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पुरानी हिन्दी की मशहूर कहनियाँ
जैसे ही मैंने अपना होंठ दीदी के होंठ पर रखे। दीदी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गई। मैं दीदी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि दीदी भी गर्मा गई है।
दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी। अब मैं अपने हाथ से दीदी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से दीदी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ माँ के आने का डर नहीं था।
मैं थोड़ी देर तक दीदी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद मैंने अपना दूसरा हाथ दीदी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची मींज़ने लगा।
मुझे हाथ घुसा कर दीदी की चूची दबाने में थोड़ा अटपटा सा लग रहा था और इसलिए मैंने अपने हाथों को दीदी के टॉप में से निकाल कर अपने दोनों हाथों को उनकी कमर के पास रखा और धीरे-धीरे दीदी के टॉप को उठाने लगा और फिर अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा।
दीदी मुझे रोक नहीं रही थी और मुझे कुछ भी करने का अच्छा मौक़ा था। मैं अपने दोनों हाथों से दीदी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था। दीदी बस अपने गले से घुटी-घुटी मस्त सिसकारियाँ निकाल रही थी।
मैं अपने दोनों हाथों को दीदी के पीछे ले गया और उनकी ब्रा के हुक खोलने लगा। जैसे ही मैंने दीदी की ब्रा का हुक खोला तो ब्रा गिर कर उनके मम्मों पर लटक गई। दीदी कुछ नहीं बोली।
मैं फिर से अपने हाथों को सामने लाया और दीदी की चूचियों पर से ब्रा हटा कर उनकी चूचियों को नंगा कर दिया। मैंने पहली बार दीदी की नंगी चूची पर अपना हाथ रखा। जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूचियों को अपने हाथों से पकड़ा।
दीदी कुछ कांप सी गई और मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। मैं अब तक बहुत गर्मा गया था और मेरा लौड़ा खड़ा हो चुका था। मुझे बहुत ही उत्तेजना चढ़ गई थी।
मैं सोच रहा था झट से अपने पैंट में से अपना लौड़ा निकालूँ और दीदी के सामने ही मुट्ठ मार लूँ। लेकिन मैं अभी मुट्ठ नहीं मार सकता था। मैं अब ज़ोर-ज़ोर से दीदी की नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल रहा था।
मैं दीदी की चूची को दबा रहा था, रगड़-रगड़ कर मसल रहा था और कभी-कभी उनके निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर मसल रहा था। दीदी के निप्पल इस वक़्त अकड़ कर कड़े हो गए थे। जब-जब मैं निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर उमेठता था, तो दीदी छटपटा उठती।
मैंने बहुत देर तक चूचियों को पकड़ कर मसलने के बाद, अपना मुँह नीचे करके दीदी के एक निप्पल को अपने मुँह में ले लिया। दीदी ने अभी भी अपनी आँखें बंद कर रखी थी।
जब दीदी की चूची पर मेरा मुँह लगा तो दीदी ने अपनी आँखें खोल दी और देखा कि मैं उनके एक निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूस रहा हूँ, वो भी गर्मा गई। दीदी की साँसे ज़ोर-ज़ोर से चलने लगीं और उनका बदन उत्तेजना से काँपने लगा। दीदी ने मेरे हाथों को कस कर पकड़ लिया।
इस वक़्त मैं उनकी दोनों दुद्दुओं को बारी-बारी से चूस रहा था। अब दीदी के गले से अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगीं। उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से चिपटा लिया और थोड़ी देर के बाद शांत हो गई।
मेरा चेहरा नीचे की तरफ़ था और दीदी की चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से चूस रहा था। मुझे पर दीदी के पानी की खुशबू आई। ओह माय गॉड! मैंने अपनी दीदी की चूत की पानी सिर्फ़ उनकी चूची चूस-चूस कर निकाल दिया था?
