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Romance कैसे कैसे रिश्ते।
#5
सुप्रिया और सरजू मेला के लिए निकले। रास्ते में दोनो बात करते हुए चल रहे थे। 

"ये मेला यहां से कितना दूर है ?" सुप्रिया ने पूछा। 

"बस तीन गांव पर करके मेला आ जाएगा।"

"मैने गांव का मेला नही देखा।"

"तो अब देखलो। तुम्हे मजा आएगा।"

     दोनो मेला पहुंचे। सुप्रिया की खूबसूरती के मोहित हुआ पड़ा सरजू नहाने क्यों अपनी नजर उसपर रखा हुआ था। 

"वाह कितना अच्छा लग रहा है यहां। बच्चे झूला खुल रहे है, लोग नाच गा रहे है। अरे वाह पानी पूरी की दुकान। चलो ना सरजू बहुत दिन हुए पानी पूरी खाए।"

"चलो सुप्रिया मैं भी आज पानी पूरी का आनंद लूंगा।"

दोनो पानी पूरी की दुकान में पहुंचे। आज सुप्रिया ने पानी पूरी का जैसे रिकॉर्ड बना दिया। करीब 40 से भी ज्यादा गोल गप्पे खाए। दुलानवाला भी बोला पड़ा "लगता है आज मेमसाब सबको गोल गप्पे की प्रतियोगिता में हरा देगी। सबसे ज्यादा आपने ही खाया है।"

"हां भैया अब बस आज के लिए काफी है।"

फिर सुप्रिया और सरजू आगे बढ़े और चाट का आनंद लिया। 

"क्या सरजू। तुम तो कुछ खा ही नहीं रहे हो।"

"अरे इस बुढ़ापे में ज्यादा खाना आसान नहीं।"

"कुछ नही होता ये बुढ़ापा। खाने का जवान और बुड्ढे से क्या लेना देना ?"

      करीब तीन घंटे तक दोनो मेला में खूब घूमे फिरे। अब देखते देखते अंधेरा होने लगा। दोनो वापिस घर की तरफ चल दिए। दोनो का पेट भरा हुआ था। सुप्रिया और सरजू घर पहुंचे। घर के दरवाजे के बाहर एक चिट्ठी पड़ी थी। 

"ये किसकी चिट्ठी है सरजू ?"

"तुम जाओ कपड़े बदले मैं देखता हूं।"

सुप्रिया थकी हुई थीं इसीलिए साड़ी उतारने लगी। फिर पता नही खुद को aayne में देख रही थी। इस sleveless ब्लाउज और पेटीकोट में खुद की सुंदरता को कुछ देर तक निहारने लगी। अचानक से चिल्लाते हुए उत्साह से साथ दौड़ते हुए सरजू बीमा पूछे सुप्रिया के कमरे में घुस गया। 

"सरजू यह क्या है मैं कपड़े बदल रही थी। घुस आए रूम में।"

"अरे उसमे क्या ब्लाउज पेटीकोट में तो हो। अगर ये चिट्ठी पढ़ी तो तुम भी पागल हो जाएगी।"

"क्या है इसमें ?" सुप्रिया चिट्ठी पढ़ने लगी। 

    चिट्ठी सरकार की तरफ से था। दरसल कॉलेज में सुप्रिया का प्रमोशन हो गया। अब वो प्रिनिसिपल बनानेवाली थी। चिट्ठी खत्म होते ही टीचर की सारी जिम्मेदारी और पढ़ाई को छोड़ प्रिंसिपल की जिम्मेदारी संभालने होगी। अब दिन में सिर्फ एक ही पीरियड लेंगी। ये पढ़कर सुप्रिया तो जैसे पागल सी हो गई और खुशी से सरजू के गले लग गई। 

"सरजू मैं कितनी खुश हूं आज। मैने अपनी मेहनत से ये सफलता हासिल की। सरजू तुमने मेरे लिए कितनी मेहनत की। सरजू।" कसके सुप्रिया ने सरजू को गले लगा लिया। पता नही इस हरकत से सरजू की दिल की धड़कन बढ़ गई। इतनी गोरी और मखमली सा बदन आज उसे लिपटा हुआ था। सरजू ने भी दोनो हाथो से सुप्रिया को कस लिया और सिर को इसके नरम और नंगे कंधे पे टिका लिया। सुप्रिया का मुलायम स्तन सरजू के सीने से चिपका हुआ था। 

"सुप्रिया बहुत बहुत बधाई। आज मैं बहुत खुश हूं।" अभी भी दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए थे।

"अच्छा सुप्रिया इतने दिनो बाद कोई खुश खबरी आई।"

"सरजू सिर्फ तुमने ये मुमकिन किया। तुम ना होते तो कुछ न होता।"

     सरजू अलग हुआ और कहा "तुम्हारी मेहनत है। मैंने बस थोड़ा सा साथ दिया।"

    दोनो बहुत खुश थे। दोनो ने देर तक बाते करे और सो गए। अगले दिन सुप्रिया थोड़ी देर से उठी और आंगन में आ गई। वहां देखा तो सरजू चाय बना रहा था। दोनो ने साथ में चाय पिया। फिर सुप्रिया नहाने चली गई। आज जैसे वो काफी खुश थी। जैसे दुनिया की सारी खुशी उसे मिल गई हो। 

     सुप्रिया ने सोचा कि आज आज बाजार जाकर सामान लेकर आए। सुप्रिया गई बाजार में वहां सामान लिया और हॉस्पिटल में जाकर सरजू का रिपोर्ट भी लिया। रिपोर्ट सही थी। 

       सुप्रिया बाहर आई तो देखा कि गंगू अपने पोते के साथ दिखा। सुप्रिया मिलने चली गई। 

"नमस्ते गंगूजी कैसे है आप ?"

