29-12-2018, 11:09 AM
अपडेट - 3
चाँदनी बाबा की बातों को सोच रही थी और समझ रही थी लेकिन जब कुछ समझ नही आया तो बाबा को पूछने के लिए गर्दन उठा कर देखा तो बाबा जा चुके थे। चाँदनी घर के बाहर आकर भी ढूंढा लेकिन बाबा कहीं भी नज़र नही आए।
अब आगे.....
चाँदनी : (मन ही मन) है ईस्वर ये बाबा का आशीर्वाद था या शाप। कहीं बाबा किसी बात का बुरा तो नहीं मान गए। नहीं- नहीं बाबा ने तो तो आशीर्वाद ही दिया है। लेकिन मेरे यहाँ नही होने से ही पोता होगा। नहीं चार संतान होंगी। मतलब मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा। खेर जो भी हो कम से कम हमारा वंश तो आगे बढ़ सकेगा ना।
तभी घर के अंदर से चंचल आती है।
चंचल: माँ जी बधाई हो। आपको बहुत बहुत बधाई हो।
चाँदनी:
अरे अरे पगली पैर तो जमीन पर रख। ऐसा क्या मिल गया जिसकी बधाई देते हुए और पगलाए जा रही हो।
चंचल: माँ जी सुरेश को बिज़नेस में बहुत फायदा हुआ है। उनका बनारस में प्रॉफिट सैंतीस करोड़ पैंसठ लाख तक हुआ है। जिस से दिल्ली में राज हमारे बिज़नेस को और भी मजबूती से चला सकता है। और दूसरी बात सुरेश ने बनारस के बिज़नेस का नया मालिक मुझे बना दिया है क्योंकि हमारे बिज़नेस पार्टनर हमारे बिज़नेस को आपसी सम्मति से एक नया रूप दे रहे है। जिसके मालिक सुरेश होंगे। ये बिज़नेस का हमारा दूसरा हेड आफिस होगा जो दुबई में होगा। अब माँ जी ना तो मुझे कहीं पर जॉब ढूंढने की ज़रूरत होगी ना ही कोई प्रॉब्लम। मैं अब खुद सुरेश की जगह आफिस में जाउंगी।
चाँदनी ने जब ये खुश खबरी सुनी तो खुशी से झूम उठी। चाँदनी ने तुरंत चंचल को गले से लगा लिया।
चाँदनी : ( मन ही मन) बाबा के आ जाने से कितनी सारी खुशियाँ एक साथ हमारे घर मे आयी है। ज़रूर बाबा का कहा हर वचन सच साबित होगा। मुझे अगर पोता चाहिए तो जल्द से जल्द तीर्थ यात्रा पर निकलना होगा। इस से पहले की सुरेश विदेश यात्रा पर निकल पड़े। सुरेश अगर विदेश चला गया तो पोता कैसे होगा। फिर पता नही वो कब आये। और फिर मैं भी तो और ज्यादा इंतजार नही कर सकती । मैं आज ही सुरेश से बात करूँगी।
चंचल चाँदनी को गले लगा कर दूर करती है और बोलती है।
चंचल: माँ जी मैं अभी ये खुश खबरी सरिता और राज को भी देती हूं।
चाँदनी: चंचल के गाल पर प्यार से हाथ फेरते हुए) हाँ बेटा ये तो सच मे खुशखबरी है। जाओ उन्हें जल्दी से फ़ोन करके खुशखबरी सुना दो। और हां अगर हो सके तो सरिता को कुछ दिनों के लिए यहां बुला लो।
चंचल तुरंत अपने कमरे में जाति है और सरिता को फ़ोन मिला देती है। सरिता और चंचल में बात होने लगती है। दोनों खुशी से झूम रही थी।
चंचल:
अच्छा सुनो सरिता! वो माँ जी ने तुम्हे यहां बनारस बुलाया है।
सरिता:
मुझे? पर क्यों?
