22-02-2024, 05:24 PM
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मैं- क्या मतलब घर में तो दिख नहीं रहा क्या पड़ोस में खेलने गया है?
रूपाली- नहीं! जब से उसे पता चला कि उसके पापा आगरा जा रहे हैं तो वो भी साथ में जाने की जिद करने लगा इसलिए ये आज सुबह उसे भी साथ में ले गये।
मैं- यानि कि अब चार दिनों के लिए इस घर में सिर्फ तुम और मैं!
रूपाली- हाँ केवल हम दोनों!
इतना बोल कर उसके मुख पर कातिलाना मुस्कान तैर गयी।
मैं तो घर से चला था गुलाबजामुन का मज़ा लेने के लिए लेकिन यहाँ तो रसमलाई मेरा इंतज़ार कर रही थी।
अब मैं बोला- यार, बहुत भूख लगी है तुमसे मिलने की ख़ुशी के चक्कर में घर से बिना खाए ही चला आया।
रूपाली- बस थोड़ी देर रुको, रसोई का काम खत्म कर करके आपके लिय कुछ बनाती हूँ।
फिर रूपाली रसोई में चली गयी।
कमरे में बैठे बैठे मैं बोर हो रहा था इसलिए मैं उसके बेडरूम में गया अपने कपड़े बदलकर लोवर और टी-शर्ट पहन ली और रसोई में चला गया।
जैसे ही वो मेरे तरफ मुड़ी तो मुझे उसके कामुक शरीर में कुछ परिवर्तन दिखाई दिए।
उसकी चूचियों का आकार अब शायद 34C हो गया था जो किसी किले की मेहराब की तरह उठी हुई ठोस और घमंड से फूली हुई लग रही थी।
कमर की नाप भी अब 30 हो गया था जैसे पेट से अतिरिक्त चर्बी को निकाला गया हो लेकिन उसके चूतड़ों का आकार आज भी वही था 36 … बस फर्क इतना था कि अब दोनों चूतड़ों ने गजब का उठान ले रखा था।
रूपाली सुन्दर आकर्षक और मनमोहिनी तो पहले से ही थी लेकिन अब उसके इस छरहरे बदन की वजह से उसे पहले से कही ज्यादा कामुक और कातिलाना बना दिया था।
अब जब वो कहीं से भी निकलती होगी तो हर उम्र का पुरुष उसे पाने के ख्वाब जरूर देखता होगा और जो उसे हासिल नहीं कर पता होगा वो उसकी छवि को अपने मन में लाकर मुठ मार के खुश हो जाता होगा।
बाकी मर्दों से मैं खुद को थोड़ा ज्यादा भाग्यशाली मानता हूँ।
अभी मैं अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था कि रूपाली ने मेरे बायें गाल को चूम कर मेरी तन्द्रा भंग की।
रूपाली- कहा खो गये आप?
मैं- कहीं नहीं, बस तुम्हारे बारे में सोच रहा था।
अब मैं रसोई की स्लैब पर बैठ कर रूपाली से बात करने लगा।
मैं- एक बात पूछूं रूपाली?
रूपाली- हां पूछिए।
मैं- मैं तो तुम्हारा नाम ले रहा हूँ लेकिन तुम मेरा नाम नहीं ले रही … ऐसा क्यों!
रूपाली- वो इस लिए क्योंकि पति तो पत्नी का नाम ले सकता है लेकिन पत्नी अपने पति का नाम नहीं लेती। मैं तो आपको अब अपना पति मानती हूँ फिर चाहे आप मुझे अपनी पत्नी मानो या नहीं!
