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Incest बहन - कंचन के बदन की गरमी
#41
एक दिन की बात है. भाभी मुझे पढ़ा रही थी और भैया अपने कमरे में लेटे हुए थे. रात के दस बजे थे. इतने में भैया की आवाज़ आई " कंचन, और कितनी देर है जल्दी आओ ना". भाभी आधे में से उठते हुए बोली " रामू बाकी कल करेंगे तुम्हारे भैया आज कुकछ ज़्यादा ही उतावले हो रहे हैं." यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गयी. मुझे भाभी की बात कुकछ ठीक से समझ नही आई. काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की ट्यूब लाइट जली और मेरी समझ में आ गया कि भैया को किस बात की उतावली हो रही थी. मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. आज तक मेरे दिल में भाभी को ले कर बुरे विचार नही आए थे, लेकिन भाभी के मुँह से उतावले वाली बात सुन कर कुकछ अजीब सा लग रहा था. मुझे लगा कि भाभी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा. जैसे ही भाभी के कमरे की लाइट बंद हुई मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी. मैने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बंद कर दी और चुपके से भाभी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया. अंडर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुकछ कुकछ ही सॉफ सुनाई दे रहा था.

" क्यों जी आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?"

" मेरी जान कितने दिन से तुमने दी नही. इतना ज़ुल्म तो ना किया करो."

"चलिए भी,मैने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नही मिलती. रामू का कल एग्ज़ॅम है उसे पढ़ाना ज़रूरी था."

" अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी चूत का उद्घाटन करूँ."

" हाई राम! कैसी बातें बोलते हो.शरम नही आती"

" शर्म की क्या बात है. अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीबी को चोदने में शरम कैसी"

" बड़े खराब हो. आह..एयेए..आह है राम….वी माआ……अयाया…… धीरे करो राजा अभी तो सारी रात बाकी है"

मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका. पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे. मेरा लंड अंडरवेर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था. मैं जल्दी से अपने बिस्तेर पर लेट गया पर सारी रात भाभी के बारे में सोचता रहा. एक पल भी ना सो सका.ज़िंदगी में पहली बार भाभी के बारे में सोच कर मेरा लंड

खड़ा हुआ था. सुबह भैया ऑफीस चले गये. मैं भाभी से नज़रें नही मिला पा रहा था जबकि भाभी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थी. भाभी किचन में काम कर रही थी. मैं भी किचन में खड़ा हो गया. ज़िंदगी में पहली बार मैने भाभी के जिस्म को गौर से देखा. गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन,लंबे घने काले बॉल जो भाभी के घुटने तक लटकते थे, बरी बरी आँखें, गोल गोल आम के आकार की चुचियाँ जिनका साइज़ 38 से कम ना होगा, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी नितंब . एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी . इस बार मैने हिम्मत कर के भाभी से पूछ ही लिया.

" भाभी, मेरा आज एग्ज़ॅम है और आप को तो कोई चिंता ही नही थी. बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दी"

" कैसी बातें करता है रामू, तेरी चिंता नही करूँगी तो किसकी करूँगी?"

" झूट, मेरी चिंता थी तो गयी क्यों?"

" तेरे भैया ने जो शोर मचा रखा था."

" भाभी, भैया ने क्यों शोर मचा रखा था" मैने बारे ही भोले स्वर में पूछा. भाभी शायद मेरी चालाकी समझ गयी और तिरछी नज़र से देखते हुए बोली,

" धात बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है. मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए. बोल है कोई लड़की पसंद?"

" भाभी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो.

" चल नालयक भाग यहाँ से और जा कर अपना एग्ज़ॅम दे
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बहन - कंचन के बदन की गरमी - by neerathemall - 10-12-2023, 01:35 PM



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