27-12-2023, 11:11 AM
पर मुझे ये जानने की बहुत जिज्ञासा हो रही थी कि वो मेरी से क्या मांग रहा था. पर मैं ये सब पूछता किससे, सो चुप रह गया. कुछ देर बाद श्वेता दीदी मेरे घर आई. मैंने उससे भी यही बात पूछी.
तब उसने बात घुमाते हुए कहा- अरे कुछ नहीं … नोट बुक मांग रहा था.
मैं तो उनकी बातें सुनकर चुप हो गया. पर मैं उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ था. वो इसलिए कि कोई नोट बुक के लिए क्यों लड़ेगा. और नोटबुक के घोड़ी बनाने को क्यों कहा.
कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा. फिर कॉलेज में गर्मी की छुट्टियां हो गईं.
एक दिन दोपहर का समय था, मैं दीदी के कमरे में बैठ कर होमवर्क कर रहा था. दीदी भी वहीं बैठ कर अपना होमवर्क कर रही थी … और मम्मी बरामदे में बैठी थीं.
तभी सामने से श्वेता दीदी आते दिखाई दी. उसने आते ही मम्मी से पूछा- आंटी कैसी हैं, प्रिया कहां है?
मम्मी- हां बेटा मैं ठीक हूं. प्रिया अपने कमरे शायद होमवर्क कर रही है.
फिर श्वेता कमरे में आ गई.
मेरी दीदी- अरे श्वेता कैसी हो … इतनी दोपहर में आयी हो?
श्वेता- हां यार … कुछ जरूरी बात करनी थी.
दीदी- हां बोलो न?
पर श्वेता दीदी कुछ नहीं बोली.
दीदी- क्या हुआ बोलो न.
शायद मैं वहीं था, इसलिए वो कुछ नहीं बोल रही थी.
फिर श्वेता दीदी ने मेरी दीदी को इशारा करते हुए कहा- इसे यहां से भेजो.
दीदी- अर्णव, अब काफी दोपहर हो गई है … तुम अपने कमरे में जाकर सो जाओ … बाकी का होमवर्क रात में बना लेंगे. मुझे भी नींद आ रही है.
मैं वहां से अपने कमरे में चला गया. लेकिन मैं सोच रहा था कि पता नहीं ऐसी क्या बात थी. आज तक दोनों हर तरह की बात, मेरे सामने ही कर लेती थीं … पर आज क्या खास बात है.
मैं यही सोचते हुए अपने कमरे में चला गया. जब मैं अपने कमरे में गया, तो अचानक मेरे दिमाग में एक तरकीब सूझी. मेरी दीदी और मेरे रूम के बीच के दीवार के सबसे ऊपर एक बड़ा सा तक्का (छिद्र) था. मुझे लगा इस होल से झांक कर उनकी बातें सुनना चाहिए.
मैं जल्दी से एक कुर्सी लाया और उस पर चढ़ गया. मेरे कमरे की छत की हाइट ज्यादा नहीं थी, सो मैं आसानी से होल के पास पहुंच गया और अन्दर झांकने लगा. मैं उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगा, पर उनकी बातें सुन नहीं पा रहा था … क्योंकि रूम का पंखा काफी तेज चल रहा था और वो बातें भी बहुत धीरे धीरे कर रही थीं.
कुछ देर तक वे दोनों आपस में बातें करती रहीं. फिर श्वेता दीदी ने अपने ब्रा के अन्दर से एक कागज निकाला और दीदी को देने लगी. पर दीदी उसे लेने से इंकार करने लगी. फिर बहुत कहने के बाद दीदी ने उसे रख लिया. उसके बाद श्वेता दीदी जाने लगी.
प्रिया दीदी उन्हें दरवाजे तक छोड़ने के लिए बाहर आई. उसी समय मैं भी अपने कमरे से बाहर निकला. जब मैं बाहर आया, तो श्वेता दीदी ने मुझसे पूछा- क्या हुआ अर्णव … तू अभी तक सोया नहीं.
