13-09-2023, 01:22 PM
Update 39
माँ बेटी की चूत चुदाई की इच्छा
आप लोग हो सकता है कि बोर हो रहे हों कि क्या यार फालतू की बातें लिख रहा है.. तो आपको बताना चाहूंगा कि जैसा-जैसा वास्तव में मेरे साथ हुआ था.. वैसा ही लिख रहा हूँ ताकि आप इस कहानी से भावनात्मक रूप से जुड़ सकें.. और ये तभी सम्भव है.. जब ये सारी घटनाएं आपके समक्ष होंगी।
मित्रो.. बिलकुल भी परेशान न हों.. चुदाई भी होगी.. पर समय आने पर.. न कि खोला लण्ड और ‘दो इक्कम दो’ किया और चल दिए अपने घर..
कुछ मनचलों के लिए सन्देश भी है कि कृपया मुझसे कोई भी ऐसी उम्मीद न रखें.. जिससे मेरे या आपके मन को ठेस पहुँचे.. क्योंकि कुछ ऐसे भी लोग है जो कहते हैं.. मुझे भी दिलवा दे.. एक बार मिलवा ही दे.. मैं उनको ये बताना चाहता हूँ कि इस तरह की कोई उम्मीद न धारण करें और इत्मीनान से कहानी का मज़ा लेते हुए सहयोग प्रदान करें। धन्यवाद।
अभी तक आपने पढ़ा…
मैं उसके माथे पर चुम्बन करने लगा जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा होता हुआ महसूस होने लगा.. शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही थी.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया।
वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी.. उसका मैं पहला प्यार बन चुका था।
अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला ही होता है। आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ.. तो मैं एकदम ठहर सा जाता हूँ।
मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है और रह-रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।
शायद आज भी मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा घूम रहा है।
चुदाई तो मैंने जरूर माया की थी.. पर वो जो पहला इमोशन होता है न.. प्यार वाला.. वो रूचि से ही प्राप्त हुआ था।
अब आगे इसी तरह मैंने चुम्बन करते हुए उसके गालों और आँखों के ऊपर भी चुम्बन किया और जैसे ही उसकी गर्दन में मैंने अपनी जुबान फेरी.. तो उसके मुख से एक हलकी सी ‘आह’ फूट पड़ी- आआआअह.. शीईईईई.. मत करो न.. गुदगुदी होती है..
वो मेरी बाँहों में से छूटते हुए बोली- यार अब मुझसे रहा नहीं जाता.. कुछ भी करो.. पर मुझे आज वो सब दो.. जो मुझे चाहिए..
तो मैं बोला- जान बस तुम साथ देना और कुछ न बोलना.. जैसा मैं बोलूँ.. करती जाना.. फिर देखना.. आज नहीं तो कल पक्का तुम्हें मज़ा ही मज़ा दूँगा।
वो बोली- ठीक है.. तुम्हारा प्लान तो ठीक है.. पर भगवान करे सब अच्छा अच्छा ही हो..
तो मैं बोला- तुम फिक्र मत करो.. अब मैं विनोद के पास जा रहा हूँ।
उसने मुझे फिर से मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और बोली- तुम कामयाब होना..
फिर मैं सीधा बाहर आ गया और विनोद के पास आकर बैठ गया और हम इधर-उधर की बात करते हुए टीवी देखने लगे।
इतने में ही रूचि आई और मेरी ओर मुस्करा कर बोली- आप के लिए चाय ले आऊँ?
मैं बोला- अरे खाना खाते हैं न पहले?
तो बोली- खाने में अभी कुछ टाइम और लगेगा..
मैं बोला- फिर चाय ही बना लाओ..
तो बोली- जरूरत नहीं है.. माँ को आपकी पसंद पता है.. वो बना चुकी हैं.. मैं तो बस आपकी इच्छा जानने आई थी कि आप क्या कहते हो?
मैंने कहा- अगर जवाब मिल गया हो.. तो जाओ.. अब ले भी आओ..।
यह कहते हुए मैंने विनोद से बोला- यार ये भी तुम लोगों की तरह.. मेरी मौज लेने लगी.. जैसे मेरे सभी दोस्त चाय के लिए मेरे पीछे पड़े रहते थे..
तभी विनोद भी बोला- और इतनी ज्यादा चाय पियो साले.. मैंने 50 दफा बोला कि सबके सामने अपने इस शौक को मत जाहिर किया करो.. पर तुम मानते कहाँ हो.. अब झेलो..
