21-12-2023, 03:13 PM
सरोज ये सुन कर घबराई भी और उत्तेजित भी हुई। जब से उसने बाबूजी से चूत और गांड दोनों में लंड लेने के बारे में सुना था तब से ही उसके मन में ये अनुभव लेने का ख्याल बार बार आता रहा है। पर इतना बड़ा लंड गांड में लेने का ख्याल भयावह था। वो दर्द की परिकल्पना करके घबरा जाती। अभी सरोज इसी उधेडबुन में थी की वो गांड में ले या नही।
जब ससुर जी तेल की बोतल ले कर वापस आये तो सरोज को एहसास हुआ की वो निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र बिलकुल नहीं है। वो तो महज ससुर जी के हाथ की कठपुतली बन चुकी है, बाबूजी जी जैसे नचाएंगे वो नाचेगी। वो न तो कुछ कह सकती थी और न ही बाबूजी जी की इच्छा के बिना कुछ कर सकती थी। ससुर जी ने बहु की कमर को पकड़ कर घुमाया। बहु बिना किसी विरोध के पेट के बल लेट गयी। ससुर जी ने उसके पुष्ट चुत्तड़ को मसलना शूरु कर दिया। बहू ने अपने जांघों को फैला दिया। बाबूजी बहू की गांड को मसलने के साथ उसकी चूत को भी दबा रहे थे। उसकी चूत फिर से बहने लगी थी। फिर बाबूजी ने उसके चुत्तड़ को फैला कर उसके गांड के छेद को फ़ैलाया और उस पर तेल डाल दिया।
फिर अपनी ऊँगली से तेल को बहु के गांड के आस पास लगाये फिर ऊँगली को हलके से गांड में घुसाया। बहु तन गयी। बाबूजी ने उसकी गांड पर हाथ फेरा "रिलेक्स बेटी, जितना बॉडी को टेंशन में लाओगी उतना ही दर्द होगा"
बाबूजी ने बहु के कमर को पकड़ कर उसकी गांड को ऊपर उठा दिया। बहु अब कुतिया की तरह घुटनो के बल लेती हुई थी। बाबू जी एक हाथ से बहु के बदन को सहला रहे थे और धीरे धीर दुसरे हाथ की एक ऊँगली बहु के गांड में अन्दर घुसा रहे थे। जैसे ही बाबूजी ऊँगली अन्दर धकेलते, वैसे ही बहु तन जाती। "रिलेक्स बेटी।।। बदन को एकदम ढीला छोड़ दो।। बिलकुल भी दर्द नहीं होगा" बाबूजी बहु को गांड मरवाने की ट्रेनिंग दे रहे थे।
बाबूजी जी बहु की पीठ, गांड और चूचि को एक हाथ से सहलाते, जैसे ही उसका बदन ढीला पड़ता अपनी ऊँगली को अंदर ढकेल देते। बहु टाइट हो जाती तो बाबूजी रुक जाते। उनके पास गांड मारने का लम्बा अनुभव था। और फिर कई दिनों बाद उनके हाथ अनछुआ, अनचुदा गांड आया है। वो बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे, कहीं दर्द से घबरा कर बहु मना न कर दे।
धीरे धीरे कर उन्होंने अपनी पूरी ऊँगली बहु के गांड में घुसा दिया। फिर वो अपनी ऊँगली को बहु की गांड के अंदर घुमाने लागे। फिर वो ऊँगली से बहु की गांड को चोदने लागे। बहु धीरे धीरे गांड में ऊँगली लेना सीख रही थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने बहु की गांड में अपना दो ऊँगली पेल दिया और दो ऊँगली से उसकी गांड मारने लागे। बाबूजी बहु की गांड के अंदर कभी ऊँगली पेलते, कभी घुमाते और कभी बहार निकल कर ऊँगली में तेल लगा कर बहु के गांड के अंदर तेल लगाते। उनका दूसरा हाथ बहु की चुची, चूत और गांड को सहलाने में व्यस्त था। दर्द से उबरने के बाद अब बहु को गांड में ऊँगली का मजा मिलने लगा था। बाबू जी जब एक साथ बहु की चूत में और गांड में ऊँगली घुसा कर एक दुसरे की तरफ दबाते तो बहु को वो आनंद मिलता जो उसे अब तक की चुदाई में कभी नहीं मिला था। उस अनुभव से चूत और गांड में साथ साथ लंड लेने का बहु का निश्चय दृढ होता जा रहा था।
