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Misc. Erotica हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह
हालांकि उसके धक्कों की रफ़्तार पहले के मुकाबले कमतर हो गयी थी लेकिन उस कुत्ते ने अपना फूला हुआ लंड उतनी ही ताकत से मेरी चूत की गहराई और बच्चेदानी पे कूटना ज़ारी रखा जबकि उसकी फूली हुई गाँठ ने मेरी चूत को ठसाठस फैला रखा था और मेरे ‘जी-स्पॉट’ पे भी उसका दबाव कायम था। लिहाजा मेरी चूत मुसलसल तौर पे पानी छोड़ के बार-बार झड़े जा रही थी और मैं मस्ती में जोर-जोर से कराहती-सिसकती और चींखती हुई लुत्फ़-अंदोज़ी का बार-बार निहायत मज़ा ले रही थी। उसके लंड से मुसलसल बहती रक़ीक मज़ी भी मुझे अपनी चूत में गहरायी तक धड़कती हुई महसूस हो रही थी जिसका मज़ेदार गरम-गरम मुख्तलिफ़ सा एहसास मेरी लज़्ज़त में इज़ाफ़ा कर रहा था। इस दौरान मैंने एक नज़र स्टूडेंट्स की जानिब देखा तो चारों नामाकूल लड़के अपने लौड़े हिला रहे थे और मुझे यानी कि अपनी हवसखोर टीचर को कुत्ते से चुदवाते हुए... एक जानवर के साथ अपनी शहूत पूरी करते हुए देख रहे थे।

इतने में मुझे अपनी कमर पे उसका जिस्म अकड़ता हुआ महसूस हुआ और उसकी अगली टाँगें भी मेरे इर्दगिर्द जोर से जकड़ गयीं। तभी जोर से एक करारा सा धक्का मार कर अपना लंड मेरी चूत में जोर से बच्चे दानी तक अंदर गड़ा कर वो साकिन हो गया और उसके लंड की गाँठ पहले से भी ज्यादा फूल गयी। मुझे एहसास हो गया कि अब वो कुत्ता मेरी चूत में मनी इखराज़ करने को तैयार था। मेरी चूत तो पहले से ही उसके लंड से मुसलसल बहते गरम मज़ी से निहाल थी और अगले ही पल उसके लंड ने तीन-चार दफ़ा बेहद ज़ोर से झटका खाया और उसमें से गरम और गाढ़ी मनी की तेज़ धारें एक के बाद एक मेरी चूत में फूट-फूट कर इखराज़ होने लगीं। उसकी मनी की मिकदार मेरे लिये नाकाबिले यकीन और हैरान कुन तो थी ही और इसके अलावा मैं अपनी चूत में उसकी रवानी दर हक़ीकत महसूस भी कर पा रही थी। इसके सबब से मेरी चूत में फिर एक जोर का धमाका सा हुआ और तमाम जिस्म में लज़्ज़त भरे शोले भड़क उठे। मेरी आँखें ज़ोर से भींच गयीं और जिस्म थरथराते हुए बेतहाशा झटके खाने लगा। “आँआँहह  याल्लाआहहह.... आआआआआ ऊँऊँऊँऊँ... ज़न्नत काऽऽऽ मज़ाऽऽऽ…. निहाऽऽल हो गयीऽऽ साऽऽऽलीऽऽ तऽऽबस्सुउउउउम तूऽऽऽऽ तो आऽऽऽऽज….” लज़्ज़त की शिद्दत में मैं बेहद ज़ोर से चींखी और मेरी चूत भरभराते हुए फिर पानी छोड़ने लगी।
 
मेरे अंदर लबरेज़ी का एक अनोखा सा एहसास था जो पहले मैंने कभी महसूस नहीं किया था। कुत्ते से ज़बरदस्त और मुख्तलीफ़ चुदाई की लज़्ज़त में मैं बेहद बेखुदी के आलम में थी। उसकी अगली टाँगें अभी भी मेरी कमर पे जोर से जकड़ी हुई थीं। वो कुत्ता चुपचाप हाँफ रहा था और उसकी धड़कन मुझे अपनी पीठ पर महसूस हो रही थी। कुछ ही देर में हाँफते हुए कुत्ता अपनी एक पिछली टाँग मेरे चूतड़ों के ऊपर उठा कर घुमते हुए मेरी कमर से उतर गया। उसके लंड की फूली हुई गाँठ मेरी चूत में फंसे होने से अब हम दोनों आपस में गाँड से गाँड बिल्कुल ऐसे चिपके हुए थे जैसे कि कुत्ता और कुत्तिया चुदाई के बाद हमेशा आपस में चिपक जाते हैं। करीब पंद्रह-बीस मिनट मैं कुत्तिया बन के कुत्ते का लंड अपनी चूत में फंसाये हुए उससे चिपकी रही। चूँकि कुत्ते के ऊँचे कद की वजह से मैं अपनी गाँड उसके मुताबिक ऊँची उठाये रखने को मजबूर थी लेकिन इस तकलीफ़ के बावजूद मुझे उससे चिपकने में ज़बरदस्त मज़ा आया। बेहद पुर-चुदास और लज़्ज़त अमेज़ तजुर्बा था। इस दौरान भी मेरी चूत में उसके लंड से मनी का इखराज़ ज़ारी था। मेरी मस्ती भरी सिसकियाँ और कराहें भी ज़ारी रही क्योंकि मेरी चूत में तो जैसे झड़ी लग गयी थी। हम दोनों में से कोई अगर ज़रा सी भी हिलता तो मेरी चूत में उसके लंड की गाँठ के दबाव से और बाज़र के मुश्तैल होने से मेरी चूत फिर झड़ने लगती।
 
