14-06-2019, 05:39 PM
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मैंने बाथरूम के दरवाजे की ओर देखा तो सब वापस दिमाग में घूम गया। पैंट के ऊपर से ही मैंने अपने लंड को दबाना शुरू किया, तो मुझे हल्का हल्का दर्द महसूस हुआ। अपने उस छोटे नुन्नु को इतना कड़क मैंने कभी महसूस नही किया था। ज़रा सा भी दाये या बायें हिलने पर उसमे अजीब सा दर्द होता जो बिलकुल नशीला था। जी करता कि ये बार बार होता रहे। तो मैंने और ज़ोर से उसे दबाने शुरू कर दिया। मैं ये सब बाथरूम के दरवाजे की तरफ देख कर ही कर रहा था कि दरवाजा खुला और मम्मी बाहर निकली। राजीव भी तुरंत पीछे घूमा और घूरता ही राह गया।
मम्मी ने अपना पेटीकोट अपनी चुचियों के ऊपर से ही पहना था जिसकी वजह से उनका पेटीकोट उनकी जांघो तक था। हालांकि वो रोज़ ही ऐसे ही बाथरूम से बाहर निकलती थी पर आज उन्हें देख कर मन कुलांचे भरने लगा। वो अपने कमरे की ओर मुड़कर जाने लगी तो उनकी गांड और जांघों की उस कल्पना मात्र से ही मेरी आँखें बंद हो गयी। मम्मी रूम में जा चुकी थी और यहाँ मेरा आनंद चरम पर था। एक ज़ोर का मीठा दर्द हुआ और झटके के साथ ही सब खत्म हो गया। मुझे नार्मल होने में अब भी 2-3 मिनट का समय लगा।
राजीव:-" क्यों मजा आया? इसे कहते हैं झड़ना।"
मैं:-" ..हाँ भाई"।
राजीव:- कुछ निकलता महसूस हुआ?
मैं:- "क्या.. किधर"?
राजीव:-" चल टाइम के साथ वो भी सीख जाएगा। अभी दूध खत्म कर ठंडा हो रहा।" बोलकर राजीव अपने दूध का गिलास गटकने लगा। मेरे मन में भी अजीब सी शांति हो चुकी थी। मैंने भी अपना दूध का गिलास गटकना शुरू किया। मम्मी कपड़ा चेंज करके अपने सलवार कुर्ते में बाहर आई। पर पता नही अबकी बार उन्हें देख कर उतना उतावलापन नही हुआ जितना उनको पेटीकोट में बाथरूम के बाहर देख के हुआ था। वो छोड़ो, आज से पहले मुझे कभी ऐसा फील ही नही हुआ था। मम्मी किचन में जाकर कुछ गरमागरम खाने को बनाने लगीं। भूख तो ज़ोरो की लगी ही थी। बाहर अब भी बारिश हो रही थी। मैं और राजीव भी अपनी बातों में व्यस्त हो गए।