तभी आंटी और रूचि दोनों लोग आ गईं.. और दूसरी साइड पड़े सोफे पर बैठते हुए बोलीं- आज तो बहुत ही गरम है।
तो मैं हँसते हुए बोला- चाय तो गर्म ही अच्छी होती है।
वो बोली- मैं मौसम की बात कर रही हूँ।
सभी हंसने लगे.. फिर हमने चाय खत्म की और फिर रूचि मेरी तरफ देखते हुए बोली- अच्छा खाना तैयार है.. अब आप बोलें.. कितनी देर में लेना चाहोगे?
उसके इस दो-अर्थी शब्दों को मैंने भांपते हुए कहा- मज़ा तो तभी है.. जब गर्मागर्म हो।
वो भी कातिल मुस्कान लाते हुए बोली- फिर तैयार हो जाओ.. मैं यूं गई और आई..
अब आंटी.. विनोद और मैं उठे और खाने वाली टेबल पर बैठ कर बात करने लगे।
तभी मैंने आंटी को छेड़ते हुए पूछा- आज आप इतना थकी-थकी सी क्यों लग रही हो..?
वो बोलीं- नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है..
मैं बोला- फिर कैसा है?
वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस गर्म बहुत है तभी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है..
मुझे उन्होंने बाद में बताया था कि उन्हें बेचैनी इस बात की सता रही थी कि विनोद के होते हुए हम चुम्बन कैसे लेंगे..
खैर.. फिर मैंने बोला- अरे कोई बात नहीं.. आप खाना खाओ.. फिर आज हम लोग भी एक गेम खेलेंगे।
वो बोलीं- अरे ये गेम-वेम तुम लोग ही खेलना.. मुझे इस चक्कर में मत डालो.. मुझे कोई खेल-वेल नहीं आता।
मैं बोला- अरे ये बहुत मजेदार है.. आप खेल लोगी.. और तो और इससे आपको पुराने दिनों की बातें भी याद आ जाएगीं।
वो बोलीं- ऐसा क्या है.. इस गेम में?
तो मैं आँख से इशारा करते हुए बोला- क्या है.. ये खुद ही देख लेना..
वो समझते हुए बोलीं- अब तुम इतना कह रहे हो.. तो देखते हैं ये कौन सा खेल है?
तभी रूचि आई और मेरी ओर देखकर हँसते हुए बोली- अरे मुझे भी बताओ.. तुम लोग कौन से खेल की बात कर रहे हो?
तो विनोद बोला- हम में से सिर्फ राहुल को ही मालूम है।
मैं बोला- सब कोई खेल सकता है इस खेल को।
तो वो बोला- पहले बता तो दे कि कौन सा खेल है?
मैं बोला- ठीक है.. पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा..
एक बार इसी के साथ साथ सब लोग फिर हंस दिए।
अब आप लोगों को बता दूँ कि हम कैसे बैठे थे.. ताकि आप आगे का हाल आसानी से समझ सकें।
खैर.. हुआ कुछ इस तरह कि मेरे दांए सेंटर चेयर पर विनोद बैठा था और मैं उसके बाईं ओर बैठा था। फिर आंटी यानि कि वो मेरे बाईं ओर.. फिर रूचि विनोद के दांई ओर.. यानि कि मेरे ठीक सामने..
तो दोस्तो, दिल थाम कर बैठ जाईए क्योंकि अब असली खेल शुरू होता है।
आंटी ने प्लेट लगाना चालू किया तो सबसे पहले रूचि को दिया.. पर उसने ये बोल कर अपनी थाली को अपने भाई विनोद की ओर सरका दी.. कि माँ आपने इसमें अचार क्यों रख दिया..
तो माया हैरान होकर बोलीं- पर ये तो तुम्हें बहुत पसंद है.. तुम रोज ही लेती हो।
वो बोली- मेरा पेट ख़राब है।
जबकि आपको बता दूँ उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि वो देर तक खाना खा सके।
विनोद ने खाना शुरू नहीं किया था तो वो फिर बोली- भैया शुरू करो न..
