13-06-2019, 09:12 PM
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" जा रहा हूँ ,कड़ाही जल रही होगी। " और वो भाग के किचेन में।
मैं और मम्मी खिलखिलाते रहे।
उनके कपडे मैंने उनकी आलमारी में लगा दिए।
शाम का खाना सिम्पल था लेकिन प्योर नान वेज। और उसके बाद कटे हुए दसहरी ,अल्फांसो ,..
मम्मी ने जिद कर के अपने साथ बैठाया उन्हें खिलाने के लिए और पूरे खाते समय ,...
उनकी माँ बहनों का नाम ले लेकर ,...
और बीच बीच में धमकी भी देतीं
," चल मेरी समधन से तेरी कबड्डी तो होगी ही ,लेकिन देख आज मैं क्या हाल करती हूँ तेरा मादर चो..."
वो बिचारे शर्मा भी रहे थे , झिझक भी रहे थे ,कुछ घबड़ा भी रहे थे लेकिन कुछ कुछ मन भी कर रहा था।
खाने के बाद हम तीनों मम्मी के कमरे में पहुंचे तो वहां भी मम्मी ने , ...
उनके गोल गोल कड़े नितम्ब सहलाते दबाते ,
एक ऊँगली उन्होंने बीच की दरार में घुसा दी और हलकेहलके चलाते बोलीं ,
" मेरी समधन के भी चूतड़ भी ऐसे ही मस्त मस्त गोल हैं , छिनार बचपन से मरवाती है न। "
मम्मी बिस्तर पे लेट गयी और वोलने लगीं ,थोड़ी थकान लग रही है।
मैंने इशारा किया और वो मम्मी के पैर दबाने में लग गए , पहले तलुए ,फिर पिंडलियाँ ,फिर थोड़ा और ऊपर , फिर ,..
उँगलियों से जिस तरह वो दबा रहे थे ,प्रेस कर रहे थे ,नीड कर रहे थे क्या कोई प्रोफेशनल मालिश वाली करेगी।
थोड़ी देर में मम्मी का दर्द काफूर हो गया लेकिन वो गहरी नींद में सो गयीं ,और हम दोनों अपने बेड रूम में आ गए।