गंगू का पोता अनिल जब सुप्रिया को देखा तो पैर छूकर खड़ा हो गया। उसकी हालत थोड़ी सुस्त लग रही थी। दरअसल उसे तेज बुखार था। 

"अरे कुछ नही सुप्रिया मेमसाब बस बुखार है साहब जी को तो बस।यहां आ गए।"

"अरे ऐसे कैसे बुखार हुआ ?"

"कुछ नही बस खेल कूद का नतीजा। डॉक्टर ने आराम करने को कहा।"

       दोनो ने कुछ देर बात किया लेकिन सुप्रिया को कुछ सही नही लगा और सभी अलग हुए। 
   
      घर वापिस आए तो सरजू को भी तैयार करना था। सरजू छह दिनों के लिए बाहर जानेवाला था। सरजू को दोस्त के साथ बनारस जाना था। सरजू  चला गया। अब सुप्रिया अकेली पड़ गई। फिर उसे गंगू के पोते अनिल की याद आई और सोचा मिलने चली जाए।

      रात के ८ बजे अंधेरा हो गया और गंगू दुकान बंद करके घर आया। अनिल को सोता देख बोला "उठ बेटा थोड़ा खाना खा ले वरना ठीक कैसा होगा ?"

"नही दादा आप अच्छा खाना नही बनते। मुझे नहीं खाना।"

"मेरे बच्चे मैं कोशिश कर रहा हूं। चल मेरे लाडले उठ जा।"

तभी दरवाजे से दस्तक आई। गंगू ने देखा तो सुप्रिया थी। गंगू मुस्कुराते हुए बोला "मेमसाब आप ?"

"सिर्फ सुप्रिया नाम से बुलाओ। मेमसाब नही।"

"इतनी रात यहां?"

"अनिल को देखने आई थी।"

"देखलो वैसे साहब खाना नही खा रहे। बोलते है को अच्छा नहीं बनता।"

      सुप्रिया बिना बोले अंदर रसोई में गई और सब्जी चखा बिना नमक के। सुप्रिया बाहर आई और बोली "ऐसे कैसे खाना बनाते है आप यह दोपहर का बिना नमक का लगता है। रहने दो मैं जल्दी से खिचड़ी बना देती हूं।"

"मेमसाब आप भी ना। रहने दो।"

"चुप रहो जल्दी से समान लाने में मदद करो।"

      गंगू भी कुछ न बोला और मदद करने लगा। खिचड़ी बनाकर सुप्रिया ने अनिल को खिलाया। अनिल को अच्छा लगा और आराम से सो गया। 

"बहुत बहुत शुक्रिया आपका नही तो लाड साहब भूखे रहते।"

"चलिए आप भी खा लीजिए।" सुप्रीम ने कहा। दोनो ने खाना खाया और फिर लालटेन की रोशनी में बैठ गए।

"वैसे आप आई और लाड साहब बड़े अच्छे से खा पीकर सो गए।"

"चलिए गंगूजी मुझे चलना होगा। काफी देर हो गई।"

"अरे इतने अंधेरे में कैसे ? आज आप यहां रुक जाइए।"

"लेकिन आपको तकलीफ होगी।सी

"लो। कैसी तकलीफ। चलिए आप यहां रह जाइए।"

"लेकिन अनिल की नींद उड़ जाएगी। उसे कमरे में रहने दो।"

"हां तो एक काम करिए हम कही और चलकर सोते है। ऊपर छत पर दो खटिया है। आपको सुविधा में भी कमी नहीं होगी।"

सुप्रिया मान गई। दोनो छत पर चले गए। रात का सन्नाटा और चांदनी रात। दोनो को नींद नहीं आ रही थी। 

"वैसे सुप्रिया आप ऐसा मत आया करे वरना मुझे और अनिल को आदत पड़ जाएगी।"

"इसमे क्या हुआ ? हम एक ही गांव में रहते है और अभी तो सरजू भी नही है। सोचा था आज देख लूं।"

"सरजू कहा गया ?"

"अपने दोस्त के साथ बनारस छह दिन बाद वापिस आएगा।"

"क्या बात है। फिर तो अच्छा है।"

"लेकिन इतने रात आपके घर आई और आप परेशान हुए।"

"कुछ भी परेशान नहीं हुआ। मुझे बहुत अच्छा लगा आप आई। कितने दिनों बाद कोई आया यहां।"

"वैसे एक बात कहूं बुरा मत मानिए।"

"कहो कहो सुप्रिया।"

"आप ठीक से देखभाल नही कर रहे है। लगता है मुझे ही अनिल। खयाल रखना होगा।"

"हां वैसे भी एक औरत ही बच्चो का खयाल रख सकती है।"

"अब चिंता न करिए। आप अब मेरे निगरानी में है। Apka bhi खयाल रखना होगा।"

दोनो हंसने लगे। 

"सुप्रिया जी वैसे एक बात कहूं आपको ?"

"हां कहिए।"

"आपका कोई पति नही क्या ?"

"नही। वैसे कौन मुझसे शादी करेगा। इस गांव में जो रहती हूं।" सुप्रिया ने मजाक में कहा। 

"पागल होगा वो जो आपसे शादी न करे। दूध सी गोरी और जवान।"

सुप्रिया ने छेड़ते हुए कहा "तो आप करोगे क्या ?"

