर बाद मेरी आँख खुली तो देखा घड़ी में शाम के 4:10 हो रहे थे।
रूपाली अभी भी सो रही थी.
मैंने आगे झुक कर उसके होंठ को चूम लिया जिससे उसकी भी आँख खुल गयी और उसने भी मेरे होंठों पर छोटा सा चुम्मा चिपका दिया।
हम एक दूसरे को देख कर खुश हो रहे थे.
तभी घर के मुख्य दरवाजे की घंटी बजी!
दरवाजे की घण्टी बजने के बाद हम दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे मानो इसे वहम समझ कर टालने की कोशिश कर रहे हों।
लेकिन तभी एक बार और घण्टी बजी इस बार हमारा ध्यान एक दूसरे के बदन पर गया।
हम दोनों नंगे ही बेड पर लेटे हुए थे और हमारे कपड़े पूरे कमरे में यहाँ वहाँ फैले पड़े थे।
इससे पहले एक और घण्टी बजती, रूपाली हड़बड़ी में उठ खड़ी हुई और उसने अपने शरीर को मैक्सी से ढक लिया।
मैंने भी जल्दी से लोवर टीशर्ट पहन ली।
रूपाली तेज क़दमों से चलते हुए कमरे बाहर निकल गयी।
मैंने बेडशीट को जल्दी से निकाला और बाथरूम में धुलने के लिये डाल दिया।
तभी मुझे किसी महिला की आवाज आ रही थी जो धीरे-धीरे मेरी तरफ आते हुए साफ़ और स्पष्ट होती जा रही थी।
मैंने बाथरूम से बाहर निकलकर देखा तो मेरे सामने मेरी दूसरी नायिका खड़ी थी।
रूपाली ने आगे झुककर उनके पैर छूते हुए ‘चरण स्पर्श दीदी’ कहा.
और जवाब उसे ‘खुश रहो’ का आशीर्वाद मिला।
मेरे सामने रूपाली की जेठानी खड़ी थी जिनसे मैं केवल एक बार रूपाली की शादी में ही मिला था।
मैंने एक नज़र रूपाली के चेहरे पर डाली.
बिखरे हुए बाल, सपाट माथे पर पसीने की कुछ बूँदें, शांत आँखें, कुछ जोर से चूमने से लाल हो चुके गाल और होंठ पर मंद मुस्कान।
उसके चहेरे पर सम्पूर्ण संतुष्टि के ऐसे भाव थे जो उसे अब अपने पति(मौसा जी) से कभी नहीं मिलने वाले थे।
मैंने अपने लौड़े से चूत के अंदर खटखटा कर उसकी तन्द्रा भंग की.
उसने अपनी आखें खोल के पूछा- क्या हुआ?
मैं- तुम्हारा तो हो गया … पर अब मैं क्या करूं?
रूपाली- तो मना किसने किया है … आपकी ही हूँ … चढ़ जाओ फिर से!
मैंने रूपाली की एक टांग को अपने कंधे पर रख लिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा।
हर धक्के से उसकी चूत में भरा हुआ रस बाहर छलक जाता।
रस से गीला लंड चूत में पच-पच की आवाज करते हुए सरपट भागे जा रहा था और बेड की चर्र-चर्र ध्वनि से कमरे में चुदाई का मधुर संगीत हो रहा था।
रूपाली फिर से गर्म होने लगी थी और नीचे से अपनी चूत उचका कर लंड को अंदर बाहर करने में मदद करने लगी थी।
बहुत देर से चल रही इस धकापेल चुदाई की वजह से मैं भी अब झड़ने के करीब आ गया था इसलिये मैंने भी अब जोश से धक्के लगाना शुरू कर दिए थे।
लंड की सारी नसें फूलने लगी थी, टट्टे भी रस से भर कर भारी हो गये थे।
रूपाली भी अब फिर उम्म्म अहह यस्सस आईई माँ जैसी आवाजें निकाल रही थी।
तभी उसने कहा- रुकना मत … मैं आने वाली हूँ!
और आह … आह्ह्ह करते हुए उसकी चूत ने एक और बार रस की नदी खोल दी।
उसके रस के ताप से मैं खुद को रोक न सका और जल्दी से लंड को बाहर खींचा और उसकी चूत के ऊपर सारा वीर्य उगल दिया।
सारा वीर्य निकल जाने के बाद मैं उसकी बगल में लेट गया और उसके बालों से खेलते हुए उससे बातें करने लगा।
बातों-बातों में मैंने उससे आने वाले तीन दिनों तक नंगी रहने को कहा.
शुरू में तो उसने मेरी इस इच्छा को बहुत सारे तर्क देकर टालना चाहा लेकिन अंत में उसने मेरी मांग स्वीकार कर ली।
फिर पता नहीं कब हमारी आँख लग गयी और हम सो गये।
कुछ देर बाद मेरी आँख खुली तो देखा घड़ी में शाम के 4:10 हो रहे थे।
रूपाली अभी भी सो रही थी.
मैंने आगे झुक कर उसके होंठ को चूम लिया जिससे उसकी भी आँख खुल गयी और उसने भी मेरे होंठों पर छोटा सा चुम्मा चिपका दिया।
हम एक दूसरे को देख कर खुश हो रहे थे.
तभी घर के मुख्य दरवाजे की घंटी बजी!
दरवाजे की घण्टी बजने के बाद हम दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे मानो इसे वहम समझ कर टालने की कोशिश कर रहे हों।
लेकिन तभी एक बार और घण्टी बजी इस बार हमारा ध्यान एक दूसरे के बदन पर गया।
हम दोनों नंगे ही बेड पर लेटे हुए थे और हमारे कपड़े पूरे कमरे में यहाँ वहाँ फैले पड़े थे।
इससे पहले एक और घण्टी बजती, रूपाली हड़बड़ी में उठ खड़ी हुई और उसने अपने शरीर को मैक्सी से ढक लिया।
मैंने भी जल्दी से लोवर टीशर्ट पहन ली।
रूपाली तेज क़दमों से चलते हुए कमरे बाहर निकल गयी।
मैंने बेडशीट को जल्दी से निकाला और बाथरूम में धुलने के लिये डाल दिया।
तभी मुझे किसी महिला की आवाज आ रही थी जो धीरे-धीरे मेरी तरफ आते हुए साफ़ और स्पष्ट होती जा रही थी।
मैंने बाथरूम से बाहर निकलकर देखा तो मेरे सामने मेरी दूसरी नायिका खड़ी थी।
रूपाली ने आगे झुककर उनके पैर छूते हुए ‘चरण स्पर्श दीदी’ कहा.
और जवाब उसे ‘खुश रहो’ का आशीर्वाद मिला।
मेरे सामने रूपाली की जेठानी खड़ी थी जिनसे मैं केवल एक बार रूपाली की शादी में ही मिला था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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