तो विनोद बोला- पहले सबकी प्लेट लग जाने दे।
वो बोली- अभी जब बन रहा था तो आपको बड़ी भूख लगी थी.. अब खाओ भी.. हम में से कोई बुरा नहीं मानेगा।
तो मैंने भी बोल दिया- हाँ.. शुरू कर यार.. वैसे भी प्लेट तो लग ही रही हैं।
इस पर उसने खाना चालू कर दिया और इधर आंटी ने खाना लगाया और रूचि को प्लेट दी.. तो वो रखकर बोली- सॉरी.. अभी आई.. मैंने हाथ तो धोए ही नहीं..
उसने मुझे आँखों से अपने साथ चलने का इशारा किया.. जिससे मैंने भी तपाक से बोल दिया- अरे हाँ.. मैंने भी नहीं धोए.. थैंक्स रूचि.. याद दिलाने के लिए..
फिर हम उठे और चल दिए।
अब मैं आगे और रूचि मेरे पीछे थी.. शायद उसने इसलिए किया था ताकि मैं पहले हाथ धोऊँ।
मैं वाशबेसिन के पास जाकर हाथ धोने लगा और रूचि से इशारे में पूछा- क्या हुआ?
तो वो फुसफुसा कर बोली- जान कुछ होगा.. तो अपने आप बोलूँगी तुम्हें..
और उसने एक नॉटी स्माइल पास कर दी।
प्रतिक्रिया में मैं भी हंस दिया। मैं हाथ धो ही रहा था.. तभी वो बोली- खाना खाते समय चौंकना नहीं.. अगर कुछ एक्स्ट्रा फील हो तो..
मैं बोला- क्यों क्या करने का इरादा है?
वो बोली- इरादा तो नेक है.. पर हो.. ये पता है कि नहीं.. ये ही देखना है बस..
फिर मैं हाथ धोकर टेबल की ओर चल दिया.. साथ ही साथ सोचने लगा कि रूचि क्या करने वाली है.. ये सोचते हुए बैठ गया।
तब तक मेरी थाली भी लग चुकी थी और आंटी की भी.. उन्होंने खाना भी शुरू कर दिया था।
मेरे बैठते ही बोलीं- चल तू भी शुरू कर..
तो मैंने भी चालू कर दिया.. तभी रूचि आई और बैठते हुए उसने चम्मच नीचे गिरा दी.. जो कि उसकी एक चाल थी। फिर वो चम्मच उठाने के लिए नीचे झुकी.. और उसने एक हाथ से चम्मच उठाई और दूसरे हाथ से मेरे पैरों को खींच कर आगे को कर दिया।
मैंने भी जो हो रहा था.. होने दिया.. फिर वो अपनी जगह पर बैठ गई और अपना खाना शुरू करने के साथ ही साथ उसने अपनी हरकतें भी शुरू कर दीं।
अब वो धीमे-धीमे अपने पैरों से मेरे दायें पैर को सहलाने लगी.. जिससे मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरे चेहरे पर कुछ मुस्कराहट सी भी आ रही थी.. वो बहुत ही सेंसेशनल तरीके से अपने पैरों से मेरे पैर को रगड़ रही थी.. जिसका आनन्द सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
कुछ ही देर बाद अब हम सिर्फ तीन ही रह गए थे.. यानि कि मैं रूचि और माया क्योंकि विनोद अपना खाना समाप्त करके टीवी देखने चला गया था।
इधर रूचि की हरकत से मैं इतना बहक गया था कि मेरे खाने की रफ़्तार स्वतः ही धीमी पड़ गई थी।
शायद यही हाल उसका भी था.. क्योंकि वो खाना कम.. मेरे पैरों को ज्यादा सहला रही थी।
मैं अपने सपनों में खोने वाला ही था.. या ये कह लो कि लगभग स्वप्न की दुनिया में पहुँच ही गया था कि तभी माया ने अपना खाना समाप्त कर पास बैठे ही मेरे तन्नाए हुए लौड़े पर धीरे से अपने हाथ जमा दिए।
इस हमले से मैं पहले तो थोड़ा सा घबरा सा गया.. पर जल्द ही सम्भलते ही बोला- अरे आंटी आपने तो अपना खाना बहुत जल्दी फिनिश कर दिया?
