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Incest बहन - कंचन के बदन की गरमी
#39
(२)











उन्होने मुझे उठा के खड़ा किया और बाहों में भर के चूम लिया. उसके बाद मुझे नंगी ही अपनी बाहों में उठा कर बाथरूम में ले गये और एक स्टूल पे बैठा दिया. फिर मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत पे पानी डाल के धोने लगे. मुझे बहुत शर्म आ रही थी और दर्द भी हो रहा था. उन्होने खूब अच्छी तरह से मेरी झांटें और चूत सॉफ की और फिर टवल से पोच्छा. मेरी झाँटें सुखाने के बाद बड़े ध्यान से मेरी फैली हुई टाँगों के बीच देखने लगे. मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी,

“ अब हमे छोड़िए ना.. ऐसे क्या देख रहे हैं ?”

“ मेरी जान तुम तो कली से फूल बुन ही गयी हो लेकिन देखो ना जब हमने तुम्हें चोदना शुरू किया था तो उस वक़्त तुम्हारी चूत एक बूँद कच्ची काली लग रही थी. और अब देखो तुम्हारी वो कच्ची कली बिकुल फूल की तरह खिल गयी है. ऐसा लग रहा है जैसे एक बंद कली की पंखुड़ीयाँ खुल के फैल गयीं हों.”

मैने शर्म के मारे अपने मुँह दोनो हाथों से धक लिया. मैने वापस बेडरूम में जाने से पहले टवल लपेटने की कोशिश की तो उन्होने मेरे हाथ से टवल ले लिया और बोले,

“ तुम नंगी इतनी खूबसूरत लगती हो, टवल लपेटने की क्या ज़रूरत है.” मुझे टाँगें चौड़ी करके चलना पड़ रहा था. हम दोनो नंगे ही सो गये. सुबह उठ कर वो एक बार फिर से मुझे चोदना चाहते थे, लेकिन मैने उनसे कहा कि बहुत दर्द हो रहा है, मैं और सह नहीं पाउन्गि. इस तरह मैं सुबह की चुदाई से तो बच गयी. अगले दिन हम लोग हनिमून पे चले गये. सुहाग रात की ज़बरदस्त चुदाई के कारण मेरी चूत अभी तक सूजी हुई थी और दर्द भी कम नहीं हुआ था. मैं अभी और चुदाई के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन क्या करती. हनिमून में तो चुदाई से बचाने का कोई रास्ता नहीं था. जिस दिन हम शिमला पहुँचे, उसी रात उन्होने मुझे चार बार जम के चोदा. कोई भी मेरी चाल देख के बता सकता था कि मेरी ज़बरदस्त चुदाई हो रही है. मैं बचाने की काफ़ी कोशिश करती, फिर भी ये मोका लगते ही दिन में एक या दो बार और रात में तीन से चार बार मुझे चोद्ते थे. 10 दिन के हनिमून में कम से कम 50 बार मेरी चुदाई हुई. होनेमून से वापस आने तक मेरी चूत इतनी फूल गयी थी कि मैं खुद उसे पहचान नहीं पा रही थी. मैं यह सोच के परेशान थी कि यदि चुदाई का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो बहुत मुश्किल हो जाएगा. मेरी चूत को आराम की सख़्त ज़रूरत थी. लेकिन वैसा नहीं हुआ जैसा मैं सोचती थी.

हनिमून से वापस आने के बाद इनका ऑफीस शुरू हो गया. अब दिन में तो चुदाई नहीं हो पाती थी लेकिन रात में एक बार तो ज़रूर चोद्ते थे. अब मेरी चूत का दर्द ख़तम हो गया था और झिझक भी कम हो गई थी . चुदवाने में बहुत मज़ा आने लगा था और चूत बहुत गीली हो जाती. मैं भी अब चूतर उचका उचका के खूब मज़े ले कर चुदवाती थी. मेरी चूत इतना रस छ्चोड़ती की जब ये धक्के लगाते तो मेरी चूत में से फ़च.. फ़च….फ़च की आवाज़ें आती. मैं रोज़ रात होने का बेसब्री से इंतज़ार करती थी. कभी कभी च्छुतटी के दिन, दिन में भी चोद देते थे. मैं बहुत खुश थी. इनका लंड 8 इंच लंबा और अच्छा ख़ासा मोटा था. जब भी चोदते, एक घंटे से पहले नहीं झाड़ते थे. मेरा बहुत दिल करता था कि ये भी मेरे साथ वो सब कुच्छ करें जो पापा मम्मी के साथ करते थे. लेकिन ये मुझे सिर्फ़ एक ही मुद्रा में चोदते थे. कभी अपना लंड मेरे मुँह में नहीं डाला ओर ना ही मेरी चूत को कभी चॅटा. मेरी गांद की तरफ भी कभी ध्यान नहीं दिया.