मैं अपना हाथ दीदी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ दीदी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ दीदी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।
दीदी मेरा हाथ पकड़ कर बोली- अब और नीचे मत ले।
मैंने दीदी से पूछा- क्यों?
दीदी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोली- नीचे अपना हाथ मत ले जाओ, अभी उधर बहुत गंदा है।
मैंने झट से दीदी को चूम कर बोला- गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गईं।
दीदी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।
मैंने फिर दीदी से पूछा- दीदी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?
“हाँ रवि, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतना उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।” दीदी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।
मैंने भी मुस्कुरा कर दीदी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?
दीदी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोली- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झड़ना और भी अच्छा लगा।
दीदी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।
दीदी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गई और मुझसे बोली- रवि, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।
मैंने दीदी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और दीदी के पीछे-पीछे चलने लगा।
थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोली- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।
मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?
दीदी मेरी आँखों में देखती हुई बोली- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पैन्टी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।
मैंने मुस्कुराते हुए बोला- दीदी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?
दीदी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- रवि, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।
हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था की दीदी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।
मैंने फ़ौरन दीदी से बोला- एक काम करते हैं। वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, तुम वहाँ जाओ और अपने पैन्टी को बदल लो। अरे तुमने अभी-अभी जो पैन्टी खरीदी है, वहाँ जा कर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पैन्टी को निकाल दो।
दीदी मुझे देखते हुए बोली- तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है। मैं जाती हूँ और अपने पैन्टी बदल कर आती हूँ।
हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और दीदी ने मुझसे अपनी ब्रा और पैन्टी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं।
जैसे ही दीदी टॉयलेट जाने लगी, मैंने दीदी से धीरे से बोला- तुम अपनी पैन्टी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं !!
दीदी मेरी बातों को सुन कर हँस पड़ी और मुझसे बोली- बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।
दीदी शर्मा कर टॉयलेट चली गई।
क़रीब 15 मिनट के बाद दीदी टॉयलेट से लौट कर आईं। हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गई और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थी।
बस क़रीब-क़रीब ख़ाली थी। हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए।
सीट पर बैठने के बाद मैंने दीदी से पूछा- तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली न?
दीदी मेरी तरफ़ देख कर हँस पड़ी।
मैंने फिर दीदी से पूछा- बताओ ना दीदी। क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?
तब दीदी ने धीरे से बोला- हाँ रवि, मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है।
मैं फिर दीदी से बोला- मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?
दीदी ने मेरी तरफ देखा और कहा- हाँ बोल।
“मैं तुम्हें तुम्हारे नये पैन्टी और ब्रा में देखना चाहता हूँ।” मैंने दीदी से कहा।
दीदी फ़ौरन घबरा कर बोली- यहाँ? तुम मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पैन्टी में देखना चाहते हो?
