06-06-2023, 11:35 AM
औलाद की चाह
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-35 B
योनि सुगम- गुरूजी का सेक्स ट्रीटमेंट
गुरु-जी ने अपने लंड को मेरी योनि में और भी तेज और गहराई से पटक दिया और मैं उनके लंड के अपनी योनि के अंदर पूरा महसूस कर रही थी। जाहिर तौर पर पहले मेरे मन में एक शंका थी कि क्या मैं गुरु जी के राक्षसी लण्ड को अपनी चुत में पूरी तरह से ले पाऊँगी लेकिन अब मैं हैरान और बहुत खुश थी कि थोड़े से शुरूआती दर्द के बाद और फ़िब्रोइड को ध्वस्त करने के बाद मैं बिना किसी कठिनाई के उसे पूरी तरह से अपनी चूत में ले रही थी!
अब मैंने अपनी बाहों और जाँघों को उनके चारों ओर कस कर लपेट लिया और मैंने अपनी योनि को ऊपर की ओर गुरु जी के लिंग पर जोर से और दबाव के साथ उछलना शुरू कर दिया। मुझे पता था कि मैं इसे और अधिक नहीं रोक सकताी क्योंकि मैं बहुत अधिक पानी छोड़ रही थी। मेरे पूरे शरीर में झटका लगा क्योंकि मेरी योनि की मांसपेशियाँ गुरु जी के लिंग को जकड़ रही थीं और मेरा चरम सुख चरम पर था। और मैं कराह रही थी ।
में: ऊऊउ .........। मममम माआ ...उउउउउ ... आआ आआज़ ...ऊऊऊओईईईईई ii...
गुरूजी बेसुध होकर मेरी चूचीयों को दबा-दबा कर पिये जा रहे थे कभी रुककर सहलाने लगते, कभी निप्पल को चूसने लगते, कभी मुँह में भरकर तेज-तेज पीने लगते, कभी निप्पल को दोनों होंठों के बीच दबा कर चूसते, कभी जीभ से पूरी चूची को चाटने लगे और गुरूजी के थूक से मेरी गोरी-गोरी चूचीयाँ उस रोशनी में और भी चमकने लगी। गुरूजी के सख्त हाँथ मेरी कोमल नरम गुदाज चूचियों को रगड़-रगड़ कर मसल रहे थे, जब गुरूजी कस के चूची को दबाते और फिर निप्पलों को गुरूजी जीभ से चाट रहे थे मैं गुरूजी की मस्ती देख वासना में कराह उठती।
मैं गुरूजी से अपनी चूचीयाँ मसलवा रही थी। मैं सनसना कर कभी आंखें बंद कर लेती, कभी गुरूजी को चूची पीते हुए देखने लगती, लगातार मेरा एक नरम-नरम हाँथ अपने के सिर को प्यार से सहला रहा था और दूसरा हाथ उनकी पीठ पर था, रह-रह कर मैं गुरूजी का सर अपनी दोनों चूचियों के बीच दबा भी देती, कस के खुद ही अपनी चूचियों को गुरूजी के मुंह में भरकर कराह उठती " ...आह...!
फिर कराहते हुए मैंने अपना दाहिना हाँथ नीचे ले जाकर मैंने गुरूजी का दहकता काला मूसल लंड जो मेरी गीली योनि की फांकों में रगड़-रगड़ कर हलचल मचा रहा था, पकड़ लिया और उनके अंडकोषों को पकड़ कर सहला दिया, गुरूजी के मूसल लंड को पकड़कर मेरे चेहरे पर फिर शर्म की लालिमा तैर गयी, गुरूजी का लंड पहले से भी विकराल रूप ले चुका है, काफी देर से उत्तेजना में होने की वजह से मोटी-मोटी नसे खून के वेग से उभरकर खुरदरा अहसाह कर रही थी, लंड को हाँथ में लेते ही मेरी आह भरी सिसकी निकल गयी।
मेरे नरम-नरम हाँथ का अहसाह अपने लंड पर पाकर गुरूजी की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, मैंने लंड और अंडकोषों पर बड़े प्यार से हाँथ फेरा, एक-एक हिस्से को हल्का दबा-दबा कर सहलाया, गुरूजी के दोनों मोठे-मोठे अण्डकोषो पर काले-काले बाल भी थे उन्हें अपनी हथेली में लेकर कुछ देर तक बड़े प्यार से सहलाया, गुरूजी का लंड मेरे नरम-नरम हाथों की छुवन पाकर बार-बार उछलने लगा।
गुरूजी मस्ती में चूची पीना छोड़कर रश्मि की आंखों में बड़े प्यार से देखने लगे । मैं धीरे-धीरे लंड को सहलाती रही और दोनों के होंठ मस्ती में मिल गए, गुरुजी ने अपनी गांड को थोड़ा ऊपर को उठा लिया ताकि मुुझे हाँथ चलाने में दिक्कत न हो और मैं लंड को अच्छे से महसूस कर सहला सकूँ। मैं गुरूजी के बड़े चौड़े लंड को कभी हथेली में भरती, कभी उसकी पूरी लंबाई पर हाँथ फेरती, कभी लंड के जोड़ पर घने घुंघराले बालों में उंगलियाँ चलती, कभी हाँथ नीचे की तरफ कर उनके बड़े अंडकोषों को सहलाती, मारे उत्तेजना के लंड सख्त होकर लोहा बन गया था, बार-बार मस्ती में ठुनक रहा था, उछल रहा था, गुरूजी ने मेरे होंठों और गालों को चूमना जारी रखा।
लंडमुंड पर खून लगा था जो इस बात का सबूत था की योनि के अनदर का अवरोध अब छिन्न भिन्न्न हो चूका है .