मैं- हां सो गया था, प्यास लग आई, इसलिए जाग गया.
मैं पानी पीने का बहाना करने लगा.
श्वेता दीदी- प्रिया, जवाब जरूर देना.
मेरी दीदी कुछ नहीं बोली.
हम लोगों की बातें सुनकर मम्मी भी जाग गईं. मम्मी ने वहीं से आवाज लगाई- क्या हुआ श्वेता, जा रही हो?
श्वेता- हां आंटी जा रही हूं.
मम्मी- अरे रुको तो, धूप ढल जाने दो, तब चली जाना.
श्वेता- नहीं आंटी, मम्मी इंतज़ार कर रही होंगी, मैं उनसे बोल कर आई थी कि जल्दी आ जाऊंगी और एक घंटे से अधिक हो गया है. शाम में कोचिंग भी जाना है और अभी तक होमवर्क भी नहीं किया है. प्रिया ने तो अपना होमवर्क भी पूरा कर लिया.
मम्मी- ठीक है बेटा … आती रहना.
श्वेता- जी आंटी … मैं तो आती रहती हूं पर पता नहीं क्यों … प्रिया हमारे यहां जल्दी नहीं आती. मम्मी हमेशा इसे याद करती रहती हैं.
मम्मी- तुम्हारी सहेली है … तुम्हीं पूछो क्यों नहीं जाती. आज लेकर जाओ साथ में.
श्वेता दीदी ने प्रिया दीदी से पूछा- चलेगी … चलो न.
दीदी- नहीं … कभी और आ जाऊंगी.
श्वेता दीदी- ठीक है … तो मैं जाती हूं.
दीदी- ठीक.
श्वेता दीदी- जवाब जरूर देना.
मेरी दीदी फिर कुछ नहीं बोली.
श्वेता दीदी- मुझे आशा है तुम इंकार नहीं करोगी.
उसके बाद श्वेता दीदी चली गई. दीदी भी अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. मैं भी अपने कमरे में चला गया और पलंग पर कुर्सी लगा कर अन्दर झांकने लगा.
तब मैंने देखा कि दीदी उस कागज को खोल कर पढ़ रही थी. मैंने गौर किया कि दीदी जब पढ़ रही थी, उस वक्त उनका चेहरा पूरा लाल हो गया था और वो पसीने से पूरा तरबतर हो गई. लैटर को पढ़ने के बाद उस कागज को किताबों के अन्दर डाल दिया. मैं बड़ी गौर से उस किताब को देख रहा था. उसके बाद दीदी सो गई.
मैं भी पलंग से कुर्सी हटाता हुआ नीचे उतर गया और सो गया.
अचानक मुझे श्वेता दीदी की आवाज़ सुनाई दी. मैं झट से उठा और बाहर आया. मैंने देखा दीदी और श्वेता दीदी दोनों कोचिंग के लिए जा रही हैं और मम्मी बाहर दरवाजे पर बगल की आंटी के साथ बातें कर रही थीं.
मेरे दिमाग में झट से घंटी बजी. मैं जल्दी से दीदी के कमरे में गया और उस किताब को निकाला, जिसमें दीदी ने उस लैटर को छिपाया थी. मैं वो लैटर ढूंढने लगा. उसे ढूंढने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि मुझे पहले से पता था.
मैंने लैटर को पढ़ना शुरू किया.
मेरे सपनों की शहजादी प्रिया.
पता नहीं, मैं जो कर रहा हूं, वो सही है या गलत. पर मैंने जब से आपको देखा है … मेरी रातों की नींद उड़ गई है. मैंने आज तक आपके जैसी सुंदर लड़की नहीं देखी है. पता नहीं कब मुझे आपसे प्यार हो गया. मुझे लगता है, अब मैं आपके बिना जी नहीं पाऊंगा. आई लव यू प्रिया … आई लव यू.
मैं आशा करता हूं कि आप मेरा दिल नहीं तोड़ोगी.
आपके जवाब का इंतेज़ार रहेगा.