मैंने दीदी को समझाते हुए बोला- नहीं, यहाँ नहीं, मैं घर पर तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देखना चाहता हूँ।
दीदी फिर मुझसे बोली- पर घर पर कैसे होगा। माँ घर पर होगी। घर पर यह संभव नहीं हैं।
“कोई समस्या नहीं हैं, माँ घर पर खाना बना रही होगी और रसोई में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी। जैसे तुम रोज़ करती हो। लेकिन जब तुम कपड़े बदलो। रसोई का पर्दा थोड़ा सा खुला छोड़ देना। मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देख लूँगा।”
दीदी मेरी बात सुन कर बोली- नहीं रवि, फिर भी देखते हैं।
फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए। हमने घर पहुँच कर देखा कि माँ रसोई में खाना बना रही हैं।
हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर दीदी अपनी मैक्सी उठा कर रसोई में कपड़े बदलने चली गई। मैं हॉल में ही बैठा रहा।
रसोई में पहुँच कर दीदी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दी और हल्के से आँख मार दी।
मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया। दीदी मुझे सिर्फ़ 5 फ़ीट की दूरी पर खड़ी थी और माँ हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थी।
माँ दीदी से कुछ बातें कर रही थी।
दीदी माँ की तरफ़ मुड़ कर माँ से बातें करने लगी फिर दीदी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दी।
टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदी हुई ब्रा दिखने लगी। वाह क्या ब्रा थी। फिर दीदी ने फ़ौरन अपने हाथों से अपनी स्कर्ट की इलास्टिक को ढीला किया और अपनी स्कर्ट भी उतार दी। अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पैन्टी में थी।
दीदी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पैन्टी खरीदी है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए। दीदी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थी और उसके साथ पैन्टी में भी खूब लेस लगा हुआ था।
मुझे दीदी की ब्रा से दीदी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे। फिर मेरी आँखें दीदी के पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकीं। दीदी की पैन्टी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसके साथ-साथ दीदी की चूत के होंठ भी दिख रहे थे।
मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी दीदी को ब्रा और पैन्टी में अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। मैंने दीदी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा। लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से दीदी को देख रहा हूँ।
दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे।
सारे वक़्त दीदी मुझसे आँखें चुरा रही थी। शायद दीदी को अपने छोटे भाई के सामने ब्रा और पैन्टी में खड़ी होना कुछ अटपटा सा लग रहा था।
जैसे ही दीदी ने मुझे देखा, तो मैंने इशारे से दीदी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया। दीदी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गई लेकिन अपना चेहरा माँ की तरफ़ ही रखा। मैं दीदी को अब पीछे से देख रहा था। दीदी की पैन्टी उनके चूतड़ों में चिपकी हुई थी। मैं दीदी के मस्त चूतड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं दीदी को पूरी नंगी देखूँगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउँगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गई और अपनी मैक्सी उठा ली और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ। मैंने दीदी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ। दीदी बस मुस्कुरा दी और अपनी मैक्सी पहन ली।
मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन दीदी ने मेरी बातों को नहीं माना। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया।
दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गई।
मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया। दीदी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद दीदी बाथरूम चली गई।
मैं दीदी को सिर्फ़ ब्रा और पैन्टी में देख कर इतना गर्मा गया था कि अब मुझको भी बाथरूम जाना था और मुट्ठ मारना था। मेरे दिमाग़ में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी।
पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए, फिर हम लोग समुंदर के किनारे गए, फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे। फिर मैंने दीदी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और दीदी चूची मसलवा कर झड़ गई, फिर दीदी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पैन्टी और ब्रा चेंज की थी।
एकाएक मेरे दिमाग़ यह बात आई कि दीदी की उतरी हुई पैन्टी अभी भी बैग में ही होगी। मैंने रसोई में झाँक कर देखा कि माँ अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से दीदी उतरी हुई पैन्टी निकाल कर अपनी जेब में रख ली।
मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया। फिर मैंने दीदी की गीली पैन्टी को खोला और और उसे उल्टा किया। मैंने देखा कि जहाँ पर दीदी की चूत का छेद था वहाँ पर सफ़ेद-सफ़ेद गाढ़ा-गाढ़ा चूत का पानी लगा हुआ है, जब मैंने वो जगह छुई तो मुझे चिपचिपा सा लगा।
मैंने पैन्टी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा। मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा। दीदी की चूत से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी, और मैं पागल हुआ जा रहा था।
मैं दीदी की पैन्टी की चूत वाली जगह को चाटने लगा। वाह दीदी की चूत के पानी का क्या स्वाद है, मज़ा आ गया। मैं दीदी की पैन्टी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी दीदी की चूत चाट रहा हूँ।
मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर दीदी की पैन्टी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।
थोड़ी देर के बाद जब दीदी को अपनी भीगी पैन्टी का याद आई तो वो उसको बैग में ढूँढने लगी। शायद दीदी को उसे साफ़ करना था। दीदी को उनकी पैन्टी और ब्रा बैग में नहीं मिली।
थोड़ी देर के बाद दीदी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा- मुझे अपनी पुरानी पैन्टी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है।
मैंने दीदी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।
“तू हँस क्यों रहा हैं? इसमें हँसने की क्या बात है।” दीदी ने मुझसे पूछा।
मैंने दीदी से पूछा- तुम्हें अपनी पुरानी पैन्टी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पैन्टी मिल गई।
तब कुछ-कुछ समझ कर मुझसे पूछा- उनको तुमने लिया है?
