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Thriller आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07
औलाद की चाह


CHAPTER 7-पांचवी रात

योनि पूजा

अपडेट-35A

योनि सुगम- गुरूजी का सेक्स ट्रीटमेंट 



मैं  कामोत्तेजना से सिसक रही थी। मुझे अपने पति के साथ पहली रात याद आई और उस रात को मुझे भी ऐसा ही दर्द, आँसू, कामोत्तेजना और कामानंद का अनुभव हुआ था जैसा अभी  हो रहा था। लेकिन सच कहूँ तो मेरे पति का लंड 6 इंच था और गुरुजी के मूसल से उसकी कोई तुलना नहीं थी।

रश्मि-ओओओहहहह...गुरूजी ...आआ आहहहह...अम्मममा! फीलिंग ग्रेट गुरुजी!

गुरूजी नीचे पहुंचे  और लंड से मेरी योनि को सहलाने लगा। गुरूजी ने योनि में लंडमुंड  घुसाया  तो मैं ना कराहने लगी , गुरूजी ने लंड  एक दो बार अंदर हिलाया  और घुमाया  मैं अब गुरूजी से  चुदाई के ख्यालात से अविश्वसनीय रूप से उत्साहित और उत्तेजित थी और  कभी भी इससे पहले  इतनी गीली नहीं हुई थी।



[Image: J3.jpg]
मेरे अपर लेट कर गुरूजी ने धक्का मारा और उनका खड़ा लन्ड मेरी योनि की फांकों से जा टकराया। मैंने गुरूजी को अपने आगोश में भर लिया।

मेरे नंगे बदन को बाहों में भरने पर मिलने वाले मजे से गुरूजी मदहोश हो गए औअर जैसे ही उनका लंड मेरी योनि में अंदर जाकर मेरे गर्भशय के द्वार को र छुआ गुरु जी मुझे चूमते हुए कान के पास धीरे से बोला.

"हाय... रश्मि ...तेरी... चूततत्तत"

मैं उनके मुँह से हाय और चूत शब्द सुनकर वासना से भर गई, अपनी कसी-कसी चूचीयों को गुरूजी की नग्न छाती पर स्वयं ही दबाते हुए उनसे लिपट गयी।

यह कहकर गुरूजी मेरे गुदाज मखमली बदन पर ऐसे छा गए मानो किसी शेर ने हिरणी को दबोच लिया हो। गुरूजी का मुसल बड़ा और कड़ा काला लंड मेरी चिकनी मोटी-मोटी जांघों पर, चूत पर, नाभि पर इधर उधर रगड़ खाने लगा, मैंने अपनी जांघे उठायी और गुरूजी की कमर पर लपेट दी, ऐसा करते ही योनि के ओंठ फैल गए और गुरूजी के लंड का मोटा सुपाड़ा योनि की फांकों में अच्छे से दस्तक देने लगा, गुरु जी ने मेरी जाँघों को और भी दूर धकेल दिया जिससे मेरे पैर मेरे सिर के ऊपर आ गए! गुरु जी तेजी और ताकत से अपना लंड मेरी तंग चुत में घुसाते रहे। मैं गद्दे पर अपने नितम्ब ऊपर-नीचे कर रही थी था क्योंकि मेरी चुत को उसका जोरदार झटके लग रहे थे। मुझे स्वाभाविक रूप से बहुत पसीना आ रहा था क्योंकि गुरु जी ने अपना लंड मेरी बालों वाली योनी में उत्साह से पंप करना जारी रखा।

गुरु जी: रश्मि, क्या बात है तेरी प्यारी योनि! इतना तंग! वाह! मजा आ रहा है!


[Image: tight-pussy.webp]

मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया. 

