22-11-2023, 09:18 AM
बीते हुए कल
और इनके साथ भी, ...
वो तो बाद में समझ में आया, जो कुछ शादी के बाद हो रहा था, ... इन्ही मेरी जेठानी जी का खेल था, रात भर तो ये एकदम लिपटे चिपटे, कोई दिन नागा नहीं जाता था , दो तीन बार तो कम से कम, ... लेकिन जहाँ मैं नीचे आयी बस एकदम से, ... हाँ जब कोई नहीं होता था तो न मैं उन्हें ललचाने से चूकती थी, न वो चोरी छिपे, तांक झाँक से, बदमाशी में तो बदमाशों के सरदार, पहले दिन से ही मैं समझ गयी थी और लालची नंबर वन भी,...
दूज्यौ खरै समीप कौ लेत मानि मन मोदु।
होत दुहुन के दृगनु हीं बतरसु हँसी-विनोदु।
बस वही बिहारी के दोहे वाली बात, आँखों ही आँखों में इशारे होते बात चीत होती, मैं उन्हें चिढ़ाती ललचाती, वो मुझे मनाते, निहोरा करते,...
लेकिन जेठानी के पैरों की आहट और वो एकदम पूरी तरह,... चोर सिक्युरिटी का खेल,
और उनके या घर के किसी के सामने होने पर,... उनका मामला तो एकदम, न तुम हमें जानों न हम तुम्हे जाने वाला हो जाता
और ये मुझे बहुत खराब लगता, बहुत खराब, ये ही तो थे जिनसे मैं रूठ सकती थी, मन की कह सकती थी और ये भी,
एक दिन मैंने सुन लिया की जेठानी इनसे कह रही थीं, ... और कितने गंदे ढंग से,....
" रात भर तो चढ़े चिपके रहते हो, और दिन में भी, ... कुछ तो लाज शरम,... तेरी भैया की भी शादी हुयी थी,... मैं भी नयी नयी बियाह के इसी घर में आयी थी, तुम दिन में भी चक्कर काटते रहते हो जैसे कभी, ....पता नहीं पहले दिन से तुझे क्या घुट्टी पिला दी है,...
अरे मैं , जब सब लोग सो जाते थे , तब वो भी दबे पाँव तेरे भैया के पास,... और सुबह सबके उठने के पहले,... मैं कमरे से बाहर,...
और दिन में मजाल क्या, जो कहीं आस पास, लगता है नोखे की तुम्हारी सादी हुयी है,... अरे अपना नहीं घर की सोचो, घर परिवार की इज्जत, क्या कहेंगे लोग की फलाने का,... "
बाद में मेरे समझ में आया इनके ऊपर जो 'लोग क्या कहेंगे'वाला डर था, उसको चढाने में मेरी जेठानी का सबसे बड़ा हाथ था
और एक दिन तो उन्होंने क्या क्या नहीं कहा इन्हे,
मैं वहां नहीं थी, किचेन में प्याज काट रही थी,... लेकिन बाद में मुझे समझ में आया, जेठानी जी समझा अपने देवर को रही थीं लेकिन निशाने पर मैं ही थी, उन्हें इस बात का साफ अंदाज था की किचेन में मैं सुन रही थी सब कुछ,...
