12-03-2023, 11:29 AM
वक्त के साथ साथ ज़ख्म भी ठीक हो जाते है और तीनो की जिंदगी में खुशियों ने भी धीरे धीरे दस्तक दी। तीनों अपने जिंदगी में अच्छे से चल रहे थे। लेकिन किसी को क्या पता था की राजिया का बीता हुआ कल उसके सामने आएगा। एक ऐसा कल जो उसके साथ घाट चुकी थी लेकिन उसके बारे में राजिया को कुछ भी पता नही।
अलीगढ़ के एक आलीशान हवेली में जहां दरवाजे के बाहर करीब 5 मजबूत चौकीदार थे और उस हवेली का मालिक ज़िया उल रहमान हवेली के कमरे में तैयार हो रहा था। करीब 500 करोड़ की संप्पति रखनेवाला पूरे उत्तर प्रदेश में अपनी मजबूत प्रतिष्ठा रखता था। सऊदी अरब और लंदन में अपना बिजनेस चलता था। लंदन में आलीशान होटल का बिजनेस और सऊदी अरब में एक तेल की कंपनी में पैसे डालकर आगे बढ़ा। इसके अलावा पूरे उत्तर प्रदेश में करीब टॉप 10 अमीरों में उसका नाम था। ज़िया उल रहमान के 2 बेटे थे। एक रफीक और दूसरा करीम। रफीक 35 तो करीम 30 का। दोनो बेटे नालायक। दोनो ने शादी नही की और पूरे दिन आवारा गर्दी और गंदे गंदे काम करते। कोठे में दिन निकलते और चरस गांजा में दिन गुजारते। 60साल का ज़िया उल रहमान को अपने विरासत की चिंता सताने लगी। उसकी बेगम चार साल पहले मर गई।
अपने बड़े काफिले के साथ वो मेरठ पहुंचा बेनजीर से मिलने। भला बेनजीर के साथ उसका क्या ताल्लुख था ? इस बात को जानने के लिए हम चलना होगा 28 साल पहले यानी साल 1963। उस वक्त बेनजीर पूरे शहर की मशहूर तवायत थी जिसका दीदार करने बड़े बड़े लोग ही आते थे। उन में से ज़िया उल रहमान भी था। उन दिनों उसका नाच देखते देखते ज़िया उल रहमान उसका दीवाना हो गया। दोनो में मुलाकाते होने लगी और मुलाकात मोहोब्बत में तब्दील हो गया। बाद में पता चला की बेनजीर उसके बच्चे की मां बननेवाली है। ज़िया को समाज का डर सताने लगा और उसने दबाव डाला बच्चा गिराने का पर बेनजीर नही मानी। बेनज़ीर ने उससे मिलने से मना कर दिया। वॉट बीतता गया और ज़िया उल रहमान को चिंता सताने लगी बेनजीर की। बेनज़ीर से प्यार भी करता था। वो हर महीने पैसे भेजता है। लेकिन बेनजीर से मिलने की हिम्मत नही जूटा पाता। लेकिन आज अपने नालायक बच्चो को देख उसने समाज का डर छोड़ दिया और मिलने चला गया बेनजीर से और अपनी बेटी को लेने के इरादे से।
बेनज़ीर से जब ज़िया उल रहमान मिला उसी के घर। बेनज़ीर ने काफिले को देखा तो कुछ नही कहा। घर के अंदर चली और तो और ज़िया की तरफ देखा भी नहीं।
"कैसी हो बेनजीर ?"
"आपको उससे क्या ? यहां क्यों आए हो ?" बेनज़ीर ने गुस्से से पूछा।
"मैं जानता हूं आप हमसे खफा है। लेकिन अब न होइए। हम अपनी बेटी को लेने आए है।"
"भाड़ में जाओ। तुम्हारी बेटी ? तुम जैसे नीच और निहायती घटिया इंसान की परछाई भी मेरी बेटी पर नही पड़नी चाहिए। बेशर्मी की सारी हदें आज तुमने पर कर दी। तुम्हारी हिम्मत कैसी हुई इतना सब करने के बावजूद भी हमसे यहां मिलने आए ?"