जब बाबू जी आश्वस्त हो गए की बहु अब गांड में लंड लेने के लिए तैयार है तो उन्होंने बहु की गांड में से अपना ऊँगली निकाल लिया और अपने लंड पर तेल लगाने लगे। फिर उन्होंने अपने दोनों हाथों से बहु की गांड और चूत को मसलना शुरु कर दिया। उसकी गांड पर तेल लगे अपने लंड को मसलने लगे। तेल लगी कोमल गांड पर बाबूजी का तेल लगा हुआ सख्त लंड के फिसलने का एहसास बाबू जी को अलग मजा दे रहा था। एक हाथ से बहु के चुत्तड़ को फैला कर बाबू जी ने दुसरे हाथ से अपने लंड को पकड़ा और बहु की गांड के छेद पर अपने लंड का सुपाडा रगडने लगे। "देख बेटी! अपने गांड को बिलकुल ढीला छोड़ दो।। शूरु में थोड़ा सा दर्द होग, पर बाद में बहुत मजा आएगा।"
बहू ने अपनी आँखें बंद कर ली, नीचली होठो को दांतो तले दबा लिया और तकिया को मुट्ठी में कस कर जकड लिया। बाबू जी ने गांड के छेद पर अपने लंड के सुपाडा को रगडते हुए बहू के गांड को सहला रहे थे। जैसे ही बहू का बदन ढीला पडा बाबू जी ने झटके के साथ लंड को अंदर पेल दिया। लंड का सुपाडा गांड के अंदर घुस गया। बहू चिल्ला उठी "आह" बाबू जी ने झुक कर एक हाथ से बहू की चूचियों को सहलाने लगे और दुसरे हाथ से चुत को। थोड़ी देर में बहू जब शान्त हुई तो बाबू जी ने फिर धक्का मार कर थोड़ा और लंड अंदर घुसा दिया। बहू फिर चिल्ला उठी।
बाबू जी ने धीरे धीरे, रुक रुक कर अपना पूरा लंड बहु की गांड में पेल दिया। बहू दर्द से बेचैन थी, उसका बदन पसीना पसीना हो चूका था, दाँत के दबाव से होंठ लाल हो चुके थे और उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। कुछ देर तक शांत रहने के बाद बाबू जी ने बहू की गांड को धीरे धीरे चोदना शुरु किया। बहू की कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर बाबूजी अपने लंड को उसकी गांड में धीरे धीरे अंदर बाहर कर रहे थे। बाबू जी ने इतनी टाइट गांड में लंड कभी नहीं पेला था। बाबू जी जब लंड को अंदर घुसाते तब बहू की टाइट गांड उनके लंड के ऊपर की त्वचा को जकड लेती और उनके लंड का सुपाड़ा पूरी तरह से नंगा हो कर तन जाता। फिर बहु की गांड के भीतर के कोमल और चिपचिपी त्वचा से नंगे सुपाडे की रगड बाबू जी को बहुत आनंद दे रहा था।