गंगू जोर से हंसते हुए कहा "मुझसे शादी करेगी तो कुछ नही मिलेगा।"

"मिलेगा न। नई नई साडिया और क्या चाहिए।" 

"तो फिर बताओ कब करें शादी ?" गंगू ने मजाक में कहा। 

सुप्रिया को भी अच्छा लग रहा था गंगू के साथ। और अपने सुंदरता को तारीफ भी सुनना चाहती थी। 

"चलो अभी कर ले।" सुप्रिया ने मजाक में कहा। 

"चलो तो फिर सुप्रिया मेरी पत्नी।"

"और गंगू मेरा पति एक बूढ़ा पति।"

 "वैसे पत्नीजी अब मुझे पति का हक निभाने दो।"

"क्या करना होगा ?"

"मेरे पैर छुओ और आशीर्वाद लो।"
  
   सुप्रिया ने मजाक में पैर छुआ और कहा "आपकी पत्नी आपका आशीर्वाद चाहती है।"

"सदा सुहागन रहो। लेकिन तुमसे मुझे एक शिकायत है।"

"बोलिए पतिजी। क्या किया मैंने ?"

"पहली बात। तुम इतनी खूबसूरत और मैने बदसूरत बुड्ढा। भला कोई वजह बताओ मेरी पत्नी होनेका।"

"आपके साड़ी की दुकान।"

"वाह खूब।"

"और आप हमारे पति क्यों बने ?"

"एक जवान खूबसूरत स्त्री जब मिल जाए तो जाने क्यों दूं ?" इतना कहकर गंगू ने सुप्रिया के दोनो कंधे पे हाथ रख दिया।

"अच्छा तो मैं खूबसूरत हूं इसीलिए ? ऐसा क्या है मुझमें ?"

"उसके लिया मेरे साथ रेहान होगा तो जवाब मिलेगा।" 

"तो फिर ठीक है अब देखते है इस पति के जवाब को।" 

"लेकिन सुप्रिया क्या तुम्हे लगता नही ? की एक पति के साथ तुम्हे वक्त बिताना चाहिए ?"

"हां लेकिन मेरा पति छत पर ले आया। भला उसका कोई कमरा नही तो कैसे दिन में वक्त बिताऊं ?"

"फिर चलो अब हम कमरे में चलेंगे।" गंगू ने मजाक में सुप्रिया का हाथ पकड़ा और अपने छोटे से कमरे ले गया। 

दोनो आयना के सामने खड़े हो गए। सुप्रिया ने मस्ती में कहा "देखो तो सही एक पति पत्नी की जोड़ी को।"

"हां जैसे जन्म जन्म के साथी।" गंगू ने सुप्रिया के दोनो कंधे पे हाथ रख पीछे खड़ा हुआ। 

"जन्म जन्म के साथी ?"

गंगू सुप्रिया के कमर पे हाथ रखा और पीछे से लिपटते हुआ कहा "गंगू और सुप्रिया एक दूसरे के साथी।"

   नज़ाने क्यों दोनो खुद को भूलने लगे और पति पत्नी की तरह बाते करने लगे। सुप्रिया हल्के से गंगू के हाथ को अपने कमर पे दबाते हुए कहा "किसी की नजर न लगे इस जोड़ी को।"

    दोनो एक दूसरे की आंखों में देखने लगे और गले लग गए। 

"सुप्रिया मेरी खूबसूरत पत्नी।" इतना कहकर गंगू ने हल्के से सुप्रिया को बिस्तर पे लिटाया और कहा "मेरी पत्नी दुनिया की सबसे खूबसूरत पत्नी।" यह कहकर रोने लगा। 

"क्या हुआ गंगू मुझे माफ करो। मेरा कोई गलत इरादा नहीं था।" सुप्रिया को बूरा लगा। 

     दरअसल गंगू को सुप्रिया से सच्चा प्यार हो गया और भावनाओं में आकर ये सब कह बैठा। उस लम्हे के बाद दोनो के बीच कुछ भी बात चीत न हुई। गंगू के साथ हुई बातो से सुप्रिया को अजीब सा अपनापन लगा। 

     अगले दिन सुप्रिया घर वापिस आई और दिन बीतने लगा और सुप्रिया को घर में अकेलापन सताने लगा। आखिर में ६ दिन बीते और रात के वक्त सरजू वापिस आया। 
   
      सरजू ने सुप्रिया को बहुत याद किया। सुप्रिया को मिलते ही सरजू बोला "तुम्हे वापिस देख अच्छा लगा। आखिर कुछ भी कहो दुनिया के हर सुंदर जगह घूम लो लेकिन स्वर्ग अपने घर में ही है।"

सुप्रिया बोली "अगली बार इतने दिनो के लिए अकेला न छोड़ना। तंग आ गई थी अकेले रहकर।"

"अरे बाबा हां अगली बार हम दोनो चलेंगे कहीं घूमने। अब जल्दी से बिस्तर लगाओ थोड़ा आराम कर लूं।"

"आपका कमरा तैयार है।" सुप्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा। 

"अरे नही सुप्रिया मुझे तुम्हारे साथ ज्यादा वक्त बिताना है। बहुत याद किया तुम्हे। अब मुझे हर वक्त तुम्हारा साथ चाहिए। चलो साथ में आंगन में सोएंगे"

       सुप्रिया भी साड़ी उतरकर रोज की तरह ब्लाउज पेटीकोट में आ गई।  दोनो एक एक खटिया में लेटे।

"अच्छा सरजू मेरे लिए कुछ लाए या नहीं ?"