अब हम दोनों गुरूजी और बेटी नहीं बल्कि प्रेमी और प्रेमिका थे जो सम्भोग का मजा ले रहे थे । मुझे मालूम था गुरूजी के मूसल लंड से  चुदवाने का मौका मुझे बार बार नहीं मिलने वाला है इसलिए मैं पूरा मजा लेना चाहती थी और गुरूजी को भी मालूम था ऐसी  तंग योनि बार बार नहीं मिलने वाली इसलिए वो भी चुदाई का पूरा  मजा लेना चाहते थे।

मैं गुरूजी के मोटे सुपाड़े को तेज-तेज अपनी रसीली चूत की फांकों में डुबकी लगाते हुए महसूस कर एक बार फिर लजा गयी, गुरूजी ने मस्ती में मेरे कानों को चूम लिया, मैंने सिसकते हुए अपने होंठ आगे किये तो गुरूजी मेरे रसीले होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमने लगे।

मैं अब खुल कर मजे ले रही थी, सब दर्द खत्म हो गया था और मचलते हुए गुरूजी के सर को पकड़ कर उन्हें और अपने होंठों पर दबाने लगी फिर धीरे से मुंह खोल दिया । गुरूजी ने एक बार मेरी आंखों में देखा तो मैं मुस्कुराकर लजा गयी।

गुरूजी _ रश्मि-बेटी... लजा गयी...अरे बेटी शर्म मत करो ... मुँह खोलो और अपने गुरूजी को अपनी जीभ का रस पिलाओ।


[Image: kis01.gif]

यज्ञ की अग्नि की रोशनी में मेरा का गोरा-गोरा अति उत्तेजित चेहरा दमक रहा था, शर्म और वासना की लाली मेरे चेहरे को और भी आकर्षित और कामुक बना रही थी।

मैंने गुरूजी की-की आंखों में वासना भरी अदा से देखते हुए अपने होंठ खोल दिये और अपनी जीभ को हल्का-सा बाहर निकाल दिया।

गुरूजी मेरी इस अदा पर कायल हो मारे उत्तेजना के एक झटका अपने लंड से मेरी योनि में मारते हुए मेरी जीभ को अपने मुंह में भर लिया, मैं उनके मुंह में ही "ऊऊऊऊ ईईईईईई ईई... अममम्म्ममा" कहते हुए चिहुंक उठी।



[Image: kis01a.webp]
गुरूजी मेरी जीभ को कुल्फी की तरह धीरे-धीरे नीचे से ऊपर की ओर अपने मुंह में भर-भर कर चूसने लगे साथ कि साथ वह अपने लंड को मेरी योनि जो अब बहुत गीली हो गयी थी उसमे डुबो-डुबो कर रगड़ने लग गए और अपने हाथो से मेरे स्तन दबा रहे थे, मेरा बदन गुरूजी बाबू के इस खेल की तिहरी मार से अति उत्तेजना में रह रहकर कंपकपा जा रहा था जिसको गुरूजी बखूबी महसूस कर रहे थे, मैं अब गुरूजी के सर को पकड़कर खुद मुंह खोले अपनी जीभ उनके मुंह में जितना अंदर हो सके डालने लगी, गुरूजी की जीभ को कुल्फी की तरह पूरा मुंह में भर भरकर नीचे से ऊपर की ओर चूसती रही, बीच-बीच में गुरूजी मेरी जीभ चूसते और अमीन उनकी जीभ चूस कर जवाब देने लगी । नीचे मेरी योनि का बुरा हाल होता जा रहा था और लंड लगातार चूत की फांकों के अंदर ठोकर मार रहा था और उनके बड़े अब्दे अंडकोष मेरे दाने को मसल रहे थे, गुरूजी में बहुत संयम था और वह बहुत अनुबह्वी थे, वह जानते थे कि स्त्री को कैसे भोगा जाता है।


[Image: mis10.gif]

उनके धक्को से मेरा शरीर और मेरी गांड, मेरे नितम्ब ऊपर-नीचे हो रहे थे मैं जोर-जोर से कराह रही थी और जब भी गुरूजी बीच में मेरे ओंठो को छोड़ते थे तो मैं अपने होठों को जोर से काट रही थी। मैं निश्चित रूप से अपने चरमोत्कर्ष के एक और निर्वहन के जा आरही थी ये देख गुरु जी अब अपना लंड पूरी ताकत और जोर से मेरी चुत में पटकने लगे।

मैं: ऊउउउउउउउइइइइ...

