26-01-2024, 10:17 AM
मैंने तुरंत नीना को मेरी और पूरी ताकत से अपनी तरफ खींचा और उसके रसीले होठों पर अपने होंठ रख कर उसे किस करने लगा। नीना को मेरी तरफ घूमना पड़ा। किस करते करते मैंने नीना की साडी को उसकी जांघों से ऊपर खींचते कहा, "अनिल, तुम्हारी कहानी इतनी उत्तेजित करती है की मैं अपने आप को कंट्रोल में रख नहीं पा रहा हूँ। नीना भी उतनी उत्तेजित हो गयी थी की वह मुझसे लिपट कर जोश से चुम्बन करने लगी और मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर मुझसे अपनी जीभ चुस्वाति रही। उसे अब अनिल के देखने की कोई चिंता नहीं थी। अनिल की उंगली नीना के घूमने से नीना की पीठ पर जा पहुंची। नेना की पीठ खुली हुई थी और नीना की ब्रा की पट्टी का हुक अनिल की उंगली में आ गया।
तब नीना मुझे पूरी तरह जकड़ कर मुझे अपने पुरे जोश से चुंबन कर रही थी। शायद अनिल ने अपनी हथेली मेरी बीबी की ब्रा के अंदर घुसेड़ दी थी और वह अनिल इस बात का फायदा उठाकर अपनी उँगलियों से नीना की भरी मद मस्त चुंचियों को सहलाता जा रहा था। उस चुम्बन के जोश में शायद नीना को इस बात का अहसास नहीं था की अनिल क्या कर रहा है। थोड़ी देर बाद नीना ने घूम कर देखा तो पाया की अनिल नीना और मेरे चुम्बन को देख रहा था। उसे बेचारेअनिल पर थोड़ा सा तरस आया। नीना ने अनिल का सर अपने हाथों पकड़ा और अपने कन्धों पर रखकर अनिल के बालों में अपनी उंगलियां डाल कर ऐसे सहलाने लगी जैसे की कंघी कर रही हो। ।
नीना का अनुमोदन पाकर अनिल फुला नहीं समा रहा था। उसने मेरी तरफ अपनी दो उँगलियों से अपनी सफलता का ‘V’ का निशान मुझे दिखाया। मैंने भी उसे अंगूठा दिखाकर आगे बढ़ने के लिए इशारा किया।
अनिल ने फिर कार रोक कर मुझसे पूछा, "क्या यार अब वह कवी सम्मलेन में वापस जाना है क्या?"
मैंने कहा, "मुझे तो कवी सम्मलेन से तेरी बातों में ज्यादा रस आ रहा है। भाई अब तेरे मित्र की अधूरी बात तो पूरी कर।“
नीना ने मेरी बात को बिच में काटते हुए कहा, "अनिल अब अपने दोस्त से पूछो की मैंने तुम्हारी सेक्स वाली बात पूरी सुनी के नहीं? अब तो वह मेरी बात को कबुल करें की स्त्रियां पुरुषों से बिल्कुल कम नहीं। "
मैंने तब कहा, "मैं अब भी नहीं मानता। तुमने बात जरूर सुनी, पर जैसे ही थोड़ा सा नाजुक वक्त आएगा तो तुम भाग खड़ी हो जाओगी।"
अनिल ने मेरी बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा, "तू क्या बकवास कर रहा है राज? तुझे पता है तू कितना भाग्यशाली है नीना को पाकर? इतनी अक्लमंद, इतनी सुन्दर, इतनी सयानी और इतनी हिम्मत वाली पत्नी बड़े भाग्य से मिलती है। मैंने आजतक नीना भाभी के समान अक़्लमंद, सुन्दर, सेक्सी, हिम्मत वाली स्त्री कहीं नहीं देखि। इसमें तू मेरी बीबी अनीता को भी शामिल कर सकता है।"
नीना ने शायद अनिल ने उसे सेक्सी कहा वह सुना नहीं या फिर अनसुना कर दिया। पर अनिल की बात सुनकर नीना को और जोश आया। वह मेरी तरफ देख के बोली, "देखा? तुम्हारा अपना दोस्त क्या कह रहा है? सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर। तुम्हे मेरी कद्र कहाँ?"