"लाया हूं एक साड़ी लेकिन कल दिखाऊंगा।"

"लेकिन तुम काफी थक गए होंगे।"

"तुम्हे देखकर सारी थकान उतर गई। सच कहूं सुप्रिया तुम्हारे बिना दिल नही लग रहा था। बस इतना मन में था कि जल्द से जल्द तुम्हारे पास आऊं। बहुत सोचा तुम्हारे बारे में।"

"मैंने भी तुम्हे याद किया। लेकिन एक बात है तुम्हारे बिना घर खंडार लग रहा था।" इतना कहकर सुप्रिया सरजू के खटिया पे आया। 

      सरजू बहे फैलाए लेटा और सुप्रिया को अपने बगल लिटाया। सुप्रिया सरजू के हाथ पर सिर लगाए लेट गई। सरजू बोला "आह अब उतरी थकान सच में सुप्रिया बहुत याद किया तुम्हे।" यह कहकर सरजू ने सुप्रिया को गले लगा लिया।

सुप्रिया ने हल्के से सरजू की तरफ करवट लेकर मुड़ी और कहा "सच कहूं तो इतने सालो बाद किसी को से न पाने पर अच्छा नही लग रहा था। सरजू एक बात पूछूं"

"पूछो।"

"मुझे याद करने की कोई वजह ?"

सरजू हंसते हुए बोला "कोई किसी अपने को याद वजह से करते है ? जायस सी बात है तुम्हे याद करने की वजह भी यही है। तुम साथ होती हो अच्छा लगता है। वैसे भी एक जवान खूबसूरत औरत जब आपके घर हो तो उसे दूर नही जाया करते।" हल्के से मजाकी मूड में सरजू ने हाथ आगे बढ़ाकर सुप्रिया के चिकने पीठ को सहलाया।

"सरजू दुबारा इतने दिनो के लिए अकेले छोड़कर नही जाना।"

"नही जाऊंगा अब चलो जाओ अपने खटिया पे और सो जाओ।"

"नही आज नही जाऊंगी। इतने दिनो बाद आने की सजा है ये। इसी खटिया में रहूंगी।"

सरजू हल्के से सुप्रिया के कमर पे हाथ रखकर कहा "तो फिर चलो मुझे कोई ऐतराज नहीं।" 

      दोनो एक दूसरे से लिपटकर लेट गए। सुप्रिया से बजाने अब सरजू को प्यार होने लगा। सुप्रिया के गालों को कई दफा चूमा। दोनो ऐसे ही सो गए। 

       अगले दिन दोनो सुबह देर से उठे। सुप्रिया की आंखे खुली तो खुद को सरजू के बगल पाया। हल्के से सरजू के गाल पे थप्पड़ लगाते हुए कहा "उठो बुड्ढे बहुत हुआ सोना।"

सरजू हल्के से आंखे मसलता हुआ बोला "हम्म्म काफी देर हो गई। चलो मैं गाय को चारा देकर आता हूं।"

      सरजू गाय को  चारा देने गया। सुप्रिया ने घर में झाडू लगाया। अब वो sleveless ब्लाउज पेटीकोट में रहती बिना किसी संकोच के। झाड़ू के बाद वो नहाने गई और सरजू बाहर कुएं के पास नहा लिया। नहाने के बाद आंगन गया कपड़ा सुखाने। सुप्रिया भी slevelss ब्लाउस पेटीकोट पहने बाहर आई। बदन भीगा हुआ और बाहर आंगन में सरजू के सामने बालो को झटक रही थी। बालो को सुलझाते हुए बोली "सरजू मेरी साड़ी दो। वहां लटकी हुई है।"

"कौन सी लाल वाली ?"

"हां"

सरजू साड़ी देते हुए सुप्रिया के सामने पड़ी खटिया पे बैठ गया। सुप्रिया अपने गीले कपड़े सुखाने लगी। उसके बाद साड़ी पहनने लगी। दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए। 

"वैसे सुप्रिया आज खाने में क्या बनाओगी ?"

"तुम बताओ।"

"आज पराठा खाने का मन है।"

"हां ठीक है लेकिन रसोई में जरा हाथ बटाना।"

"हां ठीक है लेकिन आखिर में तुमने मेरे beg से साड़ी निकाल ही ली।"

"आखिर इतनी खूबसूरत साड़ी लाए हो तो पहनी क्यों न ?"

सरजू सुप्रिया के पीछे गया और कसके बाहों में भर लिया और कहा "सुप्रिया इसी खूबसूरती को याद करके खरीदा।"

सुप्रिया शर्मा गई और बोली "लेकिन मैंने आपके लिए कुछ नहीं लिया।"

"जिसके पास सब कुछ हो उसे क्या जरूरत है कैसी चीज की ?"

"सब कुछ मतलब ?"

"तुम। जिसमे मेरी खुशी, अपनापन सब कुछ हो।" यह कहकर सरजू सुप्रिया के मुलायम कंधे पे सिर रख दिया। 

   सुप्रिया सिर को हाथ से सहलाते हुए बोली "तुम्हारी बाते बड़ी अच्छी है। इसे रोज याद करती थी मैं। अब चुपचाप मेरे साथ रसोई चलो। आज तुम्हे पूरे दिन अपने आस पास रखूंगी। बहुत रहे मेरे बिना। अब ऐसे नही जाने दूंगी।"

"और मैं भी। आज तुम खाने के बाद मेरे साथ बात करोगी और कोई भी प्रकार का काम नहीं। तुम्हारे साथ एक एक पल को गुजरना है। अब चलो कुछ देर मुझे शती से अपने से लगाओ।" 

      सरजू सुप्रिया को अपनी गोदी में बिठाया और सुप्रिया के सीने पे सिर रख दिया। सुप्रिया सरजू के सिर को सहलाते हुए बाहों में भर लिया। 

"सरजू। पता नही तुम्हारे बिना जीना कैसे होगा ?"