बहू का दर्द भी अब शांत हो गया था। गाँड में मोटा सा लंड जब अंदर घुसता तो बहु को अपनी चूत पर दबाव महसुश होता, ये एहसास बहुत ही मादक था। बहू को अब मजा आने लगा था। वो बाबूजी के लंड के साथ लय मिला कर अपने गांड को हिलाने लगी। जैसे बाबू जी लंड अंदर घुसाते, बहू अपना गांड पीछे कर देती। बहू को मजा लेता देख बाबूजी ने भी चुदाई की गति काफी तेज़ कर दी। चूतड़ के पास दोनों हाथों से बहू की कमर को पकड़ कर बाबू जी पूरे अंदर तक अपना लंड पेल रहे थे।
जैसे जैसे बहू गांड मरवाने में सहज हो रही थी वैसे वैसे बाबूजी की चुदाई की गति बढ़ती जा रही थी। अब बाबू जी मस्ती में आधा लंड अंदर बाहर कर बहू की गांड में लंड पेल रहे थे। अब बहू भी मस्ती में आ चुकी थी। बाबु जी ने झुक कर अपने दोनों हाथों से बहू की दोनों चूचि को पकड़ा और उसकी चूचियों को भींचते हुए उन्होंने बहू को घुटने के बल खड़ा कर दिया। बहू घुटने के बल खडी, उसके पीछे उसकी गांड में अपना लंड घुसाए बाबू जी घुटने के बल खडे उसकी चूचियों को मसलते हुए उसकी गर्दन चूम रहे थे। बहू ने अपने दोनों हाथों को उठा कर बाबू जी के सर को पकड़ लिया और मुँह पीछे घुमा कर बाबूजी को चूमने लगी। बाबू जी बहू की गांड में लंड तो पेल ही रहे थे अब वो उसकी मुंह में अपना जीभ पेलने लगे। एक हाथ से चूचियों को मिसते हुए उन्होंने अपना दूसरा हाथ नीचे बढाया। पेट पर रेंगता हुआ उनका हाथ नीचे जांघों के बीच में सांप के बिल तक पहुँच गया। थोड़ी देर तक गीली चूत की मालिश करने के बाद उनकी ऊँगली अंदर बिल में घुस गयी। बहू तीनो मोर्चे पर एक साथ प्रहार से विचलित थी; उसकी गांड में बाबू जी का लंड ड्रिल कर रहा था तो चूत में उनकी ऊँगली और मुंह में उनका जीभ। तीनो मोरचे पर बस एक ही मोरचा, उसकी गांड़, पर पूरे ज़ोर शोर से लडाई चल रही थी बांकी मोर्चों पर तो बस छिट पुट हमले ही हो रहे थे। अगर इस लडाई में ऐसा मजा है तो तीनो मोरचे पर एक साथ घमाशान युद्व हो तो कितना मजा आएगा। बहू के आँखों के सामने फिर से तीनो मोर्चे पर लंड लेती पोर्न स्टार की तस्वीर आ गयी। अब तीन लंड एक साथ लेने की बहू की अभिलाषा बन चुकी थी।
जब बाबूजी जी ने बहू की चूत में दो ऊँगली घुसायी तो बहू ये भूल चुकी थी की वो कहाँ है।। वो आनंद में इस तरह मतवाली हो चुकी थी की वो बाबूजी के ऊँगली को लंड मान रही थी। उसने बाबू जी के हाथ की ऊँगली को मुंह में रखा और उसे लंड की तरह चूसने लगी। वो एक साथ गांड में लंड का दबाव और चूत में दो ऊँगली के दबाव से मतवाली हो कर मचलने लगी। वो बिस्तर पर झुक गयी और अपने ही ऊँगली को चूसने लगी। बाबू जी ने बहू को मस्ती में देख कर चुदाई तेज़ कर दी। वो पूरे ज़ोर से बहू की गांड में लंड और चूत में ऊँगली पेल रहे थे।
बहु आनन्द के उत्कर्ष पर थी, कुछ ही देर में वो झड गयी। उसकी चूत को बहता देख कर बाबू जी और भी उत्तेजित हो गये।। उन्होंने अपना पूरा लंड बहु के गांड में पेल दिया, फिर बाहर निकाल कर एक झटके के साथ अंदर घुसा दिया। अब वो पूरे लंड को अंदर बाहर कर चोदने लगे। थोड़ी देर में बाबू जी भी चरम पर पहुँच गये। उन्होंने अपना लंड बहू की गांड में बिलकुल भीतर तक पेल कर बाहर निकाला और अपने हाथ से हिला कर अपने प्रेम रस को बहू के मुँह के अंदर गिरा दिया जिसे बहू किसी कुतिया की तरह चाटकर साफ करने लगी।
