24-11-2023, 10:51 PM
छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग
मुझे चुप देख के कम्मो ने टोंका, क्या सोच रही हो मेरे देवर के कपड़ों के बारे में , अरे दो चार बनियान नेकर ( टी शर्ट को वो बनयान और लोवर को नेकर कहती थी ) दो तीन पुराने सफ़ेद कुर्ते पाजामे रख दो,... आखिर होली में तो कपडे फटेंगे, ससुराल की होली है।
मैंने हामी भरी और कम्मो से वो छोटा सुटकेस उठाने को बोली , लेकिन तब तक कम्मो हंसते बोली ,
" अरे बनारस की वो भी गाँव की होली हैं, क्या पता , सलहज सब साडी पेटीकोट, उनकी सास सलहज की साडी पेटीकोट, ब्लाउज , ब्लाउज तुम्हारा तो होगा नहीं हाँ क्या पता उनकी सास का हो जाए, होली में तो ये सब न हो तो , गाँव की होली का,... "
और तब तक मेरी चमकी, रीतू भाभी ने लेडीज टेलर से जो बात की थी, और उस लेडीज टेलर ने जो इनकी जबरदस्त नाप जोख की थी, और रीतू भाभी ने दिलाया था , उस टेलर के यहाँ से सारे कपडे लाने के लिए,... मैं बड़ी जोर मुस्करायी ,
छोटी अटैची में ही हम दोनों के कपडे आ गए, और बल्कि जो लेडीज टेलर के यहाँ से लाने वाले थे उसके लिए भी जगह बच गयी।
और अब बाकी की पैकिंग शुरू हुयी , कम्मो के साथ काम जल्दी हो रहा था।
लेकिन मैं हूँ , कम्मो हो और अच्छी वाली बातें न हों और किसके बारे में , एक ही तो थी हम दोनों की प्यारी दुलारी ननदिया जो होली की शाम से इसी कमरे में अड्डा ज़माने वाली थी।
मुझे कुछ याद आया और मैं हलके हलके मुस्कराने लगी, और कम्मो भौजी पूछ बैठीं,
" अरे कौन उनका माल, और हम दोनों की ननदिया, जिस दिन मैं आयी थी उसके दो तीन बाद, अरे जिस रात यहीं छत पे जम के मैंने सब नंदों को गारी गायी थी, तौर से उस मस्त माल को, उसी रात, " मैंने कम्मो को बताया और जोड़ा, " बस उसी रात, तोहरे देवर को भी कविता का बहुत शौक है तो बस मैंने एक दोहा सुनाया,
छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग।
दीपति देह दुहूनु मिलि दिपति ताफता रंग.
( अभी बचपन की झलक छूटी ही नहीं, और शरीर में जवानी झलकने लगी। यों दोनों (अवस्थाओं) के मिलने से (नायिका के) अंगों की छटा धूपछाँह के समान (दुरंगी) चमकती है),
लेकिन भौजी तोहरे देवर भी कम उस्ताद नहीं है, मुस्कराते हुए उन्होंने अगला दोहा सुना दिया, ....
