फ़ौरन ही आपी के हँसने की आवाज़ पर मैं घूमा, तो आपी बेतहाशा हँस रही थीं और उनके चेहरे पर जीत की खुशी थी।
उन्होंने हँसते-हँसते ही कहा- “कमीने! तुमने बदला ले लिया है, यह अलग बात है कि इसका नुक़सान मुझे हुआ ही नहीं लेकिन हिसाब बराबर हो गया है। अब तुम दूसरी कोशिश नहीं कर सकते समझ गए?”
"ओके! मेरा वादा है कि दोबारा कोशिश नहीं करूँगा, हिसाब बराबर" - मैंने कन्फ्यूज़ और कुछ ना समझ आने वाली कैफियत में जवाब दिया।
आपी ने मुझे कन्फ्यूज़ देखा तो मेरी कैफियत को समझते हुए और मेरी हालत से लुत्फ़-अंदोज़ होते हुए कहा- “उल्लू के चरखे! कन्फ्यूज़ ना हो, मैं महीने से हूँ और शुरू के और आखिरी दिनों में मेरा बहुत हैवी फ्लो होता है इसलिए में डबल पैड लगाती हूँ, आज आखिरी दिन है, समझे बुद्धू”
यह कह कर उन्होंने एक नज़र मुझ पर डाली और फिर खिलखिला कर हँस पड़ीं क्योंकि मेरी शक्ल ही ऐसे हो रही थी। मेरी हालत उस शख्स जैसी थी जैसे भरे बाज़ार में किसी गंजे के सिर पर कोई एक चपत रसीद करके भाग गया हो।
आपी ने मुझे वॉर्निंग देते हुए कहा- “मैंने भी तुमसे एक बात का बदला लेना है, मैं भूली नहीं हूँ उस बात को”
मैंने पूछा- “कौन सी बात?”
आपी ने जवाब दिया- “मैं सही टाइम पर ही बदला लूँगी, अभी नहीं… देखो शायद वो टाइम आ जाए और हो सकता है कि ऐसा टाइम कभी ना आए”
मैं कुछ देर खड़ा रहा फिर झेंपी सी हँसी हँसते हुए, सिर खुजाते किचन में चला गया और आपी भी उठ कर अपने कमरे की तरफ चली गईं लेकिन मैंने देखा था आपी के चेहरे पर अभी भी शैतानी मुस्कुराहट सजी थी।
मैंने पानी पीकर कमरे में ले जाने के लिए जग भरा और किचन से निकला तो आपी भी अपने कमरे से बाहर आ रही थीं। वो अभी-अभी मुँह हाथ धोकर आई थीं, उनका चेहरा बहुत बहुत ज्यादा खूबसूरत और फ्रेश लग रहा था।
उन्होंने क्रीम रंग का स्कार्फ जिस पर बड़े-बड़े लाल फूल थे, बहुत सलीक़े से अपने मख़सूस अंदाज़ में सिर पर बाँध रखा था। क्रीम रंग की ही कॉटन की कलफ लगी क़मीज़ थी और उस पर भी लाल रंग के बारे बारे फूल थे। सफ़ेद कॉटन की सादा सी सलवार थी।
आपी ने अपने जिस्म के गिर्द ग्रे कलर की बड़ी सी चादर लपेट रखी थी, वो नंगे पाँव थीं।
उनके गोरे पाँव मैरून कार्पेट पर बहुत खिल रहे थे।
“आपी! आप इस सूट में बहुत ज्यादा हसीन लग रही हैं” - मैंने भरपूर नज़र आपी पर डालते हुए कहा।
"अच्छा अभी तो तुमने सही तरह से सूट देखा ही कहाँ है, चलो तुम भी क्या याद करोगे, देख लो" - ये कहते हुए आपी ने अपनी चादर उतारी और अपने बाज़ू पर लटका दी।
आपी के चादर हटते ही उनके बड़े-बड़े मम्मे मेरी नजरों के सामने थे। आपी की ये क़मीज़ भी उनकी बाक़ी सब कमीजों की तरह टाइट थी और आपी के मम्मे उनमें बुरी तरह से दबे हुए थे। ब्रा का रंग नहीं मालूम पड़ रहा था लेकिन गौर से देखने पर पता चलता था जहाँ-जहाँ ब्रा का कपड़ा मौजूद था वहाँ-वहाँ से क़मीज़ का रंग गहरा हो गया था और ब्रा की शेप और डिजाइन वज़या नज़र आ रहा था। ब्रा ही की वजह से निप्पल बिल्कुल छुप गए थे और उनका निशान भी नहीं नज़र आता था।
"यार आपी! ये इतने ज्यादा दबे हुए हैं, इतना टाइट होने से इनमें दर्द नहीं होता क्या?" - मैंने अपनी सग़ी बहन के सीने के उभारों पर ही नज़र जमाए हुए उनसे पूछा।
"अरे नहीं यार! अब आदत हो गई है बिल्कुल भी महसूस नहीं होता लेकिन जब ब्रा पहनना शुरू किया था तो उस वक़्त मैं बहुत तंग होती थी, ब्रा ना पहनने पर रोज़ ही अम्मी से डांट पड़ती थी और उस वक़्त ब्रा से बचने के लिए ही मैंने बड़ी सी चादर लेनी शुरू की थी जो बाद में मेरी आदत ही बन गई" - आपी ने यह कह कर मेरे हाथ से जग लिया और जग से ही मुँह लगा कर पानी पीने लगीं।
पानी पीकर वो सोफे के तरफ बढ़ीं तो मैंने कहा- “आप यहीं रहना, मैं पानी कमरे में रख कर आता हूँ”
मैं कमरे में पहुँचा तो फरहान सो रहा था। मैंने उसके पास पानी रखा और बाहर निकल कर दरवाज़ा बंद करते हुए मैंने बाहर से लॉक भी कर दिया। जब मैं वापस नीचे हॉल में पहुँचा तो आपी सोफे पर अपने पाँव कूल्हों से मिलाए और घुटने सीने से लगा कर घुटनों पर अपनी ठोड़ी टिकाए बैठी थीं। आपी ने दोनों बाजुओं को अपनी टाँगों से लपेट रखा था, उनकी चादर और स्कार्फ दोनों ही नीचे कार्पेट पर पड़े थे।
मैंने उनके बिल्कुल सामने ज़मीन पर बिछे कार्पेट पर बैठ कर पूछा- “तो फिर आपने ब्रा कैसे पहनना शुरू की?”
