21-10-2023, 12:56 PM
नीना तब हंस पड़ी और बोली, "अनिल तुम कोई चिंता मत करो। जो हुआ इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। मुझे भी उस हालात में ड्राइंग रूम में नहीं आना चाहिए था। तुम्हारी जगह कोई और भी तो हो सकता था। तब तो और भी मुसीबत हो जाती। मैं राज को कुछ नहीं बताऊंगी। मैं चिल्लाने के लिए शर्मिंदा हूँ। तुम बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूँ।“ यह कह कर नीना रसोई में से चाय बना कर ले आयी।
अनिल को चाय देते हुए नीना ने अनिल से कहा, “माफ़ी तो मुझे भी तुमसे मांगनी है। मैंने तुम्हारी गिफ्ट को नकार दिया था उसके लिए प्लीज मुझे माफ़ कर देना। मैं तुम्हें गलत समझ रही थी। राज ने मुझे बताया की तुम वह गिफ्ट उसे पूछ कर ही मुझे दे रहे थे।“
फिर नीना ने उसे शरारत भरे लहजे में कहा, "पर इससे तो तुम्हे बहुत नुक्सान होगा, क्योंकि अब मुझे न सिर्फ वह गिफ्ट चाहिए, मुझे और भी गिफ्ट चाहिए। अगर मेरी मांगे बढ़ती गयी तो मना मत करना।“
तब अनिल ने भी हंसकर कहा, "भाभीजी आपके लिए तो जान हाजिर है। "
नीना ने पलट कर जवाब दिया, "उसे तो अनीता को ही देना। मुझे तो सिर्फ गिफ्ट चाहिए "
उसके बाद तो जैसे अनिल की चांदी हो गयी। इसके बाद नीना अनिल से कोई औपचारिकता नहीं रखती थी। जब भी अनिल आता तो नीना ख़ास उसे बात करने ड्राइंग रूम में उसके पास आती और उसके साथ भी बैठ जाती थी। कई बार नीना अनिल को रसोई में भी बुला लेती और दोनों इधर उधर की बातें करते। मेरे सामने भी नीना अब अनिल से शर्माती नहीं थी। कई बार मैंने देखा तो वह अनिल के कोई जोक पर अनिल का हाथ पकड़ कर हंसती थी। परंतु उन के बिच कोई जातीयता वाली बात नहीं दिख रही थी। अब जब वह घर आता तो उसकी आव भगत होने लगी। वह मुन्नू के साथ खेलता और उसको कभी चॉकलेट तो कभी आइसक्रीम ला कर उसने मुन्नू का मन जीत लीया। नीना के साथ भी उसने काफी दोस्ती बनाली थी।
मैं जब नहीं रहता था तब भी अनिल आता जाता रहता था। जब भी अनिल मेरी अनुपस्थिति में आता तब मुझे अनिल और नीना दोनों बता देते थे। नीना अनिल को छोटे मोटे काम भी बताने लग गयी थी। अनिल कभी मेरी अनुपस्थिति में सब्जी लाता तो कभी ग्रोसरी। मैंने महसूस किया की धीरे धीरे अनिल और मेरी पत्नी नीना के बिच कुछ कुछ बात बन रही थी। अगर बात बन नहीं रही थी तो उनके बिच कोई बात में वैमनस्य भी नहीं रहां था। नीना के मनमें अनिल के प्रति अब पहले जितना शक और डर नहीं रहा था।
मैं जब नहीं रहता था तब भी अनिल आता जाता रहता था। जब भी अनिल मेरी अनुपस्थिति में आता तब मुझे अनिल और नीना दोनों बता देते थे। नीना अनिल को छोटे मोटे काम भी बताने लग गयी। अनिल कभी मेरी अनुपस्थिति में सब्जी लाता तो कभी ग्रोसरी। मैंने महसूस किया की धीरे धीरे अनिल और मेरी पत्नी नीना के बिच कुछ कुछ बात बन रही थी। नीना के मनमें अनिल के प्रति अब पहले जितना शक और डर नहीं रहा था।