इस दर्मियान मेरे चारों चोदू आशिक़ स्टूडेंट्स अपनी टीचर को एक कुत्तिया की तरह गाँड से गाँड मिलाकर कुत्ते के लंड से चिपके देख कर मज़ाक़ उड़ाते हुए ताने देने लगे। उनके तंज़िया फ़िक़रों का मुझ पे कहाँ असर होने वाला था। उन्हें क्या मालूम कि मैं उस वक़्त किस कदर मस्ती में चूर ज़न्नत का चुदासी मज़ा लूट रही थी। मैं भी उनकी फब्तियों के जवाब में सिसकते हुए बीच-बीच में उन्हें गालियाँ बक देती थी। खैर पंद्रह-बीस मिनट बाद मुझे कुत्ते की गाँठ ज़रा सी सिकुड़ती हुई महसूस हुई और फिर अचानक मेरी चूत में से कुत्ते का लंड आज़ाद हो गया। उसकी गाँठ मेरी चूत में से बाहर निकली तो ज़ोर से ऐसी आवाज़ आयी जैसे कि शेंपेन की बोतल में से कॉर्क निकला हो। उसका लंड बाहर निकलते ही मुझे ज़रा मायूसी सी हुई और अपनी चूत में भी अचानक बेहद खालीपन का एहसास हुआ जैसे की अभी से ही मुझे उस लाजवाब लंड की तलब महसूस होने लगी थी। मेरी चूत में से कुत्ते की मनी और मेरी चूत का रस मखलूत होकर मेरी नंगी रानों पे नीचे बह रहे थे।
 
शराब के नशे में चूर और जज़बाती और जिस्मानी तौर पे थकी हुई मैं वहीं कालीन पे पसर गयी। मैं हैरान थी कि उस कुत्ते ने एक ही चुदाई के दौरान मुसलसल कमज़ कम बीस-पच्चीस ज़बरदस्त ऑर्गैज़्म मुझे मुहैया करवा दिये थे। मेरी ज़िंदगी की अभी तक की सबसे ज्यादा ज़बरदस्त और लज़्ज़त-अमेज़ तसल्ली बख्श चुदाई थी। मैंने मोहब्बत भरी शुक्राना नज़र कुत्ते की जानिब डाली जो मुतमईन होके हॉल में ही एक कोने में जा के बैठ गया था। मेरे चेहरे पे रंग-ए-मुसर्रत और तस्कीन देख कर उन चारों लड़कों ने भी तंज़ करना बंद कर दिया और तालियाँ बजा कर मुझे दाद दी। मैंने उनसे अपने लिये एक सिगरेट सुलगवायी और बिल्कुल मादरजात नंगी सिर्फ़ सैंडल पहने वहीं पसरी हुई सिगरेट के कश लगाते हुए बेमिसाल चुदाई के बाद की तस्कीनी का मज़ा लेने लगी और ना मालूम कब नींद के आगोश में चली गयी।
 
उस दिन से मेरी चुदाइयों के... मेरी बेराहरवियों के दायरे और भी खुल गये। ज़ाहिर सी बात है कि उस दिन से मैं कुत्तों से चुदवाने की इन्तेहा दीवानी हो गयी। प्रिंस के अलावा कुळदीप के पास एक और अल्सेशन कुत्ता था और सुरेंदर के पास भी प्रिंस जैसा ही एक डॉबरमैन नस्ल का कुत्ता था। किसी ना किसी तरह मैं इन तीनों कुत्तों से हर दूसरे-तीसरे दिन बाकायदा मुख्तलीफ़ तरीकों से चुदवाने लगी हालांकि अपने बाकी स्टूडेंट्स के साथ रोज़ाना चुदाई का सिलसिला पहले की तरह ही क़ायम रहा। इंटरनेट पे भी अब बिलखसूस जानवरों के साथ औरतों की चुदाई के किस्से पढ़ने और फ़िल्में देखना शुरू कर दिया। पाँच-छः हफ़्तों तक तो मैं इन तीनों कुत्तों तक ही महदूद रही और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मुनासिब मौकों पर दूसरे कुत्तों से भी चुदवाना शुरू कर दिया जिनमें अपनी जान-पहचान वालों या दूसरे स्टूडेंट्स के कुत्तों के अलावा गली के आवारा कुत्ते भी शामिल हैं। कईं दफ़ा मौका देख कर अपने किसी जान-पहचान वाले या दूसरी टीचरों या स्टूडेंट्स से उनके पालतू कुत्ते, जानवरों से लगाव और अकेलेपन में उनसे अपना दिल बहलाने के बहाने कुछ घंटों और कईं दफ़ा तो तमाम रात के लिये माँग कर अपने घर ले आती और फिर उन्हें फुसला कर उनसे खूब चुदवाती। इस तरह अब तक साल भर में कईं तरह की बड़ी नस्लों के कमज़ कम बीस कुत्तों के साथ हर तरह से चुदाई के मज़े ले चुकी हूँ।
 
वैसे हर कुत्ते को चुदाई के लिये फुसलाना आसान नहीं होता क्योंकि कुछ कुत्तों के साथ मुझे काफ़ी मेहनत करनी पड़ी और इनके अलावा चार -पाँच कुत्ते ऐसे भी थे जिनको मैं काफ़ी कोशिश के बाद भी चोदने के लिये राज़ी कार पाने में नाकाम रही। कुत्तों के साथ मैं हर तरह की चुदाई का खूब मज़ा लेती हूँ। बेहद शौक से उनके लौड़े मुँह में चूस-चूस कर उनकी मज़ी और मनी के ज़ायके का लुत्फ़ लेती हूँ। मैं तो हूँ ही पुख्ता गाँड-चुदासी तो ज़ाहिर है अपनी हस्सास चुदक्कड़ गाँड भी कुत्तों के लौड़ों से बाकायदा मरवाती हूँ। कुत्तों से चुदाई के दौरान सबसे पुर-चुदास और बेमिसाल लुत्फ़-अंदोज़ी मुझे उनके लंड की लट्टू-नुमा गाँठ के चूत या गाँड में अंदर घुसकर फंसने पर होती है।
 
