07-04-2023, 10:15 AM
कॉलेज में वार्षिक उत्सव का आरंभ हुआ। सभी बच्चे सांकृतिक गीत एवं नृत्य का प्रदर्शन कर रहे थे। सभी बच्चे बहुत प्यारे लग रहे थे। बच्चो के साथ साथ लोगो की नजर सुप्रिया पर भी थी। लाल साड़ी में सुप्रिया जैसे अप्सरा लग रही थी। सभी औरतें तो जैसे उसे मन ही मन अंग्रेज कह रहे थे। आपस में एक दूसरे से बात कर रही औरतें तो जैसे सुप्रिया के बारे में ही बात कर रहे थे। तारीफ के तो जैसे पूल बंध दिए थे।
वार्षिक उत्सव पूरा होने के बाद सभी मां बाप टीचर्स से बात कर रहे थे। सुप्रिया से मिलने एक अधेड़ उमर का आदमी आया। उसकी उमर 65 साल और बाजार में छोटी सी साड़ी को दुकान चलाता है। उसका नाम गंगू था।
"नमस्ते मैडम।" गंगू ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया।
सुप्रिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा "नमस्ते कैसे है आप ?"
"जी मैं ठीक हूं। मेरा नाम गंगू है और मै साड़ी की चोटी सी दुकान चलाता हूं। मेरा पोता पहली कक्षा में आप ही के क्लास में पढ़ता हैं। उसका नाम अरविंद है।"
"अरे हां अरविंद। बहुत ही होशियार और अच्छा बच्चा हैं। पढ़ाई में बहुत मन लगा रहता है।"
"उसी के वजह से आपसे मिलने आया। पूरे दिन आपको बात करता है।"
"उसके मां बाप नही आए ?"
"नही। दरअसल उसके मां बाप दो साल पहले हादसे में गुजर गए। उसकी अकेले देखभाल मैं हो करता हूं।"
"मुझे माफ करिए। मुझे पता नही था।"
"कोई बात नही। होनी को कौन टाल सकता है।"
सुप्रिया को बहुत बूरा लगा और बोली "अरविंद की चिंता मत करिए। उसके लिए मैं हूं।"
"आप है इसीलिए चिंता नहीं। आप सरजू के साथ रहती है ना ?"
"हां लेकिन आप ये बताइए आप तो दुकान में रहते है तो अरविंद का खयाल कौन रखता है ?"
"जी मेरे घर के आगे ही दुकान है। दुकान के पीछे एक कमरा और रसोई है। उसी में हम दोनो रहते है।"
"आपका दुकान कहा है ?"
"जी बाजार के कोने नदी के पास।"
"कभी जरूरत हो तो जरूर साड़ी देंगे न आप कम दाम में ?" सुप्रिया ने मजाक करते हुए पूछा।
"अरे मैडम आप अरविंद की मैडम मतलब मेरी भी। आपको मुफ्त में दे देंगे।"
सुप्रिया हस्ते हुए बोली "कोई जरूरत नहीं इसकी और हां मेरा नाम मैडम नही सुप्रिया है।" सुप्रिया मुस्कुराते हुए बोली।
"अच्छा तो बताइए कब भेंट होगी ?"
"बहुत जल्द।"
फिर दोपहर के 2 बज गए। देर हो गई और सुप्रिया भी जल्द से जल्द घर पहुंची। जल्दी से रसोईघर गई और रोटी बनाकर सरजू को खिलाया।
"आज देर हो गई आने में।"
सरजू रोटी खाते हुए बोला "देर भले आई लेकिन हाथ मुंह धो लेती नहाने कितनी थकान लगी होगी। मेरा खाना हो गया। अब तुम भी खा लो।"
"आज भूख नहीं है। एक काम करो तुम भी सो जाओ और मैं भी सो जाती हूं। 2 हफ्ते तक ट्यूशन भी बंद रहेगा। मैं चली सोने और हां आज थकान बहुत लगी है। कुछ काम हो तो बताना।"
"तुम चाहो तो छत के कमरे में सो जाओ। छत पे हवा आ रही हैं।"
"तुम सही कह रहे हो।"
सुप्रिया छत के कमरे में गई। कमरा बहुत छोटा था और सिर्फ एक खटिया ही था। सुप्रिया ने साड़ी उतार और ब्लाउज पेटीकोट में ही लेट गई। बहती और सन्नाटे ने सुप्रिया को नींद दिलाने में मदद की। सरजू दोपहर अपने कमरे में था। आज मौसम थोड़ा बहुत अच्छा था इसीलिए वो भी अच्छी नींद लिए हुए था। रही बात बिरजू की तो वो शराब के नशे में डूबा हुआ था।
देखा जाए तो सुप्रिया नर्क की जिंदगी से बाहर निकल गई। एक तो पति द्वारा दी गई यातनाएं और जेल के गंदे 5 साल। शाम का वक्त हो गया लेकिन सुप्रिया अब तक गहरी नीद में थी। सरजू भी सोचा कि उसे उठना अभी सही नही होगा इसीलिए उठाया नही। लेकिन फिर शाम भी बीता और रात हुई। रात के 8 बज गए लेकिन अभी भी सुप्रिया का कोई आने जाने का नामु निशान नही। अब सरजू ने सोचा की क्यों न चाय बनाकर उसे उठाया जाए। तुरंत रसोईघर गया और अपने और सुप्रिया के लिए चाय बनाया। सुप्रिया के लिए ऊपर छत गया। अंधेरा हो चुका था। Jeb me माचिस और हाथ में चाय की दो प्याली। कमरे में पड़े लालटेन को जलाया और फिर चाय लेकर अंदर घुसा। ब्लाउज पेटीकोट में पड़ी सुप्रिया को हल्के से नींद से जगाया।
सुप्रिया की नींद खुली और आंखे मीचोलते हुए अंगड़ाई लेकर बोली "इतना अंधेरा। काफी देर तक सोई।"
सुप्रिया को सरजू चाय देते हुए कहा "हां इसीलिए चाय लाया हूं।"
सरजू नीचे बैठ गया।
"अरे सरजू नीचे गंदा है। आप एक काम कारोपर बैठ जाओ। मेरी साड़ी वापिस करना।"
सरजू ने साड़ी वापिस की तो देखा कि साड़ी जमीन पर होने से गंदी हो गई।
"लगता है हम नीचे चलना होगा। चलो आओ नीचे।"
सुप्रिया चाय लेकर नीचे उतरी और सरजू साड़ी लेकर नीचे आया। दोनो आंगन में खटिया पर बैठे थे।
"चाय काफी अच्छी बनी है सरजू।"
"अच्छी लगी तुम्हे ?"
