Thread Rating:
  • 1 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Incest बहन - कंचन के बदन की गरमी
#67
समझ गयी, ज़रूर वो कोई गंदा नॉवेल पढ़ रहा था. मैं उसके कमरे में गयी. मुझे देख कर वो नॉवेल च्छुपाने की कोशिश करने लगा. मैने उसकी ओर जाते हुए पूचछा,

“ विकी क्या पढ़ रहा है?”

“ कुच्छ नहीं दीदी ऐसे ही”

“ मुझे दिखा क्या है.”

“ नहीं दीदी क्या देखोगी, ये तो हिस्टरी की किताब है.”

मैने झपट्टा मार के विकी से किताब छ्चीन ली. विकी ने वापस किताब छीनने की कोशिश की लेकिन में अपने कमरे में भाग गयी और अंडर आके लाइट बंद करके एक कोने में छिप गयी. विकी भी मेरे पीछे भागा. कमरे में आके जब उसकी आँखें अंधेरे में अड्जस्ट हुई तो उसने मुझे कोने में च्छूपा देख लिया और मेरे साथ छीना झपटी करने लगा. उसने किताब वापस छीन ली. मैने उसे ज़ोर से धक्का दे के अपने बिस्तेर पे गिरा दिया और उसके सीने पे चढ़ बैठी. विकी चित पड़ा हुआ था. मेरा गाउन छ्होटा सा तो था ही उसके ऊपर बैठने के कारण सामने से खुल गया. मेरी नंगी चूत विकी के सीने से टच करने लगी, लेकिन अंधेरा होने के कारण वो देख नहीं सका. मैने विकी को गुदगुदाना शुरू कर दिया और थोड़ा सा सरक के नीचे की ओर हो गयी. नीचे की ओर सरकने से विकी का लंड मेरे भारी नितंबों के नीचे दब गया. ऊऊफ़! उसका लंड मेरे नंगे चूतरो के नीचे बिल्कुल नंगा था! शायद छ्चीना झपटी में विकी की लूँगी खुल गयी थी. लंड खड़ा होने लगा था लेकिन बेचारा मेरे भारी चूतरो के नीचे दबे होने का कारण उसके पेट से चिपका हुआ था. बाप रे! इतना लंबा था कि उसकी नाभि तक पहुँच रहा था. मैं सोचने लगी कि जो लॉडा इसकी नाभि तक पहुँच रहा है वो तो मेरी चूत फाड़ के छाती तक घुस जाएगा. अब तो चाहे चूत फॅट जाए मैने चुदवाने की ठान ली थी. मेरा बदन वासना की आग में जलने लगा. इतने मोटे लंड का स्पर्श पा कर मेरी चूत रस छ्चोड़ने लगी. मैं विकी को गुदगुदाने के बहाने उसके ऊपर आगे पीछे होने लगी और उसके मूसल को अपने चूतरो की दरार में रगड़ने लगी. कभी थोडा आगे झुक जाती तो उसका मोटा लॉडा मेरी चूत की दोनो फांकों के बीच फँस जाता और गीली चूत उसके लंड पे रगड़ जाती. मेरी चूत के रस से उसका लॉड के नीचे का भाग बॉल्स से ले कर सुपरे तक गीला हो गया था. अब तो मैं उसके लंड पे आगे पीछे फिसल रही थी. बहुत मज़ा आ रहा था. बड़ा ही मादक खेल था. अकसर उसके लंड का सुपरा मेरी चूत के होंठों को चूम लेता और छेद में दाखिल होने की कोशिश करता. विकी ने जिस हाथ में किताब पकड़ रखी थी उसने उस हाथ को अपने सिर के ऊपर सीधा कर रखा था जिससे वो मेरी पहुँच से बाहर हो गया था. किताब तक पहुँचने के लिए आगे सरकना ज़रूरी था. ये तो बहुत अच्छा मोका था. आगे सरकने के बहाने मैं अपनी चूत विकी के मुँह पे रगड़ सकती थी. मुझे अच्छी तरह याद था जब पिच्छली बार मैने अपनी चूत विकी के मुँह पर रगडी थी. लेकिन उस वक़्त मैने पॅंटी पहनी हुई थी. किताब छ्चीनने के बहाने मैं तेज़ी से आगे की ओर हुई. अब मेरी चूत ठीक विकी के मुँह के ऊपर थी. मैने झपट्टा मारा और उसके हाथ से किताब छ्चीनने के बहाने उसके मुँह पर गिर गयी. ऊऊओफ़! मेरी नंगी गीली चूत विकी के होंठों से चिपक गयी. मैने अपनी चूत को 5 सेकेंड तक विकी के मुँह पर ज़ोर से दबा दिया. मेरी चूत इतना रस छोड़ रही थी कि विकी के होंठ और मुँह गीले हो गये. ये ही नहीं मेरी झाँटें भी उसके मुँह में घुस गयी. विकी हड़बड़ा गया और मैं किताब छ्चीनने में कामयाब हो गयी. किताब छ्चीन के मैं जैसे ही उठने लगी विकी ने मुझे गिरा लिया और मेरे ऊपर चढ़ बैठा. अब मैं पेट के बल पड़ी हुई थी और विकी मेरी पीठ पर बैठा हुआ था. मैने किताब को अपने नीचे दबा लिया. विकी हांफता हुआ बोला,

“ दीदी किताब दे दो नहीं तो छ्चीन लूँगा.”

“ अरे जा, जा. इतना दम है तो छीन ले.” मैं उसे चिड़ाती हुई बोली.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply


Messages In This Thread
RE: बहन - कंचन के बदन की गरमी - by neerathemall - 10-12-2023, 04:00 PM



Users browsing this thread: 4 Guest(s)