22-02-2024, 05:30 PM
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कुछ देर तक उसके गांड के छेद और छेद की तरफ बहते रस को चाटने के बाद मैंने उसको कमर से पकड़ के अपनी ओर घुमा लिया।
अब उसकी चिकनी बिना बालों वाली चूत मेरे सामने थी।
मैंने अंत में शहद के जार से बचा हुआ बाकी का सारा शहद हाथों में लेकर उसकी चूत पर मल दिया और कुछ शहद को चूत की गहराई में उतार दिया।
मैं अपनी जीभ से चूत के आस पास चाटने लगा।
कभी चूत के दाने को मुंह में भर कर दांत से दबा देता तो कभी चूत की पंखुड़ियों को होंठ में भर कर खींच लेता.
तो बस वो चहक उठती।
वो बार- बार मेरे बालों को खींचते हुए मेरे सर को चूत के ऊपर ले जाकर चूत को चटवाना चाहती थी।
लेकिन मेरा मन अभी उसे और तड़पाने का था।
आखिर रूपाली ने खीजते हुए कहा- चाटो न … क्यों सताते हो।
फिर मैंने उसके आग्रह पर जैसे ही चूत पर जीभ रख के चाटा तो स्वतः ही रूपाली के मुंह से आअह्ह निकल गई।
अब मैं चूत के दाने को होंठ में दबा कर खींचने लगा जिससे उसके मुंह से कामुक शब्द निकलने लगे- ऐसे ही चाटते रहो मेरी दुलारी को … कितना सुकून मिल रहा है मुझे भी और इसे भी … यस यस … सक इट!
मुझे रूपाली के बदन से खेलते हुए बहुत समय हो गया था जिससे रूपाली के पैरों में दर्द होने लगा था।
इसलिये मैंने उसे कमर से उठा कर रसोई की स्लैब पर बैठा दिया; मैंने रूपाली की कमर को अपने हाथों में उठा कर उसके चूतड़ों को रसोई की स्लैब पर रख दिया।
उसकी कमर को पकड़ कर थोड़ा आगे की तरफ खींचा जिससे उसकी चूत उभर कर बाहर की ओर आ गयी।
मैं अपनी जीभ से चूत को ऊपर से चाटने लगा।
फिर मैंने अपनी जीभ को उसकी चूत की गहराई में उतार दिया और उसकी चूत की दीवारों को जीभ से चाटने लगा।
उसकी चूत से शहद में डूबे प्री- कम को लगातार मैं अपनी जीभ से चाट रहा था।
रूपाली मेरे बालों को अपनी मुट्ठियों में पकड़ कर अपनी कमर को गोल- गोल चलाने लगी थी जैसे वो मेरी जीभ को अपनी चूत की और ज्यादा अंदर ले जाना चाहती हो।
उसके मुख से लगातार आह्ह … ह्ह्ह … ह्म्म्म … उफ्फ … हय्य्य … श्श्श्श्श … उम्म्म जैसी आवाजें आ रही थी।
अब उसकी चूत का दाना भी फड़कने लगा था।
उसने मेरी गर्दन को अपनी जाँघों में दबा लिया था; शायद अब वो कभी भी अपने अंत बिंदु को छूने वाली थी।
रूपाली ने काम्पते हुए शब्दों में मुझसे कहा- अब रुकना मत राहुल बिल्कुल भी … बस ऐसे ही चाटते रहो मेरी चूत को … मैं बस आने वाली हूँ!
अब रूपाली का बदन चिलखने लगा था और वासनावश से उसकी आँखें भी बंद हो गई थी।
“मैं आ रही हूँ आ रही हूँ … आह्ह्ह … माँ …” कहते हुए उसकी चूत से बाँध तोड़ कर कामरस बहने लगा।
जिसे मैं अपनी जीभ से चाट रहा था।
रूपाली का शरीर रह रह कर झटके खा रहा था और हर झटके के साथ उसकी चूत से लगातार रस बह रहा था जैसे कई दिनों से दबी उसकी कामाग्नि उसकी चूत के रास्ते निकल कर उसके शरीर को तृप्त कर रहा हो।
जितना मैं रस को चाटता, उतना ही रस उसके शरीर से एक और झटके के साथ चूत से बह जाता।
उसकी चूत से लगातार बहता हुआ रस स्लैब पर फैल कर नीचे रखे उसके कपड़ों पर चूने लगा था।
एक लम्बे स्खलन के बाद उसका शरीर अब धीरे- धीरे शिथिल होने लगा था और उसकी आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थी।
उसने अपने सिर को दीवाल के सहारे टिका लिया और खुद को शांत करने लगी।
उधर दूसरी तरफ मैं नीचे फर्श पर बैठ गया और रेलगाड़ी की तरह तेज़ चलती हुई सांस पर नियंत्रण बनाने की कोशिश करने लगा।
कुछ देर बाद मैंने एक नजर रूपाली को देखा उसकी आँखें अभी अवसाद जैसी अवस्था से बंद थी।
बिना कोई शोर किये मैं चुपचाप उठा और बाथरूम में घुस गया और अपने सीने पर लगे कामरस को साफ़ करके वापस बेडरूम में बिना कपड़ों के लेट गया।
कुछ देर बाद मेरी आँख रसोई से आते शोर से खुल गई।
मैंने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो रूपाली खाना बना रही थी।
रसोई को उसने वापस से व्यवस्थित कर दिया था और अपने कपड़ो को भी बाथरूम में डाल के एक लूज़ मैक्सी पहन ली थी।
मैं अभी भी नंगा ही था.