जब ससुर जी तेल की बोतल ले कर वापस आये तो सरोज को एहसास हुआ की वो निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र बिलकुल नहीं है। वो तो महज ससुर जी के हाथ की कठपुतली बन चुकी है, बाबूजी जी जैसे नचाएंगे वो नाचेगी। वो न तो कुछ कह सकती थी और न ही बाबूजी जी की इच्छा के बिना कुछ कर सकती थी। ससुर जी ने बहु की कमर को पकड़ कर घुमाया। बहु बिना किसी विरोध के पेट के बल लेट गयी। ससुर जी ने उसके पुष्ट चुत्तड़ को मसलना शूरु कर दिया। बहू ने अपने जांघों को फैला दिया। बाबूजी बहू की गांड को मसलने के साथ उसकी चूत को भी दबा रहे थे। उसकी चूत फिर से बहने लगी थी। फिर बाबूजी ने उसके चुत्तड़ को फैला कर उसके गांड के छेद को फ़ैलाया और उस पर तेल डाल दिया।
फिर अपनी ऊँगली से तेल को बहु के गांड के आस पास लगाये फिर ऊँगली को हलके से गांड में घुसाया। बहु तन गयी। बाबूजी ने उसकी गांड पर हाथ फेरा "रिलेक्स बेटी, जितना बॉडी को टेंशन में लाओगी उतना ही दर्द होगा"
बाबूजी ने बहु के कमर को पकड़ कर उसकी गांड को ऊपर उठा दिया। बहु अब कुतिया की तरह घुटनो के बल लेती हुई थी। बाबू जी एक हाथ से बहु के बदन को सहला रहे थे और धीरे धीर दुसरे हाथ की एक ऊँगली बहु के गांड में अन्दर घुसा रहे थे। जैसे ही बाबूजी ऊँगली अन्दर धकेलते, वैसे ही बहु तन जाती। "रिलेक्स बेटी।।। बदन को एकदम ढीला छोड़ दो।। बिलकुल भी दर्द नहीं होगा" बाबूजी बहु को गांड मरवाने की ट्रेनिंग दे रहे थे।
बाबूजी जी बहु की पीठ, गांड और चूचि को एक हाथ से सहलाते, जैसे ही उसका बदन ढीला पड़ता अपनी ऊँगली को अंदर ढकेल देते। बहु टाइट हो जाती तो बाबूजी रुक जाते। उनके पास गांड मारने का लम्बा अनुभव था। और फिर कई दिनों बाद उनके हाथ अनछुआ, अनचुदा गांड आया है। वो बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे, कहीं दर्द से घबरा कर बहु मना न कर दे।
धीरे धीरे कर उन्होंने अपनी पूरी ऊँगली बहु के गांड में घुसा दिया। फिर वो अपनी ऊँगली को बहु की गांड के अंदर घुमाने लागे। फिर वो ऊँगली से बहु की गांड को चोदने लागे। बहु धीरे धीरे गांड में ऊँगली लेना सीख रही थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने बहु की गांड में अपना दो ऊँगली पेल दिया और दो ऊँगली से उसकी गांड मारने लागे। बाबूजी बहु की गांड के अंदर कभी ऊँगली पेलते, कभी घुमाते और कभी बहार निकल कर ऊँगली में तेल लगा कर बहु के गांड के अंदर तेल लगाते। उनका दूसरा हाथ बहु की चुची, चूत और गांड को सहलाने में व्यस्त था। दर्द से उबरने के बाद अब बहु को गांड में ऊँगली का मजा मिलने लगा था। बाबू जी जब एक साथ बहु की चूत में और गांड में ऊँगली घुसा कर एक दुसरे की तरफ दबाते तो बहु को वो आनंद मिलता जो उसे अब तक की चुदाई में कभी नहीं मिला था। उस अनुभव से चूत और गांड में साथ साथ लंड लेने का बहु का निश्चय दृढ होता जा रहा था।