" मान लो उस को सरम लिहाज नहीं है, वो तो बाहर से आयी है, जो महतारी ने सिखाया होगा, मैं तो दो दिन में समझ गयी थी थी, कोई गुन ढंग संस्कार, ये सब पैसा पढाई से नहीं आता, संस्कार बचपन से सीखता है,... लेकिन तुम तो,... एकदम महरानी अपने आँचर में तोहके बाँध के,... दिन भर जब देखो तब ओहि के चक्कर,... अरे थोड़ा घर से बाहर जाओ, अपने दोस्तों से मिलो, काम धाम, ये क्या जब से ये आयी है घर घिस्सू, जोरू के आगे पीछे, देखती माता जी भी है , लेकिन वो बोलती है नहीं , बुरा उनको भी बहुत लगता है,... "
पहली बार प्याज काटते हुए मेरी आँखों से गंगा जमुना बह रही थी,
गलती मेरी ही थी, हम दोनों सोच रहे थे कोई नहीं है. फर्स्ट नाइट से मुझे पता चल गया था ये लड़का मेरे चोली के फूलों के पीछे पागल है, पागल मतलब असली वाला पागल, दीवाना,... वो बरामदे के दूसरे कोने से मुझे देख रहे थे,... मैंने इधर उधर देखा की कोई नहीं है, बस मैंने ज़रा सा आँचल ढलका दिया,.... चोली कट ब्लाउज,... उभार क्लीवेज,... पल भर भी नहीं,... बेचारे की हालत खराब, फिर मैंने होंठों पर जीभ फिरा दी, और अपने खुले क्लीवेज की ओर हलके से देख लिया
और वहां तम्बू तन गया.
मैं जोर से मुस्करा रही थी, लेकिन तब तक जेठानी जी के पैरों की आवाज सुनाई पड़ी और मैं किचेन में और वो कोई किताब लेके बैठ गए,...
पर जेठानी की निगाह से कुछ बचता था क्या,...
और वो चालू हो गयीं और बात उन की कहीं से शुरू हो, मेरे मम्मी मेरे परिवार पर उन का नजला गिरता, शराबी कबाबी, सारी नैतिकता जीभ से शुरू होकर जीभ पर ख़तम हो जाती थी, और कई बार मेरी सास भी चपेट में आ जाती थीं,
" मैंने सास से दसों बार मना किया था, लेकिन कोई मेरा सुने तब न, अरे अपने से नीचे घर की लड़की लानी चाहिए, भले ही थोड़ी गरीब हो, दब के रहेगी, कितनी तो मेरी जान पहचान की लेकिन,... वो भी न वो शकल देख के मोहा गयीं। .. अब गुन लक्षण,
उन की रेडियो मिर्ची चालू थी और मेरी आँखों से गंगा जमुना, प्याज काटने के साथ साथ
तभी मेरी सास आ गयीं, और उन्होंने मुझे हड़का लिया, मेरी आँखों की नमी उनसे नहीं छुपा पायी मैं,
" क्या हुआ " उन्होंने पूछ लिया
" कुछ नहीं, वो प्याज काट रही थी न तो मेरी आँख में हर बार,... "
मैंने झूठ बोलने की कोशिश की पर सच उनको भी पता चल गया और मुझे भी की , उन्हें सब समझ में आ गया,
मुस्करा के वो बोलीं
" तो मत काट न, जो मेरी चाँद सी दुल्हन की आँख गीली करे, ... ले मैं काट देती हूँ, मुझे कुछ नहीं होगा तू ज़रा सा जा के आराम कर, सुबह से चूल्हे में घुसी रहती है. "
कुछ दिन बाद मेरी समझ में आया सासू जी की मजबूरी, .... उन्हें रहना तो जेठानी के ही साथ था, जेठ जी भी नम्बरी चुप्पे, जेठानी के सामने उनका भी मुंह नहीं खुलता था, ... पता नहीं क्या जॉब था उनका दो चार दिन घर में रहते, फिर हफ्ते दस दिन बाहर ,...
कोई दिन नांगा नहीं जाता था ,...
तब तो कित्ती ही बार ,और बजाय सम्हलाने के ,मनाने के , नमक छिड़कने वालों की कमी नहीं होती थी।
एक बार ऐसे ही जेठानी जी की किसी बात पर मेरी आँख गीली थी ,मेरे मायके वालों को , और मायके में था कौन मम्मी के सिवाय ,... शराबी कबाबी , ,..संस्कार ,...
और गुड्डी आ गयी , बजाय कुछ पूछने के और ,...
" क्यों भाभी , मायके के किसी यार की याद आ गयी थी?"