"हां चीनी में सही मिश्रण। नींद उड़ गई। वैसे आज खाने में क्या खाओगे ?"
"आज मन नही है खाना खाने का।"
"क्यों ?"
"सिर में दर्द हो रहा है।"
"इसका मतलब भूखे पेट सो जाओगे ?"
"पता नही दर्द सह नहीं जा रहा है ।"
"एक काम करो मैं तुम्हारा सिर दबा देती हूं। और हां बिना कोई सवाल किए जाओ और पहले तेल लेकर आओ।"
सरजू बिना सवाल किए तेल लेकर आया और दे दिया सुप्रिया को। सुप्रिया ने उसके सिर को अपने गोद में रखा और तेल से सिर दबाने लगी। सरजू को हल्का सा आराम मिलने लगा और आंखे बंद करके लेट गया। तेल का अच्छे से चंपी करके सुप्रिया ने उसके सिर दर्द को जैसे गायब हो कर दिया।
"अब कैसा लग रहा है तुम्हे सरजू ?"
"हम्म्म बहुत अच्छा। अब सिर दर्द गायब हुआ। लेकिन अब हम चलना चाहिए रसोईघर में खाना बनाने के लिए।"
"चलो तो फिर।"
लालटेन की रोशनी में सुप्रिया ने खाना बनाया और दोनो ने साथ में खाना खाया। झूठे बर्तन को आंगन में सुप्रिया साफ करने लगी। वही सरजू भी गहरी नींद में सो गया। सुप्रिया सारा काम करके अपने कमरे में चली गई। अगले दिन छुट्टी का पहला दिन था तो सुप्रिया ने सबसे पहले घर की साफ सफाई करने का फैसला किया। सरजू भी लग गया काम में। गाय को चराना और दूध निकालना। आज घर की सफाई अच्छे से हो रही थी। झाड़ू पोंछा लगाने के बाद सुप्रिया आंगन की भी साफ सफाई की। करीब सुबह के 11 बज चुके थे। आज दोपहर का खाना सरजू ने बनाया। खाने में खिचड़ी था। काम पूरा करके सुप्रिया नहाने वाली थी। सरजू कुआं से पानी लेकर आंगन में रख दिया। जल्दी से नहा धोकर सुप्रिया आंगन में सदी बदलने लगी। नहाने के बाद सरजू के साथ आज जल्दी खाना खा लिया।
दोनो फिर दोपहर को घर के पिछवाड़े बड़े नीम के पेड़ के नीचे खटिया डालकर बैठे थे।
"आज सुप्रिया घर जैसे चमक रहा है। वह अच्छा लग रहा है।"
"लगेगा क्यों नही। आखिर ४ घंटे तक काम किया है।"
"हां थक गई होगी तुम।"
"हम्म कुछ खास नहीं। सुनो वैसे मुझे आज शाम बाजार जाना है साड़ी लेने। तुम्हे कुछ चाहिए ?"
"नही नही। वैसे सुनो कल कही घूमने चले ?"
"कहां ?"
"अरे गांव से थोड़े दुर मेला लगा है। कल शाम चले ?"
"हां बिलकुल। बड़ा मजा आएगा।" सुप्रिया उत्सुकता से बोली।
शाम हो गया। सुप्रिया बाजार जाने के लिए तैयार हुई। शाम 4 बजे वो निकल पड़ी। रास्ते में सोची की बीच में बिरजू का घर पड़ता है। एक बार मिलकर चली जाए। झोपडी के पास आई तो बिरजू सो रहा था। सुप्रिया की आहट से उठ गया और एक ही झटके में बैठ गया।
"अरे सुप्रिया यहां कैसे आना हुआ ?"