मैं गुरूजी के लंड को सहलाये जा रही थी और गुरूजी भी अपना एक हाथ नीचे ले जाकर मेरी गर्म और गीली योनि को हथेली में भर लिया, मैं सिसक उठी " आआआह हाय... आह गुरूजी ...आआआह ...चोदिये न मुझे...अच्छे से...चोद दीजिये ...अब बर्दाश्त नहीं होता मुझसे...मजा लीजिये न मेरी इस तंग योनि का और दूसरे ही पल मैंने अपनी जांघों को अच्छे से खोलते हुए अपनी मदमस्त गोरी-गोरी प्यारी-सी मखमली चूत गुरूजी के सामने परोस दी और मैंने गुरूजी के मूसल लिंग को एक दो बार योनि के ओंठो और दाने पर रगड़ा फिर बड़ी मादकता से शर्माते हुए लजाते हुए अपनी तर्जनी और मध्यमा दो उंगली से अपनी चूत की फांकों को खोलकर उसका गुलाबी छेद जो चाशनी से भरा था उस पर लिंग लगा कर अपनी गांड ऊपर उठा दी और लंड अंदर ले लिया ।
गुरूजी से मेरा ये आग्रह सुना और साथ में लंड के सुपाड़ी पर योनि का कसाव अनुभव किया ।
गुरूजी े अब रहा नहीं गया उन्होंने आगे झुक कर मेरे ओंठो को अपने ओंठो में भर लिया चूसते हुए अपनी कमर नीचे को दबा दी, मैं अब हाय-हाय करने लगी " आआआआआआआ हहहहहहहह बाबू ...हाय मेरी चूत...धीरे धीरे गुरूजी ...नही तो मैं झड़ जाउंगी ...आआआह माँ... ...प्यार से ...आआआह ...आआआह...ऊऊईईईईई... ओ-ओ ओ ओ-ओ हहहहहह अम्मा...धीरे धीरे मेरे राजा मेरे प्यारे गुरूजी ...हाय मेरी चूत (अपने एक हाथ से मैं अपनी योनि को पागलों की तरह सहलाये जा रही थी और मस्ती में सिसकते हुए बड़बड़ाये जा रही थी) , आआआह गुरूजी आपकी गरम-गरम जीभ...आह बस गुरूजी मैं झड़ जाउंगी...आह बस...मुझे आपके लंड से झड़ना है गुरूजी ...ऊऊईईईईई माँ ...गुरूजी ।
तो गुरूजी ने लंड बाहर निकाल लिया तो मैं तड़प उठी और बोली ।
मैं:-अब करिये न गुरूजी ।
गुरूजी मुझे छेड़ते हुए बोले ।
गुरूजी: क्या करूँ रश्मि?
मैं:-और क्या गुरूजी ... अब चोदिये मुझे मैं शर्माते हुए बोली और आँखे बंद कर चेहरा उनकी छाती में छुपा लिया ।
अब गुरूजी पूरी तरह बेकाबू हो गए और बोले-हाय री रंडी ...रश्मि बेटी! ...कैसे डालूं...धीरे धीरे या एक ही बार मे?
(ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरा चेहरा अपने छाती से अलग किया और ओंठो को चूम लिया, मैंने बड़े प्यार से कहा ।
मैं :-एक ही बार में गुरूजी ...एक ही बार में!
गुरूजी-एक ही बार में सीधे बच्चेदानी तक ?
मैं कराहते हुए- हाँ गुरूजी ...हाँ एक ही बार में सीधे बच्चेदानी तक!
गुरूजी ने मुझे चूमा और बोले
गुरूजी:-रश्मि! तो फिर लंड को पकड़ कर सीध में लगा दो और एक हाथ से अपनी चूत की फांक को खोल कर रखो "
मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया.
ऐसा कहते हुए दोनों ने पोजीशन ली और गुरूजी मेरे ऊपर झुक गए, कमर को जरूरत भर के हिसाब से उठा लिया।
गुरूजी ने मुझे चूमा और मैंने भी मारे उत्तेजना के गुरूजी को ताबड़तोड़ कई बार चूम लिया और जल्दी से दोनों जांघों को अच्छे से फैलाकर कराहते हुए अपने हाँथ नीचे ले जाकर एक हाँथ से गुरूजी के दहकते कड़े बड़े सख्त और मूसल लंड को पकड़कर एक बार फिर अच्छे से सहलाया, चमड़ी को और अच्छे से खोलकर पीछे किया और जल्दी से अपना हाँथ अपने मुंह तक लायी और ढेर सारा थूक लेकर गरम-गरम थूक काले फंफनाते लंड पर लगा दिया, फिर मैंने लंड को ठीक चूत के छेद पर लगाया और दूसरे हाथ से अपनी चूत की फांकों को चीरकर खोल दिया।
गुरूजी ने मेरे होंठों को चूमते हुए पहले तो पांच छः बार लंड कोचूत की दरार में रगड़ा, फिर चिकने सुपाड़े को चूत के गुलाबी छेद के मुहाने पर कई बार छुआया जिससे दोनों मस्त हो गए, मैं बस सिसकती जा रही थी, एकाएक लंड को छेद पर लगाकर गुरूजी ने तेज धक्का मारा और लंड चूत की फांकों को फैलाता हुआ संकरी रसीले छेद को चीरता हुआ पॉर्रा का पूरा चूत की गहराई में उतर गया और उनके अंडकोष योनि के ओंठो से टकराये और ठप्प की आवाज आयी ।
में:-आआआ आआआआआ हहहहहह... गुरूजी!
मैं मस्ती में कराह उठी, लंड सीधा बच्चेदानी से जा टकराया, मैंने दोनों हाथों से गुरूजी के नितम्बो को अपनी योनि पर दबा दिया और हल्के दर्द में कराह उठी, पूरा कमरा मेरी कामुक सीत्कार और फिर ठप्प की आवाजों से गूंज उठा, दर्द बहुत तीखा तो नहीं था पर हल्का-हल्का हो रहा था, योनि बहुत चिकनी हो गयी थी तो दर्द से कहीं ज्यादा मीठेपन का अहसाह था, मीठे दर्द से मेरा बदन एक बार फिर धनुष की भांति ऐंठ गया, गुरूजी का मोटा लंड अपने बच्चेदानी तक महसूस कर मैं कँपकँपा गयी, लंड के ऊपर की मोटी-मोटी उभरी नशें अपनी चूत की अंदरूनी दीवार की मांसपेशियों पर बखूबी महसूस हो रही थी।
मैं धीरे-धीरे कराह रही थी और कस के अपने गुरूजी से लिपटी हुई थी, गुरूजी भी मेरी योनि के की नरम-नरम एहसास में अपना मूसल जैसा लन्ड जड़ तक घुसा कर उसकी माँसपेशियो की नरमी, नमी, चिकनाहट गर्माहट और कसाव को अच्छे से महसूस कर रहे थे, मेरी योनि के मांसपेशिया अब गुरूजी के लंड की मोटायी और लम्बाई के हिसाब से समायोजित हो रही थी और लंड के चारो और कस गयी थी। मैंने कराहते हुए अपने पैर गुरूजी की कमर पर कैंची की तरह आपस में लपेट कर कस लिए और उन्हें चूमते हुए सहलाने लगी। मेरी चूत में संकुचन हो रहा था चूत लंड को अपने अंदर जितना हो सके आत्मसात कर रही थी, गुरूजी का लंड मेरी योनि की गहराइयों में घुसकर उसकी अंदरूनी दीवारों की गर्माहट को महसूस कर, अंदर ही बार-बार ठुनक कर हल्का-हल्का उछल रहा था जिसे मैं बखूबी महसूस कर उत्तेजना से सनसना जा रही थी।
चूत अंदर से बहुत गर्म हो चुकी थी जिससे लंड की अच्छे से सिकाई भी हो रही थी, गुरूजी ने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर मेरी गोल गुदाज मोटी-मोटी गांड को हथेली में भरा और सहलाया और फिर निचोड़ा और हल्का-सा ऊपर की ओर उठाते हुए एक बार फिर कस के लंड को और भी ज्यादा चूत में ठूंस दिया।
मैं मस्ती में फिर कराह उठी "
मैं; उफ़! बस गुरूजी ...आआआआ हहहह... अम्मा...बस कितना अंदर डालोगे ।अब जगह नहीं है...पूरा बच्चेदानी तक चला गया है गुरूजी ...ऊऊईईईईई माँ... हाय मेरी चूत अपने फाड़ डाली है ...कितना मोटा है आपका...कितना लम्बा है... बिकुल मूसल है ...आआआह...बस करो...ऊऊईईईईई । मैं गहरी और बहुत, बहुत जोर से कराह उठी क्योंकि मेरी योनि ने पूरी ताकत से अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया।
गुरूजी ने गच्च से एक बार फिर लंड हल्का-सा बाहर निकाल कर रसीली चूत में जड़ तक पेल दिया)
गुरूजी-आआआह बेटी... मेरी रानी... रश्मि रानी क्या शानदार और कसी हुई चूत है तेरी । ...कितनी गहरी है...कितनी टाइट है । ।बहुत मजा आ गया...आआआह
मैं सिसकते हुए-
मैं:-मजा आया गुरूजी को ...अपनी रंडी की चुदाई कर उसकी टाइट योनि में लंड डालकर मजा आया आपको।
गुरूजी -आआआह हाँ बेटी ...बहुत
मैं:-आपको मजा आया तो एक बार फिर निकाल कर तेजी से डालिये!