बेशक़ मेरी दिल्चस्पी सिर्फ़ कुत्तों तक ही महदूद नहीं रही और जल्द ही मैं दूसरे मुख्तलीफ़ जानवरों से भी चुदाई का तसव्वुर करने लगी। कुत्तों से चुदाई के दो-ढाई महीनों में ही मेरी हवस का अगला शिकार सीधे घोड़ा बना। दर असल कुलद़ीप के फार्म-हाऊज़ पे ही मवेशियों के लिये छोटा सा अस्तबल भी था जिसमें दो बड़े-बड़े घोड़े भी थे। शुरुआती आठ-दस मौकों पर घोड़ों के साथ असल चुदाई नहीं हुई बल्कि मैं दोनों घोड़ों के अज़ीम लौड़े सहलाने और चूमने चाटने तक ही महदूद रही क्योंकि उन दोनों घोड़े को भी मुझ से मानूस होने में कुछ वक़्त लगा। शराब और हवस के नशे में मैं नंगी होकर मस्ती में उन घोड़ों के लौड़े खूब चूमती-चाटती और सहलाती और अपनी चूत पे... मम्मों पे... और रानों के दर्मियान रगड़ कर बेहद लुत्फ़-अंदोज़ होती। अपने जिस्म पे घोड़े के अज़ीम काले लौड़े के महज़ लम्स से ही तमाम जिस्म में शहूत भड़क उठती थी। मेरे सहलाने और चाटने से जब घोड़े का लंड फैलते हुए लंबा होने लगता तो ये नज़रा देखकर मेरे रोम-रोम में मस्ती भरी लहरें दौड़ने लगती और बाज़र और चूत के लबों पे घोड़े के लंड के महज़ लम्स का एहसास होते ही चूत भी फ़ौरन पानी छोड़ने लगती।
 
पहले-पहले ही दिन एक मज़हिया वाक़्या हुआ। मैं अलिफ़ नंगी हालत में हस्बे-आदत सिर्फ़ ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने अस्तबल में कुल्दीप और अनिल के साथ मौजूद थी। शराब और हवस के नशे में मैं काफ़ी देर से एक घोड़े का मुश्तैल लौड़ा सहलाते और चाटते हुए और उसकी इखराज़ होती मज़ी के मुनफ़रिद ज़ायक़े का मज़ा लेने में मशगूल थी कि अचानक उसके लौड़े ने झटका मारा और ग़ैर-मुतवक्का उस काले अज़ीम लौड़े ने मनी की तेज़ धार मेरे चेहरे ज़ोर से दाग दी और मेरा तमाम जिस्म घोड़े की मनी से सन गया। दोनों लड़के हंस-हंस के पागल हो गये लेकिन मुझे इसमें बेहद मज़ा आया क्योंकि घोड़े की मनी की मुख्तलीफ़ खुश्बू और ज़ायका बेहद ज़बरदस्त और लज़ीज़ थे।
 
खैर कुछ ही दिनों में मैंने उन लड़कों की मदद से एक छोटे से गद्देदार बेंच का इंतज़ाम कर लिया जिसपे उन घोड़ों के नीचे लेट कर मैं उनके लौड़ों को चूत में ठूँस कर चुदाई का बे-इंतेहा मज़ा लेती हूँ। हालाँकी घोड़ों का लंड फैल कर डेढ़-पौने दो फुट लंबा हो जाता है लेकिन मैं उसकी करीब तीन इंच मोटाई की वजह से मुश्किल से आधा लंड ही चूत में ले पाती हूँ और चूसते वक़्त मुँह में भी उसका महज़ सिरा ही ले पाती हूँ। घोड़े के लंड की जसामत के अलावा घोड़े से चुदाई की खास बात है कि उसके लौड़े से मनी इखराज़ होने के ठीक पहले उसका सुपाड़ा चूत में घंटे की तरह फैल जाता है और फिर मनी का इखराज़ इस कदर ज़बरदस्त प्रेशर से सैलाब की तरह होता है कि ऐसा महसूस होता है कि मनी मेरे हलक़ तक पहुँच कर मेरी मस्ती भरी चींखों के साथ मेरे मुँह से बाहर निकल जायेगी।
 
घोड़ों से चुदाई का सिलसिला शुरू होने के कुछ ही दिनों में मैंने गधों से भी चुदना शुरू कर दिया। हुआ यूँ कि एक शाम को मैं सन्जय के खेत पे उसके और सुरिंदर के साथ ऐयाशी कर रही थी कि मुझे घोड़े से चुदाने की बेहद तलब होने लगी। वैसे तो पहले भी दो-तीन दफ़ा कुल्दीप की ना-मौजूदगी में उसे फोन करके उसके फार्म-हाऊज़ के नौकर को दो-तीन घंटों के लिये वहाँ से फ़ारिग करवा कर घोड़ों से चुदने के मक़्सद से बाकी तीनों लड़कों में से किसी भी एक के साथ जा चुकी थी लेकिन उस दिन फार्म-हाऊज़ पे कुल्दीप के घर के लोगों की मौजूदगी की वजह से ये मुमकिन नहीं था। अल्लाह़ तआला को शायद मुझ पे तरस आ गया और नसीब से खेत में ही एक तरफ़ मुझे एक आवारा गधा नज़र आया। मैंने दोनों लड़कों से अपनी हसरत ज़ाहिर की तो वो दोनों उस गधे को फुसला कर ले आये और कमरे के बाहर मोटर के करीब बाँध दिया। एहतियात के तौर पे उसकी पिछली टाँगें भी बाँध दीं ताकि वो उछले नहीं। गधे ने ज़रा भी मुश्किल पेश नहीं की और मेरे सहलाने और चूमने-चाटने से फौरन उसका लौड़ा मुश्तैल होकर बड़ा होते हुए करीब ज़मीन तक लटक गया।
 