तो वो बोली- हाँ.. इसी लिए तो बैठी हूँ.. ताकि तुम लोगों को सर्व कर सकूँ।
वो निरंतर मेरे लौड़े को मनमोहक अंदाज़ में सहलाए जा रही थी और उधर रूचि नीचे मेरे पैरों को सहला रही थी.. जिससे मुझे जन्नत का एहसास हो रहा था।
मेरे मन में एक डर भी था कि दोनों में से कोई भी कहीं और आगे न बढ़ जाए वरना सब गड़बड़ हो जाएगी.. क्योंकि अगर रूचि आगे बढ़ती है.. तो माया का हाथ लगेगा और माया आगे बढ़ती है.. तो रूचि का पैर..
फिर मैंने इसी डर के साथ अपने खाने को जल्दी फिनिश किया और उठ कर मुँह धोने के बाद सीधा वाशरूम जाकर मुठ मारने लगा.. क्योंकि इतना सब होने के बाद मैं अपने लौड़े पर काबू नहीं रख सकता था।
शायद मेरी कामुकता बहुत बढ़ गई थी और खुद पर कंट्रोल रख पाना कठिन था।
मुठ्ठ मारने के बाद जब मेरा लण्ड शांत हुआ.. तब जाकर मेरे दिल को भी शान्ति मिली और इस सब में मुझे बाथरूम में काफी देर भी हो चुकी थी.. तो मैंने झट से कपड़े ठीक किए और बाहर निकल कर आ गया।
बाहर आकर देखा सभी टीवी देखने में लगे थे और जैसे ही मैं वहां पहुँचा तो माया और रूचि दोनों ही मुझे देखकर हँसने लगीं.. जिसे मैं भी देखकर शरमा गया था।
मुझे ऐसा लग रहा था कि जो मैंने अभी बाथरूम में किया.. वो सब ये लोग समझ गईं शायद..
मुझे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि मैं आखिर कंट्रोल क्यों नहीं कर पाया।
मैं अभी इसी उलझन में था कि माया ने मुझे छेड़ते हुए बोला- बड़ी देर लगा दी अन्दर.. सब कुछ ठीक है न?
तभी रूचि भी चुहल लेते हुए कहा- कहीं ऐसा तो नहीं मेरी पेट वाली समस्या आपके पास ट्रांसफर हो गई?
तो मैं झेंपते हुए बोला- नहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं है.. जैसा आप लोग समझ रहे हैं।
रूचि हँसते हुए बोली- फिर कैसा है?
तो मैंने बोला- अरे मैं टॉयलेट गया था.. तभी मेरी आँख में शायद कोई कीड़ा चला गया था.. तो मैं अपनी आँख धोकर देखने लग गया था कि वो आँख के अन्दर है कि नहीं..
तभी रूचि मेरे पास आई उसने कातिलाना मुस्कान देते हुए कहा- लाओ मैं अभी तुम्हारा कीड़ा चैक किए देती हूँ..
तो मैं बोला- अरे नहीं.. अब हो गया..
वो मेरे लौड़े को देखते हुए बोली- हाँ दिख तो रहा है.. कि साफ़ हो गया।
फिर से चुहलबाज़ी में हँसने लगी।
तभी माया ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा- तू उसे तंग मत कर.. बड़ा है तेरे से..
तब कहीं जाकर रूचि शांत हुई.. फिर हम टीवी देखने लगे कि तभी माया बोली- टीवी में आज कुछ अच्छा आ ही नहीं रहा है..
रूचि भी बोली- हाँ.. माँ आप सच कह रही हो.. मैं भी बोर हो रही हूँ।
तो मैंने भी उनकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते हुए अपने प्लान को सफल बनाने के लिए अपनी इच्छा प्रकट की- हाँ यार.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा है..
तो विनोद बोला- फिर क्या किया जाए?
रूचि बोली- कुछ भी सोचो.. जिससे आसानी से टाइम पास हो सके।
वो बोला- अब सोचो तुम ही लोग.. मेरा क्या है.. मैं तो बस शामिल हो जाऊँगा।
अब मुझे अपना प्लान सफल होता हुआ नज़र आने लगा जो कि मैंने घर से आते ही वक़्त बनाया था.. जिसकी सम्पूर्ण जानकारी सिर्फ रूचि को ही थी.. लेकिन प्लान क्या था.. इसके लिए अभी थोड़ा और इंतज़ार कीजिएगा.. जल्द ही मैं इस कहानी के अगले भाग को लिखूंगा और प्लान भी बताऊँगा और तब तक आप भी सोचते रहिए कि आखिर प्लान क्या हो सकता है।
तो दोस्तो, आज के लिए इतना बाकी का अगली कहानी में..
