19-12-2023, 11:50 AM
(This post was last modified: 27-12-2023, 11:43 AM by neerathemall. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
मेरी बहन ने ये बात सच तो कही लेकिन चेहरे पर हल्की सी मुस्कान के साथ....यानि उसकी बातों में कोई गंभीरता नहीं थी.
"मैं ने कहा बहन....एक बार सेक्स करने में क्या बुराई है? अगर तुम्हें मजा नहीं आया, पसंद नहीं आया तो चलो दोबारा ऐसा मत करो..."
"बेवकूफ! अगर हमने ऐसा किया तो क्या मुझे अच्छा नहीं लगेगा... मुझे भी अच्छा लगेगा...।"
"देखो!...तुम तो इस बात पर भी सहमत हो गईं...कि तुम हमारी चुदाई का आनंद लोगी...तो तुम चाहती हो कि मैं तुम्हें चोदूँ..."
"नहीं, मैंने कहां कहा कि तुम से चुदना चाहती हूँ? हमारी अगर-मगर वाली बातें चल रही हैं...।"
एक बात जिसने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया वह यह थी कि जैसे-जैसे हमारी बातचीत आगे बढ़ी, मेरी बहन अधिक खुले विचारों वाली और सरल स्वभाव की हो गई। यह इस बात से साबित होता है कि उन्होंने खुद 'चुदाई' शब्द का इस्तेमाल किया था. और विडम्बना यह थी कि वह हम भाई-बहनों के बीच की इस गर्मागर्म बातचीत पर कोई आपत्ति नहीं कर रही थी, बल्कि वह इसे जारी रखे हुए थी। मुझे संदेह था कि वह हमारे बीच की इस गरमागरम बातचीत का उतना ही 'आनंद' ले रही थी जितना मैं। हालाँकि वह मुझे अंदर जाने देने के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन बातचीत मात्र से ही उसे उतना उत्साह मिल रहा था जितना उसे मिल सकता था...
"लेकिन आपने कहा था कि आप ख़ुद चुदवाना चाहती थी..."
"क्या मैंने कब ऐसा कहा? और कौन सी महिला है जिसे चुदवाना पसंद नहीं होगा ? या पसंद नहीं करेगी?"
"नहीं..., फिर तुम मना क्यों कर रही हो?.... तुमने कहा था कि तुम्हारे मन में मेरे साथ संबंध बनाने का विचार था..."
"हाँ! लेकिन वह कई साल पहले की बात है..."
"तो क्या हुआ?... कई साल पहले आपके मन में ऐसा ख्याल आया था लेकिन मौका नहीं मिला.. लेकिन अब मौका मिल रहा है.... तो हमें क्यों नहीं?.... आप ख़ुद चाहतीहैं वह मज़ा आप और मैं भी..."
"मैं नहीं चाहती कि तुम..." मेरी बहन ने उत्तेजित स्वर में कहा।
"ठीक है …! मैं चाहता हूं...तो मुझे खुद को चूमने दो...।"
"देखो! तुम शब्दों का खेल खेल रहे हो.... तुम मेरे मुँह में वो शब्द डाल रहे हो जो मैंने नहीं कहे..."
"मैं तुम्हें क्या बताऊँ.... मैं तुम्हारे मुँह में और कुछ नहीं डालना चाहता.... अगर तुम पहले तैयार हो तो!..."
यह कह कर मैं अपनी कुर्सी से उठा और उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा हो गया।
"मैं ने कहा बहन....एक बार सेक्स करने में क्या बुराई है? अगर तुम्हें मजा नहीं आया, पसंद नहीं आया तो चलो दोबारा ऐसा मत करो..."
"बेवकूफ! अगर हमने ऐसा किया तो क्या मुझे अच्छा नहीं लगेगा... मुझे भी अच्छा लगेगा...।"
"देखो!...तुम तो इस बात पर भी सहमत हो गईं...कि तुम हमारी चुदाई का आनंद लोगी...तो तुम चाहती हो कि मैं तुम्हें चोदूँ..."
"नहीं, मैंने कहां कहा कि तुम से चुदना चाहती हूँ? हमारी अगर-मगर वाली बातें चल रही हैं...।"
एक बात जिसने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया वह यह थी कि जैसे-जैसे हमारी बातचीत आगे बढ़ी, मेरी बहन अधिक खुले विचारों वाली और सरल स्वभाव की हो गई। यह इस बात से साबित होता है कि उन्होंने खुद 'चुदाई' शब्द का इस्तेमाल किया था. और विडम्बना यह थी कि वह हम भाई-बहनों के बीच की इस गर्मागर्म बातचीत पर कोई आपत्ति नहीं कर रही थी, बल्कि वह इसे जारी रखे हुए थी। मुझे संदेह था कि वह हमारे बीच की इस गरमागरम बातचीत का उतना ही 'आनंद' ले रही थी जितना मैं। हालाँकि वह मुझे अंदर जाने देने के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन बातचीत मात्र से ही उसे उतना उत्साह मिल रहा था जितना उसे मिल सकता था...
"लेकिन आपने कहा था कि आप ख़ुद चुदवाना चाहती थी..."
"क्या मैंने कब ऐसा कहा? और कौन सी महिला है जिसे चुदवाना पसंद नहीं होगा ? या पसंद नहीं करेगी?"
"नहीं..., फिर तुम मना क्यों कर रही हो?.... तुमने कहा था कि तुम्हारे मन में मेरे साथ संबंध बनाने का विचार था..."
"हाँ! लेकिन वह कई साल पहले की बात है..."
"तो क्या हुआ?... कई साल पहले आपके मन में ऐसा ख्याल आया था लेकिन मौका नहीं मिला.. लेकिन अब मौका मिल रहा है.... तो हमें क्यों नहीं?.... आप ख़ुद चाहतीहैं वह मज़ा आप और मैं भी..."
"मैं नहीं चाहती कि तुम..." मेरी बहन ने उत्तेजित स्वर में कहा।
"ठीक है …! मैं चाहता हूं...तो मुझे खुद को चूमने दो...।"
"देखो! तुम शब्दों का खेल खेल रहे हो.... तुम मेरे मुँह में वो शब्द डाल रहे हो जो मैंने नहीं कहे..."
"मैं तुम्हें क्या बताऊँ.... मैं तुम्हारे मुँह में और कुछ नहीं डालना चाहता.... अगर तुम पहले तैयार हो तो!..."
यह कह कर मैं अपनी कुर्सी से उठा और उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा हो गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.