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Fantasy छोटी छोटी कहानियां
#7
देखते देखते दोपहर हो गई। बारिश बहुत तेज़ी से शुरू हो गई और ठंडी ने अपनी हद पार कर ली। राजिया और अब्दुल अभी भी बिस्तर पे थे। दोनो को नींद तो उड़ गई लेकिन ज्यादा ठंडी की वजह से रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं हो रहा था। अब्दुल राजिया के बगल लेता हुआ था और कसके उसे पकड़ा हुआ था। 

"कितनी ठंडी है राजिया।"

"सुनो अब्दुल मैं खाना बनाने जा रही हूं। तुम लेट जाओ और हां दवाई लेकर आती हूं।" राजिया उठकर सबसे पहले अब्दुल को दवाई दी और कहा "चुपचाप लेते रहो। मैं खाना बनाकर आती हूं।"

राजिया जानेवाली थी कि अब्दुल ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा "वैसे मेरी नींद बहुत अच्छी रही।"

राजिया समझ गईं और बोली "बदमाश।"

अब्दुल राजिया को अपनी तरफ खींचा और पेट को चूमते हुए कहां "वैसे तुम कहो तो कुछ देर और गर्मी में रहोगी ?"

"कोई जरूरत नहीं। अगर बिस्तर पे रही तो खाना कौन बनाएगा ?"

"चलो जल्दी काम करो और मेरे पास आओ।" अब्दुल ने कहा। 

"हां आ जाऊंगी। कही भाग नही जाऊंगी।"

राजिया रसोई को तरफ जा रही थी। कमरे से बाहर आई तो सामने रजाक का कमरा खुला हुआ था और रजाक लेटा हुआ था। रजाक ने राजिया को देखते कहा "बाहर क्या कर रही हो ? ठंडी लग जाएगी।"

"अरे नही मैं जा रही हूं खाना बनाने।"

"अच्छा। चलो मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं।"

रजाक और राजिया रसोईघर में पहुंचे। ठंडी की वजह से रसोईघर में रहना मुश्किल हो रहा था। चूल्हे के लिए लकड़ी भी नही थी।

"अब क्या करे ? चूल्हे के लिए लकड़ी भी नही है " राजिया ने हैरान होकर कहा। 

"अरे लकड़ी को बगलवाले कमरे में है। मैं लेकर आता हूं।"

"अरे लेकिन जाओगे कैसे उस घर में ? बारिश बहुत जोर से हो रही है।"

"अरे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। अभी आता हूं।"

कहने को रजाक ने के दिया। लेकिन इस ठंडी और मूसलधार बारिश में जाए तो जाए कैसे ? रजाक दौड़ते हुए गया और बगलवाले छोटे कमरे का ताला खोला। लेकिन इतने में ही उसका आधा बदन भीग चुका था। स्वेटर भी भी भीग चुका था। कैसे करके ताला खोलकर लकड़ियां इक्कठी की और बोरी में भरकर घर की तरफ भागा। घर पहुंचते पहुंचते पूरी तरह से बदन भीग गया था। ठंड से अब शरीर कांप रहा था। राजिया देखी तो हैरान हो गई। 

"अरे आपके सारे कपड़े अभी सूखने को रखे है। अब ये बचा कपड़ा भी गीला हो गया। अब क्या करेंगे ?"

"कुछ नही। सबसे पहले राजिया तुम लकड़ियों को चूल्हे में जलाओ मैं कुछ करता हूं अपने लिए।"

राजिया भी ठंडी से कांप रही थी। आखिर bra ही तो पहना था ऊपर। रजाक के पास सिर्फ एक लूंगी बची थी। जल्दी से अपने गीले कपड़े स्वेटर को उतारा और लूंगी पहन लिया। लूंगी पहनकर कांपते हुए रसोईघर आया। राजिया को रजाक सिर्फ लुंगी में दिखा। ऊपर का शरीर पूरा काला और बुढ़ापे से शरीर लटका हुआ था। चेहरे पर लंबी सफेद दाढ़ी और टोपी। ऊपर पहने के लिए कोई कपड़ा नहीं था। राजिया थोड़ा सा हंस दी। रजाक को अजीब लगा।

"तुम्हे हंसी क्यों आ रही है ? 

