मेरी बात सुन कर आपी की आँखों में चमक सी लपकी थी वो चंद लम्हें कुछ सोचती रहीं फिर बोलीं- “हाँ मुझे इस किस्म की कुछ मूवीज ने बहुत एक्साइट किया था और वो सब देख कर अजीब सा मज़ा आया था। ये सच है कि मैं रियल एक्शन देखना चाहती हूँ”
आपी यह कह कर फिर से कुछ सोचने लगीं, मैं भी चुप ही रहा और उन्हें सोचने का टाइम दिया।
कुछ देर बाद आपी बोलीं- “ओके! ठीक है लेकिन ये सब होगा कैसे?”
मैंने कहा- “इसकी आप फ़िक्र ना करें, ये सब मुझ पर छोड़ दें लेकिन आप ये जेहन में रखें कि आपके और मेरे दरमियान जो कुछ हुआ वो सब कुछ उसे बताना होगा तभी मैं उसे भरोसे में ले सकूँगा”
आपी से उन बातों के दौरान मेरा लण्ड थोड़ी सख्ती ले चुका था और ट्राउज़र में टेंट सा बन गया था।
आपी ने कुछ देर सोचा और फिर शायद उनको भी उसी बागी मिज़ाज ने अपनी लपेट में ले लिया।
मतलब वही जो मैं सोच रहा था कि सोचना क्या, जो भी होगा देखा जाएगा। आख़िर थीं तो वो मेरी सग़ी बहन ही ना, खून तो एक ही था और शायद ये बागी मिज़ाज भी हमें जीन्स में ही मिला था कि हमारे अम्मी अब्बू ने भी कोर्ट मैरिज की थी।
उन्होंने हाथ को मक्खी उड़ाने के स्टाइल में लहराया और कहा- “ओके! गो अहेड, कुछ भी करो, अब सब तुम पर छोड़ती हूँ” कह कर वो खड़ी हुईं और थप्पड़ के अंदाज़ में हाथ मेरे खड़े लण्ड पर मारा
जैसे ही थप्पड़ मेरे खड़े लण्ड पर पड़ा, मैं तक़लीफ़ से एकदम दुहरा हो गया और मेरे मुँह से ‘आहह..’ के साथ ही निकला ‘बहनचोद आपीईई..’ और आपी हँसते हुए फ़ौरन अपने कमरे की तरफ भाग गईं।
मैंने पीछे से आवाज़ लगाई- “याद रखना बदला ज़रूर लूँगा”
आपी अपने कमरे में पहुँच गई थीं उन्होंने दरवाज़े में खड़े होकर कहा- “सोचना क्या, जो भी होगा देखा जाएगा” और ये कह कर दरवाज़ा बंद कर लिया।
कुछ देर बाद जब लण्ड की तक़लीफ़ कम हुई तो मैं कमरे में आ गया। फरहान सो चुका था शायद इतने दिन बाद अपने बिस्तर का सुकून नसीब हुआ था इसलिए। मैं भी बिस्तर पर लेटा और जल्द ही दुनिया-ओ-माफिया से बेखबर हो गया।
सुबह जब आँख खुली तो 10 बज रहे थे, फरहान अभी तक सो रहा था। उसके कॉलेज की छुट्टियाँ अभी खत्म नहीं हुई थीं। मैंने बाथरूम जाने से पहले फरहान को भी जगा दिया। मैं बाथरूम से बाहर आया तो फरहान इन्तजार में ही बैठा था। मेरे निकलते ही वो अन्दर घुस गया तो मैं उससे नीचे आने का कह कर खुद भी नीचे चल दिया।
जब मैं डाइनिंग टेबल पर बैठा तो किचन में से अम्मी की आवाज़ आई- “उठ गए बेटा, बस थोड़ी देर बैठो मैं नाश्ता बना देती हूँ”
मैंने कहा- “अम्मी 2 बन्दों का नाश्ता बनाइएगा फरहान भी वापस आ गया है, नीचे आ ही रहा है और आपी नहीं हैं घर में क्या जो आप नाश्ता बना रही हैं?”