मैं अपने मन में अनिल की बड़ी तारीफ़ कर रहाथा। वह क्या एक के बाद एक तीर दाग रहा था और हर एक तीर उसके निशाने पर लग रहा था। अब नीना की समझ से अनिल जैसा सभ्य और समझदार इंसान और कोई नहीं था। मैं, भी नहीं। मैंने अनिल से कहा, "भाई अपनी वह कहानी तो पूरी करो। और हाँ, तुम एक बात कहना चाहते न? फिर वह भी बतादो की क्या बात थी?"
मेरी बात सुनते ही जैसे अचानक अनिल के चेहरे का रंग एकदम फीका पड़ गया था। वह कुछ कहना चाहता था, पर कह नहीं पा रहाथा। जब मैंने उसे टोका तब अनिल ने बड़ी गंभीरता से नीना को कहा, "नीना भाभी, आपसे मेरी एक अर्ज है। मैं आप को कुछ बताना चाहता हूँ। पर उसके लिए आपको मेरे घर चलना पड़ेगा।"
अनिल ने नीना को इतनी महत्ता दी उससे नीना बड़ी खुश नजर आ रही थी। पर अनिल के चहरे पर मायूसी का साया देख कर मेरी पत्नी थोड़ी सकपका गयी । मैंने नीना से कहा, "अब तो हमें सुबह ही घर लौटना है। फिर यहां बाहर देर रात में बात करने से लोगों का ध्यान भी हमारी और जाता है। अनिल के घर में और कोई है भी नहीं। चलो चलते हैं। " उस पर नीना ने भी अपनी सम्मति दे दी और अनिल ने कार अपने घर की और मोड़ी।
पुरे रास्ते में अनिल के मुंह पर जैसे ताला लगा था। मैंने नीना के कान में कहा, "लगता है कोई गंभीर बात है। अबतक जो फुदकता रहता था उसे एकदम यह क्या हो गया? हम अनिल के घर जा कर बात करते हैं। उसको थोड़ी पिलायेंगे तो उसका मूड ठीक हो जाएगा।“
नीना की नजर में अनिल एक निहायत शरीफ और सीधा सादा इंसान बन चुका था। उसकी छेड़ खानी और शरारत को भी नीना अनिल की सरलता का ही नमूना मान रही थी। हम जैसे ही अनिल के घर पहुंचे तो नीना ने अनिल की कमर में हाथ डाला और बोली, "आज मैं एक आझाद पंछी की तरह अनुभव कर रही हूँ। इसका श्रेय तुम्हे जाता है।" मैं जानता था की नीना का आझाद पंछी की तरह अनुभव करने का कारण तो वह जीन से भरा हुआ गिलास था।
अनिल को तो उस समय बड़ा खुश होना चाहिए था। पर अनिल की शक्ल रोनी सी हो रही थी। नीना बड़ी उलझन में थी। अनिल के मूड में यह परिवर्तन मेरी और नीना की समझ में नहीं आया। मैंने अनिल से पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। नीना ने तब मुझे मुझे इशारा किया की मैं जा कर हम सब के लिए एकएक पेग बना के लाऊं।
अनिल ने मेरी पत्नी का इशारा देख लिया था। अनिल ने तब तुरंत फुर्ती से उठकर अपने बार से एक व्हिस्की और एक जीन की बोतल निकाली और दो गिलास में व्हिस्की और एक गिलास में जीन डालने लगा तो नीना ने जोर से कहा, " अनिल, रुको, मेरे गिलास में भी व्हिस्की डालो। आज मैं अपने पति को दिखाना चाहती हूँ के एक स्त्री भी पुरुष का मुकाबला कर सकती है। "
नीना ने अनिल के हाथ से व्हिस्की की बोतल ले कर अपने गिलास में भी व्हिस्की डाली। अनिल भौंचक्का सा देखता ही रह गया। मेरे भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। मैंने देखा तो नीना वह गिलास को देखते ही देखते साफ़ कर गयी। मैंने सोचा हाय, आज तो जीन और व्हिस्की का खतरनाक मिलन हो गया था। आज तो क़यामत आने वाली है।
मैंने और अनिल ने भी अपने गिलास खाली किये। अनिल ने फिर अपनी गंभीर आवाज में कहा, "देखो हमारे पास पूरी रात पड़ी है। आज हमें बहु बात करनी है। बातें करने से पहले क्यों न हम अपने कपडे बदलें और फिर आराम से बात करें। राज, तुम मेरे नाईट सूट को पहनलो। नीना क्या मैं तुम्हे अनीता की कोई नाईटी दूँ?"
