10-01-2024, 01:08 PM
दावत भाभी की , जुबना की
एक ओर तो उनके देवर दावत दे रहे थे और दूसरी ओर उनकी भाभी का जिस तरह बार बार आँचल ढलक रहा था, खूब डीप कट चोली से जोबन छलक रहा था , बड़े बड़े गोरे मांसल कड़े कड़े खूब तने उनकी भौजी के उभार, वो भी जोबन की दावत दे रही थीं , अपने एकलौते देवर को
जब जेठानी जी ने खाने के लिए हाथ बढ़ाया तो उन्होंने पकड़ लिया और बोला बड़े ही द्विअर्थी अंदाज में
" जिस देवर के होते हुए भौजाई को अपनी उँगलियों का इस्तेमाल करना पड़े ,उसके लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात है। "
और अपने हाथ से गलावटी कबाब सीधे उनके होंठों के बीच।
सच में बहुत बहुत अच्छा था , एकदम मुंह में मेल्ट होने वाला , बस।
" भाभी आज तो बस आप खोलती जाइये मैं डालता जाऊं "
आज उन्होंने एकदम लिमिट क्रास करने की कसम खा रखी थी।
जेठानी ने मेरी ओर जीते हुए खिलाड़ी की तरह देखा और चट से मुंह खोल दिया ,
और झट से उन्होंने अबकी एक लम्बी मोटी पोर्क सॉसेज उनके खुले मुंह में।
हाँ आज हम ने तय कर लिया था नो हार्ड ड्रिंक्स ,
अरे नशे में धुत्त कर के रगड़ाई की तो क्या मजा , न उन्हें दर्द का अहसास होगा ,
न चीखे चिल्लायेंगी , न रेजिस्ट करेंगी।
लेकिन वाइंस थीं , रेड वाइंस सारी की सारी ,
उनके हिसाब से इम्पोर्टेड रूहआफजा।
पोर्ट ,शेरी , और सॉसेज के बाद उन्होंने पोर्ट वाइन ग्लास से अपने हाथ से।
" दीदी आपने तो एक बार में ही पूरा घोंट लिया " मैंने उनके कान में फुसफुसाया पर वो खिलखिलाते हुए बोलीं ,
" अरे आज कल की छोरियों की तरह नौसिखिया थोड़े ही हूँ " और मेरी ओर जोर से आँख मार दी।
और खुद पोर्ट का ग्लास उठा के गट गट
" भाभी अगर आपने हाथ का इस्तेमाल किया न तो मैं पीछे कर के आपके हाथ बाँध दूंगा और उसके बाद मेरी मर्जी , ... "
मुस्कराते हुए उन्होंने अपनी भौजाई की आँख में आँख डाल के बोला।
( हाथ तो जेठानी जी के बांधे ही जाने थे पर उसमें अभी टाइम था ).
" मर्जी तो तुम्हारी अभी भी है , जो तेरी मर्जी वो मेरी मर्जी " जेठानी जी बोलीं।
नशे का हल्का शुरूर चढ़ रहा था।
और फिर में डिशेज , और उसके शुरू में ही , मुझसे 'गड़बड़' हो गयी
।रोगन जोश जेठानी को देते हुए बस थोड़ा सा छलक कर उनकी साडी पर ,
उनके देवर ने स्लिप फील्डर की तरह कैच करने की कोशिश की पर , दो चार बूँद उनकी साडी पर ,
" अरे दीदी उतार दीजिये , इसको अभी धुलने को डाल देती हूँ वरना इसका दाग बहुत तगड़ा होता है , छूटेगा नहीं। "
और जब तक वो सम्हलें साडी का आँचल मेरे हाथ में , और उनका हाथ ,उनके देवर के हाथ में।
" हाँ भाभी सही तो कह रही है , जिसने गिराया वही धुले ,जिसकी गलती वही भुगते ,धुलने दीजिये इसको। "
कस के अपनी भाभी की कलाई पकडे वो बोले।
बिचारी लाख उन्होंने रोकने की कोशिश की पर आराम से उनके पेटीकोट में फंसी साडी मैंने धीरे धीरे निकाली ,आखिर उनके हाथ तो मेरे साजन की पकड़ में थे।