"नहीं, वो तो सुबह ही यूनिवर्सिटी चली गई थी और वो छोटी निक्कमी भी जाकर नानी के घर ही बस गई है, ना कुछ खाना बनाना सीखती है, ना सीना पिरोना, कल दूसरे घर जाएगी तो..!" अम्मी का ना रुकने वाला सिलसिला शुरू हो चुका था।
ऐसे ही अपनी फिक्रें बताते हुए और शिकायत करते हुए ही अम्मी नाश्ता बनाने लगीं, मैं उनकी बातों का जवाब देते हुए ‘हूँ.. हाँ..’ करने लगा।
फरहान नीचे आया तो अम्मी की आवाज़ सुनते ही सीधा किचन में गया और उन्हें सलाम करने और उनसे प्यार लेने के बाद उनके साथ ही नाश्ते के बर्तन पकड़े बाहर आया और मेरे साथ वाली कुर्सी पर ही बैठ गया।
हमने नाश्ता शुरू किया और अम्मी का रुख़ अब फरहान की तरफ हो गया था। नाश्ता करते-करते फरहान अम्मी से भी बातें करता रहा जो गाँव के बारे में ही पूछ रही थीं।
नाश्ता खत्म करके में टिश्यू से हाथ साफ कर ही रहा था कि फरहान ने पीछे मुड़ कर अम्मी को देखा और उन्हें किचन में बिजी देख कर फरहान ने मेरे ट्राउज़र के ऊपर से ही मेरे लण्ड को पकड़ कर दबाया और बोला- “भाई चलो ना आज, बहुत दिन हो गए हैं”
फिर किसी ख़याल के तहत चौंकते हुए उसने कहा- “अम्मी का बिहेव तो ठीक ही है इसका मतलब है आपी ने अम्मी अब्बू को नहीं बताया ना कुछ”
उसकी बात के जवाब में मैंने मुस्कुराते हो उसका हाथ अपने लण्ड से हटाया और खड़े होते हुए कहा- “नाश्ता खत्म करके कमरे में आ जाओ” कह कर मैं ऊपर चल दिया।
जब फरहान कमरे में दाखिल हुआ तो मैं बिस्तर पर लेटा हुआ आपी के बारे में ही सोच रहा था और मेरा लण्ड खड़ा था।
फरहान ने मेरी तरफ आते हुए कहा- “अम्मी सलमा खाला के घर चली गई हैं, कह रही थीं कि इजाज़ खालू से भी मिल लेंगी और शाम को ही वापस आएँगी”
बात खत्म करके फरहान मेरे पास आकर बैठा तो मैं भी उठ कर बैठ गया। फरहान ने मेरे खड़े लण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और बोला- “भाई! आज तो ये कुछ बड़ा-बड़ा सा लग रहा है”
मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया मैं अपनी सोच में था।
फरहान ने मुझे सोच में डूबा देख कर मेरे लण्ड को ज़ोर से दबाया और बोला- “भाई आपी ने किसी को शिकायत नहीं लगाई तो लाज़मी बात है कि आपको बहुत बुरा-भला कहा होगा?”
मैंने फरहान की तरफ देखा और उससे कहा- “जो मैं तुम्हें बताने जा रहा हूँ सुन कर तुम्हारे होश उड़ जाएंगे”
वो बगैर कुछ बोले आँखें फाड़ते हुए मेरी तरफ देखने लगा और मैंने उससे शुरू से बताना शुरू किया।
"उस रात तुम्हारे सोने के बाद मुझे ख़याल आया कि मैं कंप्यूटर में से अपना पॉर्न मूवीज का फोल्डर तो डिलीट कर दूँ ताकि आपी अब्बू को बता भी दें तो कोई ऐसा सबूत तो ना हो। मैं उठा और कंप्यूटर टेबल पर आकर कंप्यूटर ऑन करने लगा तो मैंने देखा कि उसकी पॉवर कॉर्ड गायब थी। कुछ देर तो मुझे समझ नहीं आया लेकिन आख़िर में याद आया कि आपी कमरे से जाने से पहले कंप्यूटर के पास आई थीं। यक़ीनन वो ही पॉवर कॉर्ड निकाल कर ले गई होंगी......."