जीभ चूसते-चूसते काफी देर हो गयी, दोनों सारी दुनियाँ भूल कर एक दूसरे में डूबे हुए थे, मंने हाँफते हुए गुरूजी के मुँह से अपनी जीभ निकाली और अच्छे से सांस भरने के लिए अपने चेहरे को कभी दाएँ तो कभी बाएँ करने लगी, गुरूजी मेरे कान के आस पास चूमने लगा, मेरा बदन फिर सनसना गया, साँसे धौकनी की भांति चलने लगी।

मैं एक बार फिर अपने गुरुजी से कस के लिपट गयी।  मैंने गुरूजी के होंठों पर एक नर्म सा चुम्बन ले लिया और उनके चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसके गाल पर किस कर दिया. 




[Image: kis02a.webp]
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मैं-आआआआ हहहहहह...गुरूजी। मैंने सिसकते हुए बड़ी अदा से हल्की-सी अंगड़ाई लेकर अपने बदन को धनुषाकार में ऊपर को उठाते हुए अब खुली हवा में आजाद अपनी दोनों चूचियों को और भी ऊपर की ओर तान दिया, मोटी-मोटी गोरी-गोरी 36 की साइज की दोनों चूचीयाँ गोल-गोल फुले हुए गुब्बारे की तरह तनकर ऊपर की ओर उठ गयीं। उत्तेजना में दोनों चूचीयाँ फूलकर और भी बड़ी हो गयी थी, दोनों रसीले गुलाबी निप्पल तनकर कब से खड़े थे और हो गए थे, यज्ञ की आग की रोशनी में मेरी 36 साइज की मोटी-मोटी छलकती दोनों चूचियों को देखकर गुरूजी मंत्रमुग्ध-सा हो गए, ऐसा नहीं था कि वह मेरे स्तन पहली बार देख रहे थे पर हर बार मेरी मदमस्त चूचीयाँ जो सबका मन मोह लेती थी, वह गुरूजी को भी ललचा रही थी और बिना एक पल गवाएँ वह मेरी चूचीयों पर टूट पड़े, मैं जोर से सिसक उठी।

मैं " आह गुरूजी ...पीजिये न...दबाइये... हाँ ऐसे ही गुरूजी ...ऐसे ही...ऊ ऊ-ऊ ईईई... हाय दैय्या... ऊऊईईईईई माँ... धीरे गुरूजी ...थोड़ा धीरे-धीरे मसलिये...ऊऊफ़्फ़फ़फ़फ़...आह गुरूजी (गुरूजी ने नीचे मारे उत्तेजना के लंड मेरी की चूत में कस के रगड़ कर पेल दिया...ऊऊफ़्फ़फ़फ़फ़ गुरूजी ...धीरे धीरे ठोकर मारिये ...आआआह हहहह...गुरूजी ...अब पीजिये. मैंने बायीं चूची को गुरूजी के मुंह में डालते हुए कहा ...अअअआआआआआहहहहहहहहह...गुरूजी की गरम-गरम जीभ अपने निप्पल पर महसूस कर मैं पागल होती जा रही थी, मेरा वासनामय शरीर गुदगुदी और उत्तेजना से रह रहकर थिरक-सा जा रहा था, पूरे बदन में सनसनाहट और कंपन दौड़ रही थी, हर बार एक नया एहसास मुझे कायल कर दे रहा था।


[Image: mis4.gif]