गौर तलब बात ये थी कि घोड़े से आधे कद का जानवर होने के बावजूद गधे का लौड़ा घोड़े के लौड़े से ज्यादा मोटा और कमज़ कम आधा फूट ज्यादा लंबा था। इतना ही नहीं बल्कि गधे के टट्टे तो घोड़े के टट्टों के निस्बतन बेहद बड़े थे। खैर गधे का लंड अपनी चूत में लेने के लिये मुझे किसी बेंच की जरूरत नहीं पड़ी। भूसे के बंडल पे उसके नीचे आसानी बैठ कर से मैंने उसका लंड अपनी चूत में घुसा लिया। शराब और शहूत की बेखुदी में महज हाइ पेंसिल हील के सैंडल पहने मैं फ़क़त नंगी उस खेत में खुले आसमान के नीचे बिल्कुल मस्त होकर अपने चूतड़ आगे-पीछे ठेलते हुए वहशियाना चुदाई का मज़ा लेने लगी। जैसे-जैसे मेरी शहूत परवान चढ़ने लगी तो मैंने गधे का करीब आधा लौड़ा अपनी चूत के आखिर तक घुसेड़ लिया और जल्द ही मेरी चूत पानी छोड़ने लगी।
 
सिसकते हुए मैंने अपनी चूत उसके मोटे लौड़े पे जितना मुमकिन था उतनी तेज़ी से ठेलनी ज़ारी रखी। गधे का लौड़ा भी पहले से ज्यादा सख्त और फुला हुआ महसूस होने लगा था और इस दौरान मैं जोर-जोर कराहते और चींखते हुए तीन-चार दफ़ा ज़बरदस्त तरीके से झड़ी। फिर गधे के लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर अचानक घंटे की तरह फूल गया तो घोड़ों के साथ चुदाई के तजुर्बे से मैं समझ गयी कि अब वो गधा अपनी मनी से मेरी चूत भरने के करीब है। मैंने अपनी सैंडल के तलवे और ऊँची पतली हील ज़ोर से ज़मीन में गड़ाते हुए गधे के लंड को जोर से अपने हाथों में कस लिया ताकि उसकी मनी की पिचकारी के धक्के से पीछे छूट कर ना गिर पड़ूँ। उसका लौड़ा पहले ही मेरी चूत के आखिर तक घुसा हुआ था और अब मनी की ज़ोरदार पिचकारियाँ छूटने के सबब से चूत में प्रेशर और भी ज्यादा बढ़ने लगा और मनी की बड़ी मिक़दार के लिये मेरी चूत और फैल गयी। मैं भी अपनी बच्चे-दानी पे मनी की ज़ोरदार पिचकारियाँ सहती हुई लुत्फ़-अंदोज़ी में ज़ोर से चींखते हुए पुर-जोर झड़ने लगी। मेरी लबालब भरी चूत में से उसका लौड़ा बाहर निकलते ही चूत में से मनी भी ज़ोर-ज़ोर से फूट-फूट कर बाहर बहने लगी और मेरी दोनों टाँगों और पैर और सैंडल गधे की मनी से बुरी तरह तरबतर हो गये। मैं भी इस दौरान ज़ायके के लिये उसकी मनी अपने चुल्लू में भर कर लज़्ज़त से पी गयी। 
 
हालाँकी गधे और घोड़े की चुदाई में कोई खास फ़र्क़ तो नहीं था लेकिन मुझे इस बात की बेहद खुशी थी कि उस दिन मेरी बदकारियों और बेराहरवियों में एक और नये जानवर के लंड से चुदवाने का हसीन तमगा जुड़ गया था। मुस्तकबिल में भी उस गधे के साथ चुदाई के मज़े ले सकूँ इसलिये मेरे कहने पर उस आवारा गधे को संजय़ ने अपने खेत पे ही रख लिया जहाँ खेत पे काम करने वाले मजदूर उसकी थोड़ी देखभाल के साथ-साथ खाने के लिये चारा वगैरह भी डाल देते हैं। मेरा जब भी दिल करता है तो हफ़्ते दो-हफ़्ते में ज़रूर वहाँ जा कर गधे से चुदाई का मज़ा ले लेती हूँ।
 