लाल अलौकिक लरिकई लखि लखि सखी सिहाति।
आज कान्हि मैं देखियत उर उकसौंहीं भाँति
( ऐ लाल! इसका विचित्र लड़कपन देख-देखकर सखियाँ ललचती हैं। आज-कल में ही (इसकी) छाती (कुछ) उभरी-सी दीख पड़ने लगी है।)
बस मुझे चिढ़ाने का मौका मिल गया, हँसते हुए मैं बोली, इसका मतलब तुम भी उसकी उभरती हुयी छातियां निहारते हो, हैं न साली मस्त माल, अरे बारात में गयी तो तेरे सारे सालों का मन ललचा रहा था, कबड्डी खेलने का।
बुरा नहीं माना उन्होंने पर मुस्करा के बोले ,जैसे मुझसे पुष्टि कर रहा हों,
" अभी छोटी नहीं है ? "
मुंह चढ़ा के मैं बोली, ... " अरे पूरे पौने पांच साल से नीचे से खून उगल रही है, हर महीने, बिना किसी महीने नागा किये। " फिर खिलखिला के मैंने जोड़ा,
" हाँ छोटी तो नहीं है, पर छोटा है, लेकिन एक बार गोदी में बैठा के थोड़ा तू मीजना मसलना रगड़ना उसका शुरू कर दोगे तो वो भी दोनों बढ़ जाएंगे। " लेकिन ननद तो थी नहीं तो उन्होंने उसकी भाभी का ही दबाना मसलना शुरू कर दिया,
मैं और कम्मो दोनों खिलखिलाते रहे और मेरे मन में अपनी उस प्यारी दुलारी ननद की सुरतिया घूमती रही, एकदम वय संधि पर खड़ी,
गुलाबी चम्पई चेहरा देखो तो लगता है जैसे अभी दूध के दांत नहीं टूटे हों, खिलखिलाती है तो लगता है खील फूट रही है, पर नज़र थोड़ी जैसे नीचे आती है उभरते उभारों पर ( अपनी क्लास वालियों से २१ ही थे ) तो बस लगता है एकदम लेने लायक हो गयी है.
कम्मो तो आँखों में झलकती छलकती मन की भाषा पढ़ लेती थी, बोली,... " अरे ऐसी उमर में ही तो लौंडे ललचाना शुरू कर देते हैं, भौंरों की भीड़ लगने लगती है. "
बात कम्मो की एकदम सही थी, और कम्मो फिर अपने रंग में आ गयी, ...
" और जानत हो, एहि चूँचिया उठान वाली जउन उमरिया हो, ओहि में कउनो लौंडिया क जबरदस्त चुदाई होय जाए न , थोड़ा जबरदस्ती, थोड़ा मनाय पटाय के , बस देखा कुछै दिन में खुदे लौंड़ा खोजे लागी। जउने दिन लंड न खायी, नींद न आयी,...छिनार तो छोड़ा रण्डियन क कान कटाय देई , और चूँची तो हमरे तोहरे ई ननदिया क देखा कुछै दिन में ३० बी से ३२ सी हो जायेगी। "
मुझे चुप देख के कम्मो ने टोंका, क्या सोच रही हो मेरे देवर के कपड़ों के बारे में , अरे दो चार बनियान नेकर ( टी शर्ट को वो बनयान और लोवर को नेकर कहती थी ) दो तीन पुराने सफ़ेद कुर्ते पाजामे रख दो,... आखिर होली में तो कपडे फटेंगे, ससुराल की होली है।
मैंने हामी भरी और कम्मो से वो छोटा सुटकेस उठाने को बोली , लेकिन तब तक कम्मो हंसते बोली ,
" अरे बनारस की वो भी गाँव की होली हैं, क्या पता , सलहज सब साडी पेटीकोट, उनकी सास सलहज की साडी पेटीकोट, ब्लाउज , ब्लाउज तुम्हारा तो होगा नहीं हाँ क्या पता उनकी सास का हो जाए, होली में तो ये सब न हो तो , गाँव की होली का,... "
और तब तक मेरी चमकी, रीतू भाभी ने लेडीज टेलर से जो बात की थी, और उस लेडीज टेलर ने जो इनकी जबरदस्त नाप जोख की थी, और रीतू भाभी ने दिलाया था , उस टेलर के यहाँ से सारे कपडे लाने के लिए,... मैं बड़ी जोर मुस्करायी ,
छोटी अटैची में ही हम दोनों के कपडे आ गए, और बल्कि जो लेडीज टेलर के यहाँ से लाने वाले थे उसके लिए भी जगह बच गयी।
और अब बाकी की पैकिंग शुरू हुयी , कम्मो के साथ काम जल्दी हो रहा था।
लेकिन मैं हूँ , कम्मो हो और अच्छी वाली बातें न हों और किसके बारे में , एक ही तो थी हम दोनों की प्यारी दुलारी ननदिया जो होली की शाम से इसी कमरे में अड्डा ज़माने वाली थी।
मुझे कुछ याद आया और मैं हलके हलके मुस्कराने लगी, और कम्मो भौजी पूछ बैठीं,
" अरे कौन उनका माल, और हम दोनों की ननदिया, जिस दिन मैं आयी थी उसके दो तीन बाद, अरे जिस रात यहीं छत पे जम के मैंने सब नंदों को गारी गायी थी, तौर से उस मस्त माल को, उसी रात, " मैंने कम्मो को बताया और जोड़ा, " बस उसी रात, तोहरे देवर को भी कविता का बहुत शौक है तो बस मैंने एक दोहा सुनाया,
छुटी न सिसुता की झलक झलक्यौ जोबनु अंग।
दीपति देह दुहूनु मिलि दिपति ताफता रंग.
