07-03-2023, 09:18 PM
कहानी नंबर ३ :- जिंदगी एक सफर।
किरदार : राजिया शाह उमर २६ साल। एक वैश्या। जो अपने पैसे से घर चलाती है।
अब्दुल हमीद : एक बुड्ढा आदमी। 10 साल पहले एक कॉलेज का चौकीदार था। उमर ६७ साल
रजाक हमीद : अब्दुल का बड़ा भाई। उमर ७० साल। कोठे का चौकीदार।
जिंदगी तीन अक्षर से बना एक शब्द है जिसके अंदर दुनिया का हर तजुर्बा समय हुआ है। सुख, दुख, सत्य असत्य जैसे अनेकों अनुभवों का संगरहकेंद्र है। जिंदगी में कब क्या हो जाए, किसी को भी पता नही। क्यों इतनी अजीब है ये जिंदगी ? कभी कोई अपना पराया तो कोई अजनबी अपना हो जाता है।
बात है साल 1990 की। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिल्ले की। अंबासा नाम का गांव था जिसमे आबादी कुछ खास नहीं थी। उस गांव में एक घर था जिसमे राजिया शाह और उसकी अम्मी बेनज़ीर शाह रहती थी। दोनो अकेले रहते थे। बेनज़ीर वैसे एक वैश्या थी और राजिया उसकी नाजायज औलाद। लेकिन दोनो साथ में रहते थे। नाजिया एक खूबसूरत की पारी और रंग इतना गोरा की कोई भी उसपे फिदा हो जाए। कोठे पे नाचना, गाना और लोगो का कुछ वक्त दिल बहलाना अपने गीत से।
समाज में ऐसे लोगो की कोई इज्ज़त खास नहीं होती। कोई अगर चाहे तो भी राजिया से निकाह नहीं कर सकता। राजिया दिन में घर पर रहती तो रात में नाचती गाती। वैसे राजिया का कई बड़े लोगो के साथ शारीरिक तालुकात हो चुके थे लेकिन एक साल से उसने ये सब छोड़ दिया। नाजिया हर सुबह दोपहर कोठे जाती और वहां के वेश्यो के साथ बाते करती और रात को महफिल सजाती। यूं कहे तो रात 8 से 12 बजे पूरा मेरठ उसका होता। लेकिन राजिया किसी को भी अपने पास नही आने देती। लोग बस उसे पाने के सपने ही देख पाते।
राजिया पूरे कोठे में अगर कैसी की इज्जत करती तो वो सिर्फ रजाक हमीद की को कोठी का चौकीदार था। रजाक एक बुड्ढा और दिल का शरीफ इंसान था। रजाक ही एक ऐसा आदमी था जिसका हर वक्त हाल चाल राजिया पूछती।
बात करे रजाक के परिवार की तो वो कोठे से 5 किलोमीटर दूर एक छोटे से घर में रहता जिसमे उसका भाई अब्दुल रहता। अब्दुल एक समय सरकारी कॉलेज का चौकीदार था और उसने कई पैसे जुटा रखे थे। पैसे उतने जितने में उनके कुछ सालो का खान पान निकल सके। अब्दुल बुढ़ापे की वजह से बीमार पड़ने लगा। उसकी एक बेगम थी जो बीमारी से चल बसी। परिवार तो जैसे उसकी किस्मत में न था। बेटे अपनी बेगम के गुलाम होकर रह गए और एक कैदी की तरह अपने वालिद से दूर मुंबई चले गए। अब्दुल दिन पर दिन दुखी और अकेला रहता। इसी वजह से उसकी तबियत बिगड़ने लगी। रजाक को तो जैसे चिंता सताने लगी।
रजाक जहां रोज समय से कोठे पर आता लेकिन अब वो कई दफा नही आ पाता था। कोठे की मालकिन बेगम नुसरत को ये बात सही नही लगती। वैसे बेगम नुसरत ६० साल की है और वो ३५ साल से ये कोठा चला रही है।
एक दिन दोपहर रजाक कोठे पे आया। तभी बेगम नुसरत ने उसे रोका और पूछा "रजाक मिया आपको में पिछले ३० सालो से जानती हूं। आप हर वक्त समय पर आते लेकिन अब क्या हो गया ? कही तबियत को खराब नही रहती ?"
"ऊपरवाले के रहम से में ठीक हूं लेकिन मेरा भाई बहुत बीमार रहता है।"
"कौन अब्दुल ?"
"हां मालकिन।"
"अब्दुल तो मेरे भाई जैसा है और आप भी। बताइए कितने पैसे चाहिए आपको ?" नुसरत ने अपना बटुआ आगे किया।
रजाक रोकते हुए बोला "ऐसा मत करिए आप। शर्मिंदा ना करिए। आपका वैसे भी हिमपर बहुत एहसान है।"
"लेकिन रजाक आजतक मैने तुम्हारे लिए किया ही क्या है ?"
"बहुत कुछ किया है आपने। आपने हम नौकरी दी और इज्जत भी।"
"आपकी इज्जत यहां हर कोई करता है। आपने कभी भी कोठे पे काम कर रही लड़कियों को छुआ भी नहीं। जबकि हर मर्द ने कोठे की लड़कियों के साथ मुफ्त में रात गुजारी। आप जानते है की महीने में यह पे काम करनेवाले मर्द को दो दिन मुफ्त में लड़कियों के साथ सोने को मिलता है। एक आप ही है जिसने ऐसा नहीं किया।"
"लेकिन अब जरूरत पड़ेगी मुझे।"
"मतलब ?"
"देखिए नुसरत बेगम । मेरी एक मजबूरी है। मेरे भाई के डॉक्टर ने कहा की मेरे भाई को एक औरत के सहारे की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मर सकता है वो।"
"या अल्लाह ये तो बहुत बड़ी बात है।"
"देखिए नुसरत बेगम अगर आप मुझे गलत न समझे तो मैं चाहता हूं की आपके कोठे से कोई जवान औरत मेरे भाई को ठीक कर दे। मैं पैसे भी देने को तैयार हूं।"
नुसरत थोड़ी ऊंची आवाज में बोली "आप क्यों मुझे शर्मिंदा कर रहे है? आप पैसे की बात न करे। आपको कोई जरूरत नहीं पैसे देने की। क्या आप मुझे अपनी बहन मानते है ?"
"हां।"
"मुझेपर भरोसा करिए। मैं आपके भाई के लिए एक जवान औरत का बंदोबस्त कर दूंगी। पैसे देने की जरूरत नहीं।"
"लेकिन....."