मैंने मस्ती में कहा.
गुरूजी ने झट से पक की आवाज के साथ योनि में घुसा हुआ लंड बाहर निकाल लिया और अपनी गांड को ऊपर की तरफ उठा कर पोजीशन ली, मैं चिहुंक गयी, लंड पूरा चूत रस की चाशनी से सना हुआ था, मैंने मदहोशी से एक बार फिर गुरूजी के दहकते हुए मूसल लंड को थामा, लंड अबकी बार ज्यादा गर्म था, जैसे ही मैंने एक हाँथ से लंड को पकड़ा और दूसरे हाँथ से अपनी चूत की फांकों को खोलकर रसीले गुलाबी छेद को खोला गुरूजी ने एक बार फिर कस के एक ही बार में पूरा लंड चूत की गहराई में उतार दिया, पर इस बार मैंने भी अपनी गांड नद उठा कर गुरूजी के धक्के में उनका साथ दिया
और हम दोनों इस बार मीठे-मीठे मजे से भरे रसीले दर्द के अहसास से सीत्कार उठे एक बार फिर मेरा बदन मस्ती में ऐंठ गया, गुरूजी ने-ने एक ही बार में मेरी योनि में अपना लंड जड़ तक घुसेड़ दिया और तुरंत ही तेज-तेज तीन चार बार थोड़ा-थोड़ा बाहर निकाल कर गच्च-गच्च धक्के मारे, मैं मदहोश हो गयी और तेजी से सिसकते हुए गुरूजी से उत्तेजना में बोली-" आआआह गुरूजी ...अब रुकिए मत...तेज तेज चोदिये...चोदिये गुरूजी और तेज और कस के।
फिर से एक ज़ोर का शॉट मारा तो उनका लंड मेरी चूत की जड़ में समा गया। मैं तेज चीख के साथ बहुत, बहुत जोर से कराह उठी क्योंकि मेरी योनि ने पूरी ताकत से अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया। मेरे नाखून गुरु जी की पीठ में गहरे धँस गए और मेरी जाँघें उनके धड़ के चारों ओर और अधिक कस गईं। मेरा कामोन्माद एक मिनट से अधिक समय तक चला और मैं पूरे समय कराहती रही। और अंत में मैं थक कर बेदम हो कर गिर पड़ी ।
गुरु जी: बेटी, अब मेरी बारी है तुम्हारा घड़ा भरने की।
गुरु जी अब अपने मजबूत और विशाल मर्दानगी के साथ मेरे स्त्रीत्व को पूरी तरह से चख रहे थे छोड़ रहे थे और मजे ले रहे थे और मेरी योनि की मांसपेशियों ने उनके लंड को पकड़ लिया और वीर्य निकालने के लिए लंड पर दबाब बनाने लगी। गुरु जी का लयबद्ध प्रहार मेरे बड़े-बड़े स्तनों को लगातार झकझोर रहे थे और मुझे निश्चित रूप से ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वर्ग में हूँ। गुरु जी वास्तव में एक विशेष पुरुष थे क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि कोई भी सामान्य पुरुष मेरी चुस्त चूत ने में इतनी देर तक अपना लंड घुसाने और चुदाई करने के बाद भी अपना वीर्य रोक नहीं सकता था, लेकिन गुरु जी असाधारण थे। एक बार जब हम दोनों पूरी तरह से चार्ज हो जाते हैं तो मेरा पति मेरी चूत में 2-3 मिनट से ज्यादा कभी नहीं टिक पाया था, मेरे पति के विपरीत, गुरु-जी ने मेरी चूत के नादर की बाधा को दूर करने के बाद इस सुंदर सेक्स के अनुभव को लगभग 20 मिनट तक खींच लिया था और फिर भी वे मुझे और स्खलित करने के लिए तैयार थे! वह अभी भी अपने खड़े मूसल से मेरी फिसलन भरी योनि को उसी गति से चौद रहे थे जिस गति से उन्होंने शुरू किया था, फिर भी एक बार भी स्खलित नहीं हुए थे!
लेकिन अंत में गुरु-जी ने अपने खुद के संभोग का नुभव करने का निर्णय किया और-और उन्होंने अपने लंड को मेरी योनि में जोर से धक्का मार दिया जिससे मुझे सातवें आसमान का एहसास हुआ। मैं उत्साह में चिल्ला रही थी । मुझे लगा कि उनके वीर्य के स्खलन से मेरी चुत भर रही है। मेरे पति के विपरीत, उनके वीर्य का उतरना भी अनोखा था क्योंकि यह एक लंबी प्रक्रिया थी ।
मेरे पति अपने वीर्य को मेरे छेद में डालने के बाद और फिर खर्राटे लेना शुरू कर देते हैं! और गुरु जी का वीर्य मेरी योनि से टकरा रहा था। दीवारें पर धार के प्रहर का वेग मुझे किसी भी चीज़ की तरह ही मदहोश कर रहा था। मेरा पूरा शरीर काँपने लगा और मैंने अपनी बाँहों को कस कर गुरु जी के चारों ओर लपेट लिया और उन्हें गले से लगा लिया।
गुरु जी: (मेरे कानों में फुसफुसाते हुए) : बेटी, क्या तुम अब खुश हो?