मैंने नीना की और इशारा करते हुए अनिल को बोला, "भाई मैं तो एक मर्द हूँ। मुझे तेरे कपडे खुले में पहनमें कोई झिझक नहीं है। तुम इस मैडम को पूछो, क्या इसे कोई एतराज है?"
अनिल ने अपना एक नाईट सूट मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने उसे अपने हाथों में लिया और नीना और अनिल के सामने अपने कपडे उतारे ओर सिर्फ जांघिया पहने हुए अनिल का नाईट सूट पहना और फिर जांघिया भी निकाल दिया। नीना और मैं वैसे भी रात को अंदर के कपडे नहीं पहनते थे।
नीना ने अनिल की और मुड़ते हुए लहजे में कहा, "मुझे भी तुम्हारे या अनिता के कपडे यहीं पर पहनने में कोई एतराज नहीं है। लाओ, कहाँ है अनीता का नाईट गाउन?" मैं समझ गया की अनीता को चढ़ गयी है।
अनिल ने जल्दी से चुन कर अनीता का वह नाईट गाउन निकाला जो एकदम पतला और लगभग पारदर्शी सा था। अनिल ने अपने हनीमून पर अनीता के लीये वह ख़रीदा था। फिर उसने नीना से कहा, "राज तो पागल हो गया है। अरे इसे कोई शिष्टता का भी ध्यान है के नहीं? क्या मेरी भाभी मेरे सामने अपने कपडे बदलेगी? नीना रुक जाओ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप अपने कपडे बदलो तब तक मैं भी अपना नाईट गाउन पहनकर आता हूँ।
नीना को वह गाउन पकड़ा कर अनिल वहाँ से गायब हो गया। अब नीना के मनमें अनिल के प्रति बेहद सौहार्दपूर्ण भाव हो गया था। उसके लिए अनिल एक शिष्ट, सभ्य और अत्यन्त संवेदनशील आदमी था जिसको महिलाओं का सम्मान करना भली भांति आता था। अनिल की सुबह वाली शरारत को जैसे वह भूल चुकी थी।
नीना ने अनीता गाउन हाथ में लिया, तब मैंने उसे कहा, "अब इसे पहनलो और अपने अंदर के कपड़ों को निकाल कर अलग से रखना ताकि कल सुबह हम उसे फिर से पहन सकें। नीना इधर उधर देखा। अनिल जा चूका था। तब उसने मेरे सामने ही अपने कपडे उतारे और ब्लाउज पैंटी , ब्रा इत्यादि तह करके बैडरूम के कोने में रख दिए। मैंने नीना को कई बार नंगे देखा था। पर उस रातकी बात ही कुछ और थी। नीना की आँखों में वह सुरूर मैंने पहली बार देखा। वह शराब से नहीं था। उसे आज अपने स्त्री होने का गर्व महसूस हो रहाथा। अनिल यदि जिद करता तो नीना को उसके सामने शायद मजबूर हो कर कपडे बदलने पड़ते। पर अनिल ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने नीना को अकेले में (उसके पति के सामने ही) कपडे बदलने का मौक़ा दिया। इस बात से नीना अनिल की एक तरह से ऋणी बन चुकी थी।
मैंने मेरी पत्नी को उस गाउन में जब देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके पिछेकी रौशनी में उसकी टाँगे, उसके नितम्ब, उसके स्तन, निपल बल्कि उसकी चूत की गहराई तक नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने कपडे पहने ही नहीं थे। मेरा माथा यह सोचकर ठनक गया की जब अनिल उसे इस हाल में देखेगा तो उसके ऊपर क्या बीतेगी।