जब मैं ये सब पढ़ रहा था, तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. फिर मैं उसे वहीं रख कर वापस अपने कमरे में चला आया. तभी मम्मी ने आवाज़ लगा दी.
मम्मी- बेटा अर्णव खाना खा लो.
मैं- हां मम्मी, दे दो.
मम्मी ने खाना लाकर दिया और मैं खाना खाकर खेलने चला गया. मेरे घर के पास ही एक छोटा सा मैदान है, मैं अपने दोस्तों के साथ वहीं क्रिकेट खेल रहा था.
तभी किसी ने मुझे पीछे से आवाज दी- अर्णव.
मैंने पीछे मुड़ कर देखा, ये साकेत भैया थे. उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया, तो मैं उनके पास गया.
साकेत भैया- अरे अर्णव कहां थे … बहुत दिन से दिखाई नहीं दिए.
मैं- हां, अभी कॉलेज बंद है ना … तो मैं घर पर रहता हूं. शाम में अपने दोस्तों के साथ यहां क्रिकेट खेलने आता हूं.
साकेत भैया- तुम ट्यूशन नहीं जाते हो?
मैं- नहीं … मेरी दीदी ही मुझे घर पर ट्यूशन पढ़ाती है.
साकेत भैया- ओके, कैसी है दीदी तुम्हारी. तुम्हें पीटती है या नहीं.
मैं- नहीं … वो मुझे नहीं पीटती है. वो मुझसे बहुत प्यार करती है.
साकेत भैया- ऐसे भी तुम्हारी दीदी बहुत अच्छी है.
मैं- हां … वो तो है.
फिर उन्होंने अपने पॉकेट से दो चॉकलेट निकाल कर दीं और बोले- तुम्हें चॉकलेट पसंद है न.
मैं- हां.
साकेत भैया- ये लो चॉकलेट एक तुम्हारे लिए और एक तुम्हारी दीदी के लिए.
मैंने उनसे दोनों चॉकलेट ले लीं और बोला- ठीक है भैया … अब मैं खेलने जा रहा हूं.
वो बोले- ठीक है जाओ … लेकिन चॉकलेट खा लेना और एक अपनी दीदी को दे देना.
मैंने बोला- ठीक है.
फिर वो चले गए.
तब उसने बात घुमाते हुए कहा- अरे कुछ नहीं … नोट बुक मांग रहा था.
मैं तो उनकी बातें सुनकर चुप हो गया. पर मैं उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ था. वो इसलिए कि कोई नोट बुक के लिए क्यों लड़ेगा. और नोटबुक के घोड़ी बनाने को क्यों कहा.
कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा. फिर कॉलेज में गर्मी की छुट्टियां हो गईं.
एक दिन दोपहर का समय था, मैं दीदी के कमरे में बैठ कर होमवर्क कर रहा था. दीदी भी वहीं बैठ कर अपना होमवर्क कर रही थी … और मम्मी बरामदे में बैठी थीं.
तभी सामने से श्वेता दीदी आते दिखाई दी. उसने आते ही मम्मी से पूछा- आंटी कैसी हैं, प्रिया कहां है?
मम्मी- हां बेटा मैं ठीक हूं. प्रिया अपने कमरे शायद होमवर्क कर रही है.
फिर श्वेता कमरे में आ गई.
मेरी दीदी- अरे श्वेता कैसी हो … इतनी दोपहर में आयी हो?
श्वेता- हां यार … कुछ जरूरी बात करनी थी.
दीदी- हां बोलो न?
पर श्वेता दीदी कुछ नहीं बोली.
दीदी- क्या हुआ बोलो न.
शायद मैं वहीं था, इसलिए वो कुछ नहीं बोल रही थी.
फिर श्वेता दीदी ने मेरी दीदी को इशारा करते हुए कहा- इसे यहां से भेजो.
दीदी- अर्णव, अब काफी दोपहर हो गई है … तुम अपने कमरे में जाकर सो जाओ … बाकी का होमवर्क रात में बना लेंगे. मुझे भी नींद आ रही है.