"मुझे भी तुम्हारे बिना जीना अच्छा नही लगेगा। जब तक साथ हूं खुश रहूंगा।" 

      दोनो कुछ वक्त के लिए सब भूलकर एक दूसरे की बाहों में थे। फिर दोनो ने खाना बनाया और खाना खाया।

   दोपहर सरजू अपने कमरे में था और सुप्रिया का इंतजार कर रहा था। सुप्रिया अपने कमरे में सामान ठीक कर रही थी और उसके बाद साड़ी बदलने वाली थी। कुछ समय बीत और सरजू चिल्लाते हुए बोला "सुप्रिया आओ ना कितना वक्त लगेगा"

"आ रही हूं। रुको तो सही।" सुप्रिया बिस्तर पर पड़े सामान को ठीक करने लगी। 

सरजू भी सब्र खोने लगा और घुस गया सुप्रिया के कमरे में। काम निपटाकर सुप्रिया साड़ी बदल रही थी।

"कितना इंतजार करवाओगी ?"

     सुप्रिया sleveless ब्लाउस पेटीकोट में थी और बोली "साड़ी तो बदलने दो।"

सरजू हाथ पकड़ते हुए बोला "उसके बिना भी तुम मेरे साथ रहती हो। कोई जरूरत नहीं साड़ी पहनने की।"

सुप्रिया हंसते हुए बोली "सब्र नहीं है तुम्हे। पागल बुड्ढे।"

दोनो सरजू के कमरे आए और बिस्तर पर लेटे। सरजू बोला "सुप्रिया एक दूसरे को खूब वक्त दे रहे हैं। अच्छा लग रहा है।"

"मुझे भी। छुट्टी तक सिर एक दूसरे के साथ समझे ?"

सरजू सुप्रिया के कमर पे हाथ रखकर बोला "हां। अब चलो कल की थकान गई नही। चलो मुझे सुला दो।"

    सुप्रिया ने सरजू को खुद के सीने से लगाया और सुलाने लागी।

"सुप्रिया बहुत महक रही हो।"

"मैंने कुछ लगाया नही। लेकिन तुम बहुत पसीना बहा रहे हो। कुर्ता उतार दो।"

सरजू ने कुर्ता उतार और उसका बुद्धा शरीर और सफेद बालों वाली छाती सुप्रिया। के सामने था। सुप्रिया ने उसे बाहों में भरकर कहा "सो जाओ। आराम करो।"

      सुप्रिया और सरजू दोनो ने ऐसे ही छुट्टी के दिन बीता लिए। कॉलेज खुला और नए जिम्मेदारी के साथ सुप्रिया आगे बढ़ी। वक्त भी बीतने लगा और सुप्रिया भी अपने जिंदगी में खुश थी। सुप्रिया को एक चीज ढलती और वो था गंगू। उस रात के बाद गंगू उससे मिला ही नहीं। करीब 40 दिन हो गए लेकिन मिला ही नहीं। सुप्रिया का दिन फिर खाली जाने लगा darsal सरजू के दोस्त का देहांत हुआ इसीलिए वो बनारस गया पूरी विधि के लिए। करीब ३ हफ्ता लगेगा।     


                                        40 दिन बाद

     देखते देखते दिसंबर का महीना आया और रोज की तरह सुबह 9 बजे अपना एक लेक्चर पूरा करके सुप्रिया ऑफिस में थी। करीब कुछ दिनों से धूप नही आई और बारिश की भी अगाही थी। 

 खाली वक्त रहता तो हिसाब किताब की जांच करती। ऑफिस के पीछे एक बगीचा भी था। सुप्रिया ने देखा तो अभी सिर्फ 11 ही बजे थे। अपने काम में लगी सुप्रिया के ऑफिस पर किसी ने दस्तक दी। 

     फाइल को देखते हुए सुप्रिया ने बिना उस आदमी की तरफ देखे उसे अंदर आने को कहा। वो आदमी गंगू था। गंगू ने देखा तो लाल रंग sleveless ब्लाउज में सुप्रिया क्रीम रंग की साड़ी में थी। 

"नमस्ते सुप्रिया।" गंगू ने कहा। 

सुप्रिया आवाज सुनते ही पहचान गई और देखा तो गंगू ही था। वैसे सुप्रिया गंगू से नाराज़ थी। 

"हां बोलिए क्या काम है ?"

"जी वो पोते का फीस चुकाने आया था तो सोचा आपसे मिल लूं।"

"आप जा सकते है।" सुप्रिया ने रूखे आवाज में कहा। 

"मेरी बात तो सुनिए।"

"क्या सुनू ? इतनी कोशिश की लेकिन आप मिले ही नही। अब क्या कहने आए है आप ?"

"माफी मांगने आया।"

"मेरा दिल दुखाने के लिए ? आपको अपना मानती थी लेकिन आप है कि मेरे दिल को बार बार ठेस पहुंचाते रहे।"

"माफ करदो। वो क्या है मुझे बूरा लगा इस रात में जो हुआ। मुझे ये सब नही करना चाहिए था। आपकी सुंदरता से बेकाबू हो गया।"

सुप्रिया उठी और कहा "यहां नही कही और चलकर बात करते है।"

सुप्रिया ने उसी वक्त आधे दिन की छुट्टी ले ली। सुप्रिया और गंगू कॉलेज से बाहर निकले। 

"गंगूजी आपने मेरा दिल दुखाया। क्यों मुझसे दूर रहे ?"