तभी मैंने अनिल को अपने हाथों से तालियां बजाते हुए सूना। उसने नीना को उस गाउन में देख लिया था। वह नीना के पास आया और जैसे नीना के कानों में फुसफुसाता हुआ बोला, "भाभी आप इस गाउन मैं मेनका से भी अधिक सुन्दर लग रही हो। मैं भगवान की सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने आज तक आप जितनी सुन्दर स्त्री को नहीं देखा।" अनिल ने आगे बढ़कर नीना से पूछा, "क्या मैं आप को छू सकता हूँ?"
अपनी इतनी ज्यादा तारीफ़ सुनकर नीना तो जैसे बौखला ही गयी। वह यह समझ नहीं पायी की वह उस गाउन में पूरी नंगी सी दिख रही थी। बल्कि वह तो अनिल की प्रशंशा के पूल बाँधने से इतनी खुश हुयी की वह अनायास ही अनिल के पास आई और अनिल ने जब अपने हाथ फैलाए तो वह मुस्कुराती हुयी उसमें समा गयी। मैं अपनी भोली और सरल पत्नी के कारनामे देख कर दंग सा रह गया। नीना ने मेरी और देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे मैं उसका कोई प्रतिद्वंदी हूँ।
वह अनिल के बाँहों में से बाहर आकर अनिल के ही बगल मैं बैठ गयी। नीना ने मुझे भी अपने पास बुलाया और अपने दूसरी और बिठाया। नीना मेरे और अनिल के बीचमें बैठी हुयी थी। नीना ने अपना एक हाथ मेरे और एक हाथ अनिल के हाथ में दे रखा था। हम तीनों एक अजीब से बंधन मैं बंधे हुए लग रहे थे। अनिल उसने तब नीना का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सेहलना शुरू किया और बोला, "राज, नीना, मैं तुम्हें अब एक बड़ी गम्भीर बात कहने वाला हूँ। कुछ ख़ास कारण से मैंने सबसे यह बात छुपाके रखी है। यहां तक की मैंने अनीता को और अपने माता और पिता तक को नहीं बताया। " अचानक हम सब गम्भीर हो गए।
अनिल ने तब हम को बताया की उसको उसकी कंपनी की औरसे उसे निकासी का आर्डर मिल गया था। उसे एक महीने का नोटिस मिला था। अब उसके पास कोई जॉब नहीं था। अगर वह एक महीने में कोई और जॉब नहीं ढूंढ पायेगा तो उसे घर बैठना पड़ेगा। कमरे में जैसे एक मायूस सा वातावरण फ़ैल गया।
अब अनिल वह अनिल नहीं लग रहा था। हम जानते थे की अनिल का पूरा घर उसीकी आमदनी से चलता था। अगर आमदनी रुक गयी तो सब की हालात क्या होगी यह सोचना भी मुश्किल था। अनिल की आँखोंसे आंसू बहने लगे। वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था। मैंने और नीना ने उसके हाथ पकडे और उसको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। पर अनिल के आंसू रुकते ही न थे। अनिल एकदम उठ खड़ा हुआ और बाथरूम की और बढ़ा।