मैं: उम्म्म्म्म्म्म्म्म्...।
मैं और कुछ प्रतिक्रिया नहीं कर सकी।
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गुरु जी: मेरे बीज तुम्हें गर्भवती करने में मदद करेंगे रश्मि। चिंता मत करो!
संतोष और थकान से मेरी आंखें बंद हो गईं।
गुरु-जी: रश्मि, तुम बहुत अच्छी हो। शादी केइतने साल के बाद भी तुम्हारी योनि बहुत चुस्त हैं और-और तुम बहुत सेक्सी हो। आपके पति पूरे दिन कुत्ते की तरह आपके आसपास घूमते होंगे। आपके पास क्या शानदार योनि है! आह! एक अंतराल के बाद मैं बहुत ज्यादा संतुष्ट हूँ। इसने मेरे लंड को वैक्यूम क्लीनर की तरह चूस लिया। हा-हा हा...
आँखे बंद करके उनकी बातें सुन कर मैं मुस्कुरायी। मुझे बहुत राहत महसूस हो रही थी क्योंकि मैं अपने भीतर अशांति चरणामृत से दवा के प्रभाव के कारण महसूस कर रही थी।
मैं अभी भी गुरु जी द्वारा की गई जबरदस्त चुदाई के प्रभावों का आनंद ले रही थी और सोच रहा था कि मैं आखिरी बार कब था जब मैं संभोग के बाद संतुष्ट हुई थी? मेरे वैवाहिक जीवन में मुश्किल से ही ऐसे दिन थे जब मैंने सेक्स करने से इतनी "लंबी" उत्तेजना और रोमांच निकाला हो। मुझे वह सुख देने के लिए मैंने मन ही मन गुरु जी को धन्यवाद दिया। मैं अभी भी अपनी नशे की स्थिति से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी और गुरु जी और उनके चार शिष्यों के सामने सफेद गद्दे पर बिल्कुल नग्न अवस्था में आँखें बंद करके लेटी हुई थी।
गुरु जी: बेटी, क्या यह पहली बार तुम्हारे पति के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति से चुद रही थी?
मैं: जी गुरु-जी।
गुरु-जी: ठीक है... जिसका मतलब है कि आप धार्मिक रूप से सामाजिक मानदंडों से चिपकी रहती हो। बेटी मैं तुमहे बताना चाहता हूँ । योनी पूजा के लिए यहाँ आने वाली अधिकांश विवाहित महिलाओं ने मुझे बताया कि उन्होंने अपने पति के अलावा एक या दो बार किसी अन्य पुरुष के साथ मैथुन किया था। लेकिन बेटी, उनके बारे में कोई गलत धारणा मत रखो क्योंकि वास्तव में उनमें से ज्यादातर ने ऐसा इसलिए तब किया कि जब वे पूरी तरह से निराश थीं क्योंकि शादी के 5-7 साल बाद भी बच्चा नहीं हो पाया था।
मैं: हम्म... ठीक है... समझ में आता है।
मैं जवाब दे रही थी ।
गुरु-जी ने अपनी आँखें बंद कर लीं। गुरुजी की मजबूत भुजाओं में गद्दे पर इस तरह लेटना कितना अच्छा लग रहा था।
गुरु जी: और अपने विशाल अनुभव से मैंने देखा है कि पराये पुरुषो के साथ मैथू न आखिकतार उन मामलों में काम करता है जहाँ पति के शुक्राणु कमजोर होते हैं और ज्यादातर गतिहीन होते हैं। यह उन मामलों में काम करता है जहाँ एक परिपक्व 35 वर्षीय महिला को उसके उपजाऊ अवधि के भीतर एक युवा पुरुष द्वारा चुदाई मिलती है और इसके विपरीत मामले में भी। लेकिन मामले में गर्भाशय का मार्ग अवरुद्ध था और मुझे पूरा यकीन है कि जिस तरह से आपने सभी पूजा और उपचार किए हैं, आपको निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।
मैं: मुझे अवश्य... गुरु-जी...अगर मुझे लाभ नहीं मिला तो मैं मर जाऊंगी ।
गुरु जी: बेटी मैं जानता हूँ और चूँकि तुमने आश्रम में इतना अच्छा व्यवहार और प्रतिबद्धता से सब पूजा ा और उपचार किया कि मैं तुमसे बहुत खुश हूँ ... और मैं तुम्हारा उपहार सुनिश्चित करूँगा ... मेरा मतलब है गर्भावस्था।
मैंने अपनी आँखें खोलीं, मुस्कुरायी और अपना आभार व्यक्त करने के लिए सिर हिलाया। गुरु जी भी बदले में मुझे देखकर मुस्कुराए और फिर धीरे से अपना चेहरा मेरे ऊपर ले आए और मेरे होठों को चूम लिया। इस समय तक मेरे होठों ने नर लार का इतना अधिक स्वाद चख लिया था कि मैं लगभग भूल ही गयी थी कि मेरी लार का स्वाद कैसा होता है! मेरे होठों में जो रस बचा था, गुरुजी के मोटे होठों ने उसे चूस लिया, हालाँकि इतने कम समय में इतने सारे पुरुषों के साथ अब मुझ में कोई हिचक बाकी नहीं थी!
गुरुजी: तुम जानती हो बेटी, महायज्ञ के लिए मेरे पास आने वाली अधिकांश महिलाएँ घर वापस आने के बाद गर्भवती हो गईं और निश्चित रूप से आप कोई अपवाद नहीं होंगी। हाँ, मुझे बाद में कुछ अन्य चीजों की जांच करने की जरूरत है और मुझे लगता है कि आप इसे बुरा नहीं मानेंगी।
मैं: बिल्कुल नहीं गुरु-जी।
गुरु जी: ठीक है। अब जबकि मंत्र दान, पूजा, योनि मालिश और योनि सुगम पूर्ण हो चुके हैं और संतोषजनक परिणाम के साथ, हम जन दर्शन के साथ समापन करेंगे। थोड़ा आराम कर लो फिर हम वह करेंगे। जय लिंग महाराज!
मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया.
मैं :-थैंक यू गुरूजी ! जय लिंग महाराज!
जारी रहेगी जय लिंग महाराज !
CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-35 B
योनि सुगम- गुरूजी का सेक्स ट्रीटमेंट
गुरु-जी ने अपने लंड को मेरी योनि में और भी तेज और गहराई से पटक दिया और मैं उनके लंड के अपनी योनि के अंदर पूरा महसूस कर रही थी। जाहिर तौर पर पहले मेरे मन में एक शंका थी कि क्या मैं गुरु जी के राक्षसी लण्ड को अपनी चुत में पूरी तरह से ले पाऊँगी लेकिन अब मैं हैरान और बहुत खुश थी कि थोड़े से शुरूआती दर्द के बाद और फ़िब्रोइड को ध्वस्त करने के बाद मैं बिना किसी कठिनाई के उसे पूरी तरह से अपनी चूत में ले रही थी!
अब मैंने अपनी बाहों और जाँघों को उनके चारों ओर कस कर लपेट लिया और मैंने अपनी योनि को ऊपर की ओर गुरु जी के लिंग पर जोर से और दबाव के साथ उछलना शुरू कर दिया। मुझे पता था कि मैं इसे और अधिक नहीं रोक सकताी क्योंकि मैं बहुत अधिक पानी छोड़ रही थी। मेरे पूरे शरीर में झटका लगा क्योंकि मेरी योनि की मांसपेशियाँ गुरु जी के लिंग को जकड़ रही थीं और मेरा चरम सुख चरम पर था। और मैं कराह रही थी ।
में: ऊऊउ .........। मममम माआ ...उउउउउ ... आआ आआज़ ...ऊऊऊओईईईईई ii...
गुरूजी बेसुध होकर मेरी चूचीयों को दबा-दबा कर पिये जा रहे थे कभी रुककर सहलाने लगते, कभी निप्पल को चूसने लगते, कभी मुँह में भरकर तेज-तेज पीने लगते, कभी निप्पल को दोनों होंठों के बीच दबा कर चूसते, कभी जीभ से पूरी चूची को चाटने लगे और गुरूजी के थूक से मेरी गोरी-गोरी चूचीयाँ उस रोशनी में और भी चमकने लगी। गुरूजी के सख्त हाँथ मेरी कोमल नरम गुदाज चूचियों को रगड़-रगड़ कर मसल रहे थे, जब गुरूजी कस के चूची को दबाते और फिर निप्पलों को गुरूजी जीभ से चाट रहे थे मैं गुरूजी की मस्ती देख वासना में कराह उठती।
मैं गुरूजी से अपनी चूचीयाँ मसलवा रही थी। मैं सनसना कर कभी आंखें बंद कर लेती, कभी गुरूजी को चूची पीते हुए देखने लगती, लगातार मेरा एक नरम-नरम हाँथ अपने के सिर को प्यार से सहला रहा था और दूसरा हाथ उनकी पीठ पर था, रह-रह कर मैं गुरूजी का सर अपनी दोनों चूचियों के बीच दबा भी देती, कस के खुद ही अपनी चूचियों को गुरूजी के मुंह में भरकर कराह उठती " ...आह...!
फिर कराहते हुए मैंने अपना दाहिना हाँथ नीचे ले जाकर मैंने गुरूजी का दहकता काला मूसल लंड जो मेरी गीली योनि की फांकों में रगड़-रगड़ कर हलचल मचा रहा था, पकड़ लिया और उनके अंडकोषों को पकड़ कर सहला दिया, गुरूजी के मूसल लंड को पकड़कर मेरे चेहरे पर फिर शर्म की लालिमा तैर गयी, गुरूजी का लंड पहले से भी विकराल रूप ले चुका है, काफी देर से उत्तेजना में होने की वजह से मोटी-मोटी नसे खून के वेग से उभरकर खुरदरा अहसाह कर रही थी, लंड को हाँथ में लेते ही मेरी आह भरी सिसकी निकल गयी।
मेरे नरम-नरम हाँथ का अहसाह अपने लंड पर पाकर गुरूजी की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, मैंने लंड और अंडकोषों पर बड़े प्यार से हाँथ फेरा, एक-एक हिस्से को हल्का दबा-दबा कर सहलाया, गुरूजी के दोनों मोठे-मोठे अण्डकोषो पर काले-काले बाल भी थे उन्हें अपनी हथेली में लेकर कुछ देर तक बड़े प्यार से सहलाया, गुरूजी का लंड मेरे नरम-नरम हाथों की छुवन पाकर बार-बार उछलने लगा।
गुरूजी मस्ती में चूची पीना छोड़कर रश्मि की आंखों में बड़े प्यार से देखने लगे । मैं धीरे-धीरे लंड को सहलाती रही और दोनों के होंठ मस्ती में मिल गए, गुरुजी ने अपनी गांड को थोड़ा ऊपर को उठा लिया ताकि मुुझे हाँथ चलाने में दिक्कत न हो और मैं लंड को अच्छे से महसूस कर सहला सकूँ। मैं गुरूजी के बड़े चौड़े लंड को कभी हथेली में भरती, कभी उसकी पूरी लंबाई पर हाँथ फेरती, कभी लंड के जोड़ पर घने घुंघराले बालों में उंगलियाँ चलती, कभी हाँथ नीचे की तरफ कर उनके बड़े अंडकोषों को सहलाती, मारे उत्तेजना के लंड सख्त होकर लोहा बन गया था, बार-बार मस्ती में ठुनक रहा था, उछल रहा था, गुरूजी ने मेरे होंठों और गालों को चूमना जारी रखा।
लंडमुंड पर खून लगा था जो इस बात का सबूत था की योनि के अनदर का अवरोध अब छिन्न भिन्न्न हो चूका है .