मैं भी कह दिया- हाँ, मैंने लिया है। वो दोनों अपने पास रखना है, तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर।
तब दीदी बोली- रवि, वो गंदे हैं।
मैं मुस्कुरा कर दीदी से बोला- मैंने उनको साफ़ कर लिया।
लेकिन दीदी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने दीदी से कहा- मैं बाद में दे दूंगा।
अब माँ कमरे आ गई थीं। इसलिए दीदी ने और कुछ नहीं पूछा।
अगले सुबह मैंने दीदी से पूछा- क्या वो मेरे साथ दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी?
दीदी ने हँसते हुए पूछा- कौन दिखायेगा?
मैं भी हँस के बोला- मैं।
दीदी बोली- मुझे क्या पता तेरे को कौन सा सिनेमा देखने जाना है।
मैंने दीदी से बोला- हम लोग न्यू थियेटर चलें?
वो सिनेमा हॉल थोड़ा सा शहर से बाहर है।
“ठीक है, चल चलें।” दीदी मुझसे बोली।
असल में दीदी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ़ एक बहाना था। मेरे दिमाग़ में और कुछ घूम रहा था। सिनेमा के बाद मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था।
पिछले कई दिनों से मैंने दीदी की मुसम्मियों को कई बार दबाया था और मसला था और दो तीन-बार चूसा भी था। अब मुझे और कुछ चाहिए था और इसीलिए मैं दीदी को और कहीं ले जाना चाहता था। मुझे दीदी को छूने का अच्छा मौक़ा सिनेमा हॉल में मिल सकता था, या फिर सिनेमा के बाद और कहीं ले जाने के बाद मिल सकता था।
जब दीदी सिनेमा जाने के लिए तैयार होने लगी तो मैं धीरे से दीदी से कहा- आज तुम स्कर्ट पहन कर चलो।
दीदी बस थोड़ा सा मुस्कुरा दी और स्कर्ट पहनने के लिए राज़ी हो गई।
ठंड का मौसम था इसलिए मैं और दीदी ने ऊपर से जैकेट भी ले लिया था।
मैंने आज यह सिनेमा हॉल जान बूझ कर चुना था क्योंकि यह हॉल शहर से थोड़ा सा बाहर था और वहाँ जो सिनेमा चल रहा था। वो दो हफ़्ते पुरानी हो गया था।
मुझे मालूम था कि हॉल में ज्यादा भीड़ भर नहीं होगी। हम लोग वहाँ पहुँच कर टिकट ले लिया और हॉल में जब घुसे तो किसी और सिनेमा का ट्रेलर चल रहा था। इसलिए हॉल के अंदर अंधेरा था।
जब अंदर जा कर मेरे आँखें अंधेरे में देखने में कुछ अभ्यस्त हो गईं, तो मैंने देखा कि हॉल में कुछ लोग ही बैठे हुए हैं और मैं एक किनारे वाली सीट पर दीदी को ले जाकर बैठ गया। हम लोग जहाँ बैठे थे उसके आस पास और कोई नहीं था। और जो भी हॉल में बैठे थे वो सब किनारे वाली सीट पर बैठे हुए थे।
हम लोग भी बैठ गए सिनेमा देखने लगे। मैं सिनेमा देख रहा था और दिमाग़ में सोच रहा था मैं पहले दीदी की चूची को दबाऊंगा, मसलूँगा और अगर दीदी मान गई तो फिर दीदी की स्कर्ट के अंदर अपना हाथ डालूँगा।
मैंने क़रीब 15 मिनट तक इंतज़ार किया और फिर अपनी सीट पर मैं आराम से पैर फैला कर बैठ गया। संगीता दीदी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी।
मैं धीरे से अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर दीदी की जाँघों पर रख दिया। फिर मैं धीरे-धीरे दीदी की जाँघों पर स्कर्ट के ऊपर से हाथ फेरने लगा। दीदी कुछ नहीं बोली।