मैं वहां से अपने कमरे में चला गया. लेकिन मैं सोच रहा था कि पता नहीं ऐसी क्या बात थी. आज तक दोनों हर तरह की बात, मेरे सामने ही कर लेती थीं … पर आज क्या खास बात है.
मैं यही सोचते हुए अपने कमरे में चला गया. जब मैं अपने कमरे में गया, तो अचानक मेरे दिमाग में एक तरकीब सूझी. मेरी दीदी और मेरे रूम के बीच के दीवार के सबसे ऊपर एक बड़ा सा तक्का (छिद्र) था. मुझे लगा इस होल से झांक कर उनकी बातें सुनना चाहिए.
मैं जल्दी से एक कुर्सी लाया और उस पर चढ़ गया. मेरे कमरे की छत की हाइट ज्यादा नहीं थी, सो मैं आसानी से होल के पास पहुंच गया और अन्दर झांकने लगा. मैं उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगा, पर उनकी बातें सुन नहीं पा रहा था … क्योंकि रूम का पंखा काफी तेज चल रहा था और वो बातें भी बहुत धीरे धीरे कर रही थीं.
कुछ देर तक वे दोनों आपस में बातें करती रहीं. फिर श्वेता दीदी ने अपने ब्रा के अन्दर से एक कागज निकाला और दीदी को देने लगी. पर दीदी उसे लेने से इंकार करने लगी. फिर बहुत कहने के बाद दीदी ने उसे रख लिया. उसके बाद श्वेता दीदी जाने लगी.
प्रिया दीदी उन्हें दरवाजे तक छोड़ने के लिए बाहर आई. उसी समय मैं भी अपने कमरे से बाहर निकला. जब मैं बाहर आया, तो श्वेता दीदी ने मुझसे पूछा- क्या हुआ अर्णव … तू अभी तक सोया नहीं.
मैं- हां सो गया था, प्यास लग आई, इसलिए जाग गया.
मैं पानी पीने का बहाना करने लगा.
श्वेता दीदी- प्रिया, जवाब जरूर देना.
मेरी दीदी कुछ नहीं बोली.
हम लोगों की बातें सुनकर मम्मी भी जाग गईं. मम्मी ने वहीं से आवाज लगाई- क्या हुआ श्वेता, जा रही हो?
श्वेता- हां आंटी जा रही हूं.
मम्मी- अरे रुको तो, धूप ढल जाने दो, तब चली जाना.
श्वेता- नहीं आंटी, मम्मी इंतज़ार कर रही होंगी, मैं उनसे बोल कर आई थी कि जल्दी आ जाऊंगी और एक घंटे से अधिक हो गया है. शाम में कोचिंग भी जाना है और अभी तक होमवर्क भी नहीं किया है. प्रिया ने तो अपना होमवर्क भी पूरा कर लिया.
मम्मी- ठीक है बेटा … आती रहना.
श्वेता- जी आंटी … मैं तो आती रहती हूं पर पता नहीं क्यों … प्रिया हमारे यहां जल्दी नहीं आती. मम्मी हमेशा इसे याद करती रहती हैं.
मम्मी- तुम्हारी सहेली है … तुम्हीं पूछो क्यों नहीं जाती. आज लेकर जाओ साथ में.
श्वेता दीदी ने प्रिया दीदी से पूछा- चलेगी … चलो न.
दीदी- नहीं … कभी और आ जाऊंगी.
श्वेता दीदी- ठीक है … तो मैं जाती हूं.
दीदी- ठीक.
श्वेता दीदी- जवाब जरूर देना.
मेरी दीदी फिर कुछ नहीं बोली.
श्वेता दीदी- मुझे आशा है तुम इंकार नहीं करोगी.
उसके बाद श्वेता दीदी चली गई. दीदी भी अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. मैं भी अपने कमरे में चला गया और पलंग पर कुर्सी लगा कर अन्दर झांकने लगा.