मैं गुरूजी के लंड को सहलाये जा रही थी और गुरूजी भी अपना एक हाथ नीचे ले जाकर मेरी गर्म और गीली योनि को हथेली में भर लिया, मैं सिसक उठी " आआआह हाय... आह गुरूजी ...आआआह ...चोदिये न मुझे...अच्छे से...चोद दीजिये ...अब बर्दाश्त नहीं होता मुझसे...मजा लीजिये न मेरी इस तंग योनि का और दूसरे ही पल मैंने अपनी जांघों को अच्छे से खोलते हुए अपनी मदमस्त गोरी-गोरी प्यारी-सी मखमली चूत गुरूजी के सामने परोस दी और मैंने गुरूजी के मूसल लिंग को एक दो बार योनि के ओंठो और दाने पर रगड़ा फिर बड़ी मादकता से शर्माते हुए लजाते हुए अपनी तर्जनी और मध्यमा दो उंगली से अपनी चूत की फांकों को खोलकर उसका गुलाबी छेद जो चाशनी से भरा था उस पर लिंग लगा कर अपनी गांड ऊपर उठा दी और लंड अंदर ले लिया ।
गुरूजी से मेरा ये आग्रह सुना और साथ में लंड के सुपाड़ी पर योनि का कसाव अनुभव किया ।
गुरूजी े अब रहा नहीं गया उन्होंने आगे झुक कर मेरे ओंठो को अपने ओंठो में भर लिया चूसते हुए अपनी कमर नीचे को दबा दी, मैं अब हाय-हाय करने लगी " आआआआआआआ हहहहहहहह बाबू ...हाय मेरी चूत...धीरे धीरे गुरूजी ...नही तो मैं झड़ जाउंगी ...आआआह माँ... ...प्यार से ...आआआह ...आआआह...ऊऊईईईईई... ओ-ओ ओ ओ-ओ हहहहहह अम्मा...धीरे धीरे मेरे राजा मेरे प्यारे गुरूजी ...हाय मेरी चूत (अपने एक हाथ से मैं अपनी योनि को पागलों की तरह सहलाये जा रही थी और मस्ती में सिसकते हुए बड़बड़ाये जा रही थी) , आआआह गुरूजी आपकी गरम-गरम जीभ...आह बस गुरूजी मैं झड़ जाउंगी...आह बस...मुझे आपके लंड से झड़ना है गुरूजी ...ऊऊईईईईई माँ ...गुरूजी ।
तो गुरूजी ने लंड बाहर निकाल लिया तो मैं तड़प उठी और बोली ।
मैं:-अब करिये न गुरूजी ।
गुरूजी मुझे छेड़ते हुए बोले ।
गुरूजी: क्या करूँ रश्मि?
मैं:-और क्या गुरूजी ... अब चोदिये मुझे मैं शर्माते हुए बोली और आँखे बंद कर चेहरा उनकी छाती में छुपा लिया ।
अब गुरूजी पूरी तरह बेकाबू हो गए और बोले-हाय री रंडी ...रश्मि बेटी! ...कैसे डालूं...धीरे धीरे या एक ही बार मे?
(ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरा चेहरा अपने छाती से अलग किया और ओंठो को चूम लिया, मैंने बड़े प्यार से कहा ।
मैं :-एक ही बार में गुरूजी ...एक ही बार में!
गुरूजी-एक ही बार में सीधे बच्चेदानी तक ?
मैं कराहते हुए- हाँ गुरूजी ...हाँ एक ही बार में सीधे बच्चेदानी तक!
गुरूजी ने मुझे चूमा और बोले
गुरूजी:-रश्मि! तो फिर लंड को पकड़ कर सीध में लगा दो और एक हाथ से अपनी चूत की फांक को खोल कर रखो "
मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया.
ऐसा कहते हुए दोनों ने पोजीशन ली और गुरूजी मेरे ऊपर झुक गए, कमर को जरूरत भर के हिसाब से उठा लिया।
गुरूजी ने मुझे चूमा और मैंने भी मारे उत्तेजना के गुरूजी को ताबड़तोड़ कई बार चूम लिया और जल्दी से दोनों जांघों को अच्छे से फैलाकर कराहते हुए अपने हाँथ नीचे ले जाकर एक हाँथ से गुरूजी के दहकते कड़े बड़े सख्त और मूसल लंड को पकड़कर एक बार फिर अच्छे से सहलाया, चमड़ी को और अच्छे से खोलकर पीछे किया और जल्दी से अपना हाँथ अपने मुंह तक लायी और ढेर सारा थूक लेकर गरम-गरम थूक काले फंफनाते लंड पर लगा दिया, फिर मैंने लंड को ठीक चूत के छेद पर लगाया और दूसरे हाथ से अपनी चूत की फांकों को चीरकर खोल दिया।
गुरूजी ने मेरे होंठों को चूमते हुए पहले तो पांच छः बार लंड कोचूत की दरार में रगड़ा, फिर चिकने सुपाड़े को चूत के गुलाबी छेद के मुहाने पर कई बार छुआया जिससे दोनों मस्त हो गए, मैं बस सिसकती जा रही थी, एकाएक लंड को छेद पर लगाकर गुरूजी ने तेज धक्का मारा और लंड चूत की फांकों को फैलाता हुआ संकरी रसीले छेद को चीरता हुआ पॉर्रा का पूरा चूत की गहराई में उतर गया और उनके अंडकोष योनि के ओंठो से टकराये और ठप्प की आवाज आयी ।
में:-आआआ आआआआआ हहहहहह... गुरूजी!
मैं मस्ती में कराह उठी, लंड सीधा बच्चेदानी से जा टकराया, मैंने दोनों हाथों से गुरूजी के नितम्बो को अपनी योनि पर दबा दिया और हल्के दर्द में कराह उठी, पूरा कमरा मेरी कामुक सीत्कार और फिर ठप्प की आवाजों से गूंज उठा, दर्द बहुत तीखा तो नहीं था पर हल्का-हल्का हो रहा था, योनि बहुत चिकनी हो गयी थी तो दर्द से कहीं ज्यादा मीठेपन का अहसाह था, मीठे दर्द से मेरा बदन एक बार फिर धनुष की भांति ऐंठ गया, गुरूजी का मोटा लंड अपने बच्चेदानी तक महसूस कर मैं कँपकँपा गयी, लंड के ऊपर की मोटी-मोटी उभरी नशें अपनी चूत की अंदरूनी दीवार की मांसपेशियों पर बखूबी महसूस हो रही थी।
मैं धीरे-धीरे कराह रही थी और कस के अपने गुरूजी से लिपटी हुई थी, गुरूजी भी मेरी योनि के की नरम-नरम एहसास में अपना मूसल जैसा लन्ड जड़ तक घुसा कर उसकी माँसपेशियो की नरमी, नमी, चिकनाहट गर्माहट और कसाव को अच्छे से महसूस कर रहे थे, मेरी योनि के मांसपेशिया अब गुरूजी के लंड की मोटायी और लम्बाई के हिसाब से समायोजित हो रही थी और लंड के चारो और कस गयी थी। मैंने कराहते हुए अपने पैर गुरूजी की कमर पर कैंची की तरह आपस में लपेट कर कस लिए और उन्हें चूमते हुए सहलाने लगी। मेरी चूत में संकुचन हो रहा था चूत लंड को अपने अंदर जितना हो सके आत्मसात कर रही थी, गुरूजी का लंड मेरी योनि की गहराइयों में घुसकर उसकी अंदरूनी दीवारों की गर्माहट को महसूस कर, अंदर ही बार-बार ठुनक कर हल्का-हल्का उछल रहा था जिसे मैं बखूबी महसूस कर उत्तेजना से सनसना जा रही थी।
चूत अंदर से बहुत गर्म हो चुकी थी जिससे लंड की अच्छे से सिकाई भी हो रही थी, गुरूजी ने दोनों हाँथ नीचे ले जाकर मेरी गोल गुदाज मोटी-मोटी गांड को हथेली में भरा और सहलाया और फिर निचोड़ा और हल्का-सा ऊपर की ओर उठाते हुए एक बार फिर कस के लंड को और भी ज्यादा चूत में ठूंस दिया।
मैं मस्ती में फिर कराह उठी "
मैं; उफ़! बस गुरूजी ...आआआआ हहहह... अम्मा...बस कितना अंदर डालोगे ।अब जगह नहीं है...पूरा बच्चेदानी तक चला गया है गुरूजी ...ऊऊईईईईई माँ... हाय मेरी चूत अपने फाड़ डाली है ...कितना मोटा है आपका...कितना लम्बा है... बिकुल मूसल है ...आआआह...बस करो...ऊऊईईईईई । मैं गहरी और बहुत, बहुत जोर से कराह उठी क्योंकि मेरी योनि ने पूरी ताकत से अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया।
गुरूजी ने गच्च से एक बार फिर लंड हल्का-सा बाहर निकाल कर रसीली चूत में जड़ तक पेल दिया)
गुरूजी-आआआह बेटी... मेरी रानी... रश्मि रानी क्या शानदार और कसी हुई चूत है तेरी । ...कितनी गहरी है...कितनी टाइट है । ।बहुत मजा आ गया...आआआह
मैं सिसकते हुए-
मैं:-मजा आया गुरूजी को ...अपनी रंडी की चुदाई कर उसकी टाइट योनि में लंड डालकर मजा आया आपको।
गुरूजी -आआआह हाँ बेटी ...बहुत
मैं:-आपको मजा आया तो एक बार फिर निकाल कर तेजी से डालिये!