इसका फायदा मुझे भी तो होना ही था। अब अनिल मुझ पर और भी मेहरबान होने लगा। एकदिन अचानक ही वह घर आया। नीना रसोई में व्यस्त थी। मैंने उसे हालचाल पूछा। हम दोनों खड़े थे की अचानक उसके हाथमे से एक लिफाफा निचे गिरकर मेरे पांव पर पड़ा। मुझे ऐसा लगा जैसे अनिलने लिफाफा जान बुझ कर गिराया था। मैंने झुक कर जैसे उसे उठाया तो उसमे से एक तस्वीर फिसल कर बहार निकल पड़ी। वह तस्वीर उसकी पत्नी अनीता की थी।
वह समंदर के किनारे बिकिनी पहने खड़ी थी। उसकी नशीली आँखें जैसे सामने से खुली चुनौती दे रही थी। उसके मद मस्त उरोज जैसे उस बिकिनी में समा नहीं रहे थे। छोटी सी लंगोटी की तरह की एक पट्टी उसकी भरी हुई चूत को मुश्किल से छुपा पा रही थी। उसके गठीले कूल्हे जैसे चुदवाने का आवाहन कर रहे थे। उसे देख कर मैं थोड़े समय तो बोल ही नहीं पाया। मैं एकदम हक्का बक्का सा रह गया।
अचानक मुझे ध्यान आया की अनिल मुझे घूर कर देख रहा है। मैं खिसिया गया और हड़बड़ा कर बोला, "यार, सॉरी। मुझे यह देखना नहीं चाइये था।"
अनिल एकदम हंस पड़ा और बोला, "तुम क्यों नहीं देख सकते? उस दिन उस बीच पर पता नहीं कितने लोगों ने अनीता को इस बिकिनी में आधा नंगा देखा था। तुम तो फिर भी अपने हो। क्या यदि तुम्हारे पास नीना की कोई ऐसी तस्वीर हो तो तुम मुझे नहीं दिखाओगे?"
उसके इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैंने अपनी मुंडी हिलाते हुए कहा, "बात तो ठीक है। मैं भी तो तुम्हे जरूर दिखाऊंगा ही।"
अनिल ने हँसते हुए पूरा लिफाफा मेरे हाथ में थमा दिया और बोला, "इस लिफाफे में हमारे हनीमून की सारी तस्वीरें हैं। इसमें अनीता के, मेरे और हमारे बड़े सेक्सी पोज़ हैं। तुम इन्हें जी भर के देख सकते हो। मैं तुमसे कुछ भी छिपाना नहीं चाहता। तुम चाहो तो इसे नीना के साथ भी शेयर कर सकते हो। आखिर में, मैं तुम दोनों में और हम दोनों में कोई फर्क नहीं समझता।"
अनिल ने जैसे बात बात में अपने मन की बात कह डाली। उसकी बात पहले तो मेरी समझ में नहीं आई, पर उसके चले जाने के बाद जब में उसकी बात पर विचार कर रहा था तब मैं धीरे धीरे उसका इशारा समझने लगा। उसकी बात के मायने बड़े गहरे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे वह यह संकेत दे रहा था की उसकी बीबी और मेरी बीबी में कोई अंतर नहीं है। उसका मतलब यह था की मेरी बीबी उसकी बीबी और उसकी बीबी मेरी बीबी भी हो सकती है। साफ़ शब्दों में कहें तो वह बीबियों की अदलाबदली की तरफ इशारा कर रहा था।
जैसे जैसे मैं सोचता गया मुझे उसका सारा प्लान समझ में आने लगा। मैं भी तो वही चाहता था जो वह चाहता था। फिर ज्यादा सोचना कैसा। फिर मेरे मनमे एक कुशंका आई। कहीं मैं अपनी प्रिय पत्नी को खो तो नहीं दूंगा? कहीं वह अनिल की आशिक तो नहीं बन जायेगी? पर यह तो हो ही नहीं सकता था क्यूंकि अनिल भी तो उसकी बीबी को बहुत चाहता था। उसकी एक बच्ची भी तो थी। हमारा भी तो मुन्नू था। शंका का तो तुरंत समाधान हो गया। हाँ एक बात जरूर थी। एक बार शर्म का पर्दा हट जानेसे, यह हो सकता है की अनिल नीना को बार बार चोदना चाहे, या नीना बार बार अनिल से चुदवाना चाहे। तब मैंने यह सोचकर मन को मनाया की आखिर अनिल और नीना समझदार हैं। वह अगर चोदना चाहे भी तो मुझसे बिना पूछे कुछ नहीं करेंगे। यदि मेरी मर्जी से ही यह होता है तो भला, मुझे अनिल और नीना की चुदाई में कोई आपत्ति नहीं लगी।
