27-12-2023, 04:26 PM
बहु ने रिमोट निकाल कर अपने दोनों जांघो के बीच में कस के दबा लिया। समधी जी रिमोट को पकड़ना चाहते थे लेकिन इस चक्कर में उनका हाथ बहु के दोनों जाँघो के बीच फ़ांस गया। बहु ने तो लेग्गिंग्स के अंदर पैन्टी भी नहीं पहनी थी। वो बिना कोई ऐतराज़ दिखाते हुए अपने पापा का हाथ को जांघो के बीच दबाती रही। समधी जी का हाथ का स्पर्श बहु के गरम बुर से हो रहा था। समधी जी भी उत्तेजित हो कर अपने हाथ को बाहर न निकाल कर रिमोट ढूंढने के बहाने अपनी बेटी के गरम चुत को रगडते रहे। समधी जी इस मौके का पूरा आनन्द उठा रहे थे। फिर होश संभालते हुए मुझसे बोले -
समधि जी - देसाई जी, क्या हमदोनो इतने बूढ़े हैं के हम लोगों में ताकत नहीं रही, मैं अपनी बेटी से जीत नहीं पा रहा हूँ।
मै - (मैं बहु के हाथ जोर से पकड़ते हुवे बोला) - समधी जी आपकी नज़र कमजोर है बहु ने रिमोट अपने नीचे दबा लिया है। सरोज को उठा कर निकाल लीजिये।
बहु खिलखिला कर हँसती रही।।
समधि जी - देसाई जी मुझे मालूम है, लेकिन एसके कुल्हे इतने बड़े हैं के मैं इन्हे उठा नहीं पा रहा हूँ।
समधि जी के मुह से अपनी बेटी के कूल्हों के बारे में बात करता देख मेरा लंड सख्त हो गया। मैंने जवाब में "सच है" कहा कह कर चुप हो गया। बहु ने भी अपनी तरफ से झुठा ऐतराज़ करते हुये कहा
सरोज - पापा आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं वो भी बाबूजी के सामने ।
समधि जी - नहीं बेटि, इसमे मजाक उड़ाने वाली कौन सी बात हो गई। तुम्हे तो अपनी ख़ूबसूरती पे नाज़ होना चहिये
सरोज - कैसा नाज़ पापा, आपने अभी-अभी मुझे मोटी कहा।
समधि जी - बेटी मोटी कब कहा मैंने? मैंने तो सिर्फ इतना कहा के मैं तुम्हे उठा नहीं पा रहा क्योंकि तुम्हारे कुल्हे बड़े और भारी है। और लड़कियों के बड़े और भारी कुल्हे तो काफी अकर्षित लगते है, कई कवियों ने अपनी कविता में स्त्रियों के कूल्हों को उसके सिंगार का गहना बताया है। क्यों देसाई जी ठीक कहा न मैंने?
मैन अपने खड़े लंड को सहलाते हुए, ये सोच के हैरान था के समधी जी कितनी आसानी से अपनी जवान बेटी की बड़ी गांड की बात कर रहे हैं और मुझे भी उसके यौवन के बारे में बोलने के लिए उकसा रहे है। मैंने भी इस चर्चा को थोड़ा और मसाला देने की सोचा। मैं देखना चाहता था की समधी जी किस हद्द तक मुझसे अपनी बेटी के बारे में खुल सकते है।
मै - पापा ठीक कह रहे हैं बेटी, तुम नहीं जानती अपने जमाने में जब हमलोग कॉलेज जाया करते थे उस वक़्त थिएटर में हर आने वाली लड़की के लचकती कमर और मटकते कूल्हों पे हम लड़के सीटियाँ बजाय करते थे।
सरोज - सच में बाबूजी, आप लोग भी उस जमाने में बदमाशी करते थे? हम लड़कियों को तो कभी पता हे नहीं चल पता के लड़को को क्या अच्छा लगता है।
समधि जी - बेटी वो तो उम्र ही ऐसी होती है, तुम्हे नहीं पता चलता लेकिन मैं तो समझ सकता हूँ न। इसलिए तो मैं तुम्हे अपने साथ बाजार ले जाने में झिझकता था याद है बेटी।
सरोज - हाँ आप मुझे मना करते थे लेकिन मैं फिर भी आपके साथ जिद्द करके आ जाती थी। लेकिन आप मुझे क्यों मना करते थे पापा?
समधि जी - बेटी तुम बाजार में ध्यान नहीं देती थी, मैं देता था। जब भी तुम अपनी ब्लू कलर वाली टाइट जीन्स पहन के बाजार में चलति, तो तुम्हारे पीछे कॉलेज के लड़के जवान, बूढ़े सभी तुम्हारी बड़े-बड़े कूल्हों को देखा करते थे। और वो जीन्स भी तो टाइट थी जो तुम्हारी मांसल जाँघ और तुम्हारे निचले हिस्से को और भी उभार देती थी।
सरोज - ओह पापा मैं तो कभी ऐसा सोचा ही नही मुझे नहीं पता था की लोग ऐसे अट्रॅक्ट होते हैं लड़कियों के इस भाग के लिये। मेरे जीन्स पहनने पे ये हाल था तो मैं शॉर्ट्स पहनती तो क्या होता।।
समधि जी - है है ।। क्यों समधी जी आप बताइये क्या होता? आखिर शादी के बाद यहाँ इस मोहल्ले में क्या होता है वो तो आप ही बता सकते हैं क्यों?