"बस आ रही है। पहले मेरे कपड़े गीले हुए। मैं ब्रा में हूं और आप भी ऊपर से बिना कपड़े के।" राजिया ने कहा। 

"हां बात तो सही है। हम दोनो बिना ऊपरवाले कपड़े के। अजीब सा दिन है आज।"

"रसोईघर में भी कितनी ठंडी है।"

"एक काम करो राजिया तुम चूल्हे के पास ताप लो। मैं रसोई को अंदर से बंद कर देता हूं। ताकि ठंडी हवा अंदर न आए।" 
   
     दरवाजा अंदर से बंद करके दोनो साथ में चूल्हे के पास बैठ गए। राजिया ने खिचड़ी चढ़ाई। दोनो आग का ताप ले रहे थे। रजाक राजिया के दूध से गोरे बदन को देख रहा था। राजिया के ऊपरी शरीर देखकर रजाक जैसे मोहित हो गया। बंध रसोईघर का अंधेरा और ऊपर आग की हल्की रोशनी में राजिया का बदन सोने सा चमक रहा था।  लेकिन ठंडी की वजह से कांप भी रहा था। राजिया समझ गई की ठंडी से रजाक की हालत बहुत खराब हो गई है।  राजिया को भी कोई संकोच नहीं दोनो बुड्ढे के साथ रहने में और वो भी बिना कपड़े पे भी। वैसे भी दोनो बुड्ढे सज्जन भी थे। 

"आप ठंडी से बदहाल महसूस कर रहे हैं। चलिए आप खाना खा लीजिए फिर रजाई में सो जाना।" राजिया ने रजाक को खिचड़ी खिलाया। उसके बाद अब्दुल को खिचड़ी खिलाया और दवाई देकर सुला दिया। 

ठंड से बदहाल रजाक अपने कमरे में गया और रजाई में घुस गया। राजिया उसके कांपते शरीर को देखकर कमरे में आई और कमरे को अंदर से बंद कर दिया। 

"राजिया तुम यहां ? जाओ अब्दुल के पास जाओ। वो अकेला पड़ जाएगा।"

"कुछ मत कहो। वो अभी सो रहे है। चलिए आपका हाथ पैर घिस देती हूं। थोड़ी सी गर्मी आएगी।"

रजाक ने राजिया के दोनो नरम कंधे पे हाथ रखकर कहा "देखो तुम्हारा शरीर ठंडा पड़ रहा है। चलो मेरे साथ लेट जाओ। मैं कुछ नही सुनूंगा। चलो तुम भी आराम कर लो।"

   राजिया रजाक दोनो साथ में लेट गए। दोनो के ऊपर शरीर में कपड़ा नहीं था। रजाक बोला "बूरा न मानो राजिया तो तुम्हे अब्दुल के पास होना चाहिए। मेहरबानी करके अब्दुल के पास जाओ।"

राजिया को बात माननी पड़ी। वो अब्दुल के कमरे गई और रजाई में घुस गई। अब्दुल को आंखे खुली और राजिया को बाहों में भरते हुए कहा "राजिया ठंडी कितनी है। और तुम बाहर ऐसे मत घूमो। कितनी ठंडी है। मुझे तुम्हारी फिक्र हो रही थी।"

"मेरी फिक्र ?"

"हां। वैसे भी तुम्हारे साथ रहना जो है। तुम एक काम करो मैं तुम्हारे ऊपर लेट जाता हूं और तुम मुझसे लिपट जाओ।"

    अब्दुल ने वही किया। राजिया को गर्मी की जरूरत थी। उसने अब्दुल को अपने ऊपर लेटा लिया।

अब्दुल ने भावनाओ में आकर राजिया के गाल को चूम लिया और कहा "राजिया क्या तुम मेरे लिए आई हो ? सच बताओ। क्या तुम वोही हो जो महफिलों में गाया करती है ?"

"क्या आपको में नापाक औरत लगती हूं ?"

"या अल्लाह ये क्यों कहा ?"