पहले 6 महीने तो रोज़ रात को एक बार चुदाई हो ही जाती थी. धीरे धीरे हफ्ते में तीन बार चोदने लगे. शादी को एक साल गुज़रने वाला था. चुदाई और भी कम हो गयी थी. अब तो महीने में सिर्फ़ दो तीन बार ही चोदते थे. सब कुच्छ उल्टा हो रहा था. जैसे जैसे मुझे चुदवाने का शोक बढ़ने लगा , इन्होने चोदना और भी कम कर दिया. शादी के एक साल बाद ये आलम था कि महीने में दो तीन बार से ज़्यादा चुदाई नहीं होती थी. मैं रोज़ रात बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती कि आज चोदेन्गे लॅकिन रोज़ ही निराशा हाथ लगती. ऑफीस से बहुत लेट आते थे इसलिए थक जाते थे. जब कभी चोद्ते तो पूरी तरह नंगी भी नहीं करते, बस सारी उठा कर पेल देते. मेरी वासना की आग बढ़ती जा रही थी. मेरे पति के पास मेरी प्यास बुझाने का समय नहीं था.

हमारे साथ मेरे पति का छ्होटा भाई यानी मेरा देवर रामू भी रहता था. रामू एक लंबा तगड़ा सुडोल जवान था. वो कॉलेज में पढ़ता था और बॉडी बिल्डिंग भी किया करता था. मैं उसे मथ्स पढ़ाया करती थी. वो मेरी ओर आकर्षित था. हम दोनो में बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था. मैं उसे केयी बार अपने ब्लाउस के अंडर या टाँगों के बीच में झाँकते हुए पकड़ चुकी थी. मुझे मालूम था कि वो केयी बार मेरी पॅंटी के दर्शन कर चुका था. एक बार जब मैं नहाने जा रही थी तो उसने मुझे नंगी भी देख लिया था. मेरी एक पॅंटी भी उसने चुरा ली थी और उस पॅंटी के साथ वो क्या करता होगा ये भी मैं अच्छी तरह जानती थी. हँसी मज़्ज़ाक़ इस हद तक बढ़ गया था कि हम सब प्रकार की बातें बेझिझक करते थे. लेकिन मैं उसके साथ एक सीमा से बाहर नहीं जाना चाहती थी. अपने ही देवर के साथ किसी तरह का शारीरिक संबंध ठीक नहीं था. लेकिन मेरा ये विचार उस दिन बिल्कुल बदल गया जिस दिन मैं ग़लती से उसका लंड देख बैठी. ऊफ़ क्या मोटा और लंबा लंड था ! जब से मेरी नज़र उसके मूसल जैसे लंड पे पड़ी तब से मेरी रातों की नींद गायब हो गयी. दोस्तो अब इससे आगे की कहानी मेरे देवर रामू की ज़ुबानी..........



मेरा नाम रामू है. मैं कॉलेज में पढ़ता हूँ. मेरी उम्र अब बीस साल है. मैं एक साल से अपने भैया और भाभी के साथ रह रहा हूँ. भैया एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं. मेरी भाभी कंचन बहुत ही सुन्दर है. भैया की शादी को दो साल हो चुके हैं. भाभी की उम्र 24 साल है. मैं भाभी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ और वो भी मुझे बहुत चाहती है. हम दोनो में खूब दोस्ती है और हँसी मज़ाक चलता रहता है. भाभी पढ़ाई में भी मेरी सहायता करती है. वो मुझे मथ्स पढ़ाती है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बहन - कंचन के बदन की गरमी - by neerathemall - 10-12-2023, 01:32 PM



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