ख़ुशी के वशीभूत होकर मैंने रूपाली के होंठों पर छोटा सा चुम्बन अंकित कर दिया।
रूपाली भी खुश होकर वापस अपने काम में व्यस्त हो गयी।
उसके सर पर बालों का जूड़ा और पीछे आधे से ज्यादा खुला ब्लाउज जिस पर दो उँगलियों की चौड़ाई जितनी कपड़े की पट्टी थी।
जिससे बाकी पीठ पूरी नंगी थी और उसने साड़ी का पल्लू को कमर में खोस रखा था।
ये सब देखकर मैं खुद पर काबू नहीं रख सका और आगे बढ़ कर उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए और धीरे धीरे उसकी गर्दन को चूमने के साथ जीभ से चाटकर गीला करने लगा।
कुछ देर तक उसकी गर्दन को चूमने के बाद मैंने अपने सीधे हाथ को ऊपर ले जाकर उसके बालों का जूड़ा खोल दिया।
उसके खुले हुए बालों को मैंने हाथों से आगे करके उसके दायें वक्ष के उपर बिखरा दिया।
कई मिनट तक उसकी गर्दन को चूमने की वजह से रूपाली के बदन की गर्मी भी बढ़ने लगी थी लेकिन वो अभी कुछ हद तक अपने काम में व्यस्त थी।
तभी मेरी नज़र अलमारी पर रखे शहद के जार पर पड़ी। मैंने हाथ आगे बढ़ा कर शहद का जार उठा लिया और उसमें से थोड़ा सा शहद अपने हाथों में निकालकर उसकी पीठ पर अच्छे से लगा दिया। मैं अपनी जीभ को नुकीला कर के उसकी नंगी पीठ पर घुमा- घुमा कर शहद चाटने लगा।
अब रूपाली भी गर्म होने लगी थी जिसकी वजह उसके मुंह से वासना की तरंगें स्वर बन कर फूटने लगी थी।
रूपाली- अहह … ह्ह्ह … श … ओह्ह … आपकी इन्ही शैतानियों की तो मैं शुरू से कायल हूँ। कब से ये जिस्म आपके प्यार का भूखा है। आपको याद करके मैं और मेरी चूत दोनों अक्सर गीली हो जाती है।
उसके ब्लाउज का हुक आगे उसकी चूचियों की दरार में कहीं छिपा हुआ था। मैंने हाथ आगे बढ़ा कर हुक खोलना चाहा लेकिन हुक दिखाई न देने की वजह से मैं सफल न हो सका।
तो मैंने अपनी नजर को रसोई में घुमा कर देखा तो मेरी नजर फ्रिज के उपर रखी कैंची पर पड़ी।
मैंने कैची उठा कर रूपाली के ब्लाउज की कपड़े की पट्टी को बीच से काट दिया। जिसके बाद उसकी चूचियां थोड़ी और बाहर की तरफ निकल आयी।
उसका ब्लाउज अभी भी उसके दोनों कंधों में फंसा हुआ था।
फिर मैंने अपने हाथों से उसके कंधों में फंसी ब्लाउज की बांह को बारी-बारी से उतार कर ब्लाउज को उसके बदन से अलग कर दिया।
अब उसकी गोरी और नर्म त्वचा वाली पीठ मेरे सामने अल्फ़ नंगी थी। जिस पर मैंने अपने हाथों से थोड़ा सा शहद और चुपड़ दिया।
फिर मैं अपने हाथ आगे लेजा कर उसकी सुंदर सुडौल गोल आकार वाली चूचियों को मसलते हुए अपनी जुबाँ से चाटकर उसकी पीठ अपनी लार से चिकना करने लगा।
मेरी इस तरह लगातार हरकत करती हुई जीभ से रूपाली को खुद को रोक न पायी और रसोई की स्लेब को पकड़ कर किसी मूर्ति की तरह खड़ी हो गयी।
अब मैंने थोड़ा आगे बढने की सोची.
मैं उसकी कमर में अटके साड़ी के पल्लू को हाथों में लेकर साड़ी को खोलने लगा।
साड़ी उतारने में रूपाली ने मेरी मदद की।
उसके बदन से साड़ी को अलग करने के बाद मैंने साड़ी को रसोई के एक कोने में फेंक दिया।
फिर मैं उसकी नाजुक लचकाती हुई कमर पर गोल गोल जीभ फिराने लगा।
उसकी कमर को चाटते हुए मैंने उसके कमर पर बंधे पेटीकोट के नाड़े को अपने दांतों में दबा कर जैसे ही खीचा वैसे ही पेटीकोट के नाड़े की गांठ खुल गयी और पेटीकोट उसके बदन से चिपके रहने की मिन्नतें करते हुए फर्श पर जा गिरा।
पेटीकोट उसके बदन से अलग होकर उसके टांगों के पास पड़ा हुआ था।
अब मुझे मौसी की गोरी, चिकनी बालरहित दो टाँगें दिखाई दे रही थी।
मोटी मांसल जांघें, पुष्ट पिंडलियाँ और कमर पर विराजमान समान आकार एक जैसी गोलाई, गोरी रंगत वाले दो ठोस चूतड़।
उन चूतड़ों को एक वी आकार वाली पैंटी ने आधा- आधा ढक रखा था।
मैं उसकी पैंटी से बाहर झाकते चूतड़ों को बारी बारी चूमने लगा।
मैंने अपने हाथों में थोड़ा सा शहद ले उनकी टांगों पर लगा दिया।
मैं- क्या मतलब घर में तो दिख नहीं रहा क्या पड़ोस में खेलने गया है?