रजाक की बात को काटकर नुसरत ने कहा "लेकिन वेकिन कुछ नही। आपकी मैं बहुत इज्जत करती हूं और अब्दुल की भी। समझलो मेरी तरफ से एक बहन का फर्ज। आप चलिए मेरे साथ।"
नुसरत रजाक को कमरे में ले गई। वहां उसे सोफे पे बिठाया। उस वक्त राजिया अपने दोस्तो के साथ बात कर रही थी। नुसरत ने राजिया को बुलाया और अब्दुल और रजाक के बारे में बताया। राजिया बोली "लेकिन ये कैसे हो सकता है ? मैं कैसे एक बुड्ढे आदमी के साथ ?"
"दिल्ली राजिया अब्दुल मेरा भाई है। अब तुम मेरे लिए ये कर लो। तुम जानती हो रजाक को वो एक शरीफ इंसान है। कम से कम मेरे लिए ये कर लो।"
राजिया मान गई। नुसरत ने राजिया को रजाक से मिलवाया।
"तो रजाक भाई। करना क्या है ?" नुसरत ने पूछा।
"राजिया को मेरे भाई के रहना होगा। उसे एक साथी की तरह रहना होगा। राजिया तुम्हारा एहसान नहीं भूलूंगा। तुम महान हो।" रजाक हाथ जोड़कर रोने लगा।
राजिया ने रजाक को शांत करवाया और कहा "मुझे शर्मिंदा ना करे। आपकी बहुत इज्जत करती हूं मैं। आपके लिए कुछ भी कर सकती हूं। बताइए लब और कहां जाना है ?"
अपने आंसू पोंछे हुए रजाक बोला "आज ही मेरे साथ मेरे घर चलो।"
नुसरत ने कहा "मैं गाड़ी भिजवाती हूं और अब से दोनो को तब तक आने की जरूरत नहीं जब तक अब्दुल ठीक न हो जाए। राजिया सिर्फ अब्दुल ही नही बल्कि रजाक भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। दोनो का खयाल रखना और उनके साथ ही रहना।"
"जी बेगम।" राजिया ने कहा।
राजिया और रजाक दोनो घर पहुंचे। घर बहुत ही टूटा फूटा और छोटा था। घर गांव से बहुत अलग था। पास में कुआं और घना सा बगीचा था।
"तो फिर राजिया आज से तुम्हे अब्दुल के साथ उसी के कमरे में रहना होगा।"
"अब्दुल क्या मुझे रहने देगा ?" राजिया ने पूछा।
"अब्दुल की ही ख्वाहिश है किसी औरत के साथ रहने का। वो तुम्हे रहने देगा। बस रजिया एक बात याद रखना। अब्दुल जो चाहे उसे वो करने देना। बाकी मैं भी साथ रहूंगा।"
राजिया को अजीब लग रहा था की वो दो बुड्ढो के साथ रहेगी और तो और अब्दुल और रजाक काले और उमर से ज्यादा बुड्ढे और कहा वो दूध सी सुंदर और जवान। सबसे पहले रजाक ने दोनो को मिलवाया। अब्दुल राजिया की सुंदरता का मुरीद हो गया लेकिन दिल में प्यार की हल्की की जगह बनाने लगी।
राजिया ने सबसे पहले रसोई घर का काम किया। दोनो के लिए खाना बनाया और खाना खिलाया। बहुत सालो बाद दोनो को किसी औरत के हाथ का खाना नसीब हुआ। कहना खाने के बाद अब्दुल अपने कमरे में चला गया। राजिया ने रसोई की सफाई की। रजाक राजिया के साथ था।
"वैसे राजिया मैं कहना चाहता हूं कि किसी भी चीज की तुम्हे जरूरत पड़े तो मुझे कहना जरूर। मेरा कमरा अब्दुल के कमरे के सामने ही है। बस इतना जरूर कहूंगा। मेरे भाई को ठीक कर दो।" रजाक भावुक हो गया।
"चिंता मत करिए रजाक जी। अब्दुल मेरी जिम्मेदारी हैं। अब उसे हर हाल में मैं ठीक करके रहूंगी। वैसे भी अब आपका ध्यान भी मुझे ही रखना है। आप अकेले अब से खुद को न समझे। जब दिल करे मुझसे बात करने का तो आ जाना।"
"सच्ची ?" रजाक ने पूछा।
"क्यों ऐसा पूछा आपने ?"
"इतने सालो बाद कोई आया है इस घर में और वो मेरे साथ समय भी बिताएगा।"
"मैं कुछ घंटों के लिए थोड़ी ना हूं। मैं यहां ही रहूंगी। आधी रात को भी मिलना हो कहना।"
राजिया काम पूरा करके अब्दुल के कमरे गई। रजाक भी अपने कमरे में गया। राजिया को देखकर अब्दुल बोला "आप राजिया आओ।"
"राजिया अब्दुल के बगल लेट गई। अब्दुल राजिया को देखने लगा और कहा "वैसे एक बात बताओ। तुम क्या घायल तो नही हुई थी ना जब अल्लाह ने जन्नत से तुम्हे यहां पे भेजा तो ?"
राजिया इस बात से हसने लगी और बोली "बात तो सोचने वाली की आपने। मुझे इसके बारे में सोचना चाहिए था।"
"वैसे राजिया एक बात है। आज कितने दिनों बाद हमने खाना खाया।"
"कैसा था खाना ? कही बूरा तो नही बनाया मैने ?"
अब्दुल राजिया से लिपट गया और बोला "बहुत अच्छा बना था खाना।" अब्दुल राजिया आगे बोला "वैसे ठंडी का मौसम है। आ जाओ रजाई में वरना ठंड लग जायेगा।" अब्दुल राजिया को अपने रजाई में ले लिया। दोनो एक ही रजाई में थे। अब्दुल राजिया के गाल को हल्के से चूमते हुए बोला "चलो अब सो जाते है। रात बहुत हो गई। "
राजिया ने भी आंखे बंद कर ली। अब्दुल राजिया के कंधे पे सिर रखा और एक हाथ से राजिया के कुर्ती के अंदर डाला और नंगे पेट पे हाथ रखकर सो गया। अब्दुल के चुन से राजिया को अजीब का करंट लग रहा था। उसका खुरदुरा हाथ को अपने पेट पे महसूस कर रही थी। गरम सांसे कंधे से होकर गले पे जा रहा था। अब्दुल गहरी नींद में आ गया। नरम नरम पेट को अपने हाथ से मसल भी देता अब्दुल। राजिया को नींद नही आ रही थी। राजिया को पता नही था लेकिन कमरे का दरवाजा बंद करना भूल गई थी। राजिया ने कंबल को हटाया। अब्दुल की नींद उड़ी और बोला "राजिया तुम ठीक हो ना ?"
