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Incest बहन - कंचन के बदन की गरमी
#35
मुझे मालूम था कि ट्रेन वाली बात विकी के पेट में रहने वाली नहीं है. जैसे ही उसका दोस्त सुधीर घर पे आया दोनो में ख़ुसर पुसर शुरू हो गयी. मैं भी जानना चाहती थी कि विकी मेरे बारे में क्या बोल रहा है. मैं कान लगा कर उनकी बातें सुनने लगी.

“ बहुत दिनों बाद नज़र आ रहा है विकी ?”

“ हां यार, कानपुर गया था दीदी के लिए लड़का देखने.”

“ दिल मत तोड़ विकी. तेरी दीदी की शादी हो गयी तो मेरा दिल टूट जाएगा. किस्मत वाला होगा जो तेरी दीदी की जवानी से खेलेगा. अपनी दीदी से एक बार बात तो करवा दे. अपनी किस्मत भी आजमा लें.”

“तेरी किस्मत का तो पता नही पर मेरी किस्मत ज़रूर खुल गयी.”

“ वो कैसे ? नंगी देख लिया या चोद ही दिया अपनी दीदी को?”

“ चोदना अपनी किस्मत में कहाँ? लेकिन काफ़ी कुच्छ कर लिया.”

“ पूरी बात बता ना यार. पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है?”

“ हाई यार क्या बताऊ, मेरा लंड तो सोच सोच के ही खड़ा हुआ जा रहा है. कानपुर से वापस आते पे सीट ना मिलने के कारण मैं और दीदी एक ही सीट पे थे. एसी 2 टीएर में साइड की सीट थी. हमने परदा डाल लिया. दीदी मेरे सामने बैठी हुई थी. उसने लहंगा पहन रखा था. पैर मोड नॉवेल पढ़ रही थी. एक दो बार टाँगें सीधी करते और मोड़ ते वक़्त उसकी टाँगों के बीच की झलक मिल गयी. गोरी गोरी जांघों के बीच में काला काला नज़र आया तो मुझे लगा की काली पॅंटी पहनी हुई है. थोरी देर में टाँगें मोड़ के घुटनों पे सिर रख के सो गयी. मैं मना रहा था कि किसी तरह मूडी हुई टाँगों में दबा लहंगा नीचे हो जाए. अचानक वोही हुआ. दीदी के लहँगे का नीचे का हिस्सा उसकी मूडी हुई टाँगों में से निकल कर गिर गया. है यार.. ! दिल पे च्छूरियँ चल गयी. गोरी गोरी मोटी मोटी जांघों के बीच में से दीदी की चूत बिल्कुल नंगी झाँक रही थी. ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की की चूत देखी और वो भी इतने करीब से. इतनी घनी और काली झांटें थीं. कम से कम 3 इंच लुंबी तो होंगी ही. पूरी चूत झांतों से धकि हुई थी. लेकिन क्योंकि दीदी की टाँगें मूडी हुई थी, चूत की दोनो फाँकें फैल गयी थी. ऊफ़ क्या फूली हुई चूत थी! फैली हुई फांकों के बीच में से चूत के दोनो होंठ मेरी ओर झाँक रहे थे. इतने बड़े होंठ थे जैसे तितली के पंख हों. मन कर रहा था उन होंठों को चूम लूँ. चूत के होंठों का ऊपरी सिरा इतना उभरा हुआ था मानो छ्होटा सा लंड खड़ा हो गया हो. चूत के चारों ओर के घने बॉल ऐसे चमक रहे थे जैसे चूत के रस में गीले हों. मेरी दीदी ना होती तो आगे सरक कर अपना तना हुआ लॉडा उस खूबसूरत चूत के होंठों के बीच में पेल देता.”

“ यार तूने तो बहुत सुन्दर मोका खो दिया. यही मोका था चोदने का.”“ छोड़ यार कहना आसान है. रात को दीदी जब गहरी नींद में सो रही थी तो मैने चुपके से उसका लहंगा कमर तक ऊपर सरका दिया. वो मेरी ओर पीठ किए लेटी थी. बाप रे ! क्या कातिलाना चूतेर थे. सारा शहर जिन चूतरो के पीछे मरता है वो चूतर मेरी नज़रों के सामने थे. मैं दीदी के पीछे लेट गया. हिम्मत करके मैने लूँगी में से अपना तना हुआ लॉडा निकाला और दीदी के विशाल चूतरो के बीच की दरार में सटा दिया. ट्रेन के हिचकॉलों के साथ मेरा लंड दीदी के चूतरो के बीच आगे पीछे हो रहा था. ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. मैने एक फोटो में एक आदमी को औरत की चूत में पीछे से भी पेलते देखा था. मैं बहुत उत्तेजित हो गया था और हल्के हल्के धक्के भी लगाने लगा था. मुझे अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रहा और मैने तोड़ा ज़ोर से धक्का लगा दिया. इस धक्के से दीदी की आँख खुल गयी. मैने जल्दी से उसका लहंगा नीचे किया. जब वो उठ के बाथरूम गयी तो मैने देखा की मेरे लंड का सुपरे के आस पास चिपचिपा हो गया है. पता नहीं मेरा ही वीर्य था की दीदी की चूत का रस. मैने सूंघ के देखा तो वोही खुश्बू थी जो दीदी की पॅंटी से आती थी.”

“ वाह बेटे विकी तू तो मुझे से भी दो कदम आगे निकल गया. मैं तो दूर से ही अपनी दीदी की चूत देख के खुश हो रहा था, तूने तो अपनी दीदी की चूत पे लंड भी टीका दिया. डर क्यों गया पेल देना था.”