"देखो बेनजीर तुम जानती नही मैं कैसे हलाद से गुजर रहा हूं। मुझे दिल की बीमारी है। मैं कभी भीनमार सकता हूं।"
"तो मैं और राजिया जीना छोड़ दे ? वैसे भी तुम्हारे बच्चे कब काम आयेंगे। जाओ यहां से गंदी नाली के कीड़े।"
"मेरे बच्चे बहुत नालायक और नापाक इंसान है। मैं उनके नाम की फूटी कौड़ी भी नही रखूंगा। वो लोगो इतने गंदे है की उन पर कई औरतों के बलात्कार के case चल रहे है। उन्हें दो साल पहले ही जायदाद और घर से निकल दिया है।"
"पता है आज तुम्हारी ऐसी हालत क्यों है ? क्योंकि तुमने कई लोगो की बद्दुआ ली हुई है और खास करके मेरी। आज अच्छा लग रहा है तुम्हे तड़पता देख। निकल जाओ इससे पहले चाकू से तुम्हारी हत्या कर दूं। वैसे भी कुत्ते से भी गंदी हालत होगी तुम्हारी। बदजाद की औलाद।"
इतना सुनकर ज़िया उल रहमान फूट फूटकर रोने लगा और हाथ जोड़कर गुहार लगाने लगा। उसे रोता देख बेनजीर का दिल पसीज गया।
"चाहते क्या हो तुम ?"
"अपनी राजिया को बेटी बनाकर समाज के सामने अपनाना चाहता हूं।"
"ये मुश्किल है उसका निकाह हो गायन अब उसे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं। वो तो तुम्हे जानती भी नही।"
"तुमने उसे मेरे बारे में नही बताया ? और उन पैसों का क्या को में तुम्हे हर महीने भेजता हूं ?"
"इन पैसों को में सभी वैश्या पे बाट देती हूं जिनका कोई सहारा नहीं और वो अनाथ भी है। इस गंदे पैसे का अच्छे जगह इस्तमाल होता है। वाई बता भी दूं आपको कि राजिया भी तवायत थी लेकिन आज वो एक सुखी जीवन बिता रही है ।"
"क्या मेरी राजिया भी ? या अल्लाह मैंने क्या किया बेचारी कितने बुरे दौर से गुजरी। कौन है वो फरिश्ता जिसने उसको अपनाया।
बेनज़ीर ने सब कुछ बताया की कैसे राजिया का निकाह रजाक से हुआ। रजाक एक बुड्ढे इंसान से हुआ।
"अपने हमारी बेटी का निकाह एक गलीज और बदसूरत बुड्ढे इंसान से करवाया ?"
"हमने नही। राजिया ने अपनी मर्जी से किया। वो उस आदमी से बेहद प्यार करती है।"
"मैं आज अपनी बेटी से मिलकर रहूंगा। उसके बाद आपको अपने घर ले जाऊंगा।"
"बेटी को ले जाना हो तो ले जाओ। लेकिन मैं आपके साथ नही आऊंगी। आपकी सजा यही है की आप अकेले बिना किसी जीवनसाथी के मरे। और हां दुबारा कभी वापिस नही आना और अपने पैसे अपनी गांड़ में घुसा लेना।" बेनज़ीर ने दरवाजा मुंह पे बंद कर दिया।
ज़िया अपने बड़े काफिले के साथ अजमेर पहुंचा और दो दिन का रास्ता तय करके रजाक के घर गया। रजाक उस वक्त अपने बच्चे को खिला रहा था। राजिया और अब्दुल दोनो काम कर रहे थे। अब्दुल सफाई कर रहा था तो राजिया खाना बना रही थीं। उनके घर के बाहर करीब पांच गाड़ियों को काफिले आई। राजिया को समझ में नहीं आया की ये काफिला इधर क्यों आया।
राजिया ने देखा कि ज़िया उल रहमान उसके घर की तरफ आया और फिर उसके सामने।
"आप कौन है ? कही कोई रास्ता तो नही भूल गए ?" रजाक ने पूछा।
"रास्ता भूल गया था लेकिन आज सही मंजिल पहुंचा।"
"आप किस लिए यहां आए है ?" अब्दुल ने पूछा।
"बड़े अजीब आदमी हो मियां घर आए इंसान को अंदर आने को नही कहा।
तीनों थोड़े घबराए हुए थे। ज़िया उल रहमान का रौब ऐसा था। अंदर आकर ज़िया बैठ गया और राजिया के करीब आया और कहा "मेरी राजिया। मेरी बेटी तू दिखाने में बिलकुल अपनी मां पे गई है।" इतना कहकर राजियांको अपने सीने से लगा लिया।
राजिया आखिर ठहरी तो नरम दिल की। बाप को आज पहली बार मिला नाजाने क्यों इसके सीने से लग कर अंतर आत्म ने उसे माफ कर देने को कह।
"क्या हम इतने बुरे है कि आप हमसे मिलने तक नही आए ?" राजिया ने रोते हुए पूछा।