अनिल को चाय देते हुए नीना ने अनिल से कहा, “माफ़ी तो मुझे भी तुमसे मांगनी है। मैंने तुम्हारी गिफ्ट को नकार दिया था उसके लिए प्लीज मुझे माफ़ कर देना। मैं तुम्हें गलत समझ रही थी। राज ने मुझे बताया की तुम वह गिफ्ट उसे पूछ कर ही मुझे दे रहे थे।“
फिर नीना ने उसे शरारत भरे लहजे में कहा, "पर इससे तो तुम्हे बहुत नुक्सान होगा, क्योंकि अब मुझे न सिर्फ वह गिफ्ट चाहिए, मुझे और भी गिफ्ट चाहिए। अगर मेरी मांगे बढ़ती गयी तो मना मत करना।“
तब अनिल ने भी हंसकर कहा, "भाभीजी आपके लिए तो जान हाजिर है। "
नीना ने पलट कर जवाब दिया, "उसे तो अनीता को ही देना। मुझे तो सिर्फ गिफ्ट चाहिए "
उसके बाद तो जैसे अनिल की चांदी हो गयी। इसके बाद नीना अनिल से कोई औपचारिकता नहीं रखती थी। जब भी अनिल आता तो नीना ख़ास उसे बात करने ड्राइंग रूम में उसके पास आती और उसके साथ भी बैठ जाती थी। कई बार नीना अनिल को रसोई में भी बुला लेती और दोनों इधर उधर की बातें करते। मेरे सामने भी नीना अब अनिल से शर्माती नहीं थी। कई बार मैंने देखा तो वह अनिल के कोई जोक पर अनिल का हाथ पकड़ कर हंसती थी। परंतु उन के बिच कोई जातीयता वाली बात नहीं दिख रही थी। अब जब वह घर आता तो उसकी आव भगत होने लगी। वह मुन्नू के साथ खेलता और उसको कभी चॉकलेट तो कभी आइसक्रीम ला कर उसने मुन्नू का मन जीत लीया। नीना के साथ भी उसने काफी दोस्ती बनाली थी।
मैं जब नहीं रहता था तब भी अनिल आता जाता रहता था। जब भी अनिल मेरी अनुपस्थिति में आता तब मुझे अनिल और नीना दोनों बता देते थे। नीना अनिल को छोटे मोटे काम भी बताने लग गयी थी। अनिल कभी मेरी अनुपस्थिति में सब्जी लाता तो कभी ग्रोसरी। मैंने महसूस किया की धीरे धीरे अनिल और मेरी पत्नी नीना के बिच कुछ कुछ बात बन रही थी। अगर बात बन नहीं रही थी तो उनके बिच कोई बात में वैमनस्य भी नहीं रहां था। नीना के मनमें अनिल के प्रति अब पहले जितना शक और डर नहीं रहा था।
मैं जब नहीं रहता था तब भी अनिल आता जाता रहता था। जब भी अनिल मेरी अनुपस्थिति में आता तब मुझे अनिल और नीना दोनों बता देते थे। नीना अनिल को छोटे मोटे काम भी बताने लग गयी। अनिल कभी मेरी अनुपस्थिति में सब्जी लाता तो कभी ग्रोसरी। मैंने महसूस किया की धीरे धीरे अनिल और मेरी पत्नी नीना के बिच कुछ कुछ बात बन रही थी। नीना के मनमें अनिल के प्रति अब पहले जितना शक और डर नहीं रहा था।
इसका फायदा मुझे भी तो होना ही था। अब अनिल मुझ पर और भी मेहरबान होने लगा। एकदिन अचानक ही वह घर आया। नीना रसोई में व्यस्त थी। मैंने उसे हालचाल पूछा। हम दोनों खड़े थे की अचानक उसके हाथमे से एक लिफाफा निचे गिरकर मेरे पांव पर पड़ा। मुझे ऐसा लगा जैसे अनिलने लिफाफा जान बुझ कर गिराया था। मैंने झुक कर जैसे उसे उठाया तो उसमे से एक तस्वीर फिसल कर बहार निकल पड़ी। वह तस्वीर उसकी पत्नी अनीता की थी।