चंचल: पर क्यों? लगता है राज के घर मे जल्दी घर बना लिया बन्नो। तो क्या अपनी दीदी के पास भी नहीं आओगी।
सरिता: नहीं नही दीदी ऐसी बात नही है। आप तो जिठानी है मेरी। लेकिन राज कैसे आएंगे मेरे साथ? वो तो बिज़नेस.....
चंचल: पगली इसीलिए तो सिर्फ तुझे बुलाया है। अब जल्दी से ट्रेन में बैठ और आज।
सरिता: लेकिन दीदी...
चंचल: लेकिन वेकीन कुछ नहीं तू जल्दी आज बस।
सरिता : हा हा हा जी दीदी। बिल्कुल मैं करती हूँ राज से बात और फिर आपको बताती हूँ।
चंचल: अच्छा ठीक है। और सुन कुछ दिनों की कसर निकाल कर आना। यहां राज के बिना रहना पड़ेगा।
सरिता: (लजाते , शर्माते) धत्त दीदी...
चंचल: (हंसते हुए) चल रखती हूँ फ़ोन जल्दी आना और हाँ ध्यान से आना। अपना ख्याल रखना।
सरिता : जी दीदी बाय..
दोनों अपने अपने हाथ मे फ़ोन लिए कुछ सोचती है और फिर मुस्कुराकर अपने अपने काम मे लग जाती है। वहीं दूसरी और चाँदनी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए सामान जमाने लगती है। चाँदनी की तीर्थ यात्रा की तैयारी जोर शोर में थी।
पूरा परिवार खुशियों से झूम रहा था लेकिन ये खुशियां उस हवा की तरह थी। जो तूफान का संकेत देती है। पहले हल्की हल्की चलती है फिर अचानक से इतनी तेज आती है कि सब कुछ बर्बाद कर देती है। इस बात का एहसास अभी तक पूरे घर में किसी को भी नहीं था। चलता भी कैसे सब कुछ बहोत आराम से खुशी खुशी हो रहा था।
चाँदनी बाबा की बातों को सोच रही थी और समझ रही थी लेकिन जब कुछ समझ नही आया तो बाबा को पूछने के लिए गर्दन उठा कर देखा तो बाबा जा चुके थे। चाँदनी घर के बाहर आकर भी ढूंढा लेकिन बाबा कहीं भी नज़र नही आए।
अब आगे.....
चाँदनी : (मन ही मन) है ईस्वर ये बाबा का आशीर्वाद था या शाप। कहीं बाबा किसी बात का बुरा तो नहीं मान गए। नहीं- नहीं बाबा ने तो तो आशीर्वाद ही दिया है। लेकिन मेरे यहाँ नही होने से ही पोता होगा। नहीं चार संतान होंगी। मतलब मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा। खेर जो भी हो कम से कम हमारा वंश तो आगे बढ़ सकेगा ना।
तभी घर के अंदर से चंचल आती है।
चंचल: माँ जी बधाई हो। आपको बहुत बहुत बधाई हो।
चाँदनी:
अरे अरे पगली पैर तो जमीन पर रख। ऐसा क्या मिल गया जिसकी बधाई देते हुए और पगलाए जा रही हो।
चंचल: माँ जी सुरेश को बिज़नेस में बहुत फायदा हुआ है। उनका बनारस में प्रॉफिट सैंतीस करोड़ पैंसठ लाख तक हुआ है। जिस से दिल्ली में राज हमारे बिज़नेस को और भी मजबूती से चला सकता है। और दूसरी बात सुरेश ने बनारस के बिज़नेस का नया मालिक मुझे बना दिया है क्योंकि हमारे बिज़नेस पार्टनर हमारे बिज़नेस को आपसी सम्मति से एक नया रूप दे रहे है। जिसके मालिक सुरेश होंगे। ये बिज़नेस का हमारा दूसरा हेड आफिस होगा जो दुबई में होगा। अब माँ जी ना तो मुझे कहीं पर जॉब ढूंढने की ज़रूरत होगी ना ही कोई प्रॉब्लम। मैं अब खुद सुरेश की जगह आफिस में जाउंगी।
चाँदनी ने जब ये खुश खबरी सुनी तो खुशी से झूम उठी। चाँदनी ने तुरंत चंचल को गले से लगा लिया।