ज़िया ने माफी मांगी और अपने बुरे दौर से गुजर रहे जीवन की बात कही। बेटे नालायक और अपराधी। बीवी मार गई और अब विरासत को चलनेवाला कोई नही। आखिर अब वो राजिया को अपने साथ ले जाकर रहेगा।
"तुम्हारी अम्मी मेरे साथ नही आना चाहती।"
"मत कोशिश करो अब्बू अम्मी एक स्वाभिमान औरत है। अब आपसे कभी नही मिलेगी।"
ज़िया रजाक को देखता रहा और राजिया के बेटे यूसुफ को सीने से लगाते हुए कहा "रजाक अब वक्त आ गया है तुम्हारा और अब्दुल का हमारे साथ चलने का। रजाक अभी इसी वक्त अपना सामान बांधो ओर चलो।"
ज़िया के जोर देने पर सभी लोग उसके साथ चल दिए। ज़िया अब अपने जिंदगी का आखिरी वक्त परिवार के साथ बिताना चाहता था। और सब अच्छा भी होने लगा। रजाक को अपनाकर अलीगढ़ का सारा कारोबार सौप दिया ज़िया उल रहमान ने। रही बात अब्दुल की तो उसे अपने आदमियों के साथ लंदन भेज दिया होटल बिजनेस सभलने के लिए। अब्दुल को न चाहते हुए भी जाना पड़ा। अब्दुल अकेला सा पड़ गया। राजिया के लिए ये थोड़ा दुख का लम्हा था। अब्दुल के साथ ज़िया का खास आदमी तौफीक था। तौफीक जिसकी उम्र 65 साल की थी।
वक्त बीतने लगा और साल आया 1992 का जब राजिया ने दूसरे बच्चे को जन्म दिया और वो लड़की हुई। दो साल में राजिया दो बच्चो की मां बनी। अब्दुल एक साल से राजिया से दूर रहा। लेकिन अब बहुत जल्द अब्दुल के जिंदगी में एक औरत आएगी को उसकी जिंदगी बदल देगी।
अलीगढ़ के एक आलीशान हवेली में जहां दरवाजे के बाहर करीब 5 मजबूत चौकीदार थे और उस हवेली का मालिक ज़िया उल रहमान हवेली के कमरे में तैयार हो रहा था। करीब 500 करोड़ की संप्पति रखनेवाला पूरे उत्तर प्रदेश में अपनी मजबूत प्रतिष्ठा रखता था। सऊदी अरब और लंदन में अपना बिजनेस चलता था। लंदन में आलीशान होटल का बिजनेस और सऊदी अरब में एक तेल की कंपनी में पैसे डालकर आगे बढ़ा। इसके अलावा पूरे उत्तर प्रदेश में करीब टॉप 10 अमीरों में उसका नाम था। ज़िया उल रहमान के 2 बेटे थे। एक रफीक और दूसरा करीम। रफीक 35 तो करीम 30 का। दोनो बेटे नालायक। दोनो ने शादी नही की और पूरे दिन आवारा गर्दी और गंदे गंदे काम करते। कोठे में दिन निकलते और चरस गांजा में दिन गुजारते। 60साल का ज़िया उल रहमान को अपने विरासत की चिंता सताने लगी। उसकी बेगम चार साल पहले मर गई।
अपने बड़े काफिले के साथ वो मेरठ पहुंचा बेनजीर से मिलने। भला बेनजीर के साथ उसका क्या ताल्लुख था ? इस बात को जानने के लिए हम चलना होगा 28 साल पहले यानी साल 1963। उस वक्त बेनजीर पूरे शहर की मशहूर तवायत थी जिसका दीदार करने बड़े बड़े लोग ही आते थे। उन में से ज़िया उल रहमान भी था। उन दिनों उसका नाच देखते देखते ज़िया उल रहमान उसका दीवाना हो गया। दोनो में मुलाकाते होने लगी और मुलाकात मोहोब्बत में तब्दील हो गया। बाद में पता चला की बेनजीर उसके बच्चे की मां बननेवाली है। ज़िया को समाज का डर सताने लगा और उसने दबाव डाला बच्चा गिराने का पर बेनजीर नही मानी। बेनज़ीर ने उससे मिलने से मना कर दिया। वॉट बीतता गया और ज़िया उल रहमान को चिंता सताने लगी बेनजीर की। बेनज़ीर से प्यार भी करता था। वो हर महीने पैसे भेजता है। लेकिन बेनजीर से मिलने की हिम्मत नही जूटा पाता। लेकिन आज अपने नालायक बच्चो को देख उसने समाज का डर छोड़ दिया और मिलने चला गया बेनजीर से और अपनी बेटी को लेने के इरादे से।
बेनज़ीर से जब ज़िया उल रहमान मिला उसी के घर। बेनज़ीर ने काफिले को देखा तो कुछ नही कहा। घर के अंदर चली और तो और ज़िया की तरफ देखा भी नहीं।
"कैसी हो बेनजीर ?"