"दरसल मुझे पछतावा था उस रात का।"

"को हुआ वो हमारे मजाक की वजह से हुआ और उसमे मैने भी साथ दिया था।"

"यही बात आज समझ में आई इसीलिए मिलने आया।"

"बहुत गंदे हो आप। दिल भी तोड़ते हो और मिलकर आशाएं बांध देते हो।"

"कैसी आशा।"

"अपनेपन वाले रिश्ता की।"

"सुप्रिया क्या तुम मेरे घर चलोगी ? थोड़ा साथ में बात करेंगे।"

दोनो चुप रहे और घर आ गए। गंगू ने दरवाजा बंद किया। सुप्रिया खामोश थी। गंगू पानी लेकर आया और पूछा "क्या आपने मुझे माफ किया ?"

सुप्रिया घुसा दिखाते हुए बोली "दुबारा मुंजे अकेला छोड़ा तो जान ले लूंगी।"

"अब बिल्कुल अकेला नहीं छोडूंगा।"

"एक तो दिल में जगह बनाते हो और भाग जाते हो। किंतना रोई मैं आपको याद किया। पता नही काम वक्त में आपको अपना मान लिया। रोज सोचती की तुम कब आओगे।"

"मैं भी आपके बारे में ही सोचता।"

"एकदम घटिया आदमी हो तुम।" रोते हुए सुप्रिया मुड़ गई। 

      गंगू ने है से सुप्रिया को पीछे से छुआ। सुप्रिया ने घुसे से झटक लिया। गंगू ने फिर छुआ तो वोही हुआ। आखिर में मजबूती से गंगू ने सुप्रिया को पीछे से बाहों में भर लिया। सुप्रिया ने झटकना बंद कर दिया। 

     गंगू ने पीठ को चूमते हुए कहा "अब कभी नहीं छोड़कर जाऊंगा।"

सुप्रिया गंगू की तरफ मुड़ी और कहा "गंगू अब छोड़कर न जाना। बहुत याद किया तुम्हे। अब चुपचाप मेरे पास रहना वरना मुझे बूरा कोई नही।"

"आज मेरे पास रह जाओ।"

"हां मैं हूं तुम्हारे पास।"

    गंगू ने सुप्रिया के होठ को चूम लिया और कहा "प्यार हो गया है तुमसे।"

"ऐसा न करो गंगू नही तो बेकाबू हो जाऊंगी। फिर कही तुम्हे चाहने ना लगूं।"

"अब मुझे करने दो जो करना है।" गंगू ने साड़ी का पल्लू गिरा दिया और कहा "आज मैं इसी इरादे से आया था की तुम्हे यहां लेकर आऊं और फिर तुम्हे अपना बना लूं। अब मेरा इरादा हैं तुम्हे अपने पास ही रखने का। देखो आज तुम्हे यहां लेकर आया हूं। आज कोई दूरी नही। आज के बाद सुप्रिया तुम मेरी हो।"

"हां मैं तुम्हारी हूं। बस अब आओ मेरी बाहों में इस जिस्म को तुम्हारे प्यार की प्यास है।"

"चलो मेरे कमरे में। जहां से रुके उसे खत्म करेंगे।" 

       सुप्रिया जब अंदर आया तो देखा की कमरे में गंगू ने उसकी तस्वीर रखी थी। वो तस्वीर जो कॉलेज के वार्षिक उत्सव का था। 

"यह तस्वीर कैसे मिली ?" सुप्रिया ने पूछा। 

"दुकानवाले से ली।"

"कब ?"

"उसी दिन। जब से तुम्हे देखा। जानती हो सुप्रिया ? मुझे तुमसे पहली नजर में प्यार हो गया था। रोज तुम्हे याद करता। कसम खा ली थी की तुम्हे अपना बनाऊंगा। जब से तुमसे अलग हुआ इसी के सहारे जी रहा हूं।"

सुप्रिया दौड़ते हुए गंगू के होठ को चूमते हुए बोली "अब मैं आ गई हूं। आज तुमसे कहती हूं की तुमने मुझे हासिल कर लिया।"

    सुप्रिया दो कदम पीछे गई और पल्लू गिरते हुए कहा "आओ गंगू कर लो मुझे पूरी तरह से हासिल। आज मैं खुले आवाज में कहती हूं कि गंगू ने मुझे पा लिया। अब गंगू का मुझपर पूरा हक है। आओ गंगू अब देर ना करो।"

     गंगू ने सुप्रिया को बाहों में भर लिया और कहा "आज के बाद तुम्हे मैं अपनी पत्नी से भी ज्यादा मानूंगा।"

     गंगू ने सुप्रिया के बदन से एक एक करके कपड़े उतार दिया और बिस्तर पे लिटाया। सुप्रिया के हाथ आगे करते हुए कहा "आओ गंगू। अब मुझे न तड़पाओ और मेरे जिस्म को प्यार की बारिश में भीगा दो।"

     गंगू आगे बढ़ा और सुप्रिया के ऊपर लेट गया। दोनो ने एक दूसरे के होठ को चूमना शुरू किया। सुप्रिया का दूध जैसा गोरा जिस्म गंगू के कोयले काले शरीर के गिरफ्त में आ गया। गंगू ने सुप्रिया के गर्दन और पूरे गले को चाटा। सुप्रिया ने अपनी जुबान बाहर निकला। गंगू ने उसकी जुबान को अपनी जुबान से मिलाया और फिर सुप्रिया के मुंह को थूक से भर दिया।