"बस हाल चाल पूछने आई थी।"
"हां ठीक हूं। बस अभी थोड़ी देर बाद बाहर जाऊंगा।"
"शराब पीने ?" सुप्रिया ने ताना मारते हुए कहा।
"तुम्हारी समस्या ही यही है सुप्रिया। तुम मुझे शराबी ही समझती हो। क्या लगता है तुम्हे ? मैं कोई दूसरे काम से बाहर नहीं जा सकता ?"
"नही। वैसे बिरजू मैं बाजार जा रही हूं। तुम्हारे लिए कुछ लेकर आऊं?"
"नही।"
"सुनो कल दोपहर घर पर खाना खाने आ जाना।"
"ठीक है।"
सुप्रिया पहुंची बाजार और वहां वो "गंगू साड़ीवाला" नाम के दुकान में गई जो गंगू की थी। दुकान और गंगू का घर सटा हुआ था। वैसे एक कमरा दुकान तो दूसरा गंगू का था। एक छोटा सा रसोई और एक बैठने के लिए कमरा।
उस वक्त गंगू दो ग्राहकों को सामान देकर आराम से बैठा।
"क्या मुझे यहां साड़ी मिलेगी ?" एक प्यारी सी मुस्कान के साथ सुप्रिया बाहर खड़ी थी।
सुप्रिया को देख गंगू मुस्कुराया और बोला "आओ ना सुप्रिया। ये दुकान साड़ी की है और आपकी ही है।"
"सिर्फ मेरी ही दुकान है ?"
"अरे ये दुकान हर ग्राहक की है।"
"तो फिर अगर मेरी है तो आप पैसे लेंगे नही न ?" सुप्रिया ने चिढ़ाते हुए पूछा।
"आप हमारे पोते अरुण की टीचर है आपके लिए मुफ्त।"
"तो फिर चलिए बताइए साड़ी।"
गंगू पीले रंग की एक कढ़ाई वाली साड़ी लेकर आया।
"वह ये तो बहुत खूबसूरत है। और बताइए।"
"बताऊंगा लेकिन पहले ये बताओ की आप चाय लेंगी या दूध ?"
"जी इसकी जरूरत नहीं। आप तकलीफ मत लीजिए।"
"नही आपको कुछ लेना होगा।"
"आप क्यों इतनी तकलीफ ले रहे है ?"
"अरे आप मेरे पोते की टीचर है और पहली बार दुकान में आई है।"
"नही पहले साड़ी दिखाइए।"
"आप देखिए में जल्दी से रसोई से चाय बनाकर लाता हूं।"
"पहले साड़ी दीजिए फिर चाय पीते है।"
"तो चलिए पहले ये काम निपटा देते है।"
सुप्रिया बोली "आप कोई ऐसी साड़ी दीजिए जिसमे ब्लाउज sleveless हो।"
"देखिए इस पूरे गांव में एक ही ऐसी दुकान हैं जिसमे sleveless साड़ी मिलती है और वो मेरी ही दुकान है।"
"अरे वाह तो दिखाइए। लेकिन कौन से रंग की साड़ी सही होगी ?"
"देखिए sleveless ब्लाउज में काला और लाल रंग है। लेकिन मेरी बात मानिए आप काले रंग को चुनिए।"
"और साड़ी लाल रंग की ?"
"वाह बिलकुल सही।"
"तो ये दो पैक कर दीजिए। और रसोई कहा है ?"
"अरे आप तकलीफ न ले मैं चाय बना लूंगा।"
"चुपचाप अपना काम करे। मुझे मेरा काम करने दे।"
मुस्कुराते हुए गंगू बोला "अंदर जाते ही रसोईघर मिल जाएगा।"
सुप्रिया जानेवाली थी कि पीछे से गंगू बोला "आप वो साड़ी पहनकर आइए ताकि पता चले कि फिट है साड़ी का ढीला।"
सुप्रिया गई साड़ी लेकर कमरे में और साड़ी बदला। लाल रंग की साड़ी और काले रंग का sleveless ब्लाउज में जैसे स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। उसी साड़ी में वो रसोईघर पहुंची और चाय बनाया। तब तक गंगू तीन ग्राहकों को साड़ी बेच चुका था। अंदर से गंगू को आवाज आई सुप्रिया के बुलाने की। गंगू भी दुकान का शटर बंद किया और अंदर आ गया घर में।
सुप्रिया को नए साड़ी में जब गंगू ने देखा तो देखता ही रह गया और बोला "तुम्हे चोट तो नही लगी ना ?"
सुप्रिया को कुछ समझ में न आया और हैरानी से पूछी "ये क्या पूछ रहे है आप ?"
"अरे स्वर्ग से आई अप्सरा जब धरती पर गिरेगी तो पूछना पड़ेगा ही न।"
अपनी तारीफ सुनकर जोर से हस्ते हुए सुप्रिया बोली "वाह क्या गजब की तारीफ है। सुनकर तो मजा ही आ गया।"
"चलिए सुप्रिया भीतर चलकर बैठते है।"
दोनो अंदर गए और चाय पीने लगे।
"वैसे गंगू ये sleveless ब्लाउज बहुत अच्छा है। गर्मी के मौसम में काम आएगा। वैसे इसके कपड़े नही आपके पास ?"
"देखिए कपड़े में de doonga lekin ये sleveless ब्लाउज आपको सिलवाना पड़ेगा किसी दर्जी के पास।"
"हो जाएगा। मुझे वो कपड़े भी देना। कौन से रंग के है ?"