तब मैंने देखा कि दीदी उस कागज को खोल कर पढ़ रही थी. मैंने गौर किया कि दीदी जब पढ़ रही थी, उस वक्त उनका चेहरा पूरा लाल हो गया था और वो पसीने से पूरा तरबतर हो गई. लैटर को पढ़ने के बाद उस कागज को किताबों के अन्दर डाल दिया. मैं बड़ी गौर से उस किताब को देख रहा था. उसके बाद दीदी सो गई.
मैं भी पलंग से कुर्सी हटाता हुआ नीचे उतर गया और सो गया.
अचानक मुझे श्वेता दीदी की आवाज़ सुनाई दी. मैं झट से उठा और बाहर आया. मैंने देखा दीदी और श्वेता दीदी दोनों कोचिंग के लिए जा रही हैं और मम्मी बाहर दरवाजे पर बगल की आंटी के साथ बातें कर रही थीं.
मेरे दिमाग में झट से घंटी बजी. मैं जल्दी से दीदी के कमरे में गया और उस किताब को निकाला, जिसमें दीदी ने उस लैटर को छिपाया थी. मैं वो लैटर ढूंढने लगा. उसे ढूंढने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि मुझे पहले से पता था.
मैंने लैटर को पढ़ना शुरू किया.
मेरे सपनों की शहजादी प्रिया.
पता नहीं, मैं जो कर रहा हूं, वो सही है या गलत. पर मैंने जब से आपको देखा है … मेरी रातों की नींद उड़ गई है. मैंने आज तक आपके जैसी सुंदर लड़की नहीं देखी है. पता नहीं कब मुझे आपसे प्यार हो गया. मुझे लगता है, अब मैं आपके बिना जी नहीं पाऊंगा. आई लव यू प्रिया … आई लव यू.
मैं आशा करता हूं कि आप मेरा दिल नहीं तोड़ोगी.
आपके जवाब का इंतेज़ार रहेगा.
जब मैं ये सब पढ़ रहा था, तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. फिर मैं उसे वहीं रख कर वापस अपने कमरे में चला आया. तभी मम्मी ने आवाज़ लगा दी.
मम्मी- बेटा अर्णव खाना खा लो.
मैं- हां मम्मी, दे दो.
मम्मी ने खाना लाकर दिया और मैं खाना खाकर खेलने चला गया. मेरे घर के पास ही एक छोटा सा मैदान है, मैं अपने दोस्तों के साथ वहीं क्रिकेट खेल रहा था.
तभी किसी ने मुझे पीछे से आवाज दी- अर्णव.
मैंने पीछे मुड़ कर देखा, ये साकेत भैया थे. उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया, तो मैं उनके पास गया.
साकेत भैया- अरे अर्णव कहां थे … बहुत दिन से दिखाई नहीं दिए.
मैं- हां, अभी कॉलेज बंद है ना … तो मैं घर पर रहता हूं. शाम में अपने दोस्तों के साथ यहां क्रिकेट खेलने आता हूं.
साकेत भैया- तुम ट्यूशन नहीं जाते हो?
मैं- नहीं … मेरी दीदी ही मुझे घर पर ट्यूशन पढ़ाती है.
साकेत भैया- ओके, कैसी है दीदी तुम्हारी. तुम्हें पीटती है या नहीं.
मैं- नहीं … वो मुझे नहीं पीटती है. वो मुझसे बहुत प्यार करती है.
साकेत भैया- ऐसे भी तुम्हारी दीदी बहुत अच्छी है.
मैं- हां … वो तो है.
फिर उन्होंने अपने पॉकेट से दो चॉकलेट निकाल कर दीं और बोले- तुम्हें चॉकलेट पसंद है न.
मैं- हां.
साकेत भैया- ये लो चॉकलेट एक तुम्हारे लिए और एक तुम्हारी दीदी के लिए.
मैंने उनसे दोनों चॉकलेट ले लीं और बोला- ठीक है भैया … अब मैं खेलने जा रहा हूं.
वो बोले- ठीक है जाओ … लेकिन चॉकलेट खा लेना और एक अपनी दीदी को दे देना.
मैंने बोला- ठीक है.
फिर वो चले गए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.