पूरी बात फरहान को बताने के बाद जब मैंने ध्यान दिया तो हम दोनों ही बिल्कुल नंगे हो चुके थे और हम दोनों ने एक-दूसरे के लण्ड को अपने हाथों में ले रखा था। हमें पता ही नहीं चला था कि कब हमने कपड़े उतार कर फैंके और कब लण्ड हाथों में ले लिए।
फरहान की हालत बहुत खराब थी आपी के बारे में सुन कर उसके होशो-हवास गुम हो गए थे।
ये तो होना ही था क्योंकि हमारी बहन जो हर वक़्त बड़ी सी चादर में रहती थी जिसके सिर से कभी किसी ने स्कार्फ उतरा हुआ नहीं देखा था, जो नफ़ासत और पाकीज़गी का पैकर थी उसको इस हाल में देखना तो दूर की बात, सोचना भी मुश्किल था। और फरहान को मैं वो सच बता रहा था, ऐसा सच जो चाँद की तरह सच था।
मैं अपनी जगह से उठा और मैंने अपने होंठ फरहान के होंठों से चिपका दिए और हमने एक-दूसरे का लण्ड चूसा, गाण्ड का सुराख चाटा, एक-दूसरे को चोदा, मतलब हम जो-जो कुछ कर सकते थे, सब कुछ किया।
जब एक शानदार चुदाई के बाद हम दोनों फारिग हुए, तो 3 बज चुके थे, मतलब 4 घन्टे से हम चुदाई का खेल खेल रहे थे और अब थक कर बिस्तर पर नंगे ही लेटे हुए थे।
हम दोनों के हलक़ खुश्क हो चुके थे।
फरहान को इसी हालत में छोड़ कर मैंने अपने कपड़े पहने और पानी लेने के लिए नीचे चल दिया।
उसी रात मुझे और फरहान को फिर एमर्जेन्सी में गाँव जाना पड़ गया। इस बार हम 8 दिन रुके और सब काम मुकम्मल निपटा कर साथ ही वापस लौटे थे। जब 8 दिन बाद भरपूर सेक्स करने के बाद फरहान सो गया था और मैं अपने कमरे से निकल कर नीचे आ गया था।
जब मैंने आखिरी सीढ़ी पर क़दम रखा तो सामने सोफे पर आपी आधी लेटी आधी बैठी हुई सी हालत में सोफे पर पड़ी थीं और पाँव ज़मीन पर थे। उनकी टाँगें थोड़ी खुली हुई थीं उनकी गर्दन सोफे की पुश्त पर टिकी थी और सिर पीछे को ढलका हुआ था, आँखें बंद थीं। यूनिवर्सिटी बैग सामने कार्पेट पर पड़ा था शायद वो अभी-अभी ही यूनिवर्सिटी से आईं थीं और गर्मी से निढाल हो कर यहाँ ही बैठ गईं थीं।
मैंने किचन के तरफ रुख़ मोड़ा ही था कि किसी ख़याल के तहत मेरे जेहन में बिजली सी कौंधी और मैं दबे पाँव आपी की तरफ बढ़ने लगा। मैं उनके बिल्कुल क़रीब पहुँच कर खड़ा हुआ और अपना रुख़ सीढ़ियों की तरफ करके भागने के लिए अलर्ट हो गया। मैंने एक नज़र आपी के चेहरे पर डाली, उनकी आँखें अभी भी बंद थीं।
मैंने अपना सीधा हाथ उठाया और थप्पड़ के अंदाज़ में ज़ोर से अपनी सग़ी बहन की टाँगों के दरमियान मारा और फ़ौरन भागा लेकिन 3-4 क़दम बाद ही किसी ख़याल के तहत रुक गया। वहाँ हाथ मारने से ना ही कोई आवाज़ आई थी और मुझे ऐसा महसूस हुआ था जैसे मैंने फोम के गद्दे पर हाथ मारा हो, पता नहीं मेरा हाथ आपी की टाँगों के बीच वाली जगह पर लगा भी था या मैं सोफे पर ही हाथ मार के भाग आया था।
TO BE CONTINUED ………
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
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