फिर मिलेंगे..
माँ बेटी की चूत चुदाई की इच्छा
आप लोग हो सकता है कि बोर हो रहे हों कि क्या यार फालतू की बातें लिख रहा है.. तो आपको बताना चाहूंगा कि जैसा-जैसा वास्तव में मेरे साथ हुआ था.. वैसा ही लिख रहा हूँ ताकि आप इस कहानी से भावनात्मक रूप से जुड़ सकें.. और ये तभी सम्भव है.. जब ये सारी घटनाएं आपके समक्ष होंगी।
मित्रो.. बिलकुल भी परेशान न हों.. चुदाई भी होगी.. पर समय आने पर.. न कि खोला लण्ड और ‘दो इक्कम दो’ किया और चल दिए अपने घर..
कुछ मनचलों के लिए सन्देश भी है कि कृपया मुझसे कोई भी ऐसी उम्मीद न रखें.. जिससे मेरे या आपके मन को ठेस पहुँचे.. क्योंकि कुछ ऐसे भी लोग है जो कहते हैं.. मुझे भी दिलवा दे.. एक बार मिलवा ही दे.. मैं उनको ये बताना चाहता हूँ कि इस तरह की कोई उम्मीद न धारण करें और इत्मीनान से कहानी का मज़ा लेते हुए सहयोग प्रदान करें। धन्यवाद।
अभी तक आपने पढ़ा…
मैं उसके माथे पर चुम्बन करने लगा जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा होता हुआ महसूस होने लगा.. शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही थी.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया।
वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी.. उसका मैं पहला प्यार बन चुका था।
अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला ही होता है। आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ.. तो मैं एकदम ठहर सा जाता हूँ।
मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है और रह-रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।
शायद आज भी मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा घूम रहा है।
चुदाई तो मैंने जरूर माया की थी.. पर वो जो पहला इमोशन होता है न.. प्यार वाला.. वो रूचि से ही प्राप्त हुआ था।
अब आगे इसी तरह मैंने चुम्बन करते हुए उसके गालों और आँखों के ऊपर भी चुम्बन किया और जैसे ही उसकी गर्दन में मैंने अपनी जुबान फेरी.. तो उसके मुख से एक हलकी सी ‘आह’ फूट पड़ी- आआआअह.. शीईईईई.. मत करो न.. गुदगुदी होती है..
वो मेरी बाँहों में से छूटते हुए बोली- यार अब मुझसे रहा नहीं जाता.. कुछ भी करो.. पर मुझे आज वो सब दो.. जो मुझे चाहिए..
तो मैं बोला- जान बस तुम साथ देना और कुछ न बोलना.. जैसा मैं बोलूँ.. करती जाना.. फिर देखना.. आज नहीं तो कल पक्का तुम्हें मज़ा ही मज़ा दूँगा।
वो बोली- ठीक है.. तुम्हारा प्लान तो ठीक है.. पर भगवान करे सब अच्छा अच्छा ही हो..
तो मैं बोला- तुम फिक्र मत करो.. अब मैं विनोद के पास जा रहा हूँ।
उसने मुझे फिर से मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और बोली- तुम कामयाब होना..
फिर मैं सीधा बाहर आ गया और विनोद के पास आकर बैठ गया और हम इधर-उधर की बात करते हुए टीवी देखने लगे।
इतने में ही रूचि आई और मेरी ओर मुस्करा कर बोली- आप के लिए चाय ले आऊँ?
मैं बोला- अरे खाना खाते हैं न पहले?
तो बोली- खाने में अभी कुछ टाइम और लगेगा..
मैं बोला- फिर चाय ही बना लाओ..
तो बोली- जरूरत नहीं है.. माँ को आपकी पसंद पता है.. वो बना चुकी हैं.. मैं तो बस आपकी इच्छा जानने आई थी कि आप क्या कहते हो?
मैंने कहा- अगर जवाब मिल गया हो.. तो जाओ.. अब ले भी आओ..।
यह कहते हुए मैंने विनोद से बोला- यार ये भी तुम लोगों की तरह.. मेरी मौज लेने लगी.. जैसे मेरे सभी दोस्त चाय के लिए मेरे पीछे पड़े रहते थे..
तभी विनोद भी बोला- और इतनी ज्यादा चाय पियो साले.. मैंने 50 दफा बोला कि सबके सामने अपने इस शौक को मत जाहिर किया करो.. पर तुम मानते कहाँ हो.. अब झेलो..