मेरा हवस-ज़दा दिलो-दिमाग तो हर वक़्त चुदाई के नये-नये मुख्तलिफ़ तजुर्बे करने की फ़िराक़ में रहता ही है तो मेरी बेराहरवियों में जल्दी ही दो और नये जानवर, बकरे और बैल शामिल हो गये। इनमें से पहले बारी आयी बकरों की! दर असल कुल्दीप के फार्म-हाउज़ के बगल वाली ज़मीन के छोटे से टुकड़े पे एक गरीब किसान रहता था। उसके पास दो-भैंसे और कईं बकरियों का हुजूम था जिसमें एक-दो तगड़े बकरे भी शामिल थे। एक दिन बदस्तूर मैं कुल्दीप के फार्म-हाउज़ पे संजय और अनिल और कुल्दीप के साथ दोपहर से ही ऐयाशियाँ कर रही थी और शाम तक तीनों लड़कों से चुदवा-चुदवा कर उन्हें बिल्कुल पस्त कर चुकी थी। थोड़ी देर आराम करने के बाद मेरी चूत फिर चुदने के चुलचुलाने लगी तो मैं घोड़ों के अज़ीम लौड़ों से अपनी शहूत पूरी करने का इरादा बनाया। घोड़ों से चुदाई के वक़्त शुरू-शुरू में तो मैं एहतियात के तौर पे कमज़ कम एक लड़के को तो हिफ़ाज़त के लिये साथ रखती थी लेकिन अब इतने महीनों में तो घोड़ों से चुदाई में बिल्कुल माहिर हो चुकी थी। इसलिये हस्बे मामूल उन लड़कों को इतला करके मैं अकेली ही घोड़ों से चुदाई के लिये बेकरारी और शराब के नशे की हालत में पीछे के दरवाजे से अस्तबल की तरफ जाने के लिये बाहर निकली। उस वक़्त मैं सिर्फ़ ऊँची पेंसिल हील की सैंडल पहने बिल्कुल नंगी हालत में थी और इसके अलावा मेरा जिस्म उन तीनों लड़कों के पेशाब में भीगा हुआ था क्योंकि कुछ ही देर पहले मैंने बेहद मज़े से उनके पेशाब की धारों में भीगने और मुँह में भर-भर कर उनका पेशाब पीने की पर्वर्टिड हसरत पूरी करने का लुत्फ़ भी उठाया था।
 
खैर मैं अस्तबल की तरफ़ जा ही रही थी कि अचानक मुझे अस्तबल के करीब ही एक बकरा नज़र आया। वो बकरा बगल वाले किसान का था और शायद गलती से फार्म-हाऊज़ के अहाते में घुस आया था। ज़ाहिर सी बात है कि मेरी हवस-ज़दा और माहिर नज़रों ने दूर से देखते ही फ़र्क़ कर लिया कि वो बकरी नहीं बकरा है! उसके ज़मीन तक लटकते हुए बड़े-बड़े काले टट्टे मेरी चुदास नज़रों से कैसे छुप सकते थे। उसी पल मेरे ज़हन में उस बकरे से चुदाई का ख्याल दौड़ गया और तमाम जिस्म में हवस भरी तूफ़ानी लहरें दौड़ने लगीं। चूत उस बकरे से चुदने की हसरत में चुलचुलाने लगी। मेरे कदम खुद-ब-खुद उस बकरे के जानिब बढ़ गये। उसके नज़दीक जाते ही पेशाब की बेहद तीखी बदबू मेरी नाक में टकरायी और मेरी साँसों में भर गयी। वो बकरा बार-बार गर्दन घुमा कर खुद का ही लंड मुँह में चूसने की कोशिश कर रहा था। मैं समझ गयी कि मेरी किस्मत बुलंदी पे थी क्योंकि अ़ल्लाह के फ़ज़ल से उन दिनों उस बकरे का चुदाई का मौसम चल रहा था। मैं तो पहले भी कईं दफ़ा मुश्त ज़नी के दौरान बकरे से चुदाई का तसव्वुर कर चुकी थी और आज अल्लाह त-आला ने मेरी ये दुआ भी कुबूल कर ली थी और मेरी हसरत को पूरा करने का बिल्कुल मुनासिब मौका बख्शा था।
 
बकरे के जिस्म से पेशाब की तीखी बू मुझे ज़रा भी नगवार नहीं गुज़री बल्कि उसका बेहद शहवत अंगेज़ असर हुआ क्योंकि इंटरनेट की बदौलत मैं जानती थी कि चुदाई के मौसम में बकरों पे जब शहूत सवार होती है तो बकरियों को लुभाने के लिये वो खुद के और बकरी के जिस्म और चेहरे पे पेशाब छिड़कते हैं। इसके अलावा मैं खुद भी तो अपने साबिक़ स्टूडेंट्स के पेशाब में भीगी हुई थी। उसे भी शायद मेरी रसीली चूत और मेरे जिस्म से पेशाब की दिलकश महक आ गयी थी क्योंकि वो भी मेरी तरफ़ लपका और मिमियाते हुए अपना सिर मेरी रानों के बीच में घुसा कर सूँघने लगा और फिर मेरी चूत और उसके इर्द-गिर्द चाटने लगा।
 
उसकी इस हरकत से मेरा जिस्म अजीब सी मस्ती में काँपने लगा और नशे की हालत में मैं ज्यादा देर खड़ी नहीं रह सकी और तवाज़ुन बिगड़ जाने से वहीं घास पे चूतड़ टिका कर टाँगें फैलाये बैठ गयी। वो बकरा मेरी इस हरकत से चौंक गया और ज़ोर से मिमियाते हुए फिर से मेरी रानों में सिर डाल कर सूँघने और चाटने लगा। इतने में मेरी चुदास नज़र उसके चमकते हुए सुर्ख लंड पे पड़ी जो लंबाई और मोटाई में इंसानी लंड या कुत्ते के लंड के जैसा ही था और कुत्ते के लंड की तरह उसका भी इंसानी लंड जैसा सुपाड़ा नहीं था। उसके शहवत-अमेज़ दिलकश लंड के सीरे से मज़ी या पेशाब की बूँदें टपकती देख कर मेरे मुँह में पानी आ गया। मुझे वो लंड मुँह में ले कर चूसने और उसकी मनी का ज़ायका चखने की शदीद तलब हो रही थी लेकिन इस वक़्त उसकी लंबी गरम और मुलायम ज़ुबान से अपनी चूत चटवाने में मिल रहे मज़े से भी मैं महरूम रहना नहीं चाहती थी। उसकी ज़ुबान के ज़बरदस्त थपेड़ों से मेरे बाज़र में चिंगारियाँ फूट रही थीं और मैं मस्ती में सिसकने लगी थी। मैं एक हाथ से उसके उसकी मुलायम गर्दन और चेहरा सहलाने लगी और दूसरा हाथ उसके मुड़े हुए मोटे सींगों में से एक पे लपेट दिया। उसकी गर्दन और सींग को जकड़े हुए मैं मस्ती में अपनी गाँड उठा-उठा कर अपनी चूत उससे चटवा रही थी। मेरी चूत में से मुसलसल बहते रस को वो बकरा मिमियाते हुए खूब मज़े से चाट रहा था। उसकी फड़फड़ती ज़ुबान के थपेड़े कुत्तों की ज़ुबान से भी ज्यादा ज़बरदस्त और मज़ेदार थे।
 
