03-11-2023, 08:02 AM
(This post was last modified: 03-11-2023, 08:04 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
रतजगे की कहानी
" क्यों कल रात फूफा जी ने सोने नहीं दिया था क्या, ? "
" नहीं मैंने तेरी बुआ सास को सोने नहीं दिया,... " हँसते हुए मेरी सास बोलीं,
" अरे तेरी सास ने कल तेरी बुआ सास का नाड़ा खोल दिया था , रतजगे में , " जेठानी ने मुस्कराते हुए बतया लेकिन मैंने अपनी सास का ही साथ दिया,
" ठीक तो किया , इस घर की सब ननदे, ... अपने भैया से शलवार पेटीकोट का नाड़ा खुलवाती रहती हैं तो कभी कभार भौजाई ने खोल दिया या भौजाई के भाई ने खोल दिया तो कौन सी बड़ी बात हो गयी। "
" देखा मैं कह रही थी न मेरी बहू मेरा ही साथ देगी, बहू तुम देख समझ के एकदम अच्छी वाली देवरानी लायी हो "
सास ने एक ही वाक्य में मेरी और जेठानी दोनों की तारीफ़ कर दी,
मैं मुस्करा रही थी पर सास ने रतजगे की कहानी आगे बतानी शुरू की कि जेठानी जी ने क्या कारनामा किया , और उन्ही से बोली,
" चल मैंने अपनी ननद का नाड़ा खोल के , पेटीकोट उठा के उन की बुलबुल को जरा देर हवा खिला दी, लेकिन तूने तो अपनी ननद की बिल में ऊँगली डाल के गचागच, गचागच ,... "
मेरी जेठानी पर जब हंसने का दौर पड़ता था तो रुकता नहीं था, और वही हुआ जो हंसी रुकी तो वो बोलीं,
" ठीक तो किया। अपने नन्दोई का काम आसान कर रही थी, और वैसलीन का खरचा भी बचेगा, सीधे सटाया घुसाया और सटाक से अंदर , गप्प से घोंट लेगी। फिर मैंने ऊँगली से पहले टो लिया था, झिल्ली कब की फट चुकी थी , तो फिर मैं क्यों छोड़ती। पता नहीं अपने किस भाई से फड़वा लिया है मेरी ननद ने "
" अरे दी , तो क्या गलत किया, इस शहर की सारी ननदें यही करती हैं , चलिए आप लोग फ्रेश हो जाइये मैं चाय बनाती हूँ। "
चाय बन रही थी और मैं अपनी ख़ास ननद के बारे में सोच रही थी, कल की रात के बारे में नहीं आने वाली दिनों के बार में, कल से उसकी चिड़िया उसकी उड़ने लगी थी और क्या चिड़िया उड़ी थी , सुहागरात तो छोड़िये हनीमून में भी नहीं होता होगा , पहले दिन ही छह बार , दो बार शाम को और चार बार रात को , ... हर तरह का आसान, लिटा के निहुरा के खड़ी कर के,... इसलिए अब फिर से उसके शरमाने लजाने के चांसेज तो कम ही हैं।
रतजगे की बात
चाय में चीनी छोड़ते हुए मैं सोच रही थी , और फिर उसकी तीन घंटे की एडिटेड वीडियो और सैकड़ॉ स्टिल्स, सब मैं कम्मो को दे जाउंगी , अगर नाड़ा खोलने में ज़रा भी देर की , किसी दिन कम्मो के बुलाने से न आयी तो सब की सब,... और फिर जो कम्मो पठान के लौंडों की बात हो रही थी , वो तो खुद ही मार मार के चूतड़ लाल कर देंगे,... लेकिन फिर मेरे दिमाग में आया, कल रात की बात और थी , जेठानी और सासू जी घर पे नहीं थी। फिर कल से तो जेठ जी भी आएंगे , जेठ जेठानी का कमरा भी कम्मो के कमरे की ओर है, कुछ भी चीख पुकार होगी तो सुनाई देगी।
.
चाय में उबाल आ गया था मैं चाय छान ही रही थी की मेरी जेठानी और सासू जी आ गयीं और वहीँ रसोई में गपाष्टक शुरू हो गयी,
वही रतजगे की बात
उकसाया मैंने और बीच बीच में जेठानी जी भी बात आगे बढ़ा रही थीं , लेकिन किस्सा पूरा सासू जी ने ही सुनाया, बिना सेंसर किये अच्छे वाले शब्दों के साथ,
मैं गाँव की लड़की, कितने रतजगे देखे थे, कभी दुलहा बनती थी कभी दुलहन, ...