दीदी बस चुपचाप बैठी रही और मैं उनकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा। अब मैं धीरे-धीरे दीदी की स्कर्ट को पैरों से ऊपर उठाने लगा जिससे कि मैं अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल सकूँ।
दीदी ने मुझको रोका नहीं और ऊपर से मेरे कानों के पास अपनी मुँह लेकर के बोली- कोई देख ना ले।
इधर-उधर देख कर मैंने भी धीरे से बोला- नहीं कोई नहीं देख पाएगा।
दीदी फिर से बोली- स्क्रीन की लाइट काफ़ी ज़्यादा है और इसमें कोई भी हमें देख सकता है।
मैंने दीदी से कहा- अपना जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख लो।
दीदी ने थोड़ी देर रुक कर अपनी जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख ली। और इससे उनकी जाँघ और मेरा हाथ दोनों जैकेट के अंदर छुप गया।
मैं अब अपना हाथ दीदी के स्कर्ट के अंदर डाल कर के उनके पैरों और जाँघों को सहलाने लगा।
दीदी फिर फुसफुसा कर बोली- कोई हमें देख ना ले।
मैंने दीदी को समझाते हुए कहा- हमें कोई नहीं देख पाएगा। आप चुपचाप बैठी रहो।
मैंने अपना हाथ अब दीदी के जाँघों के अंदर तक ले जाकर उनकी जाँघ के अंदरूनी भाग को सहलाने लगा और धीर-धीरे अपना हाथ दीदी की पैन्टी की तरफ़ बढ़ाने लगा। मेरा हाथ इतना घूम गया की दीदी की पैन्टी तक नहीं पहुँच रहा था।
मैंने फिर हल्के से दीदी के कानों में कहा- थोड़ा नीचे खिसक कर बैठो न।
दीदी ने हँसते हुए पूछा- क्या तुम्हारा हाथ वहाँ तक नहीं पहुँच रहा है।
“हाँ” मैंने दबी जुबान से दीदी को बोला।
दीदी धीरे से हँसते हुए बोली- तुमको अपना हाथ कहाँ तक पहुँचाना है?
मैं शर्माते हुए बोला- तुमको मालूम तो है।
दीदी मेरी बातों को समझ गई और नीचे खिसक कर बैठी। मेरा हाथ शुरू से दीदी के स्कर्ट के अंदर ही घुसा हुआ था और जैसे ही दीदी नीचे खिसकी मेरा हाथ जा करा अपने आप दीदी की पैन्टी से लग गया। फिर मैं अपने हाथ को उठा कर पैन्टी के ऊपर से दीदी की चूत पर रखा और ज़ोर से दीदी की चूत को छू लिया।
यह पहली बार था की अपने दीदी की चूत को छू रहा था। दीदी की चूत बहुत गर्म थी। मैं अपनी उंगली को दीदी की चूत के छेद के ऊपर चलाने लगा।
थोड़ी देर के बाद दीदी फुसफुसा कर बोली- रुक जाओ, नहीं तो फिर से मेरी पैन्टी गीली हो जायेगी।
लेकिन मैंने दीदी की बात को अनसुनी कर दी और दीदी की चूत के छेद को पैन्टी के ऊपर से सहलाता रहा।
दीदी फिर से बोली- प्लीज़, अब मत करो, नहीं तो मेरी पैन्टी और स्कर्ट दोनों गंदी हो जायेगीं।
मैं समझ गया कि दीदी बहुत गर्मा गई हैं। लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता था कि जब हम लोग सिनेमा से निकलें तो लोगों को दीदी गंदी स्कर्ट दिखे। इसलिए मैं रुक गया।
मैंने अपना हाथ चूत पर से हटा कर दीदी की जाँघों को सहलाने लगा। थोड़ी देर के इंटरवल हो गया। इंटरवल होते ही मैं और दीदी अलग-अलग बैठ गए और मैं उठ कर पॉपकॉर्न और पेप्सी ले आया।
मैंने दीदी से धीरे से कहा- तुम टॉयलेट जाकर अपनी पैन्टी निकाल कर नंगी होकर आ जाओ।
दीदी ने आँखें फाड़ कर मुझसे पूछा- मैं अपनी पैन्टी क्यों निकालूँ?