मैंने मस्ती में कहा.
गुरूजी ने झट से पक की आवाज के साथ योनि में घुसा हुआ लंड बाहर निकाल लिया और अपनी गांड को ऊपर की तरफ उठा कर पोजीशन ली, मैं चिहुंक गयी, लंड पूरा चूत रस की चाशनी से सना हुआ था, मैंने मदहोशी से एक बार फिर गुरूजी के दहकते हुए मूसल लंड को थामा, लंड अबकी बार ज्यादा गर्म था, जैसे ही मैंने एक हाँथ से लंड को पकड़ा और दूसरे हाँथ से अपनी चूत की फांकों को खोलकर रसीले गुलाबी छेद को खोला गुरूजी ने एक बार फिर कस के एक ही बार में पूरा लंड चूत की गहराई में उतार दिया, पर इस बार मैंने भी अपनी गांड नद उठा कर गुरूजी के धक्के में उनका साथ दिया
और हम दोनों इस बार मीठे-मीठे मजे से भरे रसीले दर्द के अहसास से सीत्कार उठे एक बार फिर मेरा बदन मस्ती में ऐंठ गया, गुरूजी ने-ने एक ही बार में मेरी योनि में अपना लंड जड़ तक घुसेड़ दिया और तुरंत ही तेज-तेज तीन चार बार थोड़ा-थोड़ा बाहर निकाल कर गच्च-गच्च धक्के मारे, मैं मदहोश हो गयी और तेजी से सिसकते हुए गुरूजी से उत्तेजना में बोली-" आआआह गुरूजी ...अब रुकिए मत...तेज तेज चोदिये...चोदिये गुरूजी और तेज और कस के।
फिर से एक ज़ोर का शॉट मारा तो उनका लंड मेरी चूत की जड़ में समा गया। मैं तेज चीख के साथ बहुत, बहुत जोर से कराह उठी क्योंकि मेरी योनि ने पूरी ताकत से अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया। मेरे नाखून गुरु जी की पीठ में गहरे धँस गए और मेरी जाँघें उनके धड़ के चारों ओर और अधिक कस गईं। मेरा कामोन्माद एक मिनट से अधिक समय तक चला और मैं पूरे समय कराहती रही। और अंत में मैं थक कर बेदम हो कर गिर पड़ी ।
गुरु जी: बेटी, अब मेरी बारी है तुम्हारा घड़ा भरने की।
गुरु जी अब अपने मजबूत और विशाल मर्दानगी के साथ मेरे स्त्रीत्व को पूरी तरह से चख रहे थे छोड़ रहे थे और मजे ले रहे थे और मेरी योनि की मांसपेशियों ने उनके लंड को पकड़ लिया और वीर्य निकालने के लिए लंड पर दबाब बनाने लगी। गुरु जी का लयबद्ध प्रहार मेरे बड़े-बड़े स्तनों को लगातार झकझोर रहे थे और मुझे निश्चित रूप से ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वर्ग में हूँ। गुरु जी वास्तव में एक विशेष पुरुष थे क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि कोई भी सामान्य पुरुष मेरी चुस्त चूत ने में इतनी देर तक अपना लंड घुसाने और चुदाई करने के बाद भी अपना वीर्य रोक नहीं सकता था, लेकिन गुरु जी असाधारण थे। एक बार जब हम दोनों पूरी तरह से चार्ज हो जाते हैं तो मेरा पति मेरी चूत में 2-3 मिनट से ज्यादा कभी नहीं टिक पाया था, मेरे पति के विपरीत, गुरु-जी ने मेरी चूत के नादर की बाधा को दूर करने के बाद इस सुंदर सेक्स के अनुभव को लगभग 20 मिनट तक खींच लिया था और फिर भी वे मुझे और स्खलित करने के लिए तैयार थे! वह अभी भी अपने खड़े मूसल से मेरी फिसलन भरी योनि को उसी गति से चौद रहे थे जिस गति से उन्होंने शुरू किया था, फिर भी एक बार भी स्खलित नहीं हुए थे!
लेकिन अंत में गुरु-जी ने अपने खुद के संभोग का नुभव करने का निर्णय किया और-और उन्होंने अपने लंड को मेरी योनि में जोर से धक्का मार दिया जिससे मुझे सातवें आसमान का एहसास हुआ। मैं उत्साह में चिल्ला रही थी । मुझे लगा कि उनके वीर्य के स्खलन से मेरी चुत भर रही है। मेरे पति के विपरीत, उनके वीर्य का उतरना भी अनोखा था क्योंकि यह एक लंबी प्रक्रिया थी ।
मेरे पति अपने वीर्य को मेरे छेद में डालने के बाद और फिर खर्राटे लेना शुरू कर देते हैं! और गुरु जी का वीर्य मेरी योनि से टकरा रहा था। दीवारें पर धार के प्रहर का वेग मुझे किसी भी चीज़ की तरह ही मदहोश कर रहा था। मेरा पूरा शरीर काँपने लगा और मैंने अपनी बाँहों को कस कर गुरु जी के चारों ओर लपेट लिया और उन्हें गले से लगा लिया।
गुरु जी: (मेरे कानों में फुसफुसाते हुए) : बेटी, क्या तुम अब खुश हो?