अब्दुल को नींद में लाने के लिए राजिया ने उसके सिर को सीने से लगाया और कहा "सो जाओ अब्दुल।"
अब्दुल नींद में बोला "तुम्हारे साथ सोने में मजा आ रहा है।" अब्दुल ने हल्के से राजिया के सीने को चूम लिया।
राजिया ने अब्दुल के चेहरे को सीने से लगाया हुआ था और सुला दिया। कमरे का दरवाजा खुला था। राजिया ने देखा की कमरे के बाहर रजाक खड़ा था। रजाक को अपने पास बुलाया और पूछा "नींद नही आ रही आपको ?"
रजाक ने कहा "नही। वैसे अब्दुल काफी गहरी नींद में है।"
राजिया ने हल्के से सिर को हाथ से सहलाते हुए कहा "हां। वैसे भी इनका सोना भी जरूरी है। लेकिन नींद मुझे भी नही आ रही।"
"ऐसी बात हो तो चलो मेरे साथ। थोड़ा बहुत बात चीत करेंगे फिर नींद भी आ जायेगी।"
राजिया को रजाक की बात सही लगी और अब्दुल को आराम से लेटाकर उठ गई। राजिया और रजाक कमरे के बाहर गए।
"राजिया मेरे कमरे चलो। ठंडी बहुत है। बाहर चलोगी तो ठंड लग जाएगी।"
"तो फिर चलो।"
दोनो कमरे में आए। रजाक बोला "बैठो राजिया। आओ कंबल ओढ़ लो।"
राजिया ने कंबल ओढ़ा और रजाक को भी साथ में कंबल के अंदर आने को कहा। दोनो एक ही कंबल में बिस्तर पे बैठे बैठे बात कर रहे थे। यहां वहां की बात कर रहे थे।
"वैसे एक बात बताई रजाक आप आज इतनी रात तक क्यों जगे हुए है ?"
"पता नही आज थोड़ा सा सिर दर्द हो रहा था इसीलिए।"
"पागल है क्या आप ? सिर दर्द के बावजूद भी आप मुझसे बात कर रहे है ? आपको सोना चाहिए या फिर सोने की कोशिश करनी चाहिए। एक काम करो मैं आपका सिर दबा देती हूं।"
राजिया रजाक के सिर को गोदी पे रख देती है और सिर दबाने लगती है। रजाक को हल्का सा अच्छा महसूस हो रहा था।
"ओह राजिया अब अच्छा लग रहा है। थोड़ा सिर हल्का हो रहा है।"
"अभी थोड़ी देर और लेटे रहो मैं ठीक कर देती हूं।"
"लेकिन राजिया तुम्हे अब्दुल की देखभाल करने के लिए लाया हूं। मेरा बोझ मत उठाओ।"
"चुप चाप सो जाओ। यहां आकार लग रहा है की तुम्हारी भी देखभाल करनी चाहिए।"
"फिर तो तुम हम दोनो के पीछे थक जाओगी। तुम आराम करो।"
"करूंगी लेकिन पहले सो जाओ।"
रजाक राजिया के गोद में सिर रखकर सो गया। देखते देखते राजिया को भी नींद आ गई और वो रजाक के बगल सो गई। सुबह जब रजाक की नींद उड़ी तो देखा की राजिया सो रही है। रजाक के साथ साथ राजिया की भी नींद उड़ी।
"तुम सो जाओ रजाक मैं अब्दुल को देख आती हूं।"
राजिया उठकर जा ही रही थी की रजाक बोला "सुनो राजिया अगर अब्दुल सो रहा हो तो उसे सोने दो।"
राजिया गई तो देखा अब्दुल अभी भी गहरी नींद में सो रहा है। राजिया बाहर आई और रजाक के कमरे में गई।
"वो सो रहे हैं"
"सोने दो। वैसे भी ठंडी का मौसम है। कुछ काम नही है। तुम भी सो जाओ। अब्दुल के कमरे में।"
"नही नही। मुझे पहले नहाना है।"
"इतनी ठंडी में सुबह सुबह ?"
"हां।"
राजिया बगल वाले स्नानघर में गई। उस स्नानघर में दरवाजा नही लगा हुआ था सिर्फ पर्दा ही लगा हुआ था। राजिया टोरेंट नहा ली। पानी बहुत ठंडा था। राजिया तुरंत नहाई। नहाने के बाद वह ही कपड़े पहनने लगी। कमीज के बाद ब्रा पहना लेकिन कुर्ती उठाने गई की कीर्ति गिर गया फर्श पे और गीला हो गया। अब करे तो क्या करे। राजिया ठंडी से ठिठुर रही थी। तो फिर ब्रा में ही बाहर आई और कपड़े सुखाने लगी। आंगन में कपड़े लटकाया। राजिया जल्दी से अब्दुल के कमरे गई। सामने देखा तो अब्दुल जग चुका था। राजिया को bra में देखा। उसके गोरे गोरे ऊपरी बदन को देखा अब्दुल ने। अब्दुल बोला "जल्दी से कुर्ती पहन लो वरना ठंड लग जाएगी।"
"हां लेकिन मेरा सामान कहा है ?" राजिया ने पूछा।
"अरे हट वो तो रजाक के कमरे में है।"
राजिया भी जल्दबाजी में bra में ही रजाक के कमरे चली गई। अब्दुल की तरह रजाक भी राजिया के गोरे बदन को देखता रह गया।
"तुम इधर क्या कर रही हो ? कपड़े कहा है तुम्हारे ?"
"अब्दुल ने बताया तुम्हारे कमरे में है।"
"क्या वो तो तुम्हारे पास था।"
राजिया सोच में पड़ गई। फिर उसे याद आया की सामान गाड़ी से निकलना भूल गई थी।
"धत्त सामान गाड़ी में ही छुट गया। अब ?"
"रुको मेरे कुर्ते चलेंगे ?"
"अरे नही उसे तो मैंने अभी दो दिया और वैसे भी कितने गंदे थे वो। तुम बाजार से कुछ ला सकते हो ?"
