22-02-2024, 05:29 PM
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उसकी चूत इतनी ज्यादा ठण्ड सह नहीं पायी और खुद को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए उसकी चूत ने पेशाब की गर्म मोटी धार छोड़ दी।
चूत से निकलती गर्म पेशाब की धार की वजह से अब बर्फ तेज़ी से पिघलने लगी थी। जिसकी वजह से बर्फ पानी बन कर उसकी पैंटी से रिस कर उसकी टांगों के बीच से होते हुए गर्म, मोटी और पीली धार से फर्श पर पड़े पेटीकोट को गीला करने लगी थी।
थोड़ी देर बाद उसकी चूत ने मूतना बंद कर दिया था।
मैंने हाथ आगे ले जा कर उसकी चूत का मुआयना किया जहाँ पहले एक बर्फ का टुकड़ा रखा हुआ था। जिसका अब नाम- ओ निशान मिट चुका था।
कुछ रह गया था तो बस चंद पेशाब की बूँद जो रह- रह कर उसकी पैंटी से टपक जाती।
मैं अपने दोनों हाथों के अंगूठों को उसकी पैंटी की इलास्टिक में फंसा कर धीरे- धीरे उसकी टांगों से निकालने लगा।
पैंटी को निकालने के बाद मैंने पैंटी के चूत के ऊपरी भाग वाले कपड़े को जीभ से छू कर देखा.
पेशाब की वजह से वो अभी भी गर्म था।
पैंटी से आती पेशाब की खुशबू और उससे चूती हुई बूंदों को देख कर मैं खुद को रोक न सका और पैंटी के तिकोने भाग को मुंह में भर कर जोर से दबा लिया.
जिससे मेरे मुंह में पैंटी से रिसने वाली पेशाब का एक बड़ा घूँट मेरे मुख में भर गया।
मुझे पेशाब के साथ रूपाली के प्री- कम और बर्फ वाले पानी का स्वाद मिल रहा था और खुशबू तो ऐसी जैसी कई वर्षो पुरानी शराब हो।
मैं जितनी देर उसे मुंह में रोक के रखता, उतना ही ज्यादा मुझे नशा चढ़ता जा रहा था.
ऐसा नशा जैसे कोई महंगी शराब पी ली हो।
तब मुझे समझ आया कि लोग आजकल क्यों सेक्स के साथ पेशाब भी पीया करते हैं।
मैंने मौसी के पेशाब को गले से नीचे उतार लिया।
तब मैंने उठ कर रूपाली की तरफ देखा.
वो स्लेब पर पेट के बल झुक कर सर टिका के खड़ी थी और उसकी साँस तो ऐसी तेज चल रही थी जैसे बहुत से दूर भाग कर आयी हो।
मैंने अपने सारे कपड़े लोवर, टी- शर्ट और अंडरवियर खुद उतार कर रसोई के बाहर फेंक दिए और आगे बढ़कर उसकी पीठ को सहलाने लगा.