और इनके साथ भी, ...
वो तो बाद में समझ में आया, जो कुछ शादी के बाद हो रहा था, ... इन्ही मेरी जेठानी जी का खेल था, रात भर तो ये एकदम लिपटे चिपटे, कोई दिन नागा नहीं जाता था , दो तीन बार तो कम से कम, ... लेकिन जहाँ मैं नीचे आयी बस एकदम से, ... हाँ जब कोई नहीं होता था तो न मैं उन्हें ललचाने से चूकती थी, न वो चोरी छिपे, तांक झाँक से, बदमाशी में तो बदमाशों के सरदार, पहले दिन से ही मैं समझ गयी थी और लालची नंबर वन भी,...
दूज्यौ खरै समीप कौ लेत मानि मन मोदु।
होत दुहुन के दृगनु हीं बतरसु हँसी-विनोदु।
बस वही बिहारी के दोहे वाली बात, आँखों ही आँखों में इशारे होते बात चीत होती, मैं उन्हें चिढ़ाती ललचाती, वो मुझे मनाते, निहोरा करते,...
लेकिन जेठानी के पैरों की आहट और वो एकदम पूरी तरह,... चोर सिक्युरिटी का खेल,
और उनके या घर के किसी के सामने होने पर,... उनका मामला तो एकदम, न तुम हमें जानों न हम तुम्हे जाने वाला हो जाता
और ये मुझे बहुत खराब लगता, बहुत खराब, ये ही तो थे जिनसे मैं रूठ सकती थी, मन की कह सकती थी और ये भी,
एक दिन मैंने सुन लिया की जेठानी इनसे कह रही थीं, ... और कितने गंदे ढंग से,....
" रात भर तो चढ़े चिपके रहते हो, और दिन में भी, ... कुछ तो लाज शरम,... तेरी भैया की भी शादी हुयी थी,... मैं भी नयी नयी बियाह के इसी घर में आयी थी, तुम दिन में भी चक्कर काटते रहते हो जैसे कभी, ....पता नहीं पहले दिन से तुझे क्या घुट्टी पिला दी है,...
अरे मैं , जब सब लोग सो जाते थे , तब वो भी दबे पाँव तेरे भैया के पास,... और सुबह सबके उठने के पहले,... मैं कमरे से बाहर,...
और दिन में मजाल क्या, जो कहीं आस पास, लगता है नोखे की तुम्हारी सादी हुयी है,... अरे अपना नहीं घर की सोचो, घर परिवार की इज्जत, क्या कहेंगे लोग की फलाने का,... "
बाद में मेरे समझ में आया इनके ऊपर जो 'लोग क्या कहेंगे'वाला डर था, उसको चढाने में मेरी जेठानी का सबसे बड़ा हाथ था
और एक दिन तो उन्होंने क्या क्या नहीं कहा इन्हे,
मैं वहां नहीं थी, किचेन में प्याज काट रही थी,... लेकिन बाद में मुझे समझ में आया, जेठानी जी समझा अपने देवर को रही थीं लेकिन निशाने पर मैं ही थी, उन्हें इस बात का साफ अंदाज था की किचेन में मैं सुन रही थी सब कुछ,...