"आपको उससे क्या ? यहां क्यों आए हो ?" बेनज़ीर ने गुस्से से पूछा।
"मैं जानता हूं आप हमसे खफा है। लेकिन अब न होइए। हम अपनी बेटी को लेने आए है।"
"भाड़ में जाओ। तुम्हारी बेटी ? तुम जैसे नीच और निहायती घटिया इंसान की परछाई भी मेरी बेटी पर नही पड़नी चाहिए। बेशर्मी की सारी हदें आज तुमने पर कर दी। तुम्हारी हिम्मत कैसी हुई इतना सब करने के बावजूद भी हमसे यहां मिलने आए ?"
"देखो बेनजीर तुम जानती नही मैं कैसे हलाद से गुजर रहा हूं। मुझे दिल की बीमारी है। मैं कभी भीनमार सकता हूं।"
"तो मैं और राजिया जीना छोड़ दे ? वैसे भी तुम्हारे बच्चे कब काम आयेंगे। जाओ यहां से गंदी नाली के कीड़े।"
"मेरे बच्चे बहुत नालायक और नापाक इंसान है। मैं उनके नाम की फूटी कौड़ी भी नही रखूंगा। वो लोगो इतने गंदे है की उन पर कई औरतों के बलात्कार के case चल रहे है। उन्हें दो साल पहले ही जायदाद और घर से निकल दिया है।"
"पता है आज तुम्हारी ऐसी हालत क्यों है ? क्योंकि तुमने कई लोगो की बद्दुआ ली हुई है और खास करके मेरी। आज अच्छा लग रहा है तुम्हे तड़पता देख। निकल जाओ इससे पहले चाकू से तुम्हारी हत्या कर दूं। वैसे भी कुत्ते से भी गंदी हालत होगी तुम्हारी। बदजाद की औलाद।"
इतना सुनकर ज़िया उल रहमान फूट फूटकर रोने लगा और हाथ जोड़कर गुहार लगाने लगा। उसे रोता देख बेनजीर का दिल पसीज गया।
"चाहते क्या हो तुम ?"
"अपनी राजिया को बेटी बनाकर समाज के सामने अपनाना चाहता हूं।"
"ये मुश्किल है उसका निकाह हो गायन अब उसे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं। वो तो तुम्हे जानती भी नही।"
"तुमने उसे मेरे बारे में नही बताया ? और उन पैसों का क्या को में तुम्हे हर महीने भेजता हूं ?"
"इन पैसों को में सभी वैश्या पे बाट देती हूं जिनका कोई सहारा नहीं और वो अनाथ भी है। इस गंदे पैसे का अच्छे जगह इस्तमाल होता है। वाई बता भी दूं आपको कि राजिया भी तवायत थी लेकिन आज वो एक सुखी जीवन बिता रही है ।"
"क्या मेरी राजिया भी ? या अल्लाह मैंने क्या किया बेचारी कितने बुरे दौर से गुजरी। कौन है वो फरिश्ता जिसने उसको अपनाया।
बेनज़ीर ने सब कुछ बताया की कैसे राजिया का निकाह रजाक से हुआ। रजाक एक बुड्ढे इंसान से हुआ।
"अपने हमारी बेटी का निकाह एक गलीज और बदसूरत बुड्ढे इंसान से करवाया ?"
