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Adultery बर्बादी को निमंत्रण
#9
अपडेट - 2

जब राज ने सरिता से बच्चे के बारे में पूछा तो सरिता ने शर्मा कर कहा कि दीदी (जेठानी चंचल) ने भी तो पांच साल का परहेज किया है तो मुझे भी पांच साल दो न। राज सरिता की बात पर मुस्कुरा उठा।


अब आगे...


राज भली भांति जानता था कि सरिता को बच्चे से कोई परहेज नही है लेकिन फिलहाल ये मेरे साथ जीवन और जवानी दोनो का आनन्द लेना चाहती है। और फिर राज खुद भी नहीं चाहता था कि इतनी जल्दी घर गृहस्थी से  बच्चों में उलझ जाए। 

वहीं दूसरी और चाँदनी कई बाबाओं के आश्रम के चक्कर लगा रही थी। कभी कोई बाबा तो कभी कोई बाबा ,कभी किसी आश्रम से प्रसाद और कभी किसी आश्रम से कोई उपाय। चंचल इन सब से परेशान हो चुकी थी।

चंचल: (मन ही मन) अब सासु माँ को कौन समझाए की बच्चा प्रसाद और उपायों से नही ताबड़ तोड़ चुदाई और वीर्य से होता है। जितने उपाय में कर रही हूं यदि डॉक्टर को दिखाने का उपाय सुरेश कर ले तो सासु माँ की हर इच्छा पूरी हो जाये।

चाँदनी: चंचल किन सोचों में गुम हों। जैसा बाबा ने कहा है वैसा ही करना देखना जल्द ही तुम्हारी गौद में इस घर का वारिश किलकारियां मारने लगेगा। 

चंचल ने मुस्कान के साथ मुह बनाते हुए चाँदनी के कहे अनुसार उपाय पूरा किया। लेकिन पिछले छ: सात महीनों के उपायों के बावजूद भी चंचल को उल्टी नही हुई तो चाँदनी उदास होने लगी। 

एक दिन ऐसे ही चाँदनी बाहर हॉल में बैठे-बैठे भगवान से अपने घर के चिराग के लिए प्रार्थना कर रही थी कि  कोई साधु चाँदनी के घर के दरवाजे के पास आकर जोर से चिल्लाता है।

साधु: 

[Image: 431ce9877c39b45ae6708917a870a10b.jpg]
अलख निरंजन। बम भोले शिव शम्भू... अरे कोई है घर में साधु को भिक्षा दे दो। भगवान तुम्हारे हर मनोरथ पूरे करे। अलख निरंजन। 

चाँदनी साधु की आवाज सुनकर जल्दी से दरवाजे तक भागी- भागी जाती है और साधु को अंदर आने का निमंत्रण देती है लेकिन साधु चाँदनी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है। 

चाँदनी: क्या हुआ बाबा? घर मे पधारिये।

साधु: देवी हम आपका सत्कार स्वीकार नहीं कर सकते। हम ब्राह्मण है। केवल पांच घर मे भिक्षा मांग कर खाते है। किंतु किसी का सत्कार नहीं लेते। 

चाँदनी: ठीक है बाबा आपके तप और संकल्प को भन्ग करने का तो मैं विचार भी नहीं कर सकती। अच्छा तो आप यहीं रुकिए मैं खाने के लिए लाती हूँ।

चाँदनी रसोई घर में जाकर घी से चुपड़ी रोटियां सब्जी और कुछ मिठाईयां लाकर साधु को देती हूं।

साधु: देवी ये तो बहुत ज्यादा है मेरे घर मे केवल हम चार प्राणी है जिनके लिए ये बहुत है।

चाँदनी: बाबा मेरे घर में भी ये खाना ज्यादा है। आप अपने बच्चों को ये खाना देंगे तो मैंरे यहां अन्न का अनादर भी नही होगा और फिर मेरे कोई पोता नही है तो उसी के लिए में ये धर्म कर्म भी करना चाहती हूँ।
खुश किस्मती से वो साधु एक महान आत्मा थे। उन्होंने चाँदनी के चेहरे पर उसका भविष्य जान लिया था  जिससे वो थोड़े चिंतित थे लेकिन फिर भी  उन्होंने चाँदनी से इशारे में पूछा।

साधु: देवी आपको पोता चाहिए या घर का वारिश।

चाँदनी साधु की बात समझ नहीं सकी। और चाँदनी ने कहा बाबा पोता होगा तो वो ही वारिश होगा ना।

साधु ने तीन बार पूछा और ये भी बोला कि देवी विचार करके बताओ तुम्हे जो चाहिए वो अवश्य मिलेगा मेरे इस भोजन के मूल्य के रूप में लेकिन....

(चाँदनी महात्मा की बात काटते हुए)

चाँदनी: नहीं महाराज मुझे तो बस पोता चाहिए जो मेरे पति के नाम को आगे बढ़ाए। हमारे वंश के नाम को आगे बढ़ाए।

साधु: तथास्तु देवी किन्तु आपको अपने पोते की प्राप्ति उस समय होगी जब आप अपने घर मे नहीं होंगी।

चाँदनी: अर्थात महाराज । आप कहना क्या चाहते है। मेरे घर मे नहीं होने पोते का क्या संबंध?

साधु: देवी आपने हमे भोजन उस वक़्त प्रदान किया है जब आपके घर मे कोई नहीं था केवल आप ही थी। हमने आपके घर मे किसी और के होने का आभास तक नहीं किया। और अगर कोई है भी तो आपका पोता ऐसी अवस्था मे होगा जिसके भान घर के किसी सदस्य को नही होगा।

साधु: देवी आपको अब तीर्थ यात्रा पर जाना चाहिए । चारों धामों की यात्रा। एक माह तक एक धाम पर रुकना। और उनसे पौत्र मांगना। और याद रहे इन चार महीनों में केवल अपनी छोटी वधू से ही बात करना अन्य किसी भी पारिवारिक सदस्य से मत करना वरना परिणाम की तुम स्वयं जिम्मेदार रहोगी। ईस्वर ने चाहा तो चार संतान होंगी।

चाँदनी बाबा की बातों को सोच रही थी और समझ रही थी लेकिन जब कुछ समझ नही आया तो बाबा को पूछने के लिए गर्दन उठा कर देखा तो बाबा जा चुके थे। चाँदनी घर के बाहर आकर भी ढूंढा लेकिन बाबा कहीं भी नज़र नही आए।
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RE: बर्बादी को निमंत्रण - by Rocksanna999 - 28-12-2018, 12:19 AM



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