"क्योंकि मैं महफिलों में गाती हूं।"

"खुदा के वास्ते ऐसा न कहो। तुम एक पाल औरत हो। मैं एक बुड्ढा इंसान हूं। तुम मेरे लिए आई हो यहां। ताकि मैं ठीक हो जाऊं। लेकिन क्यों ? क्यों अपना वक्त बरबाद कर रही हो ?"

"क्योंकि रजाक बहुत अच्छे इंसान है। वैसे भी मेरी इज्जत की आपने। इससे बढ़कर और क्या चाहिए एक औरत को।"

"बस भी करो राजिया इतना न सेवा करो। कल कही आदत न पद जाए मुझे तुम्हारी।"

"इस आदत को छूटने में जन्म भी लग जाए तब तक आपके साथ रहूंगी।"

"राजिया अभी भी वक्त है सोच लो। चली जाओ यहां से। तुम्हे आगे की जिंदगी जीनी है।"

"कैसी जिंदगी ? फिर वोही लोगो की बुरी नजर। समाज में अजीब सा बर्ताव। इससे अच्छा यहां है। सुकून और दुनिया की गंदी नजर से दूर।"

"राजिया एक चीज मांगू तुमसे ? अगर दे सको तो।"

"बोलिए न।"

"मेरे भाई रजाक का भी खयाल रखना। मेरे जितने पैसे है वो तुम्हे दे दूंगा। लेकिन वो को मांगे उसे दे दो।"

"जिंदगी में पैसा ही सेवा की कीमत नही होती। अगर आप मेरी इज्जत करते है तो पैसे को बीच में ना लाए।"

"ओह राजिया तुम महान हो। लेकिन अभी मुझे तुमसे कुछ चाहिए।"

"क्या ?"

"मैं तुम्हे बेतहाशा चूमना चाहता हूं। क्या इस घर में तुमसे ये अधिकार मांगू ?"

"अब्दुल आप जो करना चाहे करिए क्योंकि आज तक जिस मर्द ने मुझसे ये चीज मांगी उसकी नियत में सम्मान नही था। मुझे पता है। आप मेरी इज्जत करते है।"

"राजिया तुम कितनी खूबसूरत हो। क्या इस बूढ़े इंसान को चूमकर उसे अच्छा महसूस करा सकती हो ?"

राजिया मुस्कुराई और अब्दुल के गाल को चूमते हुए कहा "अब कैसा लग रहा है ?"

"मेरी राजिया बहुत अच्छा।" अब्दुल ने राजिया के गले को चूमने शुरू किया। आनंद में राजिया की आंखे बंद हुई। शरीर में गरम सासों का बहाव दिल में धकधक सा बढ़ा रहा था। अब्दुल ने अपनी जुबान बाहर निकाली और हल्के से गले पर घूमने लगा। 

"तुम शहद की मिठास हो। लेकिन एक चीज की कमी है इस शहद में।"

"कैसी कमी ?" राजिया ने आश्चर्य से पूछा। 

"शहद मतलब जब दिल चाहे तब लिया जा सकता हैं उसे। हर वक्त उससे मिठास मिलती है। क्या यह शहद मुझे जब चाहे मिल सकता है ?"

"जब तुम चाहो इस शहद को ले सकते हो।"

"फिर तो आज इस शहद को चखकर रहूंगा।"

अब्दुल ने राजिया के होठ को चूमा। राजिया ने भी साथ दिया। अब्दुल नीचे गया और राजिया के नाभी को चूमा और कहा "इस मिठास को मैं धीरे धीरे और आराम से चखूंगा।" अब्दुल राजिया को गले लगाते हुए कहा "is waqt रजाक को भी तुम्हारी जरूरत है। जाओ उसके पास।"

"और तुम ? तुम्हारा क्या ?"