जब बाबू जी आश्वस्त हो गए की बहु अब गांड में लंड लेने के लिए तैयार है तो उन्होंने बहु की गांड में से अपना ऊँगली निकाल लिया और अपने लंड पर तेल लगाने लगे। फिर उन्होंने अपने दोनों हाथों से बहु की गांड और चूत को मसलना शुरु कर दिया। उसकी गांड पर तेल लगे अपने लंड को मसलने लगे। तेल लगी कोमल गांड पर बाबूजी का तेल लगा हुआ सख्त लंड के फिसलने का एहसास बाबू जी को अलग मजा दे रहा था। एक हाथ से बहु के चुत्तड़ को फैला कर बाबू जी ने दुसरे हाथ से अपने लंड को पकड़ा और बहु की गांड के छेद पर अपने लंड का सुपाडा रगडने लगे। "देख बेटी! अपने गांड को बिलकुल ढीला छोड़ दो।। शूरु में थोड़ा सा दर्द होग, पर बाद में बहुत मजा आएगा।"
बहू ने अपनी आँखें बंद कर ली, नीचली होठो को दांतो तले दबा लिया और तकिया को मुट्ठी में कस कर जकड लिया। बाबू जी ने गांड के छेद पर अपने लंड के सुपाडा को रगडते हुए बहू के गांड को सहला रहे थे। जैसे ही बहू का बदन ढीला पडा बाबू जी ने झटके के साथ लंड को अंदर पेल दिया। लंड का सुपाडा गांड के अंदर घुस गया। बहू चिल्ला उठी "आह" बाबू जी ने झुक कर एक हाथ से बहू की चूचियों को सहलाने लगे और दुसरे हाथ से चुत को। थोड़ी देर में बहू जब शान्त हुई तो बाबू जी ने फिर धक्का मार कर थोड़ा और लंड अंदर घुसा दिया। बहू फिर चिल्ला उठी।
बाबू जी ने धीरे धीरे, रुक रुक कर अपना पूरा लंड बहु की गांड में पेल दिया। बहू दर्द से बेचैन थी, उसका बदन पसीना पसीना हो चूका था, दाँत के दबाव से होंठ लाल हो चुके थे और उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। कुछ देर तक शांत रहने के बाद बाबू जी ने बहू की गांड को धीरे धीरे चोदना शुरु किया। बहू की कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर बाबूजी अपने लंड को उसकी गांड में धीरे धीरे अंदर बाहर कर रहे थे। बाबू जी ने इतनी टाइट गांड में लंड कभी नहीं पेला था। बाबू जी जब लंड को अंदर घुसाते तब बहू की टाइट गांड उनके लंड के ऊपर की त्वचा को जकड लेती और उनके लंड का सुपाड़ा पूरी तरह से नंगा हो कर तन जाता। फिर बहु की गांड के भीतर के कोमल और चिपचिपी त्वचा से नंगे सुपाडे की रगड बाबू जी को बहुत आनंद दे रहा था।
बहू का दर्द भी अब शांत हो गया था। गाँड में मोटा सा लंड जब अंदर घुसता तो बहु को अपनी चूत पर दबाव महसुश होता, ये एहसास बहुत ही मादक था। बहू को अब मजा आने लगा था। वो बाबूजी के लंड के साथ लय मिला कर अपने गांड को हिलाने लगी। जैसे बाबू जी लंड अंदर घुसाते, बहू अपना गांड पीछे कर देती। बहू को मजा लेता देख बाबूजी ने भी चुदाई की गति काफी तेज़ कर दी। चूतड़ के पास दोनों हाथों से बहू की कमर को पकड़ कर बाबू जी पूरे अंदर तक अपना लंड पेल रहे थे।