"हमने नही। राजिया ने अपनी मर्जी से किया। वो उस आदमी से बेहद प्यार करती है।"
"मैं आज अपनी बेटी से मिलकर रहूंगा। उसके बाद आपको अपने घर ले जाऊंगा।"
"बेटी को ले जाना हो तो ले जाओ। लेकिन मैं आपके साथ नही आऊंगी। आपकी सजा यही है की आप अकेले बिना किसी जीवनसाथी के मरे। और हां दुबारा कभी वापिस नही आना और अपने पैसे अपनी गांड़ में घुसा लेना।" बेनज़ीर ने दरवाजा मुंह पे बंद कर दिया।
ज़िया अपने बड़े काफिले के साथ अजमेर पहुंचा और दो दिन का रास्ता तय करके रजाक के घर गया। रजाक उस वक्त अपने बच्चे को खिला रहा था। राजिया और अब्दुल दोनो काम कर रहे थे। अब्दुल सफाई कर रहा था तो राजिया खाना बना रही थीं। उनके घर के बाहर करीब पांच गाड़ियों को काफिले आई। राजिया को समझ में नहीं आया की ये काफिला इधर क्यों आया।
राजिया ने देखा कि ज़िया उल रहमान उसके घर की तरफ आया और फिर उसके सामने।
"आप कौन है ? कही कोई रास्ता तो नही भूल गए ?" रजाक ने पूछा।
"रास्ता भूल गया था लेकिन आज सही मंजिल पहुंचा।"
"आप किस लिए यहां आए है ?" अब्दुल ने पूछा।
"बड़े अजीब आदमी हो मियां घर आए इंसान को अंदर आने को नही कहा।
तीनों थोड़े घबराए हुए थे। ज़िया उल रहमान का रौब ऐसा था। अंदर आकर ज़िया बैठ गया और राजिया के करीब आया और कहा "मेरी राजिया। मेरी बेटी तू दिखाने में बिलकुल अपनी मां पे गई है।" इतना कहकर राजियांको अपने सीने से लगा लिया।
राजिया आखिर ठहरी तो नरम दिल की। बाप को आज पहली बार मिला नाजाने क्यों इसके सीने से लग कर अंतर आत्म ने उसे माफ कर देने को कह।
"क्या हम इतने बुरे है कि आप हमसे मिलने तक नही आए ?" राजिया ने रोते हुए पूछा।
ज़िया ने माफी मांगी और अपने बुरे दौर से गुजर रहे जीवन की बात कही। बेटे नालायक और अपराधी। बीवी मार गई और अब विरासत को चलनेवाला कोई नही। आखिर अब वो राजिया को अपने साथ ले जाकर रहेगा।
"तुम्हारी अम्मी मेरे साथ नही आना चाहती।"
"मत कोशिश करो अब्बू अम्मी एक स्वाभिमान औरत है। अब आपसे कभी नही मिलेगी।"
ज़िया रजाक को देखता रहा और राजिया के बेटे यूसुफ को सीने से लगाते हुए कहा "रजाक अब वक्त आ गया है तुम्हारा और अब्दुल का हमारे साथ चलने का। रजाक अभी इसी वक्त अपना सामान बांधो ओर चलो।"
ज़िया के जोर देने पर सभी लोग उसके साथ चल दिए। ज़िया अब अपने जिंदगी का आखिरी वक्त परिवार के साथ बिताना चाहता था। और सब अच्छा भी होने लगा। रजाक को अपनाकर अलीगढ़ का सारा कारोबार सौप दिया ज़िया उल रहमान ने। रही बात अब्दुल की तो उसे अपने आदमियों के साथ लंदन भेज दिया होटल बिजनेस सभलने के लिए। अब्दुल को न चाहते हुए भी जाना पड़ा। अब्दुल अकेला सा पड़ गया। राजिया के लिए ये थोड़ा दुख का लम्हा था। अब्दुल के साथ ज़िया का खास आदमी तौफीक था। तौफीक जिसकी उम्र 65 साल की थी।
वक्त बीतने लगा और साल आया 1992 का जब राजिया ने दूसरे बच्चे को जन्म दिया और वो लड़की हुई। दो साल में राजिया दो बच्चो की मां बनी। अब्दुल एक साल से राजिया से दूर रहा। लेकिन अब बहुत जल्द अब्दुल के जिंदगी में एक औरत आएगी को उसकी जिंदगी बदल देगी।