मैं: उम्म्म्म्म्म्म्म्म्...।
मैं और कुछ प्रतिक्रिया नहीं कर सकी।
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गुरु जी: मेरे बीज तुम्हें गर्भवती करने में मदद करेंगे रश्मि। चिंता मत करो!
संतोष और थकान से मेरी आंखें बंद हो गईं।
गुरु-जी: रश्मि, तुम बहुत अच्छी हो। शादी केइतने साल के बाद भी तुम्हारी योनि बहुत चुस्त हैं और-और तुम बहुत सेक्सी हो। आपके पति पूरे दिन कुत्ते की तरह आपके आसपास घूमते होंगे। आपके पास क्या शानदार योनि है! आह! एक अंतराल के बाद मैं बहुत ज्यादा संतुष्ट हूँ। इसने मेरे लंड को वैक्यूम क्लीनर की तरह चूस लिया। हा-हा हा...
आँखे बंद करके उनकी बातें सुन कर मैं मुस्कुरायी। मुझे बहुत राहत महसूस हो रही थी क्योंकि मैं अपने भीतर अशांति चरणामृत से दवा के प्रभाव के कारण महसूस कर रही थी।
मैं अभी भी गुरु जी द्वारा की गई जबरदस्त चुदाई के प्रभावों का आनंद ले रही थी और सोच रहा था कि मैं आखिरी बार कब था जब मैं संभोग के बाद संतुष्ट हुई थी? मेरे वैवाहिक जीवन में मुश्किल से ही ऐसे दिन थे जब मैंने सेक्स करने से इतनी "लंबी" उत्तेजना और रोमांच निकाला हो। मुझे वह सुख देने के लिए मैंने मन ही मन गुरु जी को धन्यवाद दिया। मैं अभी भी अपनी नशे की स्थिति से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी और गुरु जी और उनके चार शिष्यों के सामने सफेद गद्दे पर बिल्कुल नग्न अवस्था में आँखें बंद करके लेटी हुई थी।
गुरु जी: बेटी, क्या यह पहली बार तुम्हारे पति के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति से चुद रही थी?
मैं: जी गुरु-जी।
गुरु-जी: ठीक है... जिसका मतलब है कि आप धार्मिक रूप से सामाजिक मानदंडों से चिपकी रहती हो। बेटी मैं तुमहे बताना चाहता हूँ । योनी पूजा के लिए यहाँ आने वाली अधिकांश विवाहित महिलाओं ने मुझे बताया कि उन्होंने अपने पति के अलावा एक या दो बार किसी अन्य पुरुष के साथ मैथुन किया था। लेकिन बेटी, उनके बारे में कोई गलत धारणा मत रखो क्योंकि वास्तव में उनमें से ज्यादातर ने ऐसा इसलिए तब किया कि जब वे पूरी तरह से निराश थीं क्योंकि शादी के 5-7 साल बाद भी बच्चा नहीं हो पाया था।
मैं: हम्म... ठीक है... समझ में आता है।
मैं जवाब दे रही थी ।
गुरु-जी ने अपनी आँखें बंद कर लीं। गुरुजी की मजबूत भुजाओं में गद्दे पर इस तरह लेटना कितना अच्छा लग रहा था।
गुरु जी: और अपने विशाल अनुभव से मैंने देखा है कि पराये पुरुषो के साथ मैथू न आखिकतार उन मामलों में काम करता है जहाँ पति के शुक्राणु कमजोर होते हैं और ज्यादातर गतिहीन होते हैं। यह उन मामलों में काम करता है जहाँ एक परिपक्व 35 वर्षीय महिला को उसके उपजाऊ अवधि के भीतर एक युवा पुरुष द्वारा चुदाई मिलती है और इसके विपरीत मामले में भी। लेकिन मामले में गर्भाशय का मार्ग अवरुद्ध था और मुझे पूरा यकीन है कि जिस तरह से आपने सभी पूजा और उपचार किए हैं, आपको निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।
मैं: मुझे अवश्य... गुरु-जी...अगर मुझे लाभ नहीं मिला तो मैं मर जाऊंगी ।
गुरु जी: बेटी मैं जानता हूँ और चूँकि तुमने आश्रम में इतना अच्छा व्यवहार और प्रतिबद्धता से सब पूजा ा और उपचार किया कि मैं तुमसे बहुत खुश हूँ ... और मैं तुम्हारा उपहार सुनिश्चित करूँगा ... मेरा मतलब है गर्भावस्था।
मैंने अपनी आँखें खोलीं, मुस्कुरायी और अपना आभार व्यक्त करने के लिए सिर हिलाया। गुरु जी भी बदले में मुझे देखकर मुस्कुराए और फिर धीरे से अपना चेहरा मेरे ऊपर ले आए और मेरे होठों को चूम लिया। इस समय तक मेरे होठों ने नर लार का इतना अधिक स्वाद चख लिया था कि मैं लगभग भूल ही गयी थी कि मेरी लार का स्वाद कैसा होता है! मेरे होठों में जो रस बचा था, गुरुजी के मोटे होठों ने उसे चूस लिया, हालाँकि इतने कम समय में इतने सारे पुरुषों के साथ अब मुझ में कोई हिचक बाकी नहीं थी!
गुरुजी: तुम जानती हो बेटी, महायज्ञ के लिए मेरे पास आने वाली अधिकांश महिलाएँ घर वापस आने के बाद गर्भवती हो गईं और निश्चित रूप से आप कोई अपवाद नहीं होंगी। हाँ, मुझे बाद में कुछ अन्य चीजों की जांच करने की जरूरत है और मुझे लगता है कि आप इसे बुरा नहीं मानेंगी।
मैं: बिल्कुल नहीं गुरु-जी।
गुरु जी: ठीक है। अब जबकि मंत्र दान, पूजा, योनि मालिश और योनि सुगम पूर्ण हो चुके हैं और संतोषजनक परिणाम के साथ, हम जन दर्शन के साथ समापन करेंगे। थोड़ा आराम कर लो फिर हम वह करेंगे। जय लिंग महाराज!
मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया.
मैं :-थैंक यू गुरूजी ! जय लिंग महाराज!
जारी रहेगी जय लिंग महाराज !