जैसे जैसे बहू गांड मरवाने में सहज हो रही थी वैसे वैसे बाबूजी की चुदाई की गति बढ़ती जा रही थी। अब बाबू जी मस्ती में आधा लंड अंदर बाहर कर बहू की गांड में लंड पेल रहे थे। अब बहू भी मस्ती में आ चुकी थी। बाबु जी ने झुक कर अपने दोनों हाथों से बहू की दोनों चूचि को पकड़ा और उसकी चूचियों को भींचते हुए उन्होंने बहू को घुटने के बल खड़ा कर दिया। बहू घुटने के बल खडी, उसके पीछे उसकी गांड में अपना लंड घुसाए बाबू जी घुटने के बल खडे उसकी चूचियों को मसलते हुए उसकी गर्दन चूम रहे थे। बहू ने अपने दोनों हाथों को उठा कर बाबू जी के सर को पकड़ लिया और मुँह पीछे घुमा कर बाबूजी को चूमने लगी। बाबू जी बहू की गांड में लंड तो पेल ही रहे थे अब वो उसकी मुंह में अपना जीभ पेलने लगे। एक हाथ से चूचियों को मिसते हुए उन्होंने अपना दूसरा हाथ नीचे बढाया। पेट पर रेंगता हुआ उनका हाथ नीचे जांघों के बीच में सांप के बिल तक पहुँच गया। थोड़ी देर तक गीली चूत की मालिश करने के बाद उनकी ऊँगली अंदर बिल में घुस गयी। बहू तीनो मोर्चे पर एक साथ प्रहार से विचलित थी; उसकी गांड में बाबू जी का लंड ड्रिल कर रहा था तो चूत में उनकी ऊँगली और मुंह में उनका जीभ। तीनो मोरचे पर बस एक ही मोरचा, उसकी गांड़, पर पूरे ज़ोर शोर से लडाई चल रही थी बांकी मोर्चों पर तो बस छिट पुट हमले ही हो रहे थे। अगर इस लडाई में ऐसा मजा है तो तीनो मोरचे पर एक साथ घमाशान युद्व हो तो कितना मजा आएगा। बहू के आँखों के सामने फिर से तीनो मोर्चे पर लंड लेती पोर्न स्टार की तस्वीर आ गयी। अब तीन लंड एक साथ लेने की बहू की अभिलाषा बन चुकी थी।
जब बाबूजी जी ने बहू की चूत में दो ऊँगली घुसायी तो बहू ये भूल चुकी थी की वो कहाँ है।। वो आनंद में इस तरह मतवाली हो चुकी थी की वो बाबूजी के ऊँगली को लंड मान रही थी। उसने बाबू जी के हाथ की ऊँगली को मुंह में रखा और उसे लंड की तरह चूसने लगी। वो एक साथ गांड में लंड का दबाव और चूत में दो ऊँगली के दबाव से मतवाली हो कर मचलने लगी। वो बिस्तर पर झुक गयी और अपने ही ऊँगली को चूसने लगी। बाबू जी ने बहू को मस्ती में देख कर चुदाई तेज़ कर दी। वो पूरे ज़ोर से बहू की गांड में लंड और चूत में ऊँगली पेल रहे थे।
बहु आनन्द के उत्कर्ष पर थी, कुछ ही देर में वो झड गयी। उसकी चूत को बहता देख कर बाबू जी और भी उत्तेजित हो गये।। उन्होंने अपना पूरा लंड बहु के गांड में पेल दिया, फिर बाहर निकाल कर एक झटके के साथ अंदर घुसा दिया। अब वो पूरे लंड को अंदर बाहर कर चोदने लगे। थोड़ी देर में बाबू जी भी चरम पर पहुँच गये। उन्होंने अपना लंड बहू की गांड में बिलकुल भीतर तक पेल कर बाहर निकाला और अपने हाथ से हिला कर अपने प्रेम रस को बहू के मुँह के अंदर गिरा दिया जिसे बहू किसी कुतिया की तरह चाटकर साफ करने लगी।