" मान लो उस को सरम लिहाज नहीं है, वो तो बाहर से आयी है, जो महतारी ने सिखाया होगा, मैं तो दो दिन में समझ गयी थी थी, कोई गुन ढंग संस्कार, ये सब पैसा पढाई से नहीं आता, संस्कार बचपन से सीखता है,... लेकिन तुम तो,... एकदम महरानी अपने आँचर में तोहके बाँध के,... दिन भर जब देखो तब ओहि के चक्कर,... अरे थोड़ा घर से बाहर जाओ, अपने दोस्तों से मिलो, काम धाम, ये क्या जब से ये आयी है घर घिस्सू, जोरू के आगे पीछे, देखती माता जी भी है , लेकिन वो बोलती है नहीं , बुरा उनको भी बहुत लगता है,... "
पहली बार प्याज काटते हुए मेरी आँखों से गंगा जमुना बह रही थी,
गलती मेरी ही थी, हम दोनों सोच रहे थे कोई नहीं है. फर्स्ट नाइट से मुझे पता चल गया था ये लड़का मेरे चोली के फूलों के पीछे पागल है, पागल मतलब असली वाला पागल, दीवाना,... वो बरामदे के दूसरे कोने से मुझे देख रहे थे,... मैंने इधर उधर देखा की कोई नहीं है, बस मैंने ज़रा सा आँचल ढलका दिया,.... चोली कट ब्लाउज,... उभार क्लीवेज,... पल भर भी नहीं,... बेचारे की हालत खराब, फिर मैंने होंठों पर जीभ फिरा दी, और अपने खुले क्लीवेज की ओर हलके से देख लिया
और वहां तम्बू तन गया.
मैं जोर से मुस्करा रही थी, लेकिन तब तक जेठानी जी के पैरों की आवाज सुनाई पड़ी और मैं किचेन में और वो कोई किताब लेके बैठ गए,...
पर जेठानी की निगाह से कुछ बचता था क्या,...
और वो चालू हो गयीं और बात उन की कहीं से शुरू हो, मेरे मम्मी मेरे परिवार पर उन का नजला गिरता, शराबी कबाबी, सारी नैतिकता जीभ से शुरू होकर जीभ पर ख़तम हो जाती थी, और कई बार मेरी सास भी चपेट में आ जाती थीं,
" मैंने सास से दसों बार मना किया था, लेकिन कोई मेरा सुने तब न, अरे अपने से नीचे घर की लड़की लानी चाहिए, भले ही थोड़ी गरीब हो, दब के रहेगी, कितनी तो मेरी जान पहचान की लेकिन,... वो भी न वो शकल देख के मोहा गयीं। .. अब गुन लक्षण,
उन की रेडियो मिर्ची चालू थी और मेरी आँखों से गंगा जमुना, प्याज काटने के साथ साथ
तभी मेरी सास आ गयीं, और उन्होंने मुझे हड़का लिया, मेरी आँखों की नमी उनसे नहीं छुपा पायी मैं,
" क्या हुआ " उन्होंने पूछ लिया
" कुछ नहीं, वो प्याज काट रही थी न तो मेरी आँख में हर बार,... "
मैंने झूठ बोलने की कोशिश की पर सच उनको भी पता चल गया और मुझे भी की , उन्हें सब समझ में आ गया,
मुस्करा के वो बोलीं
" तो मत काट न, जो मेरी चाँद सी दुल्हन की आँख गीली करे, ... ले मैं काट देती हूँ, मुझे कुछ नहीं होगा तू ज़रा सा जा के आराम कर, सुबह से चूल्हे में घुसी रहती है. "
कुछ दिन बाद मेरी समझ में आया सासू जी की मजबूरी, .... उन्हें रहना तो जेठानी के ही साथ था, जेठ जी भी नम्बरी चुप्पे, जेठानी के सामने उनका भी मुंह नहीं खुलता था, ... पता नहीं क्या जॉब था उनका दो चार दिन घर में रहते, फिर हफ्ते दस दिन बाहर ,...
कोई दिन नांगा नहीं जाता था ,...
तब तो कित्ती ही बार ,और बजाय सम्हलाने के ,मनाने के , नमक छिड़कने वालों की कमी नहीं होती थी।
एक बार ऐसे ही जेठानी जी की किसी बात पर मेरी आँख गीली थी ,मेरे मायके वालों को , और मायके में था कौन मम्मी के सिवाय ,... शराबी कबाबी , ,..संस्कार ,...
और गुड्डी आ गयी , बजाय कुछ पूछने के और ,...
" क्यों भाभी , मायके के किसी यार की याद आ गयी थी?"