तभी आंटी और रूचि दोनों लोग आ गईं.. और दूसरी साइड पड़े सोफे पर बैठते हुए बोलीं- आज तो बहुत ही गरम है।
तो मैं हँसते हुए बोला- चाय तो गर्म ही अच्छी होती है।
वो बोली- मैं मौसम की बात कर रही हूँ।
सभी हंसने लगे.. फिर हमने चाय खत्म की और फिर रूचि मेरी तरफ देखते हुए बोली- अच्छा खाना तैयार है.. अब आप बोलें.. कितनी देर में लेना चाहोगे?
उसके इस दो-अर्थी शब्दों को मैंने भांपते हुए कहा- मज़ा तो तभी है.. जब गर्मागर्म हो।
वो भी कातिल मुस्कान लाते हुए बोली- फिर तैयार हो जाओ.. मैं यूं गई और आई..
अब आंटी.. विनोद और मैं उठे और खाने वाली टेबल पर बैठ कर बात करने लगे।
तभी मैंने आंटी को छेड़ते हुए पूछा- आज आप इतना थकी-थकी सी क्यों लग रही हो..?
वो बोलीं- नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है..
मैं बोला- फिर कैसा है?
वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस गर्म बहुत है तभी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है..
मुझे उन्होंने बाद में बताया था कि उन्हें बेचैनी इस बात की सता रही थी कि विनोद के होते हुए हम चुम्बन कैसे लेंगे..
खैर.. फिर मैंने बोला- अरे कोई बात नहीं.. आप खाना खाओ.. फिर आज हम लोग भी एक गेम खेलेंगे।
वो बोलीं- अरे ये गेम-वेम तुम लोग ही खेलना.. मुझे इस चक्कर में मत डालो.. मुझे कोई खेल-वेल नहीं आता।
मैं बोला- अरे ये बहुत मजेदार है.. आप खेल लोगी.. और तो और इससे आपको पुराने दिनों की बातें भी याद आ जाएगीं।
वो बोलीं- ऐसा क्या है.. इस गेम में?
तो मैं आँख से इशारा करते हुए बोला- क्या है.. ये खुद ही देख लेना..
वो समझते हुए बोलीं- अब तुम इतना कह रहे हो.. तो देखते हैं ये कौन सा खेल है?
तभी रूचि आई और मेरी ओर देखकर हँसते हुए बोली- अरे मुझे भी बताओ.. तुम लोग कौन से खेल की बात कर रहे हो?
तो विनोद बोला- हम में से सिर्फ राहुल को ही मालूम है।
मैं बोला- सब कोई खेल सकता है इस खेल को।
तो वो बोला- पहले बता तो दे कि कौन सा खेल है?
मैं बोला- ठीक है.. पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा..
एक बार इसी के साथ साथ सब लोग फिर हंस दिए।
अब आप लोगों को बता दूँ कि हम कैसे बैठे थे.. ताकि आप आगे का हाल आसानी से समझ सकें।
खैर.. हुआ कुछ इस तरह कि मेरे दांए सेंटर चेयर पर विनोद बैठा था और मैं उसके बाईं ओर बैठा था। फिर आंटी यानि कि वो मेरे बाईं ओर.. फिर रूचि विनोद के दांई ओर.. यानि कि मेरे ठीक सामने..
तो दोस्तो, दिल थाम कर बैठ जाईए क्योंकि अब असली खेल शुरू होता है।
आंटी ने प्लेट लगाना चालू किया तो सबसे पहले रूचि को दिया.. पर उसने ये बोल कर अपनी थाली को अपने भाई विनोद की ओर सरका दी.. कि माँ आपने इसमें अचार क्यों रख दिया..
तो माया हैरान होकर बोलीं- पर ये तो तुम्हें बहुत पसंद है.. तुम रोज ही लेती हो।
वो बोली- मेरा पेट ख़राब है।
जबकि आपको बता दूँ उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि वो देर तक खाना खा सके।
विनोद ने खाना शुरू नहीं किया था तो वो फिर बोली- भैया शुरू करो न..