"अब मुझे तुम मिल गई। अगर मुझे अच्छी नींद देना चाहती हो तो एक बार मुझे होठों से लगा लो।"

"अब्दुल तुम खुद ही कर लेते।" राजिया ने अब्दुल के होठ को चूमा और कहा "मैं यहां ही हूं। जब चाहो और जिस दिन दिल करे मेरे साथ जो करना चाहो कर लेना।"

"वक्त आने पर तुम्हे एहसास जरूर दिलाऊंगा की तुम्हारे लिए मेरे दिल में क्या है। अब जाओ और रजाक के साथ थोड़ा वक्त बिताओ। मेरी परवाह मत करो। आखिर उसे भी किसी के साथ की जरूरत है।"

     राजिया अब्दुल को चूमकर बिस्तर से उठी। अब्दुल ने पीछे से कहा "राजिया इस ब्रा में कमाल लगती हो। इसे रोज पहना करो।"

"तुम बड़े बदमाश हो अब्दुल।"

"लेकिन राजिया मुझे तुम्हारे साथ वक्त बिताने में मजा आया।"

     राजिया मुस्कुराकर चली गई। सामने रजाक के कमरे में गायिंको कंबल में रजाक लेटा हुआ कांप रहा था। रजाक राजिया को देखकर बोला "अब्दुल कैसा है ?"

"उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा।"

"तुम चली आई ? देखो राजिया सो जाओ। हम दोनो का खयाल रखते रखते बीमार पड़ जाओगी ।"

राजिया ने दरवाजा बंद करते हुए कहा "दरवाजा क्यों खुला रखते हो ? ठंड बढ़ जाएगी"

"वो क्या है ना मुझे आदत है। अब्दुल का ध्यान रखता हूं ना।"

"अब जरूरत नहीं इसकी। मैं हूं ना।"

राजिया रजाई में घुसी। राजिया मन ही मन खुद से कहा "अब यही तेरा काम है राजिया। दोनो को खुश रख और दोनो बुड्ढे इंसान को अपनापन दो। भूल जा इस उमर की सरहद। अगर मुझे जिंदगी भी बितानी पड़ी तो बैताऊंगी। राजिया खुद की जिंदगी दोनो के हवाले कर दे।"

राजिया रजाई में घुसी और बोली "अब मै थोड़ी देर आराम कर सकती हूं।"

"आओ अंदर आओ राजिया। ठंड लग जाएगी।"

राजिया रजाक के बुड्ढे सीने पे हाथ रखते हुए "कंबल को सिर के ऊपर रख दो। सिर से पाओ तक दोनो कंबल में आ जायेंगे।"

"लेकिन थोड़ा सटकर सोना पड़ेगा।"

राजिया ने कंबल में खुद को और रजाक को घुसा दिया। दोनो का शरीर पूरी तरह से कंबल में सा गया। कंबल के हल्की सी रोशनी थी बाकी अंधेरा। राजिया रजाक से सट गई और बोली "तुम भी थोड़ा नजदीक आओ।"

"तुम्हे गलत तो नहीं लगेगा ?"

"बेवकूफ मत बनिए। अब चलो भी।"

दोनो एक दूसरे से लिपट गए। दोनो के ऊपरी नंगे जिस्म जुड़ गए। 

"ओह राजिया कमबख्त ठंडी क्या क्या करवाती है।"

"रजाक जरा अपने हाथ आगे बढ़ाओ और मेरी पीठ को घीस दो ना।"

रजाक ने दोनो हाथ आगे किया। राजिया के दोनो स्तन रजाक के सीने से दब गए। रजाक की सांसें ऊपर नीचे होने लगी। दोनो की गरम सांसें कंबल में फेल गई। रजाक राजिया के पीठ पे हाथ घिसने लगा। 

"रजाक अब अच्छा लग रहा है।" इतना कहकर राजिया ने हल्के से रजाक से गले पे अपने गले को लगाया दोनो में अब एक इंच का भी फैसला न रहा । राजिया के स्तन रजाक के सीने से पूरी तरह से दब रहा था।  रजाक को अच्छा लग रहा था। 

"रजाक अब गरम महसूस हुआ ?"

"हां अब बहुत अच्छा लग रहा है। और तुम्हे कैसा लग रहा है ?"

"बहुत अच्छा।"

"तुम्हारे शरीर में एक भी बाल नहीं है। जरा अपना बगल (armpit) दिखाओगी?"

