30-01-2024, 10:33 AM
मैं डर रही थी कि कहीं आप बुरा न मान जायें। दरअसल मिजाज में आप बेहद शरीफ लगते हैं तो यह तसव्वुर करना भी मुश्किल है कि आप कुछ ऐसा वैसा भी कर सकते हैं जो किसी शरीफजात को जैब न देता हो।”
“ऐसा कुछ नहीं। जरूरत भर शरीफ भी हूं लेकिन इतना भी नहीं कि अपनी जरूरतों को भी अपनी शराफत की बलि चढ़ा दूं।”
“मुझे एक मदद चाहिये थी आपसे! अगर कर सकें तो?” कहते हुए उसने फिर चेहरा झुका लिया।
“क्या- बताओ। मेरे बस में हुआ तो जरूर करूंगा।”
“अभी नहीं … शाम को बताती हूँ।” कह कर वह चली गयी।
और मेरे लिये एक उलझन छोड़ गयी। कोई मदद चाहिये थी तो सीधे कह सकती थी … उसके लिये मेरी पर्नसल लाईफ का जिक्र क्यों जरूरी था?
वह रोज ही शाम को ऊपर छत पर टहलती थी। कभी साथ ही अम्मी भी उसकी होती थी तो कभी भाई …
मैं देखता था, कभी कभार कोई बात भी हो जाती थी लेकिन ज्यादातर बार तो मैं अपने फोन या लैपटॉप में ही बिजी रहता था. तो कम से कम उन लोगों को यह फिक्र नहीं होनी चाहिये कि मैं उनके घर की लड़की से कोई ऐसी-वैसी हरकत करूंगा।
शाम को वह ऊपर आई तो अकेली ही थी … आज चूंकि मैं उसका इंतजार ही कर रहा था तो मुझे कहीं बिजी होने की जरूरत नहीं थी। थोड़ा इशारा पाते ही मैं उसके साथ टहलने लगा।
“क्या मदद चाहती हो मुझसे?” मैंने पूछा।
“मैं घर से बाहर अकेले नहीं निकल सकती … या तो अम्मी साथ जायेंगी या कोई भाई साथ जायेगा, लेकिन मैं कहीं अकेली जाना चाहती हूँ कुछ वक्त के लिये।”
“तो उसमें मैं क्या मदद कर सकता हूँ?” मुझे उसकी परेशानी नहीं समझ में आई।
“भाई तो आप भी हो … आप के साथ भी अब्बू जाने दे सकते हैं।” कहते हुए वह कुछ सकुचा गयी।
“मतलब मुझे साथ ले कर कहीं जाना चाहती हो जहां अकेले जाने का फील ले सको. और घर वाले यह सोच कर बेफिक्र रहें कि मेरे साथ गयी हो तो सेफ हो।”
उसने जबान से जवाब नहीं दिया, बस चेहरा झुका लिया जिससे उसके जवाब का अंदाजा होता था।
“इसकी जरूरत तुम्हें क्यों है?”
इस बार भी वह न बोली।
“मतलब किसी लड़के का चक्कर है जिससे मिलने जाना चाहती हो … अरे तो किसी सहेली से मिलने का बहाना कर के जा सकती हो, उसमें मेरी क्या जरूरत है?”
“तो भी, कोई न कोई साथ ही जायेगा। वैसे भी एक को छोड़ कर यहां कोई नहीं। मैं बचपन से ज्यादातर अपने ननिहाल रही हूँ तो मेरी सहेलियां जो भी हैं वे रहीमाबाद में हैं न कि यहां। यहां रिश्तेदार जरूर हैं लेकिन वहां भी अकेले जाने की तो इजाजत मिलने से रही। फिर कोई और बहाना भी नहीं बना सकती। लॉकडाऊन चल रहा है और पता नहीं कब तक चलेगा।”
“हम्म … ओके. तो कब जाना है? वैसे जब भी जाओगी, ठीक है कि लंबा बताने पर अम्मी साथ नहीं जायेंगी लेकिन भाई तो जा ही सकते हैं। फिर उनके होते मुझे क्यों साथ जाने का मौका मिलेगा?”
“क्योंकि उनसे उस इलाके के लड़कों की कुछ लड़ाई चल रही है तो मैंने उनसे कहा था, तो उन्होंने उधर जाने से साफ मना कर दिया। अम्मी तो जायेंगी नहीं, ऐसे में अम्मी ने ही सजेशन दिया था कि आपसे पूछ लूं, आप ले जाने को तैयार हों तो जा सकती हूँ।”
“किस इलाके की बात है?”
“बात तो जानकीपुरम की है लेकिन उन्हें तेली बाग बताया था क्योंकि भाइयों की लड़ाई उधर के कुछ लड़कों से चल रही जो गुंडे टाईप के हैं।”
“क्लेवर … कब जाना है?”