"अरे खड़े के मौसम में बंद है बाजार और अभी बारिश भी होगी।"
"या अल्लाह। ये सारी मुश्किलों को एक साथ हो आना था ।" राजिया सिर पे हाथ रखते हुए बोली। तब तक अब्दुल भी आ गया कमरे में।
"पहले एक काम करो कंबल ओढ़ लो वरना ठंड लग जाएगी।" अब्दुल ने कहा।"
"वैसे अब्दुल तुम्हारी तबियत कैसी है ?" राजिया ने पूछा।
"अभी थोड़ी थकान है। मैं थोड़ी देर और सोने वाला हूं।"
"तुम लोगो के लिए चाय बनाउ?"
"नही राजिया मैं भी सोनेवाला हूं।" रजाक ने कहा।
"एक काम करो। राजिया तुम मेरे साथ चलो। थोड़ी देर हम सो जाते है और वैसे भी bra में ठंडी लग जाएगी।" इतना कहकर अब्दुल राजिया के दोनो कंधे पे हाथ रखा और अपने साथ ले चला। राजिया भी ठंड की वजह से अब्दुल से लिपट गई। अब्दुल राजिया को अपने कमरे लेकर आया और दरवाजा बंद कर दिया। दोनो बिस्तर पे कंबल के अंदर आ गए। अब्दुल अचानक जोर जोर से हसने लगा। राजिया को थोड़ा अजीब सा लगा।
"ऐसे हंस क्यों रहे है आप ?" राजिया ने पूछा।
"बूरा मत मानना राजिया लेकिन तुम्हारी किस्मत पे हंसी आ रही है।"
"मेरी किस्मत ? मतलब ?"
"मतलब ये को तुम जब से इस घर में आई हो तब से तुम्हारे साथ ही उल्टा हो रहा है। कपड़े तुम्हारे गीले हुए, सन गाड़ी में छूट गया, बाजार बंद है, बारिश भी होनेवाली है और तुम इस bra में। सब उल्टा हो रहा है यहां पे।"
राजिया हल्के से मुंह बिगड़ते हुए "आपको बहुत मजा आ रहा है ? संभालके शायद आगे आपके साथ न उल्टा हो जाए।"
"लेकिन एक बात कहूंगा। पहली बार किसी खातून को यूं बाहर bra में देख रहा हूं।"
"अब जैसी मेरी किस्मत।"
"लेकिन राजिया तुम आई तो घर कुछ अच्छा लग रहा है। ये सोचो न तुम आई और हमारा दिन कुछ अच्छा सा हो रहा है।"
राजिया को बात अच्छी लगी और बोली "वाह बाते करना कोई आपसे ही सीखे। बुरी बात को अच्छी बात में तब्दील कर दिया।"
"नही राजिया ये सच है। तुम आई तो जैसे घर का खाना नसीब हुआ, बहुत दीनो बाद एक अच्छी नींद मिली, तुम्हारी हालत देख आज इतने दिनो बाद हसने का मौका मिला। सच में राजिया तुम जैसे एक अच्छे सपने की तलाश हो या हकीकत की।"
राजिया और अब्दुल दोनो एक दूसरे को देखते रह गए।
"वैसे राजिया एक बात की इजाजत लूं अगर बूरा न मानो तो ?"
"किस चीज की इजाजत ?"
"राजिया मुझे कुछ देर के लिए तुमसे लिपटकर सोना है।"
राजिया ने अब्दुल को बाहों में भर लिया और सिर पे हल्के से चुंबन देते हुए कहा "अब्दुल तुम खुद को अकेला मत समझना। मैं हूं तुम्हारे साथ।"
अब्दुल ये बात सुनकर रोने लगा।
"अब्दुल तुम रो रहे हो?" राजिया ने आंख से आंसू पोंछे हुए पूछा।
"पहली बार किसी ने ऐसी बात की।"
"ओह अब्दुल कितने बदसूरत लगते हो रोते हुए वैसे भी बुड्ढे हो और भी बेकार लगते हो।"
अब्दुल पूछा "तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो ?"
"तुम खुद ही एक मजाक हो। तुम्हारा क्या मजाक उड़ाया जायेगा।"
अब्दुल हस्ते हुए बोला "अभी बताता हूं तुझे।" इतना कहकर अब्दुल राजिया के कमर पे गुदगुदी करने लगा। राजिया गुदगुदी की वजह से हसने लगी और बोली " हा हा हा अब्दुल छोड़ो मुझे। अब्दुल बदमाश बुड्ढे।"
अब्दुल बैठ गया और लेटी राजिया को गुदगुदी करते हुए कहा "अब मजाक उड़ा मेरा।" दोनो हसने लगे। फिर अब्दुल राजिया के ऊपर लेट गया और बोला "ओह राजिया तुम तो मेरी जान ले लोगी। इतना भी हसाओ मत।"
"मैं तुम्हारी क्यों जान लूंगी। जान तो तुमने मेरी ले ली। इतनी गुदगुदी कौन करता है। वैसे मुझे पता नही था की ये बुड्ढा अब्दुल मजाक भी करता है।"
अब्दुल राजिया के गाल को चूमते हुए बोला "वैसे तुम्हारी कमर बहुत अच्छी है। मजा आ गया।"
"चुप बदमाश। अब जल्दी कंबल के अंदर आओ वरना मुझे ठंड लग जाएगी।"
"रुको मैं तुम्हारी ठंड भागता हूं।" अब्दुल कंबल के अंदर घुसा और राजिया ने नंगे पेट पे सिर रख दिया। राजिया के जिस्म में करंट दौड़ पड़ा।
"आह अब्दुल क्या कर रहे हो ?"
"गर्मी दे रहा हूं। अब में तुम्हारे पेट पे सिर रखूंगा और मेरी गरम सांसें तुम्हारे पेट पे आएगी। गरम महसूस होगा तुम्हे।"
"लेकिन तुम्हारी दाढ़ी का क्या ?"