नीना भी भावुक हो रही थी। अनिल की ऐसी हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। नीना उठकर मेरे पास आई। उसकी आँखों में भी आंसू थे। वह बोली, अरे देखो तो, अनिल का कैसा हाल हो रहा है। उसे क्या हो गया? उसे सम्हालो। अनीता को इस वक्त अनिल के पास होना चाहिए था। तुम क्या कर रहे हो। जाओ अपने दोस्त को सांत्वना दो। उसके पास बैठो, उसको गले लगाओ।"
तब नीना मुझे पूरी तरह जकड़ कर मुझे अपने पुरे जोश से चुंबन कर रही थी। शायद अनिल ने अपनी हथेली मेरी बीबी की ब्रा के अंदर घुसेड़ दी थी और वह अनिल इस बात का फायदा उठाकर अपनी उँगलियों से नीना की भरी मद मस्त चुंचियों को सहलाता जा रहा था। उस चुम्बन के जोश में शायद नीना को इस बात का अहसास नहीं था की अनिल क्या कर रहा है। थोड़ी देर बाद नीना ने घूम कर देखा तो पाया की अनिल नीना और मेरे चुम्बन को देख रहा था। उसे बेचारेअनिल पर थोड़ा सा तरस आया। नीना ने अनिल का सर अपने हाथों पकड़ा और अपने कन्धों पर रखकर अनिल के बालों में अपनी उंगलियां डाल कर ऐसे सहलाने लगी जैसे की कंघी कर रही हो। ।
नीना का अनुमोदन पाकर अनिल फुला नहीं समा रहा था। उसने मेरी तरफ अपनी दो उँगलियों से अपनी सफलता का ‘V’ का निशान मुझे दिखाया। मैंने भी उसे अंगूठा दिखाकर आगे बढ़ने के लिए इशारा किया।
अनिल ने फिर कार रोक कर मुझसे पूछा, "क्या यार अब वह कवी सम्मलेन में वापस जाना है क्या?"
मैंने कहा, "मुझे तो कवी सम्मलेन से तेरी बातों में ज्यादा रस आ रहा है। भाई अब तेरे मित्र की अधूरी बात तो पूरी कर।“
नीना ने मेरी बात को बिच में काटते हुए कहा, "अनिल अब अपने दोस्त से पूछो की मैंने तुम्हारी सेक्स वाली बात पूरी सुनी के नहीं? अब तो वह मेरी बात को कबुल करें की स्त्रियां पुरुषों से बिल्कुल कम नहीं। "
मैंने तब कहा, "मैं अब भी नहीं मानता। तुमने बात जरूर सुनी, पर जैसे ही थोड़ा सा नाजुक वक्त आएगा तो तुम भाग खड़ी हो जाओगी।"
अनिल ने मेरी बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा, "तू क्या बकवास कर रहा है राज? तुझे पता है तू कितना भाग्यशाली है नीना को पाकर? इतनी अक्लमंद, इतनी सुन्दर, इतनी सयानी और इतनी हिम्मत वाली पत्नी बड़े भाग्य से मिलती है। मैंने आजतक नीना भाभी के समान अक़्लमंद, सुन्दर, सेक्सी, हिम्मत वाली स्त्री कहीं नहीं देखि। इसमें तू मेरी बीबी अनीता को भी शामिल कर सकता है।"
नीना ने शायद अनिल ने उसे सेक्सी कहा वह सुना नहीं या फिर अनसुना कर दिया। पर अनिल की बात सुनकर नीना को और जोश आया। वह मेरी तरफ देख के बोली, "देखा? तुम्हारा अपना दोस्त क्या कह रहा है? सच कहा है, घर की मुर्गी दाल बराबर। तुम्हे मेरी कद्र कहाँ?"