वह समंदर के किनारे बिकिनी पहने खड़ी थी। उसकी नशीली आँखें जैसे सामने से खुली चुनौती दे रही थी। उसके मद मस्त उरोज जैसे उस बिकिनी में समा नहीं रहे थे। छोटी सी लंगोटी की तरह की एक पट्टी उसकी भरी हुई चूत को मुश्किल से छुपा पा रही थी। उसके गठीले कूल्हे जैसे चुदवाने का आवाहन कर रहे थे। उसे देख कर मैं थोड़े समय तो बोल ही नहीं पाया। मैं एकदम हक्का बक्का सा रह गया।
अचानक मुझे ध्यान आया की अनिल मुझे घूर कर देख रहा है। मैं खिसिया गया और हड़बड़ा कर बोला, "यार, सॉरी। मुझे यह देखना नहीं चाइये था।"
अनिल एकदम हंस पड़ा और बोला, "तुम क्यों नहीं देख सकते? उस दिन उस बीच पर पता नहीं कितने लोगों ने अनीता को इस बिकिनी में आधा नंगा देखा था। तुम तो फिर भी अपने हो। क्या यदि तुम्हारे पास नीना की कोई ऐसी तस्वीर हो तो तुम मुझे नहीं दिखाओगे?"
उसके इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैंने अपनी मुंडी हिलाते हुए कहा, "बात तो ठीक है। मैं भी तो तुम्हे जरूर दिखाऊंगा ही।"
अनिल ने हँसते हुए पूरा लिफाफा मेरे हाथ में थमा दिया और बोला, "इस लिफाफे में हमारे हनीमून की सारी तस्वीरें हैं। इसमें अनीता के, मेरे और हमारे बड़े सेक्सी पोज़ हैं। तुम इन्हें जी भर के देख सकते हो। मैं तुमसे कुछ भी छिपाना नहीं चाहता। तुम चाहो तो इसे नीना के साथ भी शेयर कर सकते हो। आखिर में, मैं तुम दोनों में और हम दोनों में कोई फर्क नहीं समझता।"
अनिल ने जैसे बात बात में अपने मन की बात कह डाली। उसकी बात पहले तो मेरी समझ में नहीं आई, पर उसके चले जाने के बाद जब में उसकी बात पर विचार कर रहा था तब मैं धीरे धीरे उसका इशारा समझने लगा। उसकी बात के मायने बड़े गहरे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे वह यह संकेत दे रहा था की उसकी बीबी और मेरी बीबी में कोई अंतर नहीं है। उसका मतलब यह था की मेरी बीबी उसकी बीबी और उसकी बीबी मेरी बीबी भी हो सकती है। साफ़ शब्दों में कहें तो वह बीबियों की अदलाबदली की तरफ इशारा कर रहा था।
जैसे जैसे मैं सोचता गया मुझे उसका सारा प्लान समझ में आने लगा। मैं भी तो वही चाहता था जो वह चाहता था। फिर ज्यादा सोचना कैसा। फिर मेरे मनमे एक कुशंका आई। कहीं मैं अपनी प्रिय पत्नी को खो तो नहीं दूंगा? कहीं वह अनिल की आशिक तो नहीं बन जायेगी? पर यह तो हो ही नहीं सकता था क्यूंकि अनिल भी तो उसकी बीबी को बहुत चाहता था। उसकी एक बच्ची भी तो थी। हमारा भी तो मुन्नू था। शंका का तो तुरंत समाधान हो गया। हाँ एक बात जरूर थी। एक बार शर्म का पर्दा हट जानेसे, यह हो सकता है की अनिल नीना को बार बार चोदना चाहे, या नीना बार बार अनिल से चुदवाना चाहे। तब मैंने यह सोचकर मन को मनाया की आखिर अनिल और नीना समझदार हैं। वह अगर चोदना चाहे भी तो मुझसे बिना पूछे कुछ नहीं करेंगे। यदि मेरी मर्जी से ही यह होता है तो भला, मुझे अनिल और नीना की चुदाई में कोई आपत्ति नहीं लगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.