“ यार मन तो बहुत कर रहा था. लेकिन यार मेरी दीदी की चूत का छेद इतना बड़ा नहीं था जिसमे मेरा लंड घुस जाए.”

“ विकी तू बहुत भोला है. लड़की की चूत है ही ऐसी चीज़ जो आदमी का तो क्या घोड़े का लंड भी निगल जाती है. तू भी तो उसी छ्होटे से छेद में से बाहर निकला है.तो क्या तेरा लंड इतना बड़ा है जो उस छेद में ना जाए? लड़की की चूत होती ही चोदने के लिए. ”

मैं विकी की बातें सुन के शर्म से लाल हो गयी थी और साथ में मेरी चूत भी खूब गीली हो गई थी. मेरा सगा भाई मुझे चोदने लिए पागल है यह सोच कर मैं बहुत खुश भी थी.

इस घटना के बाद से हम दोनो में हँसी मज़ाक बहुत बढ़ गया था और विकी अपना लंड मेरे जिस्म से रगड़ने का कोई मोका नहीं गँवाता था. लेकिन आज तक मुझे विकी का खड़ा हुआ लॉडा देखने का मोका नहीं मिला था. कई बार कोशिश भी की. कई बार सवेरे उसके कमरे में गयी , इस आशा से की उसके लॉड के दर्शन हो जाएँ पर किस्मत ने साथ नहीं दिया. एक दिन मोका हाथ लग ही गया. विकी मेरा टवल ले कर नहाने चला गया. उसे मालूम था कि मैं अपना टवल किसी को भी यूज़ नहीं करने देती थी. मैने उसे टवल ले जाते हुए देख लिया था लेकिन चुप रही. जैसे ही वो नहा के टवल लपट कर बाहर निकला मैं उसकी ओर झपटी और चिल्लाई,

“ तूने फिर मेरा टवल ले लिया. इसी वक़्त वापस कर. खबरदार जो आगे से लिया.” इससे पहले की वो संभाले मैने टवल खीच लिया. विकी एकदम नंगा हो गया.

“ हाआआआअ……….. बेशरम ! तूने अंडरवेर भी नहीं पहना.” मेरी आँखों के सामने विकी का मोटा किसी मंदिर के घंटे के माफिक झूलता हुआ लंड था. करीब करीब उसके घुटनों तक पहुँच रहा था. विकी का मारे शरम के बुरा हाल था. अपने हाथों से लंड को च्छुपाने की कोशिश करने लगा. लेकिन आदमी का लंड हो तो च्छूपे, ये तो घोड़े के लंड से भी बड़ा लग रहा था. बेचारा आधे लंड को ही च्छूपा पाया. मेरी चूत पे तो चीतियाँ रेंगने लगीं. हाई राम ! क्या लॉडा है. मुझे भी पसीना आ गया था. अपनी घबराहट च्छूपाते हुए बोली,

“ कम से कम अंडरवेर तो पहन लिया कर, नालयक!.” ओर मैने टवल दुबारा उसके ऊपर फेंक दिया. विकी जल्दी से टवल लपट कर भागा. मैं अपने प्लान की कामयाबी पे बहुत खुश थी, लेकिन जी भर के उसका लॉडा अब भी नहीं देख पाई. ये तो तभी मुमकिन था जब विकी सो रहा हो. अब मेरी हिम्मत और बढ़ गयी. अगले दिन मैं सवेरे चार बजे उठ कर विकी के कमरे में गयी. विकी गहरी नींद में सो रहा था. उसकी लूँगी जांघों तक ऊपर चढ़ि हुई थी. विकी पीठ के बल लेटा हुआ था और उसकी टाँगें फैली हुई थी. मैं दबे पावं विकी के बेड की ओर बढ़ी और बहुत ही धीरे से लूँगी को उसकी कमर के ऊपर सरका दिया. सामने का नज़ारा देख के मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. पहली बार जब उसका लॉडा देखा था तो इतनी घबराई हुई थी कि ठीक से देख भी नहीं पाई थी. दूसरी बार जब टवल खींचा था तब भी बहुत थोरी देर ही देख पाई, लेकिन अब ना तो कोई जल्दी थी ओर ना ही कोई डर. इतनी नज़दीक से देखने को मिल रहा था. सिकुड़ी हुई हालुत में भी इतना लंबा था की पीठ पे लेटे होने के बावजूद भी लंड का सूपड़ा बिस्तेर पर टीका हुआ था. दो बड़े बड़े बॉल्स भी बिस्तेर पर टीके हुए थे. इतना मोटा था कि मेरे एक हाथ में तो नहीं आता. ऐसा लग रहा था जैसे कोई लंबा मोटा, काला नाग आराम कर रहा हो. मन कर रहा था की सहला दूं और मुँह में डाल के चूस लूँ, लेकिन क्या करती, मजबूर थी. चूत बुरी तरह से रस छ्चोड़ रही थी और पॅंटी पूरी गीली हो गयी थी. अब तो मेरा इरादा और भी पक्का हो गया कि एक दिन इस खूबसूरत लॉड का स्वाद मेरी चूत ज़रूर लेगी. मैं काफ़ी देर उसकी चारपाई के पास बैठी उस काले नाग को निहारती रही. फिर हिम्मत कर के मैने उसके पूरे लॉड को हल्के से चूमा और मोटे सुपरे को जीभ से चाट लिया. मुझे डर था की कहीं विकी की नींद ना खुल जाए. मन मार के मैं अपने कमरे में चली गयी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: बहन - कंचन के बदन की गरमी - by neerathemall - 10-12-2023, 01:28 PM



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