मैं अपने मन में अनिल की बड़ी तारीफ़ कर रहाथा। वह क्या एक के बाद एक तीर दाग रहा था और हर एक तीर उसके निशाने पर लग रहा था। अब नीना की समझ से अनिल जैसा सभ्य और समझदार इंसान और कोई नहीं था। मैं, भी नहीं। मैंने अनिल से कहा, "भाई अपनी वह कहानी तो पूरी करो। और हाँ, तुम एक बात कहना चाहते न? फिर वह भी बतादो की क्या बात थी?"
मेरी बात सुनते ही जैसे अचानक अनिल के चेहरे का रंग एकदम फीका पड़ गया था। वह कुछ कहना चाहता था, पर कह नहीं पा रहाथा। जब मैंने उसे टोका तब अनिल ने बड़ी गंभीरता से नीना को कहा, "नीना भाभी, आपसे मेरी एक अर्ज है। मैं आप को कुछ बताना चाहता हूँ। पर उसके लिए आपको मेरे घर चलना पड़ेगा।"
अनिल ने नीना को इतनी महत्ता दी उससे नीना बड़ी खुश नजर आ रही थी। पर अनिल के चहरे पर मायूसी का साया देख कर मेरी पत्नी थोड़ी सकपका गयी । मैंने नीना से कहा, "अब तो हमें सुबह ही घर लौटना है। फिर यहां बाहर देर रात में बात करने से लोगों का ध्यान भी हमारी और जाता है। अनिल के घर में और कोई है भी नहीं। चलो चलते हैं। " उस पर नीना ने भी अपनी सम्मति दे दी और अनिल ने कार अपने घर की और मोड़ी।
पुरे रास्ते में अनिल के मुंह पर जैसे ताला लगा था। मैंने नीना के कान में कहा, "लगता है कोई गंभीर बात है। अबतक जो फुदकता रहता था उसे एकदम यह क्या हो गया? हम अनिल के घर जा कर बात करते हैं। उसको थोड़ी पिलायेंगे तो उसका मूड ठीक हो जाएगा।“
नीना की नजर में अनिल एक निहायत शरीफ और सीधा सादा इंसान बन चुका था। उसकी छेड़ खानी और शरारत को भी नीना अनिल की सरलता का ही नमूना मान रही थी। हम जैसे ही अनिल के घर पहुंचे तो नीना ने अनिल की कमर में हाथ डाला और बोली, "आज मैं एक आझाद पंछी की तरह अनुभव कर रही हूँ। इसका श्रेय तुम्हे जाता है।" मैं जानता था की नीना का आझाद पंछी की तरह अनुभव करने का कारण तो वह जीन से भरा हुआ गिलास था।
अनिल को तो उस समय बड़ा खुश होना चाहिए था। पर अनिल की शक्ल रोनी सी हो रही थी। नीना बड़ी उलझन में थी। अनिल के मूड में यह परिवर्तन मेरी और नीना की समझ में नहीं आया। मैंने अनिल से पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। नीना ने तब मुझे मुझे इशारा किया की मैं जा कर हम सब के लिए एकएक पेग बना के लाऊं।
अनिल ने मेरी पत्नी का इशारा देख लिया था। अनिल ने तब तुरंत फुर्ती से उठकर अपने बार से एक व्हिस्की और एक जीन की बोतल निकाली और दो गिलास में व्हिस्की और एक गिलास में जीन डालने लगा तो नीना ने जोर से कहा, " अनिल, रुको, मेरे गिलास में भी व्हिस्की डालो। आज मैं अपने पति को दिखाना चाहती हूँ के एक स्त्री भी पुरुष का मुकाबला कर सकती है। "
नीना ने अनिल के हाथ से व्हिस्की की बोतल ले कर अपने गिलास में भी व्हिस्की डाली। अनिल भौंचक्का सा देखता ही रह गया। मेरे भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। मैंने देखा तो नीना वह गिलास को देखते ही देखते साफ़ कर गयी। मैंने सोचा हाय, आज तो जीन और व्हिस्की का खतरनाक मिलन हो गया था। आज तो क़यामत आने वाली है।
मैंने और अनिल ने भी अपने गिलास खाली किये। अनिल ने फिर अपनी गंभीर आवाज में कहा, "देखो हमारे पास पूरी रात पड़ी है। आज हमें बहु बात करनी है। बातें करने से पहले क्यों न हम अपने कपडे बदलें और फिर आराम से बात करें। राज, तुम मेरे नाईट सूट को पहनलो। नीना क्या मैं तुम्हे अनीता की कोई नाईटी दूँ?"
