10-01-2024, 01:56 PM
उस समय दुर्भाग्यपूर्ण ये लगा, जब परिचालक ने कहा कि सभी सीट्स फुल हैं, आपको दो-दो को एक साथ अलग-अलग बस में सफर करना होगा. जबकि दोनों बसें साथ ही चलनी थी और खाने पीने के लिए एक ही निश्चित स्थान पर रुकने वाली थीं.
जब परिचालक ने हमें आश्वस्त किया तो हम मान गए.
अब मैं और मेरा एक मित्र एक बस में और दूसरे दोनों मित्र दूसरी बस के लिए सीट लेने में लग गए.
हम सभी दोस्तों ने चलने से पहले सिगरेट फूंकी और बस में चढ़ गए.
मेरी वाली बस के अन्दर एक और गड़बड़ हुई.
मुझे और मेरे मित्र को भी परिचालक ने अलग अलग सीट दी और जब बाद में मैं क्रोधित हुआ, तो उसने क्षमा मांगी.
मैं भुनभुन करता हुआ अपनी सीट देखने के लिए गया.
उधर देखा तो एक भाभी मेरी सीट पर बैठी थीं.
उन्हें देख कर मैंने भी सोचा कि यार दोस्तों के इतना साथ में घूमे हुए हैं. एक सफ़र में अलग अलग बैठ जाएंगे तो कोई आफत नहीं आ जाएगी. सुबह जयपुर पहुंच कर फिर साथ में हो जाएंगे.
मैंने दोस्त को समझा दिया.
वो मान गया.
जब मैं अपनी सीट के लिए उधर पहुंचा तो भाभी का बैग मेरी सीट पर रखा हुआ था.
मैंने उनसे आदर पूर्वक कहा- अगर आप बुरा न मानें तो इस बैग को …
वो मेरी बात को समझ गईं, उन्होंने अपना हैंड बैग उठा लिया.
मैंने सीट अपने आरामनुसार व्यवस्थित की.
लेकिन तभी मुझे ये अनुभव हो गया था कि जो ये भाभी मेरे साथ जाएंगी, ये अनमोल माल है.
भाभी की उम्र लगभग उन्नतीस या तीस रही होगी क्योंकि उनकी शानदार और कामुक फिगर से मुझे यह अहसास हो गया था कि ये कोई साधारण औरत नहीं है.
मैंने अपना संतुलन बनाये रखने के लिए अपना ध्यान उस ओर न देने का निर्णय किया.
पर मेरे अन्दर फिर भी उनके पास बैठने से कुछ चंचलता बढ़ गयी थी.
मैं विचलित सा हो गया था.
शाम के लगभग सात बज चुके थे.
उनके हिजाब से उनकी बड़ी बड़ी मोहक आंखें मुझे बार बार मोहित करतीं और बड़ा ही आकर्षित कर रही थीं परंतु मैं सामान्य बने रहने का प्रयास कर रहा था.
जब परिचालक ने हमें आश्वस्त किया तो हम मान गए.
अब मैं और मेरा एक मित्र एक बस में और दूसरे दोनों मित्र दूसरी बस के लिए सीट लेने में लग गए.
हम सभी दोस्तों ने चलने से पहले सिगरेट फूंकी और बस में चढ़ गए.
मेरी वाली बस के अन्दर एक और गड़बड़ हुई.
मुझे और मेरे मित्र को भी परिचालक ने अलग अलग सीट दी और जब बाद में मैं क्रोधित हुआ, तो उसने क्षमा मांगी.
मैं भुनभुन करता हुआ अपनी सीट देखने के लिए गया.
उधर देखा तो एक भाभी मेरी सीट पर बैठी थीं.
उन्हें देख कर मैंने भी सोचा कि यार दोस्तों के इतना साथ में घूमे हुए हैं. एक सफ़र में अलग अलग बैठ जाएंगे तो कोई आफत नहीं आ जाएगी. सुबह जयपुर पहुंच कर फिर साथ में हो जाएंगे.
मैंने दोस्त को समझा दिया.
वो मान गया.
जब मैं अपनी सीट के लिए उधर पहुंचा तो भाभी का बैग मेरी सीट पर रखा हुआ था.
मैंने उनसे आदर पूर्वक कहा- अगर आप बुरा न मानें तो इस बैग को …
वो मेरी बात को समझ गईं, उन्होंने अपना हैंड बैग उठा लिया.
मैंने सीट अपने आरामनुसार व्यवस्थित की.
लेकिन तभी मुझे ये अनुभव हो गया था कि जो ये भाभी मेरे साथ जाएंगी, ये अनमोल माल है.
भाभी की उम्र लगभग उन्नतीस या तीस रही होगी क्योंकि उनकी शानदार और कामुक फिगर से मुझे यह अहसास हो गया था कि ये कोई साधारण औरत नहीं है.
मैंने अपना संतुलन बनाये रखने के लिए अपना ध्यान उस ओर न देने का निर्णय किया.
पर मेरे अन्दर फिर भी उनके पास बैठने से कुछ चंचलता बढ़ गयी थी.
मैं विचलित सा हो गया था.
शाम के लगभग सात बज चुके थे.
उनके हिजाब से उनकी बड़ी बड़ी मोहक आंखें मुझे बार बार मोहित करतीं और बड़ा ही आकर्षित कर रही थीं परंतु मैं सामान्य बने रहने का प्रयास कर रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.