गुरु-जी ने अपने लंड को मेरी योनि में और भी तेज और गहराई से पटक दिया और मैं उनके लंड के अपनी योनि के अंदर पूरा महसूस कर रही थी। जाहिर तौर पर पहले मेरे मन में एक शंका थी कि क्या मैं गुरु जी के राक्षसी लण्ड को अपनी चुत में पूरी तरह से ले पाऊँगी लेकिन अब मैं हैरान और बहुत खुश थी कि थोड़े से शुरूआती दर्द के बाद और फ़िब्रोइड को ध्वस्त करने के बाद मैं बिना किसी कठिनाई के उसे पूरी तरह से अपनी चूत में ले रही थी!

अब मैंने अपनी बाहों और जाँघों को उनके चारों ओर कस कर लपेट लिया और मैंने अपनी योनि को ऊपर की ओर गुरु जी के लिंग पर जोर से और दबाव के साथ उछलना शुरू कर दिया। मुझे पता था कि मैं इसे और अधिक नहीं रोक सकताी क्योंकि मैं बहुत अधिक पानी छोड़ रही थी। मेरे पूरे शरीर में झटका लगा क्योंकि मेरी योनि की मांसपेशियाँ गुरु जी के लिंग को जकड़ रही थीं और मेरा चरम सुख चरम पर था। और मैं कराह रही थी ।

में: ऊऊउ .........। मममम माआ ...उउउउउ ... आआ आआज़ ...ऊऊऊओईईईईई ii...

गुरूजी बेसुध होकर मेरी चूचीयों को दबा-दबा कर पिये जा रहे थे कभी रुककर सहलाने लगते, कभी निप्पल को चूसने लगते, कभी मुँह में भरकर तेज-तेज पीने लगते, कभी निप्पल को दोनों होंठों के बीच दबा कर चूसते, कभी जीभ से पूरी चूची को चाटने लगे और गुरूजी के थूक से मेरी गोरी-गोरी चूचीयाँ उस रोशनी में और भी चमकने लगी। गुरूजी के सख्त हाँथ मेरी कोमल नरम गुदाज चूचियों को रगड़-रगड़ कर मसल रहे थे, जब गुरूजी कस के चूची को दबाते और फिर निप्पलों को गुरूजी जीभ से चाट रहे थे मैं गुरूजी की मस्ती देख वासना में कराह उठती।

मैं गुरूजी से अपनी चूचीयाँ मसलवा रही थी। मैं सनसना कर कभी आंखें बंद कर लेती, कभी गुरूजी को चूची पीते हुए देखने लगती, लगातार मेरा एक नरम-नरम हाँथ अपने के सिर को प्यार से सहला रहा था और दूसरा हाथ उनकी पीठ पर था, रह-रह कर मैं गुरूजी का सर अपनी दोनों चूचियों के बीच दबा भी देती, कस के खुद ही अपनी चूचियों को गुरूजी के मुंह में भरकर कराह उठती " ...आह...!


[Image: mission1.gif]

फिर कराहते हुए मैंने अपना दाहिना हाँथ नीचे ले जाकर मैंने गुरूजी का दहकता काला मूसल लंड जो मेरी गीली योनि की फांकों में रगड़-रगड़ कर हलचल मचा रहा था, पकड़ लिया और उनके अंडकोषों को पकड़ कर सहला दिया, गुरूजी के मूसल लंड को पकड़कर मेरे चेहरे पर फिर शर्म की लालिमा तैर गयी, गुरूजी का लंड पहले से भी विकराल रूप ले चुका है, काफी देर से उत्तेजना में होने की वजह से मोटी-मोटी नसे खून के वेग से उभरकर खुरदरा अहसाह कर रही थी, लंड को हाँथ में लेते ही मेरी आह भरी सिसकी निकल गयी।



जारी रहेगी जय लिंग महाराज !
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RE: आश्रम के गुरुजी मैं सावित्री – 07 - by aamirhydkhan1 - 06-06-2023, 11:34 AM



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