मै - हाँ समधी जी मैंने भी कई बार कोशिश की बहु को बोलने की लेकिन बोल नहीं पाया। यहाँ भी आस पास के लड़के बहु के हिप्स को बहुत घूरते है।
समधि जी - देसाई जी, क्या हमदोनो इतने बूढ़े हैं के हम लोगों में ताकत नहीं रही, मैं अपनी बेटी से जीत नहीं पा रहा हूँ।
मै - (मैं बहु के हाथ जोर से पकड़ते हुवे बोला) - समधी जी आपकी नज़र कमजोर है बहु ने रिमोट अपने नीचे दबा लिया है। सरोज को उठा कर निकाल लीजिये।
बहु खिलखिला कर हँसती रही।।
समधि जी - देसाई जी मुझे मालूम है, लेकिन एसके कुल्हे इतने बड़े हैं के मैं इन्हे उठा नहीं पा रहा हूँ।
समधि जी के मुह से अपनी बेटी के कूल्हों के बारे में बात करता देख मेरा लंड सख्त हो गया। मैंने जवाब में "सच है" कहा कह कर चुप हो गया। बहु ने भी अपनी तरफ से झुठा ऐतराज़ करते हुये कहा
सरोज - पापा आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं वो भी बाबूजी के सामने ।
समधि जी - नहीं बेटि, इसमे मजाक उड़ाने वाली कौन सी बात हो गई। तुम्हे तो अपनी ख़ूबसूरती पे नाज़ होना चहिये
सरोज - कैसा नाज़ पापा, आपने अभी-अभी मुझे मोटी कहा।
समधि जी - बेटी मोटी कब कहा मैंने? मैंने तो सिर्फ इतना कहा के मैं तुम्हे उठा नहीं पा रहा क्योंकि तुम्हारे कुल्हे बड़े और भारी है। और लड़कियों के बड़े और भारी कुल्हे तो काफी अकर्षित लगते है, कई कवियों ने अपनी कविता में स्त्रियों के कूल्हों को उसके सिंगार का गहना बताया है। क्यों देसाई जी ठीक कहा न मैंने?
मैन अपने खड़े लंड को सहलाते हुए, ये सोच के हैरान था के समधी जी कितनी आसानी से अपनी जवान बेटी की बड़ी गांड की बात कर रहे हैं और मुझे भी उसके यौवन के बारे में बोलने के लिए उकसा रहे है। मैंने भी इस चर्चा को थोड़ा और मसाला देने की सोचा। मैं देखना चाहता था की समधी जी किस हद्द तक मुझसे अपनी बेटी के बारे में खुल सकते है।
मै - पापा ठीक कह रहे हैं बेटी, तुम नहीं जानती अपने जमाने में जब हमलोग कॉलेज जाया करते थे उस वक़्त थिएटर में हर आने वाली लड़की के लचकती कमर और मटकते कूल्हों पे हम लड़के सीटियाँ बजाय करते थे।
सरोज - सच में बाबूजी, आप लोग भी उस जमाने में बदमाशी करते थे? हम लड़कियों को तो कभी पता हे नहीं चल पता के लड़को को क्या अच्छा लगता है।
समधि जी - बेटी वो तो उम्र ही ऐसी होती है, तुम्हे नहीं पता चलता लेकिन मैं तो समझ सकता हूँ न। इसलिए तो मैं तुम्हे अपने साथ बाजार ले जाने में झिझकता था याद है बेटी।
सरोज - हाँ आप मुझे मना करते थे लेकिन मैं फिर भी आपके साथ जिद्द करके आ जाती थी। लेकिन आप मुझे क्यों मना करते थे पापा?
समधि जी - बेटी तुम बाजार में ध्यान नहीं देती थी, मैं देता था। जब भी तुम अपनी ब्लू कलर वाली टाइट जीन्स पहन के बाजार में चलति, तो तुम्हारे पीछे कॉलेज के लड़के जवान, बूढ़े सभी तुम्हारी बड़े-बड़े कूल्हों को देखा करते थे। और वो जीन्स भी तो टाइट थी जो तुम्हारी मांसल जाँघ और तुम्हारे निचले हिस्से को और भी उभार देती थी।
सरोज - ओह पापा मैं तो कभी ऐसा सोचा ही नही मुझे नहीं पता था की लोग ऐसे अट्रॅक्ट होते हैं लड़कियों के इस भाग के लिये। मेरे जीन्स पहनने पे ये हाल था तो मैं शॉर्ट्स पहनती तो क्या होता।।
समधि जी - है है ।। क्यों समधी जी आप बताइये क्या होता? आखिर शादी के बाद यहाँ इस मोहल्ले में क्या होता है वो तो आप ही बता सकते हैं क्यों?
मै - हाँ समधी जी मैंने भी कई बार कोशिश की बहु को बोलने की लेकिन बोल नहीं पाया। यहाँ भी आस पास के लड़के बहु के हिप्स को बहुत घूरते है।