राजिया ने दोनो हाथ ऊपर किया। मुलायम और साफ बगल देख रजाक बोला "तुम काफी खयाल रखती हो अपने शरीर का।"

"वैसे अगर में कपड़े के होती तो तुम्हे पता न चलता। मेरे कपड़े पे ना होने से काफी कुछ पता चल तुम्हे।" राजिया ने छेड़ते हुए कहा। 

"तुम भी मजाक अच्छा कर लेती हो।" 

दोनो एक दूसरे से चिपककर लेते हुए थे। रजाक ने हल्के से चुम्मी दी राजिया को। राजिया ने रजाक के दाढ़ी को सहलाते हुए कहा "सच कहूं तो ये जगह वाकई अच्छी जगह है।"

"इस जगह में क्या है ?" रजाक ने पूछा। 

"अपनापन और शांति। मुझे कितने सालो बाद किसी के साथ अच्छा लग रहा है। आप और अब्दुल के साथ जैसे एक रिश्ता सा बनता नजर आ रहा है। रजाक पता नही क्यों मुझे यहां बस जाने का मन कर रहा है।"

"तो बस जाओ ना राजिया। हम तीनो एक दूसरे का खयाल रखेंगे और साथ रहेंगे।" इतना कहकर रजाक ने राजिया के ब्रा का हुक खोल दिया। राजिया ने ब्रा उतार दिया और फैलते हुए कहा "रजाक मेरे सीने से लग जाओ।"

रजाक ने राजिया के नंगे स्तन को हाथो से थमा और दबाने लगा। राजिया होश खो बैठी और बोली "कही मुझे तुम दोनो की आदत न पद जाए। संभालकर रजाक क्योंकि अगर पद गई आदत तो फिर हमेशा इधर रह जाऊंगी।"

"तो समझो अब वक्त आ गया है। अब से तुम यहां रहोगी।"

"रजाक क्या एक हमसफर बनकर ?"

"हां। लेकिन तुम्हे अब्दुल को भी अपना सब कुछ देना होगा। खुद को सौप दो।"

"सौप दिया। तुम दोनो के हवाले खुद को कर दिया। अब रजाक आज सारी हदें पार कर लो और साबित करो की मैं तुम्हारी हूं।"

रजाक राजिया के स्तन को चूसने लगा। राजिया ने कसके बाहों में भर लिया। अपनी लुंगी उतारकर पूरी तरह से नंगा होकर राजिया से कमीज को उतार दिया। अपने लिंग को योनि में डालते हुए कहा "मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई है राजिया। तुमसे प्यार कर बैठा हूं।"

"रजाक अगर मोहब्बत हुई है तो रुको मत।"

  रजाक योनि में लिंग डालकर धक्का देने लगा। आज उसे जिंदगी को बड़ी खुशी मिलनेवाली थी। राजिया को ये एहसास अच्छा लगा। एक काले बुड्ढे से प्यार हो गया उसे ऐसी कल्पना भी नहीं की थी राजिया ने। दोनो कामवासना में लगे थे और शरीर की गर्मी इतनी बड़ी की पसीने आने लगे। रजाई को हटाकर राजिया ने चिल्लाते हुए कहा "रजाक तुम मेरे हो। सिर्फ मेरे। अब से में तुम्हारी और अब्दुल को हुई। खुदा के वास्ते मुझसे अलग न होना।"

"आह राजिया अब हम कोई जुदा नही कर सकता।"

धक्का मरते मारते रजाक आखिर में योनि में झड़ गया। दोनो को मोहोब्बा का मीठा एहसास हुआ। दोनो बिस्तर पे बेजान से लिए हुए थे। 

राजिया ने रजाक से कहा "मुझे जाना होगा।"

"कहा ?"

"आज अब्दुल को ये बताने की मुझे तुम दोनो से मोहोब्बत हुई है।"

     राजिया अब्दुल के कमरे गई और फिर उसके बाद जो राजिया ने रजाक के साथ किया वोही अब्दुल के साथ। अब्दुल ने भी राजिया के साथ सेक्स किया। अब ये प्यार का रिश्ता तीनों के बीच क्या रंग लायेगा ये आपको आगे पता चलेगा।
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RE: छोटी छोटी कहानियां - by Basic - 08-03-2023, 11:31 PM



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