"पीला, लाल, हरा और सफेद रंग के भी है।"
"इन चारो रंग के एक एक ब्लाउज दे दो।"
"हां लेकिन आप कॉलेज में भी इसे पहन सकती है। गर्मी के मौसम में कोई परेशानी नहीं होगी।"
"बिलकुल सही कहा आपने। बहुत आराम भी है इसे पहनने में।"
"चलिए मैं आपका सामान पैक करके आता हूं।"
सुप्रिया ने साड़ी change की और वहा सामान लेकर गंगू अंदर आया।
"चलिए गंगुजी मैं चलती हूं। बताइए कितना हुआ ?"
"पैसे मत दीजिए। आपके लिए फ्री।"
"अच्छा ? ज्यादा उधार न रखिए चुपचाप बताइए।"
"बताऊंगा लेकिन एक शर्त पर।"
"कौन सी शर्त ?"
"देखिए आप तो रोज रोज आएंगी नही। फोर मुलाकात कैसे होगी ?"
"ओह तो फिर आप कभी कभी आ जाइए कॉलेज में मिलने और शाम को कभी कभी मैं। यहां आ जाऊंगी।"
"तो फिर ठीक है।"
सुप्रिया गंगू को पैसा देकर घर के लिए निकली। घर पहुंचते ही सरजू को साड़ी दिखाई और ब्लाउज सिलने को कहा। सरजू मान गया। दोनो साथ में खाना खाए और आंगन में एक एक खटिया पे लेटकर बात करने लगे।
"आज तो मौसम जैसे जानलेवा। गर्मी का हाल तो पूछो ही मत।" सुप्रिया ने साड़ी उतरते हुए कहा। ब्लाउज पेटीकोट में लेट गई।
"तुम रात के लिए कोई कपड़ा ले लो। कोई हल्का और आरामदायक।"
"कोई खास जरूरत नही। वैसे साड़ी उतारने के बाद कुछ हवा आती है।"
"रात के वक्त ठीक और दोपहर का क्या ?"
"दोपहर को भी वही। सुनो मेरी पीठ में दर्द आज बहुत हो रहा है। कोई दवाई है ?"
"एक काम करो लेती रही। मैं पीठ दबा देता हूं।"
"हां ये सही है।"
"उल्टा लेट जाओ।"
सरजू सुप्रिया के खटिया पे आया और पीठ दबाने लगा।
"आआह्ह क्या बात है। अब अच्छा लग रहा है।"
सरजू अच्छे से पीठ दबाने लगा और कहा "थोड़ा कम अकड़ा करो। अगर काम न हो पाए तो jabarjasti काम मत करो। आज पूरे दिन जो सफाई की है ना उसका नतीजा है यह पीठ दर्द।"
"पता नही सरजू आज क्यों इतना दर्द कर रहा है। लेकिन एक बात कहूंगी। तुम्हे मसाज करना बड़े अच्छे से आता है।"
"अरे ये तो कुछ भी नही। मुझे और भी बहुत कुछ आता है।"
जचा ? तो बताओ और क्या क्या आता है तुम्हे ?"
"वो वक्त आने पर बताऊंगा। अभी चलो सो जाओ और हां कल बिरजू आनेवाला है ?"
"हां बात तो को मैंने।"
"रहने दो नही आयेगा।"
"क्यों ?"
"आज उसने दो bottle चढ़ा ली। दोपहर तक नशा नहीं उतरेगा।"
"मन करता है उसे अच्छा खासा डांट लगा दूं।"
"कोई फायदा नहीं। वो शराबी सुधरेगा नही।"
"चलो अब सो जाओ। शुक्रिया मेरा दर्द खत्म करने के लिए।"
दोनो आंगन में अपने अपने खटिया पे सो गए। नजाने क्यों सुप्रिया को जानना था की क्यों बिरजू इतना पीता है। अगली सुबह दिन ऐसे ही चलने लगे। अपनी छुट्टी में मस्त सुप्रिया आराम कर रही थी। सरजू ब्लाउज सील रहा था। आखिर कड़ी सालो बाद सुप्रिया को sleveless ब्लाउज में देखेगा। वैसे जब सुप्रिया हवेली में थी तब भी sleveless ब्लाउज की आदत रहती थी उसे। वक्त के गहरे घाव में रहकर जैसे वो कही खो गई थी लेकिन इस गांव में आने के बाद अब वो कुछ निखरकर बाहर आ रही है। सुप्रिया दोपहर अपने कॉलेज का का रही थी। काम पूरा करके खुद के लिए और सरजू दोनो के लिए चाय बनाया।
"सुप्रिया ब्लाउज सील लिया। एक बार पहनकर बताओ।"
"वह दिखने में बहुत अच्छा लग रहा है।"
सुप्रिया साड़ी बदलने गई। सरजू आज शाम मेला जाने की तैयारी कर रहा था। मेला जाने के लिए कपड़े बदला। सुप्रिया जब साड़ी बदलकर उसके सामने आई तो वो तो देखता रह गया। वही सालो पुरानी खूबसूरती वापिस आ गई हो ऐसा लग रहा था। काले रंग का sleveless ब्लाउज लाल साड़ी में अप्सरा बनी सुप्रिया सरजू के सामने खड़ी थी। सरजू तो जैसे देखता हो रह गया।
"कैसी लग रही हूं मैं ?" सुप्रिया ने एक मोहकभरी अदा से कहा।
"बहुत खूबसूरत। कितने दिनों बाद तुम्हे पहले जैसा देखा। शब्द नही है मेरे पास बोलने को।"
"तो फिर चले मेला में ?"