रूपाली- नहीं! जब से उसे पता चला कि उसके पापा आगरा जा रहे हैं तो वो भी साथ में जाने की जिद करने लगा इसलिए ये आज सुबह उसे भी साथ में ले गये।
मैं- यानि कि अब चार दिनों के लिए इस घर में सिर्फ तुम और मैं!
रूपाली- हाँ केवल हम दोनों!
इतना बोल कर उसके मुख पर कातिलाना मुस्कान तैर गयी।
मैं तो घर से चला था गुलाबजामुन का मज़ा लेने के लिए लेकिन यहाँ तो रसमलाई मेरा इंतज़ार कर रही थी।
अब मैं बोला- यार, बहुत भूख लगी है तुमसे मिलने की ख़ुशी के चक्कर में घर से बिना खाए ही चला आया।
रूपाली- बस थोड़ी देर रुको, रसोई का काम खत्म कर करके आपके लिय कुछ बनाती हूँ।
फिर रूपाली रसोई में चली गयी।
कमरे में बैठे बैठे मैं बोर हो रहा था इसलिए मैं उसके बेडरूम में गया अपने कपड़े बदलकर लोवर और टी-शर्ट पहन ली और रसोई में चला गया।
जैसे ही वो मेरे तरफ मुड़ी तो मुझे उसके कामुक शरीर में कुछ परिवर्तन दिखाई दिए।
उसकी चूचियों का आकार अब शायद 34C हो गया था जो किसी किले की मेहराब की तरह उठी हुई ठोस और घमंड से फूली हुई लग रही थी।
कमर की नाप भी अब 30 हो गया था जैसे पेट से अतिरिक्त चर्बी को निकाला गया हो लेकिन उसके चूतड़ों का आकार आज भी वही था 36 … बस फर्क इतना था कि अब दोनों चूतड़ों ने गजब का उठान ले रखा था।
रूपाली सुन्दर आकर्षक और मनमोहिनी तो पहले से ही थी लेकिन अब उसके इस छरहरे बदन की वजह से उसे पहले से कही ज्यादा कामुक और कातिलाना बना दिया था।
अब जब वो कहीं से भी निकलती होगी तो हर उम्र का पुरुष उसे पाने के ख्वाब जरूर देखता होगा और जो उसे हासिल नहीं कर पता होगा वो उसकी छवि को अपने मन में लाकर मुठ मार के खुश हो जाता होगा।
बाकी मर्दों से मैं खुद को थोड़ा ज्यादा भाग्यशाली मानता हूँ।
अभी मैं अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था कि रूपाली ने मेरे बायें गाल को चूम कर मेरी तन्द्रा भंग की।
रूपाली- कहा खो गये आप?
मैं- कहीं नहीं, बस तुम्हारे बारे में सोच रहा था।
अब मैं रसोई की स्लैब पर बैठ कर रूपाली से बात करने लगा।
मैं- एक बात पूछूं रूपाली?
रूपाली- हां पूछिए।
मैं- मैं तो तुम्हारा नाम ले रहा हूँ लेकिन तुम मेरा नाम नहीं ले रही … ऐसा क्यों!
रूपाली- वो इस लिए क्योंकि पति तो पत्नी का नाम ले सकता है लेकिन पत्नी अपने पति का नाम नहीं लेती। मैं तो आपको अब अपना पति मानती हूँ फिर चाहे आप मुझे अपनी पत्नी मानो या नहीं!
