30-11-2023, 03:44 PM
337,395
जोरू का गुलाम भाग १०९
नया दिन नयी बात
अगले दिन सुबह सुबह , मैं सबसे जल्दी उठी एकदम शादी के शुरू के दिनों की तरह , नहायी और किचन में।
फरक सिर्फ इतना था उस सीधी साधी बहू में और आज , की आज मैं ये स्ट्रेटजी के तहत कर रही थी।
मैंने जेठानी जी के लिए बेड टी बनायी , एकदम उनके इंस्ट्रक्शन के मुताबिक ,
मन तो कर रहा था की उस चाय में , लेकिन किस तरह मन को समझाया मैं ही जानती हूँ।
उधर चाय उबल रही थी ,इधर मेरा गुस्सा ,
मुझसे कुछ कहें लेकिन उस लड़के से , कल रात जिस तरह वो परेशान थे ,
जेठानी जी को समझ जाना चाहिए की वो सबसे पहले मेरे हैं ,सिर्फ मेरे , और उन्हें मेरे खिलाफ खड़े करने की कोशिश।
एकदम फोर्थ डिग्री की हरकत , लेकिन बस कुछ देर की बात है ,आज की रात मैं उनके साथ टेंथ डिग्री करने वाली हूँ ,
जो कुछ मम्मी क्या मंजू भी नहीं सोच सकती वो सब , एक से एक किंक ,
इसी घर में इसी आंगन में ,
संस्कार ,संस्कार ,... सारे संस्कार उनकी माँ की गांड में न पेल दिया तो मेरा नाम कोमल नहीं।
सोच रही हैं गुड्डी को रोक के फिर से वो इस घर में अपनी सुपीरियरिटी सिद्ध कर लेंगी ,
कल न सिर्फ उन्ही के सामने उस चिरैया को ले उड़ूँगी बल्कि उन्ही से उस को तैयार करवाउंगी।
चाय ले जाते समय एक बार फिर मैंने अपने चेहरे पर वो शादी के शुरू के दिनों वाले भाव ले आयी मैं ,
कहीं जेठानी जी ,बहुत चालाक हैं वो ,शादी के पहले दिन ही उन्होंने मेरी सास के सामने ही मुझसे कहा था ,
उड़ती चिड़िया के पर मैं गिन भी सकती हूँ और क़तर भी सकती हूँ।
लेकिन एक बार उनकी ठुकाई ज़रा तस्सलीबख्स ढंग से हो जाए न तो बस , ... फिर इसी आंगन में न नंगे नचाया , फिर पूछूँगी।
वो सो रही थीं ,
बस मैंने पैर नहीं छुए ,(शादी के बाद जब मैं आयी तो ये कम्पलसरी था ,सुबह भी , और रात को जाने के पहले )
उन्हें सोते देखते मैं सोच रही थी ,सो ले आज , आज रात को इसी कमरे में जबरदस्त तूफ़ान आने वाला है।
जोबन जबरदस्त था उन पे ,देह थोड़ी भारी भारी , खूब मांसल ,गदरायी चार पांच साल की शादी के बाद जैसे अमूमन हो जाती है।
आँचल ढलक गया था उनका सोते में और ब्लाउज से ३६ डी डी साइज के उनके उभार एकदम छलक रहे थे।
बहुत सम्हाल के ढक छिपा के अपना खजाना रखती थीं वो , और मुझे भी सख्त हिदायत थी ,आँचल जरा भी सरका , या कोई ब्लाउज ज़रा भी लो कट हुआ
बस जेठानी जी भौंहे टेढ़ी।
मैंने हलके से गुदगुदी करके उन्हें उठाया , मुस्कराते हुए और चाय पेश कर दी।
चाय पीते हुए उनका मुंह खिल उठा ,चाय का स्वाद ,और मैं एक बार फिर से जैसे उन्होंने समझाया बुझाया था उस तरह
लेकिन ताना मारने से वो बाज नहीं आयी ,
" ज़रा देखना आज कही सूरज पश्चिम से तो नहीं निकला। "
मेरा तो मन था बोलती ,
" आज तो नहीं लेकिन कल जरूर पश्चिम से निकलेगा। " मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया।
लेकिन मैंने उन्हें छेड़ कर बात बदलने की कोशिश की ,