दोनो चल दिए मेला देखने।
वार्षिक उत्सव पूरा होने के बाद सभी मां बाप टीचर्स से बात कर रहे थे। सुप्रिया से मिलने एक अधेड़ उमर का आदमी आया। उसकी उमर 65 साल और बाजार में छोटी सी साड़ी को दुकान चलाता है। उसका नाम गंगू था।
"नमस्ते मैडम।" गंगू ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया।
सुप्रिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा "नमस्ते कैसे है आप ?"
"जी मैं ठीक हूं। मेरा नाम गंगू है और मै साड़ी की चोटी सी दुकान चलाता हूं। मेरा पोता पहली कक्षा में आप ही के क्लास में पढ़ता हैं। उसका नाम अरविंद है।"
"अरे हां अरविंद। बहुत ही होशियार और अच्छा बच्चा हैं। पढ़ाई में बहुत मन लगा रहता है।"
"उसी के वजह से आपसे मिलने आया। पूरे दिन आपको बात करता है।"
"उसके मां बाप नही आए ?"
"नही। दरअसल उसके मां बाप दो साल पहले हादसे में गुजर गए। उसकी अकेले देखभाल मैं हो करता हूं।"
"मुझे माफ करिए। मुझे पता नही था।"
"कोई बात नही। होनी को कौन टाल सकता है।"
सुप्रिया को बहुत बूरा लगा और बोली "अरविंद की चिंता मत करिए। उसके लिए मैं हूं।"
"आप है इसीलिए चिंता नहीं। आप सरजू के साथ रहती है ना ?"
"हां लेकिन आप ये बताइए आप तो दुकान में रहते है तो अरविंद का खयाल कौन रखता है ?"
"जी मेरे घर के आगे ही दुकान है। दुकान के पीछे एक कमरा और रसोई है। उसी में हम दोनो रहते है।"
"आपका दुकान कहा है ?"
"जी बाजार के कोने नदी के पास।"
"कभी जरूरत हो तो जरूर साड़ी देंगे न आप कम दाम में ?" सुप्रिया ने मजाक करते हुए पूछा।
"अरे मैडम आप अरविंद की मैडम मतलब मेरी भी। आपको मुफ्त में दे देंगे।"
सुप्रिया हस्ते हुए बोली "कोई जरूरत नहीं इसकी और हां मेरा नाम मैडम नही सुप्रिया है।" सुप्रिया मुस्कुराते हुए बोली।
"अच्छा तो बताइए कब भेंट होगी ?"
"बहुत जल्द।"
फिर दोपहर के 2 बज गए। देर हो गई और सुप्रिया भी जल्द से जल्द घर पहुंची। जल्दी से रसोईघर गई और रोटी बनाकर सरजू को खिलाया।
"आज देर हो गई आने में।"
सरजू रोटी खाते हुए बोला "देर भले आई लेकिन हाथ मुंह धो लेती नहाने कितनी थकान लगी होगी। मेरा खाना हो गया। अब तुम भी खा लो।"
"आज भूख नहीं है। एक काम करो तुम भी सो जाओ और मैं भी सो जाती हूं। 2 हफ्ते तक ट्यूशन भी बंद रहेगा। मैं चली सोने और हां आज थकान बहुत लगी है। कुछ काम हो तो बताना।"
"तुम चाहो तो छत के कमरे में सो जाओ। छत पे हवा आ रही हैं।"
"तुम सही कह रहे हो।"
सुप्रिया छत के कमरे में गई। कमरा बहुत छोटा था और सिर्फ एक खटिया ही था। सुप्रिया ने साड़ी उतार और ब्लाउज पेटीकोट में ही लेट गई। बहती और सन्नाटे ने सुप्रिया को नींद दिलाने में मदद की। सरजू दोपहर अपने कमरे में था। आज मौसम थोड़ा बहुत अच्छा था इसीलिए वो भी अच्छी नींद लिए हुए था। रही बात बिरजू की तो वो शराब के नशे में डूबा हुआ था।
देखा जाए तो सुप्रिया नर्क की जिंदगी से बाहर निकल गई। एक तो पति द्वारा दी गई यातनाएं और जेल के गंदे 5 साल। शाम का वक्त हो गया लेकिन सुप्रिया अब तक गहरी नीद में थी। सरजू भी सोचा कि उसे उठना अभी सही नही होगा इसीलिए उठाया नही। लेकिन फिर शाम भी बीता और रात हुई। रात के 8 बज गए लेकिन अभी भी सुप्रिया का कोई आने जाने का नामु निशान नही। अब सरजू ने सोचा की क्यों न चाय बनाकर उसे उठाया जाए। तुरंत रसोईघर गया और अपने और सुप्रिया के लिए चाय बनाया। सुप्रिया के लिए ऊपर छत गया। अंधेरा हो चुका था। Jeb me माचिस और हाथ में चाय की दो प्याली। कमरे में पड़े लालटेन को जलाया और फिर चाय लेकर अंदर घुसा। ब्लाउज पेटीकोट में पड़ी सुप्रिया को हल्के से नींद से जगाया।
सुप्रिया की नींद खुली और आंखे मीचोलते हुए अंगड़ाई लेकर बोली "इतना अंधेरा। काफी देर तक सोई।"
सुप्रिया को सरजू चाय देते हुए कहा "हां इसीलिए चाय लाया हूं।"
सरजू नीचे बैठ गया।
"अरे सरजू नीचे गंदा है। आप एक काम कारोपर बैठ जाओ। मेरी साड़ी वापिस करना।"
सरजू ने साड़ी वापिस की तो देखा कि साड़ी जमीन पर होने से गंदी हो गई।
"लगता है हम नीचे चलना होगा। चलो आओ नीचे।"
सुप्रिया चाय लेकर नीचे उतरी और सरजू साड़ी लेकर नीचे आया। दोनो आंगन में खटिया पर बैठे थे।
"चाय काफी अच्छी बनी है सरजू।"
"अच्छी लगी तुम्हे ?"