"तुम चुपचाप सो जाओ। वैसे भी तुम्हारा पेट कितना मुलायम है।"
राजिया हसने लगी और अपने दोनो हाथो से अब्दुल के चेहरे को पेट पे दबा दिया और कहा "ये तरकीब अच्छी है।"
अब्दुल ने दोनो हाथो को राजिया के कंधे पे रखा और पेट पे मुंह रखा हुआ था और अचानक से चूमते हुए कहा "तुम्हारा पेट इतना मखमल है वाह।"
"Hmm अब सो जाओ।" फिर दोनो ने आंखे बंद कर ली। राजिया ने बड़े से कंबल को सिर तक ढाक दिया। दोनो को गरम सांसें कंबल में घूमती रही और राजिया का पेट अब्दुल के चेहरे से ढका हुआ था।
किरदार : राजिया शाह उमर २६ साल। एक वैश्या। जो अपने पैसे से घर चलाती है।
अब्दुल हमीद : एक बुड्ढा आदमी। 10 साल पहले एक कॉलेज का चौकीदार था। उमर ६७ साल
रजाक हमीद : अब्दुल का बड़ा भाई। उमर ७० साल। कोठे का चौकीदार।
जिंदगी तीन अक्षर से बना एक शब्द है जिसके अंदर दुनिया का हर तजुर्बा समय हुआ है। सुख, दुख, सत्य असत्य जैसे अनेकों अनुभवों का संगरहकेंद्र है। जिंदगी में कब क्या हो जाए, किसी को भी पता नही। क्यों इतनी अजीब है ये जिंदगी ? कभी कोई अपना पराया तो कोई अजनबी अपना हो जाता है।
बात है साल 1990 की। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिल्ले की। अंबासा नाम का गांव था जिसमे आबादी कुछ खास नहीं थी। उस गांव में एक घर था जिसमे राजिया शाह और उसकी अम्मी बेनज़ीर शाह रहती थी। दोनो अकेले रहते थे। बेनज़ीर वैसे एक वैश्या थी और राजिया उसकी नाजायज औलाद। लेकिन दोनो साथ में रहते थे। नाजिया एक खूबसूरत की पारी और रंग इतना गोरा की कोई भी उसपे फिदा हो जाए। कोठे पे नाचना, गाना और लोगो का कुछ वक्त दिल बहलाना अपने गीत से।
समाज में ऐसे लोगो की कोई इज्ज़त खास नहीं होती। कोई अगर चाहे तो भी राजिया से निकाह नहीं कर सकता। राजिया दिन में घर पर रहती तो रात में नाचती गाती। वैसे राजिया का कई बड़े लोगो के साथ शारीरिक तालुकात हो चुके थे लेकिन एक साल से उसने ये सब छोड़ दिया। नाजिया हर सुबह दोपहर कोठे जाती और वहां के वेश्यो के साथ बाते करती और रात को महफिल सजाती। यूं कहे तो रात 8 से 12 बजे पूरा मेरठ उसका होता। लेकिन राजिया किसी को भी अपने पास नही आने देती। लोग बस उसे पाने के सपने ही देख पाते।
राजिया पूरे कोठे में अगर कैसी की इज्जत करती तो वो सिर्फ रजाक हमीद की को कोठी का चौकीदार था। रजाक एक बुड्ढा और दिल का शरीफ इंसान था। रजाक ही एक ऐसा आदमी था जिसका हर वक्त हाल चाल राजिया पूछती।
बात करे रजाक के परिवार की तो वो कोठे से 5 किलोमीटर दूर एक छोटे से घर में रहता जिसमे उसका भाई अब्दुल रहता। अब्दुल एक समय सरकारी कॉलेज का चौकीदार था और उसने कई पैसे जुटा रखे थे। पैसे उतने जितने में उनके कुछ सालो का खान पान निकल सके। अब्दुल बुढ़ापे की वजह से बीमार पड़ने लगा। उसकी एक बेगम थी जो बीमारी से चल बसी। परिवार तो जैसे उसकी किस्मत में न था। बेटे अपनी बेगम के गुलाम होकर रह गए और एक कैदी की तरह अपने वालिद से दूर मुंबई चले गए। अब्दुल दिन पर दिन दुखी और अकेला रहता। इसी वजह से उसकी तबियत बिगड़ने लगी। रजाक को तो जैसे चिंता सताने लगी।
रजाक जहां रोज समय से कोठे पर आता लेकिन अब वो कई दफा नही आ पाता था। कोठे की मालकिन बेगम नुसरत को ये बात सही नही लगती। वैसे बेगम नुसरत ६० साल की है और वो ३५ साल से ये कोठा चला रही है।
एक दिन दोपहर रजाक कोठे पे आया। तभी बेगम नुसरत ने उसे रोका और पूछा "रजाक मिया आपको में पिछले ३० सालो से जानती हूं। आप हर वक्त समय पर आते लेकिन अब क्या हो गया ? कही तबियत को खराब नही रहती ?"
"ऊपरवाले के रहम से में ठीक हूं लेकिन मेरा भाई बहुत बीमार रहता है।"
"कौन अब्दुल ?"
"हां मालकिन।"
"अब्दुल तो मेरे भाई जैसा है और आप भी। बताइए कितने पैसे चाहिए आपको ?" नुसरत ने अपना बटुआ आगे किया।
रजाक रोकते हुए बोला "ऐसा मत करिए आप। शर्मिंदा ना करिए। आपका वैसे भी हिमपर बहुत एहसान है।"
"लेकिन रजाक आजतक मैने तुम्हारे लिए किया ही क्या है ?"
"बहुत कुछ किया है आपने। आपने हम नौकरी दी और इज्जत भी।"
"आपकी इज्जत यहां हर कोई करता है। आपने कभी भी कोठे पे काम कर रही लड़कियों को छुआ भी नहीं। जबकि हर मर्द ने कोठे की लड़कियों के साथ मुफ्त में रात गुजारी। आप जानते है की महीने में यह पे काम करनेवाले मर्द को दो दिन मुफ्त में लड़कियों के साथ सोने को मिलता है। एक आप ही है जिसने ऐसा नहीं किया।"
"लेकिन अब जरूरत पड़ेगी मुझे।"
"मतलब ?"
"देखिए नुसरत बेगम । मेरी एक मजबूरी है। मेरे भाई के डॉक्टर ने कहा की मेरे भाई को एक औरत के सहारे की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मर सकता है वो।"
"या अल्लाह ये तो बहुत बड़ी बात है।"
"देखिए नुसरत बेगम अगर आप मुझे गलत न समझे तो मैं चाहता हूं की आपके कोठे से कोई जवान औरत मेरे भाई को ठीक कर दे। मैं पैसे भी देने को तैयार हूं।"
नुसरत थोड़ी ऊंची आवाज में बोली "आप क्यों मुझे शर्मिंदा कर रहे है? आप पैसे की बात न करे। आपको कोई जरूरत नहीं पैसे देने की। क्या आप मुझे अपनी बहन मानते है ?"
"हां।"
"मुझेपर भरोसा करिए। मैं आपके भाई के लिए एक जवान औरत का बंदोबस्त कर दूंगी। पैसे देने की जरूरत नहीं।"
"लेकिन....."