मैंने नीना की और इशारा करते हुए अनिल को बोला, "भाई मैं तो एक मर्द हूँ। मुझे तेरे कपडे खुले में पहनमें कोई झिझक नहीं है। तुम इस मैडम को पूछो, क्या इसे कोई एतराज है?"
अनिल ने अपना एक नाईट सूट मेरी तरफ बढ़ाया। मैंने उसे अपने हाथों में लिया और नीना और अनिल के सामने अपने कपडे उतारे ओर सिर्फ जांघिया पहने हुए अनिल का नाईट सूट पहना और फिर जांघिया भी निकाल दिया। नीना और मैं वैसे भी रात को अंदर के कपडे नहीं पहनते थे।
नीना ने अनिल की और मुड़ते हुए लहजे में कहा, "मुझे भी तुम्हारे या अनिता के कपडे यहीं पर पहनने में कोई एतराज नहीं है। लाओ, कहाँ है अनीता का नाईट गाउन?" मैं समझ गया की अनीता को चढ़ गयी है।
अनिल ने जल्दी से चुन कर अनीता का वह नाईट गाउन निकाला जो एकदम पतला और लगभग पारदर्शी सा था। अनिल ने अपने हनीमून पर अनीता के लीये वह ख़रीदा था। फिर उसने नीना से कहा, "राज तो पागल हो गया है। अरे इसे कोई शिष्टता का भी ध्यान है के नहीं? क्या मेरी भाभी मेरे सामने अपने कपडे बदलेगी? नीना रुक जाओ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप अपने कपडे बदलो तब तक मैं भी अपना नाईट गाउन पहनकर आता हूँ।
नीना को वह गाउन पकड़ा कर अनिल वहाँ से गायब हो गया। अब नीना के मनमें अनिल के प्रति बेहद सौहार्दपूर्ण भाव हो गया था। उसके लिए अनिल एक शिष्ट, सभ्य और अत्यन्त संवेदनशील आदमी था जिसको महिलाओं का सम्मान करना भली भांति आता था। अनिल की सुबह वाली शरारत को जैसे वह भूल चुकी थी।
नीना ने अनीता गाउन हाथ में लिया, तब मैंने उसे कहा, "अब इसे पहनलो और अपने अंदर के कपड़ों को निकाल कर अलग से रखना ताकि कल सुबह हम उसे फिर से पहन सकें। नीना इधर उधर देखा। अनिल जा चूका था। तब उसने मेरे सामने ही अपने कपडे उतारे और ब्लाउज पैंटी , ब्रा इत्यादि तह करके बैडरूम के कोने में रख दिए। मैंने नीना को कई बार नंगे देखा था। पर उस रातकी बात ही कुछ और थी। नीना की आँखों में वह सुरूर मैंने पहली बार देखा। वह शराब से नहीं था। उसे आज अपने स्त्री होने का गर्व महसूस हो रहाथा। अनिल यदि जिद करता तो नीना को उसके सामने शायद मजबूर हो कर कपडे बदलने पड़ते। पर अनिल ने ऐसा कुछ नहीं किया। उसने नीना को अकेले में (उसके पति के सामने ही) कपडे बदलने का मौक़ा दिया। इस बात से नीना अनिल की एक तरह से ऋणी बन चुकी थी।
मैंने मेरी पत्नी को उस गाउन में जब देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके पिछेकी रौशनी में उसकी टाँगे, उसके नितम्ब, उसके स्तन, निपल बल्कि उसकी चूत की गहराई तक नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसने कपडे पहने ही नहीं थे। मेरा माथा यह सोचकर ठनक गया की जब अनिल उसे इस हाल में देखेगा तो उसके ऊपर क्या बीतेगी।
तभी मैंने अनिल को अपने हाथों से तालियां बजाते हुए सूना। उसने नीना को उस गाउन में देख लिया था। वह नीना के पास आया और जैसे नीना के कानों में फुसफुसाता हुआ बोला, "भाभी आप इस गाउन मैं मेनका से भी अधिक सुन्दर लग रही हो। मैं भगवान की सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने आज तक आप जितनी सुन्दर स्त्री को नहीं देखा।" अनिल ने आगे बढ़कर नीना से पूछा, "क्या मैं आप को छू सकता हूँ?"