“इतवार को।”
“अरे सब काम धंधे तो बंद चल रहे तो क्या संडे क्या मंडे, मिलना ही तो होगा। कल चले चलो … मैं उधर तुम्हें छोड़ के इंदिरा नगर निकल जाऊंगा।”
“कल नहीं … अभी तो महीना …” बेसाख्तगी में उसके मुंह से निकल तो गया फिर उसने सकपका कर होंठ भींच लिये।
“महीना चल रहा है।” मैंने उसकी बात पूरी की और वह शरमा कर परे देखने लगी।
“मतलब सीधे कहो कि इसलिये •••••••••••••••••
“ऐसा कुछ नहीं। जरूरत भर शरीफ भी हूं लेकिन इतना भी नहीं कि अपनी जरूरतों को भी अपनी शराफत की बलि चढ़ा दूं।”
“मुझे एक मदद चाहिये थी आपसे! अगर कर सकें तो?” कहते हुए उसने फिर चेहरा झुका लिया।
“क्या- बताओ। मेरे बस में हुआ तो जरूर करूंगा।”
“अभी नहीं … शाम को बताती हूँ।” कह कर वह चली गयी।
और मेरे लिये एक उलझन छोड़ गयी। कोई मदद चाहिये थी तो सीधे कह सकती थी … उसके लिये मेरी पर्नसल लाईफ का जिक्र क्यों जरूरी था?
वह रोज ही शाम को ऊपर छत पर टहलती थी। कभी साथ ही अम्मी भी उसकी होती थी तो कभी भाई …
मैं देखता था, कभी कभार कोई बात भी हो जाती थी लेकिन ज्यादातर बार तो मैं अपने फोन या लैपटॉप में ही बिजी रहता था. तो कम से कम उन लोगों को यह फिक्र नहीं होनी चाहिये कि मैं उनके घर की लड़की से कोई ऐसी-वैसी हरकत करूंगा।
शाम को वह ऊपर आई तो अकेली ही थी … आज चूंकि मैं उसका इंतजार ही कर रहा था तो मुझे कहीं बिजी होने की जरूरत नहीं थी। थोड़ा इशारा पाते ही मैं उसके साथ टहलने लगा।
“क्या मदद चाहती हो मुझसे?” मैंने पूछा।
“मैं घर से बाहर अकेले नहीं निकल सकती … या तो अम्मी साथ जायेंगी या कोई भाई साथ जायेगा, लेकिन मैं कहीं अकेली जाना चाहती हूँ कुछ वक्त के लिये।”
“तो उसमें मैं क्या मदद कर सकता हूँ?” मुझे उसकी परेशानी नहीं समझ में आई।
“भाई तो आप भी हो … आप के साथ भी अब्बू जाने दे सकते हैं।” कहते हुए वह कुछ सकुचा गयी।
“मतलब मुझे साथ ले कर कहीं जाना चाहती हो जहां अकेले जाने का फील ले सको. और घर वाले यह सोच कर बेफिक्र रहें कि मेरे साथ गयी हो तो सेफ हो।”
उसने जबान से जवाब नहीं दिया, बस चेहरा झुका लिया जिससे उसके जवाब का अंदाजा होता था।
“इसकी जरूरत तुम्हें क्यों है?”
इस बार भी वह न बोली।
“मतलब किसी लड़के का चक्कर है जिससे मिलने जाना चाहती हो … अरे तो किसी सहेली से मिलने का बहाना कर के जा सकती हो, उसमें मेरी क्या जरूरत है?”
“तो भी, कोई न कोई साथ ही जायेगा। वैसे भी एक को छोड़ कर यहां कोई नहीं। मैं बचपन से ज्यादातर अपने ननिहाल रही हूँ तो मेरी सहेलियां जो भी हैं वे रहीमाबाद में हैं न कि यहां। यहां रिश्तेदार जरूर हैं लेकिन वहां भी अकेले जाने की तो इजाजत मिलने से रही। फिर कोई और बहाना भी नहीं बना सकती। लॉकडाऊन चल रहा है और पता नहीं कब तक चलेगा।”
“हम्म … ओके. तो कब जाना है? वैसे जब भी जाओगी, ठीक है कि लंबा बताने पर अम्मी साथ नहीं जायेंगी लेकिन भाई तो जा ही सकते हैं। फिर उनके होते मुझे क्यों साथ जाने का मौका मिलेगा?”
“क्योंकि उनसे उस इलाके के लड़कों की कुछ लड़ाई चल रही है तो मैंने उनसे कहा था, तो उन्होंने उधर जाने से साफ मना कर दिया। अम्मी तो जायेंगी नहीं, ऐसे में अम्मी ने ही सजेशन दिया था कि आपसे पूछ लूं, आप ले जाने को तैयार हों तो जा सकती हूँ।”
“किस इलाके की बात है?”
“बात तो जानकीपुरम की है लेकिन उन्हें तेली बाग बताया था क्योंकि भाइयों की लड़ाई उधर के कुछ लड़कों से चल रही जो गुंडे टाईप के हैं।”
“क्लेवर … कब जाना है?”
“इतवार को।”
“अरे सब काम धंधे तो बंद चल रहे तो क्या संडे क्या मंडे, मिलना ही तो होगा। कल चले चलो … मैं उधर तुम्हें छोड़ के इंदिरा नगर निकल जाऊंगा।”
“कल नहीं … अभी तो महीना …” बेसाख्तगी में उसके मुंह से निकल तो गया फिर उसने सकपका कर होंठ भींच लिये।
“महीना चल रहा है।” मैंने उसकी बात पूरी की और वह शरमा कर परे देखने लगी।
“मतलब सीधे कहो कि इसलिये •••••••••••••••••
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.