मेरी शहूत पूरे परवान पे थी। मेरे जिस्म के हर हिस्से से बिजली के करंट जैसी मस्ती भरी लहरें दौड़ती हुई मेरी चूत में आँधी की तरह आपस में टकराती हुई तुफ़ान मचाने लगीं। अचानक मेरी चूत में बेहद ज़ोरदार धमाका हुआ और मैं मस्ती में जोर से चींखते और छटपटाते हुए झड़ने लगी। मेरी चूत का रस सैलाब की तरह फूट पड़ा जिसे वो बकरा बेहद शौक से मेरी चूत और रानों पे से चाटने लगा। बेहद कयामत-खेज़ ऑर्गैज़्म था। आखिरकार जब मेरा झड़ना बंद हुआ तो भी मेरी चूत में लरजिश और झनझनाहट क़ायम थी।
 
मेरी चूत के रस की एक-एक बूँद चाट लेने के बाद वो बकरा अपना सिर उठा के बड़े तजस्सुस से मुझे देखने लगा जबकि मैं चुदास नज़रों से उसके दिलकश लंड को निहार रही थी। उसके धड़कते लंड को देख कर साफ़ ज़ाहिर था कि मेरी चूत के रस के ज़ायके और खुशबू से बकरे की शहूत भी बढ़ गयी थी। बकरे के लंड को मुँह में ले कर चूसने और उसकी मनी के ज़ायके के खयाल से मेरे जिस्म में सनसनी सी दौड़ गयी। अपने लबों पे ज़ुबान फेरते हुए मैं उसके करीब गयी। अपनी कमर गोल करके मोड़ते हुए और एक घुटना ऊपर मोड़कर मैं एक करवट पे लेटते हुए उसके नीचे झुक गयी। मेरा चेहरा बिल्कुल उसके लंड के करीब था और उसे देख कर मेरे मुँह में पानी आ रहा था। जैसे ही मैंने उसके फड़कते लंड को अपनी उंगलियों में पकड़ा तो उसका लंड मुश्तैल होकर जोर से आगे-पीछे झटके मारने लगा और अचानक उसमें से पेशाब के दो-तीन स्प्रे मेरे चेहरे पे पड़े। मेरा तमाम चेहरा उसके पेशाब से भीग गया। हालांकि उसके जिस्म से पेशाब की बू साँसों में पहले से समायी हुई थी लेकिन चेहरे पर सीधे छिड़काव से ज़बरदस्त तीखी बू-ए-पेशाब मेरी नाक में ज़ोर से टकरायी जिससे मेरी चुदास और ज्यादा भड़क गयी। अपने होंठों से उसके पेशाब का ज़ायका लेने की लिये मेरी ज़ुबान खुद-बखुद बाहर निकल आयी। मैं तो अक्सर लज़्ज़त से अपने स्टूडेंट्स का पेशाब पीती थी और किस्म-किस्म के ज़ायकों की आदी थी लेकिन बकरे के पेशाब का ज़ायका तो याल्लाह उन सबसे बेहद मुनफ़रीद और खुशगवार था। बकरे के पेशाब का तुंद-ओ-तेज़ ज़ायका मुझे बेहद शहवत अमेज़ लगा और मैं अपने होंठ चपचपाते हुए उसके ज़ायके का लुत्फ़ लेने लगी।
 
गर्दन आगे झुका कर मैं बड़ी बेसब्री से अपनी गरम ज़ुबान उसके तमाम लंड पे हर जगह फिराते हुए उस रसीले गोश्त को सुड़क-सुड़क कर चाटने लगी। उसका लंड मेरे चाटने से अकड़ कर फूलने लगा और वो बकरा मस्ती में अपने पैर हल्के-हल्के झटकते हुए ज़मीन पे थाप मारने लगा। उसे भी मस्ती चढ़ रही थी और इस दौरान उसके अकड़ते हुए लंड ने एक के बाद एक पेशाब के दो-तीन स्प्रे छोड़े जिन्हें मैं फोरी तौर पे सीधे अपने मुँह में लेकर बड़ी लज़्ज़त से चटखारे लेते हुए पी गयी। उसका लंड चाटते हुए मेरी प्यास और ज्यादा बढ़ती जा रही थी। मस्ती में जिस कदर मेरी चूत में रस निकल रहा था... बिल्कुल उसी मिक़दार में मेरे मुँह से राल भी बह रही थी और मेरी ज़ुबान भी मेरे बाज़र की तरह ही मुश्ताइल थी। बकरे का लंड चाटते-चाटते मैंने उसे अपने मुँह में भर लिया तो बकरे ने हल्के से झटका खाया। जिस तरह मैं अपने स्टूडेंट्स और कुत्तों का लंड मुँह में भर कर मज़े से चूसती हूँ उसी तरह बकरे का तमाम लंड मुँह में आगे-पीछे करती हुई पुर-शहवत चूस रही थी। उसके फूलते हुए लंड से रस मेरे मुँह में मुसलसल इखराज हो रहा था। उसका ज़ायका शुरू-शुरू में तो बिल्कुल उसके पेशाब की तरह था और फिर धीरे-धीरे तब्दील होकर नमकीन और खट्टी लस्सी जैसा ज़ायका होने के साथ-साथ पहले से ज्यादा सा लेसदार हो गया। उसकी लेसदार मज़ी और मेरी राल आपस में घुलकर मेरे मुँह में हर तरफ़ बहते हुए मेरे हलक में गिरने लगे। इसी तरह लज़्ज़त से बकरे का लंड चूसते हुए मेरी नाक लंड के पीछे वाले मुलायम खोल को छू रही थी। मेरे मुँह से गलगलाने और ‘फच्च-फच्च’ की भीगी-भीगी आवाज़ें निकाल रही थी।
 