अपनी इतनी ज्यादा तारीफ़ सुनकर नीना तो जैसे बौखला ही गयी। वह यह समझ नहीं पायी की वह उस गाउन में पूरी नंगी सी दिख रही थी। बल्कि वह तो अनिल की प्रशंशा के पूल बाँधने से इतनी खुश हुयी की वह अनायास ही अनिल के पास आई और अनिल ने जब अपने हाथ फैलाए तो वह मुस्कुराती हुयी उसमें समा गयी। मैं अपनी भोली और सरल पत्नी के कारनामे देख कर दंग सा रह गया। नीना ने मेरी और देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे मैं उसका कोई प्रतिद्वंदी हूँ।
वह अनिल के बाँहों में से बाहर आकर अनिल के ही बगल मैं बैठ गयी। नीना ने मुझे भी अपने पास बुलाया और अपने दूसरी और बिठाया। नीना मेरे और अनिल के बीचमें बैठी हुयी थी। नीना ने अपना एक हाथ मेरे और एक हाथ अनिल के हाथ में दे रखा था। हम तीनों एक अजीब से बंधन मैं बंधे हुए लग रहे थे। अनिल उसने तब नीना का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सेहलना शुरू किया और बोला, "राज, नीना, मैं तुम्हें अब एक बड़ी गम्भीर बात कहने वाला हूँ। कुछ ख़ास कारण से मैंने सबसे यह बात छुपाके रखी है। यहां तक की मैंने अनीता को और अपने माता और पिता तक को नहीं बताया। " अचानक हम सब गम्भीर हो गए।
अनिल ने तब हम को बताया की उसको उसकी कंपनी की औरसे उसे निकासी का आर्डर मिल गया था। उसे एक महीने का नोटिस मिला था। अब उसके पास कोई जॉब नहीं था। अगर वह एक महीने में कोई और जॉब नहीं ढूंढ पायेगा तो उसे घर बैठना पड़ेगा। कमरे में जैसे एक मायूस सा वातावरण फ़ैल गया।
अब अनिल वह अनिल नहीं लग रहा था। हम जानते थे की अनिल का पूरा घर उसीकी आमदनी से चलता था। अगर आमदनी रुक गयी तो सब की हालात क्या होगी यह सोचना भी मुश्किल था। अनिल की आँखोंसे आंसू बहने लगे। वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था। मैंने और नीना ने उसके हाथ पकडे और उसको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। पर अनिल के आंसू रुकते ही न थे। अनिल एकदम उठ खड़ा हुआ और बाथरूम की और बढ़ा।
नीना भी भावुक हो रही थी। अनिल की ऐसी हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। नीना उठकर मेरे पास आई। उसकी आँखों में भी आंसू थे। वह बोली, अरे देखो तो, अनिल का कैसा हाल हो रहा है। उसे क्या हो गया? उसे सम्हालो। अनीता को इस वक्त अनिल के पास होना चाहिए था। तुम क्या कर रहे हो। जाओ अपने दोस्त को सांत्वना दो। उसके पास बैठो, उसको गले लगाओ।"
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.