कुछ देर तक उसके गांड के छेद और छेद की तरफ बहते रस को चाटने के बाद मैंने उसको कमर से पकड़ के अपनी ओर घुमा लिया।
अब उसकी चिकनी बिना बालों वाली चूत मेरे सामने थी।
मैंने अंत में शहद के जार से बचा हुआ बाकी का सारा शहद हाथों में लेकर उसकी चूत पर मल दिया और कुछ शहद को चूत की गहराई में उतार दिया।
मैं अपनी जीभ से चूत के आस पास चाटने लगा।
कभी चूत के दाने को मुंह में भर कर दांत से दबा देता तो कभी चूत की पंखुड़ियों को होंठ में भर कर खींच लेता.
तो बस वो चहक उठती।
वो बार- बार मेरे बालों को खींचते हुए मेरे सर को चूत के ऊपर ले जाकर चूत को चटवाना चाहती थी।
लेकिन मेरा मन अभी उसे और तड़पाने का था।
आखिर रूपाली ने खीजते हुए कहा- चाटो न … क्यों सताते हो।
फिर मैंने उसके आग्रह पर जैसे ही चूत पर जीभ रख के चाटा तो स्वतः ही रूपाली के मुंह से आअह्ह निकल गई।
अब मैं चूत के दाने को होंठ में दबा कर खींचने लगा जिससे उसके मुंह से कामुक शब्द निकलने लगे- ऐसे ही चाटते रहो मेरी दुलारी को … कितना सुकून मिल रहा है मुझे भी और इसे भी … यस यस … सक इट!
मुझे रूपाली के बदन से खेलते हुए बहुत समय हो गया था जिससे रूपाली के पैरों में दर्द होने लगा था।
इसलिये मैंने उसे कमर से उठा कर रसोई की स्लैब पर बैठा दिया; मैंने रूपाली की कमर को अपने हाथों में उठा कर उसके चूतड़ों को रसोई की स्लैब पर रख दिया।
उसकी कमर को पकड़ कर थोड़ा आगे की तरफ खींचा जिससे उसकी चूत उभर कर बाहर की ओर आ गयी।
मैं अपनी जीभ से चूत को ऊपर से चाटने लगा।
फिर मैंने अपनी जीभ को उसकी चूत की गहराई में उतार दिया और उसकी चूत की दीवारों को जीभ से चाटने लगा।
उसकी चूत से शहद में डूबे प्री- कम को लगातार मैं अपनी जीभ से चाट रहा था।
रूपाली मेरे बालों को अपनी मुट्ठियों में पकड़ कर अपनी कमर को गोल- गोल चलाने लगी थी जैसे वो मेरी जीभ को अपनी चूत की और ज्यादा अंदर ले जाना चाहती हो।
उसके मुख से लगातार आह्ह … ह्ह्ह … ह्म्म्म … उफ्फ … हय्य्य … श्श्श्श्श … उम्म्म जैसी आवाजें आ रही थी।
अब उसकी चूत का दाना भी फड़कने लगा था।
उसने मेरी गर्दन को अपनी जाँघों में दबा लिया था; शायद अब वो कभी भी अपने अंत बिंदु को छूने वाली थी।
रूपाली ने काम्पते हुए शब्दों में मुझसे कहा- अब रुकना मत राहुल बिल्कुल भी … बस ऐसे ही चाटते रहो मेरी चूत को … मैं बस आने वाली हूँ!
अब रूपाली का बदन चिलखने लगा था और वासनावश से उसकी आँखें भी बंद हो गई थी।
“मैं आ रही हूँ आ रही हूँ … आह्ह्ह … माँ …” कहते हुए उसकी चूत से बाँध तोड़ कर कामरस बहने लगा।
जिसे मैं अपनी जीभ से चाट रहा था।
रूपाली का शरीर रह रह कर झटके खा रहा था और हर झटके के साथ उसकी चूत से लगातार रस बह रहा था जैसे कई दिनों से दबी उसकी कामाग्नि उसकी चूत के रास्ते निकल कर उसके शरीर को तृप्त कर रहा हो।
जितना मैं रस को चाटता, उतना ही रस उसके शरीर से एक और झटके के साथ चूत से बह जाता।
उसकी चूत से लगातार बहता हुआ रस स्लैब पर फैल कर नीचे रखे उसके कपड़ों पर चूने लगा था।
एक लम्बे स्खलन के बाद उसका शरीर अब धीरे- धीरे शिथिल होने लगा था और उसकी आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थी।
उसने अपने सिर को दीवाल के सहारे टिका लिया और खुद को शांत करने लगी।
उधर दूसरी तरफ मैं नीचे फर्श पर बैठ गया और रेलगाड़ी की तरह तेज़ चलती हुई सांस पर नियंत्रण बनाने की कोशिश करने लगा।
कुछ देर बाद मैंने एक नजर रूपाली को देखा उसकी आँखें अभी अवसाद जैसी अवस्था से बंद थी।
बिना कोई शोर किये मैं चुपचाप उठा और बाथरूम में घुस गया और अपने सीने पर लगे कामरस को साफ़ करके वापस बेडरूम में बिना कपड़ों के लेट गया।
कुछ देर बाद मेरी आँख रसोई से आते शोर से खुल गई।
मैंने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो रूपाली खाना बना रही थी।
रसोई को उसने वापस से व्यवस्थित कर दिया था और अपने कपड़ो को भी बाथरूम में डाल के एक लूज़ मैक्सी पहन ली थी।
मैं अभी भी नंगा ही था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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