अपने काले लिंग को गोरी योनि के डालकर धक्का मरने लगा। दोनो की आंखे मिली। सुप्रिया को एहसास होने लगा को उसने क्या कर दिया। आखिर उसका आकर्षण सरजू भी है। खुद से कहने लगी "क्या हो रहा है मेरे साथ ? गंगू के साथ बिस्तर में जो कर रही हूं वो सुख और खुशियों में इजाफा लाता है लेकिन सरजू तो मेरा पहला प्यार है। यह क्या हो रहा है। क्यों दोनो बुड्ढे लोगो से प्यार हुआ मुझे। क्यों दोनो के लिए दिल धड़क रहा है ? सरजू और गंगू के साथ जिंदगी बिताना ही मेरे जिंदगी का मकसद तो नही ? सालो से दर्द और डर के साथ जीने के बाद आज दोनो ने मुझे खुशी दी। हां मैं यही करूंगी। चाहे जमाना जो कहे। मुझे दोनो की होना है। दोनो के बिना मैं अपनी जान दे दूंगी। सुप्रिया अब से यही तेरी जिंदगी है। इन दोनो की हो जा। अब यह चाहे तकदीर का फैसला हो या तेरा।"

     "Aaaahhhh सुप्रिया मैं आने वाला हूं।" यह कहकर गंगू खाद गया। सुप्रिया को आज सबसे बड़ी खुशी मिली। गंगू की आंखे बंद थी। सुप्रिया ने कहा "आज मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिली गंगू।"

"हां सुप्रिया आज मैने तुम्हे हासिल कर लिया। अब बाकी की जिंदगी तुम्हारे साथ प्यार करके गुजरूंगा।" गंगू स्तन चूसने लगा। सुप्रिया हंसते हुए बोली "ओह मेरे गंगू तुम्हारे प्यार ने मुझे पागल कर दिया। नजानें इस बुड्ढे से प्यार कैसे हो गया ?" दोनो साथ में कुछ वक्त सहवास के आनंद में डूबे। दोपहर २ बजे दोनो अलग हुए। अनिल के आने का वक्त था। सुप्रिया साड़ी पहनकर जाने लगी की गंगू ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी और खींचा। दोनो ने एक दूसरे को चूमा। 

"गंगू अनिल आ जाएगा। अब थोड़ा सब्र करो। मैं वापिस आऊंगी।"

"नही। अब नही जाओगी यहां से। अनिल के सोने के बाद तुम्हारे साथ फिर से सहवास करूंगा। आज इतना भड़ास निकलूंगा कि तुम थक जाओगी लेकिन मैं नही। चलो अब से हम दोनो का कमरा एक और मेरी पत्नी बनकर रहना होगा तुम्हे।"

"थोड़ा सब्र करो गंगू। बहुत जल्द हम शादी करेंगे।"

"अब चलो अंदर आओ। आज ऐसे नही जाने दूंगा। एक गोरी जवान औरत मेरे प्यार में फंसी है। अब सारी जिंदगी मेरे नाम करना होगा। चलो अनिल के खाने के बाद मेरे कमरे आ जाओ।"

"ओह मेरे गंगू पहले खाना बना लूं। फिर तुम्हारे साथ वक्त गुजरूंगी। पागल बुड्ढे मुझे लत लगा रहे हो अपनी। जी कर रहा है अभी तुम्हे खुद से बांध लूं। अनिल के बाद मुझे वापिस वोही गंगू चाहिए जिसने मुझे अपने जाल में फंसाया है। लगता है आज मेरी खैर नहीं।"

"आज तुम्हे पता चलेगा कि प्यार कैसे एक बुड्ढा इंसान करता है। बहुत तड़पा तुम्हारे लिए।"

      अनिल जब आया तो सुप्रिया को सामने देख बोला "आप यहां ? क्या मेरे लिए खाना बनाओगी टीचर ?"

सुप्रिया अनिल को गले लगाते हुए बोली "हां। जल्दी से मुंह हाथ धो लो। फिर हम साथ में खाना खायेंगे।"

     अनिल अपने कमरे में गया। पीछे से गंगू सुप्रिया के नितंब पे चुटकी लगाते हुए कहा "रसोई घर चलो।" कमर पे हाथ रखकर रसोईघर में ले गया ओर kiss करने लगा। 

"रुक भी जाओ वरना आ जायेगा अनिल।"

     गंगू कमर पे चिकोटी भरते हुए कहा "जल्दी से अपनी ब्रा मेरे हाथ में दो वरना यही पर शुरू हो जाऊंगा। मेरी बुलबुल।"

  "नही बिलकुल नहीं।"

"अच्छा तो ऐसे नही मानोगी।" कहते ही सुप्रिया का पल्लू गिरा दिया और दोनो हाथो से स्तन को दबाने लगा। 

"चोदो भी। रुको।" सुप्रिया ने जल्दी से ब्रा अंदर से निकाला और गंगू को दे दिया। 

ब्रा को सूंघते हुए गंगू ने कहा "एक घंटे के अंदर आ जाना वरना पेंटी लेने आ जाऊंगा और फिर उसके बाद अनिल का भी खयाल नहीं रखूंगा। सीधा उठाकर ले जाऊंगा।"

"हां आ जाऊंगी। फिर जो चाहे करना मेरे साथ।" 