( अभी बचपन की झलक छूटी ही नहीं, और शरीर में जवानी झलकने लगी। यों दोनों (अवस्थाओं) के मिलने से (नायिका के) अंगों की छटा धूपछाँह के समान (दुरंगी) चमकती है),
लेकिन भौजी तोहरे देवर भी कम उस्ताद नहीं है, मुस्कराते हुए उन्होंने अगला दोहा सुना दिया, ....
लाल अलौकिक लरिकई लखि लखि सखी सिहाति।
आज कान्हि मैं देखियत उर उकसौंहीं भाँति
( ऐ लाल! इसका विचित्र लड़कपन देख-देखकर सखियाँ ललचती हैं। आज-कल में ही (इसकी) छाती (कुछ) उभरी-सी दीख पड़ने लगी है।)
बस मुझे चिढ़ाने का मौका मिल गया, हँसते हुए मैं बोली, इसका मतलब तुम भी उसकी उभरती हुयी छातियां निहारते हो, हैं न साली मस्त माल, अरे बारात में गयी तो तेरे सारे सालों का मन ललचा रहा था, कबड्डी खेलने का।
बुरा नहीं माना उन्होंने पर मुस्करा के बोले ,जैसे मुझसे पुष्टि कर रहा हों,
" अभी छोटी नहीं है ? "
मुंह चढ़ा के मैं बोली, ... " अरे पूरे पौने पांच साल से नीचे से खून उगल रही है, हर महीने, बिना किसी महीने नागा किये। " फिर खिलखिला के मैंने जोड़ा,
" हाँ छोटी तो नहीं है, पर छोटा है, लेकिन एक बार गोदी में बैठा के थोड़ा तू मीजना मसलना रगड़ना उसका शुरू कर दोगे तो वो भी दोनों बढ़ जाएंगे। " लेकिन ननद तो थी नहीं तो उन्होंने उसकी भाभी का ही दबाना मसलना शुरू कर दिया,
मैं और कम्मो दोनों खिलखिलाते रहे और मेरे मन में अपनी उस प्यारी दुलारी ननद की सुरतिया घूमती रही, एकदम वय संधि पर खड़ी,
गुलाबी चम्पई चेहरा देखो तो लगता है जैसे अभी दूध के दांत नहीं टूटे हों, खिलखिलाती है तो लगता है खील फूट रही है, पर नज़र थोड़ी जैसे नीचे आती है उभरते उभारों पर ( अपनी क्लास वालियों से २१ ही थे ) तो बस लगता है एकदम लेने लायक हो गयी है.
कम्मो तो आँखों में झलकती छलकती मन की भाषा पढ़ लेती थी, बोली,... " अरे ऐसी उमर में ही तो लौंडे ललचाना शुरू कर देते हैं, भौंरों की भीड़ लगने लगती है. "
बात कम्मो की एकदम सही थी, और कम्मो फिर अपने रंग में आ गयी, ...
" और जानत हो, एहि चूँचिया उठान वाली जउन उमरिया हो, ओहि में कउनो लौंडिया क जबरदस्त चुदाई होय जाए न , थोड़ा जबरदस्ती, थोड़ा मनाय पटाय के , बस देखा कुछै दिन में खुदे लौंड़ा खोजे लागी। जउने दिन लंड न खायी, नींद न आयी,...छिनार तो छोड़ा रण्डियन क कान कटाय देई , और चूँची तो हमरे तोहरे ई ननदिया क देखा कुछै दिन में ३० बी से ३२ सी हो जायेगी। "