"हां चीनी में सही मिश्रण। नींद उड़ गई। वैसे आज खाने में क्या खाओगे ?"
"आज मन नही है खाना खाने का।"
"क्यों ?"
"सिर में दर्द हो रहा है।"
"इसका मतलब भूखे पेट सो जाओगे ?"
"पता नही दर्द सह नहीं जा रहा है ।"
"एक काम करो मैं तुम्हारा सिर दबा देती हूं। और हां बिना कोई सवाल किए जाओ और पहले तेल लेकर आओ।"
सरजू बिना सवाल किए तेल लेकर आया और दे दिया सुप्रिया को। सुप्रिया ने उसके सिर को अपने गोद में रखा और तेल से सिर दबाने लगी। सरजू को हल्का सा आराम मिलने लगा और आंखे बंद करके लेट गया। तेल का अच्छे से चंपी करके सुप्रिया ने उसके सिर दर्द को जैसे गायब हो कर दिया।
"अब कैसा लग रहा है तुम्हे सरजू ?"
"हम्म्म बहुत अच्छा। अब सिर दर्द गायब हुआ। लेकिन अब हम चलना चाहिए रसोईघर में खाना बनाने के लिए।"
"चलो तो फिर।"
लालटेन की रोशनी में सुप्रिया ने खाना बनाया और दोनो ने साथ में खाना खाया। झूठे बर्तन को आंगन में सुप्रिया साफ करने लगी। वही सरजू भी गहरी नींद में सो गया। सुप्रिया सारा काम करके अपने कमरे में चली गई। अगले दिन छुट्टी का पहला दिन था तो सुप्रिया ने सबसे पहले घर की साफ सफाई करने का फैसला किया। सरजू भी लग गया काम में। गाय को चराना और दूध निकालना। आज घर की सफाई अच्छे से हो रही थी। झाड़ू पोंछा लगाने के बाद सुप्रिया आंगन की भी साफ सफाई की। करीब सुबह के 11 बज चुके थे। आज दोपहर का खाना सरजू ने बनाया। खाने में खिचड़ी था। काम पूरा करके सुप्रिया नहाने वाली थी। सरजू कुआं से पानी लेकर आंगन में रख दिया। जल्दी से नहा धोकर सुप्रिया आंगन में सदी बदलने लगी। नहाने के बाद सरजू के साथ आज जल्दी खाना खा लिया।
दोनो फिर दोपहर को घर के पिछवाड़े बड़े नीम के पेड़ के नीचे खटिया डालकर बैठे थे।
"आज सुप्रिया घर जैसे चमक रहा है। वह अच्छा लग रहा है।"
"लगेगा क्यों नही। आखिर ४ घंटे तक काम किया है।"
"हां थक गई होगी तुम।"
"हम्म कुछ खास नहीं। सुनो वैसे मुझे आज शाम बाजार जाना है साड़ी लेने। तुम्हे कुछ चाहिए ?"
"नही नही। वैसे सुनो कल कही घूमने चले ?"
"कहां ?"
"अरे गांव से थोड़े दुर मेला लगा है। कल शाम चले ?"
"हां बिलकुल। बड़ा मजा आएगा।" सुप्रिया उत्सुकता से बोली।
शाम हो गया। सुप्रिया बाजार जाने के लिए तैयार हुई। शाम 4 बजे वो निकल पड़ी। रास्ते में सोची की बीच में बिरजू का घर पड़ता है। एक बार मिलकर चली जाए। झोपडी के पास आई तो बिरजू सो रहा था। सुप्रिया की आहट से उठ गया और एक ही झटके में बैठ गया।
"अरे सुप्रिया यहां कैसे आना हुआ ?"
"बस हाल चाल पूछने आई थी।"
"हां ठीक हूं। बस अभी थोड़ी देर बाद बाहर जाऊंगा।"
"शराब पीने ?" सुप्रिया ने ताना मारते हुए कहा।
"तुम्हारी समस्या ही यही है सुप्रिया। तुम मुझे शराबी ही समझती हो। क्या लगता है तुम्हे ? मैं कोई दूसरे काम से बाहर नहीं जा सकता ?"
"नही। वैसे बिरजू मैं बाजार जा रही हूं। तुम्हारे लिए कुछ लेकर आऊं?"