तो विनोद बोला- पहले सबकी प्लेट लग जाने दे।
वो बोली- अभी जब बन रहा था तो आपको बड़ी भूख लगी थी.. अब खाओ भी.. हम में से कोई बुरा नहीं मानेगा।
तो मैंने भी बोल दिया- हाँ.. शुरू कर यार.. वैसे भी प्लेट तो लग ही रही हैं।
इस पर उसने खाना चालू कर दिया और इधर आंटी ने खाना लगाया और रूचि को प्लेट दी.. तो वो रखकर बोली- सॉरी.. अभी आई.. मैंने हाथ तो धोए ही नहीं..
उसने मुझे आँखों से अपने साथ चलने का इशारा किया.. जिससे मैंने भी तपाक से बोल दिया- अरे हाँ.. मैंने भी नहीं धोए.. थैंक्स रूचि.. याद दिलाने के लिए..
फिर हम उठे और चल दिए।
अब मैं आगे और रूचि मेरे पीछे थी.. शायद उसने इसलिए किया था ताकि मैं पहले हाथ धोऊँ।
मैं वाशबेसिन के पास जाकर हाथ धोने लगा और रूचि से इशारे में पूछा- क्या हुआ?
तो वो फुसफुसा कर बोली- जान कुछ होगा.. तो अपने आप बोलूँगी तुम्हें..
और उसने एक नॉटी स्माइल पास कर दी।
प्रतिक्रिया में मैं भी हंस दिया। मैं हाथ धो ही रहा था.. तभी वो बोली- खाना खाते समय चौंकना नहीं.. अगर कुछ एक्स्ट्रा फील हो तो..
मैं बोला- क्यों क्या करने का इरादा है?
वो बोली- इरादा तो नेक है.. पर हो.. ये पता है कि नहीं.. ये ही देखना है बस..
फिर मैं हाथ धोकर टेबल की ओर चल दिया.. साथ ही साथ सोचने लगा कि रूचि क्या करने वाली है.. ये सोचते हुए बैठ गया।
तब तक मेरी थाली भी लग चुकी थी और आंटी की भी.. उन्होंने खाना भी शुरू कर दिया था।
मेरे बैठते ही बोलीं- चल तू भी शुरू कर..
तो मैंने भी चालू कर दिया.. तभी रूचि आई और बैठते हुए उसने चम्मच नीचे गिरा दी.. जो कि उसकी एक चाल थी। फिर वो चम्मच उठाने के लिए नीचे झुकी.. और उसने एक हाथ से चम्मच उठाई और दूसरे हाथ से मेरे पैरों को खींच कर आगे को कर दिया।
मैंने भी जो हो रहा था.. होने दिया.. फिर वो अपनी जगह पर बैठ गई और अपना खाना शुरू करने के साथ ही साथ उसने अपनी हरकतें भी शुरू कर दीं।
अब वो धीमे-धीमे अपने पैरों से मेरे दायें पैर को सहलाने लगी.. जिससे मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरे चेहरे पर कुछ मुस्कराहट सी भी आ रही थी.. वो बहुत ही सेंसेशनल तरीके से अपने पैरों से मेरे पैर को रगड़ रही थी.. जिसका आनन्द सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
कुछ ही देर बाद अब हम सिर्फ तीन ही रह गए थे.. यानि कि मैं रूचि और माया क्योंकि विनोद अपना खाना समाप्त करके टीवी देखने चला गया था।
इधर रूचि की हरकत से मैं इतना बहक गया था कि मेरे खाने की रफ़्तार स्वतः ही धीमी पड़ गई थी।
शायद यही हाल उसका भी था.. क्योंकि वो खाना कम.. मेरे पैरों को ज्यादा सहला रही थी।
मैं अपने सपनों में खोने वाला ही था.. या ये कह लो कि लगभग स्वप्न की दुनिया में पहुँच ही गया था कि तभी माया ने अपना खाना समाप्त कर पास बैठे ही मेरे तन्नाए हुए लौड़े पर धीरे से अपने हाथ जमा दिए।
इस हमले से मैं पहले तो थोड़ा सा घबरा सा गया.. पर जल्द ही सम्भलते ही बोला- अरे आंटी आपने तो अपना खाना बहुत जल्दी फिनिश कर दिया?
तो वो बोली- हाँ.. इसी लिए तो बैठी हूँ.. ताकि तुम लोगों को सर्व कर सकूँ।
वो निरंतर मेरे लौड़े को मनमोहक अंदाज़ में सहलाए जा रही थी और उधर रूचि नीचे मेरे पैरों को सहला रही थी.. जिससे मुझे जन्नत का एहसास हो रहा था।
मेरे मन में एक डर भी था कि दोनों में से कोई भी कहीं और आगे न बढ़ जाए वरना सब गड़बड़ हो जाएगी.. क्योंकि अगर रूचि आगे बढ़ती है.. तो माया का हाथ लगेगा और माया आगे बढ़ती है.. तो रूचि का पैर..