बीच-बीच में उसके लंड का सिरा झटके के साथ मेरे हलक में फिसल जाता तो मेरी साँस अटक सी जाती लेकिन इससे मुझे ज़रा भी दिक्कत नहीं थी क्योंकि मैं तो वैसे भी अपने हलक में लौड़े ले-ले कर चूसने में बेहद माहिर हूँ। बकरे का लंड मुँह में लेकर चूसते हुए बदकारी और फ़ाहाशी का एहसास मेरी शहूत और भड़का रहा था। उधर बकरा भी मस्ती में मुसलसल जोर-जोर से मिमिया रहा था। इतने में उसका जिस्म ज़ोर से थरथराने लगा और उसका लंड भी मेरे मुँह में फूल कर झटके खाने लगा तो मैं समझ गयी कि बकरा मेरे मुँह में अपनी मनी इखराज़ करने के करीब था। बकरे की मनी पीने की मेरी आरज़ू अब पूरी होने के करीब थी... इस ख्याल से मेरे तमाम जिस्म में मस्ती भरी सनसनी लहरें दौड़ने लगीं। मेरा जिस्म भी बकरे के जिस्म की तरह थरथराने लगा और अचानक उसकी मनी की तेज़ पहली धार इस कदर ज़ोर से मेरे हलक में टकरायी की मुझे झटका सा लगा और मेरी आँखें हैरत से फैल गयीं। उसके लंड से मनी की तेज़ धारें एक के बाद एक छूटने लगीं और मेरा मुँह उसकी लज़्ज़त-अमेज़ मनी से लबालब भरने लगा। मैं बड़ी शिद्दत से बकरे की मनी निगलने की कोशिश कर रही थी जैसे कि वो ‘आबे-हयात’ हो लेकिन अपने होंठों के किनारों से मनी बाहर बहने से मैं रोक नहीं सकी। इस दौरान वो बकरा मिमियाते हुए मेरे मुड़े हुए घुटने पे अपना सिर ऊपर-नीचे रगड़ता हुआ अपनी टाँगें फैलाये खड़ा था। आखिर में उसकी मनी का इखराज़ रुकने के बाद भी मैं उसका लंड अपने मुँह में चूसती रही और उसकी ज़ायकेदार मनी की आखिरी बूँद निचोड़ लेने के बाद ही मैंने उसका लंड अपने होठों की गिरफ़्त से आज़ाद किया।
 
वो बकरा मिमियाते हुए तजस्सुस भरी निगाहों से मेरी जानिब देख रहा था। बकरे का लंड चूसने और उसकी मनी पीने की अपनी दिली मुराद तो मैंने शिद्दत से पूरी कर ली थी लेकिन मेरी प्यासी चूत भी तो बकरे से चुदाने के लिये बेकरार थी। मुझे फ़िक्र हुई कि मेरे हलक में अपनी मनी इखराज करने के बाद मालूम नहीं बकरा अब मुझे चोदने के काबिल भी होगा कि नहीं लेकिन मेरी नज़र जैसे ही उसके लंड पे पड़ी तो मेरा तमाम शक़ दूर हो गया। उस वक़्त तो मुझे इस बात का इल्म नहीं था लेकिन बाद में इंटरनेट की बदौलत मालूम पड़ा कि चुदाई के दिनों में एक बकरा अकेला ही कईं बकरियों को मुसलसल चोदने की सलाहियत रखता है।
 
सूरज डूबने के बाद आसमान में शफ़क़ की सुर्खी छायी हुई थी और मैं खुले आसमान के नीचे... दीन-दुनिया से बिल्कुल बेखबर... हवस और शराब के नशे में मखमूर... सिर्फ़ ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल मादरजात नंगी हालत में उस बकरे से चुदवाने की अपनी फ़ाहिश हसरत को अंजाम देने के लिये अपने घुटनों और हाथों के बल कुत्तिया की तरह या ये कहें कि बकरी की तरह झुक गयी और अपनी गाँड हवा में ऊपर उठा कर उससे चुदने के लिये तैयार हो गयी। मैंने ‘पुच-पुच’ करके उसे पास बुलाया लेकिन वो अपनी जगह से हिला नहीं और सिर्फ़ मिमियाते हुए मेरी तरफ़ देखने लगा। मैं खुद ही फिर घुटनों के बल पीछे की तरफ़ रेंगती हुई उसकी करीब गयी और उसके चेहरे के ठीक सामने अपनी गाँड ठेल कर हिलाने लगी। उसने मेरी चूतड़ों के बीच में सूँघते हुए मेरी चूत पे अपनी ज़ुबान से दो-तीन चुप्पे लगाये और फिर खड़े होकर मिमियाने लगा और कुछ नहीं किया। मुझे बड़ी मायूसी हुई कि कैसे उसे चोदने के लिये उक्साऊँ... इतने में अचानक मुझे पेशाब लगने का एहसास हुआ और मैं उसी पोज़िशन में मूतने लगी और मूतते हुए अपनी गाँड किसी बकरी की तरह उस बकरे के चेहरे पे ठेल दी। वो बकरा एक दम से हरकत में आ गया और मेरे चूतड़ों में अपना चेहरा घुसेड़ कर मिमियाते हुए मेरा पेशाब पीने लगा। इस दौरान बकरे का चेहरा भी मेरे पेशाब से भीग गया।
 