"नही।"
"सुनो कल दोपहर घर पर खाना खाने आ जाना।"
"ठीक है।"
सुप्रिया पहुंची बाजार और वहां वो "गंगू साड़ीवाला" नाम के दुकान में गई जो गंगू की थी। दुकान और गंगू का घर सटा हुआ था। वैसे एक कमरा दुकान तो दूसरा गंगू का था। एक छोटा सा रसोई और एक बैठने के लिए कमरा।
उस वक्त गंगू दो ग्राहकों को सामान देकर आराम से बैठा।
"क्या मुझे यहां साड़ी मिलेगी ?" एक प्यारी सी मुस्कान के साथ सुप्रिया बाहर खड़ी थी।
सुप्रिया को देख गंगू मुस्कुराया और बोला "आओ ना सुप्रिया। ये दुकान साड़ी की है और आपकी ही है।"
"सिर्फ मेरी ही दुकान है ?"
"अरे ये दुकान हर ग्राहक की है।"
"तो फिर अगर मेरी है तो आप पैसे लेंगे नही न ?" सुप्रिया ने चिढ़ाते हुए पूछा।
"आप हमारे पोते अरुण की टीचर है आपके लिए मुफ्त।"
"तो फिर चलिए बताइए साड़ी।"
गंगू पीले रंग की एक कढ़ाई वाली साड़ी लेकर आया।
"वह ये तो बहुत खूबसूरत है। और बताइए।"
"बताऊंगा लेकिन पहले ये बताओ की आप चाय लेंगी या दूध ?"
"जी इसकी जरूरत नहीं। आप तकलीफ मत लीजिए।"
"नही आपको कुछ लेना होगा।"
"आप क्यों इतनी तकलीफ ले रहे है ?"
"अरे आप मेरे पोते की टीचर है और पहली बार दुकान में आई है।"
"नही पहले साड़ी दिखाइए।"
"आप देखिए में जल्दी से रसोई से चाय बनाकर लाता हूं।"
"पहले साड़ी दीजिए फिर चाय पीते है।"
"तो चलिए पहले ये काम निपटा देते है।"
सुप्रिया बोली "आप कोई ऐसी साड़ी दीजिए जिसमे ब्लाउज sleveless हो।"
"देखिए इस पूरे गांव में एक ही ऐसी दुकान हैं जिसमे sleveless साड़ी मिलती है और वो मेरी ही दुकान है।"
"अरे वाह तो दिखाइए। लेकिन कौन से रंग की साड़ी सही होगी ?"
"देखिए sleveless ब्लाउज में काला और लाल रंग है। लेकिन मेरी बात मानिए आप काले रंग को चुनिए।"
"और साड़ी लाल रंग की ?"
"वाह बिलकुल सही।"
"तो ये दो पैक कर दीजिए। और रसोई कहा है ?"
"अरे आप तकलीफ न ले मैं चाय बना लूंगा।"
"चुपचाप अपना काम करे। मुझे मेरा काम करने दे।"
मुस्कुराते हुए गंगू बोला "अंदर जाते ही रसोईघर मिल जाएगा।"
सुप्रिया जानेवाली थी कि पीछे से गंगू बोला "आप वो साड़ी पहनकर आइए ताकि पता चले कि फिट है साड़ी का ढीला।"
सुप्रिया गई साड़ी लेकर कमरे में और साड़ी बदला। लाल रंग की साड़ी और काले रंग का sleveless ब्लाउज में जैसे स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। उसी साड़ी में वो रसोईघर पहुंची और चाय बनाया। तब तक गंगू तीन ग्राहकों को साड़ी बेच चुका था। अंदर से गंगू को आवाज आई सुप्रिया के बुलाने की। गंगू भी दुकान का शटर बंद किया और अंदर आ गया घर में।
सुप्रिया को नए साड़ी में जब गंगू ने देखा तो देखता ही रह गया और बोला "तुम्हे चोट तो नही लगी ना ?"
सुप्रिया को कुछ समझ में न आया और हैरानी से पूछी "ये क्या पूछ रहे है आप ?"
"अरे स्वर्ग से आई अप्सरा जब धरती पर गिरेगी तो पूछना पड़ेगा ही न।"
अपनी तारीफ सुनकर जोर से हस्ते हुए सुप्रिया बोली "वाह क्या गजब की तारीफ है। सुनकर तो मजा ही आ गया।"
"चलिए सुप्रिया भीतर चलकर बैठते है।"
दोनो अंदर गए और चाय पीने लगे।
"वैसे गंगू ये sleveless ब्लाउज बहुत अच्छा है। गर्मी के मौसम में काम आएगा। वैसे इसके कपड़े नही आपके पास ?"
"देखिए कपड़े में de doonga lekin ये sleveless ब्लाउज आपको सिलवाना पड़ेगा किसी दर्जी के पास।"
"हो जाएगा। मुझे वो कपड़े भी देना। कौन से रंग के है ?"
"पीला, लाल, हरा और सफेद रंग के भी है।"
"इन चारो रंग के एक एक ब्लाउज दे दो।"
"हां लेकिन आप कॉलेज में भी इसे पहन सकती है। गर्मी के मौसम में कोई परेशानी नहीं होगी।"
"बिलकुल सही कहा आपने। बहुत आराम भी है इसे पहनने में।"
"चलिए मैं आपका सामान पैक करके आता हूं।"
सुप्रिया ने साड़ी change की और वहा सामान लेकर गंगू अंदर आया।
"चलिए गंगुजी मैं चलती हूं। बताइए कितना हुआ ?"