रजाक की बात को काटकर नुसरत ने कहा "लेकिन वेकिन कुछ नही। आपकी मैं बहुत इज्जत करती हूं और अब्दुल की भी। समझलो मेरी तरफ से एक बहन का फर्ज। आप चलिए मेरे साथ।"
नुसरत रजाक को कमरे में ले गई। वहां उसे सोफे पे बिठाया। उस वक्त राजिया अपने दोस्तो के साथ बात कर रही थी। नुसरत ने राजिया को बुलाया और अब्दुल और रजाक के बारे में बताया। राजिया बोली "लेकिन ये कैसे हो सकता है ? मैं कैसे एक बुड्ढे आदमी के साथ ?"
"दिल्ली राजिया अब्दुल मेरा भाई है। अब तुम मेरे लिए ये कर लो। तुम जानती हो रजाक को वो एक शरीफ इंसान है। कम से कम मेरे लिए ये कर लो।"
राजिया मान गई। नुसरत ने राजिया को रजाक से मिलवाया।
"तो रजाक भाई। करना क्या है ?" नुसरत ने पूछा।
"राजिया को मेरे भाई के रहना होगा। उसे एक साथी की तरह रहना होगा। राजिया तुम्हारा एहसान नहीं भूलूंगा। तुम महान हो।" रजाक हाथ जोड़कर रोने लगा।
राजिया ने रजाक को शांत करवाया और कहा "मुझे शर्मिंदा ना करे। आपकी बहुत इज्जत करती हूं मैं। आपके लिए कुछ भी कर सकती हूं। बताइए लब और कहां जाना है ?"
अपने आंसू पोंछे हुए रजाक बोला "आज ही मेरे साथ मेरे घर चलो।"
नुसरत ने कहा "मैं गाड़ी भिजवाती हूं और अब से दोनो को तब तक आने की जरूरत नहीं जब तक अब्दुल ठीक न हो जाए। राजिया सिर्फ अब्दुल ही नही बल्कि रजाक भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। दोनो का खयाल रखना और उनके साथ ही रहना।"
"जी बेगम।" राजिया ने कहा।
राजिया और रजाक दोनो घर पहुंचे। घर बहुत ही टूटा फूटा और छोटा था। घर गांव से बहुत अलग था। पास में कुआं और घना सा बगीचा था।
"तो फिर राजिया आज से तुम्हे अब्दुल के साथ उसी के कमरे में रहना होगा।"
"अब्दुल क्या मुझे रहने देगा ?" राजिया ने पूछा।
"अब्दुल की ही ख्वाहिश है किसी औरत के साथ रहने का। वो तुम्हे रहने देगा। बस रजिया एक बात याद रखना। अब्दुल जो चाहे उसे वो करने देना। बाकी मैं भी साथ रहूंगा।"
राजिया को अजीब लग रहा था की वो दो बुड्ढो के साथ रहेगी और तो और अब्दुल और रजाक काले और उमर से ज्यादा बुड्ढे और कहा वो दूध सी सुंदर और जवान। सबसे पहले रजाक ने दोनो को मिलवाया। अब्दुल राजिया की सुंदरता का मुरीद हो गया लेकिन दिल में प्यार की हल्की की जगह बनाने लगी।
राजिया ने सबसे पहले रसोई घर का काम किया। दोनो के लिए खाना बनाया और खाना खिलाया। बहुत सालो बाद दोनो को किसी औरत के हाथ का खाना नसीब हुआ। कहना खाने के बाद अब्दुल अपने कमरे में चला गया। राजिया ने रसोई की सफाई की। रजाक राजिया के साथ था।
"वैसे राजिया मैं कहना चाहता हूं कि किसी भी चीज की तुम्हे जरूरत पड़े तो मुझे कहना जरूर। मेरा कमरा अब्दुल के कमरे के सामने ही है। बस इतना जरूर कहूंगा। मेरे भाई को ठीक कर दो।" रजाक भावुक हो गया।
"चिंता मत करिए रजाक जी। अब्दुल मेरी जिम्मेदारी हैं। अब उसे हर हाल में मैं ठीक करके रहूंगी। वैसे भी अब आपका ध्यान भी मुझे ही रखना है। आप अकेले अब से खुद को न समझे। जब दिल करे मुझसे बात करने का तो आ जाना।"
"सच्ची ?" रजाक ने पूछा।
"क्यों ऐसा पूछा आपने ?"
"इतने सालो बाद कोई आया है इस घर में और वो मेरे साथ समय भी बिताएगा।"
"मैं कुछ घंटों के लिए थोड़ी ना हूं। मैं यहां ही रहूंगी। आधी रात को भी मिलना हो कहना।"
राजिया काम पूरा करके अब्दुल के कमरे गई। रजाक भी अपने कमरे में गया। राजिया को देखकर अब्दुल बोला "आप राजिया आओ।"
"राजिया अब्दुल के बगल लेट गई। अब्दुल राजिया को देखने लगा और कहा "वैसे एक बात बताओ। तुम क्या घायल तो नही हुई थी ना जब अल्लाह ने जन्नत से तुम्हे यहां पे भेजा तो ?"
राजिया इस बात से हसने लगी और बोली "बात तो सोचने वाली की आपने। मुझे इसके बारे में सोचना चाहिए था।"
"वैसे राजिया एक बात है। आज कितने दिनों बाद हमने खाना खाया।"
"कैसा था खाना ? कही बूरा तो नही बनाया मैने ?"
अब्दुल राजिया से लिपट गया और बोला "बहुत अच्छा बना था खाना।" अब्दुल राजिया आगे बोला "वैसे ठंडी का मौसम है। आ जाओ रजाई में वरना ठंड लग जायेगा।" अब्दुल राजिया को अपने रजाई में ले लिया। दोनो एक ही रजाई में थे। अब्दुल राजिया के गाल को हल्के से चूमते हुए बोला "चलो अब सो जाते है। रात बहुत हो गई। "
राजिया ने भी आंखे बंद कर ली। अब्दुल राजिया के कंधे पे सिर रखा और एक हाथ से राजिया के कुर्ती के अंदर डाला और नंगे पेट पे हाथ रखकर सो गया। अब्दुल के चुन से राजिया को अजीब का करंट लग रहा था। उसका खुरदुरा हाथ को अपने पेट पे महसूस कर रही थी। गरम सांसे कंधे से होकर गले पे जा रहा था। अब्दुल गहरी नींद में आ गया। नरम नरम पेट को अपने हाथ से मसल भी देता अब्दुल। राजिया को नींद नही आ रही थी। राजिया को पता नही था लेकिन कमरे का दरवाजा बंद करना भूल गई थी। राजिया ने कंबल को हटाया। अब्दुल की नींद उड़ी और बोला "राजिया तुम ठीक हो ना ?"