थोड़ी देर में रूपाली सामान्य हो गयी थी।
मैंने उसकी आँखों में झांककर उससे आगे बढने की मूक सहमति मांगी तो उसने भी अपनी पलकें झुका के सहमति दे दी।
तब मैंने अपने हाथ में शहद लेकर उसके गोरे- गोरे, गोल और चिकने चूतड़ों पर लगा कर उनको भूरे रंग कर दिया और हाथ की बड़ी वाली उंगली में थोड़ा सा शहद लेकर गांड के छेद में लगाकर अंदर भर दिया।
फिर मैंने अपनी जीभ को निकाल कर उसके बायें वाले चूतड़ पर रख दी और उसपर लगे शहद को चाटने लगा।
एक चूतड़ पर लगे शहद को देर तक चाटने के बाद जब मैं दूसरे की तरफ जाने लगा तो मैंने दोनों चूतड़ को हाथ से फैला कर उसके गांड के छेद को जीभ से छेड़ दिया।
इससे वो फिर से वासना से गनगना गई।
फिर मैं उसके दायें वाले चूतड़ को चाटने लगा।
दोनों चूतड़ों पर लगे शहद को चाटने और हाथों से मसलने से दोनों चूतड़ गुलाबी हो गये थे।
रूपाली भी अब अपनी गांड को इधर उधर मटका कर अपने शरीर में बढ़ते कमावेश के संकेत देने लगी थी।
मैंने पुनः अपनी जीभ को गांड के छेद की ओर बढ़ा दिया। मैंने उसकी कमर को हाथों में पकड़ कर थोड़ा अपनी ओर झुका लिया और उसके दोनों चूतड़ों को हाथों से फैला कर अलग कर दिया।
तब मैंने उसके भूरे रंग के छेद यानि गांड के छेद पर अपनी जीभ रख दी और धीरे से उसे चाटने लगा।
कभी छेद के ऊपर जीभ घुमाता तो कभी जीभ को गांड के अंदर घुसाने की कोशिश करने लगता।
रूपाली भी अब बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी जिससे वो खुद अपने हाथों से चूतड़ों को फैला कर अपनी गांड खोलकर मेरी जीभ के लिय रास्ता बना रही थी।
कुछ देर तक मौसी की गांड के छेद से खेलने के बाद मैंने उसकी गांड के छेद और चूत के बीच में उभरी हुई बारीक सी मांस की लकीर पर मैंने अपनी जीभ रख दी।
धीरे- धीरे उस मांस की पगडंडी पर जीभ को चलाते हुए उसकी चूत की तरफ बढ़ने लगा।
रूपाली ने भी वासना के कारण अपनी टांगों को फैला कर जीभ को चूत की तरफ आने का निमंत्रण दे दिया था।
रूपाली एक हाथ से चूत को सहलाते हुए मादक आवाजें करने लगी थी- आह्ह … ह्ह्ह … अह्ह … उम्मम हाय हाय।
उसकी चूत से रस रिसते हुए नीचे की ओर आ रहा था जिसे मैं बड़े चाव से चाट रहा था।
उसकी चूत इतनी ज्यादा ठण्ड सह नहीं पायी और खुद को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए उसकी चूत ने पेशाब की गर्म मोटी धार छोड़ दी।
चूत से निकलती गर्म पेशाब की धार की वजह से अब बर्फ तेज़ी से पिघलने लगी थी। जिसकी वजह से बर्फ पानी बन कर उसकी पैंटी से रिस कर उसकी टांगों के बीच से होते हुए गर्म, मोटी और पीली धार से फर्श पर पड़े पेटीकोट को गीला करने लगी थी।
थोड़ी देर बाद उसकी चूत ने मूतना बंद कर दिया था।
मैंने हाथ आगे ले जा कर उसकी चूत का मुआयना किया जहाँ पहले एक बर्फ का टुकड़ा रखा हुआ था। जिसका अब नाम- ओ निशान मिट चुका था।
कुछ रह गया था तो बस चंद पेशाब की बूँद जो रह- रह कर उसकी पैंटी से टपक जाती।
मैं अपने दोनों हाथों के अंगूठों को उसकी पैंटी की इलास्टिक में फंसा कर धीरे- धीरे उसकी टांगों से निकालने लगा।
पैंटी को निकालने के बाद मैंने पैंटी के चूत के ऊपरी भाग वाले कपड़े को जीभ से छू कर देखा.
पेशाब की वजह से वो अभी भी गर्म था।
पैंटी से आती पेशाब की खुशबू और उससे चूती हुई बूंदों को देख कर मैं खुद को रोक न सका और पैंटी के तिकोने भाग को मुंह में भर कर जोर से दबा लिया.
जिससे मेरे मुंह में पैंटी से रिसने वाली पेशाब का एक बड़ा घूँट मेरे मुख में भर गया।
मुझे पेशाब के साथ रूपाली के प्री- कम और बर्फ वाले पानी का स्वाद मिल रहा था और खुशबू तो ऐसी जैसी कई वर्षो पुरानी शराब हो।
मैं जितनी देर उसे मुंह में रोक के रखता, उतना ही ज्यादा मुझे नशा चढ़ता जा रहा था.