"पैसे मत दीजिए। आपके लिए फ्री।"
"अच्छा ? ज्यादा उधार न रखिए चुपचाप बताइए।"
"बताऊंगा लेकिन एक शर्त पर।"
"कौन सी शर्त ?"
"देखिए आप तो रोज रोज आएंगी नही। फोर मुलाकात कैसे होगी ?"
"ओह तो फिर आप कभी कभी आ जाइए कॉलेज में मिलने और शाम को कभी कभी मैं। यहां आ जाऊंगी।"
"तो फिर ठीक है।"
सुप्रिया गंगू को पैसा देकर घर के लिए निकली। घर पहुंचते ही सरजू को साड़ी दिखाई और ब्लाउज सिलने को कहा। सरजू मान गया। दोनो साथ में खाना खाए और आंगन में एक एक खटिया पे लेटकर बात करने लगे।
"आज तो मौसम जैसे जानलेवा। गर्मी का हाल तो पूछो ही मत।" सुप्रिया ने साड़ी उतरते हुए कहा। ब्लाउज पेटीकोट में लेट गई।
"तुम रात के लिए कोई कपड़ा ले लो। कोई हल्का और आरामदायक।"
"कोई खास जरूरत नही। वैसे साड़ी उतारने के बाद कुछ हवा आती है।"
"रात के वक्त ठीक और दोपहर का क्या ?"
"दोपहर को भी वही। सुनो मेरी पीठ में दर्द आज बहुत हो रहा है। कोई दवाई है ?"
"एक काम करो लेती रही। मैं पीठ दबा देता हूं।"
"हां ये सही है।"
"उल्टा लेट जाओ।"
सरजू सुप्रिया के खटिया पे आया और पीठ दबाने लगा।
"आआह्ह क्या बात है। अब अच्छा लग रहा है।"
सरजू अच्छे से पीठ दबाने लगा और कहा "थोड़ा कम अकड़ा करो। अगर काम न हो पाए तो jabarjasti काम मत करो। आज पूरे दिन जो सफाई की है ना उसका नतीजा है यह पीठ दर्द।"
"पता नही सरजू आज क्यों इतना दर्द कर रहा है। लेकिन एक बात कहूंगी। तुम्हे मसाज करना बड़े अच्छे से आता है।"
"अरे ये तो कुछ भी नही। मुझे और भी बहुत कुछ आता है।"
जचा ? तो बताओ और क्या क्या आता है तुम्हे ?"
"वो वक्त आने पर बताऊंगा। अभी चलो सो जाओ और हां कल बिरजू आनेवाला है ?"
"हां बात तो को मैंने।"
"रहने दो नही आयेगा।"
"क्यों ?"
"आज उसने दो bottle चढ़ा ली। दोपहर तक नशा नहीं उतरेगा।"
"मन करता है उसे अच्छा खासा डांट लगा दूं।"
"कोई फायदा नहीं। वो शराबी सुधरेगा नही।"
"चलो अब सो जाओ। शुक्रिया मेरा दर्द खत्म करने के लिए।"
दोनो आंगन में अपने अपने खटिया पे सो गए। नजाने क्यों सुप्रिया को जानना था की क्यों बिरजू इतना पीता है। अगली सुबह दिन ऐसे ही चलने लगे। अपनी छुट्टी में मस्त सुप्रिया आराम कर रही थी। सरजू ब्लाउज सील रहा था। आखिर कड़ी सालो बाद सुप्रिया को sleveless ब्लाउज में देखेगा। वैसे जब सुप्रिया हवेली में थी तब भी sleveless ब्लाउज की आदत रहती थी उसे। वक्त के गहरे घाव में रहकर जैसे वो कही खो गई थी लेकिन इस गांव में आने के बाद अब वो कुछ निखरकर बाहर आ रही है। सुप्रिया दोपहर अपने कॉलेज का का रही थी। काम पूरा करके खुद के लिए और सरजू दोनो के लिए चाय बनाया।
"सुप्रिया ब्लाउज सील लिया। एक बार पहनकर बताओ।"
"वह दिखने में बहुत अच्छा लग रहा है।"
सुप्रिया साड़ी बदलने गई। सरजू आज शाम मेला जाने की तैयारी कर रहा था। मेला जाने के लिए कपड़े बदला। सुप्रिया जब साड़ी बदलकर उसके सामने आई तो वो तो देखता रह गया। वही सालो पुरानी खूबसूरती वापिस आ गई हो ऐसा लग रहा था। काले रंग का sleveless ब्लाउज लाल साड़ी में अप्सरा बनी सुप्रिया सरजू के सामने खड़ी थी। सरजू तो जैसे देखता हो रह गया।
"कैसी लग रही हूं मैं ?" सुप्रिया ने एक मोहकभरी अदा से कहा।
"बहुत खूबसूरत। कितने दिनों बाद तुम्हे पहले जैसा देखा। शब्द नही है मेरे पास बोलने को।"
"तो फिर चले मेला में ?"
दोनो चल दिए मेला देखने।