अब्दुल को नींद में लाने के लिए राजिया ने उसके सिर को सीने से लगाया और कहा "सो जाओ अब्दुल।"
अब्दुल नींद में बोला "तुम्हारे साथ सोने में मजा आ रहा है।" अब्दुल ने हल्के से राजिया के सीने को चूम लिया।
राजिया ने अब्दुल के चेहरे को सीने से लगाया हुआ था और सुला दिया। कमरे का दरवाजा खुला था। राजिया ने देखा की कमरे के बाहर रजाक खड़ा था। रजाक को अपने पास बुलाया और पूछा "नींद नही आ रही आपको ?"
रजाक ने कहा "नही। वैसे अब्दुल काफी गहरी नींद में है।"
राजिया ने हल्के से सिर को हाथ से सहलाते हुए कहा "हां। वैसे भी इनका सोना भी जरूरी है। लेकिन नींद मुझे भी नही आ रही।"
"ऐसी बात हो तो चलो मेरे साथ। थोड़ा बहुत बात चीत करेंगे फिर नींद भी आ जायेगी।"
राजिया को रजाक की बात सही लगी और अब्दुल को आराम से लेटाकर उठ गई। राजिया और रजाक कमरे के बाहर गए।
"राजिया मेरे कमरे चलो। ठंडी बहुत है। बाहर चलोगी तो ठंड लग जाएगी।"
"तो फिर चलो।"
दोनो कमरे में आए। रजाक बोला "बैठो राजिया। आओ कंबल ओढ़ लो।"
राजिया ने कंबल ओढ़ा और रजाक को भी साथ में कंबल के अंदर आने को कहा। दोनो एक ही कंबल में बिस्तर पे बैठे बैठे बात कर रहे थे। यहां वहां की बात कर रहे थे।
"वैसे एक बात बताई रजाक आप आज इतनी रात तक क्यों जगे हुए है ?"
"पता नही आज थोड़ा सा सिर दर्द हो रहा था इसीलिए।"
"पागल है क्या आप ? सिर दर्द के बावजूद भी आप मुझसे बात कर रहे है ? आपको सोना चाहिए या फिर सोने की कोशिश करनी चाहिए। एक काम करो मैं आपका सिर दबा देती हूं।"
राजिया रजाक के सिर को गोदी पे रख देती है और सिर दबाने लगती है। रजाक को हल्का सा अच्छा महसूस हो रहा था।
"ओह राजिया अब अच्छा लग रहा है। थोड़ा सिर हल्का हो रहा है।"
"अभी थोड़ी देर और लेटे रहो मैं ठीक कर देती हूं।"
"लेकिन राजिया तुम्हे अब्दुल की देखभाल करने के लिए लाया हूं। मेरा बोझ मत उठाओ।"
"चुप चाप सो जाओ। यहां आकार लग रहा है की तुम्हारी भी देखभाल करनी चाहिए।"
"फिर तो तुम हम दोनो के पीछे थक जाओगी। तुम आराम करो।"
"करूंगी लेकिन पहले सो जाओ।"
रजाक राजिया के गोद में सिर रखकर सो गया। देखते देखते राजिया को भी नींद आ गई और वो रजाक के बगल सो गई। सुबह जब रजाक की नींद उड़ी तो देखा की राजिया सो रही है। रजाक के साथ साथ राजिया की भी नींद उड़ी।
"तुम सो जाओ रजाक मैं अब्दुल को देख आती हूं।"
राजिया उठकर जा ही रही थी की रजाक बोला "सुनो राजिया अगर अब्दुल सो रहा हो तो उसे सोने दो।"
राजिया गई तो देखा अब्दुल अभी भी गहरी नींद में सो रहा है। राजिया बाहर आई और रजाक के कमरे में गई।
"वो सो रहे हैं"
"सोने दो। वैसे भी ठंडी का मौसम है। कुछ काम नही है। तुम भी सो जाओ। अब्दुल के कमरे में।"
"नही नही। मुझे पहले नहाना है।"
"इतनी ठंडी में सुबह सुबह ?"
"हां।"
राजिया बगल वाले स्नानघर में गई। उस स्नानघर में दरवाजा नही लगा हुआ था सिर्फ पर्दा ही लगा हुआ था। राजिया टोरेंट नहा ली। पानी बहुत ठंडा था। राजिया तुरंत नहाई। नहाने के बाद वह ही कपड़े पहनने लगी। कमीज के बाद ब्रा पहना लेकिन कुर्ती उठाने गई की कीर्ति गिर गया फर्श पे और गीला हो गया। अब करे तो क्या करे। राजिया ठंडी से ठिठुर रही थी। तो फिर ब्रा में ही बाहर आई और कपड़े सुखाने लगी। आंगन में कपड़े लटकाया। राजिया जल्दी से अब्दुल के कमरे गई। सामने देखा तो अब्दुल जग चुका था। राजिया को bra में देखा। उसके गोरे गोरे ऊपरी बदन को देखा अब्दुल ने। अब्दुल बोला "जल्दी से कुर्ती पहन लो वरना ठंड लग जाएगी।"
"हां लेकिन मेरा सामान कहा है ?" राजिया ने पूछा।
"अरे हट वो तो रजाक के कमरे में है।"
राजिया भी जल्दबाजी में bra में ही रजाक के कमरे चली गई। अब्दुल की तरह रजाक भी राजिया के गोरे बदन को देखता रह गया।
"तुम इधर क्या कर रही हो ? कपड़े कहा है तुम्हारे ?"
"अब्दुल ने बताया तुम्हारे कमरे में है।"
"क्या वो तो तुम्हारे पास था।"
राजिया सोच में पड़ गई। फिर उसे याद आया की सामान गाड़ी से निकलना भूल गई थी।
"धत्त सामान गाड़ी में ही छुट गया। अब ?"
"रुको मेरे कुर्ते चलेंगे ?"
"अरे नही उसे तो मैंने अभी दो दिया और वैसे भी कितने गंदे थे वो। तुम बाजार से कुछ ला सकते हो ?"