ऐसा नशा जैसे कोई महंगी शराब पी ली हो।
तब मुझे समझ आया कि लोग आजकल क्यों सेक्स के साथ पेशाब भी पीया करते हैं।
मैंने मौसी के पेशाब को गले से नीचे उतार लिया।
तब मैंने उठ कर रूपाली की तरफ देखा.
वो स्लेब पर पेट के बल झुक कर सर टिका के खड़ी थी और उसकी साँस तो ऐसी तेज चल रही थी जैसे बहुत से दूर भाग कर आयी हो।
मैंने अपने सारे कपड़े लोवर, टी- शर्ट और अंडरवियर खुद उतार कर रसोई के बाहर फेंक दिए और आगे बढ़कर उसकी पीठ को सहलाने लगा.
थोड़ी देर में रूपाली सामान्य हो गयी थी।
मैंने उसकी आँखों में झांककर उससे आगे बढने की मूक सहमति मांगी तो उसने भी अपनी पलकें झुका के सहमति दे दी।
तब मैंने अपने हाथ में शहद लेकर उसके गोरे- गोरे, गोल और चिकने चूतड़ों पर लगा कर उनको भूरे रंग कर दिया और हाथ की बड़ी वाली उंगली में थोड़ा सा शहद लेकर गांड के छेद में लगाकर अंदर भर दिया।
फिर मैंने अपनी जीभ को निकाल कर उसके बायें वाले चूतड़ पर रख दी और उसपर लगे शहद को चाटने लगा।
एक चूतड़ पर लगे शहद को देर तक चाटने के बाद जब मैं दूसरे की तरफ जाने लगा तो मैंने दोनों चूतड़ को हाथ से फैला कर उसके गांड के छेद को जीभ से छेड़ दिया।
इससे वो फिर से वासना से गनगना गई।
फिर मैं उसके दायें वाले चूतड़ को चाटने लगा।
दोनों चूतड़ों पर लगे शहद को चाटने और हाथों से मसलने से दोनों चूतड़ गुलाबी हो गये थे।
रूपाली भी अब अपनी गांड को इधर उधर मटका कर अपने शरीर में बढ़ते कमावेश के संकेत देने लगी थी।
मैंने पुनः अपनी जीभ को गांड के छेद की ओर बढ़ा दिया। मैंने उसकी कमर को हाथों में पकड़ कर थोड़ा अपनी ओर झुका लिया और उसके दोनों चूतड़ों को हाथों से फैला कर अलग कर दिया।
तब मैंने उसके भूरे रंग के छेद यानि गांड के छेद पर अपनी जीभ रख दी और धीरे से उसे चाटने लगा।
कभी छेद के ऊपर जीभ घुमाता तो कभी जीभ को गांड के अंदर घुसाने की कोशिश करने लगता।
रूपाली भी अब बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी जिससे वो खुद अपने हाथों से चूतड़ों को फैला कर अपनी गांड खोलकर मेरी जीभ के लिय रास्ता बना रही थी।
कुछ देर तक मौसी की गांड के छेद से खेलने के बाद मैंने उसकी गांड के छेद और चूत के बीच में उभरी हुई बारीक सी मांस की लकीर पर मैंने अपनी जीभ रख दी।
धीरे- धीरे उस मांस की पगडंडी पर जीभ को चलाते हुए उसकी चूत की तरफ बढ़ने लगा।
रूपाली ने भी वासना के कारण अपनी टांगों को फैला कर जीभ को चूत की तरफ आने का निमंत्रण दे दिया था।
रूपाली एक हाथ से चूत को सहलाते हुए मादक आवाजें करने लगी थी- आह्ह … ह्ह्ह … अह्ह … उम्मम हाय हाय।
उसकी चूत से रस रिसते हुए नीचे की ओर आ रहा था जिसे मैं बड़े चाव से चाट रहा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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