फिर अचानक जब मुझे उम्मीद भी नहीं थी कि वो बकरा लपक कर मेरे ऊपर बड़ी फुर्ती से सवार हो गया और उसका लंड मुझे अपने चूतड़ों के दर्मियान और चूत के ऊपर ज़ोर-ज़ोर से चुभता हुआ महसूस होने लगा। बकरे का लंड मेरी चूत और गाँड की दरार में और चूतड़ों पे अपने पेशाब की पिचकारियाँ भी छोड़ रहा था। मैं भी तड़पते हुए उसका लंड अपनी धधकती चूत में लेने के लिये अपनी गाँड हिलाने-डुलाने लगी तो बकरे के लंड को अचानक मेरी चूत की गुज़रग़ाह मिल गयी। मेरी भीगी चूत तो पहले से ही बखूबी चिकनी थी और उस बकरे ने घुरघुराते हुए एक ही झटके में जोर से अपना तमामतर लौड़ा मेरी चूत में घुसेड़ दिया। बकरे का झटका इतना ज़ोरदार था कि अपने हाथों और घुटनों पे तवाज़ुन बिगड़ने से मैं आगे की ओर गिरते-गिरते बची। टट्टों तक उसका तमाम लंड अपनी चूत में लेते हुए मैंने खुद को पुरी तरह उस बकरे को सौंप दिया।
 
अब मैं एक चुदासी बकरी की तरह उस ताक़तवर बकरे से चुदवाने लगी। बकरा बेहद ज़ोर-ज़ोर से अपना लंड मेरी चूत में इंसानों की तरह अंदर-बाहर चोदने लगा और मैं चुदाई की मस्ती में इस कदर मजनून और अलमस्त हो गयी कि मुझे अपने अतराफ़ किसी भी चीज़ किसी बात का बिल्कुल होश नहीं रहा। मुझे तो बस अपनी चूत में उस बकरे के लंड की तूफ़ानी वहशियाना चुदाई और उसके लंड से छूटती मनी की पिचकारियों की लज़्ज़त की चाहत थी। वो बकरा ज़ोर-ज़ोर से जुनूनी ताल में अपना लंड मेरी चूत में पुर-जोश चोद रहा था और मैं उससे चुदते हुए मस्ती और बेखुदी में ज़ोर-ज़ोर से सिसक रही थी... कराह रही थी। इतने में बकरे ने घुरघुराते हुए अचानक ज़ोरदार झटका मारते हुए अपना लंड मेरी चूत में पुरी ताकत से अंदर पेल दिया। इंतेहाई मस्ती के आलम में मेरी शहूत भी पूरे परवान पे थी और जैसे ही मुझे बकरे की गरम मनी की पिचकारियाँ अपनी चूत में दगती हुई महसूस हुई तो मैं भी बा-शिद्दत झड़ने लगी। मेरी लज़्ज़त-अमेज़ चींखें फ़िज़ा में गूँज गयीं। अपनी तमाम मनी मेरी चूत में इखराज़ करने के बाद बकरे ने अपना लंड बाहर खींच लिया और मैं अपने जिस्म में दौडती लज़्ज़त-अमेज़ लहरों की मस्ती और बकरे से चुदवाने की हसीन हसरत पूरी होने की शहवती मुसर्रत में डूबी हुई कुछ देर उसी हालत में मुतमईन वहाँ पेट के बल लेटी रही। फिर मैं ऊँची हील की सैंडल में लड़खड़ाटी हुई किसी तरह वापस अंदर चली गयी।
 
मेरे तीनों स्टूडेंट्स को जब मालूम हुआ कि मैं घोड़े की बजाय बाहर एक बकरे से चुदवा कर आ रही हूँ तो उन्हें ज्यादा ताज्जुब नहीं हुआ क्योंकि मेरी शहवत और जिन्सी बेराहरवियों की इंतहाओं से वो अब तक बिल्कुल वाक़िफ़ हो चुके थे। वो लोग कईं दफ़ा मज़ाक-मज़ाक में कह चुके थे कि “तब्बू मैडम को इत्तेफ़ाक़ से अगर कभी मेंढक का लंड दिख गया तो तब्बू मैडम मेंढक से चुदवाने में भी गुरेज़ नहीं करेंगी!” असल बात ये है कि मैं खुद उनकी इस बात से पूरा इत्तेफ़ाक़ रखती हूँ। बकरे से चुदवाने में मुझे खास मज़ा इसलिये भी आया कि दूसरे जानवरों के मुकाबले बकरे के चोदने का अंदाज़ बेहद इंसानों जैसा था। खैर उस दिन के बाद मैंने आने वाले ढाई-तीन हफ़्तों में तो उस बकरे से कईं दफ़ा चुदवाया। वो लड़के उस बकरे के मालिक को पैसे दे कर वो बकरा थोड़ी देर के लिये ले आते और मैं खूब दिल और चूत खोलकर उससे चुदवा-चुदवा के अपनी शहूत पूरी करती। लेकिन जल्दी ही बकरे का चुदाई का मौसम ठंडा पड़ने से उससे चुदवाने का सिलसिला पाँच-छः महीने के लिये बंद हो गया।
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RE: हिंदी की सुनी-अनसुनी कामुक कहानियों का संग्रह - by rohitkapoor - 20-08-2023, 06:27 PM



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