जोरू का गुलाम भाग १०९
नया दिन नयी बात
अगले दिन सुबह सुबह , मैं सबसे जल्दी उठी एकदम शादी के शुरू के दिनों की तरह , नहायी और किचन में।
फरक सिर्फ इतना था उस सीधी साधी बहू में और आज , की आज मैं ये स्ट्रेटजी के तहत कर रही थी।
मैंने जेठानी जी के लिए बेड टी बनायी , एकदम उनके इंस्ट्रक्शन के मुताबिक ,
मन तो कर रहा था की उस चाय में , लेकिन किस तरह मन को समझाया मैं ही जानती हूँ।
उधर चाय उबल रही थी ,इधर मेरा गुस्सा ,
मुझसे कुछ कहें लेकिन उस लड़के से , कल रात जिस तरह वो परेशान थे ,
जेठानी जी को समझ जाना चाहिए की वो सबसे पहले मेरे हैं ,सिर्फ मेरे , और उन्हें मेरे खिलाफ खड़े करने की कोशिश।
एकदम फोर्थ डिग्री की हरकत , लेकिन बस कुछ देर की बात है ,आज की रात मैं उनके साथ टेंथ डिग्री करने वाली हूँ ,
जो कुछ मम्मी क्या मंजू भी नहीं सोच सकती वो सब , एक से एक किंक ,
इसी घर में इसी आंगन में ,
संस्कार ,संस्कार ,... सारे संस्कार उनकी माँ की गांड में न पेल दिया तो मेरा नाम कोमल नहीं।
सोच रही हैं गुड्डी को रोक के फिर से वो इस घर में अपनी सुपीरियरिटी सिद्ध कर लेंगी ,
कल न सिर्फ उन्ही के सामने उस चिरैया को ले उड़ूँगी बल्कि उन्ही से उस को तैयार करवाउंगी।
चाय ले जाते समय एक बार फिर मैंने अपने चेहरे पर वो शादी के शुरू के दिनों वाले भाव ले आयी मैं ,
कहीं जेठानी जी ,बहुत चालाक हैं वो ,शादी के पहले दिन ही उन्होंने मेरी सास के सामने ही मुझसे कहा था ,
उड़ती चिड़िया के पर मैं गिन भी सकती हूँ और क़तर भी सकती हूँ।
लेकिन एक बार उनकी ठुकाई ज़रा तस्सलीबख्स ढंग से हो जाए न तो बस , ... फिर इसी आंगन में न नंगे नचाया , फिर पूछूँगी।
वो सो रही थीं ,
बस मैंने पैर नहीं छुए ,(शादी के बाद जब मैं आयी तो ये कम्पलसरी था ,सुबह भी , और रात को जाने के पहले )
उन्हें सोते देखते मैं सोच रही थी ,सो ले आज , आज रात को इसी कमरे में जबरदस्त तूफ़ान आने वाला है।
जोबन जबरदस्त था उन पे ,देह थोड़ी भारी भारी , खूब मांसल ,गदरायी चार पांच साल की शादी के बाद जैसे अमूमन हो जाती है।
आँचल ढलक गया था उनका सोते में और ब्लाउज से ३६ डी डी साइज के उनके उभार एकदम छलक रहे थे।
बहुत सम्हाल के ढक छिपा के अपना खजाना रखती थीं वो , और मुझे भी सख्त हिदायत थी ,आँचल जरा भी सरका , या कोई ब्लाउज ज़रा भी लो कट हुआ
बस जेठानी जी भौंहे टेढ़ी।
मैंने हलके से गुदगुदी करके उन्हें उठाया , मुस्कराते हुए और चाय पेश कर दी।
चाय पीते हुए उनका मुंह खिल उठा ,चाय का स्वाद ,और मैं एक बार फिर से जैसे उन्होंने समझाया बुझाया था उस तरह
लेकिन ताना मारने से वो बाज नहीं आयी ,
" ज़रा देखना आज कही सूरज पश्चिम से तो नहीं निकला। "
मेरा तो मन था बोलती ,
" आज तो नहीं लेकिन कल जरूर पश्चिम से निकलेगा। " मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया।
लेकिन मैंने उन्हें छेड़ कर बात बदलने की कोशिश की ,