"बाजी को पता था कि मैं ब्रा नहीं पहनती हूँ और इस बात को सबसे छुपाने के लिए बड़ी सी चादर लिए रखती हूँ तो उन्होंने ही मुझे समझाया था कि ब्रा ना पहनने से ये लटक जाएंगे और इनकी शेप भी खराब हो जाएगी और ब्रेस्ट कैन्सर जैसी बीमारी भी लग सकती है वगैरह वगैरह"
अब मैं आपसे बाजी का तवारूफ भी करवा दूँ, हम अपनी सबसे बड़ी बहन जिनका नाम समीना है.. उनको बाजी कह कर बुलाते हैं। वो आपी से 7 साल बड़ी हैं। उनकी शादी 4 साल पहले हुई थी उनके शौहर उनके साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे, वहाँ ही उनका लव हुआ लेकिन शादी दोनों के घरवालों की मर्ज़ी से हँसी खुशी हुई थी और अब बाजी अपने सुसराल वालों के साथ लाहौर में रहती हैं। बाक़ी की तफ़सील उस वक़्त बताऊँगा जब वो हमारी कहानी में शामिल होंगी। तब तक के लिए इन्तजार कीजिए।
"उस वक़्त क्या उम्र थी आपकी?" -मैंने पूछा।
आपी ने अपनी आँखें छत की तरफ़ कर के सोचते हुए कहा- “मैं उस वक़्त तकरीबन 14 साल की थी"
आपी की बात खत्म होते ही मैंने एक और सवाल कर दिया- “आपी आपके दूध किस उमर में निकले थे कि आपको 14 साल की उम्र में ब्रा की जरूरत पड़ गई”
“गुठलियाँ सी तो 10 साल की उम्र में ही बन गई थीं और 12 साल की उम्र में साफ नज़र आने लगी थीं और 14 साल में तो फुल डवलप हो चुके थे। मैंने पहली बार ब्रा 28सी साइज़ का पहना था। तभी तो अम्मी डांटा करती थीं कि मामू वगैरह घर आते थे तो अम्मी को शर्म आती थी”
"इतनी जल्दी निकल आते हैं क्या दूध?" - मैंने हैरत से पूछा।
आपी ने कहा- “नहीं, हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता, नॉर्मली तो 13 साल की उम्र में गुठलियाँ ही होती हैं लेकिन हम लोगों का ये खानदानी सिलसिला है। बाजी और सलमा खाला के भी 10 साल की उम्र में शुरू हो गए थे और नानी बताती हैं कि अम्मी के और उनके अपने तो 10 साल की उम्र में इतने बड़े थे जितने हमारे 13 साल की उम्र में थे और उन दोनों की ही गुठलियाँ तो 7 साल की उम्र में ही बन गई थीं इसी लिए तो सब के इतने बड़े-बड़े हैं। तुमने भी नोटिस किए ही होंगे, मैं जानती हूँ कि तुम बहुत बड़े कमीने हो” - आपी ने ये कहा और मुझे देख कर शरारती अंदाज़ में मुस्कुराने लगीं।
मैंने फ़ौरन कहा- “नहीं आपी! आपकी कसम मैंने कभी नानी या अम्मी के बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा”
"अच्छा इसका मतलब है बाजी और सलमा खाला के बारे में सोचा है, हाँ!"
"आपी आपको तो पता है, एक तो बाजी का जिस्म इतना भरा-भरा है और बाजी और खाला आपकी तरह चादर लेना तो दूर की बात, हमारे सामने दुपट्टे तक का ख़याल नहीं करती हैं। बाजी तो शादी के बाद से अपने आपसे बिल्कुल ही लापरवाह हो गई हैं। आप जानती ही हैं गले इतने खुले होते हैं कि कभी ना कभी नज़र पड़ ही जाती है।" - मैं ये कह कर नीचे देखने लगा और नाख़ून से कार्पेट को खुरचने लगा।
TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
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