और साडी ले जाकर वाशिंग मशीन में डाल दी।
एक ओर तो उनके देवर दावत दे रहे थे और दूसरी ओर उनकी भाभी का जिस तरह बार बार आँचल ढलक रहा था, खूब डीप कट चोली से जोबन छलक रहा था , बड़े बड़े गोरे मांसल कड़े कड़े खूब तने उनकी भौजी के उभार, वो भी जोबन की दावत दे रही थीं , अपने एकलौते देवर को
जब जेठानी जी ने खाने के लिए हाथ बढ़ाया तो उन्होंने पकड़ लिया और बोला बड़े ही द्विअर्थी अंदाज में
" जिस देवर के होते हुए भौजाई को अपनी उँगलियों का इस्तेमाल करना पड़े ,उसके लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात है। "
और अपने हाथ से गलावटी कबाब सीधे उनके होंठों के बीच।
सच में बहुत बहुत अच्छा था , एकदम मुंह में मेल्ट होने वाला , बस।
" भाभी आज तो बस आप खोलती जाइये मैं डालता जाऊं "
आज उन्होंने एकदम लिमिट क्रास करने की कसम खा रखी थी।
जेठानी ने मेरी ओर जीते हुए खिलाड़ी की तरह देखा और चट से मुंह खोल दिया ,
और झट से उन्होंने अबकी एक लम्बी मोटी पोर्क सॉसेज उनके खुले मुंह में।
हाँ आज हम ने तय कर लिया था नो हार्ड ड्रिंक्स ,
अरे नशे में धुत्त कर के रगड़ाई की तो क्या मजा , न उन्हें दर्द का अहसास होगा ,
न चीखे चिल्लायेंगी , न रेजिस्ट करेंगी।
लेकिन वाइंस थीं , रेड वाइंस सारी की सारी ,
उनके हिसाब से इम्पोर्टेड रूहआफजा।
पोर्ट ,शेरी , और सॉसेज के बाद उन्होंने पोर्ट वाइन ग्लास से अपने हाथ से।
" दीदी आपने तो एक बार में ही पूरा घोंट लिया " मैंने उनके कान में फुसफुसाया पर वो खिलखिलाते हुए बोलीं ,
" अरे आज कल की छोरियों की तरह नौसिखिया थोड़े ही हूँ " और मेरी ओर जोर से आँख मार दी।
और खुद पोर्ट का ग्लास उठा के गट गट
" भाभी अगर आपने हाथ का इस्तेमाल किया न तो मैं पीछे कर के आपके हाथ बाँध दूंगा और उसके बाद मेरी मर्जी , ... "
मुस्कराते हुए उन्होंने अपनी भौजाई की आँख में आँख डाल के बोला।
( हाथ तो जेठानी जी के बांधे ही जाने थे पर उसमें अभी टाइम था ).
" मर्जी तो तुम्हारी अभी भी है , जो तेरी मर्जी वो मेरी मर्जी " जेठानी जी बोलीं।
नशे का हल्का शुरूर चढ़ रहा था।
और फिर में डिशेज , और उसके शुरू में ही , मुझसे 'गड़बड़' हो गयी
।रोगन जोश जेठानी को देते हुए बस थोड़ा सा छलक कर उनकी साडी पर ,
उनके देवर ने स्लिप फील्डर की तरह कैच करने की कोशिश की पर , दो चार बूँद उनकी साडी पर ,
" अरे दीदी उतार दीजिये , इसको अभी धुलने को डाल देती हूँ वरना इसका दाग बहुत तगड़ा होता है , छूटेगा नहीं। "
और जब तक वो सम्हलें साडी का आँचल मेरे हाथ में , और उनका हाथ ,उनके देवर के हाथ में।
" हाँ भाभी सही तो कह रही है , जिसने गिराया वही धुले ,जिसकी गलती वही भुगते ,धुलने दीजिये इसको। "
कस के अपनी भाभी की कलाई पकडे वो बोले।
बिचारी लाख उन्होंने रोकने की कोशिश की पर आराम से उनके पेटीकोट में फंसी साडी मैंने धीरे धीरे निकाली ,आखिर उनके हाथ तो मेरे साजन की पकड़ में थे।
और साडी ले जाकर वाशिंग मशीन में डाल दी।