"अरे खड़े के मौसम में बंद है बाजार और अभी बारिश भी होगी।"
"या अल्लाह। ये सारी मुश्किलों को एक साथ हो आना था ।" राजिया सिर पे हाथ रखते हुए बोली। तब तक अब्दुल भी आ गया कमरे में।
"पहले एक काम करो कंबल ओढ़ लो वरना ठंड लग जाएगी।" अब्दुल ने कहा।"
"वैसे अब्दुल तुम्हारी तबियत कैसी है ?" राजिया ने पूछा।
"अभी थोड़ी थकान है। मैं थोड़ी देर और सोने वाला हूं।"
"तुम लोगो के लिए चाय बनाउ?"
"नही राजिया मैं भी सोनेवाला हूं।" रजाक ने कहा।
"एक काम करो। राजिया तुम मेरे साथ चलो। थोड़ी देर हम सो जाते है और वैसे भी bra में ठंडी लग जाएगी।" इतना कहकर अब्दुल राजिया के दोनो कंधे पे हाथ रखा और अपने साथ ले चला। राजिया भी ठंड की वजह से अब्दुल से लिपट गई। अब्दुल राजिया को अपने कमरे लेकर आया और दरवाजा बंद कर दिया। दोनो बिस्तर पे कंबल के अंदर आ गए। अब्दुल अचानक जोर जोर से हसने लगा। राजिया को थोड़ा अजीब सा लगा।
"ऐसे हंस क्यों रहे है आप ?" राजिया ने पूछा।
"बूरा मत मानना राजिया लेकिन तुम्हारी किस्मत पे हंसी आ रही है।"
"मेरी किस्मत ? मतलब ?"
"मतलब ये को तुम जब से इस घर में आई हो तब से तुम्हारे साथ ही उल्टा हो रहा है। कपड़े तुम्हारे गीले हुए, सन गाड़ी में छूट गया, बाजार बंद है, बारिश भी होनेवाली है और तुम इस bra में। सब उल्टा हो रहा है यहां पे।"
राजिया हल्के से मुंह बिगड़ते हुए "आपको बहुत मजा आ रहा है ? संभालके शायद आगे आपके साथ न उल्टा हो जाए।"
"लेकिन एक बात कहूंगा। पहली बार किसी खातून को यूं बाहर bra में देख रहा हूं।"
"अब जैसी मेरी किस्मत।"
"लेकिन राजिया तुम आई तो घर कुछ अच्छा लग रहा है। ये सोचो न तुम आई और हमारा दिन कुछ अच्छा सा हो रहा है।"
राजिया को बात अच्छी लगी और बोली "वाह बाते करना कोई आपसे ही सीखे। बुरी बात को अच्छी बात में तब्दील कर दिया।"
"नही राजिया ये सच है। तुम आई तो जैसे घर का खाना नसीब हुआ, बहुत दीनो बाद एक अच्छी नींद मिली, तुम्हारी हालत देख आज इतने दिनो बाद हसने का मौका मिला। सच में राजिया तुम जैसे एक अच्छे सपने की तलाश हो या हकीकत की।"
राजिया और अब्दुल दोनो एक दूसरे को देखते रह गए।
"वैसे राजिया एक बात की इजाजत लूं अगर बूरा न मानो तो ?"
"किस चीज की इजाजत ?"
"राजिया मुझे कुछ देर के लिए तुमसे लिपटकर सोना है।"
राजिया ने अब्दुल को बाहों में भर लिया और सिर पे हल्के से चुंबन देते हुए कहा "अब्दुल तुम खुद को अकेला मत समझना। मैं हूं तुम्हारे साथ।"
अब्दुल ये बात सुनकर रोने लगा।
"अब्दुल तुम रो रहे हो?" राजिया ने आंख से आंसू पोंछे हुए पूछा।
"पहली बार किसी ने ऐसी बात की।"
"ओह अब्दुल कितने बदसूरत लगते हो रोते हुए वैसे भी बुड्ढे हो और भी बेकार लगते हो।"
अब्दुल पूछा "तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो ?"
"तुम खुद ही एक मजाक हो। तुम्हारा क्या मजाक उड़ाया जायेगा।"
अब्दुल हस्ते हुए बोला "अभी बताता हूं तुझे।" इतना कहकर अब्दुल राजिया के कमर पे गुदगुदी करने लगा। राजिया गुदगुदी की वजह से हसने लगी और बोली " हा हा हा अब्दुल छोड़ो मुझे। अब्दुल बदमाश बुड्ढे।"
अब्दुल बैठ गया और लेटी राजिया को गुदगुदी करते हुए कहा "अब मजाक उड़ा मेरा।" दोनो हसने लगे। फिर अब्दुल राजिया के ऊपर लेट गया और बोला "ओह राजिया तुम तो मेरी जान ले लोगी। इतना भी हसाओ मत।"
"मैं तुम्हारी क्यों जान लूंगी। जान तो तुमने मेरी ले ली। इतनी गुदगुदी कौन करता है। वैसे मुझे पता नही था की ये बुड्ढा अब्दुल मजाक भी करता है।"
अब्दुल राजिया के गाल को चूमते हुए बोला "वैसे तुम्हारी कमर बहुत अच्छी है। मजा आ गया।"
"चुप बदमाश। अब जल्दी कंबल के अंदर आओ वरना मुझे ठंड लग जाएगी।"
"रुको मैं तुम्हारी ठंड भागता हूं।" अब्दुल कंबल के अंदर घुसा और राजिया ने नंगे पेट पे सिर रख दिया। राजिया के जिस्म में करंट दौड़ पड़ा।
"आह अब्दुल क्या कर रहे हो ?"
"गर्मी दे रहा हूं। अब में तुम्हारे पेट पे सिर रखूंगा और मेरी गरम सांसें तुम्हारे पेट पे आएगी। गरम महसूस होगा तुम्हे।"
"लेकिन तुम्हारी दाढ़ी का क्या ?"
"तुम चुपचाप सो जाओ। वैसे भी तुम्हारा पेट कितना मुलायम है।"
राजिया हसने लगी और अपने दोनो हाथो से अब्दुल के चेहरे को पेट पे दबा दिया और कहा "ये तरकीब अच्छी है।"
अब्दुल ने दोनो हाथो को राजिया के कंधे पे रखा और पेट पे मुंह रखा हुआ था और अचानक से चूमते हुए कहा "तुम्हारा पेट इतना मखमल है वाह।"
"Hmm अब सो जाओ।" फिर दोनो ने आंखे बंद कर ली। राजिया ने बड़े से कंबल को सिर तक ढाक दिया। दोनो को गरम सांसें कंबल में घूमती रही और राजिया का पेट अब्दुल के चेहरे से ढका हुआ था।