      गंगू चला गया। सुप्रिया हल्के से मुस्कुराते हुए बोली "यह बुड्ढा आज नही छोड़ेगा। चलो जल्दी से काम कर लूं क्योंकि मुझसे भी काबू नही हो रहा। आज दोपहर गंगू के साथ मजे करूंगी। आ रही मेरे बुड्ढे पति। इस जवान और खुबसूरत पत्नी को बहोंके भरने को तैयार रहो।"

       सुप्रिया ने अनिल को खाना खिलाया और खटिया में सुला दिया। उसके बाद हल्की सी मुस्कान के साथ गंगू के कमरे में आई। दरवाजा अंदर से बंद किया। सामने देखा तो बिस्तर में गंगू bra को सूंघते हुए कहा "अब आ जाओ। मेरी पत्नी। यह कपड़े उतारो और धीमी धीमi कदम के साथ मेरी बाहों में आ जाओ।"

      बड़े ही मोहक अंदाज में सुप्रिया ने साड़ी का पल्लू सरकाया और धीरे धीरे सारे कपड़े उतार दिया। फिर आहिस्ता आहिस्ता चलकर बिस्तर के पास पहुंची। गंगू ने तुरंत हाथ पकड़ा और खीच लिया अपनी तरफ। सुप्रियांके बदन को घूरने लगा जिसकी वजह से सुप्रिया शर्मा गई। 

"जरा मेरे लिंग की सेवा करो।"

      सुप्रिया ने लिंग हाथ में लिया और मुंह में धीरे धीरे डालने लगी। गंगू ने आंखे बंद करते हुए कहा "सच में तुम पर नजर डालकर अच्छा किया। जल्द ही तुम मेरी हो गई। तुम मेरी हो सुप्रिया। जब से तुम्हे देखा तब से फैसला कर लिया था की तुम्हे मेरी बनाऊंगा। आज के बाद से मुझे किसी से प्यार करनेवाला कोई मिला।"

      गंगू आगे बढ़ा और सुप्रिया के योनि का सेवन किया। योनि पे गंगू का जुबान पड़ते ही सुप्रिया चीख पड़ी। दोनो हाथो से बिस्तर को मुट्ठी में सिकुड़ लिया और आंखे बंद करते हुए बोली "आआआह्हह और तेज और तेज।"

     गंगू ने दोनो हाथो से स्तन को मसलने लगा। फिर उसके बाद योनि में लिंग डालकर धक्का मरने लगा। पूरा बिस्तर हिल रहा था। गंगू ने सुप्रिया के बगल (armpit) जो बहुत ही साफ था उसे चाटने लगा। धक्का इतना तेज था के पलंग के हिलने की आवाज ने कमरे में खलबली मचा दी। काले बदन को दूध जैसे गोरे और मखमली सुंदर शरीर पर गिरा दिया। ठंडी के मौसम में बदन की घिसाई ने गर्मी का माहोल बना दिया। गंगू का तेज रफ्तार सुप्रिया को चरम सुख दिए जा रहा था। गंगू कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था सुप्रिया के साथ सेक्स करने में। दोपहर का माहोल कब अंधेरे में बदल गया पता ही न चला। दोनो थककर एक दूसरे की बाहों में सोए हुए थे। शाम के पांच बजे और देखा की अंधेरा हो गया। अनिल भी उठ गया। दोनो प्रेमी अनिल की निगाहों से बचकर बाहर आए। 

"गंगू मुझे अब चलना होगा।" सुप्रिया जाने ही वाली थी की गंगू ने हाथ पकड़ते हुए कहा "अभी नही। आज रात नही जाने दूंगा। आज रात मेरे साथ बिताओ।"

"लेकिन।"

"अब तुम यहां से तब तक नहीं जाओगी जब तक तुम्हारा प्रेमी सरजू वापिस न आ जाए।"

"क्या मतलब ?" सुप्रिया ने थोड़े हैरानी से पूछा। 

"मेरा मतलब साफ साफ है कि तुम उसे प्यार करती हो। मेरे साथ भी ये सब कर रही हो। मुझे भी ऐसा ही प्यार करती हो तुम। झूट मत बोलो। मुझे कोई ऐतराज नहीं। तुम हम दोनो को प्यार करो।"

सुप्रिया गले लगते हुए बोली "तुम बहुत अच्छे हो।"

"लेकिन मेरी एक शर्त है।"

"कैसी शर्त ?"

"तुम हमेशा उसके पास रहो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन तुम्हे आज मुझे शादी करनी होगी।"

"में वादा करती हूं। मेरी शादी तुमसे ही होगी लेकिन उसमे मेरा सरजू भी शामिल होगा।"

"शादी के बाद तुम उसके साथ जरूर रह सकती हो। अब बस हम दोनो को भरपूर प्यार देने की जिम्मेदारी तुम्हारी।"

"I love you" यह कहकर दोनो एक दूसरे से लिपट गए। 

"अब जल्दी से खाना बनाओ और अपनी ब्रा पेंटी मेरे हवाले करो। जल्दी मेरे पास आओ।" गंगू ने कहा। 

"आ जाऊंगी। तब तक इन दोनो से काम चलाओ।"

       गंगू बहुत खुश था। आखिर उसने पूरी तरह से सुप्रिया को हासिल कर लिया। सुप्रिया ने अनिल को खाना खिलाया और फिर पूरी रात गंगू के साथ बिताया।
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RE: कैसे कैसे रिश्ते। - by Basic - 11-06-2023, 11:43 AM



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