शुरुआत बुआ जी ने ही की थी अच्छा मौका था उनके पास अपनी भौजाई की रगड़ाई करने का, कुत्ता , गदहा, घोड़ा कोई नहीं बचा जिसे उन्होंने मेरे सासू पर नहीं चढ़ाया यहाँ तक की इनके सारे मामा लोगों का नाम ले लेकर, हर गारी में,
ननदें थी भी बहुत ज्यादा, जेठानी जी ने जोड़ा,
लेकिन मेरी सासू जी से पार पाना आसान है क्या, उन्होंने इशारे इशारे में बुआ जी की मोहल्ले की दो तीन बहुओं को पटा लिया, बस नाच शुरू हुआ और मेरी सास खड़ी हुयी तो उन्होंने खींच के बुआ जी को भी अपने साथ, ' अरे बन्नी की मम्मी तो सबसे बड़ी रंडी है उसके नाचे बिना,... " नाचते हुए उन्होंने अपने दोनों हाथों से बुआ जी के दोनों हाथों को कस के पकड़ रखा था. आँखों से उन्होंने हल्का सा इशारा किया तो दोनों बहुओं ने बस मिल के पीछे से बुआ जी की साड़ी साया दोनों कमर तक, बेचारी बुआ जी के दोनों हाथ तो जकड़े हुए थे , लेकिन मेरी सास इतने में कहाँ मानने वाली थीं , उन्होंने एक हाथ से अपनी ननद के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और वो सरसरा के नीचे गिर गया. एक बहु उसे उठाकर चम्पत। बुआ जी को गुदगुदी भी बहुत लगती थी, साड़ी कमर तक, और पूरे दस मिनट सास जी ने उन्हें चक्कर लगवाया, अरे पूरी दुनिया देख तो ले उस बुलबुल को जहाँ से ये बन्नी निकली है , अरे चलो फैला के दिखा देती हूँ , अंदर अभी तक गुलाबी है ,....
और उसके बाद तो एकदम फ्री फॉर ऑल, कोई ननद नहीं बची जिसकी स्कर्ट , शलवार, साया न खुला हो, एक भाभी खोलती और दूसरी लेकर गायब , जिससे बेचारी उघारे , जबतक अपने हाथ से खोल के भाभियों को न दिखाए , भाभियाँ मन भर ऊँगली न करें वापस नहीं मिलता, सुबह भोर होने तक चला, खूब मस्ती ,... इसलिए रात में वो दोनों लग ज़रा भी नहीं सोयीं , और सुबह तो यहाँ के लिए चलना ही था।
चाय पीते पीते हम तीनों बरामदे में आ गए थे,
जेठानी जी का फोन घनघनाया, और मैंने उचक कर देख लिया, जेठ जी का था.
" क्यों कल रात फूफा जी ने सोने नहीं दिया था क्या, ? "
" नहीं मैंने तेरी बुआ सास को सोने नहीं दिया,... " हँसते हुए मेरी सास बोलीं,
" अरे तेरी सास ने कल तेरी बुआ सास का नाड़ा खोल दिया था , रतजगे में , " जेठानी ने मुस्कराते हुए बतया लेकिन मैंने अपनी सास का ही साथ दिया,
" ठीक तो किया , इस घर की सब ननदे, ... अपने भैया से शलवार पेटीकोट का नाड़ा खुलवाती रहती हैं तो कभी कभार भौजाई ने खोल दिया या भौजाई के भाई ने खोल दिया तो कौन सी बड़ी बात हो गयी। "
" देखा मैं कह रही थी न मेरी बहू मेरा ही साथ देगी, बहू तुम देख समझ के एकदम अच्छी वाली देवरानी लायी हो "
सास ने एक ही वाक्य में मेरी और जेठानी दोनों की तारीफ़ कर दी,
मैं मुस्करा रही थी पर सास ने रतजगे की कहानी आगे बतानी शुरू की कि जेठानी जी ने क्या कारनामा किया , और उन्ही से बोली,
" चल मैंने अपनी ननद का नाड़ा खोल के , पेटीकोट उठा के उन की बुलबुल को जरा देर हवा खिला दी, लेकिन तूने तो अपनी ननद की बिल में ऊँगली डाल के गचागच, गचागच ,... "
मेरी जेठानी पर जब हंसने का दौर पड़ता था तो रुकता नहीं था, और वही हुआ जो हंसी रुकी तो वो बोलीं,
" ठीक तो किया। अपने नन्दोई का काम आसान कर रही थी, और वैसलीन का खरचा भी बचेगा, सीधे सटाया घुसाया और सटाक से अंदर , गप्प से घोंट लेगी। फिर मैंने ऊँगली से पहले टो लिया था, झिल्ली कब की फट चुकी थी , तो फिर मैं क्यों छोड़ती। पता नहीं अपने किस भाई से फड़वा लिया है मेरी ननद ने "
" अरे दी , तो क्या गलत किया, इस शहर की सारी ननदें यही करती हैं , चलिए आप लोग फ्रेश हो जाइये मैं चाय बनाती हूँ। "