ख़ुशी के वशीभूत होकर मैंने रूपाली के होंठों पर छोटा सा चुम्बन अंकित कर दिया।
रूपाली भी खुश होकर वापस अपने काम में व्यस्त हो गयी।
उसके सर पर बालों का जूड़ा और पीछे आधे से ज्यादा खुला ब्लाउज जिस पर दो उँगलियों की चौड़ाई जितनी कपड़े की पट्टी थी।
जिससे बाकी पीठ पूरी नंगी थी और उसने साड़ी का पल्लू को कमर में खोस रखा था।
ये सब देखकर मैं खुद पर काबू नहीं रख सका और आगे बढ़ कर उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए और धीरे धीरे उसकी गर्दन को चूमने के साथ जीभ से चाटकर गीला करने लगा।
कुछ देर तक उसकी गर्दन को चूमने के बाद मैंने अपने सीधे हाथ को ऊपर ले जाकर उसके बालों का जूड़ा खोल दिया।
उसके खुले हुए बालों को मैंने हाथों से आगे करके उसके दायें वक्ष के उपर बिखरा दिया।
कई मिनट तक उसकी गर्दन को चूमने की वजह से रूपाली के बदन की गर्मी भी बढ़ने लगी थी लेकिन वो अभी कुछ हद तक अपने काम में व्यस्त थी।
तभी मेरी नज़र अलमारी पर रखे शहद के जार पर पड़ी। मैंने हाथ आगे बढ़ा कर शहद का जार उठा लिया और उसमें से थोड़ा सा शहद अपने हाथों में निकालकर उसकी पीठ पर अच्छे से लगा दिया। मैं अपनी जीभ को नुकीला कर के उसकी नंगी पीठ पर घुमा- घुमा कर शहद चाटने लगा।
अब रूपाली भी गर्म होने लगी थी जिसकी वजह उसके मुंह से वासना की तरंगें स्वर बन कर फूटने लगी थी।
रूपाली- अहह … ह्ह्ह … श … ओह्ह … आपकी इन्ही शैतानियों की तो मैं शुरू से कायल हूँ। कब से ये जिस्म आपके प्यार का भूखा है। आपको याद करके मैं और मेरी चूत दोनों अक्सर गीली हो जाती है।
उसके ब्लाउज का हुक आगे उसकी चूचियों की दरार में कहीं छिपा हुआ था। मैंने हाथ आगे बढ़ा कर हुक खोलना चाहा लेकिन हुक दिखाई न देने की वजह से मैं सफल न हो सका।
तो मैंने अपनी नजर को रसोई में घुमा कर देखा तो मेरी नजर फ्रिज के उपर रखी कैंची पर पड़ी।
मैंने कैची उठा कर रूपाली के ब्लाउज की कपड़े की पट्टी को बीच से काट दिया। जिसके बाद उसकी चूचियां थोड़ी और बाहर की तरफ निकल आयी।
उसका ब्लाउज अभी भी उसके दोनों कंधों में फंसा हुआ था।
फिर मैंने अपने हाथों से उसके कंधों में फंसी ब्लाउज की बांह को बारी-बारी से उतार कर ब्लाउज को उसके बदन से अलग कर दिया।
अब उसकी गोरी और नर्म त्वचा वाली पीठ मेरे सामने अल्फ़ नंगी थी। जिस पर मैंने अपने हाथों से थोड़ा सा शहद और चुपड़ दिया।
फिर मैं अपने हाथ आगे लेजा कर उसकी सुंदर सुडौल गोल आकार वाली चूचियों को मसलते हुए अपनी जुबाँ से चाटकर उसकी पीठ अपनी लार से चिकना करने लगा।
मेरी इस तरह लगातार हरकत करती हुई जीभ से रूपाली को खुद को रोक न पायी और रसोई की स्लेब को पकड़ कर किसी मूर्ति की तरह खड़ी हो गयी।
अब मैंने थोड़ा आगे बढने की सोची.
मैं उसकी कमर में अटके साड़ी के पल्लू को हाथों में लेकर साड़ी को खोलने लगा।
साड़ी उतारने में रूपाली ने मेरी मदद की।
उसके बदन से साड़ी को अलग करने के बाद मैंने साड़ी को रसोई के एक कोने में फेंक दिया।
फिर मैं उसकी नाजुक लचकाती हुई कमर पर गोल गोल जीभ फिराने लगा।
उसकी कमर को चाटते हुए मैंने उसके कमर पर बंधे पेटीकोट के नाड़े को अपने दांतों में दबा कर जैसे ही खीचा वैसे ही पेटीकोट के नाड़े की गांठ खुल गयी और पेटीकोट उसके बदन से चिपके रहने की मिन्नतें करते हुए फर्श पर जा गिरा।
पेटीकोट उसके बदन से अलग होकर उसके टांगों के पास पड़ा हुआ था।
अब मुझे मौसी की गोरी, चिकनी बालरहित दो टाँगें दिखाई दे रही थी।
मोटी मांसल जांघें, पुष्ट पिंडलियाँ और कमर पर विराजमान समान आकार एक जैसी गोलाई, गोरी रंगत वाले दो ठोस चूतड़।
उन चूतड़ों को एक वी आकार वाली पैंटी ने आधा- आधा ढक रखा था।
मैं उसकी पैंटी से बाहर झाकते चूतड़ों को बारी बारी चूमने लगा।
मैंने अपने हाथों में थोड़ा सा शहद ले उनकी टांगों पर लगा दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