मैं हँस कर बोला- निकाल लेने से पैन्टी गीली नहीं होगी।
दीदी ने तपाक से पूछा- और स्कर्ट का क्या करें? क्या उसे भी उतार कर आऊँ?
“सिंपल सी बात है जब टॉयलेट से लौट कर आओगी तो बैठने से पहले अपनी स्कर्ट उठा कर बैठ जाना” मैंने दीदी को आँख मारते हुए बोला।
दीदी मुस्कुरा कर बोली- तुम बहुत शैतान हो और तुम्हारे पास हर बात का जबाब है।
जैसा मैंने कहा था, दीदी टॉयलेट में गई और थोड़ी देर के बाद लौट आई। जब मैं दीदी को देख कर मुस्कुराया तो दीदी शर्मा गई और अपनी गर्दन झुका ली।
हम लोग फिर से हॉल में चले गए जब बैठने लगी तो अपनी स्कर्ट ऊपर उठा ली, लेकिन पूरी नहीं। हम लोगों के जैकेट अपने-अपने गोद में थी और हम लोग पॉपकॉर्न खाना शुरू किया। थोड़ी देर के बाद हम लोगों ने पॉपकॉर्न खत्म किए और फिर पेप्सी भी खत्म कर लिया।
फिर हम लोग अपनी-अपनी सीट पर नीचे हो कर पर फैला कर आराम से बैठ गए थोड़ी देर के बाद मैंने अपना हाथ बढ़ा कर दीदी की गोद पर रखी हुई जैकेट के नीचे से ले जाकर के दीदी की जाँघों पर रख दिया।
मेरे हाथों को दीदी की जाँघों से छूते ही दीदी ने अपने जाँघों को और फैला दिया। फिर दीदी ने अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर उठा करके अपने नीचे से अपनी स्कर्ट को खींच करके निकाल दिया और फिर से बैठ गए अब दीदी हॉल के सीट पर अपनी नंगी चूतड़ों के सहारे बैठी थी।
सीट की रेग्जीन से दीदी को कुछ ठंड लगी पर वो आराम से सीट पर नीचे होकर के बैठ गई। मैं फिर से अपने हाथ को दीदी की स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मैं सीधे दीदी की चूत पर अपना हाथ ले गया।
जैसे ही मैं दीदी की नंगी चूत को छुआ, दीदी झुक गई जैसे कि वो मुझे रोक रही हो। मुझे दीदी की नंगी चूत में हाथ फेरना बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे चूत पर हाथ फेरते-फेरते चूत के ऊपरी भाग पर कुछ बाल का होना महसूस हुआ।
मैं दीदी की नंगी चूत और उसके बालों को धीरे धीरे सहलाने लगा। मैं दीदी की चूत को कभी अपने हाथ में पकड़ कर कस कर दबा रहा था, कभी अपने हाथ उसके ऊपर रगड़ रहा था और कभी-कभी उनकी क्लिट को भी अपने उँगलियों से रगड़ रहा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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