चाय बन रही थी और मैं अपनी ख़ास ननद के बारे में सोच रही थी, कल की रात के बारे में नहीं आने वाली दिनों के बार में, कल से उसकी चिड़िया उसकी उड़ने लगी थी और क्या चिड़िया उड़ी थी , सुहागरात तो छोड़िये हनीमून में भी नहीं होता होगा , पहले दिन ही छह बार , दो बार शाम को और चार बार रात को , ... हर तरह का आसान, लिटा के निहुरा के खड़ी कर के,... इसलिए अब फिर से उसके शरमाने लजाने के चांसेज तो कम ही हैं।
रतजगे की बात
चाय में चीनी छोड़ते हुए मैं सोच रही थी , और फिर उसकी तीन घंटे की एडिटेड वीडियो और सैकड़ॉ स्टिल्स, सब मैं कम्मो को दे जाउंगी , अगर नाड़ा खोलने में ज़रा भी देर की , किसी दिन कम्मो के बुलाने से न आयी तो सब की सब,... और फिर जो कम्मो पठान के लौंडों की बात हो रही थी , वो तो खुद ही मार मार के चूतड़ लाल कर देंगे,... लेकिन फिर मेरे दिमाग में आया, कल रात की बात और थी , जेठानी और सासू जी घर पे नहीं थी। फिर कल से तो जेठ जी भी आएंगे , जेठ जेठानी का कमरा भी कम्मो के कमरे की ओर है, कुछ भी चीख पुकार होगी तो सुनाई देगी।
.
चाय में उबाल आ गया था मैं चाय छान ही रही थी की मेरी जेठानी और सासू जी आ गयीं और वहीँ रसोई में गपाष्टक शुरू हो गयी,
वही रतजगे की बात
उकसाया मैंने और बीच बीच में जेठानी जी भी बात आगे बढ़ा रही थीं , लेकिन किस्सा पूरा सासू जी ने ही सुनाया, बिना सेंसर किये अच्छे वाले शब्दों के साथ,
मैं गाँव की लड़की, कितने रतजगे देखे थे, कभी दुलहा बनती थी कभी दुलहन, ...
शुरुआत बुआ जी ने ही की थी अच्छा मौका था उनके पास अपनी भौजाई की रगड़ाई करने का, कुत्ता , गदहा, घोड़ा कोई नहीं बचा जिसे उन्होंने मेरे सासू पर नहीं चढ़ाया यहाँ तक की इनके सारे मामा लोगों का नाम ले लेकर, हर गारी में,
ननदें थी भी बहुत ज्यादा, जेठानी जी ने जोड़ा,
लेकिन मेरी सासू जी से पार पाना आसान है क्या, उन्होंने इशारे इशारे में बुआ जी की मोहल्ले की दो तीन बहुओं को पटा लिया, बस नाच शुरू हुआ और मेरी सास खड़ी हुयी तो उन्होंने खींच के बुआ जी को भी अपने साथ, ' अरे बन्नी की मम्मी तो सबसे बड़ी रंडी है उसके नाचे बिना,... " नाचते हुए उन्होंने अपने दोनों हाथों से बुआ जी के दोनों हाथों को कस के पकड़ रखा था. आँखों से उन्होंने हल्का सा इशारा किया तो दोनों बहुओं ने बस मिल के पीछे से बुआ जी की साड़ी साया दोनों कमर तक, बेचारी बुआ जी के दोनों हाथ तो जकड़े हुए थे , लेकिन मेरी सास इतने में कहाँ मानने वाली थीं , उन्होंने एक हाथ से अपनी ननद के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और वो सरसरा के नीचे गिर गया. एक बहु उसे उठाकर चम्पत। बुआ जी को गुदगुदी भी बहुत लगती थी, साड़ी कमर तक, और पूरे दस मिनट सास जी ने उन्हें चक्कर लगवाया, अरे पूरी दुनिया देख तो ले उस बुलबुल को जहाँ से ये बन्नी निकली है , अरे चलो फैला के दिखा देती हूँ , अंदर अभी तक गुलाबी है ,....
और उसके बाद तो एकदम फ्री फॉर ऑल, कोई ननद नहीं बची जिसकी स्कर्ट , शलवार, साया न खुला हो, एक भाभी खोलती और दूसरी लेकर गायब , जिससे बेचारी उघारे , जबतक अपने हाथ से खोल के भाभियों को न दिखाए , भाभियाँ मन भर ऊँगली न करें वापस नहीं मिलता, सुबह भोर होने तक चला, खूब मस्ती ,... इसलिए रात में वो दोनों लग ज़रा भी नहीं सोयीं , और सुबह तो यहाँ के लिए चलना ही था।
चाय पीते पीते हम तीनों बरामदे में आ गए थे,
जेठानी जी का फोन घनघनाया, और मैंने उचक कर देख लिया, जेठ जी का था.