चाँदनी : ( मन ही मन) बाबा के आ जाने से कितनी सारी खुशियाँ एक साथ हमारे घर मे आयी है। ज़रूर बाबा का कहा हर वचन सच साबित होगा। मुझे अगर पोता चाहिए तो जल्द से जल्द तीर्थ यात्रा पर निकलना होगा। इस से पहले की सुरेश विदेश यात्रा पर निकल पड़े। सुरेश अगर विदेश चला गया तो पोता कैसे होगा। फिर पता नही वो कब आये। और फिर मैं भी तो और ज्यादा इंतजार नही कर सकती । मैं आज ही सुरेश से बात करूँगी।
चंचल चाँदनी को गले लगा कर दूर करती है और बोलती है।
चंचल: माँ जी मैं अभी ये खुश खबरी सरिता और राज को भी देती हूं।
चाँदनी: चंचल के गाल पर प्यार से हाथ फेरते हुए) हाँ बेटा ये तो सच मे खुशखबरी है। जाओ उन्हें जल्दी से फ़ोन करके खुशखबरी सुना दो। और हां अगर हो सके तो सरिता को कुछ दिनों के लिए यहां बुला लो।
चंचल तुरंत अपने कमरे में जाति है और सरिता को फ़ोन मिला देती है। सरिता और चंचल में बात होने लगती है। दोनों खुशी से झूम रही थी।
चंचल:
अच्छा सुनो सरिता! वो माँ जी ने तुम्हे यहां बनारस बुलाया है।
सरिता:
मुझे? पर क्यों?
चंचल: पर क्यों? लगता है राज के घर मे जल्दी घर बना लिया बन्नो। तो क्या अपनी दीदी के पास भी नहीं आओगी।
सरिता: नहीं नही दीदी ऐसी बात नही है। आप तो जिठानी है मेरी। लेकिन राज कैसे आएंगे मेरे साथ? वो तो बिज़नेस.....
चंचल: पगली इसीलिए तो सिर्फ तुझे बुलाया है। अब जल्दी से ट्रेन में बैठ और आज।
सरिता: लेकिन दीदी...
चंचल: लेकिन वेकीन कुछ नहीं तू जल्दी आज बस।
सरिता : हा हा हा जी दीदी। बिल्कुल मैं करती हूँ राज से बात और फिर आपको बताती हूँ।
चंचल: अच्छा ठीक है। और सुन कुछ दिनों की कसर निकाल कर आना। यहां राज के बिना रहना पड़ेगा।
सरिता: (लजाते , शर्माते) धत्त दीदी...
चंचल: (हंसते हुए) चल रखती हूँ फ़ोन जल्दी आना और हाँ ध्यान से आना। अपना ख्याल रखना।
सरिता : जी दीदी बाय..
दोनों अपने अपने हाथ मे फ़ोन लिए कुछ सोचती है और फिर मुस्कुराकर अपने अपने काम मे लग जाती है। वहीं दूसरी और चाँदनी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए सामान जमाने लगती है। चाँदनी की तीर्थ यात्रा की तैयारी जोर शोर में थी।
पूरा परिवार खुशियों से झूम रहा था लेकिन ये खुशियां उस हवा की तरह थी। जो तूफान का संकेत देती है। पहले हल्की हल्की चलती है फिर अचानक से इतनी तेज आती है कि सब कुछ बर्बाद कर देती है। इस बात का एहसास अभी तक पूरे घर में किसी को भी नहीं था। चलता भी कैसे सब कुछ बहोत आराम से खुशी खुशी हो रहा था।
बर्बादी को निमंत्रण
https://xossipy.com/thread-1515.html
[b]द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A Tale of Tilism}[/b]
https://xossipy.com/thread-2651.html
Hawas ka ghulam
https://xossipy.com/thread-33284-post-27...pid2738750
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[b]द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A Tale of Tilism}[/b]
https://xossipy.com/thread-2651.html
Hawas ka ghulam
https://xossipy.com/thread-33284-post-27...pid2738750