फिर मैंने इसी डर के साथ अपने खाने को जल्दी फिनिश किया और उठ कर मुँह धोने के बाद सीधा वाशरूम जाकर मुठ मारने लगा.. क्योंकि इतना सब होने के बाद मैं अपने लौड़े पर काबू नहीं रख सकता था।
शायद मेरी कामुकता बहुत बढ़ गई थी और खुद पर कंट्रोल रख पाना कठिन था।
मुठ्ठ मारने के बाद जब मेरा लण्ड शांत हुआ.. तब जाकर मेरे दिल को भी शान्ति मिली और इस सब में मुझे बाथरूम में काफी देर भी हो चुकी थी.. तो मैंने झट से कपड़े ठीक किए और बाहर निकल कर आ गया।
बाहर आकर देखा सभी टीवी देखने में लगे थे और जैसे ही मैं वहां पहुँचा तो माया और रूचि दोनों ही मुझे देखकर हँसने लगीं.. जिसे मैं भी देखकर शरमा गया था।
मुझे ऐसा लग रहा था कि जो मैंने अभी बाथरूम में किया.. वो सब ये लोग समझ गईं शायद..
मुझे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि मैं आखिर कंट्रोल क्यों नहीं कर पाया।
मैं अभी इसी उलझन में था कि माया ने मुझे छेड़ते हुए बोला- बड़ी देर लगा दी अन्दर.. सब कुछ ठीक है न?
तभी रूचि भी चुहल लेते हुए कहा- कहीं ऐसा तो नहीं मेरी पेट वाली समस्या आपके पास ट्रांसफर हो गई?
तो मैं झेंपते हुए बोला- नहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं है.. जैसा आप लोग समझ रहे हैं।
रूचि हँसते हुए बोली- फिर कैसा है?
तो मैंने बोला- अरे मैं टॉयलेट गया था.. तभी मेरी आँख में शायद कोई कीड़ा चला गया था.. तो मैं अपनी आँख धोकर देखने लग गया था कि वो आँख के अन्दर है कि नहीं..
तभी रूचि मेरे पास आई उसने कातिलाना मुस्कान देते हुए कहा- लाओ मैं अभी तुम्हारा कीड़ा चैक किए देती हूँ..
तो मैं बोला- अरे नहीं.. अब हो गया..
वो मेरे लौड़े को देखते हुए बोली- हाँ दिख तो रहा है.. कि साफ़ हो गया।
फिर से चुहलबाज़ी में हँसने लगी।
तभी माया ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा- तू उसे तंग मत कर.. बड़ा है तेरे से..
तब कहीं जाकर रूचि शांत हुई.. फिर हम टीवी देखने लगे कि तभी माया बोली- टीवी में आज कुछ अच्छा आ ही नहीं रहा है..
रूचि भी बोली- हाँ.. माँ आप सच कह रही हो.. मैं भी बोर हो रही हूँ।
तो मैंने भी उनकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते हुए अपने प्लान को सफल बनाने के लिए अपनी इच्छा प्रकट की- हाँ यार.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा है..
तो विनोद बोला- फिर क्या किया जाए?
रूचि बोली- कुछ भी सोचो.. जिससे आसानी से टाइम पास हो सके।
वो बोला- अब सोचो तुम ही लोग.. मेरा क्या है.. मैं तो बस शामिल हो जाऊँगा।
अब मुझे अपना प्लान सफल होता हुआ नज़र आने लगा जो कि मैंने घर से आते ही वक़्त बनाया था.. जिसकी सम्पूर्ण जानकारी सिर्फ रूचि को ही थी.. लेकिन प्लान क्या था.. इसके लिए अभी थोड़ा और इंतज़ार कीजिएगा.. जल्द ही मैं इस कहानी के अगले भाग को लिखूंगा और प्लान भी बताऊँगा और तब तक आप भी सोचते रहिए कि आखिर प्लान क्या हो सकता है।
तो दोस्तो, आज के लिए इतना बाकी का अगली कहानी में..
फिर मिलेंगे..